देसी गर्ल की सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि कैसे मेरे पड़ोस की एक जवान लड़की ने लॉकडाउन में मुझसे पैड मंगवाए. उसके बाद उससे बात हुई तो उसने मुझसे एक और मदद मांगी.
“भाईजान एक काम कर दोगे?” नीचे उतरते-उतरते कानों में आवाज पड़ी तो रुक कर उसे देखने लगा।
वह हिना थी … यह कोई नई बात नहीं थी, वह जब तब मुझसे अपने काम कह लेती थी और मैं चुपचाप उसके काम कर देता था कि लड़की है, कहां जायेगी, कर ही देता हूँ।
मैंने सवालिया नजरों से उसे देखा।
“यहाँ तो पास में कोई दुकान खुली नहीं है, आप चौराहे की तरफ जा रहे हो तो पैड ला दो जरा!” उसने याचना भरे अंदाज में कहा।
“पैड!” मैं कुछ सकपका सा गया।
“हां, व्हिस्पर या नाईन जो भी हो।” कहते वक्त उसके चेहरे पर कोई झिझक नहीं थी।
मुझे कुछ बोलते न बना तो उसने मुट्ठी में दबा पचास का नोट मेरी तरफ बढ़ा दिया।
मैंने गौर से उसके चेहरे को देखा लेकिन वहां कोई ऐसी बात नहीं थी जो उकसाने वाली कही जाती. तो मैंने चुपचाप पैसे ले लिये और घर से बाहर निकल आया।
लॉकडाऊन का पीरियड चल रहा था, ऑफिस बंद ही था और वर्क फ्राम होम का तमाशा चल रहा था। घर पड़े-पड़े बोर हो जाता तो दोस्तों के पास निकल जाता था और रात को ही वापस लौटता था।
ठिकाना अभी भी लखनऊ के निशातगंज में वहीं था जहां पिछले ढाई साल से रह रहा था. लेकिन इस बीच उस घर में एक बदलाव यह हुआ था कि मकान मालिक की बेटी वापस आ गयी थी जो कहीं रहीमाबाद नाम के गांव में अपने ननिहाल में रहती थी।
अपने ठिकाने पर इज्जत बनाये रखने के चक्कर में मैं अपने बनाये नियम के मुताबिक मकान मालिक और उनके परिवार से बस रस्मी बोलचाल का ही रिश्ता रखता था.
लेकिन जब से उनकी वह लड़की हिना वापस आई थी, तब से यह नियम कुछ टूट सा यूं गया था कि वह खुद मेरे पास घुसी रहती थी और अक्सर अपने कामों में मुझसे मदद ले लेती थी या घर से बाहर के काम मुझसे करवा लेती थी।
हालांकि उसे लेकर मेरे मन में कोई गंदे ख्यालात तो नहीं ही आते थे … वह जाहिरी तौर पर बेहद शरीफ और मज़हबी किस्म की लड़की थी जो घर में भी खुद को नेक परवीन बनाये रखती थी. मतलब अच्छे से कवर कर के रखती थी, बाहर निकलती थी तो उसकी एक-एक उंगली तक कवर रहती थी, मुझे नहीं लगता कि किसी को भी उसकी शक्ल दिखने को मिलती होगी।
पांचों वक्त की पाबन्द थी और मुझे हमेशा भाईजान कह कर ही सम्बोधित करती थी। चेहरा बड़ा प्यारा था और जिस्म चूंकि पूरी तरह ढीले कपड़ों से कवर रहता था तो उसका कोई अंदाजा नहीं होता था।
यह पहली बार था कि उसने मुझसे कोई ऐसी चीज मंगाई थी कि जिसके लिये मेरे हिसाब से उसे झिझक होनी चाहिये थी, आखिर माहवारी या पैड जैसे सब्जेक्ट उन शरीफजात लड़कियों के लिये तो शर्म का बायस होते ही हैं जो उसकी तरह धार्मिक और घरेलू हों।
खैर … मैं निकला तो था रोहित और शिवम की तरफ जाने के लिये लेकिन उसके काम की वजह से पैड खरीद कर फिर वापस आना पड़ा।
मुझे संशय था कि उसने यह चीज सबकी जानकारी में मंगाई थी.
क्योंकि फिलहाल जो वक्त चल रहा था … उसके अब्बू भाई घर ही पर थे और इतनी एडवांस सोच के लोग तो वे नहीं थे।
फिर जब उसे देने गया तो उसने आंखों से सीधे ऊपर जाने का इशारा किया और खुद सामने से हट गयी।
मुझे भी समझ में आ गया कि उसने उनकी गैर जानकारी में ही वह चीज मंगाई थी।
मैं सीधा ऊपर आ गया। आधे घंटे बाद वह ऊपर आई तो शिकायती लहजे में बोली- क्या भाईजान, सबके सामने ही देने लग गये?
“मतलब उन्हें नहीं पता कि तुमने मुझसे पैड मंगवाये थे?”
“क्या बात करते हो भाईजान, यह चीज या तो लड़कियां खुद लाती हैं या अपने मियांओं से मंगवाती हैं, किसी गैर से थोड़े मंगवाती हैं।”
“हम्म … मुझे भी थोड़ी हैरानी हुई।”
“मजबूरी थी भाईजान … कास्मेटिक्स तो खुलने नहीं दी जा रही, किराने या मेडिकल से ही लेना पड़ेगा और वहां आदमियों से मांगते शर्म आती है तो सोचा कि आपसे मंगा लूं।”
मैंने कुछ बोलने के बजाय उसे पैकेट थमा दिया और उसकी आंखों में देखने लगा जहां एक किस्म का विचलन नजर आ रहा था।
“कुछ कहना चाहती हो?”
“हां- कई दिनों से सोच रही थी कि आपसे बात करूँ लेकिन डर लग रहा है कि पता नहीं आप कैसे रियेक्ट करेंगे।” वह कुछ झिझकते हुए बोली थी।
“डरने की जरूरत नहीं … जो कहना हो कहो।”
वह थोड़ी देर चेहरा झुका कर पांव के अंगूठे से अपनी चप्पल खोदती रही, फिर चेहरा उठा कर बोली- आपकी इतनी एज हो गयी, शादी नहीं किये?
“की थी लेकिन कामयाब नहीं रही तो उससे निकल कर आगे बढ़ लिया। जबरदस्ती के रिश्तों को निभाने का कोई मतलब नहीं।”
“फिर आपका काम कैसे चलता है … मम…मेरा मतलब है कि …” वह बात पूरी भी न कर पाई और उसका चेहरा एकदम पसीने से भीग गया।
जबकि मेरी एकदम ठंडी सी सांस छूट गयी थी। कोई मुझ पर ध्यान देने वाला जब यह नहीं पूछता है तब ताज्जुब होता है। उसका सवाल मुझे हैरान करने वाला नहीं था बल्कि यह बताने वाला था कि वह मेरे बारे में इस हद तक सोचती है जो उसके कट्टर मजहबी मिजाज से मैच नहीं खाता था।
“चल जाता है … हैं कुछ ऐसी लड़कियां जिनसे मेरी जरूरत पूरी हो जाती है।”
मेरी बात सुन कर उसके चेहरे पर राहत के भाव आये।
उसने निगाहें उठा कर मेरी आंखों में झांका लेकिन न मेरे भावों में उसे नाराजगी मिली और न ऐसी हवस चमकी कि उसकी एक बात से ही मैंने कोई उम्मीद पाल ली हो तो वह रिलैक्स हो गयी।
“मैं डर रही थी कि कहीं आप बुरा न मान जायें। दरअसल मिजाज में आप बेहद शरीफ लगते हैं तो यह तसव्वुर करना भी मुश्किल है कि आप कुछ ऐसा वैसा भी कर सकते हैं जो किसी शरीफजात को जैब न देता हो।”
“ऐसा कुछ नहीं। जरूरत भर शरीफ भी हूं लेकिन इतना भी नहीं कि अपनी जरूरतों को भी अपनी शराफत की बलि चढ़ा दूं।”
“मुझे एक मदद चाहिये थी आपसे! अगर कर सकें तो?” कहते हुए उसने फिर चेहरा झुका लिया।
“क्या- बताओ। मेरे बस में हुआ तो जरूर करूंगा।”
“अभी नहीं … शाम को बताती हूँ।” कह कर वह चली गयी।
और मेरे लिये एक उलझन छोड़ गयी। कोई मदद चाहिये थी तो सीधे कह सकती थी … उसके लिये मेरी पर्नसल लाईफ का जिक्र क्यों जरूरी था?
वह रोज ही शाम को ऊपर छत पर टहलती थी। कभी साथ ही अम्मी भी उसकी होती थी तो कभी भाई …
मैं देखता था, कभी कभार कोई बात भी हो जाती थी लेकिन ज्यादातर बार तो मैं अपने फोन या लैपटॉप में ही बिजी रहता था. तो कम से कम उन लोगों को यह फिक्र नहीं होनी चाहिये कि मैं उनके घर की लड़की से कोई ऐसी-वैसी हरकत करूंगा।
शाम को वह ऊपर आई तो अकेली ही थी … आज चूंकि मैं उसका इंतजार ही कर रहा था तो मुझे कहीं बिजी होने की जरूरत नहीं थी। थोड़ा इशारा पाते ही मैं उसके साथ टहलने लगा।
“क्या मदद चाहती हो मुझसे?” मैंने पूछा।
“मैं घर से बाहर अकेले नहीं निकल सकती … या तो अम्मी साथ जायेंगी या कोई भाई साथ जायेगा, लेकिन मैं कहीं अकेली जाना चाहती हूँ कुछ वक्त के लिये।”
“तो उसमें मैं क्या मदद कर सकता हूँ?” मुझे उसकी परेशानी नहीं समझ में आई।
“भाई तो आप भी हो … आप के साथ भी अब्बू जाने दे सकते हैं।” कहते हुए वह कुछ सकुचा गयी।
“मतलब मुझे साथ ले कर कहीं जाना चाहती हो जहां अकेले जाने का फील ले सको. और घर वाले यह सोच कर बेफिक्र रहें कि मेरे साथ गयी हो तो सेफ हो।”
उसने जबान से जवाब नहीं दिया, बस चेहरा झुका लिया जिससे उसके जवाब का अंदाजा होता था।
“इसकी जरूरत तुम्हें क्यों है?”
इस बार भी वह न बोली।
“मतलब किसी लड़के का चक्कर है जिससे मिलने जाना चाहती हो … अरे तो किसी सहेली से मिलने का बहाना कर के जा सकती हो, उसमें मेरी क्या जरूरत है?”
“तो भी, कोई न कोई साथ ही जायेगा। वैसे भी एक को छोड़ कर यहां कोई नहीं। मैं बचपन से ज्यादातर अपने ननिहाल रही हूँ तो मेरी सहेलियां जो भी हैं वे रहीमाबाद में हैं न कि यहां। यहां रिश्तेदार जरूर हैं लेकिन वहां भी अकेले जाने की तो इजाजत मिलने से रही। फिर कोई और बहाना भी नहीं बना सकती। लॉकडाऊन चल रहा है और पता नहीं कब तक चलेगा।”
“हम्म … ओके. तो कब जाना है? वैसे जब भी जाओगी, ठीक है कि लंबा बताने पर अम्मी साथ नहीं जायेंगी लेकिन भाई तो जा ही सकते हैं। फिर उनके होते मुझे क्यों साथ जाने का मौका मिलेगा?”
“क्योंकि उनसे उस इलाके के लड़कों की कुछ लड़ाई चल रही है तो मैंने उनसे कहा था, तो उन्होंने उधर जाने से साफ मना कर दिया। अम्मी तो जायेंगी नहीं, ऐसे में अम्मी ने ही सजेशन दिया था कि आपसे पूछ लूं, आप ले जाने को तैयार हों तो जा सकती हूँ।”
“किस इलाके की बात है?”
“बात तो जानकीपुरम की है लेकिन उन्हें तेली बाग बताया था क्योंकि भाइयों की लड़ाई उधर के कुछ लड़कों से चल रही जो गुंडे टाईप के हैं।”
“क्लेवर … कब जाना है?”
“इतवार को।”
“अरे सब काम धंधे तो बंद चल रहे तो क्या संडे क्या मंडे, मिलना ही तो होगा। कल चले चलो … मैं उधर तुम्हें छोड़ के इंदिरा नगर निकल जाऊंगा।”
“कल नहीं … अभी तो महीना …” बेसाख्तगी में उसके मुंह से निकल तो गया फिर उसने सकपका कर होंठ भींच लिये।
“महीना चल रहा है।” मैंने उसकी बात पूरी की और वह शरमा कर परे देखने लगी।
“मतलब सीधे कहो कि इसलिये जाना है … इतनी देर से भूमिकायें बांध रही हो। ठीक है, लिये चलूँगा। कुछ और हो दिमाग में तो वह भी बता दो।” मैंने गहरी नजरों से उसे देखते हुए पूछा।
लेकिन वह शरमा कर भाग गयी।
मेरे लिये यह घनघोर ताज्जुब की बात थी कि उसके जैसी लड़की भी भला ऐसा सोच सकती है।
फिर मैंने अपना सर थपथपाया … सेक्स की जरूरत किसे नहीं होती। उसका मतलब यह तो नहीं होता कि इंसान सामान्य जिंदगी नहीं जियेगा। वह बाकी वक्त में एक शरीफ मजहबी लड़की थी लेकिन फिर भी थी तो इंसान ही, जिसके शरीर में सहजवृत्ति की तरह सहवास की भूख भी लगती है। जरूरी तो नहीं कि हर इंसान अपनी यौन आकांक्षाओं को दबा कर जियेगा।
इतवार का मतलब था कि अभी चार दिन बाकी थे।
इस बाकी वक्त में मेरी उससे रोज ही बात हुई, दिन भर घर रहते कोई न कोई मौका तो मिल ही जाता था तो उसे टटोलने का कोई मौका मैं नहीं छोड़ता था।
उसकी बातों से पता चला कि जिस लड़के से उसे मिलना था, वह उसे फेसबुक पे मिला था और फिर लंबे वक्त की यारी ने उसे व्हाट्सएप तक पहुंचा दिया था. जहां उनके बीच अंतरंगता की बातें होने लगी थीं, और लड़के ने ढेरों कोशिशों के बाद उसे कनविंस कर लिया था कि उन्हें एक बार वह फिजिकल एक्सपेरिमेंट करना चाहिये।
बेहद आम सी कहानी थी जो आजकल के ज्यादातर युवा लड़के लड़कियों की होती है।
फिर संडे आया तो उसका चेहरा उतरा हुआ था … पूछने पर पता चला कि उसका प्रोग्राम गड़बड़ा गया था।
“क्या हुआ?” मैंने जानना चाहा।
“पहले उसने बताया था कि आज उसके पैरेंटस उसकी बुआ के घर जाने वाले थे तो आज हम घर पे एंजाय कर सकते थे लेकिन कल रात वह इलाका हॉट स्पॉट डिक्लेयर कर दिया गया जहां उसकी बुआ का घर है तो उसके पैरेंट का जाना टल हो गया और अब वे घर ही हैं।” उसने बड़ी मायूसी से जवाब दिया।
“तो कोई और जगह नहीं है क्या? लड़के तो आजकल कई जगहों का जुगाड़ बना कर रखते हैं।”
“ऐसे लॉकडाऊन में कहाँ जुगाड़ होगा … हर कोई तो घर पे जमा बैठा है।”
“हां यह तो है। एनी वे … तुम्हारी मेन प्राब्लम क्या है … उस लड़के के साथ रोमांटिक वक्त बिताना है, या उस लड़के के साथ सेक्स करना है या सेक्स करना है?”
“मतलब?” उसने कौतहूल से मुझे देखा।
“अरे मतलब इश्क है और कुछ वक्त उसके साथ गुजार कर भी खुशी हासिल कर सकती हो तो कहो, मैं लिये चलता हूँ … कहीं गुजार लेना थोड़ा वक्त। उसके साथ सेक्स करना है तो उसे कहो कि यहीं आ जाये, मैं अपना दोस्त बता कर शाम तक यहीं रोक लूंगा और जब असर के वक्त तुम्हारे भाई कोचिंग पे जाते हैं और अब्बू नमाज पढ़ने तब यहीं दोनों सेक्स कर सकते हो और सिर्फ सेक्स ही अगर मकसद है तो उसके और भी जुगाड़ बनाये जा सकते हैं।’
“और भी क्या?” उसने चौंक कर मुझे देखा।
“अरे भई … सेक्स के लिये ब्वॉयफ्रेंड की नहीं एक लड़के या एक मर्द की जरूरत होती है।”
उसने जवाब देने के बजाय घूर कर मुझे देखा। मैं उसके चेहरे से कोई अंदाजा न लगा पाया कि उसे मेरी बात बुरी लगी थी या भली … लेकिन उसने कोई जवाब नहीं दिया और फिर वापस मुड़ कर चली गयी।
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