नमस्कार दोस्तो! मेरा नाम राज शर्मा है. आज मैं एक बार फिर अपनी कहानी को लेकर हाजिर हूं. इस बार इस कहानी का नायक दिलदार सिंह है कहानी उसी की जुबानी सुनिये.
मेरा नाम दिलदार सिंह है, मैं दिल्ली में किराए के मकान में रहता हूँ. मेरी उम्र 28 साल है. मैं शादीशुदा हूँ और मेरी एक 2 साल की बेटी भी है. ये कहानी मेरी और मेरे पड़ोस में रहने वाली एक जवानी की दहलीज पर कदम रखती हुई 18 साल की कमसिन लड़की के बीच की चुदाई की है.
बात एक साल पुरानी है मेरी बीवी और बेटी सर्दियों में छह महीने मेरे साथ रहने के लिए गांव से दिल्ली आए हुए थे. मेरी बेटी जब से दिल्ली आयी, तो गली में हमउम्र लोगों से घुलमिल गयी.मेरे किराए के मकान में नीचे का फ्लोर मेरा और ऊपर के फ्लोर में मकान मालिक की फैमिली रहती है. मेरे रूम का दो तरफ को दरवाजा है. पीछे का दरवाजा पीछे की ओर आठ फुट की गली में खुलता है. ये गली लगभग सुनसान ही रहती है, क्योंकि उसके नीचे सीवर की पाइप लाइन डली है, तो लोग उस गली का कम ही यूज करते हैं. आगे की तरफ से 16 फुट की गली से ही सभी का आना जाना होता है.
मेरे मकान मालिक के वहां जो औरत झाड़ू पौंछा लगाने आती थी, उसने भी हमारी ही गली में किराए पर मकान लिया हुआ था. काम करने वाली औरत की 3 बेटियां और एक बेटा था. उसका पति दिन भर रिक्शा चलाता था. वो खुद चार घरों में झाड़ू पौंछा लगाती थी. उसकी दोनों बड़ी लड़कियां कहीं बड़ी कोठियों में घर का काम करती थीं औऱ वहीं पर कोठी के सर्वेंट क्वाटर में रहती थीं. वे हफ्ते में एक बार ही घर माँ बाप से मिलने आती थीं. बाकी अपने लड़के को उसने स्कूल डाला हुआ था.
उसी कामवाली की तीसरी लड़की की मैंने चुदाई की, उसका नाम था सरिता … वो 5वीं के बाद स्कूल गयी ही नहीं, दिन भर माँ के साथ या गली में बच्चों के साथ घूमती रहती थी. माँ बाप को तो पैसे कमाने से ही फुर्सत नहीं थी, तो सरिता आवारा सी हो गयी. वो मेरी बेटी के साथ भी खेलने आती और उसे बहुत पसंद करती थी.
मेरी बीवी भी उसे कभी कभी खाना खिला देती. कुछ दिनों में ही उसका मेरे घर आना जाना बढ़ गया.
एक दिन की बात है. मेरी बीवी छत पर कपड़ा सुखाने गयी थी और मैं बिस्तर पर लेटा टीवी देख रहा था. सरिता और मेरी बेटी फर्श पर नीचे खेल रहे थे. अचानक मैंने सरिता पर ध्यान दिया. वो जवान हो गई थी. उसके छोटे छोटे संतरे उग आए थे. पर मैंने कभी इस ओर ध्यान ही नहीं दिया था. आज वो स्कर्ट पहन कर आई थी, पता नहीं कैसे खेलते खेलते उसकी स्कर्ट जरा ऊंची हो गयी. जब उसने जरा टांगें फैलाईं, तो मुझे उसकी चूत दिखाई देने लगी. वो तो पेंटी पहन कर ही नहीं आयी थी. चूत छोटी सी थी, दूर से उसमें कोई बाल भी नजर नहीं आ रहे थे. मैं तो उसकी चूत ही देखता रह गया.
वो खेलने में मगन थी औऱ मेरा सारा ध्यान उसके संतरों और चूत में था. मैं सोचने लगा कि इस लड़की की चूत में लंड डालने में कितना मजा आएगा. बस मेरा मन अब उसकी चूत मारने को करने लगा. पर वो चूत देने को पटेगी कैसे, ये मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था.
मैंने उससे पूछा- तुम्हारा क्या नाम है.
वो बोली- सरिता.
“तुम पढ़ने नहीं जाती हो?”
“नहीं.”
“क्यों नहीं जाती हो.”
“माँ जाने ही नहीं देती है.”
“तुम्हें खाने में क्या पसन्द है?”
वो बोली- आइसक्रीम.
“तुम्हारे आइसक्रीम के लिए पैसे कौन देता है?”
“कभी कभी पापा दे देते हैं.”
“अच्छा चल मैं भी कभी कभी तुझे आइसक्रीम को पैसे दे दूंगा, पर तू किसी को बताएगी तो नहीं. वरना तेरी मम्मी मुझे डांटेगी.
“मैं क्यों किसी को बताने लगी.”
मैंने उसे 10 का नोट दिया, जिसे उसने अपनी स्कर्ट में कहीं छुपा लिया. फिर मेरी बीवी वापस आ गयी, तो मैंने अपना ध्यान उसके संतरों से वापस टीवी पर लगा लिया. अब मैं कभी कभी चुपके से उसे पैसे देने लगा, वो भी ले लेती.
एक दिन मेरी बीवी ऊपर मकान मालकिन से बात कर रही थी. मेरी बेटी और सरिता दोनों खेल रहे थे. तो मैंने अपनी बेटी को अपनी गोद में बैठा लिया और उसके गालों पर किस किया. तो मेरी बेटी ने भी मेरे गालों पर किस किया. फिर मैंने अपनी बेटी को जहाँ जहाँ किस किया, उसने भी मुझे वहां वहां किस किया. वो बड़े गौर से हम दोनों को देख रही थी.
मैंने उससे कहा- तू भी करेगी मुझे किस?
वो बोली- नहीं.
“तुझे कभी किसी ने किस किया?”
वो बोली- नहीं.
“तो आ न … बहुत अच्छा लगता है किस करने में.”
वो पास आ गयी. मैंने एक जांघ पर अपनी बेटी को बिठाया औऱ दूसरी जांघ पर उसे बैठा लिया. फिर मैंने उसके माथे पर किस किया और बोला- अब तुम मुझे करो.
सरिता बोली- कोई देख लेगा.
मैंने कहा- कोई भी तो नहीं है यहां. चल अब जल्दी किस कर … आज भी तुझे पैसे दूंगा.
उसने भी मेरे माथे पर किस किया. फिर मैंने उसके गालों पर किस किया, तो उसने भी मेरे गालों पर किस किया.
मैंने कहा- अब मैं तेरे होंठों पर किस करूंगा और मैं उसे चूसूंगा. फिर तुम भी जैसे मैंने किया है, वैसे ही मेरे होंठ चूसना. ठीक है मजा आएगा.
उसने हां में सिर हिलाया.
मैंने उसे और करीब खींचा और उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए. पहले एक किस दिया और फिर उसके होंठ चूसने लगा.
पहले तो वो हटने लगी, पर जैसे ही मैंने उसके हाथ पर पैसे रखे, वो मेरा साथ देने लगी. उसने भी वैसे ही मेरे होंठ चूसे. उसके छोटे से नर्म होंठ चूसने में बहुत मजा आ रहा था. मेरा एक हाथ उसके सर के पीछे था, दूसरा हाथ अपने आप ही उसकी जांघों में चला गया. मैं होंठ चूसते चूसते उसकी जांघ सहलाने लगा.
मुझे बहुत मजा आ रहा था. मैंने जैसे ही हाथ थोड़ा अन्दर डाला, तो आज उसने पैंटी पहनी थी. मैंने पैंटी के ऊपर से ही उसकी चूत सहलानी चाही, तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- अंकल वहां हाथ क्यों डाल रहे हो. बात तो सिर्फ किस करने ही हुई थी.
“सॉरी सरिता … वो गलती से हाथ वहां चला गया था. चल अब हो गया जाओ दोनों नीचे खेलो.”
वो दोनों नीचे खेलने लगी.
मैंने उससे कहा- सरिता अच्छा लगा.
वो “हां..” बोली.
“तो घर पर और आंटी को मत बताना. नहीं तो आगे से पैसे मिलने बन्द.”
वो बोली- अंकल मैं नहीं बताऊंगी किसी को भी.
इस तरह कभी कभी मैं उसकी किस ले ही लेता था. अब वो मेरे से पूरी तरह घुल मिल गयी थी. देखते ही देखते मेरी बीवी व बच्ची का गांव वापस जाने का टाइम आ गया. मैं उन्हें गांव वापस छोड़ आया.
एक दिन वो मुझे गली में मिली और बोली- अंकल, अब आंटी और बाबू कब वापस आएंगे?
मैंने कहा- अभी तो टाइम लगेगा.
“तो अंकल फिर मैं किसके साथ खेलूंगी?”
मैंने कहा- मेरे साथ खेल लेना. पर छुप छुप कर … मैं पैसे भी दूंगा खेलने के.
वो बोली- अच्छा तो कब आऊं अंकल?
मैंने उससे कहा- जब तेरे मम्मी पापा काम पर चले जाएं, तब आना. … पर आज नहीं. और हां वो भी पीछे के रास्ते से आगे से नहीं. तीन बार धीरे से दरवाजा खटखटाना, मैं खोल दूंगा पर देख लेना, कोई तुझे देख न रहा हो.
वो बोली- ठीक है अंकल मैं कल आती हूं.
मैंने अगले दिन का ऑफ ले लिया और आगे के लिए एक महीने अपनी नाईट ड्यूटी लगा ली.
अगले दिन सरिता दिन के करीब 2 बजे पीछे के दरवाजे से आ गयी.
“किसी ने तुझे देखा तो नहीं न?”
“नहीं कोई नहीं था.”
वैसे भी दिन के समय सभी या तो आराम के लिए सोये होते हैं या डयूटी पर होते हैं. वैसे भी पीछे की गली में कौन आता जाता है. लाइन साफ थी. मैंने उसे अन्दर करने के बाद सभी खिड़की दरवाजे बंद किए और पर्दे लगा लिए. रूम की लाइट जला कर उसे अपने बेड पर ले आया.
मैंने उससे कहा- देख सरिता अब किस वाला खेल बहुत खेल लिया, आज हम दूसरा खेल खेलेंगे. हां और पैसे भी 20 रुपये मिलेंगे. पर शर्त एक ही है, जो भी मैं करूँ, तुम मना नहीं करोगी व तुम कभी किसी को नहीं बताओगी कि तुम अब भी मेरे कमरे में आती हो. बोलो मंजूर है?
“ठीक है.”
“तो खेल खेलें?”
“मुझे सब मंजूर है … पर पैसे मिलेंगे न?”
“वो तो तुम पहले ले लो.”
मैंने उसे 20 का नोट पकड़ा दिया. वो खुश हो गयी.
वो बोली- बोलो अंकल क्या करना है?
“करना वही है, जैसे मैं करूँ, तुम्हें भी वैसा ही करना है और मना नहीं करना है. ठीक है समझ गयी ना.”
“हां अंकल समझ गयी आप शुरू करो.”
मैंने उसे बेड पर आपने सामने बिठाया और पहले उसके होंठ चूसे. उसने भी वही किया.
फिर हाथों से उसके गाल सहलाये, वो भी वही करती गयी. फिर मैंने उसकी छाती पर हाथ रख दिया, उसने भी मेरी छाती पर हाथ रख दिए.
मैंने उसके संतरे सहलाने शुरू किए. उसने भी मेरी छाती पर हाथ फेरा. मैंने धीरे धीरे उसके संतरे दबाने शुरू किए. उसने भी मेरे निप्पल पर हाथ फिराया, पर मजा नहीं आ रहा था. मैंने उसकी जांघें सहलाईं, तो उसने भी वही किया.
मैंने उसकी चूत पर हाथ रखा, तो उसने भी मेरी टांगों के बीच में हाथ डाल दिया. उसका हाथ मेरे खड़े लंड पर चला गया तो हैरानी से बोली- अंकल यहां ये क्या है डंडा जैसा?
“सरिता ये वही है, जैसे तेरे भाई का है जिससे वो सुसु करता है.”
“पर अंकल वो तो छोटा है. एक बार मैंने उसे नहाते वक्त देखा था.”
“अरे अभी वो छोटा है, जब बड़ा होगा तो ऐसा ही होगा.”
वो शरमा गयी.
“सरिता ऐसे मजा नहीं आ रहा है ना खेलने में … चल कुछ और करते हैं.”
“हां अंकल कुछ और करते हैं.”
“चल तू अपनी टॉप उतार दे, मैं भी अपनी टी-शर्ट उतारता हूं.”
“नहीं मैं ये नहीं करूंगी.”
“अरे तेरे मेरे अलावा और कौन है यहां. मैं भी किसी को कुछ नहीं बताऊँगा … कर ना. मैंने कहा भी था तू मना नहीं करेगी.”
यह सुन कर उसने अपनी टॉप उतार दी. अब वो बिना ब्रा के ऊपर से नंगी हो गयी. उसके छोटे छोटे संतरे बहुत टाइट लग रहे थे. मैंने उन पर हाथ लगा कर हल्के से दबाया औऱ अपनी टी-शर्ट भी उतार डाली. मैंने एक चूची हाथ से सहलाते हुए निपल्स दबाना शुरू किया और दूसरे को अपने मुँह में लेकर चूसने लगा. संतरे छोटे छोटे से थे, जो पूरे मुँह में भी नहीं आ रहे थे. मैंने ऐसे ही चाटना जारी रखा और धीरे धीरे उसे दबाता भी रहा.
उसे अभी अब मजा आ रहा था.
मैंने उससे पूछा- इस खेल में तो मजा आ रहा है ना.
“हां अंकल इस में बहुत मजा आ रहा है.”
उसकी नजर मेरे निक्कर में बने तम्बू में ही थी. जो बार बार अन्दर से ही बाहर आने को उछाल मार रहा था.
“क्या देख रही हो सरिता?”
“अंकल वहां और फूल गया है. दिखाओ न क्या है वो … और कितना बड़ा है.”
“ठीक है दिखाता हूं, पर तुझे भी अपनी दिखानी पड़ेगी.”
वो बोली- मैं क्या दिखाऊं … मेरे पास तो कुछ भी नहीं है.
मैं बोला- वो जो तेरी स्कर्ट के नीचे है तेरी सुसु वाली जगह. मैं अपना सुसु करने वाला दिखाऊंगा, तू अपनी दिखा दे.
“नहीं अंकल मैं नहीं दिखाऊंगी, मुझे बहुत शरम आ रही है.”
“अरे कैसा शरमाना … तू और मैं ही तो हैं. मैं भी तो तुझे अपना दिखा रहा हूँ. चल ऐसा करते हैं, दोनों एक साथ अपने कपड़े उतारते हैं. तू अपनी स्कर्ट उतार, मैं अपना निक्कर उतारता हूं.”
वो मान गयी और हम दोनों एक साथ नंगे हो गए.
आज फिर एक बार उसकी कुंवारी चूत मेरे आंखों के सामने थी.
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कहानी का अगला भाग: नाजुक कली को फूल बनाया-2