यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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कुंवारी भाभी की कहानी के पिछले भाग में आपने पढ़ा था कि मुझे अपने ऊपर झुका देख कर मेरी इस हरकत का एहसास तो भाभी को भी हो गया था, पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं थी, तो मैंने भी मौके का फायदा उठाकर अपना एक हाथ उनके उभरे हुए वक्ष पर रख दिया. भाभी के मम्मों पर हाथ रखते ही मैंने किस करना बंद कर दिया और अपना चेहरा ठीक उनके चेहरे के सामने करके रुक गया. थोड़ी देर तक जब मैंने कोई हरकत नहीं की, तो उन्होंने अपनी आंखें खोलीं. मेरा चेहरा ठीक अपने चेहरे के सामने पाकर भाभी ने तुरंत ही फिर से आंखों को बंद कर लिया. कुछ सेकेंड बाद उन्होंने फिर से आंखें खोल कर मेरी तरफ ऐसे देखा जैसे पूछ रही हों कि क्या हुआ रुक क्यों गए?
अब आगे:
उनका चेहरा देख कर मुझे हंसी आ गयी और मेरी हंसी देख कर उन्हें भी हंसी आ गयी. मैं फिर से शुरू हो गया. मेरे होंठ कल्पना भाभी के होंठों के साथ उलझे हुए थे और मेरा हाथ उनके चूचों पर था.
लगभग 5-7 मिनट तक मैं वैसे ही लगा रहा. अब मुझे आगे बढ़ना था, तो मैंने अपना एक हाथ उनकी कमर के नीचे ले जाकर उनकी ब्रा के स्ट्रिप का हुक खोलने की कोशिश करने लगा. उन्होंने भी अपनी पीठ ऊपर उठाकर मेरा सहयोग किया, जिससे मेरा काम थोड़ा आसान हो गया और मैंने उनकी ब्रा का हुक खोल दिया.
फिर मैंने भाभी को उनके हाथ पकड़ कर बैठा दिया और अपने दोनों पैर उनकी कमर के दोनों तरफ करके बैठ गया. उनके होंठ ठीक मेरे होंठों के पास पाकर, मैं फिर से उन्हें किस करने लगा और उनके टॉप को निकाल कर साइड में रख दिया. भाभी की ब्रा, जिसकी हुक पहले ही खुल चुकी थी, वो भी लटक कर नीचे की तरफ झुक गई थी, जैसे वो भी उनके कोमल मुलायम चूचों को आज़ाद करना चाहती हों.
मैं उन्हें किस और स्मूच करता रहा और उनकी नंगी पीठ कमर पर अपने हाथ चलाता रहा. थोड़ी देर में उन्होंने खुद ही अपनी ब्रा को निकाल कर साइड में यूं फेंक दिया, जैसे उन्हें अब ब्रा की जरूरत ही ना हो. भाभी के दूध जैसे सफेद चुचे और गुलाबी रंग के निप्पल देख के मेरा खुद पर कंट्रोल करना थोड़ा मुश्किल हो गया. वो ऊपर से पूरी नंगी हो चुकी थीं, जबकि मैं अभी भी पूरे कपड़े में था.
मैंने भी अपनी टी-शर्ट को निकाल फेंका और भाभी की चुचियों पर टूट पड़ा. उनकी चुचियों पर मेरे मुख का स्पर्श पड़ते ही उनके मुँह से भी मादक सिसकारियां निकलने लगीं. उनके एक मम्मे पर मेरा मुँह लगा था, तो दूसरे पर मेरा हाथ था. मैं कभी उनके मम्मे को सहलाता, तो कभी मसल देता और मुँह से भी कभी प्यार से चूसता जाता, तो कभी हल्के से काट लेता, जिससे उनकी कभी तेज स्वर में सिसकारियां निकल जातीं, तो कभी आह निकल जाती.
जैसे जैसे मेरी हरकतें बढ़ती गईं, वैसे वैसे उनकी सिसकारियां और आहें कराहें भी बढ़ती गईं. मेरे लिए और आगे बढ़ने का ये सही वक्त था. मैं उनके ऊपर से हट कर साइड में कंधे के बल लेट गया और उन्हें भी अपनी तरफ कर लिया. मैं अब उन्हें फिर से किस करने लगा. मैं अपने हाथ को भाभी के मम्मों से हटा कर धीरे धीरे नीचे लेकर जाने लगा. पहले थोड़ी देर तक मैंने उनका सपाट पेट सहलाया, फिर अपना हाथ नीचे की ओर लेकर जाने लगा.
तभी उन्होंने मेरे हाथ अपने हाथ से कस कर पकड़ लिया और नीचे जाने से रोक दिया. मैंने एक दो बार फिर से हाथ नीचे लेकर जाने की कोशिश की, पर उन्होंने मुझे हर बार रोक दिया. मैंने भी अपना हाथ ढीला छोड़ दिया और अपने होंठ उनके होंठ से अलग कर लिए. मेरी तरफ देखते हुए उन्होंने ना में सिर हिलाया.
मैंने पलकें झुका कर उन्हें आश्वासन दिया. तब उन्होंने अपनी पकड़ ढीली कर दी, जो मेरे लिए हरी झंडी थी.
मैंने अपना हाथ इस बार सीधे उनके पायजामे के ऊपर से ही उनकी चूत पर रख दिया. वो हाथ का टच मिलते ही एकदम से उछल पड़ीं. उनके पायजामे का वो हिस्सा काफी गीला हो चुका था. कपड़े के ऊपर से ही छूने से मुझे ऐसा अहसास हुआ जैसे उनकी चूत गरम भट्टी की तरह जल रही हो. मैं पायजामे के ऊपर से ही भाभी की चूत को धीरे धीरे सहलाने लगा और चूत के दाने को धीरे धीरे मसलने लगा. वो अपना सर इधर उधर झटकने लगीं, साथ ही उनकी तेज सिसकारियां भी निकलने लगीं.
इधर मेरे लंड की भी हालत काफी खराब हो गई थी. कब से खड़े मेरे लंड में भी दर्द होने लगा था.
दोस्तो, यहां मैं आप लोगों को बताना चाहूंगा कि ये सब उनके साथ पहली बार हो रहा था, इससे पहले किसी भी दूसरे इंसान ने उनकी चूत को छुआ तक नहीं था, सिवाय उनके खुद के.
अब मैं फिर से उनके ऊपर आ गया और उनके होंठों से चूमना शुरू करते हुए धीरे धीरे नीचे की तरफ जाने लगा. जब मैंने उनकी नाभि को चूमा, तो गुदगुदी के कारण वो हँसने लगीं. मैं जगह बनाते हुए उनके दोनों पैरों के बीच बैठ गया. अब भाभी की चूत और मेरे होंठ के बीच बस उनके कपड़े ही थे.
एक बार तो मैंने ध्यान से उनकी चूत को देखा, फिर कपड़े के ऊपर से उनकी चूत पर अपना मुँह रख दिया. वो तड़प उठीं और मेरा सर पकड़ कर मुझे ऊपर उठा दिया.
उनके लिए ये एक नई फ़ीलिंग थी और वो समझ ही नहीं सकी थीं कि वो कैसे रियेक्ट करें.
इसके बाद मैंने अपने दोनों हाथ उनके पायजामे की इलास्टिक पर रख दिए और उसमें अपनी उंगली फंसा दीं. इससे उन्हें भी समझ में आ गया कि अब मैं क्या करने वाला हूं. उन्होंने हल्के से अपनी कमर को ऊपर कर दिया, तो मैंने बिना समय गंवाए उनके पायजामे को उनके पैरों की तरफ खींच दिया.
आह … क्या मस्त नज़ारा था वो … गोरी गोरी जांघों के बीच गुलाबी कलर की पैंटी.
कल्पना भाभी ने शर्म के मारे अपने हाथों से अपना चेहरा छुपा लिया. अब मैं खुद को थोड़ा एडजस्ट करके अपने दांतों से उनकी पैंटी के इलास्टिक को पकड़ लिया और धीरे धीरे नीचे सरकाने लगा. मैं जैसे जैसे नीचे को पेंटी सरकाता गया, वैसे वैसे उनकी चूत के आसपास का एरिया दिखना शुरू हो गया.
कुछ पल के लिए उनकी पैंटी भी उनकी चूत छोड़ने को तैयार नहीं थी. तब उन्होंने फिर से अपनी कमर को उठा कर पैंटी और अपनी चूत के साथ को कुछ समय के लिए तोड़ दिया. उनका कमर उठाना ही मेरे लिए उनकी सहमति का सिग्नल था.
मैं एक बार फिर से उनकी पैंटी को नीचे खींचने लगा, पर इस बार मैंने अपने चेहरे को उनके शरीर से चिपका दिया, ताकि मेरे होंठ उनकी चूत के होंठों को छू कर निकले … और हुआ भी वही. जैसे ही मेरे होंठ उनकी चूत के पास पहुंचे, मैंने अपने होंठों से उनकी चूत के नीचे के होंठों को चूम लिया. उस सिचुएशन में मैं ज्यादा कुछ कर नहीं सकता था, तो मैंने पूरा ध्यान उनकी पैंटी को निकालने में लगाया और अपने मुँह से पकड़े हुए उनकी पैंटी को घुटनों तक लाकर छोड़ दिया. बाकी का काम मेरे हाथ ने किया. मतलब पायजामे और पैंटी दोनों को उनके शरीर से अलग कर दिया.
अब मेरा ध्यान कल्पना भाभी की बुर पर हो गया. क्या गुलाबी बुर थी यार … एकदम साफ … एक भी बाल नहीं, जैसे आज ही मेरे लिए बुर को शेव किया हो. बुर की दोनों फांकें एकदम फूली हुई थीं, जैसे पावरोटी एक दूसरे से चिपकी हुई हों. कल्पना की बुर का ऊपरी हिस्सा, जहां दोनों फांकें मिली होती हैं, वहीं पर एक छोटा सा दाना था और उसके ठीक एक इंच ऊपर एक काला तिल था. बुर के निचले छेद वाला हिस्से से थोड़ा थोड़ा हल्का सफेद पानी निकल रहा था. कल्पना की बुर बहुत ज्यादा बड़ी नहीं थी. उनकी बुर में यही कोई 3-4 इंच का चीरा था.
आहह हहा … मेरी आँखों के सामने क्या मस्त नज़ारा था. कसम खा कर कहता हूं दोस्तो, जब घर से निकला था, तब यही सोच रहा था कि चलो आज फिर चोदने को एक नई चूत मिलेगी, पर ऐसी चूत मिलेगी, ऐसा तो मैंने सोचा ही नहीं था. अभी तक मैंने कई चूत के दर्शन भी किये और अपने लंड को चूत में भ्रमण भी कराया था, पर मुझे आज तक ऐसी चूत कभी नहीं मिली थी.
कुछ पल के लिए मेरी पलकें झपकना ही भूल गईं और मैं कभी उनके चेहरे को देखता, तो कभी उनके बुर को देखता. करीब एक मिनट तक मैं उनकी बुर को ही देखता रहा.
अब मेरा खुद को रोकना मुश्किल हो गया तो मैंने अपने होंठ उनकी कुंवारी बुर पर रख दिए. मेरे होंठ का स्पर्श अपनी चूत पर पाकर कल्पना मचल उठीं और सिसकारियां भरने लगीं. मैं उनकी बुर की दरारों में अपनी जीभ चलाने लगा. मैंने चूत की दरार को नीचे से ऊपर तक खूब चाटा, कई कई बार चाटा. फिर कल्पना भाभी की समूची चूत को अपने मुँह में भर कर झिंझोड़ डाला.
आनन्द के मारे कल्पना के मुँह से किलकारी निकलने लगी. फिर अपने हाथ ऊपर ले जाकर मैंने उनके दोनों मम्मे पकड़ लिए और चूत का दाना, वो छोटा सा भागंकुर अपनी जीभ से टटोलने लगा. फिर उनके इस दाने को अपने मुँह में लेकर खींचते हुए चूसा और चूत की गहराई में जीभ घुसा कर प्यार से, बहुत ही निष्ठा पूर्वक उनकी रसीली बुर चाटने लगा.
बेचारी कल्पना भाभी, इतना सब कैसे सहन कर पातीं. बदले में वो अपनी कमर उठा उठा कर अपनी चूत मेरे मुँह पे मारने लगीं. अब मैं अपनी नाक चूत की गहराई में रगड़ता हुआ चूत चाटने लगा था.
मुश्किल से एक या डेढ़ मिनट ही बीता होगा कि उन्होंने मेरे बाल कस कर पकड़ लिए और काँपने लगीं … और भलभला कर मेरे मुँह में ही झड़ गईं. उनकी बुर से निकला पानी भी मुझे अमृत लगा और मैंने एक एक बूंद को चाट कर पी लिया.
एक बार झड़ने की वजह से कल्पना भाभी एकदम शांत पड़ गयी थीं. उनके चेहरे पर संतुष्टि के भाव साफ झलक रहे थे. मैं भी उनके बगल में आकर लेट गया और उनके मासूम से चेहरे को देखने लगा.
थोड़ी देर ऐसे ही पड़े रहने के बाद मैं फिर उनके बदन पर अपने हाथ चलाने लगा.
कल्पना, मेरी तरफ देख कर मुस्कुराईं. जिसका मतलब साफ था कि मेरा उनकी बुर को चाटना उन्हें अच्छा लगा. फिर भी मैंने कन्फर्म करने के लिए पूछा- अभी तक का कैसा अनुभव रहा आपका मेरे साथ?
कल्पना ने थोड़ा सोचने के बाद कहा- जैसा कि आप जानते हैं, पहली बार किसी आदमी या दूसरे इंसान ने मेरी उस जगह को छुआ और किस किया.
मैंने उनकी बात काटते हुए कहा- कौन सी जगह? कुछ नाम है या …
अपनी बात को मैंने अधूरा छोड़ दिया.
पहले तो मेरी तरफ देख कर कल्पना मुस्कुराईं, फिर छत की तरफ देखते हुए कहने लगीं- नीचे …
मैंने अनजान बनते हुए कहा- पेट पर या नाभि पर?
इस बार उन्होंने मेरी तरफ गुस्से से देखा और छत की तरफ देखते हुए कहा- पेट और नाभि से थोड़ा और नीचे.
मैं- कमर पर?
कल्पना ने खीझते हुए जबाव दिया- कहीं नहीं..
मैंने अपना चेहरा ठीक उनके चेहरे के सामने करके और अपना हाथ उनके मम्मे से हटा कर उनकी चूत पर रखते हुए कहा.
मैं- यहां?
मेरी आंखों में देखते हुए उन्होंने अपना सर सहमति में हिलाया.
मैं- इसे कुछ कहते भी हैं या बस इशारे में बताते है इसके बारे में?
कल्पना- पुसी
उसने इंग्लिश में नाम बताया.
मैं- ये तो इंग्लिश में हुआ, हिंदी में भी कुछ कहते ही होंगे या कुछ तो नाम होगा.
कल्पना ने फिर से खीझते हुए कहा- आपको जो कहना है, कह लो, जो नाम देना है, दे दो, मुझे नहीं पता.
मैं उनका मतलब और उनकी मनोदशा को अच्छे से समझ रहा था.
मैं- अगर मैं मेरी बात करूँ, तो मैं तो इसे बुर या चूत कहता हूं … आप क्या कहती हो पता नहीं.
मेरे मुँह से चूत और बुर शब्द सुनते ही वो शरमा गईं और अपना चेहरा मेरे सीने से छुपा लिया.
मैंने उनके बालों पर अपना हाथ सहलाते हुए कहा- हां तो आप बता रही थीं कि जब मैंने आपकी बुर को किस किया, तो कैसा लगा था आपको?
एक बार मेरी तरफ देखा और फिर से मुस्कुराते हुए अपना चेहरा छुपा लिया.
मैं- कुछ बोलेंगी भी या शर्माते ही रहेंगी? अगर आप बताओगी नहीं, तो मुझे कैसे मालूम पड़ेगा कि आपको कैसा लगा और जब तक मुझे मालूम नहीं पड़ेगा, तो आगे मुझे क्या करना है, ये कैसे मैं डिसाइड करूँगा. आप तो जानती हो कि मेरा काम ही है अपने पार्टनर को अच्छे से खुश करना.
कल्पना ने थोड़ा झिझकते हुए कहा- जब आपने नीचे किस किया, तो मुझे समझ में ही नहीं आया कि क्या हुआ मुझे, इतना अच्छा मुझे कभी नहीं लगा था, वो अहसास मैं कैसे बताऊं आपको, मेरी समझ में नहीं आ रहा है.
मैं- फिर से नीचे कहा?
इस बार मैंने थोड़ा गुस्से का नाटक करते हुए अपना हाथ उनकी चूत से हटा लिया.
कल्पना भाभी ने अपने हाथ से मेरा हाथ पकड़कर अपनी बुर पर रखते हुए कहा- यहां.
मैं समझ गया कि ये इतनी जल्दी बुर या चूत शब्द का प्रयोग नहीं करेगी, पर मैंने भी सोच लिया कि अब जब तक ये चूत, बुर, लंड जैसे शब्द का प्रयोग नहीं करेगी, तब तक मैं भी इसे तड़पाता रहूंगा.
मैंने उन्हें समझाया कि सेक्स के दौरान शर्म, झिझक नहीं करते, वरना आप सेक्स का पूरा मज़ा नहीं ले पाओगी.
उन्होंने हम्म कहा.
मैं- फिर से शुरू करें?
कल्पना ने कुछ बोला नहीं, सिर्फ सहमति में सर हिलाया.
मैं एक बार फिर उठ कर बैठ गया और उनके पैरों के पास जाकर बैठ गया. इस बार उन्होंने खुद अपने पैर चौड़े करके मेरे बैठने के लिए जगह बना दी. मैंने भी अपने घुटनों पर बैठते हुए अपना मुँह को उनकी बुर पर लगा दिया. इस बार मैं एक हाथ से उनकी बुर के दाने को हल्के हल्के मसलना और उनकी बुर भी चाटना एक साथ शुरू किया.
मेरी इस हरकत से वो अपना कंट्रोल खो बैठीं और जोर जोर से अपनी कमर ऊपर नीचे करने लगीं. उनकी सिसकारियों के बदले अब कामुक सीत्कारें आने लगीं- आह … आह … सी … आह …
यहां मैं आप लोगों को बताना चाहूंगा कि अपनी स्टोरी बताने के दौरान कल्पना ने मुझे ये भी बताया था कि वो अपने कॉलेज के टाइम से ही पोर्न फिल्में देखती आ रही हैं और उन्होंने एक दो बार अपनी चूत में गाजर मूली या बैगन भी डालने की कोशिश की थी, पर एक या डेढ़ इंच से ज्यादा कभी डाल नहीं पायी थीं. बुर के दाने को मसलना, अपनी एक उंगली सिर्फ वहां तक डालना, जहां तक दर्द न हो, ये सब वो उस वक्त करती रही थीं, जब कभी भी उन्हें मौका मिल जाता था.
मैंने भी सोचा चलो देखते हैं कितनी अन्दर तक खुली है इनकी बुर, इसलिए मैं दूसरे हाथ की एक उंगली उनकी बुर के छेद में डालने लगा. एक डेढ़ इंच तक तो उंगली आराम से चला गई, पर जब थोड़ा और जोर लगाया, तो उनकी चीख निकल गयी ‘उम्म्ह… अहह… हय… याह…’
उन्होंने मेरे बालों को पकड़ के मेरा मुँह अपनी चूत से हटा दिया- दर्द हो रहा है.
मैं- थोड़ा तो दर्द सहना ही पड़ेगा, ये मैंने आपको शुरू में ही बताया था.
कल्पना- ह्म्म्म … ट्राय करती हूं.
शादीशुदा भाभी की कुंवारी बुर के चोदन की कहानी के इस भाग से संबंधित आपके सुझाव मुझे भेजें.
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कहानी जारी है.