यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
← पहली बार गांड मराने का सुख-4
अब तक की मेरी इस सेक्स कहानी में आपने पढ़ा था कि मैं तीन साल बाद फिर से गांव आया था और इत्तेफाक से सलीम से मिला.
अब आगे:
तीन चार दिन बाद की बात है, मैं शाम को तालाब के किनारे सड़क पर से गुजर रहा था. ये हमारे शहर की एक खुली सड़क थी. लोग-बाग घूमते या तालाब की बाउंड्री वाल पर बैठ कर आम तौर पर गप्पें मारते दिख जाते थे.
मैं सड़क पर से निकल रहा था कि सलीम भाई जाते दिखे. वे खुद मेरे पास आए और मुझसे माफी मांगने लगे कि उस दिन आपको पहचान ही नहीं पाया, बहुत बड़ी भूल हो गई थी.
वे अपने दोनों कान पकड़ कर जीभ निकाल माफी मांगने लगे. यह माफी मांगने का हम लोगों का इस शहर का बचपन का तरीका था.
इस तरह से माफ़ी मागते हुए वे हंसने लगे. उन्होंने गुजारिश की कि घर चलिए. चूंकि वे मेरे पड़ोसी थे, मैं उनके घर चला गया. उधर उन्होंने मुझे अपनी बेगम से मिलवाया. कुछ देर रुकने के बाद मैं उनके घर से अपने घर आ गया.
अगले दिन मुझे वे फिर उसी सड़क पर फिर से दिखे. उस समय रात के नौ बज रहे थे. मैं एक रिश्ते की में शादी की दावत खा कर घर लौट रहा था. मेरे घर के सभी सदस्य अभी भी वहीं थे. वे सभी उस शादी में रात को वहीं रुकने वाले थे. मैंने वहां भीड़ में सोना पसंद नहीं किया, इसलिए मैं घर चला आया.
सलीम भाई होटल बंद करके लौट रहे थे. उनके साथ एक कोई साथी भी थे. सलीम भाई मुझे देखते ही लपक कर मेरे पास आए.
मैंने सलाम किया.
मैं उनके साथ एक साथी को देख कर बोला- आपको पहले कहीं देखा है.
सलीम बोले- पहचानो.
मैं नहीं पहचान सका.
सलीम भाई हंसे और कहने लगे- ये जावेद है.
जावेद भी तालाब की ओर इशारा करते हुए बोला- अरे … यहीं हम सब तैरना सीखते थे.
मुझे याद आ गया कि ये वही लड़का था, जिनकी गांड में नसीम ने दो उंगलियां ठूंस दी थीं. फिर बाद मैं हम सबके सामने ही दूसरे दिन रगड़ कर इसकी गांड मार दी थी. जावेद मुझसे दो क्लास आगे पढ़ता था.
मैंने पूछा तो जावेद बोला- मैं मेट्रिक पास करने के बाद हैदराबाद चला गया था. वहीं आगे की पढ़ाई की. अब्बा वहीं हैं. आजकल मैं उधर शेफ का कोर्स कर रहा हूं. मेरी डिग्री पूरी होने को है, बस मार्च में फाइनल है. इस शहर में मैं तीन साल बाद आया हूं. यहां रिश्ते में मौसी की लड़की की शादी में आया था. सब लोग शादी में गए थे, तो मैंने सोचा घर सोऊं.
जावेद मुझसे दो ढाई साल बड़ा था. वो इस समय शादी से लौटा था, तो बड़ा सजा धजा नमकीन सा लग रहा था. जावेद भी सलीम का पुराने पड़ोसी था.
सलीम ने कहा- चलिए घर चलते हैं … थोड़ी देर बात करते हैं. अब अकेले हैं तो मैं आपको घर छोड़ दूंगा.
हम सब पड़ोसी थे तो मैं इंकार नहीं कर पाया. हम सब साथ चलने लगे.
रास्ते में जावेद बोला- मैं भी आज रात घर में अकेला हूं … सलीम साहब भाभी को परेशान करेंगे, वे सो रही होंगी … मेरे घर चलो.
इस पर सभी की सहमति बन गई और हम लोग जावेद के घर पहुंच गए. जावेद ने घर खोला और वो हम दोनों को सीधे अपने बेडरूम में ले गया. वहां एक डबलबेड बिछा था. हम सब उसी पर बैठ गए, सलीम लेट गए.
जावेद ने नाश्ता बनाने का कहा तो मैंने कहा- हम और तुम तो शादी से लौटे हैं … डिनर कर आए हैं … सलीम भाई भी होटल से बढ़िया बिरयानी खाकर आए होंगे. जावेद तकल्लुफ न कर … बैठ जा.
पर वो माना नहीं, उठ कर तीन कप बढ़िया कॉफी बना लाया.
मैंने कहा- चलिए इसी से एक शेफ के हाथ का टेस्ट हो जाएगा.
सब हंसने लगे और बैठ गए.
सलीम ने बात शुरू की. मेरी ओर इशारा करके वे जावेद से बोले- जावेद, इनका मेरे ऊपर बड़ा अहसान है. इन्होंने ही मुझे मारना सिखाई … और लौंडे तो चूतिया बना देते थे … इन्होंने ही मुझे मेरी गलती बताई थी.
जावेद मुस्करा कर बोला- वाह भाई साहब … ये तो मेरे साथ बड़ी नाइंसाफी हुई. उन्होंने मरवाई तो इनका बड़ा अहसान … मेरी इनसे ज्यादा रगड़ी, तो कोई जिक्र नहीं.
सलीम- अबे तेरा भी अहसान है. तुम सही कह रहे हो, पर इनकी बात ये है कि इन्होंने बताया कि अभी हथियार बाहर घूम रहा है … फिर खुद मेरा पकड़ कर अपनी में डाला. एक बार नहीं … दो तीन बार मारने की स्टाइल समझाई.
सलीम भाई मेरी ओर अहसान भरी निगाहों से देख रहे थे.
कॉफ़ी के बाद सलीम भाई मुझसे बोले- आप भी कमर सीधी कर लें.
मैं शादी में जाने की वजह से अच्छे कपड़े पहने हुए था. मैं बताया तो वे बोले- तो कपड़े उतार कर आराम से बैठो न.
मैंने अपना पैंट शर्ट उतार कर टांग दिए. केवल बनियान अंडरवियर में आ गया.
मुझे देख कर जावेद एकदम से बोला- क्या बॉडी बना ली है भाई. तभी तो तुम पर भाईसाहब मरते हैं.
उसने ये कहते हुए मेरे चूतड़ों पर तो हाथ भी मार दिया.
सलीम- हां, अब तो ये और ज्यादा गबरू जवान और मारू हो गए. मोहल्ले की लड़कियां अकसर इनसे बात करने को तैयार रहती हैं.
मैं- अरे भाई साहब, हैंडसम तो अपना जावेद भी कम नहीं है … मुझे चने के झाड़ पर मत चढ़ाओ.
जावेद तुनक कर बोला- क्या मेरी मारोगे?
मैं- अरे यार नाराज न हो, अपन दोनों ही गांडू हैं … पहला हक तो सलीम भाई का बनता है, ये जिसकी मारना चाहें, मारें. फिर देखते हैं कि कौन किसकी मारता है.
सलीम भाई मेरी बात पर हंसने लगे और मुझे माशूक की नजरों से देखने लगे.
जावेद- तो फिर उतारो अपना अंडरवियर!
मैंने अपना अंडरवियर फौरन उतार कर पलंग के सिरहाने रख दिया और सलीम भाई के बगल में नंगा लेट गया.
सलीम- अरे … मैंने क्या कहा … जबरदस्ती कोई ऐसी बात नहीं की.
मैं- जावेद भाई ने कहा, तो मैंने ढक्कन उतार दिया. अब बिना करवाए नहीं पहनूंगा.
जावेद- अरे अरे …
मैं- भाई साहब अपने कपड़े उतारो और जावेद को कहें या न कहें, ये आपकी मर्जी.
जावेद बोला- भाई साहब अब उतार भी दो.
ये कह कर वो सलीम भाई के पैंट के बटन खोलने लगा. सलीम पैंट व अंडरवियर उतार कर मेरे ऊपर चढ़ गए. उनका लंड खड़ा हो गया था … हवा में उचक रहा था. सलीम भाई का लंड गांड को ऐसे सलामी देने लगा था, जैसे कह रहा हो कि ठहरो बस अभी घुसता हूं.
मैं औंधा हो गया और टांगें चौड़ा कर उनके नीचे लेटा था. मैंने भी तीन साल से नहीं कराई थी, तीन साल पहले एक बारात में मेरे एक रिश्ते के मामा मतलब मेरी मामी के भाई ने मेरी गांड मार दी थी. उसके बाद से लंड नहीं लिया था.
आज लंड पाने की आशा से उत्तेजना से मेरे चूतड़ थरथराने लगे थे. भाई साहब समझे ऐसा सर्दी से हो रहा है.
उन्होंने जावेद से तेल मांगा. जावेद झट से तेल ले आया. वो खुद अपने हाथों तेल सलीम के लंड पर मलने लगा.
फिर बोला- मेरी तो कई बार थूक से ही निपटा दी … गांड तीन दिन दर्द करती रही थी.
सलीम भाई हंस दिए और बोले- ला थोड़ा तेल हाथ पर डाल दे. उन्होंने मेरी गांड पर तेल मला, फिर दो उंगलियां गांड में पेल दीं. थोड़ा दर्द तो हुआ, पर मैंने आवाज रोक ली.
अब सलीम भाई ने लंड गांड पर टिका कर धक्का दे दिया. लंड अन्दर चला गया. मुझे दर्द हुआ मगर झेल गया. उन्होंने दूसरा धक्का दिया, तो पूरा लौड़ा सरसराता हुआ अन्दर घुसता चला गया. मेरे मुँह से ‘उंह … आह..’ की आवाज निकल गई.
सलीम- क्या हुआ … ज्यादा लग रही है क्या?
मैं- हंह … थोड़ी थोड़ी.
सलीम- गाड़ी रोक दूं?
मैं- नहीं भाई साहब शुरू हो जाओ.
जावेद हंस दिया- भाई पूरा पेल कर मजा लो … नीचे वाले को मजा आ रहा है.
उसकी कहने की स्टाइल से मैं भी हंस पड़ा. अब सलीम भाई लंड गांड में अन्दर बाहर अन्दर करने लगे.
उनकी रफ्तार एकदम से बढ़ गई और वो ‘दे दनादन … दे दनादन..’ चालू हो गए.
जावेद- भाई देख ले … बाहर तो नहीं है.
सलीम ने गांड के चारों तरफ उंगली घुमाई और बोले- अन्दर है बे … अब मैं अनाड़ी नहीं रहा.
जावेद हंस दिया.
फिर सलीम भाई थोड़ा रुके. उन्होंने दोनों हाथों से मेरे चूतड़ फैलाए … फिर जावेद को बुलाया. वह एकदम से पास आया.
जावेद- क्या हुआ?
सलीम भाई ने उसे दिखाया- देख … अन्दर है.
उसका हाथ पकड़ कर लंड के चारों ओर उसकी उंगली घुमाई. फिर उसकी ओर सिर कर बोले- है अन्दर … जांच लिया?
जावेद फिर हंसने लगा.
सलीम भाई फिर से लंड गांड के अन्दर बाहर करने लगे. तभी उनके धक्के एकदम से तेज हो गए … फिर वे ‘आंह आं..’ करते हुए मेरी गांड में ही झड़ गए.
लंड झाड़ने के बाद वे उठ गए, मैं लेटा रहा. वे बाहर लंड धोने चले गए.
जावेद मेरी ओर देखने लगा- उठो भाई … ज्यादा चिनमिना रही है क्या? लगता है भाई ने कसके रगड़ दी है.
मैं- जावेद, तू भी निपट ले.
जावेद- मैं निपटूंगा, तो फिर तुम घर नहीं जा पाओगे.
मैं- रात को यहीं सो जाऊंगा, आ जा.
जावेद- मैं रात भर रगडूँगा.
मैं- ठीक है आजा … फिर मत कहना कि मारने नहीं मिली.
जावेद का मन तो था ही, वो झट से अपना लोअर उतार कर मेरे ऊपर चढ़ बैठा. उसने लंड पर थूक लगाया और मेरी गांड में पेल दिया. लंड सटाक से घुस गया. वो शुरू हो गया. वह बड़े जोरों से उचक रहा था, साला इसीलिए जल्दी हांफने लगा. मेरे ऊपर लेटा हुआ ही फ्लैट हो गया.
मेरी गांड में अभी भी खुजली मच रही थी. मैंने चूतड़ उचकाने शुरू कर दिए व अपने होंठ खुद से जबरदस्ती बंद कर लिए.
तब तक सलीम भाई कमरे में आ गए. उन्होंने सीन देखा, तो वे हंसे और बोले- भाई रुको. ऊपर वाला झड़ गया है.
मैं सलीम भाई की आवाज सुनकर रुक गया.
जावेद मेरे ऊपर से उठ कर बाहर चला गया. मैं थोड़ी देर लेटा रहा. फिर मैं भी उठा, बाहर जाकर गांड धोई और लौट आया.
तब तक जावेद शायद लेट्रिन गया था. वो हाथ धोकर अन्दर आ गया.
मुझसे सलीम भाई कह रहे थे- भाई आप आज मेरी मार लो. तुमने तो कमाल कर दिया. आज दो लोग एक साथ कुछ ज्यादा नहीं हो गए. हमारा ऐसा कोई प्लान नहीं था; मैंने सोचा था कि बैठेंगे, बात करेंगे.
ये कहते हुए सलीम भाई ने पैंट पहन लिया था, उतारने लगे.
जावेद तब तक कमरे में आ गया.
उसने सलीम की ओर सवालिया निगाहों से देखा.
सलीम भाई- भाई ने दो से मस्ती से कराई … जबकि कोई प्लान नहीं था. मैं लाया था, वो कुछ कह नहीं रहा है, तो मेरा फर्ज बनता है न. मेरी दोस्ती में आया, अब मैं उसे मजा दूंगा.
जावेद- भाई साहब आप मुझसे बड़े हैं. मैं आपकी इज्जत करता हूं. ये आपके दोस्त हैं. आप इन्हें लाए, आपकी बात सच है. अभी आपने इनकी मारी, आप अहसान चुकाना चाहते हैं. आपने इनकी पहले भी मारी थी, आप कह रहे थे. लेकिन आपने कभी बताया नहीं कि कभी इन्होंने आपकी भी मारी थी?
सलीम- हां. आपको बता दूं कि इन्होंने मुझे गांड मारना सिखाया था तो मुझ पर इनका ज्यादा अहसान है. इनसे गांड कैसे मरवाऊं, यह भी मेरी मार कर सिखाया. ये मेरा दिल रखते हैं.
जावेद- सलीम भाई आप मेरे से बड़े हैं … आप सही कह रहे हैं. इनको मजा दिलाना आपका फर्ज है … आपकी जिम्मेदारी है. आप इन्हें लाए हैं. इन्होंने आपसे अभी करवाई है, अब मैं अपनी बात कहूं. इन्होंने मुझसे भी करवाई, तो इनका मेरे ऊपर भी अहसान हो गया है.
सलीम- यार जावेद तुमने दुनिया भर की बातें पूछी हैं, मैंने सब बता दीं. मगर तुम कहना क्या चाहते हो, मैं समझा नहीं हूँ, सीधे सीधे कहो.
जावेद- भाई साहब … आज ये मेरे गेस्ट हैं. मेरा भी फर्ज बनता है कि मैं इनकी खातिरदारी करूं. आपसे पहले मेरा ये फर्ज है. दूसरा इन्होंने मुझसे करवाई, मेरी कभी नहीं मारी … आपने तो मेरी कई बार मारी है, मगर मैं इनके लिए नया लौंडा हूं … इसलिए आज इनसे मैं करवाऊँगा.
यह कह कर उसने जल्दी अपना लोअर उतार दिया और पलंग पर औधा लेट गया.
सलीम भाई- भैया अब तो आपको इसी की बात मानना पड़ेगी, उतारो अपनी चड्डी और उस पर चढ़ बैठो.
बहसबाजी में थोड़ी देर हो गई थी, मेरा लंड बुरी तरह टनटनाने लगा था. मैं उस पर घुटनों केबल थूक लगाया और थोड़ा सा थूक उसकी गांड पर लगाकर लंड टिका दिया. लंड सैट करते ही मैं हल्के हल्के से धक्के दे दिए. मेरा सुपाड़ा गांड के छल्ले के अन्दर घुस गया. फिर मैंने उसके दोनों चूतड़ अपने दोनों हाथों से फैलाए और धीरे धीरे लंड घुसा दिया,
वह आआ करने लगा.
मैंने कहा- लग रही हो तो और धीरे करूं.
यूं ही उसके साथ बात करते करते मैंने पूरा लंड जावेद की गांड में डाल दिया. वह चूतड़ सिकोड़ने लगा तो मैं रूक गया. वह बुरी तरह से चूतड़ सिकोड़ रहा था. मैं चुपचाप करीब दो मिनट तक लंड अन्दर पेले रहा. फिर उसकी कमर में हाथ डाल कर हम दोनों करवट से हो गए.
अब उसका चेहरा सलीम भाई की तरफ था. मैंने धीरे धीरे धक्के देने शुरू किए. वह मुँह बनाने लगा, तो मैं रूक गया और उसके चूतड़ मसलने लगा. थोड़ी देर में उसने चूतड़ ढीले किए तो मैंने दो चार धक्के दे दिए.
फिर रूक कर पूछा- क्या बात है? मजा नहीं आ रहा है क्या?
वह बोला- तुम्हारा बड़ा है.
मैं जोर से हंस पड़ा- जावेद भाई तुम मुझसे बड़े हो. मैंने तुमसे शांति से पिलवा लिया. तुम पहली बार नहीं करवा रहे हो, मुझसे भी बड़े बड़े दोस्तों से करवाई होगी. कोई और बात है क्या?
वो बोला- कोई बात नहीं है यार … बस तुम जल्दी से कर लो.
मैंने उसे दुबारा औधा कर दिया. अब कुछ कहना नहीं था. मैं शुरू हो गया. वह औधा होकर मस्त लेट गया था. मैंने दो तीन धक्के जोरदारी से दे दिए. लंड पूरा अन्दर चला गया था. मैंने खेल शुरू कर दिया. लंड तेजी से अन्दर बाहर, अन्दर बाहर … करने लगा.
जावेद चूतड़ सिकोड़ने लगा. मैंने उसकी टांगें पकड़ कर चौड़ी कर दीं और उसकी गांड चुदाई में लगा रहा. उसके चूतड़ रिलैक्स हुए और गांड लंड की चोटों से ढीली पड़ गई. अब वह गांड फैलाए लेटा था. मैं आधा घंटे तक उसकी गांड मारता रहा. इसके बाद निपट सका.
मैंने जावेद की गांड से लंड खींचा और वहीं लेटा रहा. वह नीचे से उठ कर बाहर चला गया.
फिर मैं बाथरूम में गया. कुछ देर बाद हम दोनों कमरे में आकर चड्डी पहन कर बैठ गए. अब तक शायद तीन बज गए थे. डबल बेड पर हम तीनों सोए रहे. सुबह मेरी जल्दी नींद खुल गई. मैंने फ्रेश होकर मुँह धोया और चलने लगा.
जावेद ने रोका और सबको कॉफ़ी पिलाई. जाते जाते जावेद एकदम से मुझसे बोला- तुम्हें मेरी लेने में देर बहुत लगी थी. इतनी देर में हम दोनों ही निपट लिए थे.
सलीम भाई- तभी तो मैं इन्हें गुरू कहता हूं.
जावेद- ये वाकयी परफैक्ट हैं … एक्सपर्ट हैं. बहुत स्टेमिना है. वैसे भी हट्टे-कट्टे हैं.
मैं- आप दोनों का छोटा भाई हूं.
इस तरह उस रात की मस्ती खत्म हुई और मैं वापस शहर आ गया.
तो दोस्तो, मैंने अपनी इस सेक्स कहानी में मेरी पहली गांड मराई के अनुभव के साथ अपनी स्टेमिना को लेकर भी लिखा है. आपको मेरी गांड मराने की सेक्स कहानी कैसी लगी, मुझे अपना प्यार अवश्य दें.
आपका आजाद गांडू
धन्यवाद