यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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अभी तक कहानी के पिछले भाग में कल्पना ने बताया कि मेरी सास मुझे एक कॉल ब्वॉय से मिलने को समझा रही थीं और मैंने उन्हें ‘सोच कर बताती हूँ..’ बोल कर कुछ टाइम के लिए चुप करा दिया और अपने कमरे में चली गयी.
अब आगे:
वहां से तो मैं अपने रूम में आ गयी, पर अभी भी समझ में नहीं आ रहा था कि अभी जो कुछ हुआ या मम्मी जी ने जो कुछ कहा, क्या वो सब सच था या मैं अभी कोई सपना देख रही हूँ.
मेरी कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ … क्या इस दिन के लिए मैंने अपनी कुंवारापन बचा के रखा था? क्या मुझे मम्मी जी की बात मान लेनी चाहिये? या इस बारे में अपने मम्मी पापा से बात करूँ? या जैसा मम्मी जी ने कहा कि ऐसी लाइफ को एन्जॉय करूँ? क्या अब मुझे पूरी जिंदगी नए नए मर्द के साथ बितानी है या कोई मेरा भी अपना है, जिस पर मेरा हक़ हो … समझ में नहीं आ रहा था कि मम्मी जी ने मेरे साथ कोई मज़ाक तो नहीं किया?
जब कभी काम से फ्री होती, यही सब दिमाग में चलने लगता.
अगले 2 दिन मैंने मम्मी जी से कोई बात नहीं की … मम्मी जी से नजरें मिलाने में भी अजीब लग रहा था. मम्मी जी को देखते ही मैं उनसे दूर भागने लगती. क्योंकि अभी तक मैं कुछ डिसाइड नहीं कर पाई थी.
अगले दिन जब मैं फ्रेश होकर अपने रूम में बैठी यही सब सोच रही थी, तभी मम्मी जी मुझे आवाज देते हुए मेरे रूम में ही आ गईं- क्या हुआ कल्पना? तू मुझसे दूर क्यों भाग रही है?
मैं- न … नहीं मम्मी जी, मैं आपसे कहा भाग रही हूँ … वो तो काम में बिजी थी, बस इस वजह से बात करने का टाइम नहीं मिला.
सासू माँ- बेटा, इस घर में काम करने के लिए नौकर नौकरानी हैं, तुझे क्या जरूरत काम करने की!
मैं- ह्म्म्म … वो …
फिर मैं अपनी बात कहते हुए रुक गयी.
सासू माँ- बोल बेटा, क्या बोलना चाहती है तू? तूने कुछ सोचा या नहीं?
मैं- सच कहूँ तो मम्मी जी मैं अभी तक कुछ भी डिसाइड नहीं कर पायी हूँ कि मुझे क्या करना चाहिए.
सासू माँ- मैं तेरी मुश्किल समझ सकती हूं बेटा, पर तू तो जानती है कि हितेश को तुझसे कोई मतलब है नहीं और तू उसके लिए अपनी खुशियां क्यों बर्बाद कर रही है.
मैं- सच कह तो मम्मी जी, मुझे अभी भी भरोसा नहीं हो रहा है कि हितेश गे है … इसलिए मैं..
मैंने फिर से अपनी बात अधूरी छोड़ दी.
सासू माँ ने लंबी सांस लेते हुए कहा- ह्म्म्म … एक मिनट तू रुक बेटा, मैं अभी आयी.
इतना कह कर मम्मी जी मेरे रूम से निकल गईं. मैं सोचने लगी कि अब मम्मी जी क्या करने गईं … या अब क्या करने वाली हैं.
कुछ ही देर में मम्मी जी फिर से मेरे कमरे में आईं, इस बार उनके हाथ में कोर्ट के कुछ पेपर्स और मोबाइल था.
सासू माँ- अब जो कुछ मैं तुझसे कहने वाली हूँ, उसे ध्यान से सुनना और समझना कि हम लोग तुझसे कितना प्यार करते हैं.
मेरी तो कुछ समझ में ही नहीं आया कि मम्मी जी अब क्या कहने वाली हैं. फिर भी मैंने हम्म्म्म … करके सहमति दे दी.
सासू माँ- बेटा, एक माँ बाप के लिए इससे बुरा और क्या हो सकता है कि उनके इकलौते बेटे के ऐसे शौक हो … इसलिए तेरे पापाजी और मैंने मिल कर फैसला किया है कि भविष्य में हमारे ना रहने के बाद भी हितेश तुझे किसी भी तरह तुझे परेशान न कर सके.
मैं- मतलब?
सासू माँ- मतलब ये कि हमारी जो भी प्रॉपर्टी और ज़ायदाद है और जो भी चल अचल से संपत्ति है, अब से उसमें तुम्हारा भी उतना ही हक़ है, जितना हितेश का है. हमने अभी 2 दिन पहले ही वसीयत बनवायी है. तुम पढ़ी लिखी हो, खुद ही पढ़ लो.
ये कहते हुए मम्मी जी ने मुझे पेपर्स पकड़ा दिए.
सासू माँ- और रही तुम्हारे भरोसे की बात तो इस मोबाइल में कुछ वीडियो क्लिप्स हैं, जिन्हें देखने के बाद तुम्हें मेरी बात पर यकीन हो जाएगा. तुम ये सब देखो, तब तक मैं बाहर से होकर आती हूँ.
मम्मी जी ने मुझे अपने मोबाइल का एक फोल्डर ओपन करके दे दिया और बाहर चली गईं.
मुझे भी जानना था कि ऐसा क्या है वीडियोज में, जो मम्मी जी मुझे दिखाना चाहती हैं. यही जानने के लिए मैंने एक वीडियो प्ले कर दिया.
मेरी तो खुद की आंखों पर यकीन ही नहीं हुआ, जो कुछ मैंने देखा उस वीडियो में … खुद को भरोसा दिलाने के लिए मैंने एक एक करके सब वीडियो देखे.
पहले वीडियो में हितेश एक लड़के का लंड चूस रहा था, फिर वो लड़का हितेश के लंड को चूसता है. फिर हितेश उसकी गांड में लंड डालकर पेलता है. जब हितेश का पानी निकल जाता है, तब लड़का हितेश की गांड मारता है.
ऐसे ही सारे वीडियोज में यही सब था. किसी में लड़का पहले हितेश की गांड मारता है, तो किसी में हितेश लड़के की, बाकी लंड तो दोनों एक दूसरे का चूसते ही हैं, किसी में बारी बारी से, तो किसी में एक साथ … और सब वीडियोज में एक लड़का हितेश होता है, बाकी दूसरा लड़का अलग होता है.
अब मुझे समझ में आने लगा कि हितेश मुझसे दूर क्यों भागता है, उसने क्यों कभी मुझसे बात करने की कोशिश नहीं की.
मैं यही सब सोच ही रही थी कि इतने मम्मी जी फिर से आ गईं और मेरे पास बैठ कर मेरा सर सहलाते हुए बोलीं- देख बेटा, अब तो तुझे समझ में आ गया ना कि मैं तुझे अपनी लाइफ अपने हिसाब से जीने को क्यों बोल रही हूँ. जब हम हितेश को नहीं रोक पाए, तो तुझे भी कभी नहीं रोकेंगे. जब वो अपनी लाइफ अपने हिसाब से जीना चाहता है, तो तू भी अपनी लाइफ अपने हिसाब से जी. हमने इसीलिए नई वसीयत बनवाई ताकि हमारे ना होने पर हितेश तुझे परेशान न कर सके. बाकी तेरी मर्जी बेटा, अगर तुझे यहां नहीं रहना, तो तू अपने मायके जा सकती है और हितेश से तलाक ले सकती है. उसके बाद भी हमारी जायदाद का आधा हिस्सा तो तुझे मिलेगा ही … और अगर हम पर भरोसा है, तो तू यहां भी अपने हिसाब से रह सकती है. बस एक बात का ख्याल रहे कि किसी को हमारी इस बातचीत के बारे में कुछ पता न चले.
मेरे दिमाग ने काम करना बंद कर दिया, समझ में ही नहीं आ रहा था कि क्या करूँ … इसलिए मैंने मम्मी जी को कहा- मम्मी जी, मुझे थोड़ा और टाइम दे दीजिए सोचने के लिए … कल मैं आपको अपना फाइनल डिसिजन बताती हूँ.
सासू माँ- ठीक है बेटा, आराम से सोच ले इस बारे में, तेरा जो भी फैसला होगा, हमें वो सब मंजूर है.
इसके बाद मम्मी जी अपने कमरे चली गईं और मैं वहीं बैठी रही. मैंने काफी देर तक सोचा कि क्या करूँ? कुछ समझ में नहीं आया. रात को भी आंखों से नींद गायब थी … कभी मम्मी जी की बातें याद आतीं, तो कभी वसीयत, तो कभी हितेश के वीडियोज. इन्हीं बातों में काफी देर से सोई और सुबह भी देर तक सोती रही.
जब आंखें खुलीं, तब फिर से हितेश के वीडियोज का सीन आंखों के सामने था. वही सब सोचते सोचते अपने सब नित्य के काम निबटाए और तैयार हो गई. मैं अभी तक कोई भी फैसला नहीं ले पायी थी.
जब मम्मी जी से सामना हुआ, तो ऐसा लगा कि जैसे मम्मी जी मेरी तरफ उम्मीद भरी नज़रों से देख रही हैं.
दोपहर का खाना खाने के बाद मैं और मम्मी जी साथ में बैठे … ना तो मम्मी जी कुछ बोल रही थीं और न ही मैं. शायद हम दोनों को समझ में नहीं आ रहा था कि बात कैसे शुरू करें.
काफी देर तक जब मैं कुछ नहीं बोली, तब मम्मी जी ने ही बात करना शुरू किया- कल्पना बेटा, मैं जानती हूं कि तू अभी तक कुछ भी डिसाइड नहीं कर पायी है, क्योंकि तू क्या सही है क्या गलत इसमें कंफ्यूज है.
मैं- ह्म्म्म …
सासू माँ- अगर मेरी बात मान, तो एक सलाह दूँ मैं. अगर तुझे ठीक लगे तो मानना वरना मना कर देना.
मैं- हां मम्मी जी, आप ही कोई सलाह दो मुझे …
सासू माँ- तू 2-3 महीने तक रुक जा यहां और जैसा मैंने बताया वैसी लाइफ जी कर देख ले, अगर तुझे ठीक ना लगे तो चली जाना अपने मायके … और वसीयत अपने ही पास रख या तो अपने मायके भिजवा दे. ताकि बाद में तुझे तेरे फैसले के कारण कोई परेशान न कर सके.
मैं- नहीं मम्मी जी, आप पर भरोसा है मुझे. आपके होते हुए मुझे कोई परेशान नहीं कर सकता. पर मम्मी जी ये भी बताइए कि कब तक पराये मर्द के भरोसे जिंदगी जिऊंगी?
सासू माँ- बेटा जिंदगी तब तक ही जिया जाता है, जब तक जवानी है, उसके बाद तो जिदंगी बिताया जाता है. और जब तक जवानी है, तब तक मज़े ले. उसके बाद तो जिसके पास पैसा होता है, उसके पास सब कुछ होता है.
मुझे मम्मी जी की बात ठीक लगी और उनकी ये सलाह भी ठीक लगी कि 2-3 महीने ट्राय कर लेती हूं. जमा तो ठीक वरना मायके चली जाऊंगी- ठीक है मम्मी जी, मुझे आपकी सलाह ठीक लग रही है … बाद का बाद में देखेंगे.
सासू माँ- हम्म्म्म … ठीक है.
मम्मी जी- बेटा, दो दिन बाद हम सूरत जा रहे है, तुझे साथ में नहीं ले जाऊँगी, बोल तो किसी को बुक करूँ तेरे लिए या तो तू खुद किसी को ढूंढ लेगी?
मैं- मैं किसे ढूंढूंगी मम्मी जी यहां, यहां तो कोई पहचान का है भी नहीं, आप ही देख लो क्या करना है आपको. पर मम्मी जी अगर किसी ने पूछा कि मैं क्यों नहीं आ रही सूरत तो?
सासू माँ- इस घर में और कौन है ही जो पूछेगा … तेरे पापाजी को मैं संभाल लूँगी और हितेश को कोई मतलब है नहीं तो पूछेगा कौन?
मैं- अगर शादी में किसी ने पूछा तो?
सासू माँ- उसकी फिक्र तू क्यों कर रही है, मैं हूँ ना, सब संभाल लूँगी … तू बस तैयारी कर अपनी सुहागरात मनाने की!
मैंने शरमाते हुए कहा- मम्मी जी आप भी ना, पहले दूल्हा तो ढूंढ ले सुहागरात के लिए, या अकेले ही मनाऊं सुहागरात.
सासू माँ- तू बस तैयारी कर, दूल्हे तो बहुत मिल जाएंगे एक रात के लिए, अगर कोई ज्यादा अच्छा लग जाए … तो आगे भी उसके ही साथ मज़े कर लेना.
मैं- हम्म्म्म..
इसके बाद मम्मी जी भी खुशी खुशी अपने कमरे में चली गईं.
अब मुझे थोड़ी एक्साईटमेंट होने लगी कि चलो फाइनली अब मेरी सुहागरात होगी, भले ही दूल्हा एक रात के लिए ही हो, तो क्या हुआ मजा तो आएगा.
करीब एक डेढ़ घंटे बाद मम्मी जी फिर से मेरे रूम में आईं और आते ही अपने मोबाइल में से कुछ लड़कों की फ़ोटो दिखाते हुए कहने लगीं- बेटा, ये देख ये सब प्लेब्वॉय हैं, सब पैसे लेकर औरतों को खुश करते हैं. इनका काम बस किसी भी तरह अपने क्लाइंट को खुश करना होता है और इन्हें क्लाइंट की पर्सनल लाइफ से कोई मतलब नहीं होता. तू देख ले एक बार, फिर जो कोई पसंद आता है तो बता मुझे. फिर उससे आगे की बात करते हैं.
मैंने एक एक करके देखा सब फोटोज और प्रोफाइल भी पढ़ा, उसमें से मुझे 2-3 ही ठीक ठाक लगे, जो मैंने मम्मी जी को बता दिया.
सासू माँ ने मज़ाक करते हुए कहा- इन सबको बुक करना है क्या?
मैं- क्या मम्मी जी आप भी, मैं तो बता रही हूँ कि ये सब मुझे दिखने ठीक ठाक लग रहे हैं, बाकी का आप देख लो.
सासू माँ- ठीक है बेटा, मैं सब से बात करके देखती हूं, फिर डिसाइड करते हैं कि कौन तेरी नथ उतारेगा.
ये कहते हुए मम्मी जी ने मेरी तरफ देख कर आंख मार दी.
मम्मी जी की बात पर मुझे शर्म आ गयी और मैं वहां से उठ कर चली गयी.
उसके बाद मैं अपने काम में बिजी हो गयी, पर दिमाग में अब अलग तरह की एक्साइटमेंट होने लगी.
थोड़ी ही देर में मम्मी जी फिर से मेरे रूम में आईं, ऐसा लग रहा था, जैसे मुझसे ज्यादा मेरी पहली चुदाई के लिए मम्मी जी उतावली हैं- कल्पना, मैंने इन दोनों से बात की व्हाट्सएप्प पर और बाकी डिटेल्स भी ले लिया है इनसे … अब तू बता किसे फिक्स करूँ तेरे लिए?
मैंने एक बार फिर से दोनों लोगों की फ़ोटो को देखा और मम्मी जी के व्हाट्सएप की बातचीत भी पढ़ी. मुझे आप आर्यन अच्छे लगे, तो मम्मी जी को मैंने बता दिया.
मम्मी जी एक बार फिर से मज़ाक करते हुए बोलीं- क्या बात है … तो ये बंदा तेरी चूत का इनॉगरेशन करेगा … हा हा हा
मम्मी जी की इस बात ने मुझे एक बार फिर लज़्ज़ित कर दिया.
सासू माँ- तू अपने तरह से तैयारी कर, मैं अपने तरह से तैयारी करती हूं.
अब मैंने मम्मी जी का टांग खींचने के लिए कहा- मम्मी जी, क्या आप को भी फिर से उद्घाटन कराना है?
सासू माँ- अरे कहां बेटा, मेरा तो हर जगह का कब का उद्घाटन हो चुका है … अब बचा ही क्या है उद्घाटन कराने को …
मैं- फिर आपको किस तरह की तैयारी करना है?
सासू माँ- बेटा, मुझे चैक करना है कि बंदा जेनुइन है या नहीं? बाद में ब्लैकमेल तो नहीं करेगा … तू टेंशन ना ले, मैं अपने तरीके से जांच पड़ताल कर लूँगी.
मैं- हां, ठीक है मम्मी जी …
अब कल्पना ने मुझे बताया कि जब मम्मी जी ने आपको वीडियो कॉल किया था, तब मैं भी थी उनके साथ, मम्मी जी ने ही फ्रंट कैमरे पर अपनी उंगली रख दी थी ताकि आप हमें ना देख पाओ. उसके बाद कैसे क्या हुआ आपको तो सब पता ही है.
दोस्तो, यहां कल्पना की स्टोरी खत्म होती है, उसके बाद हम दोनों के बीच जो कुछ हुआ, वो सब आप कहानी के पिछले भाग में पढ़ चुके हैं.
अब आगे..
एक बार की चुदाई के बाद कल्पना भाभी काफी रिलैक्स नज़र आ रही थीं, पर थकान का असर अब भी उनके चेहरे पर साफ दिख रहा था. भाभी पूरी नंगी ही मेरे बगल में आंखें बंद करके लेटी हुई थीं.
थोड़ी देर सुस्ताने के बाद मैं वाशरूम जाने के लिए जाने उठा, हलचल से कल्पना ने एक बार आंख को खोला, फिर आंखें बंद करके अंगड़ाई लेने लगीं.
जैसे ही मैं वॉशरूम से आया, वैसे ही कल्पना उठ कर जाने को हुईं, पर उनके पैर लड़खड़ाने लगे … उन्हें चलने में तकलीफ हो रही थी. मैं उन्हें सहारा देकर वाशरूम तक लेकर गया और वॉशरूम का दरवाजा खोल कर उन्हें इशारे से अन्दर जाने को बोला. मेरा मतलब समझ कर वो दीवार का सहारा लेकर वाशरूम में चली गईं, पर उन्होंने दरवाजा बंद नहीं किया. मैं वही उनका इंतजार करने लगा.
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कहानी जारी है.