नमस्कार दोस्तों, आज सुबह की चाय पीते समय मैं रेडियो में एक गाना सुना.
‘हाय बड़ा नटखट है, बड़ा शैतान
भाभी माँ का देवर नादान।’
जब मैंने ये लाइन सुनी, भाभी माँ का देवर नादान तो मुझे एक वाकया याद आ गया, जो मैं आज आपके साथ सांझा करने जा रहा हूँ, तो लीजिये बड़े प्यार से पढ़िये।
दोस्तो, मेरा नाम प्रदीप है और मैं इस वक्त 20 साल का हूँ। मैं अन्तर्वासना पर कहानियाँ पढ़ता हूँ, पॉर्न भी देखता हूँ और अपनी बड़ी भाभी की चुदाई भी करता हूँ।
अब मर्दों के लंड तो ये इतना सा पढ़ कर ही खड़े हो गए होंगे, सोचने लगे होंगे कि मेरी भाभी दिखने में कैसी है, कैसे मैंने उसे पटाया और कैसे चोदा।
और भाभियों की चूत में भी सुरसुराहट हुई होगी कि हाय … अपने छोटे देवर से चुदवाती है, कैसा मज़ा आता होगा।
चिंता मत कीजिये, मैं अभी आप सब को अपनी सारी कहानी खोल कर सुना देता हूँ।
बात यूं है कि हमारे घर में हम सिर्फ चार लोग थे, माँ पिताजी और हम दो भाई। मगर हम दोनों भाइयों में उम्र का 12 साल का फर्क था। बड़े भैया से मैं बहुत डरता था।
मैं बहुत छोटा था, जब मेरे माँ और पिताजी गुज़र गए। उसके बाद मेरे बड़े भैया ने ही मुझे पाल पोस कर बड़ा किया, मुझे पढ़ाया लिखाया भी।
भाई तब 22 साल के थे जब उन्होंने शादी करी। हमारे घर में मुक्ता, उनकी बीवी, मेरी बड़ी भाभी बन कर आई।
शुरू से ही भाभी ने मुझे अपने बच्चों की तरह ही प्यार दिया। शादी के पाँच छह साल तक सब ठीक चला, मगर न जाने क्यों भाभी के कभी औलाद नहीं हुई। मतलब वो गर्भवती तो होती थी मगर हर बार उनका गर्भपात हो जाता।
वो बहुत रोती बिलखती. मगर भगवान को न जाने क्या मंजूर था।
मैं अपने बड़े भैया को बाबूजी और भाभी को भाभी माँ कहता था। दोनों मुझे अपने बेटे की तरह ही प्यार करते थे और मैं भी दोनों को ही अपने माँ बाप की तरह ही सम्मान देता हूँ, आज भी।
मगर कभी कभी किस्मत आपके लिए बहुत सख्त इम्तिहान लेकर आती है।
शादी के 6 साल बाद ही भैया का एक एक्सीडेंट में इंतकाल हो गया। मैं और भाभी तो बुरी तरह से टूट गए।
खैर भैया एक सरकारी महकमे में काम करते थे, तो भैया की जगह भाभी को नौकरी की ऑफर हुई, तो भाभी ने ले ली।
अब हमारे घर सिर्फ हम दोनों रह गए थे। पहले मैं भाभी माँ कहता था, मगर जब से भैया हमें छोड़ कर चले गए तो उसके बाद मैंने भाभी माँ को सिर्फ माँ कहना शुरू कर दिया क्योंकि वो मुझे अपने बेटे की ही तरह प्यार करती थी. कभी कभी गलती करने पर डांट भी देती थी, मार भी देती थी।
मगर मैं अपनी भाभी माँ की इतनी इज्ज़त करता हूँ, उनसे इतना प्यार करता हूँ कि मैंने कभी उनकी मार का या डांट का बुरा नहीं माना।
हम दोनों माँ बेटे की ज़िंदगी बड़े अच्छे से चल रही थी।
हालांकि कभी कभी मेरे स्कूल के दोस्त मुझे मज़ाक में छेड़ देते थे कि तेरी भाभी तो बड़ी सेक्सी है, या भाभी के साथ क्या क्या करते हो। मगर मैंने उनकी बातों हमेशा सख्ती से काट दिया, तो कुछ समय बाद मेरे दोस्त भी समझ गए कि वो मेरी भाभी नहीं माँ हैं।
मगर उन दोस्तों के साथ मुझे ब्लू फिल्म देखने और हाथ से मुट्ठ मारने की आदत पड़ गई।
बेशक मैंने बहुत सी औरतों और लड़कियों के बारे में सोच कर मुट्ठ मारी थी, मगर मेरी सोच में मेरी भाभी माँ कभी नहीं आई। मैं उनकी इज्ज़त ही इतनी करता था कि कभी सोचा ही नहीं था कि भाभी माँ भी हैं तो एक औरत ही।
फिर एक दिन मेरे जीवन में एक बहुत बड़ी उठा पटक हो गई।
हुआ यूं कि मेरे एक दोस्त ने मुझे एक सेक्सी किताब दी, जिसमे अंग्रेज़ और हब्शी लड़के लड़कियां ग्रुप में एक दूसरे के साथ सेक्स कर रहे थे। उसमें बहुत सी तस्वीरें थी, किसी में कोई लड़की लंड चूस रही है, कोई चुद रही है। कोई लड़का किसी लड़की के मम्मे चूस रहा है, कोई चूत मार रहा है, कोई गांड मार रहा है।
मै उस किताब को अपने घर के ऊपर बने कमरे में ले गया, और अकेला वहाँ बैठ कर उस किताब को देखने लगा। देखते देखते मेरा तो लंड तन गया और मैंने अपना बरमूडा और चड्डी नीचे खिसकाई और लंड निकाल कर हाथ से मुट्ठ मारने लगा।
भाभी नीचे दोपहर का खाना बना रही थी।
एक के बाद एक बढ़िया बढ़िया और सेक्सी पिक्स आ रही थी। मेरा मन बेहद बेताब था, मैं मन ही मन सोच रहा था कि ऐसी ही कोई लड़की या औरत मेरे पास आ जाए जिसे मैं चोद कर अपनी काम वासना की पूर्ति कर लूँ।
मगर औरत मुझे कहाँ मिलती! इसलिए अपने हाथ से मुट्ठ मारना ही मेरा एक मात्र सहारा था। 18 साल का लौंडा, साढ़े 6 इंच का कड़क लंड। मुट्ठ मार कर अपने लंड की चमड़ी के टांके तो मैंने पहले ही तोड़ लिए थे।
कभी उस किताब में नंगी तस्वीरों को देखता, तो कभी आँख बंद करके उन लड़कियों से सेक्स करने के सपने देखता।
दीन दुनिया से बेखबर मैं अपने आप में ही मस्त हुआ मुट्ठ मरने के मज़े ले रहा था कि तभी सामने से आवाज़ आई- प्रदीप, ये क्या कर रहा है?
मैं एकदम से डर के काँप गया।
देखा तो सामने भाभी माँ खड़ी थी।
मेरे तो होश फाख्ता हो गए, क्या करूँ कुछ समझ ही नहीं आया।
इतने भाभी माँ चल कर मेरे पास आई और मेरे हाथ से वो किताब छीन ली- ये कहाँ से लाया?
उन्होंने पूछा।
मैं चुप।
उन्होंने किताब के एक दो पन्ने पलट कर देखे.
मैंने धीरे से अपना तना हुआ लंड छुपाने के लिए अपना बरमुडा और चड्डी ऊपर को खींची तो भाभी ने किताब फेंक कर झट से से मेरा बरमूडा मेरी कमर से पकड़ लिया.
फिर भाभी बोली- अब क्या छुपा रहा है, अब शर्म आ रही है, और ये गंद मंद देखते हुये शर्म नहीं आई? अपने हाथों से अपने जिस्म का नाश करते हुये शर्म नहीं आई? मेरे बच्चे, ये सब करना ठीक नहीं है। इससे आदमी की ताकत खत्म हो जाती है. कल को तेरी शादी होगी तो कमजोरी की वजह से बीवी के सामने शर्मिंदा होना पड़ेगा। तुझे ऐसी गंदी आदत किसने लगा दी? कौन है वो हरामज़ादा, उसको तो मैं ज़िंदा नहीं छोड़ूँगी।
मैंने अपना बरमूडा थोड़ा ऊपर को सरकाना चाहा तो भाभी माँ ने फिर से बड़ी मजबूती से मुझे रोक दिया।
“क्या ऊपर को खींच रहा है, इतनी देर से मैं सामने खड़ी देख रही थी, तब तो नहीं छुपाया, अब छुपा रहा है। बहुत शर्मिला बन रहा है, हट, छोड़ हाथ!” कहते हुये भाभी माँ ने मेरा बरमूडा और चड्डी फिर से नीचे तक सरका दिया।
मेरा अधखड़ा सा लंड उनके सामने था। भाभी माँ ने बड़ी हसरत से मेरे लंड को देखा और फिर अपने हाथ में पकड़ लिया- कितने साल बाद देखने को मिला.
और ये कहते कहते उन्होंने मेरे लंड का टोपा अपने मुँह में ले लिया।
मैं एकदम से दूर छिटका- भाभी माँ, ये आप क्या कर रही हो?
वो उठ कर खड़ी हुई, और मेरे पास आ कर बोली- अच्छा, तू गंदी किताब देख कर हाथ से करे तो ठीक और मैं अगर कुछ करना चाहूँ तो गलत?
मैंने कहा- भाभी माँ ये सब गंदी औरतें हैं, इनका कोई दीन धर्म नहीं होता। आपको मैंने हमेशा अपनी माँ माना है, मैं अपनी माँ के साथ ऐसा नहीं कर सकता।
भाभी बोली- अच्छा, तू नहीं कर सकता, और अगर तेरी भाभी माँ कल को किसी गैर मर्द के साथ ऐसा करती है तो तब तू क्या कहेगा?
मैंने कहा- आप ऐसा क्यों करोगी?
वो बोली- क्यों … मैं क्या इंसान नहीं हूँ, मेरा दिल नहीं, मुझे इस सब की इच्छा नहीं होती। और तू तो मेरे घर का है। मेरे पति के वंश का, उनका ही लहू तेरी रगों में भी दौड़ता है। तुम में ही तो मैं तुम्हारे भैया को देखती हूँ। फिर तुम्हारे साथ ये सब गलत कैसे है?
मैंने कहा- नहीं, मैं इसे सही नहीं मानता, जो गलत है सो गलत है।
भाभी बोली- तो ठीक है, मैं तुम्हें ये सब करते देख चुकी, हूँ, और मेरा भी मन चाह रहा है, तो कल को अगर मैं किसी और के साथ ये सब करने लगूँ तो बुरा मत मानना।
मैं तैश में आ गया- आप ऐसा कुछ नहीं करेंगी, आप हमारे घर की इज्ज़त को इस तरह से नहीं लुटा सकती।
वो बोली- अब जब घर वाले ही अपने घर की इज्ज़त को नहीं संभाल सकते, तो कोई न कोई तो बाहर वाला लूट ही लेगा।
मैं बहुत पशोपेश में था।
भाभी माँ बोली- देख, तू मेरा बेटा है, अगर तू ही मेरा ख्याल नहीं रखेगा, तो कौन रखेगा?
मैं इस असमंजस की स्थिति को बर्दाश्त नहीं कर पाया और रो पड़ा- नहीं माँ, मैंने आपको हमेशा अपनी माँ ही माना है, मैं ऐसा कभी सोच भी नहीं सकता।
भाभी आगे आई और उसने मुझे अपने सीने से लगा लिया- न मेरा बेटा, रो मत, रो मत, मैं तेरे साथ हूँ न, क्यों रोता है। अरे पगले इस से पहले दुनिया तेरी भाभी माँ को किसी न किसी तरीके से से फंसा कर खराब करे, अगर तू उसे संभाल ले तो इसमें क्या दिक्कत है। रहेगा तो फिर भी तू मेरा बेटा ही! इसमें कोई बुराई नहीं बेटा, बहुत से देवर भाभी में ऐसा होना आम बात है। अगर सच कहूँ, तो मैंने पहले भी कई बार ऐसा सोचा था, मगर तुमने कभी मेरी तरफ देखा ही नहीं, तो मेरी भी हिम्मत नहीं हुई। आज तुमको इस हालत में देखा तो मुझे सच में बहुत बुरा लगा कि मेरा
बेटा अपने हाथ से अपनी जवानी को क्यों खराब कर रहा है। तुम्हें एक सही मार्गदर्शन की ज़रूरत है। मैं तुम्हें समझाऊँगी के कैसे अपनी जवानी को बचा कर रखा जा सकता है। बस जो मैं कहती हूँ, तो वो करता जा।
अपनी ज़िंदगी के सबसे बड़े चक्रव्यूह में फंसा खड़ा रहा.
और भाभी माँ ने एक छोटा सा स्टूल खींचा और मेरे सामने उस पर बैठ गई. मेरा बरमूडा और चड्डी दोनों खींच कर बिल्कुल ही उतार दिये भाभी ने … मेरे लंड को अपने हाथ में पकड़ा और फिर पहले तो उसके टोपे पर चूमा और उसके बाद अपने मुँह में ले लिया.
और ऐसा चूसा कि साला 5 सेकंड में ही मेरे लंड का लोहा बना दिया। पूरा अकड़ कर मेरा लंड जब खड़ा हुआ तो भाभी बोली- वाह क्या शानदार लंड है, ऐसा लंड तो मैं कब से चाहती थी! कब से … आह!
भाभी फिर से मेरा लंड चूसने लगी। उनके मुँह से तो जैसे लार की धार बह रही हो, मेरा लंड मेरे आँड वो सब चाट गई, चूस गई।
फिर वो स्टूल से उतर के नीचे फर्श पर ही बैठ गई और मेरी कमर को दोनों हाथों से पकड़ लिया.
और अब मेरा लंड अपने मुँह में लिया तो मेरी कमर को अपने हाथों से आगे पीछे हिलाने लगी.
तो उनका इशारा समझ कर मैंने भी अपनी कमर चालानी शुरू कर दी. और फिर तो मुझे मज़ा ही आ गया, भाभी का मुँह भी किसी चूत से कम नहीं था।
क्या मज़ा आया भाभी का मुँह चोद कर।
मैंने भी भाभी का सर पकड़ लिया और खुद से ही उनके मुँह को चोदने लगा। भाभी ने भी बड़े मज़े मज़े ले ले कर अपने गले तक मेरा लंड लेकर अपना मुँह चुदवाया।
फिर वो उठ कर खड़ी हुई और उन्होंने अपनी टी शर्ट और लोअर उतार दिया। पहली बार मैंने अपनी भाभी माँ को अपने सामने बिल्कुल नंगी देखा।
दूध जैसे गोरे, मोटे बड़े बड़े मम्मे, थोड़े ढलके हुये, मगर हल्के भूरे रंग के निप्पल … छोटे छोटे निप्पल।
मैंने आज तक भाभी माँ को ऐसे देखना तो क्या, कभी उनके बारे में ऐसा सोचा भी नहीं था. मगर आज वो मेरे सामने बिल्कुल नंगी खड़ी थी और मैं उनके सामने।
भाभी माँ ने जब मुझे उनके मम्मों को घूरते हुये देखा तो मेरे बिल्कुल पास आई और उनके निप्पल मेरे सीने को छू गए।
वो बोली- क्या देख रहा है मेरा बाबू? मम्मा का दुदु पियेगा? हाँ … भूखू लगी मेरे बाबू को? लो पियो!
और भाभी ने अपना एक मम्मा अपने हाथ में उठा कर मेरी तरफ बढ़ाया और दूसरे हाथ से मेरा सर नीचे को झुकाया.
फिर मैंने भी सारी शर्म लिहाज उतार फेंकी। मैंने भी आगे बढ़ कर भाभी का एक मम्म अपने मुँह से चूसना शुरू कर दिया और दूसरे मम्मे को अपने हाथ से दबाया।
मखमल जैसे नर्म मम्मे।
जितना दबाओ, दिल न भरे! और हल्के नमकीन स्वाद वाले उनके निप्पल, जितना भी चूसो मन न भरे।
मैं तो जैसे अपने होशो हवास ही खो बैठा।
भाभी ने मेरे लंड को सहलाया और बोली- अगर मेरा बाबू मेरा दुदु पिएगा तो बाबू को इसका दुदु अपनी मम्मा को पिलाना पड़ेगा.
और भाभी ने मेरे लंड को खींच कर इशारा किया।
मैंने कहा- भाभी माँ, मैं तो आज से आपका गुलाम! आप जो कहोगी मैं वो करूंगा।
भाभी बोली- तो ठीक है, यहाँ जगह ठीक नहीं है, नीचे चलते हैं, बेडरूम में बिस्तर पर आराम से सब करेंगे।
और भाभी ने अपना लोअर और टी शर्ट फिर से पहनी। मैंने सिर्फ अपना बरमूडा पहना और हम दोनों नीचे बेडरूम में आ गए।
अंदर आते ही भाभी ने अपनी लोअर टी शर्ट एकदम से उतार फेंके और मैं भी नंगा हो गया।
भाभी बिस्तर पर लेट गई और अपने हाथ के इशारे से मुझे बुलाया- आओ मेरे बालम, अपनी प्रियतमा के तन की प्यास बुझाओ।
मैं जा कर भाभी के ऊपर लेट गया।
भाभी ने मुझे कस कर अपने बदन से चिपका लिया और वो मेरे होंठों को अपने होंठों में लेकर चूसने लगी।
मैंने भी भाभी के होंठ, गाल, ठुड्डी सब चूसे। भाभी को उसकी गर्दन के आस पास चूमने चाटने से बड़ी गुदगुदी होती थी। जब भी मैंने ऐसा किया, वो बहुत खिलखिला कर हंसी।
तो मैंने कहा- भाभी माँ आगे करें?
भाभी बोली- अगर मैं करूँ तो?
मैंने कहा- आपकी मर्ज़ी … आप कर लो।
भाभी ने मुझे मुझे नीचे लेटाया और खुद मेरे ऊपर चढ़ कर बैठ गई। पहले अपने बाल बांधे, मैंने उनके दोनों मम्मो को अपने हाथों से पकड़ कर दबाया।
और फिर भाभी ने अपने मुँह से काफी सारा थूक लेकर मेरे लंड के टोपे पर लगाया. फिर मेरा लंड पकड़ कर अपनी चूत पर सेट किया. और जैसे ही भाभी थोड़ा सा नीचे को बैठी, मेरे लंड का टोपा उनकी गुलाबी फुद्दी में घुस गया.
मेरे मुंह से ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’ निकल गया.
2-4 बार अंदर बाहर करने से ही मेरा सारा लंड भाभी माँ की फुद्दी में समा गया। भाभी माँ मेरा पूरा लंड अपनी फुद्दी में लेकर मेरी कमर पर ही बैठ गई। हम दोनों एक दूसरे को देख रहे थे।
वो क्या सोच रही थी, मुझे नहीं पता। मगर मैं ये सोच रहा था कि इंसानी रिश्ते कैसे होते हैं, कब इन रिश्तों का क्या रूप बदल जाए कोई कुछ नहीं कह सकता।
अभी सुबह तक जो मेरी भाभी माँ थी, जिसे मैं अपनी पालने वाली माँ मानता था। अब वो मेरी महबूबा थी और मेरा लंड अपनी चूत में लिए बैठी है।
मैं भाभी माँ के मम्मो से खेलता रहा।
भाभी थोड़ा सा आगे को झुकी और फिर वो अपनी कमर आगे पीछे को हिलाने लगी।
सच में इस चुदाई में मुझे बहुत मज़ा आ रहा था। हाथ से मुट्ठ मारना तो इसका 1 प्रतिशत भी नहीं नहीं है।
एक गोरी छिट्टी भरपूर औरत मेरे ऊपर नंगी बैठी मुझे एक उत्तम आनंद दे रही थी।
काफी देर भाभी खुद ऊपर चढ़ कर चुदवाती रही और मैं नीचे लेटा कभी उनको मम्मों से खेलता, कभी उनको चूसता। बीच बीच में भाभी नीचे को झुक कर मेरे होंठ चूसती, अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल देती।
साला कोई फर्क ही नहीं रह गया था, उनका थूक मेरे मुँह में, मेरा थूक उनके मुँह में।
भाभी की चूत जितना पानी छोड़ रही थी, उनके मुँह से भी उतनी ही लार टपक रही थी। कई बार उनके मुँह से लार मेरे मुँह पर मेरे सीने पर गिरी मगर मुझे कोई ग्लानि महसूस नहीं हुई।
बल्कि मैं तो उनकी टपकती हुई लार को चाट रहा था। उनको होंठों को चूस रहा था, उनके मम्मों पर अपने दाँतों से काट रहा था।
भाभी तड़पती, लरजती, मगर उन्होंने मुझे रोका नहीं।
फिर वो उठी और बोली- चल ऊपर आ!
वो नीचे लेट गई। उन्होंने अपनी टाँगें पूरी तरह से खोली।
हल्की झांट के बीच उनकी साँवली सी चूत, मगर चूत के दोनों होंठों के बीच में से झाँकता गुलाबी रंग का दाना।
मैंने भाभी की चूत के दाने को अपनी उंगली से छूआ।
भाभी ने ‘सी…’ करके सिसकी भरी। मैंने अपना लंड उनकी चूत पर रखा, तो भाभी ने अपने हाथ से पकड़ कर सेट किया, और अगले हल्के से धक्के से मेरा लंड भाभी माँ की चूत में समा गया।
फिर मैंने अपने हिसाब से चुदाई शुरू की, जैसे के मैंने ब्लू फिल्मों में लोगों को करते देखा था। कितनी देर मैं भाभी को बिना रुके बिना झड़े चोदता रहा।
इस दौरान भाभी एक बार बहुत तड़पी थी।
मैंने पूछा- आपका हो गया?
वो मुस्कुरा कर बोली- हाँ, मेरे यार ने मेरी तसल्ली करवा दी।
उसके कुछ देर बाद मैंने कहा- भाभी मेरा होने वाला है।
भाभी बोली- रुक, अंदर मत करना मेरे मुँह में कर, मुझे तुम्हारा टेस्टी गाढ़ा माल पीना है।
मैंने अपना लंड भाभी की चूत से बाहर निकाला तो भाभी अपने हाथ से मेरे लंड को फेंटने लगी और 2 मिनट में ही जब मेरे लंड से माल गिरने को हुआ, मैंने अपना लंड भाभी के मुँह में घुसा दिया और मेरा सारा माल भाभी माँ के मुँह में झड़ा।
जैसे जैसे एक के बाद एक वीर्य की पिचकारी भाभी माँ के मुँह में छूटी, वैसे वैसे वो उसे पीती गई।
मैं देख रहा था कि कैसे मेरा माल भाभी माँ के गले से नीचे उतर रहा था।
वो हाथ से मेरे लंड को हिलाती भी रही और जीभ से मेरे लंड को चाटती भी गई, पूरा माल पी गई, और उसके कितनी देर बाद तक मेरे लंड को अपने मुँह में लिए रही।
आखिरी बूंद तक वो पी गई।
जब मेरा लंड ढीला पड़ गया तब उन्होंने अपने मुँह से अपने देवर का लंड निकाला। चूस चूस के मेरे लंड को भाभी ने लाल कर दिया था।
मैंने पूछा- भाभी माँ, कैसा लगा?
वो बड़ी खुश होकर बोली- यार मज़ा आ गया।
मैंने कहा- और मज़ा करोगी?
वो बोली- क्यों नहीं?
मैंने कहा- तो इस बार सारी चुदाई मैं अपने ढंग से करूंगा।
वो बोली- अरे मेरी जान, तेरी रांड हूँ, अब तो मैं! जैसे चाहे चोद ले।
मैं अगली चुदाई के लिए अपने लंड को हिलाने लगा और सोचने लगा, इस बार साली भाभी रांड को घोड़ी बना के नहीं कुतिया बना के चोदूँगा।
कैसी लगी देवर भाभी सेक्स की यह कहानी?
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