नमस्ते फ्रेंड्स! मेरी सेक्स कहानी के दूसरे भाग
नाजुक कली को फूल बनाया-2
में आपने पढ़ा कि मेरे पड़ोस में रहने वाली कामवाली की जवान कमसिन लड़की को नंगी करके उसके कुंवारे बदन के साथ मैं काफी खेल चुका था लेकिन अभी तक उसकी कुंवारी बुर में लंड घुसाना बाक़ी था. वो दिन आज आ ही गया जिस का मुझे महीनों से इंतजार था. आज मैं सरिता की कमसिन बुर को फाड़ने की तैयारी कर रहा था.
अब आगे:
सरिता दस बजे ही मेरे रूम में अपनी माँ के जाते ही आ गयी. आते ही वो अपने कपड़े उतारने लगी.
मैंने उससे कहा- सरिता जा पहले नहा कर आ. फिर चाहे बिना कपड़ों के ही नंगी अन्दर आ जाना. आज ऊपर कोई नहीं है इसलिए डरने की कोई बात नहीं है, आज हम जो भी करेंगे, खुल कर करेंगे.
वो नहा कर नंगी ही मेरे पास आ गयी. मैंने पहले से ही खाना बना कर रखा था. मैंने उसे और खुद पहले थोड़ा थोड़ा नाश्ता किया. फिर में असली मुद्दे पर आ गया.
मैंने उससे कहा- आज हम अलग खेल खेलेंगे और इस खेल के तुम्हें 100 रुपये मिलेंगे.
सरिता- क्या कहा अंकल … 100 रुपये?
मैं- हां पूरे 100 रुपये, पर इस बार शर्त भी बहुत कठिन होगी. तुझे मंजूर है तो बोल वरना रोज वाला ही खेल शुरू करते हैं.
सरिता- अंकल 100 रुपये के लिए तो मैं कोई भी खेल खेल सकती हूं. मुझे आपकी सारी शर्त मंजूर हैं.
मैं- तो ठीक है आज जिंदगी के असली मजे लेने के लिए तैयार हो जा. आज तुझे ऐसा खेल सिखाऊंगा कि तू रोज उस खेल को खेलने मेरे पास भागी चली आएगी.
मैंने अपने भी फटाफट कपड़े जिस्म से अलग किए और नंगा उसके सामने आ गया.
मैंने रोज की तरह उसे बुर चाट कर गर्म किया और जैसे ही वो झड़ने को हुई उससे पहले उसकी बुर चाटना छोड़ दिया. वो बोली- अंकल जल्दी कुछ करो न … मेरे नीचे कुछ हो रहा है या तो उसे रगड़ो या मेरी उसको चाटो.
मैं- एक बात सुन ले, मेरे इसे लंड कहते हैं और तेरी इसे बुर …
उसकी बुर पर मैं हाथ घुमाते हुए बोला.
‘और हां आज तुझे मजा मैं नहीं … मेरा ये लंड देगा. देख इसमें बहुत मजा आता है चाटने से भी बहुत ज्यादा मजा. पर पहले दिन थोड़ा सा दर्द भी होता है. तुझे वो दर्द सहन करना पड़ेगा, वो भी सिर्फ आज ही बस … कल से तो तुझे बिल्कुल भी दर्द नहीं होगा, सिर्फ मजा ही मजा आएगा.
सरिता बड़े ध्यान से मेरी बात सुन रही थी.
मैं- एक बात और इस बारे में तो किसी को भी किसी भी हालत में नहीं बताना है. बोल सह लेगी थोड़ा सा दर्द?
सरिता- हां सह लूँगी … पर मजा तो दिलवाओ और बताओ आजतक मैंने किसी को नहीं बताया है, जो अब क्यों बताऊंगी? आप चिंता न करो, बस खेल शुरू करो.
मैं- तो आज मैं अपने लंड को तेरी इस बुर में घुसाउंगा.
सरिता- पर अंकल वहां तो उंगली भी नहीं जा रही थी, इतना बड़ा लंड कैसे जाएगा?
मैं- सब चला जाएगा. बस थोड़ा सा दर्द सहन करना और चाहे कुछ भी हो जाए चिल्लाना नहीं. नहीं तो 100 रुपये जैसे ही तू चिल्लाई … नहीं दूंगा.
सरिता- नहीं नहीं अंकल मैं नहीं चिल्लाऊंगी, पर जरा आराम से अन्दर डालना. मुझे डर लग रहा है.
मैं- आज तक हमने जो भी किया है. तुझे डर लगा क्या? डर मत मैं हूँ न तेरे साथ. बस थोड़ी देर के दर्द के बाद जिंदगी भर मजे ही मजे हैं. तू जरा भी चिंता मत कर. अब जरा इसे चूस दे ये आज तुझे बहुत मजे करवाएगा.
उसने मेरे लंड को चूस कर और सख्त कर दिया. मैंने अपने लंड पर ऊपर तक तेल चुपड़ लिया और उसकी बुर में भी जहां तक तेल जा सकता था, उतना तेल से तर कर लिया. फिर मैंने उसकी कमर के नीचे एक तकिया रखा, जिससे उसकी बुर जरा ऊपर को उठ गई.
मैंने उसकी टांगों के बीच एक पुराना तौलिया बिछा दिया, ताकि मेरा बिस्तर खराब न होने पाए. सारी तैयारी करने के बाद मैंने अपने लंड का सुपारा उसकी कोमल सी बुर के मुहाने पर रखा और उस पर उसे रगड़ने लगा.
बड़ी फिसलन थी, लंड सेंटर पर लग ही नहीं रहा था. मैंने एक हाथ से लंड पकड़ कर उसकी टांगें फैलाकर लंड को निशाने पर रखा और उसके होंठों से होंठ मिलाकर एक हल्का सा झटका मारा तो लंड का टोपा अन्दर घुस गया था, पर वो छटपटाने लगी.
मैंने उसके होंठों पर हाथ रखकर कहा- बस यही दर्द है, थोड़ा सा सहन करो बस अभी थोड़ी देर में ही दर्द सही हो जाएगा.
मैंने लंड को वैसे ही फंसे रहने दिया और उसे सहलाने चाटने लगा. उसकी चुचियों को सहलाने से उसका ध्यान दर्द से हटकर उस तरफ हो गया, जिससे थोड़ी ही देर में वो नार्मल हो गयी.
मैं- अब दर्द कम है न सरिता?
उसने हां में सर हिलाया.
मैंने उसे सहलाते सहलाते ही एक झटका और मारा तो लंड थोड़ा सा अन्दर और घुस गया. उसकी बुर तो बहुत ज्यादा टाइट थी, लंड को उसकी बुर के अन्दर जाने में बहुत मेहनत करनी पड़ रही थी.
मैंने लंड पेलने के बाद जैसे ही उसका मुँह खोला, वो रोने लगी- अंकल नहीं, निकाल लो इसे, मैं नहीं सह पाऊंगी. मुझे बहुत दर्द हो रहा है.
मैं- तो ठीक है 100 रुपये कैंसिल. दर्द सहने के ही तो 100 रुपये मिल रहे हैं. वो ही तू सहन नहीं कर पा रही है. मैंने कहा भी था कि थोड़ी देर का दर्द है, थोड़ा औऱ दर्द होगा, फिर कभी नहीं होगा अभी मजा आने लगेगा. फिर भी नहीं करना तो ठीक है, मैं निकाल लेता हूं. कल से अब यहां आना भी मत.
वो रोने लगी- अंकल मैं क्या करूँ मुझे बहुत दर्द हो रहा है … ऐसा लग रहा है आपका लंड नहीं, चाकू अन्दर गया है. मेरी बुर फट सी रही है.
बात तो उसकी सही थी इतनी छोटी सी बुर में इतना मोटा लंड जाएगा, तो उसने फटना ही था. पर मैंने उसे समझाया- देख आधा दर्द तो तूने सह भी लिया है … बस और थोड़ा सा दर्द होगा फिर 100 रुपये भी तेरे और मजा भी आएगा. थोड़ी देर की बात है.
मैंने उसकी पैंटी को उसके मुँह के अन्दर डाला और उसका मुँह हाथ से दबा लिया. लंड को थोड़ा सा बाहर निकाला और फिर एक जोरदार झटका मारा लंड उसकी बुर फाड़ता हुआ आधा अन्दर घुस गया. उसकी सील टूट चुकी थी. उसका गर्म गर्म निकलता हुआ खून मुझे लंड पर महसूस हो रहा था. मेरा लंड भी उसकी बुर पर बुरी तरह फंसा हुआ था. उसका तो बुरा हाल था. उसके मुँह में पेंटी डाली होने के कारण गूं गूं की ही आवाज बाहर आ रही थी. उसकी आंखें दर्द की अधिकता से बाहर को आने लगी थीं. वो मुझे अपने ऊपर से हटाने की असफल कोशिश कर रही थी.
करीब 5 मिनट तक मैं उसके ऊपर ऐसे ही पड़ा रहा, लंड को जरा भी हरकत नहीं दी. जब वो फिर से जरा सा नार्मल सी लगी, तो मैंने उससे कहा- बस हो गया सरिता, अब मजा आएगा.
मैंने उसकी पैंटी उसके मुँह से निकाल दी औऱ फिर उसके होंठ अपने होठों से दबाकर मैंने फिर से एक जोरदार झटके के साथ ही पूरा लंड उसकी बुर में उतार दिया. वो तो बेहोश हो गयी. थोड़ी देर के लिए तो मैं भी डर गया. बुर खुल चुकी थी लंड बाहर निकालते ही उसमें से खून की धार बाहर आने लगी. पर मुझे पता था ये कमसिन लड़की आराम से लंड ले लेगी. क्योंकि बाहर के देशों में इससे भी कम उम्र की लड़कियां लंड का मजा ले चुकी होती हैं.
मैंने पास रखे कपड़े से उसकी बुर से निकल रहे खून और अपने लंड पर लगे खून को साफ किया और फिर उसकी बुर पर आराम से लंड घुसा दिया. इस बार भी लंड टाइट ही अन्दर गया था, पर वो तो बेहोश पड़ी थी. मैं धीरे धीरे लंड अन्दर बाहर करने लगा ताकि उसके होश में आने से पहले लंड उसकी बुर को थोड़ा और खोल सके.
थोड़ी देर बाद वो होश में आने लगी, तो मैंने धक्के लगाने बंद कर दिए. मैंने उसे अपनी गोद में बिठा लिया, पर लंड नहीं निकाला. फिर पास में रखी पानी की बोतल से उसे पानी पिलाया और पहले से ही लाई हुई दर्द निवारक गोली भी खिला दी. क्योंकि असली दर्द तो उसे चुदाई के बाद पता चलने वाला था.
वो रोने लगी- अंकल मैं मर जाऊंगी … निकाल लो अपना लंड मेरी बुर से. सहन नहीं हो रहा है. मेरी बुर फाड़ दी आपने. इतना दर्द होगा पता होता तो कभी नहीं करवाती. अंकल 100 रुपये के लालच ने तो मेरी जान ही ले ली.
मैं- सरिता आज तक चुदाई से कोई भी नहीं मरा है … सभी लोग चुदाई करते हैं. इससे ज्यादा मजा किसी खेल में नहीं आता है. वैसे भी जो होना था सब हो गया. देख मेरा पूरा लंड तेरी बुर ने निगल लिया है. अब दर्द नहीं सिर्फ मजे ही मजे हैं. इस खेल में तुझे लगता है 100 रुपये में तेरी हालत खराब हो गयी है … तो ये ले 100 रुपये तेरे दर्द सहने के और 100 रुपये और दूंगा खेल खत्म होने के बाद.
अब लालच से उसकी आंखें चमकने लगीं. मैंने भी समझ लिया मेरा काम बन गया. पैसों के लिए तो अब ये मेरा पूरा लंड उछल उछल कर लेगी.
मैं- चलो अब दर्द से ध्यान हटाओ औऱ मजे में ध्यान लगाओ, फिर तुम्हें दर्द महसूस नहीं होगा.
मैंने उसकी चूचियां मसलीं और होंठ चूसे तो वो नार्मल होने लगी. मैंने उसे फिर लिटा दिया औऱ लंड को धीरे धीरे उसकी बुर के अन्दर अन्दर बाहर करने लगा. मेरे लंड के हर चोट पर उसकी कराह उम्म्ह… अहह… हय… याह… निकल रही थी. मेरा मजा और बढ़ रहा था. लंड तो खुशी से और बढ़ा हो गया था, जो इस उम्र में भी कमसिन कुंवारी बुर फाड़ रहा था. जिस बुर में अभी अभी बाल आने शुरू ही हुए थे, उसमें मेरा मोटा लंड अन्दर तक घुस कर सवारी कर रहा था.
धीरे धीरे उसकी पूरी बुर गीली हो गयी, शायद उसे भी मजा आने लगा था. अब लंड आराम से अन्दर बाहर हो रहा था. मैंने रफ्तार बढ़ा दी. मेरा पूरा लंड पिस्टन की भांति उसकी बुर में अन्दर बाहर हो रहा था. मेरे हर धक्के में उसकी कराह निकल रही थी, पर आज किसी बात का डर नहीं था. पूरा मकान खाली पड़ा था. मैं उसे पूरी मस्ती में चोद रहा था. कुछ मिनट तक मैंने उसे अलग अलग आसनों में चोदा.
उसका भी बुरा हाल था. न जाने कितनी बार वो झड़ चुकी थी. उसकी मस्त बुर मारते मारते मेरे लंड ने भी अब जवाब दे दिया. मैंने उसकी बुर में लगातार पिचकारी मारनी शुरू कर दी. ऐसा लग रहा था, उसकी बुर मेरे लंड को औऱ अन्दर तक खींच रही थी और मैंने अपनी पूरी जान अपने लंड के रास्ते उसकी बुर में जैसे लबालब भर दी. मैं निढाल होकर उसके ऊपर ढेर हो गया.
थोड़ी देर बाद मैंने जब लंड को उसकी वीर्य से लबालब भरी बुर से बाहर निकाला, तो उसमें से वीर्य और खून की धार बहने लगी. मैंने उसकी ही पैंटी से अपना और उसका मिक्स वीर्य के साथ निकला खून साफ किया. थोड़ी देर बाद मैं उसे बाथरूम ले गया औऱ अच्छे से उसकी बुर गर्म पानी से साफ की ताकि उसकी बुर की अच्छी सिकाई हो सके.
उसकी पूरी बुर फूल चुकी थी. मैंने उसे उठाकर बिस्तर में लिटा दिया औऱ एक दर्दनिवारक गोली और आईपिल उसे खिला दी.
उसे बहुत दर्द हो रहा था, पर पैसों के लालच में पट्ठी अपनी बुर फड़वा ही चुकी थी. मैंने उठाए थोड़ी देर आराम करने को कहा. वो मेरे ही बिस्तर में थोड़ी देर बाद सो गई. शाम को जब वो जागी, तो अब उसका दर्द थोड़ा कम था. पर उसकी चाल लंगड़ा रही थी. आखिर चाल बिगड़ती भी क्यों नहीं, जिस बुर में कभी उंगली तक नहीं गयी थी, आज उसमें वो पूरा का पूरा लंड लेकर बैठी थी.
मैंने उसे रूम पर ही थोड़ी देर चलाया जब उसकी चाल थोड़ा ठीक हुई, तो मैंने उससे कहा- सरिता अगर मम्मी ने पूछ लिया लंगड़ा क्यों रही है, तो बात देना आज गली में फिसल गई थी, पर ये चुदाई की की बात बिल्कुल भी मत बताना.
उसने हां में सर हिलाया. मेरा एक बार और उसे चोदने का मन था, पर उसकी हालत बहुत खराब थी. उसकी बुर आंसू रो रही थी.
मैंने उसे कपड़े पहनाये और उसकी पैंटी यादगार के रूप में अपने पास रख ली. मैंने उसे 100 रुपये देते हुए घर जाकर आराम करने को बोला.
वो लड़खड़ाते हुए अपने रूम में चली गयी.
मैं आज बहुत खुश था. जैसे मैंने आज जन्नत पा ली हो. वो रात मुझे बहुत मस्त नींद आयी. मेरे लंड को भी उसकी बुर फाड़कर बड़ा सुकून मिला था.
अगले पूरे दिन तो वो नजर ही नहीं आयी. तीसरे दिन वो मेरे कमरे में आई.
मैं- कैसी है सरिता. अब कैसा है दर्द तेरा?
सरिता- अंकल परसों और कल तो बहुत दर्द था. आपने तो मेरी बुर का भुरता ही बना दिया. मेरा लालच मेरी बुर फाड़ गया. पर आज दर्द कम है.
मैं- इस दर्द को भी मिटाने का एक ही उपाय है … फिर से चुदाई. अब इस बार बिल्कुल भी दर्द नहीं होगा, जो है वो भी जाता रहेगा और आज इतना मजा आएगा पूछ मत. कल से तू रोज भाग भाग कर चुदने को आएगी.
वो मेरी तरफ देखने लगी.
मैं- चल अब फटाफट कपड़े उतार और लेट जा … मेरा लंड देख तुझे देखते ही खड़ा हो गया.
थोड़ी देर की न नुकर के बाद वो आखिर चुदने को मान ही गई. मैंने आज उसे मजे दे देकर चुदाई की. उसे भी बहुत मजा दिलाया. आज भी अंत में मैंने अपना सारा माल उसकी बुर में भर दिया. जाने के वक्त मैंने उसे दर्द की दवा और गर्भनिरोधक दवा खिलाई और घर भेज दिया. अब तो ये हमारा रोज का नियम हो गया, उसे भी अब चुदाई की लत लग गई थी. हम मौका मिलने पर रोज चुदाई करते.
पूरे छह महीने मैंने उसकी हर तरीके से चुदाई की, उसकी गांड भी मार ली. अब वो फैलने लगी थी. उसकी चूचियां बड़ी होने लगी थीं. गांड चौड़ी होने लगी थी. उसका शरीर भी खिलने लगा, तो उसकी मां को उस पर शक होने लगा था कि शायद उसकी लड़की बिगड़ने लगी है.
पर बहुत पूछने पर भी उसने मेरा नाम नहीं बताया.
थक हार कर उसकी माँ ने पता नहीं किधर दूसरी जगह रूम चेंज कर लिया.
इस तरह एक जवानी दहलीज पर कदम रखती कमसिन लौंडिया मेरे हाथ से निकल गयी, पर जाने से पहले वो मुझे मेरी जिंदगी के सारे मजे करा गयी. अब तो उसकी बुर पर काले बाल आने लगे थे. उसके नींबू, संतरे में बदल चुके थे. बुर भी कुछ खुल गयी थी, पर मेरी बीबी से तो बहुत टाइट थी.
जो भी हो ऐसी लड़की सबको चोदने को मिले. उसने कभी मेरा माल बर्बाद नहीं होने दिया. या तो अपने मुँह में लिया या अपनी बुर व गांड के अन्दर भरा लिया था. पता नहीं अब वो किस से चुदवाती होगी क्योंकि मैंने उसे ऐसा चस्का लगा दिया था कि वो बिना चुदे रह ही नहीं सकती थी. चलो जिससे भी चुदती होगी उसके तो मजे ही आ गए.
आपको मेरी कहानी कैसी लगी है. आप अपने सुझाव व जवाब मुझे जीमेल या फेसबुक पर इसी आईडी पर दे सकते हैं.
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