यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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अभी तक इस सेक्स कहानी में आपने पढ़ा कि नम्रता ने नंगी रह कर हम दोनों के लिए खाना बनाया. खाना खाने के बाद उसने अपने पति से बात करके उसे भी गरम कर दिया. फिर हम दोनों एक दूसरे की मालिश करने लगे. मालिश के साथ ही चुदाई का मूड बन गया और धाकपेल चुदाई हो गई.
अब आगे:
नम्रता अभी भी मेरे ऊपर लेटी हुई थी और दोनों का मिला-जुला माल उसकी चूत से निकलता हुए मेरे लंड के ऊपर गिरने लगा. इस माल ने मेरे लंड को अच्छे से गीला कर दिया.
खैर.. जब मेरा लंड अच्छे से दोनों के मिले हुए माल से गीला हो चुका था, तो वो मेरे ऊपर से उतर गई
मेरे मुरझाये हुए लंड के तरफ देखते हुए नम्रता बोली- अब इसका फड़कना बंद हो चुका है.
फिर वो उसी माल से लंड और उसके आस-पास की जगह को अच्छे से मालिश करने लगी. फिर उसने मुझे पलटाकर मेरे पीछे तेल की एक बार फिर मालिश शुरू कर दी. जब अन्त में मेरी गांड का नम्बर आया, तो वो मेरे कूल्हे को खूब जोर-जोर से दबाती और उंगली में तेल लेकर गांड के अन्दर अपनी उंगली डालने लगती.
ऐसा करते-करते उसने अपनी एक उंगली मेरी गांड के अन्दर पूरी डाल दी और अपनी उंगली से मेरी गांड चोदने लगी.
नम्रता बोली- शरद एक बात कहूं.
मैं- हां बोलो बेबी.
नम्रता- अगर मेरे पास भी लंड होता, तो तुम्हारी गांड मारे बिना न छोड़ती.
मैं- अरे तो क्या हुआ, तुम चाहो तो अपनी चूची से मेरी गांड मार सकती हो. नम्रता- अरे नहीं यार.. चूची देख नहीं रहे हो, खरबूजे जैसी बड़ी हो चुकी हैं और मेरे निप्पल भी तुम्हारी गांड को भी टच नहीं कर पाएंगे.
मैं- बताओ.. तो मैं अब क्या कर सकता हूं.
कुछ देर तक वो चुपचाप मेरे कूल्हे को दबाती रही और अपनी उंगली को गांड के अन्दर-बाहर करती रही.
फिर अचानक बोली- शरद तुम भी घोड़े के स्टाईल से घुटने के बल होकर अपनी गांड उठा लो. मेरे पास लंड नहीं तो क्या हुआ.. मैं चूत से ही तुम्हारी गांड मारूंगी. तुम्हारी गांड और मेरी चूत की थाप की आवाज सुनकर मुझे मजा आ जाएगा. नम्रता के कहने पर मैंने अपनी कोहनी और घुटने को पलंग पर टिकाया और घोड़े जैसी पोजिशन पर आ गया.
नम्रता ने भी अपने को एडजस्ट करते हुए चूत को मेरी गांड से टिका दी. अभी भी उसकी चूत में गर्माहट थी, जो मुझे साफ-साफ पता चल रही थी. पहले पहल तो नम्रता अपनी चूत को मेरे कूल्हे पर चलाती रही, फिर थाप देने लगी. फिर जैसे-जैसे वो अपनी थाप को बढ़ाती रही तो थप-थप की आवाज से कमरा गूंज उठा. मुझे भी उसकी चूत से मेरी गांड मारने का मजा आने लगा. थकने से पहले तक नम्रता बहुत ही तेज गति से मेरी गांड मार रही थी. पर जब वो थक गयी और हांफने लगी, तो फिर उसने हटना ही मुनासिब समझा और मेरे बगल में आकर लेट गयी.
मैंने भी अपनी पोजिशन सही करते हुए कहा- मेरी गांड मारने में मजा आया कि नहीं.
नम्रता- बहुत मजा आया.. मेरी चूत गरम हो गई. अब तुम चाहो तो मेरी मालिश कर दो, फिर साथ में नहाते हैं.
मैंने भी उसकी मालिश अच्छे से की और दोनों छेद के अन्दर भी मालिश की. हां इस बार उसके छेदों में मैंने लंड नहीं, उंगली की थी.
उसके बाद हम दोनों ने एक दूसरे को अच्छे से नहलाया और एक दूसरे के जिस्म को साफ किया.
अब दोपहर हो चुकी थी और भूख लग रही थी. फिर हम दोनों मोहल्ले वालों की नजर से बचते हुए रेस्टोरेन्ट पहुंचे और खाना खाया. फिर चुपचाप वापिस बिना किसी की नजर में आए घर आ गए और तुरन्त कपड़े उतारकर एक दूसरे से चिपक गए.
नम्रता मेरी पीठ और कूल्हे को सहला रही थी और मैं उसकी पीठ और कूल्हे को सहला रहा था.
नम्रता बोली- जानू.
मैंने जवाब दिया- हां रानी.
नम्रता- मेरी गांड में खुजली हो रही है. मैं- तो लेट जाओ पेट के बल.. मैं गांड की खुजली मिटा देता हूं.
नम्रता पलंग पर पेटकर बल लेट गयी और अपनी टांगों को फैला कर दोनों हाथों से कूल्हे को पकड़ कर फैला लिए और बोली- शरद आ जाओ, मैंने गांड खोल दी है.. आओ और इसकी खुजली मिटाओ.
उसकी गांड का बादामी रंग का छेद मेरी नजरों के सामने था. मैंने भरपूर थूक उस छेद पर गिराया और चाटने लगा.
नम्रता- आह.. हां मेरे राजा, इसी तरह चाटो.
बस ठीक उसी समय एक बार फिर नम्रता का फोन बजा और साथ ही मेरा फोन बजा.
हम दोनों ने दूर होकर फोन अटेण्ड किया. मेरी बात तो तुरन्त खत्म हो गयी, जबकि नम्रता अभी भी फोन पर थी. मैं पास गया तो वो स्पीकर पर ही बात कर रही थी.
नम्रता- तुम कहां पर हो.
उधर से आवाज आयी- मैं बाथरूम में हूं. उधर से आवाज आना जारी था.
पति देव बोल रहे थे- नम्रता कल रात की तरह सेक्सी बात करो.
नम्रता- क्यों, सुबह तो ही मैंने तुमसे सेक्सी बात की थी और इस समय मैं स्कूल से आयी हूं और थकी हूं. बस कपड़े बदलने जा रही हूं.
थोड़ा तेज आवाज में नम्रता के पति देव बोले- पहले मैं तुम्हें ठंडी समझकर तुम्हारे पास नहीं आता था और अब मैं खुद तुमसे चाह रहा हूं कि मेरी रानी मुझसे सेक्सी बात करे, तो तुम नखरे कर रही हो.
नम्रता- नहीं मेरे राजा, ऐसा कुछ नहीं है.
फिर रूकते हुए बोली- तुम मेरे से सेक्सी बात करके मुठ तो नहीं मार रहे हो?
पति- हां मेरा लंड मेरे हाथ में है और मैं ऐसा ही चाह रहा हूं. कल रात और आज सुबह की जो बातें हुई थीं, वो मेरे दिमाग से उतर नहीं रही हैं.
नम्रता- तुम अपने लंड का माल ऐसे मत खराब करो, मेरी चूत के लिए छोड़ दो.
पति- हां रानी मैं भी ऐसा करना नहीं चाह रहा था, लेकिन तुम्हारी बात दिमाग से निकल नहीं रही थी. अभी तुम मेरी बात मान जाओ. जब कल मैं आऊंगा, तो तुम्हारी चूत अपने वीर्य से भर दूंगा.
नम्रता- ठीक है, लेकिन तुम मेरी किसी बात का बुरा नहीं लगाओगे.
पति- नहीं लगाऊंगा यार.
ये सब बातें करते हुए नम्रता बोली- मैं फोन को स्पीकर पर कर रही हूं.
पति- हां मेरी रानी करो फोन को स्पीकर में.
फिर क्या था, नम्रता एक बार फिर बिस्तर पर लेट गयी और अपने कूल्हे को फैलाते हुए मुझसे इशारा करते हुए फोन में बोली- मेरे राजा मैंने अपनी गांड का मुँह खोल दिया है.. आओ और मेरी गांड चाटो.
मैंने एक बार फिर ढेर सारा थूक उसकी गांड के मुँह में गिरा दिया और अपनी जीभ चला दी.
नम्रता- आह मेरे राजा, बस इसी तरह चाटते रहो, बहुत मजा आ रहा है.
उधर से आवाज आयी- मेरी रानी तुम्हारी गांड चाटने का मजा आ रहा था, कहां रखी थी अभी तक अपनी इस गांड को.
नम्रता- मेरे राजा तुमने ही ध्यान नहीं दिया और जोर से चाटो न.
मैं उसके कूल्हे को कस कस कर भींचते हुए उसकी गांड चाटने में लगा रहा.
उधर नम्रता- हां बस इसी तरह, बहुत अच्छे से चाट रहे हो. आह-आह, बस ऐसे ही, जान खुजली बहुत ही बढ़ गयी है, अपने लंड से मेरी खुजली मिटाओ.
बस उसका इतना कहना ही था कि मैंने आव देखा न ताव लंड को गांड में एक ही झटके में पेबस्त कर दिया.
नम्रता- आह हरामी.. क्या कर दिया.. मेरी गांड ही फाड़ दी. निकाल भोसड़ी वाले अपना लंड.
तभी उधर से आवाज आयी- मैं यहां से तुम्हारी गांड में लंड कैसे डाल सकता हूं.
अपने को संयत करते हुए नम्रता बोली- जानू, तुम्हें फील करा रही थी.. पर तुम चिन्ता मत करो, तुम्हारे लिए ही व्यवस्था कर रही हूं. मैं लम्बा वाला बैगन अपनी गांड में डाल रही हूं. ताकि तुम्हारा लंड आसानी से अपनी गांड में ले सकूं.
पति- आह.. आह.. पर तुम.. आह आह पर तुमने ऐसा क्यों किया.. जान. आह ओह.. रानी तुम्हारी गांड बहुत रसीली है, मुझे लग रहा है, मैं मुठ नहीं तुम्हारी गांड ही मार रहा हूं.
नम्रता- हां मेरे राजा, बस ऐसे ही मेरी गांड चुदाई चालू रखो, बहुत मजा आ रहा है.. हां मेरे राजा अन्दर तक पेलो.
उधर दूसरी तरफ- मेरी रानी आह-आह, क्या आह-आह खूब खूब गांड है तुम्हारी.. आह मैं आ रहा हूं.
इधर वो सुर में सुर मिला रही थी- हां मेरे राजा और जोर-जोर से चोदो. बहुत मजा आ रहा है.
इधर मेरा माल निकलने वाला था, मैं भी अपने आवाज को रोककर चिल्ला रहा था. जब मुझे लगा कि मेरा माल निकल जाएगा, मैंने हल्के से नम्रता के गाल पर एक चपत लगायी. वो मेरी तरफ देखने लगी
मैंने इशारे से पूछा- माल निकलने वाला है.
नम्रता की बुद्धिमानी देखकर मैं दंग रह गया, मेरे इशारे को समझ गयी थी. दूसरी तरफ से पतिदेव बोल रहे थे- मेरा निकलने वाला है. बस तुरन्त ही नम्रता बोली- जान माल गांड में मत गिराना, मेरे मुँह में गिराओ.. आह मेरे राजा.
मैंने लंड बाहर निकाला और नम्रता के मुँह के पास पहुंच गया.
उधर से- मेरी रानी मुँह खोलो.. मैं रस निकालने वाला हूं.
नम्रता- आह मेरे राजा, आ जाओ.. आह-आह क्या गरम मलाई है.
ऊ अह.. करते हुए नम्रता मेरे लंड को चूसने लगी और इसी बीच मैं और उसके पतिदेव दोनों एक साथ खलास हो चुके थे.
आह-आह करते हुए पतिदेव बोले- कैसा लगा मेरा माल?
नम्रता- बहुत टेस्टी है.. अब अपना सुपाड़ा मेरी नाक के पास लाओ.. इसकी नशीली खुशबू को मेरे को सुंघाओ.
पति- हां मेरी रानी.. सूंघो लंड मेरी रानी, कैसा लगा..
नम्रता- बहुत ही मादक लग रहा है.
तभी पतिदेव बोले- मेरी रानी, तुमने मेरा सुपाड़ा सूंघा है, मैं तुम्हारी गांड सूंघना चाहता हूं.
नम्रता- हां मेरे राजा, मेरी गांड चूत सब तुम्हारी ही तो है, जो सूंघना चाहो सूंघ लो.
फिर नम्रता ने मुझे आंख मारी, मैं भी समझ गया और कंधा उचकाकर मैंने सहमति दी और पीछे आकर उसके कूल्हे को पकड़कर फैला कर नाक ले जाकर छेद पर टिका दी और एक लम्बी सांस ली. वास्तव मैं अन्दर से आती हुई महक, बहुत ही मादक थी.
नम्रता एक उत्तेजक आवाज के साथ बोली- मेरे जानू, कैसी लगी महक?
पति- मत पूछो मेरी जान, तुमने अब तक इस मादक महक को छुपाकर रखा था.
नम्रता- मैंने कहां छुपाकर रखी थी, तुम्हीं नहीं देखते थे.
पति- सॉरी यार, पास पड़ी चीज पर मेरी नजर ही नहीं गयी, पर अब मेरी नजर ही नहीं हटेगी. अच्छा चलो, मैं अब फोन काटता हूं. तुम्हारे साथ फोन सेक्स करके इतना मजा आया, जब आकर तुमको चोदूंगा तो कितना मजा आएगा.
नम्रता- आओ तो मेरे राजा.. मैं खुद तुमको जन्नत की सैर कराऊंगी.
फिर उधर से फोन कट गया और नम्रता मेरे तरफ घूमती हुए मेरे गालों को अपने हथेली के बीच फंसाकर मेरे होंठ को कसकर चूसने लगी.
नम्रता होंठ को छोड़ते हुए बोली- शरद मैं इस अहसान का बदला जिंदगी पर नहीं चुका पाऊंगी.
मैं- अरे चुका लोगी.
‘कैसे..?’ मेरे तरफ देखकर अपने नशीले नैन को मटकाते हुए बोली.
मैं- बस अपने और अपने मियां के बीच चुदाई मुझे सुनाकर.
नम्रता- अरे यार ये तो मैं तुमसे ऐसे भी शेयर करती. पर हां अभी झटके में दो बार चुदाई हो गयी, पर मजा खूब आया.
मैं- सही कह रही हो, सोचा नहीं था कि इसमें भी इतना मजा मिलेगा.
पलंग से नम्रता उतरते हुए नम्रता बोली- आ रहे हो?
‘कहां?’
नम्रता- पेशाब बहुत जोर से लगी है, अगर तुम्हें भी पेशाब लगी हो.. तो आ जाओ, दोनों मिलकर मूत लेंगे.
अभी तक मुझे पेशाब लगने का अहसास नहीं था, लेकिन नम्रता के साथ मूतने का मजा लेना था, सो मैं भी नम्रता के साथ बाथरूम में पहुंच गया.
बाथरूम में दोनों खड़े होकर मूतने लगे और देखने लगे कि दोनों में से किसकी धार दूर तक गिरती है. पर चूत चपटी और लंड लम्बा होता है, तो लंड से निकलने वाली धार दूर तक मार कर रही थी.
मूतने के बाद न उसने अपनी चूत साफ की और न मैंने अपना लंड. वापस आकर हम दोनों पलंग पर बैठ गए.
नम्रता ने बात छेड़ते हुए कहा- अच्छा ये बताओ, तुम्हें कैसे शौक हुआ कि तुम अपनी बीवी को सेक्सी कपड़े पहनाओ?
मैं- अरे ये कोई शौक नहीं है, बस मेरी कल्पना थी. शादी के पहले कि मेरी बीवी सेक्सी कपड़े में कैसे दिखेगी, बस उस इच्छा को पूरी करने के लिए मैं ले आया करता था.
नम्रता- वो कैसी दिखती उन कपड़ों में?
मैं- दिखती तो वैसे भी वो बहुत सेक्सी है, लेकिन अगर बिकनी या टू-पीस पहन ले तो और सेक्सी माल दिखती है.
नम्रता- चलो, कल देखती हूं तुम अपनी बीवी के लिए कैसे-कैसे कपड़े खरीदते हो. मैं- हां हां देख लेना, लेकिन मुझे नहीं लगता कि अब तुम्हें इसकी कोई जरूरत पड़ेगी.
नम्रता- क्यों नहीं? अपने हुस्न का जलवा बिखेर कर अपने मियां को और तड़पाऊंगी और फिर उसके साथ चुदाई का मजा लूंगी.
मैं- हां हां तभी तो तुमने अपनी गांड को बचा लिया.
मेरी बात समझ कर हंसने लगी और बोली- मैंने नहीं वो लम्बे वाले बैंगन ने बचा ली.
लेकिन एक बात अब मुझे समझ में आयी कि स्त्री को मर्द के लंड का मजा अपने दोनों छेदों में लेना चाहिए. बाकी सबकी अपनी-अपनी च्वाइस है. पर एक बात है, अगर जिसने भी अपने गांड का मजा लिया, तो फिर उसको आनन्द की कोई सीमा नहीं होती है.
हम दोनों के बीच बातें होती रहीं और इसी बीच नम्रता चाय बना लायी. फिर वो रात के खाने का इंतजाम करने लगी. धीरे-धीरे शाम अंधेरे में तब्दील होने लगी.
एक बार फिर हम लोग नंगे ही छत पर हो लिए, देखा तो आस-पास के लोग नीचे जाने लगे. हम दोनों वहीं छत पर एक कोने में बैठ गए और जिस्म के ऊपर पढ़ने वाले ठंडी हवाओं का आनन्द लेने लगे. साथ ही अपने-अपने जिस्म को अपने ही हाथों से सहलाते हुए ऊपर आसमान की ओर देखने लगे.
आसमान की ओर देखते हुए नम्रता बोली- शरद भगवान भी कभी-कभी नाइंसाफी कर ही देता है.
मैंने पूछा- क्यों?
नम्रता बोली- अगर मेरी शादी तुम्हारे साथ हुई होती, तो आज बिना किसी डर के और बिना किसी से छुपे हुए तुमसे मैं जब चाहती चुदाई का मजा लेती.
मैं- नहीं, भगवान जो करता है, अच्छे के लिए करता है.
इतना कहकर मैं चुप हो गया. शायद वो मेरी बातों का मतलब समझ चुकी थी. ठंडी हवाओं की वजह से ठिठुरन बढ़ चुकी थी.
मैंने नम्रता की ओर देखते हुए कहा- एक राउन्ड?
नम्रता- बस एक मिनट.
ये कहकर उसने अपनी टांगें फैलाईं और वहीं बैठे-बैठे पेशाब करने लगी. उसकी देखा-देखी मैंने भी अपनी टांगों को फैला दिया और मूतने लगा. उसके बाद नम्रता कोने की दीवार से सटकर खड़ी हो गयी और मैं उससे सटते हुए उसके होंठों को पीना शुरू कर दिया. नम्रता ने मेरे दोनों कलाईयां पकड़ीं और मेरे हाथों को अपने मम्मों पर रख दिए.
आह मुलायम-मुलायम, गोल-गोल मम्मों पर हाथ पड़ते ही हथेलियां उसको मसलने के लिए मचल उठे. पूरे हाथों में मम्मे और चुटकियों के बीच निप्पलों की मसलाई शुरू हो गयी.
नम्रता भी मेरे लंड को सहला रही थी और अंडकोष दबाने के साथ ही सुपाड़े के खोल को खींच रही थी. मुझे उसके मुलायम-मुलायम मम्मे दबाने में बहुत मजा आ रहा था और उसको मेरे लंड के खोल को खींचने में.
थोड़ी देर तक दोनों एक दूसरे के होंठ चूसते रहे और एक-दूसरे के मुँह के अन्दर अपनी-अपनी जीभ डालकर अन्दर घुमाते रहे.
फिर नम्रता ने मुझे कमर से जकड़ लिया और मेरे निप्पलों को बारी-बारी से चूसने लगी. इसी के साथ ही उसको काट भी रही थी. फिर वो अपनी जीभ छाती के बीच में चलाते हुए नाभि तक आती और फिर दोनों निप्पल को चूसने लगी. फिर वापस उसी तरह जीभ चलाते हुए नीचे की ओर बढ़ते हुए उसने लंड को गप से मुँह के अन्दर लेकर ओरल चुदाई शुरू कर दी.
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कहानी जारी है.