यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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इससे पहले की सेक्स कहानी में आपने पढ़ा कि बेटी के हर छेद को बाप ने चोद डाला। बेटी भी इस चुदाई से बड़ी खुश थी. उसकी चूत और गांड दोनों ही खुल चुकी थीं. अब आगे:
उस दिन समीर ऑफिस में था और ज्योति बैंक के किसी काम से बाहर गई हुई थी. उसको कुछ शॉपिंग भी करनी थी. महेश की पत्नी अभी तक घर नहीं लौटी थी तो घर में ससुर और बहू ही थे.
नीलम रसोई में खाना पका रही थी. पिछले कुछ दिनों से उसने अपने ससुर को अपनी चूत से महरूम रखा हुआ था. इसलिए महेश का लंड और दिल दोनों ही बेताब थे.
ज्योति को गए हुए आधा घंटा बीत चुका था। महेश अपने कमरे में टीवी देख रहा था. नीलम को टीवी की आवाज़ सुनाई दे रही थी। नीलम ने सब्जी को तड़का लगा कर जैसे ही आटा गूंथना शुरू किया, उसके ससुर ने आकर उसे पीछे से जकड़ लिया.
वो सेल्फ पर झुकी हुई आटा गूँथ रही थी इसलिए खुद को महेश की पकड़ से छुड़ा भी न पाई. महेश ने उसके मम्मों को दबाना और मसलना शुरू कर दिया।
नीलम- क्या कर रहे हैं पिताजी? छोड़िए न … आटा गूँथने दो न!
महेश- तुम आटा गूंथो और मैं तुम्हारे ये मोटे-मोट मम्में! महेश ने अपनी बहू की बड़ी बड़ी चूचियों को मसलते हुए कहा।
वो अपनी बहू की चूचियों को बुरी तरह मसल रहा था, रौंद रहा था और इसके साथ ही वो उसकी गर्दन चेहरे को चूमता जा रहा था. नीलम की सिसकारियाँ निकल रही थीं, वो आटा बनाते हुए ‘आह … ओह … माँ … ओह पिताजी … आह …’ कहकर पागल सी होती जा रही थी।
महेश ने अपना एक हाथ नीलम की मैक्सी के अंदर डाल लिया। नीलम ने उसका हाथ बाहर निकालने की कोशिश की तो महेश ने उसका स्तन बेहद बेरहमी से मसल दिया ‘आइ … आ … आ … मर गई!; नीलम चीत्कार कर उठी।
महेश- बहू, तुम्हारा आटा बन गया, अब चपातियाँ बनाओ, बाकी सब मुझ पर छोड़ दो। बड़ी प्यारी चूत है तुम्हारी … देखो कैसे फड़फड़ा रहा है तुम्हारी चूत का दाना … यह मुझे कह रहा है कि इसे लौड़ा चाहिए … बहू कस कर शेल्फ पकड़ लो!
नीलम- पिताजी प्लीज … नहीं!
वो महेश को हटाने की एक आखिरी कोशिश कर रही थी, उसने न चाहते हुए भी शेल्फ को दोनों हाथों से पकड़ लिया। झुकने के कारण उसकी चूत ऊपर की तरफ हो गयी। वह अब घोड़ी बन चुकी थी।
महेश ने नीलम को कमर से पकड़ लिया और लन्ड को चूत पर सेट करके ज़ोर से धक्का लगाया।
“आ … आ … माँ मर गयी मैं … ” नीलम को लगा जैसे लोहे का मोटा डंडा उसकी चूत में डाल दिया गया हो।
महेश ने नीचे की तरफ देखा तो लन्ड लगभग आधा अंदर जा चुका था। महेश ने अंदाज़ा लगाया पर यह समय रहम खाने का नहीं था, उसने पांच छह शॉट एक के बाद एक पेल दिए जैसे कि कोई ऐक्शन रीप्ले कर रहा हो. नीलम की दर्दनाक चीखों से सारा घर गूंज उठा, उसकी टाँगें काँपने लगी.
अगर महेश अपनी पूरी ताकत लगा कर उसे शेल्फ पर न झुकाता तो यकीनन वो गिर पड़ती। महेश ने अपनी पूरी ताकत से नीलम को शेल्फ पर दोहरा किया हुआ था. उसने अपने दोनों हाथों से नीलम के चेहरे को शेल्फ पर दबा रखा था।
नीलम के स्तन शेल्फ से लग कर पिचक रहे थे. उसकी साँस रुक रही थी लेकिन बेरहम ससुर को उसकी कोई चिंता नहीं थी. उसने अपनी बहू को इसी पोजीशन में दबाए रखा और पीछे से धक्कों की रेल चला दी। नीलम पसीने से तरबतर हो गयी। उसकी कमसिन जवानी को उसके मोटे तगड़े ससुर ने मसल कर रख दिया था। उसके कानों में धक्कों की फच-फच … पट-पट … फच-फच की आवाज़ गूँज रही थी।
तभी महेश की नजर कोने में रखे मक्खन पर चली गयी. मक्खन देख कर महेश के दिमाग में नीलम की मस्त गांड मारने का ख्याल आया। वह धीरे से मक्खन का डिब्बा अपनी तरफ खींच कर और मक्खन निकाल कर नीलम की टाइट गांड के गोरे छेद पर मक्खन लगाने लगा. फिर धीरे धीरे मक्खन नीलम की गांड के अंदर डालने लगा। साथ साथ नीलम की चूत की चुदाई भी जारी थी. जिससे नीलम पूरी तरह से गर्म हो रही थी और उसका ध्यान इस तरफ नहीं गया कि उसकी गांड के साथ क्या किया जा रहा था.
इधर महेश ने धीरे धीरे नीलम की गांड में ढेर सारा मक्खन डाल दिया। नीलम की गांड अब मक्खन से पूरी तरह भर गई. तब महेश ने अपना लंड नीलम की चूत से निकाल कर उसकी गांड के छोटे से छेद पर रख कर एक ही झटके में आधा लंड उसकी गांड में पेल दिया.
नीलम दर्द से चीखने लगी. महेश को तो अपने मजे से मतलब था. उसने नीलम को कस कर पकड़ा और चार पांच धक्कों के साथ पूरा 9 इंच का लंड नीलम की गांड में उतार दिया. नीलम ने अपनी गांड को महेश के लंड के चंगुल से छुड़ाने की बहुत कोशिश की लेकिन महेश की ताकत के सामने वो कुछ नहीं कर पा रही थी. आखिरकार वह अपनी गांड मरवाने लगी.
महेश- आह्ह्ह् साली रंडी. तेरी गांड कितनी मस्त है। बिल्कुल किसी कुतिया की तरह गरम गांड है तेरी साली रंडी।
5 मिनट की गांड चुदाई के बाद नीलम को भी मजा आने लगा और वो भी मस्ती में सिसकारियां लेने लगी- उम्म्ह… अहह… हय… याह…
उसके बाद दस मिनट तक नीलम की गांड को चोदने के बाद महेश लंड को एकदम से निकाल कर उसकी चूत में डाल दिया.
काफी देर तक अपने ससुर से अपनी चूत चुदवाने के बाद उसने एक लंबी आह भरी और उसी के साथ उसका बदन अकड़ा और उसकी चूत ने पानी छोड़ दिया।
महेश ने उसे अपनी पकड़ से आज़ाद कर दिया लेकिन नीलम निढाल होकर शेल्फ पर ही पड़ी रही … उसे परमानन्द का अनुभव हो रहा था. उसके ससुर का घोड़ा लन्ड अभी भी उसकी चूत में था लेकिन अब वो लंड नीलम को अपने ही बदन का हिस्सा लग रहा था. लन्ड की गर्मी उसे अच्छी लग रही थी।
महेश- बहू, आज तूने कमाल कर दिया!
नीलम- पिताजी, आपने तो पीस कर रख दिया है मुझे, मैंने क्या कमाल किया है, कमाल का तो आपका यह शैतानी लन्ड है।
महेश- सच बताना बहू, तुझे पौने घंटे की इस चुदाई में कितना मजा आया?
नीलम- पौना घंटा?? इतना टाइम हो गया! मुझे तो लगा कि कुछ ही मिनट हुए हैं … हटो पिताजी, अब निकालो अपने लन्ड को। मुझे रोटियां बनानी हैं।
महेश- लन्ड निकालने की क्या ज़रूरत है, तू रोटियां बना … मैं हल्के हल्के धक्के लगाता रहूंगा बेटी।
नीलम- पूरे चोदू हो आप … इतनी बुरी गत बना दी है मेरी फिर भी चैन नहीं है आपको!
महेश- मुझे तो चैन ही चैन है मगर अपने इस लन्ड का क्या करूँ?
नीलम- भागे थोड़े न जा रही हूँ, जल्दी-2 रोटियां बनाने दीजिये, कोई आ गया तो दिक्कत हो जाएगी।
महेश- ठीक है बेटी, धक्के नहीं लगाऊंगा पर लन्ड अंदर ही रहने दे। बड़ा सुख मिल रहा है।
नीलम अपने ससुर के लंड को चूत में लिये हुए ही रोटियाँ बनाने लगी और महेश उसके मम्मों से खेलता रहा. बीच-2 में वो उसको दो चार झटके भी दे देता था।
“आह … आह … क्या कर रहे हो पिताजी? रोटी जल जाएगी.”
“अच्छा रोटी जलने की चिंता है तुझे साली और जो तेरी इस कसी हुई चूत में मेरा लन्ड जल रहा है उसका क्या?” महेश ने उसकी गांड पर हल्के हाथों से मारते हुए कहा।
नीलम- पिताजी निकालो न अपना लंड, देखो देर हो रही है … कोई आ जायेगा।
महेश ने टाइम देखा तो बारह बज चुके थे. उसने अपना लन्ड नीलम की चूत से बाहर निकाल लिया।
महेश- अब पड़ गयी तुझे ठंडक? ले बना ले रोटियां … मैं अपने कमरे में जा रहा हूँ।
महेश के चले जाने के बाद सबसे पहले नीलम ने अपनी मैक्सी ऊपर करके अपनी चूत चेक की. उसमें जमा हुआ वीर्य और सूज गयी चूत देख कर बेचारी डर गई ‘हाय राम, कितनी बेहरमी से चुदाई की है! कितनी सूज गयी है.’ उसने अपने आप से कहा और जैसे जैसे उसका बदन ठंडा पड़ता गया, उसका बदन शांत हो गया लेकिन चूत और गांड में दर्द अभी भी था।
अब बेचारी क्या करती, कोई चारा नहीं था उसके पास … उसने किसी तरह रोटियां पकाई।
वक़्त बीतने के साथ साथ दर्द बढ़ता जा रहा था, उसने पानी हल्का गर्म किया और एक कपड़ा लेकर टाँगों पर लगा हुआ वीर्य साफ किया और फिर अपनी चूत और गांड को गर्म पानी से साफ करने लगी. गर्म पानी से उसे जलन हो रही थी. मगर आराम भी मिल रहा था।
कुछ देर आराम करने के बाद बाथरूम में जाकर वो कपड़े धोने लगी। फिर कपड़े धोकर नीलम छत पर उन्हें सुखाने आ गई। उनकी छत पड़ोस के घरों की छत से काफी ऊंची थी. इसलिए वो दूसरों की छत पर देख सकती थी लेकिन कोई उसकी छत पर नहीं देख सकता था.
नीलम छत पर कपड़े सुखाने ही लगी थी कि पीछे से उसका ससुर आ पहुंचा. वो उनसे नजरें मिलाये बिना ही जल्दी जल्दी कपड़े हड़बड़ी में सुखाने लगी. वह जानती थी कि अगर ज्यादा देर वो उनके सामने रुकी तो उसकी चूत की शामत फिर से आ जायेगी.
मगर अचानक नीलम को अपने चूतड़ों पर अपने ससुर के हाथों का स्पर्श महसूस हुआ. उसे अंदेशा नहीं था कि उसके ससुर उसके साथ इस तरह से खुली छत पर भी छेड़छाड़ करेंगे. उसने ससुर का हाथ हटाया और वहां से जाने लगी.
लेकिन महेश ने उसे पकड़ कर अपनी तरफ खींच लिया.
“बहू, तुम मुझसे इतनी क्यों डरने लगी हो?” महेश ने नीलम की कमर में हाथ डाल कर उसे अपनी तरफ खींचते हुए कहा.
“बाबूजी! प्लीज छोड़िये मुझे … कोई देख लेगा ” नीलम अपने आप को उनसे छुड़ाने लगी। नीलम को खुली छत पर बहुत डर लग रहा था।
महेश ने नीलम को छोड़ दिया और तेज़ी से दरवाज़े की तरफ़ जाकर छत का दरवाज़ा बंद कर दिया। नीलम एकदम हक्की बक्की रह गई कि ससुरजी ये क्या कर रहे हैं।
“अब तो डर नहीं लग रहा है न बेटी?” महेश ने नीलम की तरफ अपने कदम बढ़ाते हुए कहा।
नीलम ने दबी आवाज में कहा- बाबूजी कोई देख लेगा। प्लीज … मुझे जाने दीजिए.
बहू जल बिन मछली की तरह महेश से अपने आप को छुड़ाने की कोशिश कर रही थी … उसे डर लग रहा था कि किसी ने अपनी छत से उन्हें इस तरह देख लिया तो क्या होगा? लेकिन चारों तरफ छत पर बाउंड्री भी बनी हुई थी और शायद महेश इसी बात का फायदा उठा रहा था।
महेश ने नीलम की गांड को अपने हाथों से थामते हुए उस पर एक चुटकी काट ली. जैसे ही नीलम ने आह्ह … की तो उसने तुरंत अपने होंठ नीलम के होंठों पर रख दिए और बुरी तरह उसे चूसने लगा और अपने हाथों से नीलम के चूतड़ों को मसलने लगा।
नीलम को बड़ी शर्म आने लगी। आज खुले आसमान में दिन में ही महेश ने नीलम को पकड़ लिया था। नीलम ने अपनी आँखें बंद कर ली। महेश ने अपने दायें हाथ से नीलम की चूचियों को कपड़ों के ऊपर से ही दबाना शुरू कर दिया। नीलम दर्द से तड़पने लगी।
काफी देर तक वे दोनों ऐसे ही छत के बीच में खड़े रहे और महेश नीलम के होंठों को चूसता रहा. अब नीलम भी गर्म होती जा रही थी.
तभी महेश ने नीलम को छोड़ा और उसके बाल पकड़ कर नीलम को अपने सामने बैठा लिया। नीचे बैठाने के बाद महेश ने अपनी पैंट की ज़िप खोल ली और एक झटके में अपना मूसल लंड निकाल कर नीलम के चेहरे के सामने कर दिया- चल साली, चूस इसे!
हवस में डूबा हुआ ससुर अब अपनी बहू को गाली देने पर उतर आया था. इससे पहले उसने कभी इस तरह से नीलम के साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया था. महेश के इस बर्ताव से नीलम भी हैरान थी. लेकिन उसे नहीं पता था कि यह महेश की एक और फैंटेसी है.
बहू सोच ही रही थी कि तभी उसने नीलम के बाल पकड़ कर खींच लिये और नीलम का मुंह अपने लंड पर रख दिया और रगड़ने लगा।
नीलम को पता था कि वो अब नहीं मानेंगे। नीलम ये सब जल्दी खत्म करना चाहती थी। उसने उनका लंड अपने मुंह में ले लिया और चूसने लगी।
तभी महेश ने नीलम के मुंह में अपने लंड से एक जोर का झटका दिया और गुं गुं की आवाज हुई और नीलम की सांस रुक गई। लंड नीलम के गले तक चला गया था। उसके बाद महेश ने लंड एकदम बाहर निकाल लिया। फिर वो झटके मार मार कर अपना लंड नीलम के मुँह में अन्दर बाहर करने लगा।
नीलम की आँखों से आंसू निकल आए। लंड बहुत मोटा था और नीलम को उसे चूसने में बड़ी दिक्कत हो रही थी. नीलम के चूसने से उसका सुपारा एकदम लाल हो गया था। नीलम को ये मस्त लंड चूसने में मजा तो आ रहा था लेकिन साथ ही छत पर होने की वजह से डर भी लग रहा था.
फिर उसने नीलम को उठने के लिए कहा और छत की चार-दीवारी पर टेक लगा कर झुकने के लिए कहा. नीलम उठ कर बाऊंड्री के पास जाकर अपने हाथ दीवार से लगा कर झुक गई. उसको छत से नीचे का नजारा साफ दिखाई दे रहा था और उसकी गांड महेश की तरफ उठी हुई थी.
महेश ने नीलम की साड़ी को पीछे से उसके चूतड़ों तक उठाया और उसकी कमर को पकड़ कर अपना लंड नीलम की चूत में लगा कर निशाना सेट करने लगा.
नीलम नहीं चाहती थी कि किसी को कुछ पता चले, इसलिए उसने अपनी चूत पर लंड की छुअन के बाद भी अपने चेहरे हाव-भाव को सामान्य ही बनाये रखा जैसे उसके साथ कुछ हो ही न रहा हो. मगर उसके मन में एक रोमांच उठ रहा था. इससे पहले उसने कभी इस तरह से खुले में चुदाई नहीं करवाई थी.
सामने की दूसरी छतों पर बच्चे खेल रहे थे. सामने ही एक आंटी भी बच्चों के पास खड़ी हुई थी. लेकिन वह छत इतनी पास नहीं थी कि चुदाई के बारे में सामने से देखने वाले द्वारा कुछ अन्दाजा लगाया जा सके.
तभी महेश ने एक झटका मारा और नीलम की चूत में पूरा लंड समा गया क्योंकि नीलम की चूत एकदम गीली थी इसलिए लंड फच्च से अंदर चला गया. उसे हल्का दर्द तो हुआ लेकिन वो उस दर्द को अंदर ही पी गई.
ससुर का लंड नीलम की चूत में घुस चुका था और उसे अब भी यकीन नहीं हो रहा था कि उसके साथ खुले आसमान के नीचे दिन दहाड़े ये सब हो रहा है.
महेश ने नीलम की कमर को पकड़ लिया और उसकी चूत में अपने मूसल लंड के धक्के देने शुरू कर दिये. नीलम अपने आपको बिल्कुल सामान्य बनाये रखने की कोशिश कर रही थी क्योंकि सामने वाली आंटी नीलम की तरफ देख रही थी.
चूत में लंड घुसने के बाद नीलम का मन तो कर रहा था कि वह भी खुल कर अपने ससुर का इस खुली चुदाई में साथ दे लेकिन उसे डर था कि अगर उसके चेहरे के भाव जरा भी बदले तो सामने खड़ी आंटी को शक हो जायेगा.
महेश- वाह बहू! कितनी सुशील है तू बेटी … अपने ससुर से ऐसे खुले में चुदाई करवा रही है. आह्ह … बस थोड़ी देर और मेरी रानी … आह्ह …
उसके मुंह से सिसकारियां निकल रही थीं.
महेश ने अपनी चुदाई की स्पीड को और बढ़ा दिया.
लेकिन अब आंटी नीलम को बड़े गौर से देखने लगी थी. जब आंटी के मन में कुछ जिज्ञासा उठी तो उसने दूसरी छत से नीलम को आवाज लगाई- बहू, कैसी हो तुम?
नीलम के चेहरे पर चुदाई का आनंद और डर के भाव दोनों ही बड़ी मुश्किल से दबे हुए थे और उसने अपने इन भावों को छिपाते हुए एक हल्की सी मुस्कान के साथ जवाब दिया- जी ठीक हूं आंटी!
आज खुले आसमान के नीचे नीलम चुद रही थी। बड़ा अच्छा लग रहा था उसे लेकिन बड़ा डर भी लग रहा था।
तभी एक तेज़ धार नीलम की चूत में चली और महेश अपनी प्यारी बहू नीलम से चिपक गये। वो झड़ गए थे। नीलम से भी कण्ट्रोल नहीं हुआ और उसने भी अपना पानी छोड़ दिया।
महेश ने तुरंत अपना लंड नीलम की चूत से निकाल लिया और पीछे से हट गये। नीलम की साड़ी अपने आप उसके नितम्बों से नीचे गिर गई। नीलम को बड़ी थकान सी लग रही थी। मगर वह वैसे ही खड़ी रही।
ठंडी ठंडी हवा चल रही थी, बड़ा अच्छा लग रहा था। नीलम को महसूस हो रहा था कि उसका और उसके ससुर महेश का वीर्य बहता हुआ नीलम की टाँगों पर आ रहा था। नीलम कुछ देर वैसे ही खड़ी रही और फिर पीछे मुड़ कर देखा तो ससुरजी नीचे जा चुके थे।
नीलम ने भी अपने आप को सम्भाला, अपने कपड़े ठीक किये और कपड़ों की बाल्टी उठायी और धीरे धीरे छत से नीचे आ गई।
आज महेश की एक और इच्छा पूरी हो गई थी और नीलम को एक ऐसा अनुभव मिल गया था कि वह किसी बिना डोर की पतंग की तरह जैसे आसमान में उड़ी जा रही हो.
मगर उसने समीर को तो जैसे भुला ही दिया था. वह अपने ससुर महेश के लंड की आदी हो गई थी. जब नीलम के पीरियड्स नहीं होते थे तो महेश उसको जमकर चोदता था.
फिर बाद में महेश ने ही नीलम से कहा कि वह अपने पति को भी कभी-कभार अपनी चूत देती रहा करे. ससुर के कहने पर नीलम समीर के साथ बेमन से चुदाई करवा लेती थी लेकिन वो अपने ससुर के मूसल लंड को लेकर ही संतुष्ट होती थी. नीलम और समीर ने अब एक दूसरे के साथ समझौता कर लिया था. कोई किसी की जिन्दगी में दखल नहीं देता था.
इस तरह से महेश ने चोद चोद कर अपनी नीलम बहू को गर्भवती कर दिया. चूंकि वह बीच-बीच में समीर से भी चुदाई करवा रही थी तो किसी को पता नहीं चला कि वह बच्चा किसका है, सिवाय नीलम के। वक्त के साथ-साथ नीलम अपने ससुर की इतनी दीवानी हो गई कि उसका ससुर कहे तो वह बीच चौराहे पर अपनी चूत और गांड की चुदाई करवा ले.
महेश ने सेक्स से परहेज़ करने वाली अपनी उस बहू को चोद-चोद कर अपनी रंडी बना दिया था.
ससुर अपनी बहू को अपने घर के हर कोने में चोद चुका था और अपनी हर फैंटेसी पूरी कर चुका था. नीलम के मान जाने के बाद समीर ने अपनी बहन ज्योति से दूरी बना ली थी और उसकी बहन ज्योति भी अपने पिता से चूत चुदाई करवा कर खुश रहने लगी.
अब नीलम मां बनने वाली थी. बच्चा भले ही महेश का था लेकिन उसको नाम समीर का मिल गया था.
समाप्त
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