हाई फ्रेंड्स, मेरा नाम हाई शाहीन शेख है. मैं हैदराबाद की रहने वाली हूँ. मैं 30 साल की शादीशुदा मगर एक बच्चे के लिए तरसती औरत। इसी वजह से मैं बहक गई और आज मैं कुछ और ही हूँ।
आपने मेरी पहली कहानी के चार भाग
मुझे रंडी बना दिया मेरे यार ने
अन्तर्वासना पर पढ़े होंगे कि कैसे मेरे एक कमीने दोस्त ने मुझे झूठे प्यार और एक बच्चा देने के वादा करके मुझे इस्तेमाल किया और जब उसका मन मेरे जिस्म से भर गया तो उसने मुझे वेश्यावृति के दलदल में धकेल दिया।
खैर सारा दोष उसका भी नहीं, कुछ कमियाँ मेरी भी थी। मगर फिर भी मैं एक शादीशुदा शरीफ औरत से एक रंडी बन चुकी हूँ। अब एक जॉनी भाई हैं, जो मेरे एजेंट हैं, और वही मुझे धंधे पर भेजते हैं।
कल यूं ही बैठे बैठे मुझे एक बड़ा पुराना किस्सा याद आया, सोचा आप से शेअर करूँ। वो कहते हैं न कि आदमी को दुआ और बददुआ हमेशा सोच कर देनी चाहिए, कभी कभी लग जाती है।
वही मेरे साथ हुआ, कैसे लीजिये मुलाहिजा फरमाइए।
बात 15 साल पुरानी है, जब मैं स्कूल में पढ़ती थी। उस वक्त मेरी एक बेस्ट फ्रेंड शमीम थी। हमारे घर भी थोड़ी ही दूरी पर थे और हम दोनों एक साथ ही स्कूल जाती थी। पहली क्लास से हम दोनों साथ थी। एकदम पक्की दोस्ती। शुरू से ही एक दूसरी के घर आना जाना, एक साथ बैठ कर स्कूल का होमवर्क करना, एक साथ पढ़ना, खाना, खेलना।
उम्र में शमीम मुझ से सिर्फ 4 महीने छोटी थी। बचपन के दिन भी बहुत खूब थे। पढ़ाई में हम दोनों काफी तेज़ थी तो कभी भी इस बात की तो चिंता ही नहीं थी कि नंबर कम आएंगे। सो जितना वक्त पढ़ना होता था, उतना वक़्त पढ़ते और उसके बाद मस्ती।
पहले तो हम गुड्डे गुड्डियों से खेलती थी। मगर अब जैसे जैसे उम्र बढ़ रही थी, और हम दोनों के जिस्म पर नए नए बदलाव आ रहे थे, वो हमें बहुत रोमांचित कर रहे थे।
जब हम अकेली होती, तो कई बार हम अपने कपड़े खोल कर एक दूसरी से अपने जिस्म मिलाती। ताकि ये पता चल सके के, शमीम के मम्मे बड़े थे या मेरे, उसकी जांघें गदराई थी कि मेरी। उसके चूतड़ बड़े थे या मेरे।
मगर करीब करीब हम दोनों एक जैसी ही थी।
अक्सर टीवी पर हम फिल्में देखती और उनमें हीरो हीरोइन को एक दूसरे से प्यार करते देख हमें भी बड़ा होता कि काश हमारे भी बॉयफ्रेंड होते तो हम भी उनसे प्यार करते। वो हमें किस करते, हमारे मम्मे दबाते, और भी कुछ करते।
बस इस कुछ का हमें पता नहीं था कि ये कुछ क्या होता है और कैसे होता है।
हमारी क्लास में बहुत सी लड़कियों के बॉयफ्रेंड थे। अब हमारा स्कूल सिर्फ लड़कियों के लिए था, तो ज़ाहिर सी बात है कि सबके बॉय फ्रेंड स्कूल से बाहर के ही थे। एक दो लड़के हम पर भी लाइन मारते थे मगर घर वालों के डर से हमने कभी हिम्मत नहीं करी उनकी तरफ सर उठा कर देखने की भी।
दिल तो चाहता था, मगर घर वालों के डर और उनकी इज्ज़त ने हमें कभी गलत रास्ते पर जाने नहीं दिया।
मगर जो आपकी किस्मत में लिखा होता है, वो एक न एक दिन हो कर रहता है. और वो हमारे साथ भी हुआ।
हमारे ही मोहल्ले का एक बदमाश टाइप लड़का था फैजल।
फैजल का सारा कुनबा ही लड़ाई झगड़े के लिए मशहूर था, तो इसी वजह से फैजल भी खुद को मोहल्ले का भाई समझता था।
जब भी मैं और शमीम स्कूल से घर आती तो वो अक्सर हमें घूरता, कभी कभी कोई न कोई फब्ती भी कसता। कभी कुछ बोलता तो कभी कुछ। हम हमेशा उसको नज़रअंदाज़ करके अपने घर को आ जाती।
मगर कुछ दिन बाद हमें उसकी ये बदमाशियाँ हमें भाने लगी। गाहे बगाहे हम दोनों उसकी इन बातों पर मंद मंद मुस्कुरा देती। उसके साथ उसका एक और दोस्त भी होता था, कशिफ मगर सब उसे केशा केशा ही कहते थे। वो शमीम पर फिदा था और फैजल मुझ पर।
दोनों हमें आते जाते बहुत तंग करते, और हम अपने मुंह दुपट्टे में छुपा कर अंदर ही अंदर हँसती मुसकुराती वहाँ से चली जाती।
जानते वो भी थे कि उनकी बातों पर हम दोनों हँसती हैं। और मर्दों में तो ये बात आम है कि लड़की हंसी और फंसी।
फिर एक दिन उन दोनों ने हमें रास्ते में रोक कर एक एक चिट्ठी दी। थोड़ा ना नुकर के बाद हम दोनों ने वो चिट्ठियाँ ले ली और घर आ कर पढ़ाई के बहाने बैठ कर अकेले में पढ़ी।
न उनकी अँग्रेजी अच्छी, न हिन्दी अच्छी, उर्दू की तो बात ही छोड़िये।
खैर मसला ये कि वो दोनों हमें बहुत पसंद करते थे और हमसे दोस्ती करना चाहते थे। दिल में तो हमारे भी लड्डू फूट रहे थे क्योंकि ये तो हमें प्रोपोज कर रहे थे और अगर हम दोनों मान जाती तो हम दोनों के भी बॉयफ्रेंड हो जाते।
मगर हमारे दिल में डर भी था।
उसके बाद अगले दिन जब हम स्कूल से वापिस आ रही थी तो उन्होंने हमें पूछा, हमें कुछ और नहीं सूझा तो हमने कह दिया कि अभी सोचा नहीं है, सोच कर बताएँगी।
तो उन्होंने हमें दो दिन सोचने को दिये।
और दो दिन बाद वो हमें हमारे स्कूल के पीछे वाले गेट पर मिले।
स्कूल के पीछे वाले गेट की तरफ कोई आता जाता नहीं था. उधर फैजल ने मेरी बांह पकड़ ली और केशा शमीम को बात करने के बहाने मुझे से थोड़ी दूर ले गया. दोनों लड़कों ने सवाल एक ही पूछना था, और हम दोनों लड़कियों ने जवाब भी एक ही देना था।
बेशक हमने अपने घर वालों के डर के मारे उनको इंकार कर दिया मगर वो कहाँ मानने वाले थे। दोनों ने हमें छुप छुप कर मिलने को मना लिया।
घर आकर तो हम दोनों की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। चाहती तो हम भी थी कि थोड़े इंकार के बाद हमने भी इकरार कर ही देना था। उसके बाद हफ्ते में एक बार हम स्कूल के पीछे वाले गेट पर उनसे मिलती। पहले तो बात सिर्फ बातों तक ही थी, मगर फिर बाद में हाथ पकड़ने और कभी कभी आगोश में लेने तक जा पहुंची। मैं और शमीम बहुत रोकती उन्हें … मगर वो दोनों बदमाश कहाँ रुकने वाले थे।
पहले हफ्ते में एक बार छुप कर मिलते थे, फिर हफ्ते में दो बार मिलने लगे, तीन बार मिलने लगे। हरामखोर तो हम दोनों भी कम नहीं थी।
अक्सर जब भी हम मिलने के बाद घर जाने को कहती तो दोनों लड़के हमें पकड़ कर थोड़ा ज़ोर ज़बरदस्ती करते, कभी हमारे मम्मे दबा देते, कभी हमारे लब चूम लेते।
मगर ये सब तो मोहब्बत में होता ही है, ये सोच कर हम उनको ये सब कर लेने देती।
अब तो ये दस्तूर ही हो चला था कि हम हमेशा स्कूल के पीछे वाले गेट से घर जाएंगी और गेट से बाहर निकलते ही वो दोनों हमें गली में दबोचने के लिए खड़े होते थे। हम जैसे ही निकलती वो सिर्फ ये देखते कोई और स्कूल की छात्रा तो इस तरफ नहीं आ रही है।
बस रास्ता खाली देख कर वो हमें झट से आगोश में ले लेते और हमारे लबों को चूसते, हमारे बदन को नोच डालते, मम्मे इतने ज़ोर से दबाते जैसे ये कोई नींबू हों और इनमें से रस निकलेगा। कभी कभी तो कमीज़ के गले के ऊपर से ही हमारा मम्मा निकाल कर चूस लिया जाता।
रोज़ ही वो कोई नई खुराफात सोच कर आते और फिर हमारे ऊपर लाज़िम करते। हम भी दिनोदिन बिगड़ रही थी, हमें भी इस तरह चोरी चोरी अपने यारों के साथ लुच्चपना करने में मज़ा आता। हम भी उनके लबों को चूमती, जब वो हमारे मम्मे दबाते, हमारे मम्मों को चूसते तो हम भी सिसकारियाँ भरतीं।
फैजल और केशा अब हमारी सलवार के अंदर हाथ डाल कर हमारी चूत से भी खेलने लगे। पहले तो हमें डर लगा के सरेआम सड़क पर कोई लड़का हमारी सलवार में हाथ डाल कर खड़ा है. और ऊपर से कोई आ जाए तो क्या हो।
मगर दो दिन बाद हालात ये थे कि अगर उन्होंने हमारे सलवार में हाथ डाल रखा था, तो हमारे हाथ भी उनकी पैन्ट के अंदर थे। पहली बार किसी मर्द का कड़क लंड मैंने अपने हाथ में पकड़ कर देखा।
फैजल बोला- अभी तो सिर्फ हाथ में है, डार्लिंग। बहुत जल्दी ये तुम्हारी इस गुलाबी चूत के अंदर तक घुस कर चोदेगा तुझे। फिर देखना क्या मज़ा आता है।
मुझे भी बड़ी एक्साइटमेंट थी कि जब मैं पहली बार सेक्स करूंगी तो कैसा लगेगा।
फिर कुछ दिन बाद हमारे रिश्तेदारी में एक शादी आ गई। दुल्हन रिश्ते में मेरी बड़ी बहन लगती थी। हम शादी में गए, तो मैं सारा वक्त दुल्हन के साथ ही रही।
वहीं पर जब दुल्हन को तैयार कर रहे थे, तब आस पास बैठी कुछ औरतों ने हँसते हुये दुल्हन से ठिठोली करी- अरी शबाना, तैयार हो जा सुहागरात मनाने के लिए। दूल्हे मियां ने उस दिन बिल्ली मारनी है।
सब हंसने लगी।
मुझे समझ में नहीं आया कि यार सुहागरात को तो दूल्हा दुल्हन सेक्स करते हैं। ये साला बिल्ली मारने का क्या गेम है। बाद में पता चला कि चूत मारने को ही बिल्ली मारना कहते हैं।
फिर एक औरत ने सीख भी दी- ऐसा करना बन्नो, थोड़ा सा तेल लगा लेना, अंदर भी और बाहर भी। दूल्हा पूछे तो कहना कि मेहंदी वाली ने लगाया है। मगर तेल लगाने से तुझे आसानी होगी, आराम से काम हो जाएगा।
मैं फिर सोचने लगी, अब ये साला तेल कहाँ लगाना है। पहले तो सोचा आंटी से पूछ लूँ, फिर अम्मी भी पास में ही बैठी थी डर भी लगा कि कहीं अम्मी से ही मुझे डांट न पड़ जाए। मैं चुप रही और सबकी बातें सुनती रही।
एक आंटी बोली- अरे रहने दे, लड़की को डरा मत, कुछ नहीं होगा बेटा, सब आराम से हो जाएगा।
दुल्हन ने थोड़ा घबरा कर उस आंटी की ओर देखा, सच में डर उसके चेहरे पर भी झलक रहा था. और उस से ज़्यादा मेरे … क्योंकि मुझे उनकी आधी बातें समझ नहीं आ रही थी. और जो समझ आ रही थी, वो मेरे मन में भी डर पैदा कर रही थी क्योंकि फैजल ने कुछ दिन मुझे सेक्स करने के लिए बोला हुआ था. जिस दिन मौका मिल गया, उसी दिन फैजल और केशा ने मुझे और शमीम को चोदने की प्लानिंग कर रखी थी।
मैं यहाँ बैठी यह जानना चाहती थी कि जब सुहागरात को दूल्हे मियां दुल्हन के साथ सेक्स करेंगे तो दुल्हन को कितना दर्द होगा।
क्योंकि मैं तो अभी तक कभी अपनी पतली सी उंगली भी अंदर डाल कर नहीं देखी थी और फैजल का मोटा और लंबा लंड मैं उसकी पैन्ट में कई बार पकड़ कर देख चुकी थी। अगर वो लंड मेरी चूत में घुसेगा तो यकीनन मेरी तो जान ही निकल जाएगी। कहीं मैं मर ही न जाऊँ।
मगर एक आंटी बोली- अरे सुन मैं बताती हूँ, कभी तुम्हें कब्ज़ हुई है?
दुल्हन ने डरते डरते हाँ में सर हिलाया।
तो आंटी मुस्कुरा कर बोली- बस उतनी सी तकलीफ होगी। कब्ज़ में सामान अंदर से बाहर आता है और सुहागरात को सामान बाहर से अंदर जाता है।
सब की सब औरतें हंसने लगी।
मगर मैं सोचने लगी ‘यार मुझे तो कभी कब्ज़ भी नहीं हुई, मैं कैसे जानूं कि सच में कितना दर्द होगा। मैं बड़े पाशोपेश में थी। मगर साली किसी औरत ने यह नहीं बताया कि सही में कितना दर्द होगा।
ये सब ने हामी भर दी कि दर्द तो होगा।
अब दर्द से मुझे हमेशा ही बहुत डर लगता है। मैं तो कभी सुई भी नहीं लगवाती थी, हमेशा डॉक्टर से खाने की गोली मांगती। चलो सुई भी छोटी सी बारीक सी होती है। मगर फैजल का लंड तो बड़ा भयंकर था।
मेरी तो गांड ये सोच सोच कर ही फटी जा रही थी कि फैजल को मज़ा आयेगा, तो वो चोद चाद कर परे होगा, मेरा क्या होगा, मैं उस दर्द को कैसे बर्दाश्त करूंगी।
बाद में एक औरत ने ये भी कहा- चलो दर्द तो कोई बात नहीं, अगर थोड़ा बहुत खून भी निकला तो घबराना मत। पहली बार में होता है।
खून … !!!? मैं तो बुरी तरह से घबरा गई, पहली चुदाई में खून भी निकलता है। अब तो पक्का हो गया कि मैं न फैजल से चुदवाती। साला इतने मोटे लंड से अपनी चूत फड़वा कर खून निकलवा कर मुझे क्या मिलेगा।
मैंने सोच लिया, फैजल के नीचे नहीं पड़ना … चाहे कुछ हो जाए।
कहानी का दूसरा भाग: पहले प्यार की वो पहली चुदाई-2