यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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इसके बाद अप्रेन्टिस से एक्सपर्ट कैसे बना इसकी कहानी भी लगे हाथ सुना देता हूँ.
मैं आपको पिछली कहानी में बता चुका हूं कि मैंने गर्मियां अपने कस्बे में तब नल व बिजली न होने के कारण दोपहर तालाब में नहा कर तैरना सीख कर गुजारी थीं. तब नसीम ने … जो हमारे ग्रुप के लड़कों से बड़ी उम्र के थे, ने दो लड़कों की गांड मार दी थी.
जबकि प्रकाश भाईसाब ने यह कह कर कि लौंडे मेरा मस्त लंड झेल नहीं पाएंगे, इनकी गांड फट जाएगी … उन दोनों लौंडों की गांड मारने से इन्कार कर दिया था.
नसीम की बड़ी मनुहार के बाद प्रकाश भाईसाब ने बड़ी संभल संभल कर एक लौंडे की गांड मारी थी. उस घटना के बाद मेरे दोस्त लखन ने खलिहान में पहली बार मेरी गांड मारी थी.
अब गर्मी की छुट्टियां खत्म हो गई थीं, स्कूल खुल गए थे. मेरा अब तालाब में दोपहर भर मस्ती से नहाना बंद हो गया था. खलिहान भी धीरे धीरे पूरा उठ गया था. सारा अनाज घर आ गया था.
मैं भी स्कूल जाने के कारण अब खेतों पर नहीं जा पाता था. मैं रोज सुबह स्कूल हांक दिया जाता, शाम पांच बजे घर आता. बाजार से जरूरी सामान लाता, घर में चाची की मदद करता, पढ़ाई करता. उन सब दोस्तों नसीम, प्रकाश भाई और लखन आदि सबसे मेरा सम्पर्क कम हो गया था.
ऊपर वाली घटना के करीब छह-सात महीने बाद की बात है. तब सर्दी का मौसम आ गया था. यही दिसम्बर के आखिर व जनवरी के शुरूआती दिनों की बात है.
मैं बाजार कुछ सामान लेने गया था, उस वक्त शाम का समय था. बादल थे … जिस वजह से मौसम कुछ ठंडा हो गया था. तभी अचानक हवा चलने लगी, फिर बूंदा-बांदी होने लगी. मैं पास ही में एक टीनशेड में रुक गया. टीनशेड के अन्दर एक दुकान थी. बाहर टीनशेड में साईकिल के पंचर जोड़े जाने का सामान बिखरा पड़ा था … व दुकान में अन्दर नई साईकिलें रखी दिख रही थीं. अन्दर एक बड़ा सा कमरा दिख रहा था, पर बेतरतीब सामान से भरा था.
मैं टीनशेड में एक कोने में खड़ा हो गया, पर अन्दर नहीं गया. अन्दर प्रकाश भाईसाब स्टूल पर बैठे थे, यह उन्हीं की दुकान थी.
उन्होंने मुझे देख लिया तो अन्दर बुला लिया. वे अकेले बैठे दिख रहे थे. मैं उनके बगल में जाकर खड़ा हो गया. वे मेरी पीठ सहलाने लगे.
प्रकाश भाईसाब कहने लगे- बड़ी ठंडक है … ऐसे में कुछ कपड़े पहन कर निकलना था.
भाईसाब मेरे चूतड़ सहलाने लगे.
मैं एक झोला लिए था.
उन्होंने कहा- झोला स्टूल के सामने रख दो.
मैंने झोला स्टूल के सामने रख दिया. तभी बैलेस बिगड़ने से मैं गिरने को हुआ, तो मेरा हाथ कुछ टेकने को बढ़ा. मेरा हाथ इस बेध्यानी ने भाई साहब के लंड पर जा लगा. तभी हवा और जोर से चलने लगी.
भाईसाब ने मुझे सम्भालते हुए कुछ ऐसा किया कि मैं उनकी गोद में बैठ गया.
मुझे उनके खड़े होते लंड का अहसास हो गया था.
प्रकाश भाईसाब से मुझसे किवाड़ लगाने को कहा. मैंने उठ कर किवाड़ लगा दिए और उनके सामने आ गया. उन्होंने मुझे अपने करीब खींचा और मेरे चूतड़ मसलने लगे.
भाईसाब ने मेरे पैंट के बटन खोल दिए. पैंट मेरी टांगों में नीचे आ गया. मैंने भी माजरा समझते हुए पैंट उतार दिया. अब उन्होंने अपना पायजामा उतारा व अंडरवियर भी उतार दिया. उनका लम्बा मोटा लंड मेरे सामने तनतना रहा था … बड़ी मस्ती से ऊपर नीचे हो रहा था.
वे पच्चीस-छब्बीस साल के मस्त जवान थे. मैंने ध्यान से देखा कि प्रकाश भाईसाब का लंड बड़ा भयंकर था. मैंने पहली बार ऐसा मस्त लंड देखा था. उन्होंने मुझे दीवार की ओर मुँह करके खड़ा किया. वे मेरे पीछे चिपके खड़े थे, पर वे कद में मेरे से ऊंचे थे.
उन्हें मेरी गांड मारने में घुटने मोड़ना पड़ रहा था. फिर उन्होंने कुछ सोचा और किवाड़ खोल कर बाहर से पंचर जोड़ने में बैठने के काम आने वाली एक चौकी उठा लाए. अब उस चौकी पर प्रकाश भाईसाब ने मुझे खड़ा किया. मैं कुछ ऊंचा हो गया था, तो उनका हिसाब जम गया था.
उन्होंने अपने हथियार को सहलाया और वहीं ताक में रखी तेल की शीशी से तेल लेकर तबियत से लंड पर चुपड़ा, कुछ तेल अपने हाथ पर भी ले लिया, उस पर थूक भी दिया. अब वो तेल और थूक से लसड़ी उंगली प्रकाश भाईसाब ने मेरी गांड में डाली. उनकी उंगली मेरी खुलती बंद होती गांड में बड़े आराम से चली गई.
प्रकाश भाईसाब ने पहले एक उंगली से मेरी गांड को ढीला किया, फिर दो उंगलियां एक साथ पेल दीं. वे बड़ी देर तक अपनी दोनों उंगलियों को गांड के अन्दर बाहर करते रहे, फिर गोल गोल घुमाने लगे. वे यह सब काम बड़े आराम और इत्मीनान से कर रहे थे. उन्हें कोई जल्दी नहीं थी.
इसके बाद प्रकाश भाईसाब ने अपने मूसल लंड पर एक बार और तेल भरा हाथ घुमाया, फिर लंड हाथ से पकड़ कर मेरी गांड पर टिका दिया.
वे बोले- थोड़ी लगेगी बेटा, ढीली रखना कस्ती नहीं करना.
मैंने सर हिला दिया.
फिर लंड का सुपारा मेरी गांड पर टिका कर एक धक्का दे दिया. उन्होंने लंड का मोटा सुपारा गांड के अन्दर कर दिया. उनका लंड बहुत मोटा था, मेरी गांड का छेद तब काफी टाईट था क्योंकि अभी ज्यादा किसी से मरवाई नहीं थी.
मेरी दर्द से आह निकल गई. मैंने दांतों को भींच कर दर्द सहन कर लिया. उन्होंने लंड निकाला और मेरी गांड में अपनी उंगलियों को बड़ी देर घुमाया. फिर भी कितनी ढीली होती.
प्रकाश भाईसाब ने फिर से लंड पेला. मैं दर्द से कराहते हुए कर उठने लगा- आ आह … लग रही है … बस बस.
मैंने जब तक चूतड़ सिकोड़े, पर तब तक उन्होंने पूरा लौड़ा गांड के अन्दर कर दिया. मैं उनकी फुर्ती देख कर हैरान था. उन्होंने एक पल की भी देर नहीं लगाई थी. मेरी गांड में मानो बवाल हो गया था. मेरी नसें भिंच गई थीं. मगर लंड ने अन्दर अपना स्थान बना लिया था. मैं एक तरह से लंड के खूंटे पर टंग कर रह गया था.
अब भाईसाब मेरी कमर पकड़कर पीछे से चिपक गए. वे पुराने खिलाड़ी थे … मैं नया लौंडा था. भाईसाब एक हाथ मेरे गले से लपेटे थे दूसरे हाथ से कमर को जकड़ कर पकड़े हुए थे. मैं फड़फड़ा रहा था, पर कमर जरा भी नहीं हिला पा रहा था.
मैं- आह आह भाईसाब … बहुत मोटा है … गांड फट रही है … बहुत दर्द हो रहा है … जल्दी निकालो.
पर वे चिपके ही रहे, लंड पूरा पेले रहे.
भाईसाब बोले- अभी दर्द कम होता है … थोड़ा ठहरो … बस दर्द अभी छू मंतर हो जाएगा.
मैं बेबसी में सिर हिला रहा था और कराह रहा था- बाप रे बहुत मोटा है … फट गई … मेरी फट गई.
वे मुस्कराते हुए मुझसे बोले- पहले कभी कराई है?
मैंने हां में सिर हिलाया- एक बार.
वे आश्चर्य करके बोले- किससे?
मैं लखन की बात तो छिपा गया, पर उन्हें बताया कि सलीम से … उसने एक रात खलिहान में मेरी मार दी थी.
वे हंस पड़े- सलीम से … सच कहना अन्दर डाल पाया था या नहीं … उसने डाला भी था?
मैं चुप रहा तो वे बोले- चोरी पकड़ी गई न … तो तेरा ये पहली बार है, तभी तो इतनी परेशानी आ रही है. अभी ठीक हो जाएगी.
वे मुझे बहला रहे थे.
वैसे मैं खुद यह जान कर खुश सा था कि वे मेरी कमउम्र समझ कर ये मान रहे थे कि वे एक चिकने अनचुदे फ्रेश लौंडे की गांड मार रहे हैं.
उधर वे भी इसी बात से बड़े उत्साहित थे कि उनको कुंवारी गांड ओपनिंग का मौका मिल गया है.
पूरी इन्क्वारी के बाद उनको अपनी बात सही लगी, तो उनका जोश और भी बढ़ गया. इससे मुझे ये फायदा हुआ कि अब वे मेरी गांड को कोरी समझ कर लंड से धीरे धीरे धक्के देने लगे. वे बड़ी नजाकत से मेरी गांड में लंड अन्दर बाहर करने लगे. मुझे भी सही लगने लगा.
धीरे धीरे उनके झटकों की रफ्तार बढ़ गई. उनके झटके अब मेरे लिए गांड फाड़ू हो गए थे. मैं सोच रहा था कि कहां फंस गया, पर अब क्या हो सकता था. अब तो जब तक प्रकाश भाईसाब का लंड पानी नहीं छोड़ेगा, लंड गांड में झेलना ही पड़ेगा. उनके ताबड़तोड़ झटकों से मेरी गांड थोड़ी देर में ढीली पड़ गई, दर्द भी कम हो गया.
वे समझ गए कि मुझे मजा आने लगा है. तो बोले- हम्म … मजा आ रहा है न!
मैं मुस्करा दिया तो वे और जोरदारी से गांड पर पिल पड़े.
कोई दस मिनट बाद उनके धक्के थोड़े कम पॉवर के हो गए थे. अंत में वे मेरी गांड से चिपक कर रह गए. वे तेज फुहारा मारते हुए मेरी गनद में झड़ने लगे थे. लंड खाली करके उन्होंने लंड निकाल लिया और हांफते हुए स्टूल पर बैठ गए. मैं उनके सामने नंगा खड़ा था.
तभी एक चमत्कार हुआ. उस कमरे में पीछे की तरफ दो दरवाजे थे, एक कोने वाले दरवाजे का दरवाजा खुला, उसमें से सलीम निकल आया.
मैं नंगा खड़ा था, प्रकाश भाई साहब ने भी कपड़े नहीं पहने थे. वो एक साफी से अपना हथियार पौंछ रहे थे. सलीम सो कर उठा था इसलिए ऊंघ सा रहा था.
वो हम दोनों को देखता रहा. तब तक बाहर बरसात थम गई थी. प्रकाश भाईसाब को भी कोई काम याद आ गया था.
उन्होंने कपड़े पहन कर सलीम से कहा- आज मौसम ठीक नहीं है … अब शायद कोई ग्राहक नहीं आएगा. तुम दुकान बंद करके चाबी मेरे घर पर देते हुए चले जाना.
इतना कह कर वे साईकिल उठा कर चले गए.
सलीम ने दूसरा दरवाजा खोला, तो वो एक आंगन की ओर खुलता था. उसमें भी एक टीन शेड था. आंगन कच्चे फर्श का था … बीच में एक बड़ा नीम का पेड़ था. सामने लेट्रिन बाथरूम बने थे और पानी का एक मटका व कुछ बाल्टियां रखी थीं.
सलीम ने वहां जाकर मुँह धोया, आंखों पर छींटे मारे … थोड़ा जग से पानी पिया. फिर वो अन्दर आ गया. उसने उस दरवाजे को बंद किया और वही साफी उठा कर, जिससे भाई साहब अपना लंड पौंछ रहे थे, उसी से अपना मुँह पौंछने लगा.
मैं अपना झोला उठा कर चलने को हुआ, तो उसने मेरा हाथ पकड़कर रोक दिया. थैला मुझसे लेकर दीवार में बने एक आले में रख दिया.
अब वह हाथ पकड़ कर मुझे उसी कमरे में ले गया, जिसमें से वह आया था. वहां एक दस फीट लम्बा दस फीट चौड़ा एक छोटा सा कमरा था, जिसमें सामान के कार्टून छत तक भरे थे. केवल थोड़ी सी जगह खाली थी. उसमें एक सूती मोटी देशी करघे के द्वारा बुनी दरी बिछी थी. मैली सी, काली चीकट … जगह जगह मोबिल ऑयल के धब्बे थे. उसी पर ऐसा ही मैल से चीकट तकिया पड़ा था. सलीम मुझे उस कमरे में खड़ा कर गया और कुछ ही में लौट आया. वो उसी ताक से तेल की शीशी लेने गया था.
मुझे देख कर सलीम मुस्कुरा रहा था. उसकी आंखें चमक रही थीं. उसने कमरे में आकर अपना पैंट उतार दिया, साथ में गन्दी बदबू देती बनियान भी उतार दी. वह उसके नीचे कुछ नहीं पहने था. इस समय वो पूरा नंगा खड़ा था. उसका लंड भी पूरा तना था. उसने मेरा हाफ पैंट भी उतार दिया और शर्ट भी. फिर मुझसे लेटने को बोला, तो मैं उसी दरी पर सीधा लेट गया.
वो नाराज होकर बोला- यार नखरे नहीं कर … पोजीशन में आ जा.
उसने मुझे जोर लगा कर औंधा कर दिया. वो दरी बड़ी बदबू मार रही थी … मुझे मतली सी आने लगी थी. मैं चूतड़ ऊपर किए लेटा था, वह मेरे ऊपर चढ़ बैठा. उसने अपने लंड पर तेल चुपड़ा, मेरी गांड पर भी लगाया और लंड टिका कर धक्का देने लगा.
उसे हड़बड़ी थी, पर इस बार भी उसका लंड खिसक कर मेरे नीचे दोनों जांघों के बीच घिस रहा था.
मुझे हंसी आ गई.
वह बोला- क्या हुआ?
मैं बोला- लंड बाहर है.
वह अचकचा गया और बोला- नहीं यार!
फिर वो मेरे ऊपर लेटे हुए ही बैठ सा गया और उसने देखा- हां यार तुम सही कह रहे हो … मुझसे कई बार ऐसा हो जाता है. साला कोई बताता ही नहीं है, मगर तुमने बता दिया.
उसने फिर से लंड गांड पर रख पर उसे ठीक से घुसाया. मगर इस बार फिर ध्यान नहीं दिया, सो लंड फिर नीचे खिसक गया. वह मस्ती से धक्के देने लगा.
मैंने कहा- यार … देख तो ले किधर पेल रहा है.
उसने लंड देखा तो शर्मिंदा हो गया. साथ ही उसे समझ नहीं आया कि क्या करे.
फिर मैंने ही उसका लंड पकड़ कर अपनी गांड पर टिकाया और कहा- अब धक्का दे.
उसने लंड पेला, तो अब लंड गांड के अन्दर घुस गया था. मेरी गांड इस वक्त प्रकाश भाईसाब के लंड के कारण खुली हुई थी, सो मुझे कुछ दर्द-वर्द नहीं हुआ.
मैंने कहा- जल्दी नहीं मचा … धीरे धीरे डाल.
उसने स्लो मोशन में लंड अन्दर बाहर करना शुरू किया. अब उसका लंड मस्ती से गांड में अन्दर तक जाने लगा था.
जब पूरा लंड घुस गया तो मैंने कहा- डाले रखो … और चुपचाप मेरे ऊपर लेटे रहो … जब मैं कहूं, तब आगे पीछे करना.
वह बोला- अच्छा.
वो लंड पेले मेरे ऊपर चुपचाप लेट गया. उसने मेरे गाल पर गाल रख कर मेरे चूतड़ के दोनों तरफ अपनी टांगें फैलाए हुए उसने हरकत की, तो मैंने डांट दिया.
मैं- ड्रामा नहीं … मैं उतार दूंगा.
वह बोला- अच्छा ठीक है.
असल में वो अपने लंड में उठी सुरसुरी को कन्ट्रोल नहीं कर पाता था … शुरू होते ही झड़ जाता.
मैंने कहा- अब धीरे धीरे कर.
वो मान गया. थोड़ी देर बाद मैं फिर से उसे रोक दिया. वह हाथ पैर हिला रहा था, पर मान गया.
कुछ देर बाद मैंने फिर कहा- हां.
वो फिर से धीरे धीरे करने लगा.
फिर वो बोला- अब रुक नहीं पा रहा हूँ यार माफ करना.
उसने दो तीन ही जोरदार झटके दिए और झड़ गया. उसकी पिचकारी निकलते ही वो मेरे ऊपर से उठ गया. हालांकि अब भी उसका पानी निकल रहा था, जिस वजह से दरी गीली हो गई थी.
मेरी गांड मराने की सेक्स कहानी अभी बाकी है. फिर मिलता हूँ. मुझे मेल करके जरूर बताएं कि मेरी गे सेक्स कहानी कैसी लग रही है?
आपका आजाद गांडू
कहानी जारी है.