यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
सुहाना मुझे कहानी सुनाना जारी रखे हुए है:
साहिल ने काफी देर तक अपने लंड को चुसवाता रहा, मेरा मुंह दर्द करने लगा, लेकिन वो मान नहीं रहा था, ‘बस जान, थोड़ा और चूसो…’
और जब तक लंड वापस तन कर टाईट नहीं हो गया, तब तक वो माना नहीं, तनने के बाद बोला- देखो अब तुम्हारी गांड का क्या करता हूँ!
कह कर पीछे आया, मेरी कमर को अच्छे से पकड़ लिया, अपने पैरों को हल्के से मोड़ लिया, अपने लंड को मेरी गांड के अन्दर डाला और फिर लगा धक्के पे धक्का देने।
अब वो मेरी गांड की चुदाई ही कर रहा था, मैं उम्म्ह… अहह… हय… याह… कर रही थी और शीशे में उसको मेरी गांड का बाजा बजाते हुए बस देखती रही… वो बीच-बीच में लंड को बाहर निकालता और गांड के अन्दर थूकता और फिर चुदाई शुरू कर देता!
बहुत देर तक वो ऐसे ही करता रहा, उस पोजिशन में खड़े होने से मेरी कमर, घुटने और पैर दर्द करने लगे थे लेकिन साहिल को इसकी कोई चिन्ता नहीं थी, जब तक उसके लंड ने हार नहीं मान ली तब तक साहिल ने न तो मुझे आराम करने दिया और न ही अपने लंड को।
जब उसका पानी निकलने वाला था तो उसने मेरे सामने आकर अपना सारा माल मेरे चेहरे पर गिरा दिया.
‘ये क्या किया?’
‘सॉरी यार निकल गया!’
मेरे पूरा चेहरा चिपचिपाने लगा, साहिल के कहने पर मैंने उसके स्पर्म को चाट-चाट कर साफ किया और फिर वाशरूम में जाकर अपने चेहरे को धोया।
मुझे गुस्सा बहुत आ रहा था, लेकिन साहिल के मनाने पर मैं मान गई।
‘फिर आगे क्या हुआ?’
बस फिर हम लोगों की जिन्दगी ऐसे ही चलती रही, पर एक दिन ऐसा आया कि साहिल मुझे छोड़कर इस दुनिया से चला गया.
इतना बताने के साथ ही सुहाना रोने लगी।
मैंने सुहाना को चुप कराया।
उसकी कहानी सुनने के बाद और उसके साथ बिताये पलों ने मुझे एक निर्णय लेने के लिये बाध्य किया और इसी बाध्यता से मैंने सुहाना को उसका सुहागरात का जोड़ा पहन कर आने को कहा.
इधर मैं तब तक अपने कमरे में आकर जो सबसे अच्छा वाला कुर्ता पजामा का सेट था, उसे पहन लिया।
वापस आया तो सुहाना अभी भी कमरे से बाहर नहीं निकली थी, मैंने आवाज दी तो उसके दो मिनट बाद ही सुहाना बाहर आई क्या लग रही थी… लाल साड़ी में वो बिल्कुल मेरे दिल की रानी लग रही थी, मांग टीका लगाये हुए थी, बड़ी सी नथनी पहने हुए थी, मतलब पूरी सुहागन सी लग रही थी, चेहरा उसका दमक रहा था.
मैंने अपना हाथ उसकी तरफ बढ़ाया, उसने भी अपना था मेरी तरफ बढ़ाया, मैंने उसकी उंगली पकड़ी और धीरे से लाकर पलंग पर बैठा दिया, हल्का सा घूंघट ओढ़ लिये हुए था, उसके जिस्म से इत्र की महक आ रही थी।
मैंने उसके घूंघट को हटाया और उसकी आँख में आँख डालते हुए बोला- क्या तुम मुझसे शादी करोगी?
बस इतना सुनना था कि उसके आँखों के किनारे से एक बार फिर आंसू बह चले थे.
मैं उन आँसुओं को पौंछते हुए बोला- सुहाना, इस समय मेरे पास तुम्हें देने को कुछ नहीं है। कल हम दोनों किसी मंदिर में जाकर शादी करेंगे और उसके बाद कोर्ट में जाकर शादी की ऐप्लिकेशन देंगे, तभी तुम जो चाहो अपनी पसंद की चीज मुझसे ले लेना।
‘अब मेरी पसंद सिर्फ आप हो, मुझे कुछ नहीं चाहिये।’
‘तो क्या तुम्हारी इजाजत है सुहागरात मनाने की?’
‘अब तो मैं तुम्हारी हूँ जो चाहो मना लो।’
‘हाँ, अभी तक तुम सिर्फ मेरे लिये एक औरत थी जिसकी प्यास मुझे बुझानी थी और जिससे मुझे मजा चाहिये था, लेकिन अब तुम मेरी पत्नी हो, जिसके साथ मैं जीवन बिताना चाहता हूँ।’
मेरा इतना कहना ही था कि उसने अपना सिर मेरे सीने में रख दिया।
मैं जानता हूँ जो सुहागरात मैं मनाने जा रहा हूँ वो उत्साह से पूर्ण नहीं होगी, लेकिन फिर भी मैं अपनी इस सुहागरात को यादगार मनाना चाहता था, जिसके दो कारण थे एक तो सुहाना जो वास्तव मैं बहुत खूबसूरत थी जिसका साथ पाने के लिये लोग सपने देखते थे, दूसरा वो जिस्म के साथ-साथ दिल की भी काफी खूबसूरत थी।
मेरे दिमाग में चल रहा था कि मैं कैसे-कैसे और क्या-क्या करूँ कि मेरी सुहागरात यादगार बन जाये।
मैं और सुहाना हौले से सरकते हुए अपने जिस्म को बिस्तर पर फैलाने लगे, सुहाना अभी भी मेरी बांहों में थी लेकिन इस समय वो मेरी दुल्हन थी जो पूरे कपड़े में थी। हम दोनों ही पूर्ण रूप से बिस्तर पर लेट गये, उसका सिर मेरी बांहों में था, उसने अपनी आँखें बन्द कर ली थी, उसका सर मेरे एक हाथ में था और दूसरे हाथ से मैं उसकी बिखरी हुई लटों को समेटने की कोशिश कर रहा था, दुल्हन के रूप में आसमान से उतरा हुई चाँदनी मेरी बाँहों में थी।
सुहाना की पलकें अभी भी बन्द थी मैंने उसके मस्तक को चूमा, उसके गालों को सहलाते हुए उसकी दोनों आँखों को चूमा, फिर गालों की बारी आई और फिर अधरों पर मैंने एक हल्का सा चुंबन जड़ दिया.
उसके बाद मैंने अपनी जीभ उसके अधरों पर फिराई और उसके कान पर हल्का सा दाँत गड़ा दिया, फिर गर्दन को चूमते हुए मैं उसके स्तनों के पास आया और ब्लाउज के ऊपर से ही उसके स्तनों के चारों तरफ अपनी उंगली को चलाने लगा और धीरे से दोनों स्तनों को दबा दिया.
पल्लू से अभी भी उसके जिस्म के आगे का हिस्सा ढका हुआ था, मैंने उसके पल्लू को एक किनारे किया और नाभि पर एक चुम्बन जड़ दिया, वो थोड़ा कसमसा गई, फिर मैंने उसके नाभि पर अपनी जीभ फेरानी शुरू की, मेरा हाथ उसके एड़ी की तरफ गया वहाँ से उसकी साड़ी को ऊपर की तरफ सरकाने लगा और उसकी चिकनी जांघों को सहलाता जा रहा था, मैं लगातार उसकी नाभि और पेट पर अपनी जीभ चलाये जा रहा था और साथ ही उसके दोनों पैरों को भी सहलाता जा रहा था.
उसकी सांसें कुछ तेज सी चलनी शुरू हो गई थी। मेरे हाथ खासतौर से उसके घुटने के ऊपर और जांघों के आसपास चलते जा रहे थे। टहलते हुए मेरे हाथ सुहाना के बीचोंबीच भाग के ऊपर चले गये, यह क्या वो पैन्टी भी पहने हुए थी।
उसकी चूत के साथ-साथ सुहाना के गालों को सहलाते हुए बोला- तुमने आज मेरे लिये दो सेट ब्रा पैन्टी का खरीदा था क्या?
उसकी पलकें खुली मेरी तरफ देखा और अपने सर को न में हिला दिया.
‘फिर अभी जो लाई थी, वो तो वो पड़ी हुई है?’ मैंने जमीन पर पड़ी हुई उसकी पैन्टी-ब्रा की तरफ इशारा करती हुये कहा।
‘ये भी ब्रा-पैन्टी मेरी शादी के समय की है, हलाँकि ये मुझे बहुत टाईट हो रही है, लेकिन तुम्हारे लिये पहनी है!’
‘इसका मतलब तुमने इसे अपनी नौकरानी को नहीं दिया?’
सुहाना ने मेरी बात का जवाब नहीं दिया।
अब मेरी एक उंगली उसकी पैन्टी के अन्दर घुस चुकी थी और उसके यौवन क्षेत्र को सहलाने की कोशिश कर रही थी, लेकिन मेरी उंगली गीली हो चुकी थी, फिर भी मेरी उंगली उसकी गीली चूत पर चलती रही, मैं कभी पैन्टी के अन्दर उंगली उसकी चूत के अन्दर डालता तो कभी पैन्टी के ऊपर उसकी फूली हुई पावरोटी के समान चूत को सहलाता और उसके होंठों का रसास्वादन धीरे-धीरे करता जाता और बीच-बीच में उसके दूध को ब्लाउज के ऊपर से ही मसलता।
फिर मैंने उसके ब्लाउज को खोला, जहाँ मुझे एक टाईट ब्रा नजर आई, मैंने बंद ब्रा को उसकी मम्मे से अलग करना चाहा लेकिन बहुत टाईट होने के कारण वो अलग नहीं हो रही थी, हार कर मुझे उसके हुक को खोलना पड़ा.
थोड़ी देर पहले ही सुहाना ने वो ब्रा मेरे लिये पहनी थी लेकिन उस थोड़ी देर में ही उसके मम्मे के आस पास निशान बन गये थे। अब उसके ब्रा से अलग हो चुके मम्मों से मैं खेलने लगा, कभी निप्पल पर मेरे हाथ होते तो कभी उसकी पैन्टी को सहला रहे होते।
फिर धीरे से मैंने उसकी साड़ी उसके जिस्म से अलग की। अब उसके दूध जैसे उजले जिस्म पर केवल पेटीकोट ही था और वो भी ऊपर की ओर इस तरह उठा था कि उसकी चूत उसके अन्दर छिपी हुई थी, मैं चाहकर भी उसकी चूत को नहीं देख पा रहा था.
मैंने उसके निप्पल को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा।
तभी सुहाना बोली- सक्षम, तुम मुझे बहुत ही अच्छा सुहागरात का अहसास करा रहे हो, जबकि इससे पहले मैं तुम्हारे साथ वाईल्ड सेक्स कर चुकी हूँ। अब मैं भी तुम्हें प्यार करना चाहती हूँ।
मैं उसके जिस्म से अलग हो गया और पलंग पर सीधा लेट गया।
वो मेरे ऊपर आई और अपनी उंगलियों को मेरे मुंह और होंठ के आस-पास सहलाने लगी, उसके बाद उसने मेरे कुर्ते के अन्दर हाथ डाला और मेरे निप्पल को अपनी उंगलियों के बीच मलते हुए मुझे बोली- जान, तुम भी इस कुर्ते में बहुत अच्छे दिख रहे हो!
वो बारी-बारी से मेरे दोनों निप्पल को मसले जा रही थी.
फिर वो सीधी बैठ गई और कुर्ते और बनियान को निकालकर मुझसे अलग की उसके बाद वो एक बार फिर मेरे निप्पल के ऊपर और उसके चारों तरफ अपनी जीभ चलाने लगी. कुछ देर ऐसा करने के बाद वो सरककर मेरे और पास आई और अपने मम्मे को पकड़कर मेरे मुंह से सहलाने लगी.
मुझे बहुत आनन्द आने लगा, जब वो अपने मम्मे को मेरे मुंह के पास लाती तो मैं उचक कर उसके मम्मे को अपने मुंह से पकड़ने की कोशिश करता लेकिन वो मुझसे और फुर्ती से अपने मम्मे को हटा लेती लेकिन इस तरह के खेल में गलती से मेरे दांत उसके निप्पल में गड़ गये थे.
उसके बाद वो अपने निप्पल और मेरे निप्पल को आपस में लड़ाने लगी, मैं भी उसके इस खेल से सिसयाने लगा था, सुहाना अपने दाँतों के बीच अपने होंठों को चबाती।
फिर वो सरकते हुए नीचे की तरफ बढ़ी और पयजामा के ऊपर ही मेरे लंड को मुट्ठी में लेकर मसलती जा रही थी. उसके बाद पजामे के नाड़े को खोलकर पजामा और चड्डी दोनों को ही मुझसे जुदा कर दिए और लंड को अपनी मुट्ठी में भर लिया.
वो मुठ मारती जा रही थी और बीच-बीच में सुपारे के ऊपर अपने नाखून गड़ा देती, मुझे बहुत मजा आ रहा था.
हालांकि यह हमारी परिपक्व सुहागरात थी, लेकिन किसी कोरी सुहागरात से कम नहीं थी, क्योंकि सुहाना और मैंने दोनों ने ही ऐसी को वाईल्ड लगने वाली बातें नहीं की थी।
सुहाना की पीठ में ब्लाउज और उसके मम्मे के नीचे ब्रा फंसी थी, उसके बाल बिखर चुके थे, आँखों में नशा आ चुका था, मेरा लंड भी काफी टाईट हो चुका था और दर्द कर रहा था.
मैंने उसके ब्लाउज और ब्रा को उससे अलग किया और सुहाना को पकड़कर बिस्तर पर लेटा दिया और पेटीकोट को खोलकर उससे अलग किया और जो छोटी पैन्टी उसने मेरे लिये पहनी थी, उसे भी उसके जिस्म से अलग किया, उसकी टांगों के बीच में बैठ गया और लंड को उसकी चूत में पेल दिया और धक्के लगाने लगा.
मैं यह सब ठीक उसी तरह से कर रहा था, जैसे सुहागरात में करते हैं।
थोड़ा देर दोनों के बीच धक्का मारने का खेल चलता रहा और फिर अन्त में मैंने उसके चूत के अन्दर अपना पानी डाल दिया और उसके ऊपर लेट गया।
काफी थक चुके थे हम दोनों… तो पता नहीं कब नींद आ गई.
करीब चार या पांच बजे होंगे, दोनों को जिस्मानी गर्मी महसूस हुई और दोनों ने एक खूबसूरत चुदाई की, उसके बाद थोड़ी देर सकून की नींद और सोये।
शिफॉन की साड़ी के साथ बिन्दी और हल्के कलर में मिलती जुलती लिपस्टिक और सफेद हील सेन्डिल में मेरी सुहाना बहुत ही सुन्दर लग रही थी, मैंने भी अच्छा सा सूट पहन लिया और पास में ही एक मन्दिर में पुजारी को पूरी बात बता कर हम दोनों ने शादी कर ली, उसके बाद कोर्ट में जाकर मैरिज के लिये एक एप्लीकेशन डाल दिया जो कि तीन महीने से कम समय के बाद कोर्ट से उत्तर आने के बाद हम दोनों ने कोर्ट मैरिज भी कर ली।
उस बिल्डिंग के मेरे ही फ्लैट में हम दोनों शिफ्ट हो गये, अब हमारी लाईफ बहुत ही सुन्दर, सेक्सी और बिन्दास चल रही थी।
अब मेरी सुहाना ने अपने ऑफिस के यूनीफार्म के लिये साड़ी का ही चुनाव किया और वो जिस तरह से अपनी साड़ी पहनती थी, मुझे तो लगता है कि उसके ऑफिस वाले उस पर और मर मिटते होंगे।
धन्यवाद
तो दोस्तो, मेरी कहानी कैसी लगी, मुझे नीचे दिये ई-मेल पर अपनी प्रतिक्रिया भेजें।
आपका अपना शरद
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