अन्तर्वासना में आपका स्वागत है! यह कहानी नौरीन नाम की लड़की की है जो यूपी के एक छोटे शहर की है लेकिन राज्य की राजधानी लखनऊ के एक बोर्डिंग स्कूल में रह कर पढ़ाई कर रही थी। नौरीन से मेरी मुलाकात फेसबुक पे हुई थी जहां उसने अपनी निजी जिंदगी से जुड़ी कई बातें साझा की। नौरीन की जिंदगी में घटी एक सबसे अहम वह घटना है जहां से उसने सही मायने में यह जाना कि सेक्स होता क्या है।
आगे नौरीन के अपने शब्दों में:
आदाब मेरे अज़ीज़ दोस्तो … मेरा नाम नौरीन है और मैं यूपी से हूँ। यह घटना आज से करीब पांच-छः साल पहले की है जब मैं लखनऊ के एक बोर्डिंग स्कूल में रह कर पढ़ाई कर रही थी। तब मैं साईंस की स्टुडेंट थी और जिस शख्स से जुड़ी यह कहानी है वे मेरे कैमिस्ट्री यानि रसायन विज्ञान के टीचर थे।
वे भी यूपी से बाहर के थे और मेरी ही तरह यह उनका पहला साल था लखनऊ में। वे छब्बीस वर्षीय और दिखने में ठीक ठाक ही थे लेकिन मन से ठरकी थे, यह अंदाजा मुझे बाद में हुआ था।
मैं क्लास में सबसे आगे डेस्क पर बैठती थी। यूँ तो मैं टिपिकल कट्टरपंथी घराने से हूँ और घर से बाहर भी बिना हिजाब के नहीं निकलती थी लेकिन चूँकि स्कूल में हिजाब नहीं पहन सकती थी तो वाईट शर्ट और ग्रे स्कर्ट में ही रहना पड़ता था।
एक बात मैं यह बता दूँ कि मेरे बूब्स शुरू से ही हैवी हैं और मैं उन दिनों थोड़ी मोटी भी हुआ करती थी जिससे मेरी शर्ट सीने पे कसी रहती थी।
इसके सिवा एक अजीब आदत यह भी थी कि घर में मेरी अम्मी मेरी क्लीवेज पर इत्र लगा देती थीं तो यहां लखनऊ में अकेले रहने के दौरान भी मेरी यह आदत बनी हुई थी और मैं खुद से ऐसा करती थी।
और उस वक्त नादान थी… इन सब बातों की कोई खास जानकारी नहीं थी तो उस वक्त कोई भी रंग की ब्रा पहन लेती थी। कभी रेड, कभी ब्लैक तो कभी ग्रीन जो कि वाईट शर्ट के अंदर से झलकती थी। चूँकि मेरे पिछले स्कूल में शर्ट वाईट नहीं थी तो चल जाता था लेकिन यहां वह चीज शायद दूसरों का ध्यान खींचती थी। खास कर कैमिस्ट्री वाले सर का … क्योंकि वे अक्सर निगाहें बचा बचा के मुझे देखा करते थे।
तब लैब का पीरियड हमारा लास्ट के दो होते थे, मतलब सेवेंथ एंड एट्थ … और उस दौरान जब मैं एक्सपेरिमेंट कर रही होती थी तो वे अक्सर ही मेरी पीठ पर इस अंदाज में हाथ रख कर दबाते थे जैसे शाबाशी दे रहे हों।
एक तरह से मेरे लिये यह पहला ही पुरुष स्पर्श था जो उस वक्त तो मुझे बिल्कुल भी अच्छा नहीं लगता था और अजीब सा अप्रिय अहसास देता था।
और कभी-कभी वह अपना हाथ साइड में करके मेरे अंडरआर्म्स यानि बगलों के नीचे से मेरे दूध भी अंगूठे से दबा देते थे जो मुझे और खराब लगता था और मुझमें एकदम उलझन सी पैदा कर देता था। उस वक्त मेरी उम्र अठरह साल थी लेकिन कुछ खास पता भी नहीं था और न ही अभी वह अहसास जागृत होने शुरु हुए थे कि किसी मर्द का स्पर्श पाते ही गीली हो जाऊं।
जबकि मेरी खामोशी को वह मेरी मूक सहमति समझ बैठे और बार-बार ऐसा करने लगे। मुझे बुरा लगता था और मैं उन्हें रोकना चाहती थी लेकिन चाह कर भी कुछ कहते नहीं बनता था।
लेकिन एक दिन हिम्मत करके मैंने उनका हाथ झटक दिया। मेरी इस प्रतिक्रिया से वे थोड़े हैरान तो जरूर हुए लेकिन बोले कुछ नहीं।
इसके बाद मैंने लैब में सीट भी चेंज कर दी और मुझे लगा कि अब वे यह हरकत नहीं करेंगे। हालाँकि वह फिर भी मुझे लगातार नोटिस करते थे और स्माइल पास करते थे लेकिन मैं ज्यादातर इग्नोर ही कर जाती थी।
इस बीच एक दिन और मौका हाथ लगा तो उन्होंने पहले की तरह ही मेरी पीठ पे हाथ रखा और मुझे इतनी तेज गुस्सा आया कि मैंने जोर से उनका हाथ झटक दिया और गुस्से से उन्हें देखने लगी।
वे बुरी तरह सकपका कर मेरे पास से हट गये।
फिर मुझे लगा कि वह अब कुछ नहीं करेंगे और मैं रिलैक्स हो गयी। इस बीच दो महीने गुजर गये और उन्होंने मुझसे दूरी बनाये रखी। फिर मेरे फर्स्ट टर्म के एग्जाम आ गये और मैं चुपचाप एग्जाम देने लग गयी।
उनके मूड का अंदाजा तो मुझे तब लगा जब रिजल्ट आया और मुझे पता चला कि उन्होंने मुझे कैमिस्ट्री में फेल कर दिया है। मैं तो समझ गयी कि उन्होंने ऐसा क्यों किया है लेकिन उनसे कुछ कहने की हिम्मत नहीं थी।
बहरहाल, मैं फेल रिजल्ट लेकर घर आई जहां वाल्दैन (माता पिता) की काफी डांट पड़ी लेकिन अब उन्हें सच बताने की हिम्मत मुझमें नहीं थी। थोड़ी बहुत चिल्ल पों हो के मामला शांत हो गया।
लेकिन इसके बाद वे सर मेरी अटेंडेंस शार्ट करने लगे। मुझे मोनीटर से पता चला कि मैं नवंबर में सिर्फ तेरह दिन प्रेजेंट रही हूँ, जबकि मैं पूरे महीने प्रेजेंट थी। मैं समझ गयी कि मैं प्राब्लम में आ चुकी हूँ तो मैंने उनसे बात करने की ठानी।
लैब सबसे टॉप फ्लोर पे थी जहां स्टुडेंट के सिवा कोई आता जाता नहीं था। वहीं अटैच्ड ऑफिस में मैंने अकेले में उन्हें पकड़ लिया और उनसे पूछा कि मेरे साथ ऐसा क्यों कर रहे हो?
तो उन्होंने बताया कि उस दिन मेरा हाथ क्यों हटाया था… अब तो मुझे तुम्हारा सब कुछ चाहिये वरना तुम फेल हो कर रहोगी।
मैं बेबसी और बेचारगी से उन्हें देखती रही, मैं चाह कर भी कुछ नहीं कर सकती थी।
तब उन्होंने कहा- जब तुम ग्रीन ब्रा पहन कर आती हो तो बड़ी सेक्सी लगती हो.
उस वक्त मुझे अहसास हुआ कि मेरी ब्रा भी यूँ देखी जाती थी।
आगे उन्होंने ही कहा कि जनरली वाईट शर्ट के नीचे मुझे वाईट ब्रा ही पहननी चाहिये।
अब उन्होंने फिर मेरी पीठ पर वैसे ही हाथ फेरा। मैं लड़की थी … उनका मुकाबला नहीं कर सकती थी तो बेहतर यही था कि मानसिक रूप से इस स्थिति को स्वीकार कर लूं और मैंने अंततः वही किया और उस दिन पहली बार जब उन्होंने सामने से मेरे दूधों पर हाथ फिराया तो मेरे अंदर पहली बार सेक्स की फीलिंग आई।
हालाँकि मैं डर रही थी कि कहीं एकदम से कोई आ न जाये लेकिन वे शायद श्योर थे कि कोई लैब में तो आ सकता था लेकिन ऑफिस में यूँ नहीं आ सकता था तो बेफिक्री भरे अंदाज में ऊपर से ही मेरे बूब्स दबाने लगे।
मैंने विनती की कि ऐसे तो क्लास में जाऊँगी तो मसली हुई शर्ट से सबको पता चल जायेगा। इससे तो बेहतर था कि शर्ट के बटन खोल कर अंदर से दबा लो।
उन्हें और क्या चाहिये था। उन्होंने ऊपर के बटन खोल लिये और ब्रा के ऊपर से ही दबाने मसलने लगे। वे हाथ अंदर डालना चाहते थे लेकिन मैंने मना कर दिया। बावजूद इसके कि इस तरह की पहली बार की मसलाहट मुझे भी अब अच्छी लगने लगी थी. मैं महसूस कर रही थी कि इसका असर मेरी योनि पर भी पड़ रहा था, वहां भी सरसराहट होने लगी थी और ऐसा लग रहा था जैसे वह गीली हो रही हो।
उन्होंने मुझे अपनी गोद में बिठा लिया था और वे बड़े आराम से दूध दबा रहे थे। यह पहली बार था कि कोई मेरे दूध इस तरह दबा रहा था। हालाँकि मुझे मजा आने लगा था लेकिन डर भी था कि कहीं कोई आ न जाये तो लगातार दरवाजे की तरफ ही देख रही थी। उस दिन उन्हें यह भी पता चला कि मैं अपनी क्लीवेज पे इत्र लगाती थी।
मैंने उनसे पूछा- अब तो आप सब ठीक कर देंगे न?
तो उन्होंने कहा- ठीक तो हो जायेगा लेकिन अब जब तक तुम यहां स्कूल में हो, तुम्हें मेरे पास आना पड़ेगा।
जाहिर है कि मेरे पास कोई और विकल्प नहीं था।
उन्होंने ही मुझे स्कूल में सफेद ब्रा पहनने के लिये कहा था तो मैंने उन्हीं से कहा था कि मुझे ला के दें. तो उन्होंने ही मुझे तीन वाईट ब्रा ला दी थी और आगे मैं वही पहनती थी।
इसके बाद मुझे लगभग रोज ही एकाध घंटे के लिये उनके पास जाना पड़ता था। शुरू में वे ब्रा के ऊपर से ही सहलाते थे लेकिन फिर ब्रा ऊपर धकेल कर दूध बाहर निकाल लेते थे और दबाते-दबाते निप्पल भी मसलने चूसने लगते थे।
निप्पल चुसाने पर मुझे अजीब सा नशा होने लगता था। एकदम से नीचे योनि में बुरी तरह पानी आने लगता था और पता नहीं कैसा फील होने लगता था जो अच्छा तो बहुत लगता था लेकिन तब मैं उस चीज को ठीक से समझ नहीं पाती थी।
वे नीचे मेरी योनि पर भी हाथ लगाना चाहते थे लेकिन मैं स्ट्रिक्टली मना कर देती थी. लेकिन बावजूद इसके … दो बार ऐसी नौबत आई थी कि उन्होंने स्कर्ट उठा कर एक बार पैंटी के ऊपर से ही योनि को सहलाया था जिससे मेरी भीगी पैंटी के कारण उन्हें पता चल गया था कि मैं गीली हो गयी थी।
उन्होंने मुझे कहा भी कि तुम गीली हो रही हो… लेकिन तब मुझे न ही इस गीले होने का सही अर्थ समझ में आया था और न ही इसका कोई अंत मेरी समझ में आया था।
दूसरी बार में उन्होंने हाथ पैंटी के अंदर डाल दिया था और अपनी चारों उंगलियों से मेरी गीली हो कर बहती हुई योनि को पहली बार सीधे छुआ था जिसने मेरे दिमाग को ऐसे गहरे नशे में धकेल दिया था कि मैं समझ ही नहीं पा रही थी कि इसका अंत क्या हो।
वह अपनी उंगलियों से ऊपर ही ऊपर से पूरी गीली योनि को मसलते रगड़ते रहे और मैं बुरी तरह बेचैन होती रही। मुझे याद है कि उस घड़ी मैं खुद अपने हाथों से अपने दूध दबाने लगी थी।
इस घड़ी वे उंगली अंदर छेद में घुसाते भी तो मैं उन्हें रोकने या विरोध करने की स्थिति में बिल्कुल भी नहीं थी और उस वक्त यह गनीमत ही हुई थी कि बाहर लैब में कोई आ गया था और मुझे उस स्थिति से मुक्ति मिल गयी थी।
फिर यह सिलसिला रोज का हो गया। अब न सिर्फ वह मुझे ऊपर अंदर से रगड़ते मसलते थे बल्कि अपनी जिप खोल कर अपना लिंग भी खोल कर पकड़ाते और सहलवाते थे। वे यह भी चाहते थे कि मैं उनका लिंग चूसूं लेकिन मैं मना कर देती थी।
वे बार-बार अपनी इच्छा जताते थे कि वे अब ‘डालना’ चाहते थे और इस चक्कर में मुझे जब तब पैसे भी देते रहते थे और कई ब्रा भी ला के दी थी अलग-अलग रंग की… कि मैं किसी तरह डलवाने को राजी हो जाऊं।
लेकिन जब बात यूँ न बनी तो उन्होंने मुझे कहा कि अगर मैं उन्हें और उनके एक दोस्त को करने दूं तो वे मुझे ढेर से पैसे देंगे। यह बिल्कुल वेश्याओं जैसा सौदा था, जिसके लिये मैंने साफ मना कर दिया।
फिर अंततः बात इस समझौते पर बनी कि वे मेरे साथ जैसे चाहे वैसे ‘सबकुछ’ कर सकते हैं … मैं उन्हें मना नहीं करूंगी और बदले में एक तो मेरी एक भी अटेंडेंस शार्ट नहीं होगी, चाहे मैं आऊं या न आऊं और दूसरे मुझे कैमिस्ट्री में टॉप कराना होगा।
इसपर हम दोनों राजी हो गये।
तब मैंने पूछा- यह सब करोगे कैसे?
तो सर का जवाब था कि मुझे तीन दिन उनके रूम पे रहना होगा जो पास ही था और इस बीच वे भी ‘ऑफ’ ले लेंगे।
तय हो जाने के बाद मैंने होस्टल के लिये अप्लीकेशन लिखी जिस पर क्लासटीचर की जगह उन्होंने ही साईन किये और उसी फ्राईडे सुबह मैं कुछ जरूरी कपड़े लिये उनके रूम पे पहुंच गयी।
टीचर जी पहले से पूरी तैयारी किये बैठे थे … जरूरत का सारा सामान पहले ही ला कर रख लिया था कि कहीं जाना न पड़े।
उन्होंने पहली रिक्वेस्ट की कि मैं शैम्पू से अपने बदन का एक-एक अंग धो आऊं। मुझे पता था कि यह तो होगा ही तो यह मेरे लिये कोई खास बात नहीं थी।
लेकिन नहाने धोने के बाद जब मुझे अपने बैडरूम में ले गये तो मैं सन्न रह गयी यह देख के कि बेड के चारों कोनों पर चार काटन की चुन्नियां बांध रखी थी जिनके बारे में मेरे पूछने पर बताया कि मेरे हाथ पैर बांध कर करेंगे।
अजीब साइको आदमी थे … मैं डर कर वापस भागने लगी तो हमारे समझौते की याद दिलाने लगे कि हममें तय हुआ था कि जैसे चाहूँगा करूँगा और तुम करने दोगी। मैं रुआंसी हो गयी तो बड़े प्यार से यकीन दिलाया कि यह सब मुझे तकलीफ पहुंचाने के लिये नहीं है। बस एक तरह का रोमांच है जो तुम्हें अच्छा लगेगा।
मेरे पास उनकी बात मानने के सिवा और विकल्प भी क्या था … मैं इतनी मैच्योर तो हुई नहीं थी कि कोई मजबूत फैसला ले सकती। मैंने हथियार डाल दिये। फिर उन्होंने मेरे शरीर से सारे कपड़े उतार दिये और मुझे एकदम नंगी करके बेड पर लिटा कर मेरे चारों हाथ पैर बेड के चारों कोनों से बांध दिये।
अब उन्होंने अंडरवियर छोड़ के अपने सारे कपड़े उतार दिये और मेरे ऊपर चढ़ आये। अब उनके अंदर का वहशी जानवर जाग उठा … वे पूरी बेरहमी से मुझे, मेरे होंठों को, मेरे दूधों को चूमने, चाटने, मसलने और रगड़ने लगे. मेरे निप्पल को न सिर्फ वे चूस रहे थे बल्कि दांतों से काट भी रहे थे कि बार-बार मेरी चीखें निकल जाती थीं।
एक बात मैं उनके बारे में बताना भूल गयी कि वे हिंसक प्रवृत्ति के थे और हमेशा मेरे दूध इतनी जोर जोर से दबाते थे कि मेरी कराहें निकल जाती थीं। आज तो उनका दिन था और वे हद किये दे रहे थे।
मैंने पूछा भी- इतनी बेदर्दी से क्यों कर रहे हो?
तो बोले- बहुत दिनों से इन्हें देख देख के तरस रहा हूँ … आज तो कर लेने दो!
और मैं चुप रह गयी।
जब ऊपर का सब मजा ले चुके तो अपना अंडरवियर उतार दिया। उस दिन पहली बार मैंने मर्द का परिपक्व लिंग सामने देखा। वैसे तस्वीरों में देखा था लेकिन आंखों के सामने पहली बार देख रही थी और यह देख कर मेरी जान में जान आई कि वह कोई बहुत लंबा या मोटा लिंग नहीं था।
उन्होंने उसे मेरे होंठों से सटाया और मुंह में ले कर चूसने को कहा. पहले तो मेरी इच्छा मना कर देने की हुई लेकिन फिर उनकी घुड़कती निगाहों ने मुझे होंठ खोलने पर मजबूर कर दिया। लिंग के छेद पर प्रीकम की नमकीन बूंदे भले मुझे उस घिनौनी लगीं लेकिन जल्दी ही यह अहसास दिमाग से निकल गया।
जाहिर है कि जो हो रहा था उससे बचने का तो सवाल ही नहीं था तो क्यों न दिमाग बदल लिया जाये और इसे मजे के रूप में लिया जाये।
फिर उन्होंने मेरी ब्रा को ही मेरी आंख पर बांध दिया, यह कहते हुए कि यह भी एक एडवेंचर है और मैं यह डर रही थी कि कहीं इस बहाने-बहाने वे मुझे किसी और से न चुदवा दें. लेकिन बाद में मेरी यह आशंका निर्मूल साबित हुई कि क्योंकि ऐसा कुछ नहीं हुआ।
अब वे मेरे चेहरे के दोनों ओर घुटने टिकाये ऐसे बैठ गये कि उनका लिंग मेरे मुंह में रहे और वे खुद मेरी योनि तक पहुंच गये जो गीली होकर बहने लगी थी। पहले वे उसे ऊपर से नीचे धीरे-धीरे रगड़ते रहे और फिर अपने मुंह में भर कर चूसने चाटने लगे।
यह बड़ा उत्तेजक अनुभव था … ऐसा लगा जैसे खून में चिंगारियां उड़ने लगी हों। वही जानी पहचानी बेचैनी फिर रगों में ऐंठन डालने लगी और पांव बंधे होने के बावजूद मैं एड़ियां रगड़ने लगी थी। जोश में मैं और जोर-जोर से उसका लिंग चूसने लगी थी।
उस दिन पहली बार मेरी बेचैनी का अंत समझ में आया जब मेरी नसों में तेज ऐंठन हुई और ऐसा लगा जैसे अंदर दबा कोई बांध टूट गया हो। शिथिल पड़ते-पड़ते ऐसा लगा जैसे योनि बहने लगी हो मगर सर अभी भी लगे हुए थे जबकि मैं ढीली पड़ गयी थी।
फिर उन्होंने इस चीज को महसूस कर लिया और मेरे ऊपर से हट गये।
इसके बाद कुछ देर तो वे मेरे साइड में लेट के मेरे पेट को सहलाते रहे, फिर दूध पीना शुरू कर दिया और उंगली योनि में वहां तक घुसा दी जहां झिल्ली थी और उंगली से ही अंदर बाहर करने लगे। धीरे-धीरे मैं फिर गर्म होने लगी और जल्द ही वह मुकाम आया कि मैं फिर अकड़ गयी और योनि बह चली।
जबकि सर का लिंग वैसे ही टाईट था। वह तो उन्होंने मुझे बाद में बताया था कि मुझे चोदने के लिये उन्होंने दवा खा रखी थी जिससे उनका जल्दी डिस्चार्ज न हो।
बहरहाल, दो बार मेरा पानी निकालने के बाद उन्होंने मुझे रगड़ते हुए एक छोटा ब्रेक और लिया ताकि मैं मानसिक रूप से अगले राउंड के लिये तैयार हो सकूँ.
और जब उन्होंने इस बात को महसूस कर लिया तो मेरी फैली हुई टांगों के बीच में आ गये। मेरी योनि बुरी तरह पानी से भीगी बह रही थी और उनका लिंग भी गीला था जिसे वे मेरी योनि पर रगड़ने लगे। यह गुदगुदी भरा उत्तेजक अनुभव था… मुझे ऐसे ही करवाना बहुत अच्छा लग रहा था और मैं चाह रही थी कि वे बस इसी तरह रगड़ते रहें और अंदर न डालें।
लेकिन वे कहां मानने वाले थे … उन्होंने थोड़ा घुसा के पोजीशन बनाई और इतनी जोर से धक्का मारा कि आधे से ज्यादा लिंग मेरी झिल्ली फाड़ कर अंदर धंसता चला गया।
मैं बिलबिला कर चिल्ला उठी तो उन्होंने मेरा मुंह दाब लिया और खुद भी कुछ पल के लिये रुक गये कि योनि में जगह बन जाये … और कुछ सेकेंड बाद उन्होंने जोर से दूसरा धक्का मारा तो उनका लिंग जड़ तक मेरी योनि में समा गया।
मैं फिर तड़पी लेकिन उन्होंने अपनी पकड़ मजबूत करते हुए मुझे संभाल लिया। मैं वैसे भी बंधी हुई थी तो सिवा मचलने के कुछ और नहीं कर सकती थी।
थोड़ा रुक कर वे पहले धीरे-धीरे फिर जोर-जोर से ऐसे धक्के लगाने लगे जैसे मेरी योनि फाड़ ही डालेंगे। मुझे दर्द हो रहा था और सहन नहीं हो रहा था, जी यही कर रहा था कि किसी तरह वे लिंग बाहर निकाल रहे थे।
मैं आवाज दबाने की कोशिश के साथ ही धीरे-धीरे चिल्ला रही थी और वे भी उत्तेजना में मुझे पता नहीं क्या-क्या बके जा रहे थे।
लेकिन योनि तो योनि … वह सब जबर्दस्ती या समर्पण क्या समझे, थोड़ी देर के जबरदस्त घर्षण के बाद वह लिंग की आदी हो गयी और पानी छोड़ती गपागप उसे अंदर लीलने लगी। धीरे-धीरे मुझे भी दर्द का अहसास जाता रहा और मजा आने लगा।
गीली योनि में गपागप चलते लिंग की फच-फच अब हमारी भारी सांसों, आहों-कराहों पर भारी पड़ रही थी।
वे तो दवा के प्रभाव में थे … लेकिन मैं तो सामान्य अवस्था में थी। जब तक वे चर्मोत्कर्ष पर पंहुच कर स्खलित हुए, मैं दो बार पानी छोड़ चुकी थी।
स्खलित होने के बाद उनके अंदर का जानवर शांत हो पाया और फिर उन्होंने मुझे खोल दिया। इसके बाद पूरे दिन में सर ने मुझे तीन बार चोदा और उन तीन दिनों में, जब तक मैं उनके घर रही तब तक उन्होंने मुझे करीब बीस से ज्यादा मर्तबा चोदा होगा और तब जा के छुट्टी मिली।
इस दौरान मैं लगातार नंगी ही रही थी, उन्होंने मुझे कुछ नहीं पहनने दिया था और चोद चोद के मेरी हालत ऐसी कर दी थी कि मुझसे ठीक से चला भी नहीं जा रहा था।
बहरहाल, इस घटना के बाद उनके लिये रास्ता खुल गया और फिर हर हफ्ते मुझे एक पूरे दिन के लिये उनके पास चुदने के लिये जाना पड़ता जब तक मैं उस स्कूल में रही।
इसमें मेरी मजबूरी भी थी, बेबसी भी थी, समझौता भी था, कुछ हद तक खुशी भी थी… जिसका अहसास करने के टाईम तो होता था लेकिन बाद में बहुत गिल्ट भी फील होता था। कुछ पाया भी तो कुछ खोया भी लेकिन इसका असर मेरे दिमाग पर बड़ा गहरा हुआ था कि स्कूल छोड़े मुझे लगभग तीन साल हो गये लेकिन फिर मैंने कभी सेक्स नहीं किया।
सर भी किसी वजह से वापस अपने स्टेट चले गये। कुछ दिन फोन पर संपर्क बना रहा, फिर वह भी टूट गया। बहरहाल मेरी कहानी यहीं खत्म होती है।
विदा दोस्तो!
‘हवसनामा’ के अंतर्गत मैं कुछ चुनिंदा कहानियों को लिख रहा हूँ जो दूसरों की हैं जिन्हें खुद लिखने में दिक्कत है या हुनर नहीं है. मैं उन्हें अपने अंदाज में इस मंच तक पहुंचा रहा हूँ। आपके पास भी कुछ ऐसा है तो मेल या फेसबुक पर मुझसे शेयर कर सकते हैं। मेरा ईमेल एड्रेस और फेसबुक एड्रेस है
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