नमस्कार दोस्तों, इसी लेखक की अन्तर्वासना पर पिछली कहानी मेरी नातिन की कुंवारी कमसिन चूत तो आप सबने पढ़ ही ली होगी. रिटायरमेंट के बाद मैं अपने पुश्तैनी घर में रहने लगा. काफी बड़ा घर था जिसके आधे हिस्से पर मेरा कब्जा था और बाकी आधा बड़े भैय्या का था. बड़े भैय्या वाले हिस्से में उनकी बहू रेखा, पोता हैप्पी और पोती शैली रहते थे.
बड़े भैय्या का निधन तो लगभग बीस साल पहले हो गया था और उनका इकलौता बेटा कुलदीप भी दुर्भाग्यवश छह साल पहले भगवान को प्यारा हो गया था. कुलदीप के ऑफिस में ही रेखा को नौकरी मिल गई थी जिसके सहारे उसने दोनों बच्चों को पाला था.
हैप्पी इक्कीस साल का था और एक ऑर्केस्ट्रा पार्टी में गिटार बजाकर मतलब भर का कमा लेता था जबकि 19 वर्षीया शैली कक्षा 12 की छात्रा थी.
जब मैंने यहां शिफ्ट किया तो पहली जरूरत किसी कामवाली की थी जो घर की साफ सफाई व मेरे लिए खाना बना सके, मेरी पत्नी का निधन काफी पहले हो चुका था इसलिए मुझे अकेले ही रहना था.
दो चार लोगों से बात करने पर मुझे एक कामवाली मिल गई, लगभग 40 साल की थी और उसका नाम ममता था. उसने इतना काम करने के पांच हजार रुपये मांगे और मेरे कहने पर चार हजार में राजी हो गई. काम बहुत अच्छा और फटाफट करती थी तथा खाना भी स्वादिष्ट बनाती थी.
पन्द्रह बीस तक उसको रोज देखकर मुझे लगा कि यह चुदाई के लिए राजी हो जाये तो मेरा काम चलता रहेगा. नौकरी के दौरान तो तो तमाम जूनियर्स थीं जो काम चला देती थीं. अगले दिन जब ममता साफ सफाई करने के बाद रसोई में गई तो मैंने उससे एक गिलास पानी मांगा.
ममता पानी लेकर आई तो मैंने कहा- बैठो, तुमसे कुछ बात करनी है.
मैं सोफे पर बैठा था, वो सामने जमीन पर बैठ गई.
मैंने कहा- ममता, जब तुम काम करने आई थी तो तुमने पांच हजार रुपये मांगे थे लेकिन मैं चार हजार देना चाहता था. अब इतने दिनों में मैंने तुम्हारा काम देखा है और तुम्हारे काम से बहुत खुश हूँ. तुम एक काम और कर दो तो मैं तुम्हें पांच नहीं बल्कि छह हजार दिया करूंगा.
ममता ने पूछा- और क्या करना होगा?
मैंने अपने लण्ड पर हाथ फेरते हुए कहा- कभी कभी खुश कर दिया करो.
ममता खड़ी हुई और अंगड़ाई लेते हुए बोली- साहब, ऐसा खुश करूंगी कि आप मस्त हो जायेंगे.
मैंने उठकर उसे बांहों में भरना चाहा तो बोली- आज नहीं, कल से.
उसका हाथ पकड़कर मैंने अपने लण्ड पर रखते हुए कहा- बहुत बेताब है यह.
ममता लण्ड को टटोलते हुए बोली- मजा आयेगा साहब. लेकिन कल से.
और रसोई में जाकर खाना बनाने में जुट गई.
अगले दिन ममता आई तो रोज की अपेक्षा अधिक बन संवर कर आई. आते ही झाड़ू उठाया और साफ सफाई में लग गई तो मैंने कहा- ममता, साफ सफाई बाद में कर लेना, मैंने रात बड़ी मुश्किल से काटी है.
ममता झाड़ू जमीन पर रखते हुए बोली- आइये साहब, पहले आप ही का काम कर दें.
और बेडरूम की ओर चल दी.
पीछे पीछे मैं पहुंच गया तो ममता बोली- आप करेंगे या मैं करूँ?
मैंने कहा- आज तुम ही कर लो.
ममता ने अपनी साड़ी और ब्लाउज़ उतार दिया, वो अब पेटीकोट और ब्रा में थी. बड़ा मांसल बदन था और उसकी चूचियां ब्रा से बाहर आने को बेताब थीं. साड़ी ब्लाउज़ उतारकर वो बेड पर बैठ गई और मुझे अपने करीब खींचकर मेरा लोअर उतार दिया.
ममता मेरा लण्ड पकड़कर वो खेलने लगी, कभी चूमती, कभी चाटती और कभी चूसने लगती. मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे करती तो उसकी ऊंगलियों की कला को दाद देने का दिल करता. जब लण्ड टनटनाकर खड़ा हो गया तो उसने मुझे लिटा दिया और अपनी ब्रा खोलकर बड़ी बड़ी चूचियां आजाद कर दीं.
वह पेटीकोट उठाकर मेरे ऊपर चढ़ गई और अपनी चूत फैलाकर मेरे लण्ड पर रखकर बैठ गई, पूरा लण्ड चूत में लेकर ममता फुदकने लगी.
किसी कामवाली को चोदने का मेरा पहला अनुभव था, इससे पहले मैं अधिकारी वर्ग की महिलाओं को चोदा करता था लेकिन सब समय समय की बात है.
ममता फुल मस्ती दे रही थी, मैंने उससे पेटीकोट उतारने को कहा तो बोली- साहब, गैर मर्द के सामने हम लोग सारे कपड़े नहीं उतारते.
मैंने अपनी हंसी रोकते हुए पूछा- आज तक कितने मर्दों से चुदवाया है?
ममता ने कहा- सच कहूँ साहब, आप तीसरे आदमी हैं. हमको पहली बार हमारे सगे चाचा ने चोदा था, उसके बाद हमारे पति ने और तीसरे आप हैं.
इस बीच फुदक फुदक कर मुझे चोदते हुए बोली- अब करो साहब.
मैंने पूछा- क्या करूँ?
तो ममता ने कहा- पानी छोड़ो साहब, अब हम थक गये हैं.
मैंने कहा- थक गई हो तो घोड़ी बन जाओ, मैं पीछे से पेलूंगा.
वह घोड़ी बन गई, मैंने उसके पीछे आकर उसका पेटीकोट ऊपर किया तो देखा, अपनी चूत शेव करके आई थी. मैं उसकी चूत पर जीभ फेरने लगा तो कसमसा कर बोली- ये न करो साहब, लण्ड पेलो, अब हमसे बरदाश्त नहीं हो रहा.
मैंने उसकी चूत पर अपने लण्ड का सुपारा रखकर ठोंक दिया और चोदने लगा. मैंने अपने दोनों हाथ उसकी पीठ पर टिका दिये और अपने दोनों पैर हवा में उठा लिये और शताब्दी एक्सप्रेस की स्पीड से चोदने लगा.
ममता में गजब की ताकत थी. मेरे शरीर का सौ किलो वजन उस पर लदा हुआ था और शताब्दी की स्पीड से लण्ड अन्दर बाहर हो रहा था लेकिन उसने उफ नहीं की.
जब मेरे डिस्चार्ज का समय करीब आया तो मैंने पूछा- कॉण्डोम लगा लूँ?
तो बोली- क्यों पैसा खर्च करते हो साहब, हमारा ऑपरेशन हो चुका है, आप अपनी मस्ती पर ध्यान दो.
इतना सुनकर मैंने अपनी स्पीड और बढ़ा दी. फव्वारे के छूटने का समय आया तो लण्ड का सुपारा फूलकर संतरे के साइज का हो गया, अन्दर जाकर ठोकर मारता तो ममता उम्म्ह… अहह… हय… याह… करने लगती जिससे मेरा जोश और बढ़ जाता.
अन्ततः समय आ गया और मेरे वीर्य से ममता की चूत भर गई. अब ये हमारा नित्यकर्म हो गया.
ममता के साथ सेटिंग हो जाने के बाद मेरा जीवन आराम से कट रहा था कि एक दिन शाम को मेरे भाई की बहू रेखा आई और बोली- चाचा जी, आप ने एम कॉम कर रखा है, शैली के एग्जाम आने वाले हैं, उसे थोड़ा पढ़ा दिया करिये.
मैंने कहा- जब मर्जी आ जाये, बेटा. इसमें पूछने कहने वाली क्या बात है.
अगले दिन से शैली रोज पढ़ने आने लगी. कभी एक घंटा तो कभी चार घंटे. कभी सुबह आठ बजे आती तो कभी रात को आठ बजे आ जाती कि दादू ये बता दीजिये, दादू वो बता दीजिये.
उसके रोज रोज आने जाने से मेरी नजर उसके जिस्म को तौलने लगी. संतरे के आकार की चूचियां और गदराई हुई जांघें देख देखकर मेरी नीयत डोलने लगी और मैं कच्ची कली को फूल बनाने की तरकीब ढूंढने में लग गया.
उसको पढ़ाने के साथ साथ उसकी पसंदीदा चीजें उसको दिलाने लगा.
एक दिन शाम के छह बजे थे, हल्की हल्की बूंदाबांदी हो रही थी, मेरा दिल बेताब हो रहा था. मैंने लोअर उतारकर लुंगी बांध ली और शैली को फोन करके बुलाया- आज पढ़ना नहीं है क्या?
उसने कहा- अभी आ रही हूँ, दादू.
थोड़ी देर में वो किताबें लेकर आ गई और बोली- दादू, आज मेरा आने का मन था नहीं लेकिन आपने बुलाया तो मैं आ गई.
मैंने कहा- शैली आज मेरा भी पढ़ाने का मन नहीं था, आज दिल बहुत उदास हो रहा था, तेरी दादी की बहुत याद आ रही थी इसलिए तुझे बुला लिया.
“आज ऐसा क्या हो गया कि आप दादी को याद करके उदास हो गये?”
“क्या बताऊँ बेटा, जब तक इन्सान की जरूरतें पूरी होती रहती हैं, उसे किसी की याद नहीं आती और ख्वाहिशें अधूरी हों तो हर पल याद आती है.”
“क्या हो गया, दादू? मुझे बताइये.”
“क्या बताऊँ बेटा, ममता आती है, पूरा घर सम्भालती है, खाना बना देती है और मेरा दिन अच्छे से कट जाता है लेकिन जब रात होती है तो तेरी दादी की कमी महसूस होती है, तुम समझ रही हो ना?”
शैली खामोश रही तो मैंने अपना बोलना जारी रखा- जैसे भोजन इन्सान के लिए जरूरी है उसी तरह अपोजिट सेक्स का एक साथी भी बहुत जरूरी होता है.
“बेटा शैली, तुम मेरी सेक्स की जरूरतें पूरी तो नहीं कर सकती लेकिन कम जरूर कर सकती हो.”
“कैसे दादू?”
“इधर आओ!” कहकर मैं बेडरूम में आ गया और मेरे पीछे पीछे शैली भी आ गई.
पलंग की ओर इशारा करते हुए मैंने उसे बैठने को कहा तो वो बैठ गई. मेरा लण्ड टनटना चुका था. मैंने लुंगी हटाकर अपना लण्ड उसको पकड़ाकर हिलाने को कहा.
उसके सिर पर हाथ फेरते हुए मैंने कहा- बेटा, इसको पकड़कर आगे पीछे करती रहो, मेरा काम हो जायेगा.
शैली मेरा लण्ड मुठ्ठी में पकड़कर आगे पीछे करने लगी तो लण्ड और टनटनाने लगा. मैंने अपना लण्ड पकड़कर उसके मुंह में डालते हुए कहा- इसको चूसो.
तो वह चूसने लगी.
मेरे डिस्चार्ज होने का समय आया तो मैंने उसके मुंह से निकालकर लण्ड को अपनी लुंगी में लपेट लिया और शैली के हाथ में दे दिया. वह तेजी से आगे पीछे कर रही थी कि मेरा डिस्चार्ज हो गया. मैंने शैली को गले लगाकर थैंक्यू कहा और चॉकलेट खिलाई. अब इतना काम रोज होने लगा.
लगभग एक हफ्ते तक इस कार्यक्रम के बाद एक दिन शैली आई और पढ़ाई शुरू की.
लगभग दो घंटे पढ़ाने के बाद मैंने शैली से कहा- बेटा, आज मुझे अपने संतरे दिखा दे.
थोड़ी आनाकानी के बाद उसने अपना टॉप व ब्रा उतार दी. मैंने उसको लिटा दिया और उसके संतरों का रस पीने लगा. संतरों का रस पीते पीते मैंने अपना हाथ उसकी स्कर्ट में डालकर उसकी बुर मसलना शुरू कर दिया. थोड़ी देर बाद अपना हाथ उसकी पैन्टी में डाल दिया और और उसकी बुर में ऊंगलियां चलाने लगा.
लोहा गर्म हो चुका था. 62 साल का दादू अपनी 19 साल की पोती को चोदने को बेताब हो रहा था. हकीकत यह है कि जब लण्ड खड़ा होता है तो उसको यह नहीं दिखता कि चूत उसकी मां की है या बेटी की. खड़े लण्ड को बस घुसने का मौका चाहिए.
मैंने कॉण्डोम का पैकेट, कोल्ड क्रीम की शीशी उठाई. एक गिलास में दो पेग व्हिस्की डालकर कोकाकोला से भर दिया. आधा गिलास मैंने पिया और आधा गिलास शैली कोकाकोला समझकर पी गई.
शैली की टांगें फैलाकर मैं बीच में आ गया और अपने लण्ड पर क्रीम मलकर लण्ड का सुपारा उसकी बुर पर फेरने लगा.
शैली के चेहरे के भाव बता रहे थे कि वो लण्ड लेने को आतुर है.
मैंने एक तकिया उसके चूतड़ों के नीचे रखकर उसकी बुर ऊंची कर दी और फिर से उसकी बुर खोलकर लण्ड का सुपारा रगड़ने लगा. उसकी बुर गीली हो चुकी थी.
शैली से मैंने कहा कि बेटा जब यह पहली बार अन्दर जायेगा तो थोड़ी दर्द होगा, हिम्मत रखना, फिर थोड़ी देर में दर्द गायब हो जायेगा.
इतना कहकर मैंने शैली की बुर के लब खोलकर अपने लण्ड का सुपारा रखकर ठोंका तो सुपारा बुर के अन्दर हो गया, इसके बाद मैंने धीरे धीरे दबाकर लण्ड अन्दर करना शुरू किया तो आधा लण्ड भी अन्दर नहीं जा पाया.
मैंने बाहर निकाल कर फिर से क्रीम लगाकर पेला और जोर से झटका मारा तो पूरा लण्ड अन्दर चला गया.
लण्ड तो अन्दर चला गया लेकिन शैली इतने जोर से चिल्लाई कि मैं उसके मुंह पर हाथ नहीं रखता तो सारे मुहल्ले को खबर हो जाती.
अब मैंने धीरे धीरे लण्ड को अन्दर बाहर करना शुरू किया तो वो नार्मल होने लगी.
थोड़ी देर बाद मैंने लण्ड बाहर निकाला तो खून से सना हुआ था, मैंने कॉण्डोम चढ़ाकर फिर से पेल दिया और चोदते चोदते डिस्चार्ज हो गया. अब हमारे बीच कोई दीवार नहीं रही थी.
कहानी जारी रहेगी.
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