तो उन्होंने अपने साथ हुई एक घटना बतायी.दोस्तो, यह कहानी है मेरी मित्र निष्ठा (काल्पनिक नाम) की है. उनकी बतायी हुई कहानी उन्ही की जुबानी सुनें।
अन्तर्वासना के सभी पाठकों को नमस्ते. मैं निष्ठा हूँ. मैं रोहतक के पास के ही गांव की शादीशुदा महिला हूँ. मेरी उम्र 41 साल हो गयी है. मेरी शादी को 25 साल हो गये है. गांव में पहले जल्दी शादी हो जाती थी तो कम उम्र में मेरी भी शादी हो गयी थी।
मेरी पति शुरू खेती ही करते हैं और शराब भी बहुत पीते हैं. वो शुरू से ही मुझे प्यार कम और मारपीट ज्यादा करते हैं. अब भी वो झगड़ा करते हैं छोटी छोटी बातों पर।
मेरा एक बेटा और एक बेटी है. बेटे का नाम रवि और बेटी का नाम तनवी है मेरा बेटा रवि 23 साल और बेटी 20 साल की हो गयी है और अगले साल तनवी की शादी है।
परिवार में हम 4 सदस्य ही हैं.
हमने नया मकान बनाया है तो हमने भैंस रखनी छोड़ दी है. मैंने पास ही के घर से दूध लेना शुरू कर दिया।
कुछ अपने बारे में बता दूँ. मेरी हाइट 5 फीट 4 इंच है और बहुत गोरी हूँ मैं! आस पास में पहले ही मेरी खूबसूरती के चर्चे थे.
कुछ एक तरफा प्यार में पागल थे. कभी उनके पास से गुजरती जैसे गांव में पानी लाने या कभी खेत में जाते समय तो वे मजनूं मुझे बात मारते थे- क्या माल है … एक रात मिल जा तो कती फाड़ दयूँ।
मतलब बुरी से बुरी बात करते पर मैंने किसी को भाव नहीं दिया।
लेकिन 2019 में इस उम्र में मैं बहक ही गई. पति ने सारी जवानी बस शराब और मारपीट करके ही निकाल दी लेकिन अब मैं खुद को रोक नहीं पाई।
सुनिए कैसे क्या हुआ!
पर सबसे पहले शुक्रिया मेरे दोस्त राज का … जिसकी वजह से मैं अपनी बात आपके साथ शेयर कर सकी. क्योंकि यह बात मैं गांव में किसी को नहीं बता सकती।
तो अब मैंने पड़ोस से ही दूध लेना शुरू कर दिया. जिस घर से मैं दूध लाती हूँ, उस घर में दो ही सदस्य हैं; मां और उसका बेटा संजय. संजय 25 साल का है, गोरा चिट्टा है.
लेकिन पहले ही मैंने खुद को गलत रास्ते पर जाने से रोक रखा था तो अब तो कोई ख्याल ही नहीं था इस काम का।
तो मैं सुबह शाम दूध लाती संजय के घर से … तो थोड़ी देर बात कर लेती संजय और उसकी मां से!
उनका घर बड़ा था. नीचे भैसों का कमरा …. साथ में एक कमरा, ऊपर दो कमरे, रसोई बाथरूम सब ऊपर ही थे तो वो ऊपर रहते थे।
कुछ दिन पहले मुझे शाम का दूध लाने में देरी हो गयी तो उनका गली का गेट बन्द था.
मैंने गेट को थोड़ा हाथ लगाया तो वो खुल गया और मैं अन्दर आ गई.
अंदर आकर मैंने देखा तो संजय नीचे खुले में खड़ा आंख बन्द किये लंड को हिला रहा था।
मैं चुपचाप खड़े उसके लंड को देख रही थी और वो मस्ती में आंख बन्द किया लंड हिला रहा था.
उसका लंड बड़ा था और मैं आंखें फाड़कर देखती रही।
फिर उसने तेज हिलाना शुरू कर दिया तो मैं समझ गई कि अब उसका पानी निकलने वाला है.
तो मैं वापस गेट की तरफ गई और वहीं से आवाज दी और मैं अन्दर आने लगी.
संजय भैसों वाले कमरे में घुस गया. शायद लंड को साफ करने गया था।
तो मैं ऊपर चली गई तो ऊपर के कमरे बंद थे.
मैंने कहा- कोई है?
तो नीचे से संजय की आवाज आई- मां मामा के यहाँ गई है, कल आएगी. मैंने दूध निकाल दिया है, मैं आ रहा हूँ दूध डालने।
वो ऊपर आने लगा तो मेरी नजर उसके लंड पर थी और वहाँ पर कुछ गीला था. मैं समझ गयी कि मेरी आवाज सुन कर लंड का पानी पैंट पर ही गिर गया होगा.
मैंने संजय को खाने के लिए पूछा तो उसने कहा- मैं खुद बना लेता हूँ.
तो मैं घर आ गई।
रात को सोचती रही कि क्या मस्त लंड है संजय का! मेरे मन में सेक्स की भावना आने लगी तो मैं उठी और अपने पति के पास गई क्योंकि मेरे पति अलग कमरे में सोते हैं.
गांव में बच्चे बड़े हो जाते हैं तो पति पत्नी एक कमरे में नहीं सोते. या तो बच्चे साथ में सोते हैं या पति अलग कमरे में।
कभी कभी ही सेक्स हो पाता है. दिन में ही मौका मिल जाता है या सुबह सुबह जल्दी उठ जायें तो!
मैं अपने पति के कमरे की तरफ गई तो उन्होंने दरवाजा अन्दर से बंद कर रखा था।
घर में मैं और मेरी बेटी एक साथ सोते हैं. मेरा बेटा दूसरे राज्य में नौकरी करता है तो वो महीने में एक दो बार आता है।
मैं उनका कमरा अन्दर से बंद देख अपने कमरे की तरफ आ गई. लेकिन मन में ख्याल संजय के लंड का ही था तो नींद ही नहीं आ रही थी. मैं लेटे लेटे अपनी चूत को रगड़ रही थी.
जैसे तैसे सुबह हो गयी।
अब मैं जल्दी ही दूध लेने चली गई क्योंकि संजय अकेला था तो सोचा कि शायद फिर से उसके लंड के दर्शन हो जायें.
गेट खुला हुआ था तो मैं ऊपर गई तो संजय चाय बना रहा था तो वो बोला- चाय पी लेना आप भी!
लगती तो मैं उसकी चाची थी … लेकिन वो आप ही बोलता था।
तो चाय बना कर उसने एक कप चाय मुझे भी दी और मेरा दूध डाल कर नीचे चला गया.
मैं भी चाय पीकर, दूध लेकर नीचे आ गई और अपने घर आ गई.
लेकिन दिमाग में वही कल की बात घूम रही थी. पति के बेरूखी की वजह से जो तमन्ना दबी हुई थी, संजय का लंड देख अब सेक्स की भावना बढ़ने लगी।
अब मैं अच्छे सै तैयार होकर संजय के घर जाने लगी. अब मैं वासना में भूल गई कि मेरी उम्र कितनी है, बच्चे कितने बड़े हैं. मुझे अब तो बस संजय का लंड चाहिए था।
जब मैं संजय के घर जाती तो वो दूसरे कमरे में जाता और मैं नीचे आने लगती तो वो खिड़की खोल कर लंड हिलाता. मैं उसका लंड देखकर भी अन्जान बनकर चली जाती.
अब मेरी वासना बढ़ती ही जा रही थी। लेकिन चाहती थी कि संजय पहल करे!
मैं अगले दिन सुबह दूध लेने गयी तो संजय धीरे से बोला- निष्ठा दे दे न!
लेकिन मैंने कुछ नहीं कहा. मैं चाहती थी कि वो खुल कर पहल करे।
वो ये बोल कर नीचे चला गया.
तो मैंने देखा कि वो नीचे कमरे में खड़ा होकर लंड हिला रहा है और मुझे देखकर भी नहीं लंड अन्दर किया और एक हाथ में लंड पकड़कर दूसरे हाथ से मुझे अन्दर आने का इशारा करने लगा।
लेकिन मैं बाहर जाने लगी और मुड़कर संजय को देखने लगी. वो जोर जोर से लंड हिला रहा था और मुझे देखते देखते उसने आगे से लंड का मुंह दबा लिया, पानी निकल गया था उसका … तो उसने आंख मार दी।
मैं चुपचाप घर आ गई लेकिन अब मैं पागल होती जा रही थी वासना में! और सब शर्म छोड़ मैंने सोच लिया कि संजय का लंड चाहिए मुझे अब।
अगली सुबह मैं दूध लेने गई तो संजय की मां दूध निकाल रही थी. वो बोली- तुम ऊपर बैठो, मैं दूध निकाल कर ला रही हूँ.
मैं ऊपर गई तो संजय कम्बल ओढ़े बेड पर बैठा था. मैं भी बेड के एक साइड में बैठ गई।
मेरे अन्दर रोमांच सा भरने लगा.
तभी संजय मेरे कान में बोला- आई लव यू!
मैंने उसकी तरफ देखा और संजय ने फिर मुझे बेड पर लिटा लिया.
मैं तो तैयार ही थी और वासना के वश में होकर खुद को उसे सौम्प दिया।
मुझे लिटाते ही वो मेरे ऊपर आ गया और मेरे होंठों पर होंठ लगा दिए और चुसने लगा मैं भी साथ देने लगी वो मेरे चूचियों को भी दबाने लगा.
फिर वो पूरा मेरे ऊपर आ गया और उसका खड़ा लंड मेरी चूत के ऊपर टकराने लगा।
तभी रंग में भंग हो गया. संजय की मां ने दूध निकाल कर बाल्टी एक और रख दी.
बाल्टी की आवाज आते ही हम जैसे पहले थे वैसे ही हो गए संजय कम्बल लेकर लेट गया।
फिर मैं दूध लेकर आ गई.
सुबह शाम संजय मौका देखकर अब कभी भी चुची दबा देता और किस करता. कभी लंड चूसने को कहता तो अगर संजय की मां नीचे होती तो मैं उसक लंड चूसती!
अब मैं खुद को रोक नहीं पा रही थी, अब तो मुझे संजय का ही ख्याल था हर समय. समझ नहीं आ रहा था कि संजय को कहाँ मिलने बुलाऊन.
मन में ऐसा रोमांच और डर सुहागरात वाली रात को हुआ था या अब हो रहा था।
कुछ दिन बाद मेरा भाई आया और बोला- तनवी बेटी को मेरे साथ भेज दे. फिर इसे शादी के बाद कौन जाने देगा.
तो मैंने भी मना नहीं किया और मेरा भाई मेरी बेटी तनवी को साथ ले गया।
शाम को मैं संजय के घर गयी तो आते समय संजय ने मौका देखकर एक कागज मेरे हाथ में पकड़ा दिया।
मैंने कागज खोलकर देखा तो उसमे संजय का फोन नम्बर था. मैं चुपचाप कागज लेकर अपने घर आ गयी और खाना बनाने की तैयारी करने लगी।
मेरे पति घर आये तो शराब के नशे में थे और आते ही मेरे मुंह एक थप्पड़ लगा दिया और बोला- कमीनी कुतिया, मेरी बेटी को मेरे सालों के घर क्यों भेजा?
मैं कुछ नहीं बोली. मुझे पता था कि कुछ बोलती तो और मार पक्की थी.
तो वे गाली देते हुए अपने कमरे में चले गए।
मैं रोने लगी. अब समझाना भी खुद को ही था तो मैं फिर उठकर उनको खाना देने गयी.
तो उन्होंने कहा- खाना रख दे!
और वे बेड से उठ गये और बोले- लंड चूस!
और अपने पजामे से लंड निकाल खड़े हो गये।
मैंने कहा- नहीं, रोटी खायी है मैंने, अब नहीं होगा.
तो उन्होंने मुझे कहा- सलवार उतार और बेड पकड़ कर झुक जा!
मैं झुक गयी और उन्होंने लंड डाल कर चुदायी शुरू बस एक मिनट में ही ढीले हो गये और बोले- चल भाग यहाँ से!
चुपचाप सलवार उठा के मैं बाथरूम में गयी और अपनी चूत में उगंली करने लगी और फिर नहा धोकर आगे वाले कमरे में आकर लेट गयी।
अब मैं अकेली थी तो मुझे संजय का ख्याल आने लगा.
मैंने संजय को फोन किया तो वो बोला- मैं आ जाऊँ?
तो मैं डर गयी.
वो बोला- क्या पता फिर मौका मिले ना मिले? बस तुम अपना दरवाजा अन्दर से बंद मत करना।
मैंने कहा- ठीक है.
और मैं सोने की कोशिश करने लगी.
पर नींद कहाँ … रात को बारह बजे के करीब कुछ आवाज हुई तो मैं उठी तो संजय दरवाजा बंद करके अन्दर आ रहा था।
मैं जल्दी से अपने पति के कमरे की तरफ गयी तो उनके सोने की आवाज आ रही थी. मैंने बाहर से उनके कमरे की कुंडी लगा दी और अपने कमरे में आकर संजय के गले लग गई।
संजय ने मेरा मुंह ऊपर उठाया और मेरे होंठों को चूमने लगा. मैंने आंखें बंद करके खुद को उसके हवाले कर दिया.
ऐसे करते करते उसने बेड पर लेटा दिया और फिर कभी गालों पर, कभी होंठों पर, कभी कान के पीछे किस करने लगा मुझे।
मैं अब खुद से संयम खोती जा रही थी.
अब संजय मेरी चूचियों को कपड़ों के ऊपर से चूमने लगा तो मैंने अपने कमीज को ऊपर कर दिया. तो संजय बारी बारी से मेरी गोरी चूचियों को चूसने लगा और बीच बीच में काट भी लेता.
अब वो मेरे पेट को, नाभि को चूमने लगा।
मैं पागल सी होने लगी तो उसने कुर्ता निकालने को कहा. मैं उठ गयी और अपना कमीज उतार दिया.
फिर वो मेरी सलवार के नाड़े को खोलने लगा तो मैंने भी मना नहीं किया।
मैं बिल्कुल नंगी खड़ी थी.
अब संजय ने अपने कपड़े उतार दिये और उसका लंड बिल्कुल सामने तना खड़ा था. वो मेरे करीब आया और मेरी चूचियों में मुंह लगा दिया.
मैं भी खड़े खड़े उसके लंड को पकड़कर आगे पीछे करने लगी।
फिर वो बोला- मुंह में ले ले!
मैं भी मना नहीं कर पायी और घुटनों के बल बैठकर अपने यार का लंड चूसने लगी।
अब संजय ने कहा- बस अब बेड पर लेट जाओ।
मैं लंड को मुंह से निकाल कर बेड पर लेट गयी.
संजय ने फिर मुझे चूमना शुरू कर दिया और चूमते चूमते मेरी चूत तक आ गया. और मैंने भी टांगें खोल ली.
संजय समझ गया कि मैं क्या चाहती हूँ।
तो संजय ने मेरी गीली चूत पर मुंह लगा दिया.
मैं सिहर गयी और आंन्नद के सागर में गोते लगाने लगी. संजय अपनी जीभ को चूत के अन्दर तक घुसा रहा था.
अब तक मैं भी अब पूरी मस्ती में आ गयी थी और संजय के सिर को टांगों के बीच दबाने लगी।
संजय ने मुंह हटा लिया तो मैं उसकी तरफ देखने लगी. संजय ने मेरी आंखो में देखा और फिर संजय मेरे ऊपर आ गया और उसका लंड मेरी चूत पर टक्कर मारने लगा.
मैंने उसके लंड को पकड़ा और संजय की आंखों में देखा और चूत पर लंड को रख दिया और नीचे से अपने चूतड़ उठा कर एक हल्का सा झटका मारा. ऐसा करते हुए मुझे अंदर ही अंदर थोड़ी शर्म भी आई कि मैं कैसे निर्लज्ज होकर पड़ोसी से चुदाने को उतावली हो रही हूँ.
मेरे झटके को देख उसने एक झटके में अपना पूरा लंड मेरी प्यासी चूत में थोक दिया और फिर मुझे चोदने लगा।
बस फिर तो जब समय मिलता … चुदाई शुरू।
मैं निष्ठा अपने दोस्त राज हुडा का धन्यवाद करती हूँ जिसने मुझे मेरे दिल की बात, मेरी जिन्दगी की एक सच्ची घटना जिसे मैं और किसी को नहीं बता सकती थी, यहाँ शेयर करने का हौसला दिया और मेरी कहानी लिख कर भेजी.
मेरी देसी चुदाई की देसी कहानी आपको कैसी लगी? प्लीज अपने विचार जरूर रखें.