This story is divided into 4 parts:
शीला अब गर्म हो चली थी वो चुदास भरे स्वर में बोली- स्स.. कहिए ना पण्डित जी..
पण्डित- तुम्हारे स्तनों का स्पर्श तो..
शीला अपने मम्मों को और भी मस्ती से पण्डित की पीठ पे रगड़ने लगी.
शीला- तो क्या पण्डित जी?
पण्डित- मदहोश कर देने वाला है.. तुम्हारे स्तनों को हाथों में लेने के लिए कोई भी ललचा जाये.
शीला- स्सह्ह..
पण्डित- अब मैं सीधा लेटूंगा और तुम मुझ पर पेट के बल लेट जाना.. लेकिन तुम्हारा मुँह मेरे चरणों की ओर और मेरा मुँह तुम्हारे चरणों की तरफ़ होना चाहिये.
पण्डित पीठ के बल लेट गया और शीला पण्डित के ऊपर पेट के बल लेट गई.
शीला की टांगें पण्डित के चेहरे की तरफ़ थीं. शीला की नाभि पण्डित के लंड पर थी.. वह उसके सख्त लंड को गड़ता सा महसूस कर रही थी.
पण्डित शीला की संगमरमरी टांगों पे हाथ फेरने लगा.
पण्डित- शीला.. तुम्हारी टांगें कितनी अच्छी हैं.
पण्डित ने शीला का पेटीकोट ऊपर चढ़ा दिया और उसकी जांघें मसलने लगा.
उसने शीला की टांगें और फैला दीं. अब शीला की पेंटी साफ़ दिख रही थी.
पण्डित शीला की चूत के पास हल्के हल्के हाथ फेरने लगा.
पण्डित- शीला.. तुम्हारी जांघें कितनी गोरी और मुलायम हैं.
चूत के पास हाथ लगाने से शीला और भी गरम हो रही थी.
पण्डित- तुम्हें अब तक सबसे अच्छा आसन कौन सा लगा..?
शीला- स्स.. वो.. घुटनों के बल.. पीठ से पीठ.. नीचे से नीचे वाला.
पण्डित- चलो.. अब मैं बैठता हूँ.. और तुम्हें सामने से मेरे कंधों पर बैठना है.. मेरा सिर तुम्हारी टांगों के बीच में होना चाहिये.
शीला- जी..
शीला ने पण्डित का सिर अपनी टांगों के बीच लिया और उसके कंधों पर बैठ गई.
इस पोजीशन में शीला की नाभि पण्डित के होंठों पर आ रही थी.
पण्डित अपनी जीभ बाहर निकाल कर शीला की नाभि में घुमाने लगा. इससे शीला को बहुत मज़ा आ रहा था.
पण्डित- शीला.. आँखें बंद करके बोलो.. स्वाहा..
शीला- स्वाहा..
पण्डित- शीला.. तुम्हारी नाभि कितनी मीठी और गहरी है.. क्या तुम्हें ये वाला आसन अच्छा लग रहा है?
शीला- हाँ.. पण्डित जी.. ये आसन बहुत अच्छा है.. बहुत ही अच्छा अह..
पण्डित- क्या किसी ने तुम्हारी नाभि में जीभ डाली है?
शीला- आह्ह.. नहीं पण्डित जी.. आप पहले हैं.
पण्डित- अब तुम मेरे कंधों पर रह कर ही पीछे की तरफ़ लेट जाओ.. अपने हाथों से ज़मीन का सहारा ले लो.
शीला पण्डित के कंधों का सहारा लेकर लेट गई.
अब पण्डित के होंठों के सामने शीला की चूत थी.
पण्डित धीरे से अपने हाथ शीला के स्तन पे ले गया.. और ब्लाउज के ऊपर से ही दबाने लगा.
शीला भी यही चाह रही थी.
पण्डित- शीला.. तुम्हारे स्तन कितने भरे भरे हैं बहुत ही अच्छे हैं.
शीला- आह्ह..
शीला ने एक हाथ से अपना पेटीकोट ऊपर चढ़ा दिया और अपनी चूत को पण्डित के होंठों पे लगा दिया.
पण्डित कच्छी के ऊपर से ही शीला की चूत पे जीभ मारने लगा.
पण्डित- शीला.. अब तुम मेरी झोली में आ जाओ.
शीला फ़ौरन पण्डित के लंड पे बैठ गई.. उससे लिपट गई.
पण्डित- अह्ह.. शीला.. ये आसन अच्छा है?
शीला- स्स..स..सबसे.अच्छा.. ऊओ पण्डित जी..
पण्डित- ऊह्ह.. शीला.. आज तुम बहुत कामुक लग रही हो.. क्या तुम मेरे साथ काम करना चाहती हो..?
शीला- हाँ पण्डित जी.. स्सस.. मेरी काम अग्नि को शांत कीजिये.. ह्हह्ह.. प्लीज़..पण्डित जी..
पण्डित शीला के मम्मों को ज़ोर ज़ोर से दबाने लगा.. शीला बार बार अपनी चूत पण्डित के लंड पे दबाने लगी.
पण्डित ने शीला का ब्लाउज उतार कर फेंक दिया और उसके निप्पलों को अपने मुँह में ले लिया.
शीला- आअह्ह.. पण्डित जी.. मेरा उद्धार करो.. मेरे साथ काम करो..
पण्डित- बहुत नहाई है मेरे दूध से.. सारा दूध पी जाऊंगा तेरी छातियों का..
शीला- आअह्ह.. पी जाओ.. मैं क्क..कब मना करती हूँ.. पी लो पण्डित जी.. पी लो..
कुछ देर तक दूध पीने के बाद अब दोनों से और नहीं सहा जा रहा था.
पण्डित ने बैठे बैठे ही अपनी लुंगी खोल के अपने कच्छे से अपना लंड निकाला.. शीला ने भी बैठे बैठे ही अपनी कच्छी थोड़ी नीचे कर दी.
पण्डित- चल जल्दी कर..
शीला पण्डित के सख्त लंड पर बैठ गई.. लंड पूरा उसकी चूत में चला गया.
शीला- आअह्हह्हह.. स्वाहा.. कर दो मेरा स्वाहा.. आ..
शीला पण्डित के लंड पे ऊपर नीचे होने लगी. चुदाई ज़ोरों पर शुरू हो गई थी.
पण्डित- आह्हह.. मेरी रानी.. मेरी पुजारन.. तेरी योनि कितनी अच्छी है.. कितनी सुखदायी.. मेरी बांसुरी को बहुत मज़ा आ रहा है.
शीला- पण्डित जी.. आपकी बांसुरी भी बड़ी सुखदायी है.. आपकी बांसुरी मेरी योनि में बड़ी मीठी धुन बजा रही है.
पण्डित- देवलिंग को छोड़.. पहले मेरे लिंग की जय कर ले.. बहुत मज़ा देगा ये तेरे को..
शीला- ऊऊआअ.. प्प.. पण्डित जी.. रात को तो आपके देवलिंग ने न जाने कहां कहां घुसने की कोशिश की!
पण्डित- मेरी रानी.. आअ.. फिकर मत कर.. स्स.. तुझे जहाँ जहाँ घुसवाना है.. मैं घुसाऊंगा.
शीला- आअह्हह्ह.. पण्डित जी.. एक विधवा को.. दिलासा नहीं.. मर्द का बदन चाहिए.. असली सुख तो इसी में है. क्यों.. आआ.. बोलिए ना पण्डित जी.. आऐई..
पण्डित- हांन..आ..
अब शीला लेट गई और पण्डित उसके ऊपर आकर उसे चोदने लगा.
साथ साथ वो शीला के मम्मों को भी दबा रहा था.
पण्डित- आअह्ह.. उस.. आज के लिए तेरा पति बन जाऊँ.. बोल..!
शीला- आऐए.. स्सस.. ई.. हाअन्न.. बन जाओ..
पण्डित- मेरा लिंग आज तेरी योनि को चीर देगा.. मेरी प्यारी शीला..
शीला- आअह्हह.. चीर दो.. आअह्ह.. आह्हह्ह.. चीर दो ना.. आआह्ह..
पण्डित- आअह्हह.. ऊऊऊऊ..
दोनों एक साथ झड़ गए और पण्डित ने सारा वीर्य शीला की चूत के ऊपर झाड़ दिया.
शीला- आह्ह..
अब शीला पण्डित से आँखें नहीं मिला पा रही थी.
पण्डित शीला के साथ लेट गया और उसके गालों को चूमने लगा.
शीला- पण्डित जी.. क्या मैंने पाप कर दिया है?
पण्डित- नहीं शीला.. पण्डित के साथ काम करने से तुम्हारी शुद्धता बढ़ गई है.
कुछ देर दोनों मौन पड़े रहे और फिर शीला कपड़े पहन कर और मेकअप उतार कर घर चली आई.
आज पण्डित ने उसे देवलिंग बांधने को नहीं दिया था.
रात को सोते वक्त शीला देवलिंग को मिस कर रही थी.
उसे पण्डित के साथ हुई चुदाई याद आने लगी. वो मन ही मन में सोचने लगी कि पण्डित जी.. आप बड़े वो हैं, कब मेरे साथ क्या क्या करते चले गए..पता ही नहीं चला.. पण्डित जी.. आपका बदन कितना अच्छा है.. अपने बदन की इतनी तारीफ़ मैंने पहली बार सुनी है. आप यहाँ क्यों नहीं हैं.
शीला ने अपनी सलवार का नाड़ा खोला और अपनी चूत को रगड़ने लगी.
‘पण्डित जी.. मुझे क्या हो रहा है’.. वो ये बुदबुदाते हुए सोचने लगी.
चूत से हाथ की उंगली गांड पे ले गई.. और गांड को रगड़ने लगी.
‘ये मुझे कैसा रोग लग गया है.. टांगों के बीच में भी चुभन.. हिप्स के बीच में भी चुभन.. ओह..’
अगले दिन रोज़ की तरह सुबह 5 बजे शीला मन्दिर आई.. इस वक्त मन्दिर में और कोई नहीं हुआ करता था.
पण्डित ने शीला को इशारे से मन्दिर के पीछे आने को कहा.
शीला मन्दिर के पीछे आ गई.. आते ही शीला पण्डित से लिपट गई.
शीला- ओह.. पण्डित जी..
पण्डित- ओह्ह.. शीला..
पण्डित शीला को होंठों को चूमने लगा.. शीला की गांड दबाने लगा.. शीला भी कसके पण्डित के होंठों को चूम रही थी. तभी मन्दिर का घंटा बजा.. और दोनों अलग हो गए.
मन्दिर में कोई पूजा करने आया था.. पण्डित अपनी चूमा-चाटी छोड़ कर मन्दिर में आ गया.
जब मन्दिर फिर खाली हो गया तो पण्डित शीला के पास आया.
पण्डित- शीला.. इस वक्त तो कोई ना कोई आता ही रहेगा.. तुम वही अपने पूजा के समय पर आ जाना.
शीला अपनी पूजा करके चली आई.. उसका पण्डित को छोड़ने का दिल नहीं कर रहा था.
खैर.. वो 12:45 बजे का इन्तजार करने लगी. ठीक 12:45 बजे वो पण्डित के घर पहुँची.. दरवाज़ा खुलते ही वो पण्डित से लिपट गई.
पण्डित ने जल्दी से दरवाज़ा बंद किया और शीला को लेकर ज़मीन पर बिछी चादर पे ले आया.
शीला ने पण्डित को कस के बांहों में ले लिया.. पण्डित के चेहरे पर किस पे किस किये जा रही थी. अब दोनों लेट गए थे और पण्डित शीला के ऊपर था. दोनों एक दूसरे के होंठों को कस कस के चूमने लगे.
पण्डित शीला के होंठों पे अपनी जीभ चलाने लगा.. शीला ने भी मुँह खोल दिया.. अपनी जीभ निकाल कर पण्डित की जीभ को चाटने लगी.
पण्डित ने अपनी पूरी जीभ शीला के मुँह में डाल दी.. शीला पण्डित के दांतों पर जीभ चलाने लगी.
पण्डित- ओह.. शीला.. मेरी रानी.. तेरी जीभ.. तेरा मुँह तो मिल्क शेक जैसा मीठा है.
शीला- पण्डित जी.. आअ.. आपके होंठ बड़े रसीले हैं, आपकी जीभ शरबत है.. आआह्ह..
पण्डित- ओह्हह.. शीला..
पण्डित शीला के गले को चूमने लगा..
आज शीला सफ़ेद साड़ी-ब्लाउज में आई थी.
पण्डित शीला का पल्लू हटा कर उसके स्तनों को दबाने लगा.. शीला ने खुद ही ब्लाउज और ब्रा को निकाल फेंका.
पण्डित उसके मम्मों पर टूट पड़ा.. उसके निप्पलों को कस कस के चूसने लगा.
शीला- अह्हह्ह.. पण्डित जी.. आराम से.. मेरे स्तन आपको इतने अच्छे लगे हैं.. आऐईए..
पण्डित- हाँ.. तेरे स्तनों का जवाब नहीं रानी.. तेरा दूध कितनी मलाई वाला है.. और तेरे गुलाबी निप्पलों.. इन्हें तो मैं खा जाऊंगा.
शीला- आअह्हह्ह.. अह.. उई.. तो खा जाओ ना.. मना कौन करता है..
पण्डित शीला के निप्पलों को दाँतों के बीच में लेकर दबाने लगा.
शीला- आऐई.. इतना मत काटो.. आह्ह.. वरना अपनी इस भैंस का दूध नहीं पी पाओगे.
पण्डित- ऊओ.. मेरी भैंस.. मैं हमेशा तेरा दूदू पीता रहूँगा.
शीला- उई.. त..आआ.. तो..पी..अह्ह.. लो ना.. निकालो ना मेरा दूध.. खाली कर दो मेरे स्तनों को..
पण्डित कुछ देर तक शीला के स्तनों को चूसता, चबाता, दबाता और काटता रहा.
फिर पण्डित नीचे की तरफ़ आ गया.. उसने शीला की साड़ी और पेटीकोट उसके पेट तक चढ़ा दिए.. उसकी टांगें खोल दीं.
पण्डित- शीला.. आज कच्छी पहनने की क्या ज़रूरत थी!
शीला- पण्डित जी.. आगे से नहीं पहनूँगी.
पण्डित ने शीला की कच्छी निकाल दी.
पण्डित- मेरी रानी.. अपनी योनि द्वार का सेवन तो करा दे..
ये कह कर पण्डित शीला की चूत चाटने लगा.. शीला के बदन में करंट सा दौड़ गया. शीला पहली बार चूत चटवा रही थी.
शीला- आआह्हह्ह.. म.. म्म..म.. मेरी योनि का सेवन कर लो पण्डित जी.. तुम्हारे लिए सारे द्वार खुले हैं.. अपनी शुद्ध जीभ से मेरी योनि का भोग लगा लो.. मेरी योनि भी पवित्र हो जाएगी.. आआह्हह्हह..
पण्डित- आअह्ह.. मज़ा आ गया..
शीला- आअह.. हाँ.. हाँन.. ले लो मज़ा.. एक विधवा को तुमने गरम तो कर ही दिया है.. इसकी योनि चखने का मौका मत गंवाओ.. मेरे पण्डित जी.. आआईई..
पण्डित ने शीला को पेट के बल लिटा दिया.. उसकी साड़ी और पेटीकोट उसके हिप्स के ऊपर चढ़ा दिये. अब वो शीला के हिप्स पे किस करने लगा. शीला के हिप्स थोड़े बड़े थे.. लेकिन बहुत मुलायम थे.
पण्डित- शीला.. मैं तो तेरे चूतड़ पे मर जाऊं.
शीला- पण्डित जी.. आह्ह.. मरना ही है तो मेरे चूतड़ों के असली द्वार पर मरो.. आपने जो देवलिंग दिया था, वो मेरे चूतड़ों के द्वार पे आकर ही फंसता था.
पण्डित- तू फिक्र मत कर.. तेरे हर एक द्वार का भोग लगाऊंगा.
यह कह कर पण्डित ने शीला को घोड़ी बनाया.. और उसकी गांड चाटने लगा.
शीला को इसमें बहुत अच्छा लग रहा था.. पण्डित शीला की गांड के छेद को चाटने के साथ साथ उसकी फुद्दी को रगड़ रहा था.
शीला- आअह्हह.. चलो.. पण्डित जी.. अब स्वाहा कर दो.. ऊस्सशह्ह ह्हह्ह..
पण्डित- चल.. अब मेरा प्रसाद लेने के लिए तैयार हो जा.
शीला- आह्हह.. पण्डित जी.. आज मैं प्रसाद पीछे से लूँगी.
पण्डित- चल मेरी रानी.. जैसे तेरी मर्जी.
पण्डित ने धीरे धीरे शीला की गांड में अपना पूरा लंड डाल दिया.
शीला- आआअहह्ह..
पण्डित- आअह.. शीला प्यारी.. बस कुछ सब्र कर ले.. आह्ह..
शीला- आआह्हह्ह.. पण्डित जी.. मेरे पीछे.. आऐई.. के द्वार में.. आपका स्वागत है.. ऊई..
पण्डित- आअह्ह.. मेरे लंड को तेरा पिछला द्वार बहुत अच्छा लगा है.. कितना टाईट और चिकना है तेरा पीछे का द्वार..
शीला- आअह्हह.. पण्डित जी.. अपने स्कूटर की स्पीड बढ़ा दो.. रेस दो ना.. आअह..
पण्डित ने गांड में धक्कों की स्पीड बढ़ा दी.
फिर शीला की गांड से लंड निकाल कर उसकी फुद्दी में पेल दिया.
शीला- आई माँअ.. कोई द्वार मत छोड़ना.. आआह.. आपकी बांसुरी मेरे बीच के.. आह्ह.. द्वार में क्या धुन बजा रही है..
पण्डित- मेरी शीला.. मेरी रानी.. तेरे छेदों में मैं ही बांसुरी बजाऊंगा.
शीला- आअह्हह्हह.. पण्डित जी.. मुझे योनि में बहुत.. आअह.. खुजली हो रही है.. अब अपना चाकू मेरी योनि पे चला दो.. मिटा दो मेरी खुजली.. मिटाओ ना..
पण्डित ने शीला को लिटा दिया.. और उसके ऊपर आकर अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया. साथ साथ उसने अपनी एक उंगली शीला की गांड में डाल दी.
शीला- आअह्हह्हह.. पण्डित जी.. प्यार करो इस विधवा लड़की को.. अपनी बांसुरी से तेज़ तेज़ धुनें निकालो.. मिटा दो मेरी खुजली.. आहहह्हह्ह.. अ.आ..ए.ए..
पण्डित- आआह्हह्ह.. मेरी रानी..
शीला- ऊऊह्ह्ह.. मेरे राज्जाअ.. और तेज़.. औऊर्रर तेज.. आआह्हह.. अन्दर.. और अन्दर आज्जजाआ.. आअह्ह.. प्पप.. स.स..स..
पण्डित- आह्हह.. ओह्हह.. शीला.. प्यारी.. मैं छूटने वाला हूँ.
शीला- आअहह्ह.. मैं भी.. आआ.. ई.. ऊऊऊ.. अन्दर ही.. गिरा.. द.. दो अपना.. प्रसाद..
पण्डित- आह्हह..
शीला- आआह्हह्हह.. अ..अह.. अह.. अह.. अह..
स्वाहा.. चुद गई चुत और हो गया कल्याण.
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