मैं एक छोटे से गांव का रहने वाला हूँ. मेरे घर में मैं, मेरी बीवी, एक छोटा भाई और मां बाप रहते हैं.
मेरी शादी हुए अभी कुछ महीने ही हुए हैं.
मेरे घर में एक कमरा ही है जो मेरे लिए है.
हालांकि उसमें अभी दरवाजा नहीं लगा है, तब भी हम दोनों मियां बीवी काम चला लेते हैं.
कमरे के बाहर एक हॉल है, जिसमें घर के बाकी सदस्य सोते हैं.
यh बात उस दिन की है जब मेरी मां छन्नो राखी बांधने मेरे मामा के घर गई थीं.
उस दिन मेरे बापू लल्लू राम जी, मेरी मां को बस अड्डे पर छोड़ आए थे.
मां बस से अकेली चली गई थीं.
शाम को मेरी बीवी ने खाना बनाया और हम सबने साथ में बैठ कर खाना खाया.
खाना के बाद हम सब सोने की तैयारी करने लगे.
बापू और भाई बाहर हॉल में सो गए और मैं व मेरी पत्नी रूम में सो गए.
कमरे का पर्दा डालकर मैंने बीवी की चुदाई की और वो मेरे लंड से तृप्त होकर सो गई.
रात गहरा गई थी तो सब सो गए थे.
मुझे नींद नहीं आ रही थी, मैं मोबाइल चला रहा था. मैं मोबाइल में अन्तर्वासना साईट खोल कर सेक्स कहानी पढ़ रहा था.
बाहर बारिश होने लगी थी.
रात करीब 11:45 बजे मेरी पत्नी की नींद खुली तो उसने मुझसे कहा कि लाइट बन्द कर दो.
मैं भी उठा और लाइट बन्द करने आ गया.
मैंने लाइट बन्द कर दी और सोचा कि एक बार बाहर हॉल में भी देख लूँ.
मैंने धीरे से पर्दे को हटाया तो देखा कि पड़ोस की काकी मेरे घर में दरवाजा खोल कर अन्दर आ रही थीं.
मैंने चौंक गया और सोचा कि इतनी रात को यहां क्या करने आई होंगी?
काकी अन्दर आईं और मेरे बापू के बगल में लेट गईं. मेरी खोपड़ी घूम गई कि काकी मेरे बापू के बाजू में क्यों लेट गईं.
ये काकी मेरे पड़ोस में रहती थीं और विधवा थीं. हालांकि आजतक मैंने काकी को किसी गलत नजरिये से नहीं देखा था मगर आज समझ आ रहा था कि काकी तो अभी भी जवान माल थीं.
मेरे दिमाग में उनकी फिगर घूमने लगी थी. काकी के उठे हुए दूध और तनी हुई गांड का ध्यान तो मेरी निगाह में आज ही घूमा था.
उनका जिस्म भी एकदम ठोस था. कहीं से भी उनकी चवालीस साल की उम्र उन पर हावी नहीं दिखती थी.
हां बस गांव का पहनावा जरूर कुछ ऐसा था कि वो उम्रदराज लगती थीं.
उनकी विधवा होने की स्थिति भी उन्हें ज्यादा बनाव शृंगार करने की इजाजत नहीं देती थी.
तभी काकी की हल्की सी आवाज आई- क्या उखाड़ ही लोगे?
मेरा ध्यान भंग हुआ और मैंने वापस हॉल में नजरें गड़ा दीं.
बापू के हाथ काकी के मम्मों पर लगे हुए थे और वो काकी के पीछे से उनकी चूचियों की मां चोद रहे थे.
काकी कसमसा रही थीं और मेरे बापू के आगोश में गड़ी जा रही थीं.
बापू भी मस्ती से काकी ब्लाउज के बटन खोल चुके थे और बिना ब्रा की काकी की भरी हुई नारंगियों को मसकने मसलने का मजा ले रहे थे.
बापू- बुधिया, दूध तो पिला दे.
काकी- तो पी लो न लल्लू … मना किसने किया है.
ये कह कर बुधिया काकी बापू की तरफ घूम गईं और उन्होंने अपना एक दूध बापू के मुँह की तरफ बढ़ा दिया.
बापू ने बिना एक पल की देरी किए बिना अपना मुँह बुधिया काकी के एक मम्मे के काले जामुन से चूचुक पर लगा दिया.
काकी के मुँह से एक मीठी सी आह निकली और उनके हाथ ने मेरे बापू के सर को अपने मम्मे पर कस लिया.
बापू भी किसी छोटे से बालक की तरह काकी के दूध को चुसुक चुसुक कर पीने लगे.
अपनी एक टांग उठाकर काकी ने बापू की टांग पर रख दी और दूध चुसवाने का मजा लेने लगीं.
काकी- मजा आ रहा है लल्लू.
‘हां बुधिया आज पूरे दस रोज बाद मिली हो.’
‘सच में उस दिन चौधरी के ट्यूबबैल पर पेला था, उसके बाद से खुजली नहीं मिटी.’
बापू- क्यों चौधरी ने नहीं पेला तुझे?
काकी- चुप कर साले … हटा मुँह, अब ये दूसरा वाला चूस.
बापू ने एक दूध से मुँह हटाया तो काकी ने दूसरा थन मुँह से लगा दिया.
उधर बापू ने काकी की साड़ी जांघ तक सरका दी तो काकी ने भी अपना हाथ बापू के लंड पर रख दिया और वो बापू के लंड को सहलाने लगीं.
बापू- क्या हुआ बुधिया तूने बताया नहीं?
काकी- क्या?
बापू- वही … चौधरी ने नहीं पेला?
काकी- लल्लू तुझे मालूम तो है. उसका दम कितना सा है … फुच्च फुच्च करके खत्म हो जाता है. वो तो उसके खेत पर तेरे साथ मजा मिल जाता है इसलिए उसके साथ सोना पड़ता है. नहीं तो मैं घास भी न डालूँ उसे.
बापू- अच्छा मैं तुझे इतना अच्छा लगता हूँ?
काकी- हां लल्लू, गांव की न जाने कितनी औरतों के लिए तू रामबाण औषधि है.
बापू हंसने लगा और बोला- क्यों किस किस ने बताया तुझे?
काकी हंस कर बोली- सबसे पहले तो उसी चौधरन ने बताया था, जिसके खेत पर तू मुझे पेलता है.
बापू- चल अब वो सब छोड़, जल्दी से नंगी हो जा बुधिया … तेरी चूत चाटनी है.
काकी खुश हो गईं.
उन्होंने अपनी साड़ी ऊपर कर दी और अपनी चूत खोल कर चित लेट गईं.
काकी ने चूत पर हाथ फेर कर कहा- आ जा मेरे शेर चढ़ जा मेरे ऊपर.
बापू ने काकी की चूत पर हाथ फेरा और बोला- एक दिन तेरी फसल काटना है. बड़ी बड़ी झांटें चाटने में मुँह में लगती हैं.
काकी- बाल सफा साबुन ले आना. मैं खुद कुँए पर साफ़ कर लूंगी.
‘हां ले आऊंगा.’
कुछ देर मैं दरवाजे पर खड़ा रहा. मेरे लंड में आग लग गई थी.
मैंने सोचा कि बीवी पर चढ़ जाऊं.
पर आज काकी की चुदाई देखने का लोभ न छूटा.
मैंने एक बार बीवी की तरफ देखा और वापस हॉल में नजर गड़ा दी.
पांच मिनट बाद जब बाहर की हॉल की लाइट बन्द हो गयी, तो मैं समझ गया कि अब कुछ न कुछ कबड्डी होने लगी है.
मैं धीरे से वापस पर्दे में हॉल में देखने लगा.
अभी बापू और काकी में कबड्डी शुरू नहीं हुई थी. मेरे बापू और पड़ोस की काकी आपस में चुम्मी कर रहे थे.
उनको चुम्मी करता देख कर मेरा लंड वापस खड़ा हो गया था.
फिर मैंने देखा कि धीरे धीरे बापू ने काकी की टांगें फैला दी थीं और उनकी चूत पर अपना मुँह ले गए.
काकी ने भी टांगें पूरी फैला दी थीं और बापू ने अपनी जीभ काकी की चूत पर लगा दी थी.
अब वो मस्ती से काकी की चूत चाट रहे थे. काकी की कामुक आवाजें धीरे धीरे निकल रही थीं- आ ऊ ई आई और करो उइ मां और अन्दर जीभ डालो लल्लू … बहुत मजा आ रहा है.
मेरा बापू काकी की चूत के मजे ले रहा है, ये देख कर मेरा लंड आन्दोलन करने लगा.
मैं अपने लंड को हिलाने लगा.
कुछ ही पलों में में मेरे लंड से आपने आप ही वीर्य बाहर निकल गया.
मैं आखें बंद करके अपने लंड के स्खलन का मजा लेने लगा.
एक दो पल बाद जब लंड से पानी निकल गया, तो मैंने पर्दे से हाथ पौंछे और काकी की तरफ देखा.
उधर काकी की गांड उठने लगी थी और वो भी झड़ने को आ गई थीं.
काकी ने मेरे बापू का सर अपने दोनों हाथों से पकड़ा हुआ था और ‘हूँ ऊं उं चाट ले साले … आह लल्लूऊ … मैं गई आह.’ दबी आवाज में चिल्ला रही थीं.
बस ये कहते हुए काकी की चूत से पानी निकल गया और वो थोड़ी शांत हो गईं.
फिर बापू ने अपना 6 इंच का लंड हाथ में लिया और हिलाया.
काकी की आंखें खुल गई थीं. काकी ने बापू के लंड को देखा तो उनकी आंखें चमक उठीं और उन्होंने मेरे बापू का लंड अपने हाथ में पकड़ लिया.
बापू ने भी अपना लंड काकी के मुँह में दे दिया.
काकी लंड को मुँह में ऐसे ले रही थीं जैसे कोई रंडी लंड चूस रही हो.
बापू भी काकी के गले में अन्दर तक लंड पेल रहा था.
काकी भी बापू के गोटे पकड़ कर सहला रही थीं और बापू की आंखें मस्ती में बंद थीं.
बापू काकी के सर के बाल पकड़ कर उसके मुँह में लंड दबादब पेले जा रहा था.
कमाल की बात ये थी कि मेरा छोटा भाई बापू के बिस्तर के बाजू में ही टांगें फैलाए खर्राटे ले रहा था.
थोड़ी देर के बाद काकी बोली- लल्लू, अब झंडा फहरा दे … बड़ी आग लगी है.
बापू ने कहा- हां बुधिया, अब मुझसे भी नहीं रहा जाता. चल सीधी लेट जा.
काकी ने लंड मुँह से निकाला और चूत पसार कर लेट गईं.
बापू ने काकी को चुदाई की पोजीशन में अपने नीचे लिटाया दिया और उनकी चूत में लंड एक ही झटके में डाल दिया.
‘उई मां मर गई … साले एकदम से पेल देता है … धीरे से नहीं पेल सकता.’
बापू ने काकी का एक हॉर्न दबाया और बोला- साली, तेरी मखमली चूत में एक झटके में ही लंड पेलने में मजा आता है.
अब तक काकी ने लंड झेल लिया था.
उसने बापू से पूछा- क्यों और दूसरी क्या मजा नहीं देती हैं?
बापू- तेरे अलावा बस चौधरन ही मजा देती है … बाकी की तो सब साली लंडखोर हैं. सत्तर लंड खाए बैठी हैं.
काकी हंसने लगीं.
बापू- अब तुझे भी मेरे लंड से ही मजा आता है तो तू किसी और लौड़े को घास नहीं डालती है.
काकी- लल्लू, मुझे अपनी इज्जत का भी ख्याल रहता है. विधवा हूँ, अगर मेरे बारे में ऊलजुलूल खबर फ़ैल गई तो हर कोई मेरी सवारी के लिए लंड उठाए घूमेगा.
मेरा बापू हो हो करके हंसने लगा और काकी की चूत में ताबड़तोड़ लंड पेलने लगा.
फिर बापू ने पूछा- अब एकाध जवान लंड की भूख हो तो बताईओ बुधिया.
काकी- जवान लंड … तेरा मतलब क्या है लल्लू?
बापू की आवाज मेरे कानों में बम फोड़ती हुई सुनाई दी- मेरा बड़ा लड़का भी गबरू हो गया है. बहू को पीस कर रख देता होगा.
काकी हंसने लगीं.
बापू ने कहा- हंस क्यों रही है?
काकी ने कहा- तेरी लुगाई छन्नो ने मुझे बताया था कि बहू को पीस कर रख देता है तेरा लौंडा.
मैं चकित था और सोच रहा था कि इसका मतलब मेरी बीवी ने मेरी मां को अपनी चुदाई के बारे में सब बताया था.
कुछ पल बाद काकी की आंह आह की तेज आवाज आने लगीं, तो मैं फिर से बापू और काकी की चुदाई देखने लगा.
अब काकी ने अपनी आवाज अपने होंठों में दबा ली थी और वो नीचे से गांड उठा कर चुदाई का मजा लेने लगी थीं.
उनकी कामुक आवाजें धीरे धीरे आ रही थीं- आ उ आई आम उई … और चोदो आह चोदो.
थोड़ी देर बाद काकी चुप हो गईं क्योंकि उनका काम हो गया था.
उन चुप होने के थोड़ी देर बाद बापू भी उन पर लेट गए थे. देसी औरत की चुदाई करके पिताजी का भी वीर्य निकल चुका था.
फिर काकी वहां से अपने घर वापस चली गईं.
दोस्तो, मैं इस सच घटना को आज भी सोचता हूँ और अपने बापू के लंड की सख्ती पर नाज करता हूँ.