हाई फ्रेंड्स, मेरा नाम सलोनी है… अन्तर्वासना पर यह मेरी पहली कहानी है। मैं अपनी कहानी अपने मन से लिख रही हूँ और मैं अपनी कहानी में किसी दूसरी लड़की का नाम नहीं प्रयोग करुँगी।
मेरी उम्र 43 साल है, मेरी फिगर 36-34-36 है। मेरे पति पुणे में काम करते हैं, कभी-कभी घर आते हैं।
मेरी एक बेटा और एक बेटी है। बेटा पढ़ाई के लिए बाहर रहता है और मेरी बेटी सोनी घर पे रहकर पढ़ाई करती है।
बात उस दिन की है जब मैंने अपनी बेटी को फोन पर किसी से बात करते सुना।
मैं सोच में पड़ गई कि किस से बात कर रही थी, घर पे मोबाइल सिर्फ मेरे पास ही था.
रात को मैं सो गई लेकिन मुझे नींद नहीं आ रही थी यह सोच कर कि मेरी बेटी बात किस से कर रही थी।
मैंने अगले दिन फिर बात करते देखा, मैंने सोचा आज पूछती हूँ लेकिन नहीं पूछा, मैं चुप रह गई.
रात को वो मेरे साथ ही सोती थी, मैं सोई नहीं और इंतजार करने लगी कि वो कब बात करेगी.
मुझे नींद आने लगी थी, करीब 12 बज गए थे, मुझे हल्की नींद आई ही थी कि फुसफुसाने की आवाज मुझे सुनाई दी।
मैंने देखा कि मेरी बेटी धीरे धीरे बात कर रही है.
मैंने उसकी सारी बातें सुनी।
अगले दिन से मेरी बेटी ने मेरे साथ सोना छोड़ दिया, वो दूसरे कमरे में सोने लगी, रात को मोबाइल लेकर सोती थी, मुझसे बोलती कि अलार्म सेट करना है जल्दी उठाने के लिए।
कई दिन बीत गए, तब मैंने सोचा कि अब पता करना ही होगा कि वो कौन है?
दिन में मैंने मोबाइल में उसी नम्बर पर कॉल की उस लड़के को तो मैं आवाज सुन कर हैरान रह गई, वो हमारे बगल वाला लड़का था।
उधर से बोला- सोनी बोल ना, चुप क्यों हो?
मैंने फ़ोन काट दिया, फिर मुझे कुछ बात याद आया कि जब भी सोनी की सहेली फ़ोन करती और मैं उठाती तो उसे लगता था कि सोनी ही बोल रही है. जब मैं बोलती कि मैं सोनी नहीं उसकी माँ हूँ, तो बोलती- आंटी, आपकी आवाज पूरी सोनी जैसी लगती है।
मैंने ये सोच के फ़ोन किया फिर उस लड़के को… वो बोला- फ़ोन क्यों काट दिया था?
मैं घबराई हुई बोली- मम्मी आ गई थी।
बोला- कोई बात नहीं!
तब मुझे लगा ‘चलो, ये भी नहीं पहचाना।’
उस लड़के का नाम विकास है।
विकास- सोनी, रात को कैसा लगा, मुझे तो बहुत मजा आया।
मैं सोच में पड़ गई कि आखिर क्या बात है? मुझे तो कुछ नहीं पता.
मैं बोली- मजा क्यों? क्या हुआ जो मजा आएगा?
विकास- अरे रात को तो खूब मजा ले रही थी और इतना जल्दी भूल गई?
मैं- क्या किया… तुम बताओ, मैं तुम्हारे मुख से सुनना चाहती हूँ।
विकास- सोनी, ये सब छोड़ो, आज मैं कंडोम ले आया हूँ, कल बिना कंडोम के किया, आज से कंडोम लगा के चोदूँगा।
मैं एकदम घबरा गई कि मेरी बेटी सेक्स के चक्कर में पड़ गई. मैं सोच में पड़ गई कि अब मैं कैसे ये सब रोकूँ?
मैं- बाद में बात करती हूँ, मम्मी है।
मैं सोचने लगी कैसे ये सब रोकूँ मैं!
तभी मेरा मन भी चुदने को करने लगा, मैं भी बहुत दिनों से चुदी नहीं थी, मेरी बेटी की लम्बाई मेरी जितनी ही है, मैंने इसका फायदा उठाने का सोच ली।
मैंने रात को अपनी बेटी को मोबाइल नहीं दिया और उसे बोली कि यहाँ सो जाये, मैं उस कमरे में जाके सोऊँगी.
पहले मेरी बेटी ने मना किया, फिर बोली- जाओ।
मैं कमरे में गई और अपनी पायल, चूड़ी, बिछिया, नाक की नथुनी, कान की बाली सब निकाल दी और फ़ोन आने का इंतजार करने लगी.
रात को 2 बजे के करीब फ़ोन आया, बोला- गेट खोल दो, मैं आ रहा हूँ.
मैं बोली- मैंने गेट खोल के रखा है, और सीधे मेरे रूम में आना… मैं बिना कपड़ों के इंतजार कर रही हूँ।
बोला- सोनी मेरी जान, आज जम के चोदूँगा।
वो सीधे मेरे रूम में आ गया और बेड पे लेट गया और बोला- जान!
मैं फुसफुसते हुए- बोलो?
विकास- लंड चूसो ना जल्दी!
मैंने सोचा, रूम में अँधेरा है, पता नहीं चलेगा मेरे उठने के बाद भी!
मैंने बैठ कर उसकी पैंट खोली, फिर लंड को हाथ में लिया और मुंह में डाल कर चूसने लगी।
मुझे ये सब करने की आदत तो 20 साल की उम्र से थी।
विकास- सोनी रातों रात लंड चूसना सीख गई?
मैं कुछ ना बोली और चूसती रही। विकास का लंड एकदम कड़क हो गया, करीब 7 इंच लम्बा!
फिर विकास मुझे लेटने को बोला, मैं लेट गई फिर मेरी टांगों को फैलाया और बैठ गया और बोला- कंडोम को तुम पहनाओ!
मैं बोली- मुझे नहीं आता है, फिर भी कोशिश करती हूँ।
मुझे तो आता था कंडोम पहनना… मैं उठी और एक ही बार में कंडोम पहना दिया।
विकास- अरे ये कैसे किया तुमने?
मैं- पता नहीं मुझे मुड़ा हुआ लगा कुछ… तो खोलती चली गई और ये हो गया।
विकास- सोनी इसी तरह तो पहना जाता है।
मैं- जल्दी करो, मम्मी जग न जाए।
विकास मेरी बुर पे झुका और जीभ से चाटने लगा और बोला- सोनी, तुम्हारी बुर ज़्यादा बड़ी लग रही है।
मैं डर गई और बोली- जैसी थी, वैसी ही तो है।
विकास बुर को इतना अच्छे से चाट रहा था कि मुझे मेरी चुदाई की रात याद आने लगी… मैं भी गांड उठा उठा कर उसके मुंह से अपनी बुर चटवाने लगी।
फिर थोड़ी देर बाद विकास मेरी टांग फैला कर बुर पे लंड सटा के बैठ गया और बोला- सोनी, चीखना मत… मैं घुसाने वाला हूँ!
मैं बोली- जानू जल्दी घुसाओ।
विकास ने धीरे धीरे मेरी बुर में घुसाना शुरु किया और पूरा घुसा के बोला- दर्द नहीं ना किया?
मैं बोली- नहीं।
मुझे लगा बहुत दिन बाद जन्नत में आ गई हूँ।
विकास- आज आसानी से अंदर घुस गया सोनी!
मैं- हाँ!
धीरे धीरे लंड अंदर बाहर करके वो मुझे पेलने लगा, उसे लग रहा था कि मैं सोनी हूँ और मुझे दर्द होगा इसलिए धीरे से कर रहा था और बोला- मुझे अजीब लग रहा है, बड़े आराम से मैं चोद पा रहा हूँ तुम्हें!
मैं कुछ ना बोली और सिसकारती रही।
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मैं बोली- जानू, जल्दी जल्दी पेलो ना!
विकास ने गति बढ़ा दी और जोर जोर से धक्का मारने लगा. मेरे मुख से आअह ओह ह्ह उम्म्ह… अहह… हय… याह… आआह ऊऊह की आवाज निकल रही थी।
विकास खूब तेजी से मुझे चोदे जा रहा था, चोदते चोदते उसने बोला- सोनी, मेरा पानी निकलने वाला है!
और निकलते ही मुझ पर लेट गया और मेरी चुची को मुंह से चूसने लगा, दोनों चुची को हाथ से पकड़ के चूसने लगा. तभी बोला- सोनी, तुम्हारी चुची इतनी बड़ी कैसे?
मैं- तुम ही तो कई दिनों से चूस रहे हो, इस कारण बड़ी हो गई।
विकास- तेरी मम्मी जितनी हो जाएंगी कुछ दिन में… लगता है चूची को चूसना छोड़ना पड़ेगा।
मैं- जानू थक गए? और चोदो ना मुझे!
विकास बोला- कंडोम निकलता हूँ, लंड चूस के खड़ा करो।
मैं बोली- कंडोम निकालो मत, मैं ऊपर से ही चूस लूँगी।
मैं अपने पति का लंड कई बार कंडोम के ऊपर से भी चूस लेती हूँ.
विकास- कंडोम क़े ऊपर से ही? वाऊ… तुम तो मुझे आज आश्चर्य में डाल रही हो? 3 दिन के बाद ही इतना आसानी से चूत चुदवाई और कंडोम के ऊपर से चूसने का बात करके मुझे आश्चर्य में डाल दिया।
मैं- इतना मत सोचो!
अभी तक तो इसे समझ में नहीं आया कि किसे चोद रहा है. जब जानेगा तब बुर में ही मूतने लगेगा.
मैं हँस पड़ी यह बात सोच कर!
विकास- हंसी क्यों?
मैं- ऐसे ही।
फिर लंड को चूस के खड़ा करके मैं लेट गई, इस बार मेरे ऊपर लेट के लंड को बुर में घुसाया और होंठ मेरे होंठों पर रख कर चुम्मा चाटी करने लगा, लंड से बुर में धक्का मार कर पेल रहा था और हाथ से चुची को मसल रहा था. वो मेरे होंठों पे चुम्बन ऐसा ले रहा था जैसे इमराम हाशमी इसी पे सवार हो गया हो।
चूची दबाते दबाते उसका हाथ मेरे गले में पहनी मंगलसूत्र पे चला गया।
विकास मेरे ऊपर से उठ गया और लंड बाहर निकल के हट गया.
मैं बोली- क्या हुआ?
विकास- तुम सोनी नहीं हो! कौन हो तुम?
मैं थोड़ी डर गई कि सब कुछ निकाल दिया लेकिन मंगलसूत्र भूल गई, मैं बोली- मैं सलोनी हूँ सोनी की मम्मी!
विकास- आंटी आप?
डरे डरे बोला- आप ये सब?
मैं- तुम मेरी बेटी को ये सब करने को राजी किया. तुम्हें तो सजा देनी ही थी, तुमने आज दिन में मुझसे बात की थी, तब मैं सब कुछ जान गई और तुझे रंगे हाथ पकड़ने के लिए मुझे ये सब करना पड़ा।
विकास- सॉरी आंटी, आज से ऐसा कभी नहीं होगा।
मैं- आज से रोज होगा, बस मेरे साथ… तुम्हारा यही सजा है! चलो अब इतनी देर से चोद रहा था, अब मेरी चूत की प्यास बुझाओ।
डर के वो मेरे पास आया, मैं उसे पकड़ के चुम्मा लेने लगी, वो भी मुझे चूमने लगा, फिर लंड को मेरी चूत में डाला और खूब चुदाई की।
उसके बाद से वो मेरा प्यास हमेशा बुझाता है। जब भी मन करता है तब उसे बुला कर चुदवा लेती हूँ।
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