अन्तर्वासना के सभी फैंस को नमस्ते, मैं अन्तर्वासना का बहुत बड़ा फैन हूँ और इसकी सारी कहानियां मैंने पढ़ ली हैं. मुझे उनमें से सनी शर्मा की कहानियां बहुत पसंद हैं.
अब मुझे लगता है कि मुझे भी यहां कहानियां पोस्ट करनी चाहिए।
मैं आपको अपना परिचय देता हूँ। मेरा नाम रघु पाठक उर्फ गांडू गरिमा है। गांडू गरिमा इसलिए क्योंकि मुझे पता नहीं कैसे गांड देने का शौक लग गया. वैसे तो मैं पूरा मर्द हूं। 5 फ़ीट 8 इंच गबरू जवान, गोरा रंग।
गांव में अच्छी धाक है हमारी … पर उन गांव वालों को नहीं पता कि इस गबरू रघु के पीछे एक छबीली गरिमा छिपी है।
अब मैं आपका परिचय कराता हूं अपने परिवार से, जिनका जिक्र आपको आने वाली कहानियों में मिलेगा। मेरे पिताजी एक प्राइवेट जॉब करते हैं और मेरी माँ जिनकी उम्र 42 वर्ष है, एक घरेलू औरत है, हालांकि वो बिल्कुल भी 42 वर्ष की नहीं लगती।
एक बड़ा भाई और एक छोटी बहन जो लखनऊ में पढ़ाई करती है और साथ साथ पढ़ाती भी है।
मैं आपको अपनी बहन के बारे में खुल कर बता दूं। उसकी उम्र 23 वर्ष है, रंग नार्मल गोरा है पर फिगर का क्या कहना … फिगर वो है कि 90 साल के बुजुर्ग का भी टनाटन खड़ा कर दे. वो भी सिर्फ़ देखने मात्र से।
उसकी गोल गोल चूचियाँ किसी भी ब्रा की कैद में नहीं आना चाहती. और गांड तो बिल्कुल नर्म जैसे रुई के फाहे … पर गांड की गोलाई और आकार किसी फुटबॉल से कम नहीं। वो जब भी बस में सफर करती होगी तो लोगों की तो लॉटरी लग जाती होगी।
जल्द ही मैं मैं आप लोगों को उसकी कहानियों से भी रूबरू करूँगा।
खैर अभी आप मेरे बारे में जान लीजिए, पहली बार मेरे साथ गांड चुदाई की घटना अस्वभाविक रूप से हुई थी और यह कहानी उसी के बारे में है. पर उसके बाद मैंने लोगों की नजर को पढ़ना सीख लिया कि कौन गांड का प्यासा है। मुझे गांड देने का शौक है पर मैं कोई किन्नर नहीं, मेरे पास 8 इंच का लन्ड भी है और एक परी सी गर्लफ्रेंड भी, जिसे भी 20 से ज्यादा बार चोद चुका हूं.
पर मुझे गांड देने में भी अलग ही सुख मिलता है। मेरी एक ख्वाहिश रही है जीवन भर कि मुझे कोई कोई ऐसी लड़की मिले जिसकी बड़ी बडी चूचियाँ और एक बड़ा सा लन्ड हो और मैं उससे शादी भी कर सकूं।
चलिए छोड़िये इन बातों को और आगे बढ़ते हैं कहानी पर।
बात ऐसी है कि उस दिन घर वालों से झगड़े के बाद मैं गुस्से में आकर घर से निकल गया. उस वक्त शाम के 7 बजे थे और गर्मी का मौसम था। मैं 18 वर्ष का था, गर्म खून था तो घर छोड़ कर भाग गया.
पर जैसे जैसे रात बीतती गयी और अंधेरा होने लगा; मेरे दिमाग ने काम करना बन्द कर दिया क्योंकि मैं अपने घर, गांव से काफी दूर जा चुका था और मुझे बहुत जोर की भूख लगी थी।
मैं घर वापस नहीं जाना चाहता था तो मैं एक पुराने रेलवे स्टेशन पर वही अंधेरे में बैठ गया।
मैं घर से भाग तो गया था पर मुझे समझ नहीं आ रहा था कि मैं क्या करूँ, कहाँ जाऊं?
मैं वही बैठकर सिसकारियाँ भर के रोने लगा. तभी वहां एक बाइक आयी, मैं डर के मारे छिप गया कि कहीं ये मेरे घर वाले तो नहीं जो मेरी खोज के लिए आये हों.
और तभी बाइक से एक आदमी उतरा जिसके हाथ में बैग था. मैं थोड़ा आशश्वत हुआ.
फिर बाइक चलाने वाले बन्दे से उसने थोड़ी बात की और बाइक चलाने वाला बाइक मोड़ कर वापस चला गया और बैग वाला आदमी स्टेशन पर आ गया.
पर मैं नीचे छिपा रहा।
वह आदमी फ़ोन निकाल कर यूज़ करने लगा। फ़ोन की रोशनी में मैंने उसका चेहरा देखा, लगभग 40-45 साल का रहा होगा, बड़ी बड़ी मूछें, भरा हुआ चेहरा, कुल मिला कर ठीक ठाक आदमी लग रहा था।
फिर उसने फ़ोन की लाइट ऑन की और बैग से कुछ निकाल कर खाने लगा।
रात के 10 बज रहे थे और खाने का सामान देख कर मेरी भूख दोगुनी हो गयी। मैं नीचे से ऊपर आया और लालसा भारी नजरों से खाने को देखने लगा. पहले तो उसने अनदेखा किया, फिर मुझे बुला कर खाने के लिए पूछा.
मैंने झट से हाँ बोल दी. पर टिफिन में एक ही परांठा था और उतने में कुछ नहीं होने वाला था. मैंने जल्दी से वह खा लिया.
तब तक वह आदमी बिल्कुल चुप था, जब मैं खा चुका तब उसने मेरे बारे में पूछा। उसने मुझे खाना दिया था तो वह मुझे भला आदमी लगा. मैंने उसे सब कुछ सच सच बता दिया।
कुछ देर वह चुप रहा फिर उसने मुझसे कहा कि यदि मैं चाहूं तो उसके घर चल सकता हूँ, उसका घर दो स्टेशन बाद ही है, वहां वो मुझे खाना खिलायेगा।
मैं कुछ सोचने के बाद तैयार हो गया।
कुछ समय पश्चात ट्रैन आ गयी, हम दोनों उस पर सवार हो गए. लगभग 25 मिनट बाद उसका स्टेशन आ गया.
उसका घर पास में ही था, उसने लॉक खोला, उसके घर कोई नहीं था, जब मैंने उनके बारे में पूछा तब उसने बताया कि सब शादी में गए हैं और मैं भी वहीं से लौटा हूँ. वो लोग कल शाम तक आएंगे।
अंदर आते ही उसने मुझे एक ढीला लोअर दिया औऱ बोला कि मैं चेंज कर लूं, तब तक वो कुछ खाने का जुगाड़ करता है।
मैं बाथरूम में हाथ मुँह धोकर लोअर और बनियान पहन ली और रूम में बैठ गया. वो किचन में था.
कुछ देर में उसने मुझे चाय टोस्ट दिया और शायद ढाबे से खाना ले आया. मैंने अकेले ही खाया, उसने खाने से मना कर दिया।
फिर हम लाइट ऑफ करके लेट गए। एक तो अनजान जगह, ऊपर से घर की टेंशन मुझे नींद ही नहीं आ रही थी और शायद उसको भी।
लगभग एक घंटे बाद वो उठा और बाथरूम गया. इस बार सिर्फ अंडरवियर में मेरे पास आ कर लेट गया। उसने धीरे से मेरी पीठ पर हाथ रखा मैंने डर से आंखें बंद कर ली.
फिर उसने मुझसे कहा- कितनी गर्मी है … तुम बनियान उतार क्यों नहीं देते।
मैं धीरे से बोला- नहीं ठीक है!
उसने बिना मुझसे पूछे लगभग जबर्दस्ती करते हुए मेरी बनियान मुझसे अलग कर दी।
मैं चुपचाप लेट गया. फिर वो धीरे धीरे मेरी नर्म गुदाज गांड पर हाथ फेरने लगा। मैंने उसका हाथ हटा दिया और उठ बैठा।
उसने लाइट ऑन की और मुझे बुरी तरीके से घूरा। उसने लाइट ऑन ही रहने दी और मेरे सामने ही अपनी अंडरवियर नीचे खिसका दी।
मैंने आंखें बंद कर ली। तब तो मुझे साइज का कुछ पता नहीं था पर अब लगता है उसकी बीवी उसको देती नहीं रही होगी तभी उसने ऐसी हरकत की. क्योंकि उसका लन्ड कुछ खास नहीं था, पतला था, शायद 5 इंच का रहा होगा. पर मेरे जैसे अनछुए के लिये तो उस समय वो किसी मोटे डंडे से कम न था।
वो मेरे पास आया और मेरे निप्पल पर अंगूठे से काटा, मैं चीख उठा।
उसने अपना लंड मेरे होंठों पर लगा दिया. मुझे कुछ पता नहीं था, वो मेरा मुँह खोलकर उसमें लन्ड अंदर बाहर करता रहा, मेरे मुंह के किनारों से थूक रिसता रहा.
कुछ देर ऐसा करने के बाद वो उठ कर चला गया. मुझे लगा कि मेरी जान बची. पर वह कुछ मिनट बाद ही फिर वापस आया। उसके हाथों में तेल की शीशी थी।
उसने मुझसे लोअर उतारने को कहा, मैंने बिना कुछ बोले लोअर उतार दिया। मेरी अंडरवियर उसने खुद पीछे से उतारी। उसने मुझे बेड पर झुका दिया औऱ खुद नीचे से मेरी गांड में तेल की शीशी पलटने लगा, तेल मेरी गांड के छेद से रिसता हुआ मेरी टांगों के रास्ते बिस्तर और फ़र्श पर फैल रहा था।
उसने अपनी एक उंगली तेल में डुबो कर मेरी गांड के छेद में डाल दी. दर्द से मेरी आँखों से आंसू निकल आये और मुख से चीख।
कुछ देर ऐसा करने के बाद वो बेड पर आ गया औऱ मेरे ऊपर सवार होकर मेरी गांड में अपना गर्म लोहा डाल दिया. उस रात मैं बहुत चीखा पर सारी चीखें कमरे में ही दब कर रह गयी। वो चीखें आंसू बनकर आंखों से छलकते रहे।
उसका बड़ा सा गोल पेट मेरी गांड पर थप थप की आवाज से टकराता रहा। मेरी आँखें बंद थी बस आंखों से आंसू रिस रहे थे। वो हवसियों की तरह मेरी पीठ पर अपने दांत धँसा रहा था और बीच बीच में अपना लन्ड निकाल कर मेरी गांड पर अपनी जीभ फिराता।
अंत में वह बहुत ही तेजी से धक्के देते हुए मेरी दोनों चुचियों को पानी पूरी ताकत से मसलते हुए मुझ पर निढाल होकर गिर पड़ा।
कुछ मिनट बाद उसने मुझे छोड़ दिया।
मैं वैसे ही गिर पड़ा, पूरी रात मुझे नींद नहीं आई।
सुबह 5 बजे ही मैं उठकर वहाँ से निकलकर घर की तरफ चल दिया. वो जग रहा था पर उसने एक बार भी मुझे नहीं रोका।
उस समय के लिये वह रात बहुत भयावह थी पर आज जब सोचता हूं तो लगता है कि काश आज फिर मेरे साथ ऐसा होता!
तो भाइयो, जल्द ही अपनी अगली सच्ची कहानी लेकर हाजिर हूँगा और उसमें आपका परिचय अपने घर के सदस्यों से भी करवाऊँगा।
उम्मीद है कि मेरे भाइयों को यह कहानी पसन्द आयेगी. मुझे मेल करियेगा, इससे मेरा उत्साह बढ़ेगा.
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