यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
तभी जोर से बिजली कड़की. एक क्षण को तो पूरा आलम एक अत्यंत चमकदार रोशनी में नहा गया लेकिन इस के साथ ही लाइट चली गयी घड़ … घड़..घड़..घड़..धड़ाम … धड़ाम!!!! इतनी ज़ोर की आवाज़ आयी कि जैसे बिजली सामने सड़क पर ही गिरी हो. साथ ही बाहर जोरों की बारिश शुरू हो गयी.
मैंने ड्रेसिंग-टेबल पर पड़ा शमादान जलाया.
शमा जलते ही जैसे कमरे का माहौल ही बदल गया. शमा की झिलमिलाती रोशनी में दीवारों पर नाचते सायों और बाहर धुआंधार बारिश के शोर से एक अजब सा जादुई सा माहौल बन गया. मैं वापिस बैड की ओर लौटा और मैंने बेड पर बैठी आँख भर कर वसुन्धरा को देखा. दोनों पैर बेड पर, दोनों खड़े हुए घुटनों को अपने दोनों बाजुओं से क्रास पकड़ कर अपनी ठोड़ी घुटनों पर रख कर मेरी ओर गहरी नज़रों से देख रही वसुन्धरा किसी और ही आयाम की लग रही थी.
मैंने वसुन्धरा के पांव देखे. सुडौल और गोरे, लम्बी समान अनुपात में पतली गोरी उंगलियाँ … मैंने बहुत प्यार से वसुन्धरा के पैरों पर हाथ फेरा एक सिहरन की लहर मेरे और वसुन्धरा दोनों के जिस्मों में से गुज़र गयी.
मैंने झुक कर वसुन्धरा के बाएं पैर के अंगूठे और उंगली के बीच में एक चुम्बन ले लिया. वसुन्धरा के मुंह से एक लम्बी सीत्कार निकल गयी. मैंने फिर उसी जगह (पैर के अंगूठे और उंगली के बीच) अपनी जीभ टिका दी और जैसे और लोग जीभ से योनि-भेदन करते हैं ठीक वैसे ही अपनी जीभ वसुन्धरा के पैर के अंगूठे और उंगली के बीच की जगह में आगे घुसाने लगा.
क्षणभर में ही वसुन्धरा पर इस की बड़ी विस्फ़ोटक प्रतिक्रिया हुई- सी..ई … ई..ई … हाय नहीं … सी..ई … ई..ई..हाय नहीं … बस बस … आह … ह … ह!
कहते-कहते वसुन्धरा ने मेरे सर के बाल पकड़ लिए और बहुत बेदर्दी से मुझे बेड पर अपने ऊपर खींच कर मेरे होठों पर अपने होंठ रख कर मेरे होंठ चूमने लगी … चूमने क्या लगी, यहां-वहां काटने लगी.
मैंने अपने दोनों हाथों से वसुन्धरा का चेहरा कनपटियों पर से थामा और पहले तो वसुन्धरा चेहरे पर, माथे पर, गालों पर, कानों पर कानों की लौ पर, चिबुक पर और यहां-वहां ढेर सारे चुम्बन लिए और फिर उसके दोनों होंठ अपने मुंह में लेकर मज़े-मज़े से चूसने लगा.
मारे काम-हिलौर के, वसुन्धरा बिस्तर पर पीछे सीधी लेट गयी और बुरी तरह छटपटाने लगी. कभी मेरे कंधे पकड़ कर मुझे पीछे हटाए, कभी मेरे सर के बाल नोचे लेकिन मैं वसुन्धरा को ना छोड़ने के लिए दृढ़प्रतिज्ञ था.
धीरे-धीरे मैंने अपने दोनों हाथों की उँगलियों में वसुन्धरा के दोनों हाथों की उंगलियां पकड़ ली और वसुन्धरा के शरीर पर लंबवत लेट गया. मेरे पेट तक का ऊपर का हिस्सा वसुन्धरा के पेट और वक्ष के ऊपर और टाँगें वसुन्धरा के शरीर के बायीं ओर साथ साथ. वसुन्धरा के दोनों होंठ मेरे होंठों की गिरफ़्त में थे और जैसे ही मैं उसके ऊपर या नीचे वाले होंठ पर अपनी जीभ फेरता, वसुन्धरा का पूरा शरीर तन जाता और सिहरन की लहरें वसुन्धरा के शरीर में उठनी शुरू हो जाती.
मैंने अपनी बायीं टांग आधी मोड़ कर वसुन्धरा के शरीर पर रख दी. मेरा बायां घुटना वसुन्धरा की जलती-धधकती योनि के ठीक ऊपर था. मैं अपना बायां घुटना वसुन्धरा की योनि पर ऊपर-नीचे रगड़ने लगा और हर बार वसुन्धरा की साड़ी मेरे पैर की ऊपर-नीचे की जुम्बिश के साथ थोड़ा और ऊपर खिसकने लगी.
पहले तो वसुन्धरा को इस बात का पता ही नहीं चला लेकिन जैसे ही उसे इस बात का इल्म हुआ तो फ़ौरन वसुन्धरा ने अपना दायां हाथ जबरन मेरे बाएं हाथ की ग़िरफ़्त से छुड़वाया और घुटनों से ऊपर उठ चुकी साड़ी वापिस नीचे व्यवस्थित करने लगी. मैंने भी उसके इस काम में कोई बाधा नहीं दी.
भारतीय नारी के सदियों से ओढ़े हुए शर्मो-हया के परदे पहली ही मुलाक़ात में कहाँ उठते हैं?
इसी बीच मैंने वसुन्धरा का दूसरा हाथ भी अपनी पकड़ से आज़ाद कर दिया. अपनी अस्त-व्यस्त साड़ी को अपनी ओर से व्यवस्थित कर के वसुन्धरा ने अपने दोनों हाथों से मुझे अपने आलिंगन में कस लिया. मैंने तत्काल सर उठा कर सीधे वसुन्धरा की आँखों में शरारत भरी आँखों से झाँका. फ़ौरन वसुन्धरा ने अपना चेहरा अपने दोनों हाथों से ढक लिया.
भोली वसुन्धरा! अपना चेहरा तो अपने हाथों से ढक लिया लेकिन उसकी सारी की सारी देह-राशि तो मेरे सामने खुली पड़ी थी.
मैंने फ़ौरन अपने दोनों हाथ वसुन्धरा के कंधों पर रखे और कोमलता से धीरे-धीरे ‘v’ के आकार में नीचे की ओर लाने लगा. पहले कन्धों की मांसपेशियां, फिर ब्रा के स्ट्रैप के बाद हंसली की हड्डी और ऊपरी पसलियां की नर्म त्वचा और फिर ब्लाउज़ के ऊपर दो पर्वत-श्रृंगों पर मेरे दोनों हाथ जम गए. दोनों हाथों की आठों उंगलियां वक्षों के उभार जहां से शुरू होते हैं, वहां जमी थी और दोनों अंगूठे दोनों उरोजों के मध्य दरार में एक-दूजे से सटे हुए थे. मेरी हथेलियों के मध्य-भाग दोनों पर्वत शिखरों को ढके हुए थे.
और धीरे-धीरे मैंने अपनी दसों उँगलियों को ऊपर की ओर जुम्बिश देनी शुरू की और अपनी हथेलियाँ ठीक ऐसे ऊपर को उठाने लगा जैसे छतरी बंद करते हैं. तत्काल वसुन्धरा के मुंह से आनंदप्रद सिसकारियों का सिलसिला शुरू हो गया. वसुन्धरा के वक्ष पर मचलती मेरी उँगलियों की जुम्बिश और वसुन्धरा के मुंह से निकलने वाली सिसकारियों की तेज़ी में ग़ज़ब का तारतम्य था.
जैसे जैसे मेरी उंगलियां पर्वतों के शिखरों के पास, और पास पहुँचती जा रही थी वैसे वैसे वसुन्धरा के मुख से निकलने वाली सिसकारियों में तेज़ी आती जा रही थी- आह … हा..हा.. आह..सी.. ओह … सी..ई..ई … ई … ई!
वसुन्धरा रह रह कर दांत किटकिटा सी रही थी और उसके मुंह से निकलने वाली सीत्कारों का कोई ओर-छोर नहीं था.
अचानक ही वसुन्धरा ने अपने दोनों हाथ अपने चेहरे से उठा कर मेरे सर को दोनों कानों के पीछे से थाम लिया और अपने लब मेरे लबों पर टिका दिए. मैंने मौके का फायदा उठाया और फ़ौरन अपनी जीभ वसुन्धरा के मुंह में डाल दी. वसुन्धरा बड़ी आतुरता से मेरी जीभ चूसने लगी और उसके दोनों हाथों की दसों उंगलियां मेरे सर में यहां-वहां गर्दिश करने लगी.
ऊपर की ओर बढ़ती मेरे दोनों हाथों की उँगलियां बस, दोनों शिखरों तक पहुँचने ही वाली थी कि पर्वत शिखरों की ऊंचाई और बढ़ने लगी और साथ ही मेरी उँगलियों के पोरुओं तले पर्वतों का तल कुछ-कुछ कठोर हो उठा था. वसुन्धरा के दोनों वक्षों के निप्पल धीरे-धीरे तनने, सख़्त और सख़्त होने लगे थे. क्षण-भर बाद ही मेरी उँगलियों के पोरुओं की गिरफ़्त में सिर्फ दो निप्पल ही थे.
कुछ कुछ नर्म, कुछ कुछ कठोर … मैंने अपने दोनों हाथों से हल्का सा दबा कर दोनों निप्पलों की सख्ती को जांचा.
वसुन्धरा का प्रत्युत्तर बहुत उत्तेजक और अप्रत्याशित था. वसुन्धरा ने तत्काल एक घुटी-घुटी सिसकी ली और मेरी जीभ इतनी जोर से अपने मुंह के अंदर खींची जैसे वो मेरी जीभ को अपने अंदर उतार लेना चाहती हो.
जवाब में मैंने वसुन्धरा के दोनों निप्पलों को जरा सा और भींच दिया. वसुन्धरा का मुंह खुला और उसके मुंह से जोर से ‘आह’ की सिसकारी निकली और इसके साथ ही मेरी जीभ वसुन्धरा की पकड़ से छूट गयी. मैंने फ़ौरन वसुन्धरा के ब्लाऊज़ के हुक खोलने शुरू किये और दो क्षण में ही वसुन्धरा के ब्लाऊज़ दोनों पटल दाएं-बाएं खुले पड़े थे और अंदर लेसिज़ वाली डिज़ाईनर ब्रा में दो हंसों का जोड़ा अपनी झलक से वातावरण चकाचौंध करने लगा.
इससे पहले कि वसुन्धरा कुछ शर्मो-हया दिखाती, मैंने फ़ौरन वसुन्धरा की दायीं कोहनी मोड़ कर उसकी बाज़ू ब्लाऊज़ की पकड़ से आज़ाद कर दी और अपना बायां हाथ उसकी बगल में से पीछे ले जा कर ब्रा का हुक खोल दिया और साथ ही अपना हाथ बाहर खींचते हुए साथ ही मेरी बायीं ओर वाला ब्रा का स्ट्रैप वसुन्धरा की पीठ से बाहर खींच कर वसुन्धरा की दायीं बाजू को ब्रा की पकड़ से भी आज़ाद दिया.
बस … पर्दा उठने को था और हंसों के इस अछूते जोड़े पर मेरी पूरी मनमानी चलने को थी. जैसे ही वसुन्धरा का वक्ष अर्ध-नग्न हुआ, एक मोहक, नशीली सी काम-आह्लादित करने वाली तीक्ष्ण गंध मेरे नथुनों में प्रवेश कर गयी. यूं कमरे में सर्वत्र काम-गंध तो पहले से ही छायी हुई थी.
मैंने अपनी बायीं ओर ज़रा झुक कर वसुन्धरा की दायीं बगल से ज़रा नीचे इक भरवां चुम्बन लिया और मेरे होंठों ने एक एक चुम्बन लेते हुए वसुन्धरा के दाएं उरोज़ के निप्पल की ओर बढ़ने का मोहक और नशीला सफर शुरू किया.
“सी..ई..ई … ई … ई …!..आ … आ … आ..आ … ह … ह … ह! … ऊ..ऊ … ऊ..फ़!” मेरे हर चुम्बन के साथ साथ वसुन्धरा के मुंह से जैसे एक दीर्घ ग़ुर्राहट सी निकलती.
वसुन्धरा के दोनों हाथों से मुझे अपने साथ कसे हुए थी, मेरा दायां हाथ अभी भी वसुन्धरा के ब्रा के ऊपर से ही वसुन्धरा के बाएं वक्ष के निप्पल के साथ अठखेलियां कर रहा था.
अब मेरे लबों का सफ़र वक्ष के ऊपर पड़े ब्रा के कप की वजह से थोड़ा सा दुश्वार होने को था कि तभी आनंद की किलकारियों से सराबोर वसुन्धरा ने अपने दाएं हाथ से अपने ब्रा का कप ज़रा सा ऊपर उठा कर मेरे होंठों को अपना सफर जारी रखने का मौन निर्देश जारी किया.
और इसके साथ ही शमा की झिलमिलाती रोशनी में मुझे वसुन्धरा के दाएं अमृत-कलश की पहली झलक मिली … सुडौल, झक सफ़ेद, नर्म-गर्म गोलाकार गुंबद के शीर्ष के चारों ओर एक रूपये के सिक्के के आकार का थोड़े गहरे रंग का वलय और शीर्ष पर मटर के दाने जिनता अमृतकलश का शिखर.
यही ज़न्नत थी और मेरे होंठ इस जन्नत का लुत्फ़ लेने से एक-डेढ़ इंच ही दूर थे. मैंने जीभ निकाल कर उस मटर के दाने को हल्का सा बस छुआ भर ही. वसुन्धरा के शरीर में एक छनाका सा हुआ और वसुन्धरा सिहर-सिहर उठी, हम दोनों के जिस्म का रोआं-रोआं खड़ा हो गया और उत्तेजना की एक तीखी लहर हमारे जिस्मों में से गुज़र गयी.
मैंने आगे झुक कर वसुन्धरा के दाएं निप्पल को अपने मुंह में लिया और उसे अपने होंठों और जीभ से चुमलाने लगा. तत्काल वसुन्धरा मेरा सर अपने हाथों में ले अपने उरोजों पर दबाने लगी और उसके मुंह से आहों-कराहों तूफ़ान फ़ट पड़ा- आह … उफ़ … हा … उई … ई … ई … हक़्क़ … सी … इ … इ … ई … ई … आह … उफ़ … हाय … जोर से करो राज … यस … यस … ओ गॉड! सी..इ … इ … इ … ई … ई … ई!
वसुन्धरा की देह में काम-प्रवाह अपने चरम पर था. वसुन्धरा ने जल्दी-जल्दी अपने शरीर से ब्लाउज़ और अंगिया को मुक्त किया और मेरा दायां हाथ उठा कर अपने बाएं उरोज़ पर रख कर मेरे हाथ के ऊपर से ही अपने हाथ द्धारा अपने उरोज़ को दबाने लगी और मेरे धड़ का नीचे का हिस्सा नीचे से साड़ी समेत अपनी दोनों टांगों की कैंची में बाँध लिया.
और वो अपने दाएं हाथ से मेरी शर्ट के बटन खोलने की कोशिश लगी.
मैंने महसूस किया कि मेरे ज्यादा नर्मी दिखाने की वजह से वसुन्धरा मुझ पर हावी होने की कोशिश कर रही थी. यह तो सरासर मेरे पौरूष को खुली चुनौती थी और ऐसा तो मैं होने नहीं दे सकता था.