दोस्तो, मेरा नाम रोमा गुप्ता है और मैं 28 साल की एक बेहद स्मार्ट औरत हूँ, एक प्राइवेट कंपनी में मैनेजर हूँ, पति भी एक मल्टी नेशनल कंपनी में बड़ी पोस्ट पर है, पर उनकी टूरिंग जॉब है इसलिए अक्सर घर से बाहर ही रहते हैं.
अब प्राइवेट कंपनियों में काम का बोझ तो बहुत होता है इसलिए हम दोनों को हर वक़्त अपने काम की चिंता रहती है, इसी वजह से इस छोटी सी उम्र में ही हमारी सेक्स लाइफ जो है उसमें काफी ठहराव सा आ गया है, इसी वजह से हम दूसरे बेबी की प्लानिंग नहीं कर पाये.
एक बेटी है छोटी सी, अभी स्कूल में एल के जी में है.
अब जब पति घर से अक्सर बाहर रहते हैं, तो जब कभी रात को या दिन में मेरा सेक्स को दिल कर भी जाता तो मेरे पास अपनी आग को बुझाने का कोई दूसरा चारा नहीं था. न ही मेरी ऐसी कोई इच्छा थी कि बाहर किसी से कोई अपना ऐसा संबंध बनाऊँ, तो मेरे पास सिर्फ एक ही ऑप्शन बचती थी, हस्तमैथुन.
पहले तो कभी कभी करती थी, मगर पति पर काम का बोझ इतना था कि वो तो महीने में 15 बाहर और बाकी के 15 दिन में भी बस एक दो बार ही कर पाते थे.
मैंने यह भी देखा कि अब उनमें वो पहले जैसा जोश या ताकत भी नहीं रही थी. कई बार तो मैं कितनी कितनी देर उनके लंड (माफ करना मैं वो शब्द इस्तेमाल नहीं कर सकती इसलिए वरिंदर जी से अनुरोध है कि प्लीज़ जहाँ पप्पू लिखूँ तो मर्दों का ‘वो’ लिख देना और जहाँ मुनिया लिखूँ तो वहाँ लेडीज़ की ‘वो’ लिख देना, और अपने हिसाब से बाकी भी एडजस्ट कर लेना) को अपने मुँह में लेकर चूसती रहती मगर उनमें जोश ही नहीं आता.
उनका लंड थोड़ा बहुत सर उठाता मगर कड़क नहीं होता और वैसे ही ढीला का ढीला रहता, हाँ मेरे चूसने से ढीला ही स्खलित हो जाता और मैं मन ही मन में रोकर रह जाती.
पति भी मेरी चूत को चाट कर या उंगली डाल कर मुझे स्खलित कर देते, मगर लंड से चुद कर स्खलित होने वाला स्वाद नहीं आता, या यूं समझो के लंड से स्खलित हुये तो मुझे अरसा बीत गया, मगर इसके बावजूद भी मैंने कभी बाहर मुँह नहीं मारा, चाहे मेरे ऑफिस के भी बहुत से मर्द मुझ पर लाइन मारते थे.
कई बार सोचा भी कि ‘चलो ये वाला अच्छा है,सुंदर है, जवान है, ये मेरे तन की आग बुझा सकता है!’ मगर नहीं, फिर सोचा अगर कल को बाहर पता चल गया तो ऑफिस में भी बदनामी होगी, और मेरा घर भी टूट सकता है.
इसी वजह से मैं अपने मन को रोक लेती और शाम को घर जाकर उसके नाम से हस्तमैथुन करके अपनी इच्छा और ज़रूरत दोनों को पूरा कर लेती.
वक़्त बीतता गया, एक दिन हमारा एक भतीजा, इनकी बहन का लड़का वीरेन, जो 22 साल का था और गाँव में रहता था, काम ढूंढने मुंबई आया और हमारे ही घर में रुका.
देखने में वो ठीक ठाक था, गंवारपन उसके चेहरे से ही झलकता था, तो मेरे जैसी मॉडर्न औरत के लिए उसकी कोई वैल्यू नहीं थी.
मैंने उसे कभी भाव नहीं दिया.
हाँ वो मुझे जिस नज़र से देखता था, उसका मुझे पूरा ख्याल था, मैंने नोटिस किया था कि वो अक्सर मेरे कपड़ों के अंदर तक देखने की कोशिश करता था.
अब मुंबई में रहने वाली एक मॉडर्न लेडी तो कपड़े भी मॉडर्न ही पहनेगी. मैं भी ऑफिस जाते वक़्त कोट पैंट पहनती थी, हमारी ड्रेस जो थी. घर में अक्सर जीन्स टी शर्ट, या कैप्री वगैरह. रात को मैं खूब ढीली सी नाईटी पहनती थी, जिसका गला बहुत बड़ा था और मेरे आधे से ज़्यादा बूब्स तो उसमे से बाहर ही दिखते थे, ऊपर से उसका कपड़ा भी थोड़ा पतला सा ही था.
चलो ये सब तो आम बात है, मगर मैं फिर भी उसके देखने को इगनोर करती थी. अक्सर मैं उस से अपने घर के काम वगैरह करवाती रहती थी.
ऐसे ही एक दिन मेरे पति अपने काम की वजह से 4-5 दिन के लिए बाहर टूर पे गए थे, शनिवार का दिन था.
घर आकर मैंने देखा फ्रिज में सब्जी नहीं थी, तो सोचा कि चलो जाकर ले आती हूँ. वैसे भी मौसम खराब हो चला था, आसमान में गहरे बादल छा रहे थे, बारिश हो सकती थी, तो मैंने बारिश से पहले ही बाज़ार से सामान लाने का फैसला किया और झट से बेडरूम में गई.
मैंने ऑफिस के कपड़े बदले, एक टॉप और कैप्री पहनी, चश्मा उठाया और जैसे ही जाने लगी. फ़िर सोचा कि सब्जी कौन उठाएगा तो वीरेन को आवाज़ लगाई, स्कूटी निकाली, उसे पीछे बिठाया और मार्केट की और चल दी.
रास्ते में जाते जाते मुझे ऐसा एहसास हुआ जैसे वीरेन जो पीछे से मेरे साथ सट कर बैठा था, उसके और मेरे बीच कोई लकड़ी का डंडा आ गया हो. पर यह लकड़ी का डंडा पहले तो नहीं था, मुझे समझते देर न लगी कि वीरेन का लंड खड़ा हो गया है.
मगर मैं तो उसकी चाची लगती हूँ, फिर यह भी सोचा कि चाची तो हूँ, पर जवानी चाची मामी को नहीं जानती.
पहले तो मैंने सोचा कि इससे कहूँ, पर क्या कहूँ ‘ए वीरेन, अपना पप्पू पीछे हटा?’
नहीं… मैं ऐसे कैसे कह सकती हूँ.
फिर मैं थोड़ा सा आगे को सरक गई, मगर मेरे आगे से सरकने से भी समस्या का कोई हल नहीं निकला, उसका लंड अभी भी मेरे लेफ्ट हिप से लग रहा था.
कभी मन में गुस्सा आता, कभी शर्म सी आती.
इसी कशमकश में मार्केट आ गई, हमने मार्केट में बहुत सारी सब्जी और समान खरीदा और वापिस घर को चल पड़े.
अभी थोड़ी दूर ही गए थे कि जोरदार बारिश शुरू हो गई, बारिश के साथ तेज़ हवा भी चल रही थी.
एकमिनट में ही हम भीग गए, पहले सोचा कि कहीं रुक जाती हूँ, मगर फिर सोचा ‘नहीं’ और स्कूटी दौड़ा दी.
मगर इस बारिश और ठंडी हवा ने तो मेरी कंपकंपी छुड़ा दी.
जब ठंड लगी तो मैंने वीरेन से कहा- अरे बड़ी सर्दी है यार, थोड़ा सा पास होकर बैठ जा, साथ में सट कर!
वीरेन पीछे से बिल्कुल मेरे साथ चिपक गया, मैंने महसूस किया कि उसका लंड बेशक ढीला था, मगर मेरे चूतड़ों के साथ लगने के बाद उसमें फिर से कड़कपन आ रहा था.
थोड़ी सी ही देर में मुझे एक लकड़ी का मोटा डंडा बिल्कुल अपने कूल्हे से सटा हुआ लगने लगा. मगर अब मुझे इससे कोई प्रोब्लम नहीं थी, मेरे दिल एक शैतानी खुराफात ने जन्म ले लिया था.
हम घर पहुँचे, बेटी पड़ोस में ही कोचिंग लेने गई थी, घर में हम अकेले ही थे, मैंने सब्जी उसे रसोई में रखने को कहा, मैंने देखा, उसकी पेंट में से उसके तने हुये लंड की पूरी शेप बनी हुई थी.
मैंने सोच लिया कि आज रात मैं इस गंवार से अपनी प्यास बुझाऊँगी.
मैं बेडरूम में गई और अपनी अलमारी से अपनी नाइटी निकाली, और वीरेन को आवाज़ लगाई कि वो भी अपने गीले कपड़े बदल ले.
मैं नाईटी लेकर बाथरूम में चली गई मगर बाथरूम का दरवाजा मैंने जानबूझ कर पूरा का पूरा खुला छोड़ दिया. जब वीरेन कमरे में आ गया तो मैंने बाथरूम में अपना टॉप उतारा और फिर अपनी कैप्री उतारी.
मेरे बदन पे सिर्फ मेरी ब्रा और पेंटी थी जो बिल्कुल भीग चुकी थी और मेरे ट्रांसपेरेंट ब्रा में से मेरे स्तन और चूचुक बिल्कुल साफ दिख रहे थे.
मैंने बहाने से चोर नज़र से देखा. वीरेन तो आँखें फाड़ फाड़ कर मुझे घूर रहा था, शायद उसे यह उम्मीद ही नहीं थी कि मैं कभी उसे इस रूप में भी दिखूंगी.
मैं जान बूझ कर बेपरवाह बनी बाथरूम में तौलिये से अपना बदन पोंछ रही थी.
तभी अचानक वीरेन पीछे से आया और आकर उसने मुझे पीछे से अपनी बाहों में जकड़ लिया.
मैं एकदम से बोली- वीरेन, यह क्या कर रहे हो?
मगर वीरेन ने अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों उरोज पकड़ लिए और अपना लंड मेरे पीछे मेरे चूतड़ों की दरार से लगा दिया, अपना मुँह मेरे कान के पास लाकर बोला- चाची, मैं आपको बहुत प्यार करता हूँ, मैं आपके बिना नहीं जी सकता, आई लव यू!
कह कर उसने मेरे गाल पर चूम लिया.
मैं अपने आप को उसकी पकड़ से छुड़वाने की कोशिश तो कर रही थी, मगर यह कोशिश सिर्फ दिखावा भर था, क्योंकि मुझे इस सब में मज़ा आ रहा था.
वो मेरी गर्दन और कंधों पर बार बार यहाँ वहाँ चूम रहा था, मेरे दोनों स्तन को हल्के हल्के दबा रहा था, सहला रहा था, अपना लंड वो मेरी पेंटी के ऊपर से ही जैसे मेरे अंदर घुसेड़ देना चाहता था.
मैंने अपने दोनों हाथ से वाश बेसिन पर टिका कर सहारा ले रखा था और वीरेन पीछे से धक्के मार रहा था.
जब मैंने विरोध करना बंद कर दिया तो वीरेन ने मुझे अपनी तरफ घुमाया और मेरे चेहरे को अपने हाथों में पकड़ लिया.
मैंने आँखें बंद कर ली तो वीरेन ने मेरे होंठों को आपने मुँह में लेकर चूमा और मेरे होंठ चूसना शुरू कर दिया, अब उसका लंड मेरे पेट लगा हुआ था और मैं महसूस कर रही थी लंड का साइज़ मेरे पति के लंड से लंबाई और मोटाई दोनों में ज़्यादा है.
मैंने मन में सोचा जब यह लंड मेरी चूत के अंदर घुसेगा तो मुझे कितना मज़ा आएगा.
मेरे होंठ चूसते चूसते वीरेन ने मेरे दोनों बूब्स अब सामने से पकड़ कर दबाना चालू कर दिया तो मैंने भी चूमा चाटी में उसका साथ देना शुरू कर दिया, अब मैं भी उसके होंठ चूम रही थी, उसके होंठों और उसकी जीभ को अपनी जीभ से चाट कर मज़ा ले रही थी.
एक तरह से मैंने खुद को वीरेन के हवाले कर दिया था.
वीरेन ने अपना लंड मेरी दोनों टाँगों के बीच में सेट किया और ज़ोर से ऊपर को उठाया तो मेरे तो पाँव जमीन से उठ गए, लड़के ने अपनी और अपने लंड की ताकत का बहुत सुंदर नमूना पेश किया, और उसकी इसी अदा पर मैंने अपना सब कुछ उसको समर्पित कर दिया, अब वो अगर यही बाथरूम में ही मुझे नंगी करके मेरे साथ सेक्स करे तो मैं उसे एक पल के लिए भी मना नहीं करती.
मगर तभी दरवाजे की घंटी बज गई.
मैंने झट से वीरेन को बाथरूम से बाहर धकेला और झटपट में अपना गीला ब्रा और पेंटी उतार कर नाइटी पहनी और जाकर दरवाजा खोला.
बाहर गुप्ता जी खड़े थे, गुड़िया उनके घर कोचिंग लेने गई थी, मगर बाहर बारिश में भीग गई.
गुप्ताजी ने भी से मेरी नाइटी के गले में से दिख रहे मेरे वक्ष उभारों को अपनी नज़रों से सहलाया, मुझे थोड़ी शर्म सी भी आई, मगर मैंने झट से उनको थैंक्स कहा, गुड़िया को अंदर खींचा और दरवाजा बंद कर लिया.
जब अपने को देखा तो मेरा बायें चूचे का सिर्फ निप्पल ही ढका हुआ था, बाकी तो सारा बूब ही बाहर को निकला पड़ा था.
मुझे बड़ा अजीब लगा के गुप्ताजी भी क्या सोचेंगे मेरे बारे में!
खैर गुड़िया के कपड़े बदलने के बाद मैं उसे हाल में बैठा कर खाना बनाने चली गई.
मगर तभी दरवाजे की घंटी बज गई.
मैंने झट से वीरेन को बाथरूम से बाहर धकेला और झटपट में अपना गीला ब्रा और पेंटी उतार कर नाइटी पहनी और जाकर दरवाजा खोला.
बाहर गुप्ता जी खड़े थे, गुड़िया उनके घर कोचिंग लेने गई थी, मगर बाहर बारिश में भीग गई.
गुप्ताजी ने भी से मेरी नाइटी के गले में से दिख रहे मेरे वक्ष उभारों को अपनी नज़रों से सहलाया, मुझे थोड़ी शर्म सी भी आई, मगर मैंने झट से उनको थैंक्स कहा, गुड़िया को अंदर खींचा और दरवाजा बंद कर लिया.
जब अपने को देखा तो मेरा बायें चूचे का सिर्फ निप्पल ही ढका हुआ था, बाकी तो सारा बूब ही बाहर को निकला पड़ा था.
मुझे बड़ा अजीब लगा के गुप्ताजी भी क्या सोचेंगे मेरे बारे में!
खैर गुड़िया के कपड़े बदलने के बाद मैं उसे हाल में बैठा कर खाना बनाने चली गई.
खाना खाकर मैं अपने कमरे में जाकर लेट गई और सोचने लगी कि आज जो कुछ वीरेन और मेरे बीच हुआ, ठीक हुआ या गलत हुआ, क्या मुझे उससे सेक्स करना चाहिए?
एक दिल कहे कि नहीं यह गलत है, मगर जब भी मुझे उसके पत्थर जैसे सख्त लंड का खयाल आता तो दिल कहता ‘इससे शानदार लौड़ा और नहीं मिलेगा.’
इसी कशमकश में थी कि देखा रात के साढ़े 10 बज गए थे.
मैं उठ कर बाथरूम गई, जब वापिस आई तो बाहर हाल में नज़र मार कर देखा, वहाँ वीरेन बैठा अब भी टीवी देख रहा था.
मैं वापिस आ कर बेड पे लेट गई तभी वीरेन भी कमरे में आ गया.
गुड़िया अभी गहरी नींद में नहीं सोई थी, मैं उसे थपका रही थी, वीरेन आया और मेरे पीछे लेट गया, बिल्कुल मेरे साथ सट कर, उसने अपनी एक टांग मेरे ऊपर रख ली और अपना लंड पीछे से मेरे चूतड़ों से लगा दिया.
मैंने भी थोड़ा सा आगे को झुक कर अपने चूतड़ों की दरार को थोड़ा सा खोला तो वीरेन ने अपना लंड उसमे एडजस्ट कर लिया, मैं पीछे को हुई तो उसका लंड पूरी तरह से मेरी गान्ड की दरार में फिट हो गया.
लंड सेट करने के बाद वीरेन अपनी एक बाजू पीछे से लाकर मेरे सामने रखी और अपने हाथ की उँगलियों से मेरे बड़े सारे क्लीवेज को सहलाने लगा.
पर पुरुष का स्पर्श ही अलग होता है.
मैंने अपनी आँखें बंद कर ली और इस लम्हे का आनन्द लेने लगी.
क्लीवेज सहलाते सहलाते वीरेन ने अपना पूरा हाथ ही मेरी नाईटी के गले से अंदर डाल लिया और मेरे बूब्स को पकड़ कर सहलाने लगा. बहुत अच्छा लग रहा था उसका सहलाना.
फिर उसने मेरा बूब मेरी नाईटी से बाहर निकाला और आगे होकर चूसने को हुआ तो मैंने उसे रोक दिया- यहाँ नहीं वीरेन, गुड़िया उठ जाएगी, दूसरे बेडरूम में चलते हैं.
वीरेन ने मुझे अपनी बाहों मे उठा लिया और दूसरे बेडरूम में ले गया, बड़े प्यार से उसने मुझे बेड पे लिटाया और दरवाजे को लॉक करके बेड पे मेरे पाँव के पास आ कर बैठ गया.
मैं उसको और वो मुझे देखे जा रहा था. मैंने अपना पाँव ऊपर उठाया और उसके कंधे से लगाया, उसने मेरे पाँव के अंगूठे को पहले चूमा फिर अपने मुँह में लेकर चूसा.
जब उसने चूसा तो मेरी चूत और मेरे बूब्स के दोनों निपल्स में जैसे करंट लगा हो, एक झनझनाहट सी हुई, मेरे पाँव के अंगूठे को चूसते चूसते उसने अपना हाथ मेरी टांग पे फेरा और मेरी नाइटी को घुटने तक ऊपर उठा दिया, और उसके बाद पाँव से लेकर घुटने तक मेरी टांग पे चूमता हुआ वो घुटने तक पहुंचा.
फिर इसी तरह दूसरी टांग को पाँव से घुटने तक चूमा, फिर मेरी दोनों टाँगें फैला कर वो बीच में आ बैठा और फिर अपने दोनों हाथों से धीरे मेरी नाइटी को ऊपर उठाता गया और घुटनों से ऊपर चूमता हुआ जांघों तक आ गया.
जब वो मेरी जांघें चूम रहा था तो मुझे एहसास हुआ कि मेरी चूत गीली गीली सी होने लगी है, मैंने अपनी दोनों टाँगें मोड़ ली और इस तरह मैंने खुद अपनी चूत उसके सामने नंगी कर दी.
उसने मेरी चूत को देखा और बड़े प्यार से पहले चूत के आस पास चूमा और फिर मेरी चूत का जो दाना सा बाहर को निकला हुआ था, उस पर पहले चूमा और फिर उसे मुँह में लेकर चूस गया.
सच में मेरी तो जान ही निकल गई.
मेरी चूत के दाने को उसने अपनी जीभ से अच्छी तरह चाटा, मैंने अपनी दोनों टाँगें उसके कंधों पे रख दी और उसके सर के बाल सहलाने लगी, उसने मेरी सारी चूत को अपने मुँह में भर लिया और अपनी जीभ को मेरी चूत के अंदर तक डाल कर चाटा.
मैं तो इस आनम्न्द से अकड़ गई.
उसने मेरी चूत चाटते हुये अपने दोनों हाथों से मेरी नाइटी ऊपर उठा कर मेरे दोनों बूब्स बाहर निकाल लिए और बूब्स को अपने हाथों में पकड़ कर मेरे निप्पलों को अपने अंगूठे और उंगली में पकड़ कर धीरे धीरे मसलने लगा.
यह हरकत भी मुझे बहुत अच्छी लगती है, मैं अपनी कमर गोल गोल घुमा कर उससे अपनी चूत चटवा रही थी, मेरे मुँह से ‘ऊह… उफ़्फ़… आह…’ और न जाने क्या क्या निकल रहा था, मैं सिसकारियाँ भर रही थी, तड़प रही थी.
थोड़ी देर चूत चाटने के बाद उसने मेरी कमर के इर्द गिर्द अपने होंठों और जीभ से चूमा और चाटा, मारे गुदगुदी के मैं तड़प गई, मैंने उसे मना भी किया- नहीं वीरेन ऐसे मत करो, मुझे बहुत गुदगुदी होती है.
मगर वो नहीं माना, कमर और पेट को उसने जी भर के चूमा और मेरे बूब्स तक आ गया, दोनों बूब्स को उसने बारी बारी से चूसा, और ज़ोर से चूसा ताकि मैं और तड़प जाऊँ.
मेरी नाइटी उतार दी, मेरे दोनों हाथों में अपने हाथ पकड़ कर वो खींच कर पीछे ले गया और मेरी दोनों वेक्स की हुई बगलों को भी जीभ से चाट गया, मैं इस गुदगुदी से पागलों की तरह हंस रही थी.
वो मेरे ऊपर लेट गया, उसका तना हुआ लंड उसके लोअर में कैद था मगर मैं उसका दबाव अपनी चूत पर महसूस कर रही थी.
वो कमर हिला हिला कर अपने लंड को मेरी चूत पे घिसा रहा था, मैंने खुद ऊपर होकर उसके होंठ अपने होंठों में ले लिए, मेरी अपनी चूत के पानी का स्वाद मेरे मुँह में आया, मगर यह मैंने पहले भी कई बार हस्तमैथुन करते हुये चखा था.
उसने अपनी जीभ से मेरी जीभ को सहलाया, मैंने भी अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और अपने दोनों हाथ उसके दोनों चूतड़ों पर रख कर उन्हें अपनी तरफ दबाया और कई बार दबाया जैसे मैं उसे अपने अंदर समा लेना चाहती थी.
मेरा इशारा पा कर वो उठ कर खड़ा हुआ और उसने अपनी टी शर्ट उतार दी, उसके सीने पर हल्के बाल थे, नीचे लोअर में उसका तना हुआ लंड उसका लोअर और चड्डी फाड़ कर बाहर आने को बेताब था.
उसने अपना लोअर और चड्डी दोनों एक साथ उतार दिये, करीब साढ़े 6 या 7 इंच लंबा उसका लंड मेरे पति के लंड से लंबा भी था और मोटा भी, और झांटों के गुच्छे में बिल्कुल सीधा तन कर खड़ा था.
मैंने उसके लंड को हाथ में पकड़ कर देखा, गरम और सख्त… मैं खुद को रोक नहीं सकी, मैंने उसका लंड पकड़ कर ही अपनी तरफ खींचा, वो झुका और मैंने उसका लंड अपने मुँह में ले लिया.
‘आह…’ क्या स्वाद मुँह में घुल गया… मैंने जीभ से उसके गुलाबी टोपे को चाटा, जितना लंड मैं अपने मुँह में ले सकती थी मैंने उतना लंड अपने मुँह में अंदर तक लेकर चूसा, वो भी ऊपर से कमर चला रहा था, जिस वजह से उसका लंड मेरे गले के अंदर तक जाकर टकरा रहा था.
अब मैं और बर्दाश्त नहीं कर सकती थी, मेरी चूत पानी से लबालब भीगी पड़ी थी, मैंने कहा- नीचे आ जाओ.
वो पीछे हटा और और मैंने अपने फिर से अपनी टाँगें पूरी तरह खोल कर अपनी चिकनी चूत उसके लंड के सामने कर दी.
उसने अपने लंड का टोपा मेरी चूत के मुँह पर रखा, पहले अपने लंड से मेरी चूत के होंठों को सहलाया, उसके लंड का स्पर्श पाकर मेरे तो तन बदन में झुरझुरी सी उठी, एक खुशी कि अब यह मजबूत लंड मेरी चूत में जाएगा और मुझे ज़िंदगी का असीम आनन्द देगा.
उसने अपना लंड धीरे से अंदर को डाला.
बेशक मैं एक बच्चे की माँ थी, मगर फिर उसका मोटा लंड टाईट होकर अंदर गया. मुझे लगा जितनी मेरी चूत खुली है, उसका लंड उस से भी मोटा है.
गीली चूत होने की वजह से उसका लंड दो तीन बार में ही पूरा अंदर घुस गया, और जैसे कि मुझे अंदाज़ा था, उसका लंड सीधा मेरे यूटरस यानि बच्चेदानी से जा टकराया.
मैंने उसके गले में बाहें डाल कर कस दी और टाँगें उसकी कमर के गिर्द. मैं चाहती थी कि वो मुझे चूमते चाटते हुये चोदे.
मगर जवानी के जोश में उसने धीरे से शुरुआत करके बाद में ताबड़तोड़ चुदाई शुरू कर दी.
मैंने उसे कहा- ऐसे नहीं, आराम से करो, कोई जल्दी नहीं, धीरे धीरे प्यार कर कर के करो.
उसे बात समझ में आ गई, वो नीचे से बेशक मुझे धीरे धीरे चोदने लगा मगर मेरे होंठ, गाल, गर्दन, कंधे, बगलें और जहाँ कहीं भी उसे दिखा, हर जगह को अपने मुँह में लेकर चूस गया.
मेरे बदन पर उसके चूसने और काटने के यहाँ वहाँ न जाने कितने निशान बन गए थे क्योंकि मेरी स्किन बहुत ही सेंसिटिव है.
सच में कहूँ तो उसने मुझे तड़पा दिया. आम तौर पर मुझे झड़ने में 5-6 मिनट लगते हैं, मगर एक तो उस दिन बहुत दिन बाद सेक्स कर रही थी, और दूसरे उसने बहुत प्यार से मेरे साथ सेक्स किया, तो मैं तो बस 3 मिनट भी मुश्किल से ही टिक पाई और मैंने उसके पूरी ताकत से अपनी आगोश में भर लिया और जब मेरी चूत से पानी के फव्वारे छूटे तो मैंने जोश में आकर उसके कंधे पे काट लिया. जितनी देर मैं डिस्चार्ज होती रही उतनी देर मैंने उसके कंधे में अपने दाँत गड़ाए रखे.
मैं खुद भी अपनी कमर नीचे से उठा उठा कर मार रही थी. बहुत बरसों बाद जैसे मेरी आग बुझी थी, मगर मुझे यह लग रहा था कि जितनी देर मैं चाहती थी, उतनी देर मैं सेक्स नहीं कर पाई, अभी तक मेरी चूत की आग ठंडी नहीं पड़ी थी, मैं और चुदना चाहती थी, मगर जब वीरेन ने देखा कि मैं झड़ चुकी हूँ, उसने भी अपनी स्पीड बढ़ा दी और 2 मिनट बाद ही उसने भी अपने लंड से वीर्य की पिचकारियाँ मार मार के मेरी चूत को भर दिया.
वो मेरे ऊपर ही गिर गया- ओह चाची, मज़ा आ गया… बहुत गरम हो आप!
वो बोला.
मैंने कहा- चाची मत कहो मुझे, रोमा पुकारो.
‘ओके रोमा!’ उसने हंस कर कहा.
‘मगर अभी मेरा दिल नहीं भरा है, मुझे और करना है.’ मैंने कहा.
‘मेरा भी दिल नहीं भरा है, थोड़ी देर रुको, अभी तुम्हें एक बार और चुदना है, मेरी जान!” वीरेन ने कहा तो मैं उसके ऊपर चढ़ कर लेट गई और उसके होंठों को चूम लिया.
जब वीरेन ने देखा कि मैं झड़ चुकी हूँ, उसने भी अपनी स्पीड बढ़ा दी और 2 मिनट बाद ही उसने भी अपने लंड से वीर्य की पिचकारियाँ मार मार के मेरी चूत को भर दिया.
वो मेरे ऊपर ही गिर गया- ओह चाची, मज़ा आ गया… बहुत गरम हो आप!
वो बोला.
मैंने कहा- चाची मत कहो मुझे, रोमा पुकारो.
‘ओके रोमा!’ उसने हंस कर कहा.
‘मगर अभी मेरा दिल नहीं भरा है, मुझे और करना है.’ मैंने कहा.
‘मेरा भी दिल नहीं भरा है, थोड़ी देर रुको, अभी तुम्हें एक बार और चुदना है, मेरी जान!’ वीरेन ने कहा तो मैं उसके ऊपर चढ़ कर लेट गई और उसके होंठों को चूम लिया.
उसका गरम वीर्य चू कर मेरी चूत से बाहर टपकने लगा.
‘बहुत माल छोड़ा तुमने तो?’ मैंने उस से कहा.
‘अरे बहुत कहाँ, यह तो कम है, शाम को जब मैंने बाथरूम में तुमसे प्यार किया, तो यह तो पक्का था के रात को सेक्स भी होगा, मगर कहीं जल्दी न झड़ जाऊँ, इस डर मैंने खाना खाने के बाद एक बार हाथ से करके अपना माल निकाल दिया था, अगर हाथ से न करता तो शायद तुम्हें प्यासा छोड़ कर ही मैं आउट हो जाता, और वो तुमको भी अच्छा नहीं लगता!’ वीरेन बोला.
‘अच्छा जी, तो पहले से ही पूरी तैयारी की थी, अगर मैं मना कर देती तो?’ मैंने कहा.
‘अरे जानेमन, न करनी होती तो पहले ही बाथरूम में कर देती, जो बाथरूम में हुआ, उससे ही यह पक्का था कि अगर मैं ना आता तो तुम खुद आती, मुझे पता है, तुम चाचा से खुश नहीं हो, इस लिए हमारा मिलना तो तय था.’ वीरेन ने बड़े विश्वास के साथ कहा.
‘बदमाश…’ मैंने हंस कर कहा तो वीरेन ने अपने दोनों हाथ मेरे दोनों चूतड़ों पे रख दिये, मैंने अपना सर उसके सीने पे रख दिया, वीरेन ने मेरे दोनों चूतड़ों को खोला और अपनी बीच वाली उंगली से मेरी गान्ड के छेद को छूआ.
मैंने आँखें बंद करके उसके सीने पे लेटे लेटे पूछा- ये क्या कर रहे हो?
वो बोला- रोमा मैंने आज तक कभी किसी की गान्ड नहीं मारी है, क्या तुमने कभी मरवाई है?
मैंने कहा- हाँ, मरवाई है, मगर अभी मेरा गान्ड मरवाने का कोई इरादा नहीं है, मुझे अपनी चूत की आग बुझानी है.
कह कर मैंने उसके लंड को सीधा किया और अपनी चूत उस पर रख दी, मैं उठ कर उसकी कमर पर ही बैठ गई, उसका लंड मेरी चूत के ठीक नीचे था, और मैं धीरे धीरे अपनी कमर हिला कर अपनी चूत से उसके लंड मसल रही थी.
मेरे इस मसलने से उसका लंड फिर से टाईट हो गया. उसने मुझे आगे को झुकाया तो मेरे दोनों चूचे उसके चेहरे पर झूल गए, उसने अपने होंठ खोले और मेरे एक स्तन का निप्पल अपने मुँह में ले लिया और चूसने लगा.
‘बहुत अच्छा लगता है दुदु पीना?’ मैंने पूछा.
‘पूछो मत, यही एक चीज़ और औरत के बदन पर जो मर्दों को सबसे ज़्यादा आकर्षित करती है, चाहे देखने को मिले, दबाने को या पीने को, साले मज़ा ही देते हैं.’ कह वीरेन फिर से मेरे दुदु पीने लगा.
मैं भी कभी दायाँ कभी बायाँ, खुद ही बदल बदल कर अपने स्तन उसको चुसवाती रही, क्योंकि उरोज चुसवाने में मुझको भी बड़ा मज़ा आता है.
बूब्ज़ चूसते चूसते ही वीरेन ने मुझे थोड़ा सा आगे करके एडजस्ट किया और इस बार उसका तना हुआ लंड मेरी चूत के मुँह को चूमने लगा.
मैं तो थी ही भूखी, सो बस ज़रा सा पीछे हुई और उसके लंड का टोपा मेरी चूत निगल गई, वीरेन को मैंने कोई ज़ोर नहीं लगाने दिया, खुद ही ऊपर बैठी अपनी कमर हिलाती रही और धीरे धीरे से मैंने उसका सारा लंड अपनी चूत में ले लिया.
बेशक यह थोड़ा दर्दनाक था, क्योंकि 7 इंच का पत्थर की तरह सख्त लौड़ा मेरी चूत में घुसा था, मगर मुझे दर्द की नहीं, मज़े की तमन्ना थी, मैं खुद ब खुद आगे पीछे हो कर आप ही चुदने लगी मगर मेरे कमर हिलाने से सेक्स का वो मज़ा नहीं आ रहा था, तो वीरेन बोला- रोमा, घोड़ी बनोगी?
मैं बिना कुछ कहे उसके ऊपर से उठी, मेरे उठते ही उसका लंड मेरी चूत से पिचक करके निकल गया, मैंने देखा, उसके पेट पर उसका किसी मोटे खीरे जैसा लंड, मेरी चूत के पानी से भीगा हुआ, बिल्कुल सीधा ऊपर को मुँह उठाए पड़ा हुआ था.
एक बार तो मैंने भी देख कर सोचा ‘यार इतना बड़ा और मोटा लंड मैं ले कैसे गई?’
उसकी कमर से उतर कर मैं घोड़ी बन गई, वीरेन ने मेरे पीछे से आकर मेरी चूत पर अपना लंड फिर से टिकाया, थोड़ा सा मैं पीछे को हुई, थोड़ा सा वो आगे को हुआ और पूरा लंड आराम से फिर से मेरी प्यासी चूत में घुस गया, मगर इस पोज़ में मुझे गुदगुदी बहुत होती है, और घोड़ी बन कर चुदते समय अक्सर मेरी हंसी निकल जाया करती है.
तो जब वीरेन ने मुझे पीछे से चोदना शुरू किया, वो पूरा लंड बाहर निकाल लेता सिर्फ लंड का टोपा अंदर रहता और फिर पूरा लंड बिल्कुल अंदर तक घुसेड़ देता, जिससे मेरी चूत की अंदर तक रगड़ाई होती और मेरी खुजली शांत होती.
मैं खुद भी अपनी कमर आगे पीछे चला रही थी तो वीरेन रुक गया, मैंने पूछा- क्या हुआ, रुक क्यों गए?
वो बोला- तुम करो, मुझे मज़ा आ रहा है.
मैं खुद ही आगे पीछे होने लगी, सच में खुद चुदाई करवाने में भी बहुत मज़ा है. कितनी देर मैं खुद ही चुदती रही.
फिर वीरेन बोला- उठो ज़रा, किसी और स्टाइल में करते हैं.
वो मुझे दीवार के पास ले गया, मुझे दीवार के साथ पीठ के बल खड़ा किया, फिर मेरी एक टांग उठा कर अपने कंधे पर रखी, उसके बाद दूसरी टांग, इस तरह मुझे हवा में टांग कर उसने अपना लंड मेरी चूत में डाला और चोदने लगा.
मगर यह पोज भी थोड़ा तकलीफ वाला था, थोड़ा सा करके हम वापिस बेड पे आ गए, मुझे नीचे लेटा कर वीरेन ऊपर आ गया, मैंने उसके लिए अपनी टाँगें फैलाई और उसका लंड पकड़ कर अपनी चूत पे रखा, उसने अंदर डाल दिया और चोदने लगा.
बहुत समय बाद या यूं कहो कि बरसों बाद मेरी चूत की आग ठंडी हो रही थी, उसके लंड की रगड़ से मेरे रोम रोम में बिजलियाँ टूट रही थी, उसके लंड का टोपा अंदर जाकर मेरी चूत के आखरी किनारे से टकराता तो ऐसे लगता जैसा मेरे पेट के अंदर से होकर मेरे कलेजे तक चोट कर रहा है.
करीब 10 मिनट वो मुझे ऐसे ही चोदता रहा, मैं उसे और वो मुझे कभी चूमते चाटते, अपनी दिल की हर तमन्ना पूरी कर रहे थे, मेरा तो पूरा चेहरा उसके थूक से गीला हो चुका था, बार बार वो मुझे अपनी जीभ से चाट रहा था, जैसे मैं कोई चॉकलेट या टॉफी हूँ.
‘इतना क्यों चाट रहे हो?’ मैंने पूछा.
‘आज मेरी ज़िंदगी की पहली रात है, जिसमे मैं किसी लड़की से इतनी तसल्ली से, इतने प्यार और मज़े से सेक्स कर रहा हूँ, पहले भी किया है पर हमेश जल्दबाज़ी में किया है, तुम बहुत प्यारी हो रोमा, मुझे तुमसे बहुत प्यार हो गया है और मैं इस सेक्स को अपनी ज़िंदगी का आखरी सेक्स समझ कर रहा हूँ, पता नहीं तुम फिर कभी मिलो या न मिलो, फिर कभी हम सेक्स कर पाएँ या नहीं!’ वीरेन ने कहा.
मैं बोली- बात सुनो राजा, आज मैं कसम खा कर कहती हूँ, ज़िंदगी में अगर कभी भी मेरे तन की ज़रूरत पड़े, मैं हमेशा तुम्हारे लिए तैयार हूँ, जो सेक्स का मज़ा तुमने आज मुझे दिया है, वो मैं बरसों से पाना चाह रही थी, मैं भी कहती हूँ कि मुझे तुमसे प्यार हो गया है, तुम्हारे इस लंड से प्यार हो गया है.’
कह कर मैंने उसके होंठ चूम लिए तो वीरेन ने अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी, मैं उसकी जीभ चूसने लगी.
प्यार में आकर उसने मुझे इतनी ज़ोर से बाहों में भींचा कि मेरी तो पसलियाँ कड़क गई.
‘इतना प्यार, इतना जोश?’ मैंने हंस कर कहा वो जोश में बड़े ज़ोर ज़ोर से चुदाई करने लगा.
मैं तो चारों खाने चित्त पहलवान की तरह बेड पे हाथ पाँव फैला कर लेटी थी और वो मुझे ताबड़तोड़ चोदने में लगा था, इस जबर्दस्त चुदाई ने मुझे झाड़ दिया, मैं बिस्तर पर पड़ी पड़ी अकड़ गई, जितनी जान मुझमें थी, उतनी जान से मैं अपनी कमर उठा कर उसकी कमर में मार रही थी, ताकि उसका लंड मेरी चूत के अंदर और ज़ोर से चोट करे.
मेरी चूत से गिरने वाले पानी ने बेड की चादर पे एक प्लेट जितना बड़ा निशान बना दिया था. मेरा दिल चाह रहा था कि मैं इस लम्हे में इसी हालत में मर जाऊँ. ज़िंदगी में पहली बार मुझे स्खलित होने में इतना मज़ा आया.
जब मेरा जोश ठंडा हो गया तो मैं निढाल हो कर लेट गई, मेरी सांस तेज़ चल रही थी, वीरेन धीरे धीरे मुझे चोद रहा था.
जब मैं थोड़ी संभली तो उसने अपना लंड मेरी चूत से निकाला और मेरे मुँह में दे दिया, मैं चूसने लगी, और फिर उसने मेरे मुँह में ही अपने वीर्य की बहार ला दी.
काफी लंबी चुदाई के बाद उसका ढेर सारा वीर्य छूटा, जिससे मेरा मुँह भर गया, कुछ मुँह के बाहर बह गया, कुछ चेहरे पे, माथे पे इधर उधर लग गया, थोड़ा सा शायद मुँह के अंदर भी चला गया.
मैं उठ कर बाथरूम की तरफ भागी और वाश बेसिन पे जा कर थूका, मुँह में पानी लेकर कुल्ला किया, फिर जा कर कमोड पर बैठ गई. कुछ देर पता नहीं क्या क्या सोचती रही, शायद ब्लैंक ही हो गई थी.
फिर उठ कर बेडरूम में आ गई, वीरेन बेड पे बिल्कुल नंगा लेटा था, अब उसका लंड भी ढीला पड़ चुका था.
मैं उसके साथ चिपक कर लेट गई, न जाने कब नींद आ गई.
सुबह जब उठी तो रात की ज़बरदस्त चुदाई के बाद, अब चूत में हल्का सा दर्द था, पेट भी दुख रहा था मगर फिर भी तन फूल की तरह हल्का था और मन, मन तो बस आसमान में उड़ रहा था क्योंकि जो सर्दी कल मुझे लग रही थी, एक नौजवान ने अपने जिस्म से गर्मी दे कर दूर कर दी थी.