यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
→ पड़ोसन की नादान बेटियों की चुदाई-2
नमस्कार मित्रों, ये कहानी तब की है जब मैं आगरा से ट्रांसफर होकर कानपुर आया तो मैंने कानपुर में जो मकान किराये पर लिया. मेरे मकान के ठीक सामने गुप्ताइन का घर था. गुप्ताइन लगभग 45 साल की थी लेकिन अच्छी मेन्टेनेंस और सजी संवरी रहने के कारण लगभग 40 साल की लगती थी. गुप्ता जी किसी बैंक में मैनेजर थे. एक 20-22 साल का बेटा था जो ग्रेजुएशन करके नौकरी की तलाश में था और एक बेटी थी, करीब 18 साल की, इन्टर में पढ़ती थी.
मैं जब से इस मुहल्ले में आया था, दिल गुप्ताइन पर फिदा था, किसी भी तरह उसको चोदने का रास्ता तलाश करना था.
जहां चाह वहां राह.
एक दिन सुबह कहीं जाने के लिए कार निकाल रहा था तो देखा कि गुप्ताइन की लड़की डॉली छाता लेकर खड़ी थी और गुप्ता जी स्कूटर निकाल रहे थे.
बूंदाबांदी हो रही थी, मैंने गुप्ता जी से पूछा- सर सुबह सुबह कहाँ?
गुप्ता जी बोले- डॉली का एग्जाम है, स्कूल तक छोड़ने जा रहा हूँ.
मैंने कहा- मैं उधर ही जा रहा हूँ, छोड़ दूँगा.
थोड़ी नानुकुर के बाद उन्होंने डॉली को मेरे साथ भेज दिया.
शाम को गुप्ताइन से नजरें मिलीं तो लगा कि बिना बोले थैंक्स कह रही हो.
इसी तरह तीन चार बार ऐसा हुआ कि मैंने डॉली को उसके स्कूल ड्राप किया. इससे गुप्ताइन तो खुश हो रही थी लेकिन मेरे मन में एक नया विचार पनप गया कि यदि डॉली को चोदने का मौका मिले तो क्या कहने. हालांकि डॉली कोई बहुत खूबसूरत लड़की नहीं थी. दुबला पतला शरीर, सांवला रंग, पांच फीट छह सात इंच का लम्बा कद. दो चीजें बड़ी आकर्षक थीं, बोलती आँखें और मुस्कुराते होंठ.
अब मेरा टारगेट बदल चुका था.
तभी एक दिन बातों बातों में गुप्ता जी ने बताया कि शनिवार को डॉली का एक पेपर लखनऊ में है, मुझे उसको लेकर जाना पड़ेगा.
मैंने तुरन्त कहा- शनिवार को तो मैं लखनऊ जा रहा हूँ, दो घंटे का काम है. इसको इसके सेन्टर पर ड्राप कर दूंगा और अपना काम निपटा कर वापसी में से इसको ले लूंगा.
गुप्ता जी इतना बड़ा एहसान लेने को तैयार नहीं थे लेकिन धीरे धीरे मान गये.
अब मैं डॉली को चोदने की अपनी योजना बनाने में लग गया. तय कार्यक्रम के अनुसार शनिवार को सुबह सात बजे मैं और डॉली लखनऊ के लिए निकल पड़े, रास्ते में चाय नाश्ता करने के बाद लगभग नौ बजे डॉली के सेन्टर पहुंच गये.
वहां पहुंच कर डॉली ने मेरे फोन से ही गुप्ताइन को पहुंचने की सूचना दी. साढ़े नौ बजे वह अन्दर चली गई, उसकी छुट्टी एक बजे होनी थी.
मैं वहाँ से निकला, अच्छे से होटल में एक कमरा बुक किया, अपना बैग रखकर थोड़ी देर आराम किया और डॉली को लेने के लिए उसके सेन्टर पहुंच गया.
डॉली बाहर आई, कार में बैठी तो मैंने पूछा- पेपर कैसा हुआ?
तो खुशी से उछलकर बोली- बहुत अच्छा.
मैंने कहा- बहुत भूख लगी है, पहले खाना खा लें.
एक अच्छे से रेस्टोरेन्ट में खाना खाया. खाने के दौरान मैंने उसको बताया कि मेरा काम नहीं हो पाया है, शाम तक हो गया तो ठीक है वरना रात को रुकना पड़ेगा. यहां मेरी दीदी रहती हैं, उनके घर रुक जायेंगे.
मेरे कहने पर उसने यही बात गुप्ताइन को बता दी.
अब मैंने डॉली से कहा- चार घंटे का समय कैसे गुजरेगा, चलो पिक्चर देखते हैं.
कंजूस गुप्ता जी के मुकाबले मेरा राजसी खर्च देखकर डॉली खुश भी थी और प्रभावित भी. हम लोगों ने पिक्चर देखी, खाया पिया और वहीं मॉल से मैंने डॉली को एक अच्छी सी मिडी फ्राक दिला दी.
शाम के सात बज चुके थे. मैंने एक फर्जी कॉल की, थोड़ी देर बात करने के बाद डॉली को बताया कि रात को रुकना पड़ेगा, चलो दीदी के घर चलते हैं, तुम अपनी मम्मी को बता दो.
डॉली ने गुप्ताइन को बताया, इसी बीच मैंने फोन ले लिया और गुप्ताइन को तसल्ली दे दी कि कल बारह बजे तक हम लोग वापस पहुंच जायेंगे.
अब मैंने डॉली से कहा- मैं सोच रहा हूँ कि दीदी लखनऊ के दूसरे सिरे पर रहती हैं, उनके यहाँ इतनी दूर जाने से अच्छा है कि यहीं आसपास किसी होटल में रुक जायें, होटल में रहने का मजा ही कुछ और है.
डॉली क्या इन्कार करती.
मैंने गाड़ी होटल की तरफ मोड़ दी, कमरे में पहुंच कर मैंने पूछा- कमरा कैसा है?
आँखें मटका कर बोली- बहुत सुन्दर.
खाना पीना खाकर आये थे, बस सोना ही था. मैंने फ्रिज से कोकाकोला की बोतल निकाली, उसमें मैंने व्हिस्की मिला रखी थी, दो घूंट पीने के बाद बोतल डॉली को दे दी, दो तीन घूंट पीकर उसने मुझे दे दी, इस तरह कोकाकोला की बोतल हम दोनों ने खाली कर दी, दो दो पेग अन्दर जा चुके थे.
अब मैंने उसके लिए खरीदी हुई फ्राक उसको दी और कहा- नहा लो और यह पहनकर दिखाओ कैसी लगती है.
थोड़ी देर में वो नहाकर आ गई, मैंने उसकी तारीफ की और नहाने चला गया.
नहाकर अपने साथ लाई हुई टी शर्ट व लोअर पहनकर कमरे में आया तो वो सो चुकी थी.
मैं भी उसके बगल में लेट गया. फ्राक की बैक पर लगी चेन खोलकर मैंने उसकी फ्राक उतार दी, फिर ब्रा और पैंटी. अब डॉली मेरे सामने बिल्कुल नंगी लेटी हुई थी लेकिन इस हाल में चोदने में कोई मजा नहीं था. मैंने कमरे की लाइट बंद की, चादर ओढ़ ली और डॉली को भी चादर में ले लिया. संतरे जैसी छोटी छोटी चूचियां मैंने धीरे धीरे मसलनी शुरू कीं, थोड़ी देर में निपल्स टाइट होने लगे, अब मैंने एक चूची मुंह में ले ली और हल्के हल्के से चूसने लगा. एक हाथ डॉली की चूत पर रखकर मैं सहलाने लगा.
बारी बारी से दोनों चूचियों को चूसते और चूत को सहलाते सहलाते आधा घंटा हुआ तो डॉली की नींद खुली या यूं कहें कि उसे होश आया, बोली- अंकल बहुत नींद आ रही है.
मैंने अपनी उंगली उसकी चूत में डालकर हौले हौले अन्दर बाहर करते हुए कहा- आज की रात सोने के लिए नहीं है.
चूचियां चूसने में कुछ सख्ती और चूत में उंगली अन्दर बाहर करने की रफ्तार बढ़ी तो उसको मजा आने लगा.
अब मैं उठा बाथरूम गया, पेशाब करके आया और चुपचाप लेट गया. एक मिनट ही बीता था कि डॉली खिसककर मेरे पास आई और अपना हाथ मेरे सीने पर फेरने लगी, थोड़ी देर में उसने मेरा हाथ पकड़कर अपनी चूत पर रख दिया.
मैं समझ गया कि लोहा गर्म है. मैंने फिर से उसकी चूची मुंह में ले ली और उसकी चूत सहलाने लगा और उसका हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रख दिया. वो लोअर के ऊपर से ही मेरा लण्ड सहलाने लगी.
जैसे जैसे वो लण्ड सहला रही थी, बड़ा होता जा रहा था. अब उसने अपना हाथ मेरे लोअर के अन्दर डाल दिया. मंजिल करीब आती जा रही थी लेकिन मैं किसी जल्दबाजी में नहीं था. उंगली चूत के अन्दर बाहर होने से चूत गीली हो चुकी थी. उसकी चूची छोड़ मैंने उसके होंठों पर होंठ रखे, चूसने लगा तो वो भी चूसने लगी. मैंने उसको अपने सीने से लगा लिया. नागिन की तरह मुझसे लिपटे लिपटे उसने मेरा लोअर नीचे खिसकाना चाहा तो मैंने अपना लोअर और टी शर्ट उतार दिये और दोनों फिर से लिपट गये.
होठों से होंठ चूसते चूसते वो अपनी चूचियां मेरी छाती से रगड़ने लगी. बेताब तो मैं भी बहुत हो रहा था लेकिन मैं उसकी बेताबी देखना चाहता था. अब उसने अपनी एक टांग मेरी टांग पर रख दी और खिसक खिसक कर अपनी चूत मेरे लण्ड से सटा दी.
बार बार कोशिश के बाद भी वी मेरा लण्ड चूत के लबों से नहीं छुआ पाई तो उसने अपने हाथ से मेरा लण्ड पकड़ा और अपनी चूत के मुंह पर रगड़ने लगी. उसे न होठों की याद रही, न चूचियों की.
अब और देर करना मुनासिब नहीं था, मैंने उसका हाथ अलग किया और अपने हाथ से उसकी चूत के दोनों लब खोलकर लण्ड का सुपारा रख दिया. मेरे सीने से तो लिपटी ही हुई थी, होठों में होंठ फिर आ गये और मैंने अपने हाथ से उसके चूतड़ों को सहलाना शुरू किया, सहलाते सहलाते जब उसके चूतड़ को अपनी तरफ दबाता तो लण्ड का सुपारा उसकी चूत पर दबाव बनाता.
अब ज्यादा देर क्या करें, यह सोचते हुए मैंने बेड के बगल में रखे अपने बैग से कोल्ड क्रीम की शीशी और कॉण्डोम का पैकेट निकाल लिया. अपनी उंगलियों पर ढेर सी क्रीम लेकर अपने लण्ड पर और डॉली की चूत पर मल दी.
डॉली को पीठ के बल लिटा दिया, उसके चूतड़ उठाकर गांड़ के नीचे एक तकिया रखा और कमरे की लाइट जला दी.
लाइट जलते ही बोली- अंकल, लाइट बंद कर दीजिये प्लीज़.
मैंने लण्ड का सुपारा चूत के मुंह पर रखते हुए कहा- काहे के अंकल? अब ये राजा बाबू आ रहा है, अपनी रानी से कहो, सम्भालो.
इतना कहते कहते अपने दोनों हाथों से उसकी पतली सी नाजुक सी कमर पकड़ी और लण्ड को अन्दर दबाया. जीवन में पचासों लड़कियों औरतों को चोदा था लेकिन इतनी टाइट और छोटी चूत पहली बार देखी थी. जोर लगाया तो लण्ड का सुपारा अन्दर हो गया लेकिन डॉली की आँखें छलक आईं.
मैंने कहा- बस हो गया.
उसके ऊपर झुककर उसके आँसू पोंछे और फिर से चूचियां चूसने लगा.
थोड़ी देर में वो तो सामान्य हो गई लेकिन मेरी हालत खराब थी कि पूरा लण्ड अभी बाहर था. खैर डॉली को सहलाते सहलाते, बातों में बहलाते बहलाते मैं अपना लण्ड धीरे धीरे अन्दर धकेलता जा रहा था. काफी देर बाद जब पूरा लण्ड उसकी चूत में समा गया तो मैं धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा. डॉली पूरा लण्ड झेल गई थी, अब मैं बिल्कुल चिन्तामुक्त था.
काफी देर अन्दर बाहर करने के बाद मैंने अपना लण्ड बाहर निकाला, कॉण्डोम चढ़ाया और फिर से चूत के अन्दर खिसका दिया और धीरे धीरे अन्दर बाहर करने लगा. अन्दर बाहर करते करते अब वो समय आ गया कि अब पैसेन्जर ट्रेन को राजधानी बनाने की इच्छा होने लगी. रफ्तार बढ़ी, आनन्द बढ़ा, लण्ड फूलकर और मोटा होने लगा, धकाधक दौड़ते दौड़ते मंजिल आ गई और लण्ड ने पानी छोड़ दिया. कमरे में एसी चलने के बावजूद हम दोनों पसीने से तरबतर हो चुके थे. टॉवल से पसीना पोंछा, फ्रिज से जूस के दो पैक निकाले, पिये और ऐसे ही नंगे नंगे लिपटकर सो गये.
कहानी जारी है.
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