नमस्ते दोस्तों, अन्तर्वासना पर मेरी पिछली कहानी
कर्ज के लिए बीबी को चुदवाया
को आप सबने बहुत पसंद किया. मुझे बहुत सारे ईमेल भी मिले. आप सबकी मांग पर ये नयी कहानी रीना की कलम से!
यह कहानी काल्पनिक है, मनोरंजन मात्र के लिए लिखी गयी है।
मेरा नाम रीना है, जयपुर में अपने पतिदेव विक्रम के साथ रहती हूँ. उम्र 27 वर्ष, रंग सांवला, बूब्स साइज 34B, कद 5 फुट 2 इंच, एकदम दुबला छरहरा कामुक शरीर … एक बार भी देख लें वो गच्चा खा जाये कि यह लड़की शादीशुदा भी हो सकती है क्या!
वक्त ना बर्बाद करते हुए सीधा कहानी पे आती हूँ.
मेरे पति विक्रम का कंप्यूटर शॉप है तो सारा दिन वे व्यस्त रहते हैं. पीछे से पूरे दिन घर पे अकेले मन नहीं लगता था.
अक्टूबर का ठण्ड का मौसम दिन बे दिन उदासी और बोरियत बढ़ाने लगा था.
तभी हमारे घर के बगल एक इंजीनियरिंग कॉलेज जाने वाला लड़का शिफ्ट हुआ. दिखने में हट्टा कट्टा गबरू जवान, 21-22 वर्ष का लग रहा था. कद 6 फुट लगभग!
उसमें बस एक कमी थी कि वो थोड़ा सा काला था.
पर मैं तो उसके तगड़े जिस्म से सम्मोहित हो चुकी थी. दिन रात उसके बारे में सोच रही थी कि ‘हाय बस एक बार मुझे मिल जाये।’
उसका हथियार भी तगड़ा मालूम होता था. रात को जब भी मेरे पति विक्रम चोदते मुझे लगता वो लड़का मुझे भोग रहा है.
मेरे पति के जाने के बाद रोज़ बालकनी में कपड़े सुखाने जाती थी, रोज़ मुझे एक बार मिल ही जाता था. बड़ा शर्मीला था … एक सप्ताह हो चला था पर वो बात बिल्कुल नहीं करता था.
अब मुझसे रहा नहीं गया तो मैंने सोचा कि इस गधे को मुझे ही सीधा करना पड़ेगा.
तो एक दिन कपड़े सुखाते वक़्त खुद मैंने ही बात शुरू करी. मैंने कहा- हेलो, रोज़ खड़े दिखते हो, एक-आध बार मुँह से कुछ बोल भी दिया करो काहे का घमंड है तुमको रे?
उसने झेंपते हुए कहा- भाभी जी नमस्ते! वो मैं नया आया हूँ ना, आपको परेशान नहीं करना चाहता था, वैसे मेरा नाम रोहित है. यही पास के इंजीनियरिंग कॉलेज में पढ़ता हूँ फाइनल ईयर, कंप्यूटर ब्रांच!
उसने बस इतना कहा और फिर डर के मारे भाग लिया.
मेरी तो हंसी ही छूट गयी.
फिर अगले दिन, दुबारा बालकनी पर मैं चुटकी लेती हुई- क्यों, कल भाग गया इतना जल्दी। क्या हुआ था?
रोहित- वो भाभी जी, क्लास का टाइम हो गया था ना! तो सॉरी!
मैं- क्या जी जी लगा रखा है, सिर्फ रीना भाभी बोलो.
रोहित- ओके, रीना भाभी!
मैं- वैसे मेरे हस्बैंड भी कंप्यूटर इंजीनियर हैं, काफी कम्पनी में जॉब कर चुके हैं. पर कुछ सालों से कंप्यूटर दूकान है.
रोहित- अरे वाह! फिर तो मेरी पढ़ाई में हेल्प कर देंगे भैया.
मैं- अरे काहे का हेल्प? टाइम कहाँ रहता है उनके पास … सारा दिन बस दूकान दूकान, वैसे मैंने भी इलेक्ट्रॉनिक्स में बीई किया है.
रोहित- ओहो, तो आप भी काफी मदद कर सकते हो, सिलेबस काफी मैच होता है अपना.
मैं- सो तो है, कुछ पूछना हो तो पूछ लियो.
रोहित- ओके, चलता हूँ अभी क्लास का टाइम.
अब अगले दिन शुक्रवार था, पर रोहित बालकनी में आया नहीं … ना ही उसके जाने की आवाज़ आयी।
मुझे कुछ गड़बड़ सी लगी आज तो कॉलेज स्कूल छुट्टी भी नहीं थी. उसकी कामवाली भी काफी देर घंटी बजा के चली गयी.
मुझे चिंता हुई, मैंने उसके घर जाने का निश्चय किया. गेट पे 5 मिनट हो गए घंटी बजाये. तभी उसने अचानक से गेट खोला और कहा- अरे भाभी आप?
मैं- मुझे लगा सब ठीक तो है, तो चेक करने आयी आखिर पड़ोसी हूँ.
वो घबराते हुए- आइये ना अंदर!
अंदर जाते ही माहौल पता चला, खूब गंदगी थी, खाने के पैकेट इधर उधर और कुछ बियर की बोतलें भी थी.
मैं- तो कल रात पार्टी हुई है जम के, पर आवाज़ तो नहीं आयी गाने बजाने की … कोई आया गया भी नहीं?
रोहित- नहीं भाभी कोई पार्टी शार्टी नहीं थी. बस मैं अकेला था.
अब मेरा दिमाग खराब हुआ कुछ कुछ माजरा समझ आने लगा फिर भी नासमझ बनती हुई- आज का तो तेरा कॉलेज गया, चल तुझको चाय बना के पिलाती हूँ.
रोहित- अरे नहीं आप रहने दो.
मैं- अरे चुप!
रसोई में घुसती हुई मैं बोली- बेटा हमें भी काफी अनुभव है, तुम्हारा टाइम भी देखे हैं.
रोहित भी रसोई के बाहर खड़े हुए- अच्छा, तो क्या पता चला?
मैं- यही कि आपको बीमारी हो रखी है. प्रेम रोग बोलते हैं इसको, कौन वो लड़की जिसकी याद में रोज आज़ादी का जश्न मनाया जा रहा है?
रोहित गुस्सा होते हुए- आप क्या समझोगी? आपको क्या पता?
मैं- मेरी भी तेरे भैया से लव मैरिज हुई थी आज से 3 साल पहले!
रोहित- वाह, आप लोग तो छुपे रुस्तम निकले पर हर किसी का प्यार अंजाम तक पहुंचे जरूरी नहीं!
फिर मैंने और रोहित ने 5 मिनट बैठ कर चाय पी, घर-बार इधर-उधर की बात की.
मुझे पता चला लड़का अच्छे खानदान का है, पढ़ाई में भी अच्छा। बस एक-तरफ़ा प्रेम में असफल हो गया तो निराशावादी हो चला है.
अब उसको क्या बताऊं कि जो बिमारी उसको हुई है उसको प्रेम रोग नहीं ‘चुत का भूत’ कहते हैं.
मुझे उसपे तरस और गुस्सा दोनों साथ आया.
फिर अपने घर चल पड़ी.
2-3 हफ्ते गुजर चुके थे, रोहित और मेरी अच्छी दोस्ती हो चली थी। मैं उसको जो काम बोलती वो कॉलेज से आके कर देता. वो पढ़ाई में भी मुझसे मदद लेने लगा धीरे धीरे पटरी पर आ गया था.
मेरे पति भी भरोसा करने लगे थे. मैं तो अपनी हवस वाली बात ही भुला चुकी थी, एक रिश्ता सा बन गया था.
पर कहते है चुत के दाने दाने पे लिखा है उसको चोदने वाले लंड का नाम.
किस्मत को भी यही मंजूर था.
मेरे पति को कुछ दूकान के काम से अचानक 2 दिन लिए दिल्ली जाना पड़ा और वो रोहित को बोल के गए ‘पूरा ध्यान रखना भाभी का.’
महाशय रोहित ने भी कमी नहीं छोड़ी. उसकी भी परीक्षा हो गयी थी तो 3-4 दिन छुट्टी थी. सारा दिन मैसेज करके पूछता रहता- कुछ लाना है? कोई समस्या?
मेरा अकेले के लिए खाना बनाने का मूड नहीं हुआ. मैंने उसको मैसेज करके रात का खाना लाने को कहा, तो ठीक रात आठ बजे वो आया खाना लेकर. मैंने गौर से एक और थैली देखी कुछ बोतल सी लगी.
रीना गुस्से में- ये क्या है दिखाओ?
रोहित- नहीं भाभी, कुछ नहीं है.
जोर जबरदस्ती करके थैली खुलवाई तो वोडका की बोतल निकली- अच्छा तो बच्चे फिर शुरू कर दी तूने समझेगा नहीं कभी.
रोहित- अरे नहीं भाभी, वो ठण्ड लग रही थी बहुत, अकेले तो लेना ही छोड़ दिया हूँ। दोस्त के यहाँ जाके फुटबॉल मैच देखते और पार्टी करते.
उसका भी कहना सही था, दिसंबर का महीना और राजस्थान की कड़ाके की ठण्ड.
फिर भी गबरू रोहित काले लोअर और नीले टी-शर्ट में था. मैंने तो काली नाइटी पहनी हुई थी. गर्म शॉल ओढ़ रखा था.
मैं- तो हम दोस्त नहीं है क्या? चल खोल और पेग बना!
रोहित- आप भी? ओके ठीक है … नो प्रॉब्लम.
हम दोनों सोफे पर बैठ कर धीरे धीरे पीने लगे. सामने टीवी पर मैच चल रहा था.
मुझे एक लेने के बाद हल्की हल्की मस्ती चढ़ने लगी. मैं उसे छेड़ते हुए- सिर्फ फुटबॉल देखते हो या कभी खेलते भी हो?
उसने झेपते हुए कहा- हां! बचपन में थोड़ा थोड़ा!
मैं जोर से हँसती हुई- बचपन में? हा हा हा!
फिर मैंने दूसरा पेग बनाया और उसकी गोद में आकर बैठ गयी. उसको एक गिलास पकड़ाया और अपने होंठ से गिलास को चाट चाट कर हल्का हल्का सिप लेने लगी.
रोहित बेचारा जोर जोर से काँपने लगा, उसकी बोलती बंद हो गयी थी.
मैंने गिलास साइड रखा और उसके बदन पर हाथ फेरने लगी, उसकी गर्दन पर हल्के हल्के चुम्बन देने लगी.
रोहित आह भरते हुए- अह अहा … हम्म्म हम्म!
मेरा मंगलसूत्र उसके सीने पर लग रहा था. मेरी पायल धीरे धीरे खनक रही थी. पूरे जिस्म में गर्मी सी होने लगी.
माहौल पूरा कामुक हो चला था. मुझसे रहा ना गया. मैंने अपने रस भरे गुलाबी होंठ रोहित के बड़े काले होंठों पर रख दिए और अपनी हाथ उसकी गर्दन पर. हम लोग एक दूसरे को चूमने लगे. बीच बीच में जीभ निकालते और तेज़ तेज़ होंठों को चूसते रहते.
मेरा हाथ धीरे धीरे उसके गर्दन से सीने फिर सीने से सहलाते हुए उसके पर लोअर गया. पूरा तम्बू बना हुआ था मानो फाड़ कर बाहर आ जायेगा सीधा मुँह में. मैं उसके लंड को लोअर के ऊपर से रगड़ने लगी.
रोहित कहराते हुए- भाभी रहा नहीं जाता, करो अभी कुछ!
मैं घुटने के बल फर्श पे बैठ गयी और उसका लोअर नीचे सरका था दिया. उसका लंड फ़न फ़नाते हुए बाहर निकला जैसा सोचा था वैसा ही पाया.
एकदम मोटा कड़क लम्बा कुंवारा लंड पूरा सात इंच से बड़ा एक हथियार जो मेरी छोटी सी गुलाबी चुत में घुस कर हंगामा मचा देता.
मैं उसके लंड को मुठ्ठी में भर के आगे पीछे करने लगी, उसके लंड के मोटे सुपारे को चाटने लगी और अपने मुँह में घुसा लिया। मैं लंड चूसने की खूब शौकीन हूँ। काफी देर तक उसके लंड को चूसती रही.
और वो कहराता रहा- जोर जोर से … आह आह … भाभी भाभी.
उसके गोटे भी मुँह में लेके चूसने लगी. रोहित तो काम वासना में भर गया.
मैं जोर जोर से मुठ मारती फिर लंड चूसती रहती.
तभी उसने मेरी गर्दन पकड़ी और मेरे मुँह को चोदने लगा.
मेरे मुँह से घों घों गला घुटने की आवाज़ आने लगी. इतने में वो बोला- भाभी मेरा गया.
साले ने सारा गाढ़ा वीर्य मुँह में छोड़ दिया जो मेरी नाक से भी हल्का बाहर आने लगा था.
रोहित बोला- भाभी, सॉरी. मुझे माफ़ कर दीजिए मुझसे रहा नहीं गया.
मुझे तो गुस्सा आ गया सारा मूड उसके सॉरी ने खराब कर दिया था. मैंने उसको घर जाने बोल दिया और बेचारा चुपचाप चलने लगा.
मैंने सोचा कि इसका पहला बार है सोच कर नजर अंदाज़ कर दिया. आखिर था तो तगड़ा लम्बा कुंवारा काला लंड 7.5 इंच होगा कमसे कम मेरे पति विक्रम जितना ही. मैंने उसको रोक लिया. वो मेरे बदन को सहलाने लगा, उसका काल नाग फिर जाग चुका था.
मैं ये मौका चूकना नहीं चाहती थी, वो मेरे स्तनों को ऊपर से दबाने लगा. मैं उसका साथ देने लगी.
फिर उसने मेरा गाउन उतार दिया और मेरे चूचुकों को मुँह में लेके चूसने लगा.
मैंने उसके लोअर में हाथ डाल दिया और उसके लंड को ऊपर से दबाने लगी.
इतने में उसका लंड खड़ा हो गया और सलामी देने लगा. मैंने आव देखा न ताव उसका लोअर झट से नीचे उतरा और अपनी नाइटी उतार फेंकी, अभी मैं पूर्ण रूप से नंगी थी बस गले में मंगल सूत्र था.
मैंने उसको सोफे पर धक्का देकर बैठा दिया, उसके लंड को पकड़ा और अपनी चुत पर सेट कर दिया. गप्प … आवाज़ हुयी और उसका तगड़ा लंड मेरी चुत के अंदर तक घुस गया.
अब मैं उसके ऊपर बैठ कर उछल उछल के धक्के देने लगी. वो भी मेरी गांड पकड़ के मज़े ले रहा था.
रोहित- आह भाभी … आह भाभी … मज़ा आ गया भाभी और तेज़ और तेज़!
मैं- उम्म्ह… अहह… हय… याह… क्या लंड है तेरा बे, चोद चोद आह आह!
मैं जोर से उछलती, उसका लंड पूरा चुत के जड़ तक लेती. उसका लंड एकदम मशीन की तरह अंदर बाहर हो रहा था. मेरी चुत भी योनि रस से रिस रही थी.
रोहित- और तेज़ और तेज़, ऐसे करती रहो!
मैं- आह आह हम्म आह आह.
इतने में उसने मेरे दोनों पैरों को पकड़ा और गोद में उठा लिया. और गोद में उछाल उछाल के चोदने लगा.
मैं- आह … बिल्कुल मेरे पति जैसे कर रहा है, चोद साले चोद!
रोहित- ले साली भाभी, ले चुद चुद.
लगभग 10 मिनट तक उछाल उछाल के उसने मेरी हालत ख़राब कर दी.
फिर मैं घोड़ी बन गयी और उसको पीछे से चोदने को कहा. वो पीछे से अपने लंड को मेरी चुत में डाला फिर धक्के मारने लगा.
फच.. फच.. कर आवाज़ आने लगी.
रोहित- आह भाभी ये कैसी आवाज़ है?
मैं- गधे मैं झड़ रही हूँ, तू चोदता रह बस बोल मत कुछ!
रोहित ने ताबड़तोड़ धक्के शुरु कर दिए और मेरी गांड की थाप और फच फच की आवाज़!
वो बोला- ले भाभी ले चुद साली चुदकड़ … धप धप!
रोहित का लंड अब मेरी बच्चेदानी से जोर जोर टकरा रहा था.
मैं जोर चिल्लाई- आह आह … आह अहह.
उसका गर्म गर्म वीर्य लावा की तरह फूट निकला और मेरी चुत से लेकर बच्चेदानी के अंदर तक भर गया.
वो फिर मेरे ऊपर गिर गया और उसने मुझे बांहों में काफी देर तक पकड़े रहा.
रोहित के चेहरे पर संतुष्टि की मुस्कान तैर रही थी और मेरे मन में मानो मेरी जीत हुई आखिर उसका चुत का भूत जो उतार दिया था और मज़ा मिला वो अलग.
फिर तो जब मौका मिलता … मैं जम के रोहित से चुदवाती.
पर कुछ महीने बाद उसकी पढ़ाई पूरी हो गयी तो बड़े बुझे मन से वो घर गया.
आशा है आपको मेरी मस्त सेक्स कहानी पसंद आयी होगी। अपने सुझाव और विचार नीचे दिए गए ईमेल पर लिखें.
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