यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
अब तक की इस मस्ती भरी सेक्स कहानी में आपने पढ़ा था कि मैंने सुलेखा भाभी के गालों को चूमते हुए उन्हें अपनी बांहों में कस लिया था … जिससे उनके गाल तो क्या अब तो पूरा का पूरा चेहरा ही शर्म से सिन्दूरी सा हो गया.
अब आगे …
“आह … ये क्या कर रहा है? जाने दो मुझे … अभी मुझे ढेर सारा काम है घर में … प्लीज जाने दो अभी … फिर कभी?” सुलेखा भाभी ने कसमसाते हुए कहा और मेरे बांहों से निकलने का प्रयास करने लगीं. मगर मैंने उन्हें बांहों में लेकर बिस्तर पर गिरा लिया और अपने शरीर के भार से दबाकर फिर से उनके नर्म नर्म गालों पर चुम्बनों की बौछार सी कर दी.
मेरे चुम्बनों से बचने के लिए सुलेखा भाभी अब बिस्तर पर पड़े पड़े ही घूम कर उलटी हो गईं. मेरे लिए ये तो और भी अच्छा हो गया था, क्योंकि सुलेखा भाभी का ब्लाउज पीछे से काफी खुला हुआ था, जिससे गर्दन के नीचे से उनकी आधी से ज्यादा नंगी पीठ अब मेरे सामने थी.
शायद सुलेखा भाभी को मालूम नहीं था कि ऐसा करने से मैं उनकी प्यास को और भी भड़का दूँगा. मैंने अब उनकी नंगी पीठ पर से चूमना शुरू किया और धीरे धीरे गर्दन की तरफ बढ़ने लगा जिससे सुलेखा भाभी और भी जोरों से सिसक उठीं.
जब तक मेरे होंठ सुलेखा भाभी की नंगी पीठ को चूमते हुए उनकी गर्दन तक पहुंचे, तब तक तो वो सहती रहीं, मगर जब गर्दन को चूमते हुए मैं ऊपर उनकी कानों की लौ के पास पहुंचा तो सुलेखा भाभी की बर्दाश्त के बाहर हो गया. वो अब जोरों से सिसक उठीं और तुरन्त ही फिर से घुमकर सीधी हो गईं.
मैं भी अब थोड़ा सा उठकर सुलेखा भाभी के आधा ऊपर आ गया और उनकी चूचियों को अपने सीने से दबाकर उनके लाल लाल गालों को चूमते हुए उनके रसीले होंठों की तरफ बढ़ने लगा.
सुलेखा भाभी का विरोध भी अब कम होता जा रहा था और वो भी शायद बस वो दिखावे के लिए ही कर रही थीं. क्योंकि उनका बदन तो अब कुछ और ही कह रहा था.
सुलेखा भाभी के गालों को चूमते हुए मैं उनके रसीले होंठों पर आ गया था, जो कि अब जोरों से थरथराने लगे थे. मगर अब जैसे ही मैंने अपने होंठों से उनके होंठों को छुआ, सुलेखा भाभी के होंठ और भी जोरों से थरथरा गए. उन्होंने अब खुद ही अपने मुँह को खोलकर मेरे होंठों को अपने मुँह में भर लिया और मुझे अपनी बांहों में भरकर उन्हें जोरों से चूसने लगीं.
अब तो कुछ कहने को रह ही नहीं गया था. इसलिए मैंने भी सुलेखा भाभी को जोरों से भींच लिया और उनके रसीले होंठ को चूसते हुए धीरे से अपनी जीभ को उनके मुँह में घुसा दिया.
सुलेखा भाभी ने भी अपना मुँह खोलकर मेरी जीभ का स्वागत किया और उसे धीरे धीरे चूसते हुए मुझे अपनी बांहों में लेकर पलट गईं. अब सुलेखा भाभी मेरे ऊपर आ गयी थीं और मैं उनके नीचे था. इससे उनकी ठोस भरी हुई चूचियां मेरे सीने पर अपना दबाव बनाने लगीं.
मेरे हाथ अब खुद ब खुद ही सुलेखा भाभी की पीठ पर आ गए थे, जो कि उनके ब्लाउज के बीच के खाली जगह को अपनी उंगलियों से गुदगुदाने लगे. जैसे जैसे मेरी उंगलियां उनकी नंगी पीठ पर घूम रही थीं, वैसे वैसे ही सुलेखा भाभी का बदन भी अब थिरकने सा लगा. मैं और सुलेखा भाभी बड़ी ही तन्मयता से एक दूसरे को चूम रहे थे. ना तो सुलेखा भाभी को कोई जल्दी थी और ना ही मुझे!
सुलेखा भाभी की नंगी पीठ को गुदगुदाते हुए धीरे धीरे मेरे हाथ साड़ी के ऊपर से ही अब सुलेखा भाभी के विशाल नितम्बों पर पहुंच गए. मैंने बस एक दो बार अपनी हथेलियों से उनके नर्म गुदाज और गोलाकर विशाल नितम्बों को सहलाया और फिर नीचे उनके पैरों की तरफ बढ़ गया.
हमारी इस गुत्थमगुत्था की लड़ाई में सुलेखा भाभी की साड़ी और पेटीकोट उनकी पिंडलियों तक ऊपर हो गए थे. जैसे ही मेरे हाथ उनकी मांसल जांघों पर से होते हुए थोड़ा सा नीचे की तरफ बढ़े, मेरे हाथ में उनकी साड़ी का छोर आ गया और मेरे हाथ उनकी नंगी चिकनी पिंडलियों पर घूमने लगे. इससे भाभी की पिंडलियां अपनी चिकनाहट के कारण मेरी हथेलियों को गुदगुदी का सा एहसास करवाने लगीं.
मैं भी अब अपनी हथेलियों से धीरे धीरे सुलेखा भाभी के नंगी चिकनी पिण्डलियों को सहलाते हुए धीरे धीरे उनकी साड़ी को ऊपर की तरफ खिसकाने लगा … मगर उनकी जांघों पर पहुंच कर मेरे हाथ रुक गए. क्योंकि सुलेखा भाभी की साड़ी व पेटीकोट उनके नीचे दबे होने के कारण अब और ऊपर नहीं हो रहे थे. मैंने भी अब अपने हाथों को उनकी साड़ी व पेटीकोट के अन्दर घुसा दिया और अन्दर से ही उनकी चिकनी जांघों को सहलाता हुआ, फिर से ऊपर की तरफ बढ़ने लगा.
उधर ऊपर हमारे होंठ अभी भी एक दूसरे में गुत्थमगुत्था हो रहे थे, ना तो सुलेखा भाभी मेरे होंठों को छोड़ रही थीं और ना ही मैं उन्हें छोड़ने के मूड में था. जब मेरी जीभ सुलेखा भाभी के हाथ लगती, तो वो उसे जोरों से चूसने लगतीं … और जब मुझे सुलेखा भाभी की जीभ हाथ लगती, तो मैं उसे चूसने लगता. हम दोनों को ही अब होश नहीं रह गया था और सुलेखा भाभी की तड़प तो इस चुम्बन से ही प्रतीत हो रही थी. ऐसा लग रहा था कि वो बहुत दिनों से … दिन नहीं … शायद सालों से ही प्यासी थीं.
मेरे हाथ भी अब साड़ी के अन्दर सुलेखा भाभी की नर्म मुलायम जांघों पर से होते हुए पेंटी में कसे हुए उनके विशाल नितम्बों तक पहुंच गए थे. सुलेखा भाभी ने पेंटी पहन रखी थी. मगर वो पेंटी उनके भरे हुए नितम्बों को सम्भालने में नाकामयाब सी लग रही थी. क्योंकि पेंटी उनके बड़े बड़े गोलाकार नितम्बों पर बिल्कुल चिपकी हुई थी. ऐसा लग रहा था कि अभी ही सुलेखा भाभी के नितम्ब उस पेंटी के झीने से कपड़े को फाड़कर बाहर आ जाएंगे.
सुलेखा भाभी के पेंटी में कैद उनके विशाल नितम्बों को सहलाते हुए मैं अब वापस अपने हाथों को पीछे से ही उनकी जांघों के जोड़ की तरफ बढ़ाने लगा. मगर जैसे ही सुलेखा भाभी के विशाल नितम्बों की गोलाई खत्म होने के बाद मेरी उंगलियां उनकी जांघों के जोड़ पर लगीं … वो हल्की सी नम हो गईं. शायद काम क्रीड़ा का खेल खेलते खेलते सुलेखा भाभी की चुत ने कामरस उगल दिया था, जिससे उनकी पेंटी भीग गयी थी.
उत्सुकतावश मैंने भी अब अपने हाथ को थोड़ा सा और नीचे उनकी चुत की तरफ बढ़ा दिया. मगर जैसे ही मेरी उंगलियों ने उनकी गीली चुत को छुआ, सुलेखा भाभी ने अपने दांतों को मेरे होंठों में गड़ा दिया, जिससे मुझे दर्द तो हुआ था, लेकिन मैंने अपने हाथ को वहां से हटाया नहीं बल्कि वहीं पर रखे रहा. चुत के पास से सुलेखा भाभी की पेंटी बिल्कुल गीली हो रखी थी और उसमें से गर्माहट सी निकल रही थी.
मुझसे अब रहा नहीं गया, इसलिए मैंने पीछे से ही एक बार जोर से भाभी की चुत को मसल दिया जिससे सुलेखा भाभी मेरे होंठों को अपने मुँह से आजाद करके थोड़ा सा ऊपर की तरफ उठ कर सिसक उठीं.
सुलेखा भाभी का पल्लू पहले से ही नीचे गिरा हुआ था. अब जैसे ही सुलेखा भाभी उचक कर ऊपर की तरफ हुईं, एक बार फिर से सुलेखा भाभी के लाल ब्लाऊज में कसी हुई बड़ी बड़ी सुडौल और भरी हुई चूचियां मेरे सामने आ गईं.
मैंने भी देर ना करते हुए अपने दोनों हाथों से उन्हें थाम लिया और सीधा ही अपने प्यासे होंठों को उनकी चूचियों की नंगी घाटी के बीच में लगा दिया.
“उह्ह … इई.श्श्शशश …” कहकर सुलेखा भाभी अब एक बार फिर से सिसकार उठीं और अपने दोनों हाथों से मेरे सिर को अपनी चूचियों पर जोरों से दबा लिया. मैंने भी धीरे धीरे उनकी चूचियों की घाटी को अपनी जीभ निकालकर चाटना शुरू कर दिया जिससे सुलेखा भाभी अपनी आंखें बंद करके जोरों से सिसकारियां सी भरने लगीं.
मगर मुझे इतने से सब्र नहीं हो रहा था. मैं तो भाभी की चूचियों को पूरी ही नंगी करके उनके रस को पीना चाह रहा था, इसलिए मैं अब उनके ब्लाउज के हुक खोलने लगा.
मगर जैसे ही मैंने उनके एक दो हुकों को खोला, सुलेखा भाभी ने अपनी आंखें खोल लीं- येऐ … क्याआ … कर … रहे … होओओ?
सुलेखा भाभी ने भर्राई सी आवाजें में कहा.
“बताया तो था डाक्टर से दवाई ले रहा हूँ.” मैंने सुलेखा भाभी की आंखों में देखते हुए कहा और शरारत से हंसने लगा, जिससे सुलेखा भाभी एक बार तो शांत सी हो गईं. शायद वो कुछ सोचने लगी थीं … मगर अगले ही पल वो मुझे अजीब ही नजरों से घूर घूर कर देखने लगीं. उनकी आंखों में तैरते वासना के गुलाबी डोरे अलग ही नजर आ रहे थे. वो मुझे ऐसे देख रही थीं, जैसे कि कच्चा ही खा ही जाएंगी.
“अच्छा तो दवाई चाहिये तुम्हें? देती हूँ … अभी देती हूँ दवाई …” कहते हुए पहले तो सुलेखा भाभी ने अपने ब्लाउज के सारे हुकों को खोल दिया और फिर दोनों हाथों से अपनी ब्रा को पकड़कर एक ही झटके में ऊपर तक खींच कर अपनी चूचियों को बाहर निकाल लिया.
अब जैसे ही सुलेखा भाभी ने अपनी चूचियों को ब्रा की कैद से आजाद किया, उनकी बड़ी बड़ी और सुडौल भरी हुई चूचियां ऐसे फड़फड़ा कर बाहर आ गईं … जैसे कि वर्षों की कैद के बाद कोई पंछी आजाद हुआ हो.
“दवाई चाहिये ना? लेऐ … पीईई … पीईई ये दवाई …” कहते हुए सुलेखा भाभी ने अब खुद ही अपनी चूचियों को मेरे मुँह पर लगा दिया.
मैं तो जैसे जन्मों से उनके लिए ही प्यासा बैठा था … मैंने तुरंत ही उनकी चूचियों के भूरे भूरे निप्पलों में से एक को अपने मुँह में भर लिया और दूसरी चूची को अपनी हथेली में भरकर जोर से मसल दिया.
“इईई … उम्म्ह… अहह… हय… याह… आआह्ह्ह …” की मस्त सी आवाज में सुलेखा भाभी के मुँह से अब एक जोरों से सीत्कार निकल गयी.
ये सब इतनी जल्दी जल्दी हुआ कि मुझे कुछ सोचने और समझने का मौका ही नहीं मिल पाया. पता नहीं यह सुलेखा भाभी की तड़प की वजह से था या फिर मेरी ही उत्तेजना कुछ ज्यादा जोर मार रही थी, पर जो भी हो मैं आज अपनी किस्मत पर फूला नहीं समा रहा था. इसलिए मैं भी पूरे जोश में भर कर उनकी चूचियों को अपने मुँह में लेकर जोर से चूसने लगा.
सुलेखा भाभी की चूचियों को देखने से तो दूर उनको मसलने पर भी ऐसा बिल्कुल भी प्रतीत नहीं हो रहा था कि वो एक ग्यारह बारह साल के बच्चे की मां भी हो सकती हैं. उनकी चूचियां अभी भी बिल्कुल किसी कुंवारी लड़की की तरह ही कसी हुई थीं. बाहर से तो मखमल सी मुलायम और अन्दर से एकदम ठोस भरी हुई व बिल्कुल गुदाज थीं. मैं अब मस्त होकर सुलेखा भाभी की चूचियों को मसल मसलकर चूसने लगा.
“उफफ्फ … ले चूस … महेश्श्श … चूस … चूस ले … चूस लेऐऐ … आज इनकी सारी दवाई …” सुलेखा भाभी ने एक बार फिर से अब एक कामुक सिसकारी भरते हुए कहा और जोरों से मेरे सिर को अपनी चूचियों पर दबाने लगीं.
सुलेखा भाभी की तड़प को देखकर अब मुझे भी समझ आ गया था कि सुलेखा भाभी पता नहीं कब से प्यासी थीं. इसलिए मैं भी उनकी चूचियों को रगड़ रगड़ कर, मसल मसल कर और जोरों से निचोड़ निचोड़ कर उनके रस को पीने लगा और सुलेखा भाभी भी मस्ती से हल्की-हल्की सिसकारियां भरते हुए मेरे सिर को अपनी चूचियों पर दबा दबा कर मुझे अपनी चूचियों के रस को पिलाने लगीं.
सुलेखा भाभी की एक चूची का रस पीने के बाद मैंने उनकी दूसरी चूची को पकड़ लिया और उसका रस पीते पीते अपना एक हाथ उनके चिकने पेट पर से सहलाते हुए नीचे उनकी चुत की तरफ बढ़ा दिया.
सुलेखा भाभी की साड़ी व पेटीकोट को मैंने पहले ही घुटनों के ऊपर कर दिया था और अब मेरे व सुलेखा भाभी के ऊपर नीचे होने के कारण वो बिल्कुल ऊपर तक हो गए थे. इसलिए अब जैसे ही मेरा हाथ पेट पर से होते हुए नीचे की तरफ बढ़ा, मेरे हाथ में उनकी पेंटी में कसी गद्देदार बालों से भरी हुई और फूली हुई चुत आ गई.
इस बात का अहसास सुलेखा भाभी को भी हो गया था कि मेरा एक हाथ अब उनकी चुत पर पहुंच गया है. इसलिए उन्होंने अब खुद ही अपने हाथों व पैरों की सहायता से अपनी पेंटी को उतारकर अलग कर दिया और जल्दी से मेरी बगल में हाथ डालकर मुझे अपने ऊपर खींच लिया.
सुलेखा भाभी के साथ मुझे जब इतना कुछ करने का मौक मिल रहा था, तो मैं उनकी उस फूली हुई चुत को देखे बिना कैसे रह सकता था. मैं फिर से सुलेखा भाभी के बदन से उतरकर उनकी जांघों के पास आ गया और उनकी गहरे काले घने बालों से भरी हुई चुत को बड़े ही ध्यान से देखने लगा.
शायद काफी दिनों से सुलेखा भाभी ने अपनी चुत के बालों को साफ नहीं किया था. इसलिए उनकी चुत गहरे काले घने और घुंघराले बालों से भरी हुई थी जो उनकी योनि को छुपाने की नाकामयाब कोशिश कर रहे थे. चुत की फांकों के पास वाले बाल कामरस से भीग कर उनकी चुत से ही चिपक गए थे इसलिए चुत की गुलाबी फांकें और दोनों फांकों के बीच का हल्का सिन्दूरी रंग इतने गहरे बालों के बीच भी अलग ही नजर आ रहा था.
मैं अब अपने आप को रोक नहीं पाया और अपने दोनों हाथों से उनकी जांघों को फैलाकर सीधा ही अपने प्यासे होंठों को उनकी चूत रख दिया.
“उम्म् … इईई.श्श्शशश … आह्ह …” की एक मीठी सीत्कार सी भरते हुए सुलेखा भाभी ने जोरों से मेरे सिर को अपनी चुत पर दबा लिया और मेरे नथुनों में उनकी चुत की वो मादक सी महक समाती चली गयी.
बेहद ही तीखी और मादक महक थी उनकी चूत की! वैसे तो हर किसी की चुत से ही महक आती है, लेकिन यह खुशबू अलग ही थी … एकदम पकी पकी सी. शायद कुंवारी और शादीशुदा चूतों की महक अलग अलग होती होगी. जैसे किसी कच्चे फल की तुलना में एक पके हुए फल की अलग ही खुशबू होती है, वैसे ही शायद कच्ची चुत और पकी हुई चुत की महक में भी अन्तर होता होगा.
सुलेखा भाभी की चुत की महक मुझे अब किसी की याद दिलाने लगी थी. इस तरह की महक मैं पहले भी ले चुका था … मैंने अपने दिमाग पर जोर दिया तो मेरे जहन में रेखा भाभी का ख्याल आ गया.
आपने मेरी एक पुरानी कहानी
गांव वाली विधवा भाभी की चुदाई
में मेरे और रेखा भाभी के बारे में पढ़ा ही होगा.
रेखा भाभी की चुत की महक भी बिल्कुल ऐसी ही थी और हो भी क्यों ना … दोनों सगी बहनें ही तो हैं और दोनों ही एक एक बच्चे की मां भी हैं. रेखा भाभी से सम्बन्ध बनाये मुझे काफी दिन हो गए थे, मगर फिर भी उनकी चुत उस महक और स्वाद को मैं अभी तक भुला नहीं पाया था.
सुलेखा भाभी की चुत की उस मादक महक ने मुझे दीवाना सा बना दिया था. इसलिए मैंने पहले तो अपने होंठों से उनकी चूत के हर एक हिस्से को चूमा और फिर अपने दोनों हाथों की उंगलियों से चुत की फांकों को फैलाकर उसे अपनी जीभ से चाटना शुरू कर दिया जिससे एकदम नमकीन और कसैला, बिल्कुल रेखा भाभी की चुत के जैसा ही स्वाद मेरे मुँह में घुल गया.
मगर जैसे ही मैंने चुत की फांकों के बीच चाटा ‘उफ्फ … इईईई …श्श्श्शशश … यऐ … ये …क् क्या आ कर अ रहे ऐ हो ओओह …’ सुलेखा भाभी ने एक ज़ोरदार आह भरते हुए कहा और अपनी जांघों को फैलाकर दोनों हाथों से मेरे सिर को अपनी चुत पर जोर से दबा लिया मानो मुझे ही अपनी चुत के अन्दर ही घुसा लेंगी.
सुलेखा भाभी ने मुझे इतनी जोरों से अपनी चुत पर दबा लिया था कि मेरा दम सा घुटने लगा था. मैंने अब अपनी गर्दन हिलाकर उनको इस बात का अहसास करवाया, जिससे सुलेखा भाभी ने एक बार तो मेरे सिर को तो छोड़ दिया मगर अगले ही पल उन्होंने मेरे सिर के बालों को पकड़कर मुझे फिर से अपने ऊपर खींच लिया.
मैं भी ढीठ हो गया था, इसलिए मैं अब फिर से फिसलता हुआ उनकी चुत के पास आ गया और आऊं भी क्यों ना? उनकी चुत की उस मादक महक और स्वाद ने मुझे दीवाना जो बना दिया था. अभी तो मैंने सुलेखा भाभी की चुत का रस बस चखा ही था … अभी तो उसे चाट चाट कर पीना बाकी था.
सुलेखा भाभी की जांघों के पास आकर मैंने अब फिर से अपने प्यास से तड़पते होंठों को उनकी चुत पर लगा दिया. मगर पता नहीं सुलेखा भाभी को इस खेल के बारे में पता नहीं था या फिर अपनी तड़प के कारण वो कुछ ज्यादा ही उतावली हो रही थीं. इसलिए जैसे ही मैंने अब उनकी चुत को चूमा, उन्होंने मुझे पकड़ कर अब नीचे गिरा लिया और अपने पैरों को मेरे दोनों तरफ करके मेरी जांघों पर बैठ गईं.
मैंने अब फिर से उठने की कोशिश तो की मगर सुलेखा भाभी ने मुझे आंखें दिखाते हुए ऐसे घूर कर देखा, जैसे कि मुझे धमका रही हों. मैं अब चुपचाप पड़ा रहा और सुलेखा भाभी ने मेरी जांघों पर बैठे बैठे ही मेरे लोवर को पकड़कर नीचे खिसका दिया.
मेरा लोवर तो अब उतर गया, मगर उसके नीचे मैंने अण्डरवियर भी पहना हुआ था. जिसे देखकर एक बार तो सुलेखा भाभी झुंझला सी गईं मगर अगले ही पल उन्होंने मेरे अण्डरवियर में हाथ फंसा लिए और एक ही झटके में मेरे अण्डरवियर के साथ साथ मेरे लोवर को भी उतारकर मुझे नीचे से नंगा कर लिया.
मुझे नंगा करने के बाद अब जैसे ही सुलेखा भाभी की नजर मेरे तन्नाये नंगे मूसल लंड पर पड़ी, तो एक बार तो उनका पूरा बदन कंपकंपा सा गया.
“यए … ये … ये … क क क्या आ … है?” टूटे फूटे शब्दों में उन्होंने बस इतना ही कहा और तुरन्त मेरे लंड को पकड़ कर अपनी मुट्ठी में ऐसे भींच लिया, जैसे कि वे उसका माप ले रही हों.
मेरा लंड तो पहले से ही तन्नाया हुआ था. अब सुलेखा भाभी के कोमल हाथों का स्पर्श पाते ही वो और भी जोरों से तमतमा कर फुंफकारने सा लगा जिससे सुलेखा भाभी की आंखें अब ऐसे चमक उठीं, जैसे की उन्हें कोई खजाना मिल गया हो.
सुलेखा भाभी ने मेरे लंड को बिल्कुल बीच में से पकड़ा था, जिससे मेरे लंड का सुपारा उनकी उंगलियों के घेरे से बाहर निकलकर बिल्कुल ऐसे ही फुंकार सा रहा था जैसे कि साँप को उसकी गर्दन से पकड़ने पर फुंकारता है. मगर सुलेखा भाभी ने भी उसकी गर्दन को पकड़कर दबोचे रखा और उसे कस कर मरोड़ दिया.
अब तो मेरा सुपारा गुस्से में आकर और भी जोरों से नसें सी फुलाने लगा.
मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में भींचकर सुलेखा भाभी ने अब एक जोर की सांस ली और फिर अपने पैरों को मेरे दोनों तरफ करके सीधा ही मेरे पेट पर चढ़ कर बैठ गईं. मेरे पेट पर बैठकर भाभी एक हाथ से अपनी साड़ी व पेटीकोट को ऊपर उठाकर अपने घुटनों के बल खड़ी हो गईं और फिर दूसरे हाथ से मेरे लंड को पकड़कर अपनी चुत के मुँह पर लगा लिया जिससे मुझे अब अपने लंड पर सुलेखा भाभी की चुत की गर्मी महसूस होने लगी.
मेरे लंड को अपनी चुत के मुँह पर लगाकर सुलेखा भाभी ने एक बार तो मेरी तरफ देखा और फिर अपने शरीर को कड़ा सा करके झटके से लंड पर बैठ गईं.
लंड खाते ही सुलेखा भाभी के मुँह से ‘आआआह्ह्ह … उइईई … इश्श्शशह …’ की एक चीख सी निकल गयी और उनकी भूखी चुत एक बार में ही मेरे पूरे लंड को निगल गयी.
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कहानी जारी है.