नमस्ते दोस्तों! मेरी कहानी के पहले भाग
वासना की जलन पर बारिश का मलहम-1
में आपने पढ़ा.. बारिश के कारण मुझे स्कूल के सिक्योरिटी गार्ड के घर में रुकना पड़ा. बारिश के मौसम ने हम दोनों के बदनों में कामुकता भर दी और हमारे बदन आपस में खेलने लगे. मैं तो उसके चुम्बनों और मेरी चूची चूसने से ही झड़ गई.
‘सुनो, अब मेरा क्या होगा?’ पर वह मेरे जवाब को सुनने से पहले ही मेरे ऊपर आकर लेट गया। अब उसका राक्षसी लंड मेरी छोटी सी चुत पे रगड़ खा रहा था। मैंने अपना हाथ नीचे ले जाकर उसको मुट्ठी में पकड़ कर हल्के से दबा दिया।
उसके मुंह से आह निकल गई। उसको इस खेल की पकड़ नहीं छोड़नी थी इसलिए उसने झट से मेरे एक निप्पल को मुंह में ले लिया। अब वो मेरी जाँघों के बीच आ गया था और अपने आप को एडजस्ट करने लगा।
मैंने भी अपनी जांघें पूरी खोल कर उसको घुटनों के बल बैठने के लिए जगह बनाई। थोड़ी ही देर पहले मुझे तृप्त करने वाले मर्द को अब उसका इनाम देने के बारे में सोच रही थीं।
‘नरेन्द्र तुम्हारा ये मूसल, बड़ा और लंबा है। मैंने इतना बड़ा कभी देखा भी नहीं था।’
‘तुम्हारे पति का ऐसा नहीं है?’ उसने पूछा।
‘नहीं, उसका इतना बड़ा नहीं है, तुम धीरे से करोगे ना राजा? मुझे पता है कि मुझे बहुत दर्द होगा लेकिन मैं तुम्हारे लिए सहन कर लूंगी। पर तुम धीरे से करना’
‘मैं बहुत प्यार से करूँगा, भरोसा रखो मुझ पर… तुमको बहुत मजा आएगा मेरे साथ!’ उसने विश्वास दिलाया.
मैंने अपने पैरों को उसकी कमर पे लपेट लिया। वो एक हाथ से मेरे निप्पल छेड़ते हुए दूसरे हाथ से मेरी चुत सहलाने लगा।
मैंने अपने हाथ से उसका लंड पकड़ कर उसके सुपारे को मेरी चुत के मुंह पर रख दिया। उसके सुपारे के स्पर्श से मेरे शरीर से तरंगें निकलने लगी। लगभग छः महीने बाद मेरी चुत को लंड का स्पर्श मिला था।
उसने अब दोनों हाथों से मेरे दोनों निप्पलों को छेड़ते हुए घुटनों के बल होते हुए मेरी चुत पे दबाव देना शुरू किया तो पहले से ही गीली मेरी चुत में उसका लंड धीरे धीरे अंदर घुसने लगा। मेरी चुत के अंदर अब तनाव बढ़ने लगा था, जैसे जैसे उसका लंड अंदर घुस रहा था मेरी चुत की पंखुड़ियाँ भी उसके लंड के साथ अंदर खींचती चली जा रही थी। मुझे ऐसा अनुभव पहले कभी नहीं हुआ था।
जैसे जैसे उसका लंड अंदर घुस रहा था मैं एकदम पागल होने लगी थी।
नरेन्द्र जोर लगा रहा था… वैसे अब मुझे हल्का सा दर्द होने लगा। मैंने अपनी जांघें कितनी फैला सकती थी फैला दी। मैंने अपने हाथों से उसकी कमर को पकड़ लिया। उसने धीरे से अपना लंड बाहर निकाल दिया और अबकी बार थोड़ा जोर से अंदर कर दिया।
मैं दर्द से उम्म्ह… अहह… हय… याह… चिल्लाई तो उसने नीचे झुक कर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिए, मेरी चीख उसके मुँह में दब गई। हम दोनों की आँखें बंद थी।
तभी एक अजीब सी बात हुई, एक तेज ठंडी हवा का झोंका आया, दोनों ने आँखें खोली तो पूरी रूम बिजली की रोशनी से चमक रही थी और पंखा शुरू हो गया था।
मुझे तेज दर्द भी ही रहा था और शर्म भी आ रही थी।
नरेन्द्र ने अपना लंड थोड़ा बाहर निकाला, फिर झुक कर मेरे होंठों पे कब्ज़ा किया और एक जोर का झटका दिया और अपना पूरा लंड मेरी चुत की गहराई में उतार दिया।
मेरी मुँह से एक तेज चीख निकली जो की तेज बारिश में खो गई।
अब उसका पूरा लंड मेरी चुत में था।
वो कुछ देर मेरे बदन पर वैसे ही पड़ा रहा फिर धीरे धीरे मेरे गालों को किस करने लगा। अब मेरी चुत ने उसके लंड के आकार को एडजस्ट कर लिया था। मेरा दर्द कुछ कम हुआ, मैं अब उसके किस को रिस्पांस देने लगी।
मैंने अपनी आंखें खोल कर उसको एक स्वीट सी स्माइल दी और अपने पैरों को उसकी कमर पर लपेट लिए।
उसने मेरी कमर के नीचे हाथ डाल कर मुझे ऊपर खींचा और कमर के नीचे एक तकिया डाल दिया। उसने अब मेरे दोनों पैर अपने कंधे पे रखे और मेरी कमर पकड़ कर धीरे धीरे अपना लंड अंदर बहार करना शुरू कर दिया। उसके हर एक धक्के पे मेरी कामुकता भरी सिसकारी निकल जाती, उसके हर धक्के पे मेरा पूरा बदन झूल रहा था, उसके बड़े बड़े अंडाशय मेरी गांड पे रगड़ खा रहे थे, मेरे स्तन उसके धक्कों की लय में ऊपर नीचे हो रहे थे।
अब उसकी स्पीड बढ़ने लगी, वो अब मेरी टाइट चुत में अपना लंड जोर से अंदर बाहर करने लगा। उसका लंड मेरी बच्चेदानी से टकरा रहा था।
‘नीतू मेरी रानी… अःहः… तुम क्यों पहले नहीं आई मेरी आहहहह… जिंदगी में… मैं तुम्हें अपनी रानी बना के रखता। मेरा लंड अब आहहहह…तुम्हारा गुलाम हो गया है।’ वो मेरी चुत के मजे लेता हुआ पागलों की तरह बड़बड़ाने लगा।
‘हाँ मेरे राजा… अब मैं तुम्हारी हो गई हूँ… हमेशा के लिए.. आहहहह… तुम्हारे लंड ने… आहहह… मुझे पागल कर दिया है… मेरे राजा… आहहह.. ऐसे ही चोदना मुझे… जिंदगी भर… आहहहह.. चोदोगे न…’
मैं उसके हर धक्के पे अपनी कमर उठा कर उसका लंड जितना ज्यादा अंदर ले रही थी और जब भी लंड बाहर निकलता तब मैं चुत की नसों को सिकुड़कर उसको अंदर की रखने की कोशिश
करती।
मेरे इस तरह बड़बड़ाने से उसका लंड अब और भी बड़ा हो गया था। उसने अब फुल स्पीड पकड़ ली थी। जब से उसने शुरू किया था तब से मैं तीन बार झड़ गई थी।
हर बार मैं उसकी कमर को पैरों के बीच जोर से भींच कर उसके लंड पर झड़ जाती थी। तो वो फिर से मेरे निप्पल को मसल कर मुझे उत्तेजित कर देता था।
हमारी चुदाई काफी देर से चल रही थी, लाइट भी फिर से चली गई थी, उसके धक्के अब तेज होने लगे थे, वो अब झड़ने के करीब था।
उस छोटे से कमरे में जोर से पच पच… ठप ठप… आवाजें घूम रही थी। हम दोनों दुनिया की परवाह न करते हुए उस पल का आनंद ले रहे थे।
और फिर उसने एक जोर का धक्का दिया और अपना लंड मेरी बच्चेदानी में घुसा दिया और अपना गाढ़ा…गर्म बीज मेरी बच्चेदानी में छोड़ दिया।
उसी वक्त मेरा भी बांध टूटा और मेरी चुत में नदियाँ बहने लगी। बहुत दिनों के बाद हम दोनों को तृप्ति मिली थी। हर धक्के के साथ वो मेरी चुत को वीर्य भर रहा था। मेरी चुत भी उसके लंड पर सिकुड़कर लंड का सारा रस निकाल रही थी।
मैं अब बेड पे निढाल होकर गिर गई, नरेन्द्र अब भी मेरे ऊपर था, उसका लंड अभी भी मेरी चुत के अंदर था।
थोड़ी देर बाद नरेन्द्र ने अपना लंड पॉप की आवाज करते हुए मेरी चुत से बाहर निकाला। हम दोनों का रस अब मेरी चुत से नीचे बहने लगा।
मैंने उसकी ओर प्यार से देखा। उसने भी आगे बढ़कर अपने होंठ मेरे होंठों पे रखकर एक प्यारा सा किस जड़ दिया। यह किस पहले जैसा वासना से भरा नहीं था, बहुत ही प्यार भरा था जैसे दो प्रेमी पहली बार किस कर रहे हों।
उस मैराथन चुदाई से मैं बहुत थक गई थी। मैं अब नरेन्द्र की बांहों में समा कर उसके सीने पे सर रख के अपनी आँखें बंद कर ली। नरेन्द्र भी मुझे बांहों में लेकर सो गया।
कमरे में घना अँधेरा था। बारिश के वजह से हवा में ठंडक थी पर हम दोनों को उसकी कोई परवाह नहीं थी। एक दूसरे की बदन की गर्मी में हम दोनों कब के सो गए थे।
सुबह चार बजे मेरी नींद खुली, मैंने आँखे खोलकर देखा तो मेरा साजन नरेन्द्र मेरे पास ही नंगा सोया हुआ था।
मैंने उठ कर गैस पे पानी गर्म किया और नहाने चली गई। नहाते वक्त मेरी चुत को अच्छे से साफ़ किया, फिर वही धोती पहन कर बाहर आ गई और नरेन्द्र के पास बेड पर बैठ गई।
मैंने उसके चेहरे की ओर देखा तो वह अभी भी सोया हुआ था।
तभी मेरी नजर उठी, उसका लंड खड़ा होकर पड़फड़ा रहा था। यही वह मूसल था जो मैंने पूरी रात अंदर लिया था। मुझे अपने आप पर आश्चर्य हो रहा था। मैंने अपने हाथ से मेरी चुत को छू के देखा तो कल के प्रहार से थोड़ी सूज गई थी।
मैं उसके कमर के पास बैठ गई और उसके लंड को दायें हाथ से पकड़ लिया। वो लंड जैसे मुझे सम्मोहित कर रहा था, कामुकता वश मैं उस लंड के करीब झुकती चली गई। कुछ ही पलों में मैंने अपने नाजुक होंठ उसके सुपारे पे रखे। रात की चुदाई का मेरा रस और उसका वीर्य उसके लंड पर सूख गया था। मैंने हल्के से अपनी जीभ से वो सब साफ़ कर लिया और धीरे धीरे उसके पूरे सुपारे को मेरे होंठों में लेने लगी।
उसका पूरा सुपारा मेरे मुँह में आते ही स्ट्रॉ चूसने की तरह सपर सपर करके मैं उसका लंड चूसने लगी। मेरे नाजुज होंठों के स्पर्श से उसकी नींद खुल गई और उस असीम सुख का अनुभव होने के बाद उसका बदन थरथरा गया।
कॉलेज में पढ़ते वक्त एक सहेली के घर देखी हुई ब्लू फिल्म के जैसा ब्लो जॉब मैं मेरे प्रियतम को दे रही थी। धीरे धीरे मैंने अपने होंठों को उसके लंड पर ऊपर नीचे करना चालू कर दिया और अपने दोनों हाथों से उसके लंड को जड़ से पकड़ कर ऊपर नीचे करने लगी।
उसका लंड अब फड़फड़ाने लगा, उसने अब अपना हाथ मेरे सर पर रखा और नीचे दबाने लगा। मैं भी अपने मुँह के मसल्स को ढीला छोड़ते हुए उसका पूरा लंड अपने मुँह में लेने की कोशिश करने लगी।
मैं अब एक सी स्पीड में अपना मुंह ऊपर नीचे करने लगी।
यह सब उसके कण्ट्रोल के बाहर हो रहा था- नीतू… रुक जाओ प्लीज…
वह बोल पड़ा।
उसका लंड धीरे से अपने मुँह से निकलकर मैंने उसे एक स्माइल दी- क्या हुआ राजा?
‘अब और करती रही तो मैं तुम्हारे मुँह मैं ही झड जाऊंगा, मुझे तुम्हारा मुँह ख़राब नहीं करना है!’ उसने बोला।
‘कल रात को तो बहुत वक्त लिया था आपने झड़ने में …तो अब इतनी जल्दी कैसे होगा?’ मैंने पूछा।
‘रात की बात अलग थी, तुम जो अभी कर रही हो उसकी आदत नहीं है मेरे लंड को!’ इतना बोलते हुए उसने मुझे बांहों में भर कर अपने ऊपर खींचा। मैं भी किसी बेल की तरह उससे लिपट गई।
गीले बालों की वजह से पहनी हुई धोती भी गीली हो गई थी और उसमें मेरे स्तन दिख रहे थे जैसे धोती फाड़ कर बाहर निकलना चाहते हों।
यह देख कर नरेन्द्र और मचल उठा, उसने मुझे बेड पर लिटाया और अपने हाथों से मेरी धोती उतारने लगा।
नहाया हुआ मेरा चेहरा अब शर्म से गुलाबी हो रहा था।
उसने मेरे चेहरे की ओर देखते हुए ही धोती को खींच कर उतार दिया और मुझे भी उसकी तरह नंगी कर दिया।
फिर उसने मेरे चेहरे पर चुम्बन करना शुरू कर दिया। मेरे माथे से शुरू कर के आँख कान, नाक, गाल ऐसा सफर करते हुए उसके होंठ अब मेरे होंठों तक पहुंच गये। मैं भी जैसे इन्तजार में ही थी, उसके होंठों के छूते ही मैंने अपने होंठों को अलग कर दिया और उसकी जीभ को रास्ता दे दिया।
उसने भी बढ़ी सफाई से अपनी जीभ को मेरे मुंह में डाल और दाया हाथ मेरे स्तनों पे ले जाते हुए मेरे स्तनों को बारी बारी मसलने लगा। मैं भी कहाँ चुप रहने वाली थी, मैं एक हाथ उसकी जांघों के बीच ले गई तो दूसरा मेरी जांघों के बीच!
उसका खड़ा लंड एक हाथ से सहलाते हुए मैंने दूसरे हाथ की उंगली मेरी चूत में डाल दी।
नरेन्द्र भी अब मेरे खड़े निपल्लों को उंगलियों में भींचने लगा।
मेरी सिसकारियाँ अब उसके होंठों में दबने लगी थी। मैं अब उसकी प्यार की बारिश में फिर से भीगने लगी थी। मेरी चुत भी अब गीली हो गई थी। नरेन्द्र भी अब अपना आपा खोने लगा था, उसी अवस्था में वह मेरे ऊपर आ गया।
मैंने भी उसको अपनी बांहों में लिया और अपनी टांगें फैला दी। मेरी छोटी सी गुलाबी चुत कल की चुदाई से अब थोड़ी खुल गई थी और अंदर का गुलाबी हिस्सा मेरी टांगों में बैठा हुआ नरेन्द्र आराम से देख रहा था।
मेरी आँखों में उसकी प्रति दिख रहे प्रेम और वासना को देखते हुए उसने फिर से अपने लंड को मेरी चुत की पंखुड़ियों के बीच में फंसा दिया और थोड़ा सा आगे झुक गया।
उसके साथ ही उसका लंड धीरे से मेरी चुत में घुस गया तो मेरी आहहहह निकल गई।
उसका बड़ा लंड मेरी चुत में जगह बना रहा था। वो मेरी नजरों से नजर मिलाते हुए कामुकता से मुस्कुराया। मैं भी शरमाते हुए उसकी मुस्कराहट का जवाब देते हुए अपने हाथ उसकी कांख के बीच से होते हुए पीठ पर ले आई और अपने पैरों से उसकी कमर को भींच लिया।
उसने अपने होंठ मेरे होंठों पे रखे और धीरे से धक्का दिया, उसका लंड मेरी चुत की गहराई में घुसता चला गया।
छह घंटे में दूसरी बार वो मूसल मेरे चुत में जा रहा था। मैं भी अपने से दुगने उम्र वाले मेरे प्रेमी के लंड को मुझ में समाने के लिए तैयार थी। उसका लंड एक ही धक्के में मेरी बच्चेदानी से टकरा गया. मैंने भी अपनी चुत की नसों को ढीला छोड़ दिया और उसके धक्कों को सिसकारते हुए एन्जॉय करने लगी।
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नरेन्द्र अब घुटनों के बल बैठ गया और हाथों से मेरी चूचियाँ मसलने लगा। उसने अपने धक्कों की स्पीड बढ़ा दी। उसकी कमर एक लय में हिल रही थी और उसकी वजह से उस नरम गद्दे पे मैं भी गचागच हिल रही थी।
मैंने अपने पैर उसकी कमर से हटाते हुए हवा में फैला दिए ताकि नरेन्द्र को जगह मिले। वो भी उस जगह का भरपूर इस्तेमाल कर रहा था। उसने अपने दोनों हाथों से मेरे स्तन दबा के लाल कर दिए थे और अपना बड़ा सा लंड मेरी छोटी सी चुत में पूरा अंदर बाहर कर रहा था।
मेरी टाइट चुत की वजह से उसका लंड जैसे छिल सा गया था। पर उस बात की परवाह किसे थी। हम दोनों उस स्वर्ग सुख लेने में मग्न थे। उस छोटे से रूम में हम दोनों की सिसकारियाँ गूंज रही थी।
कुछ ही पलों में मैंने अपने पैर उसकी कमर पे लिपट लिए और हाथों से उसको अपने करीब खींच लिया और उससे जोर से लिपट गई। मेरा शरीर मानो अकड़ सा गया था और मैं थरथराने लगी। मुझे कल रात से भी बड़ा ओर्गास्म महसूस हुआ था।
नरेन्द्र ने थोड़ी देर धक्कों को रोका और मुझे शांत होने का मौका दिया।
कुछ ही पलों में मैं शांत हुई, अपने पैरों को उसकी कमर पे से निकाल कर नीचे गद्दे पे रख दिया और प्यार से नरेन्द्र की आंखों में देखने लगी।
उसने नीचे झुक कर मेरा चुम्बन लिया।
उसका लंड अभी भी मेरी चुत के अंदर ही था.
थोड़ी देर बाद उसने अपनी कमर को हरकत में लाते हुए मेरी चुत की गहराई में धक्के लगाने चालू कर दिए। उसने अपने होंठ मेरे मीठे मीठे निप्पल पर रख दिए और उनको चूसने लगा।
मैं फिर से मूड में आने लगी और उसके धक्कों को मेरी कमर उठा कर के रिप्लाई देने लगी, मेरा साथ मिलते ही नरेन्द्र मस्ती में आ गया, उसने अपने धक्कों की गति बढ़ा दी… पचाक पचाक… की आवाजें रूम में गूंजने लगी थी, वो राजधानी एक्सप्रेस की स्पीड से मुझे चोदने लगा मैं नीचे से उसकी ताबड़तोड़ चुदाई का मजा ले रही थी, वासना की तरंगों में बहते हुए मेरी चुत में फिर से तूफान उठने लगा- मेरा होने वाला है… नरेन्द्र…
वो भी अपने परमोच्च बिंदु पे पहुंच गया था, वो भी ख़ुशी से चिल्लाया- उम्म्ह… अहह… हय… याह… मैं भी आ रहा हूँ जान… मेरा भी होने वाला है…
नरेन्द्र इतना बोल पाता, तब तक मैंने अपने पैर उसकी कमर पर लिपट लिए और थोड़ी देर बाद ही मेरा चुत का रस उसके लंड को भिगोने लगा।
तभी उसका भी बांध टूटा और नरेन्द्र ने चार पांच जोर के धक्के लगा कर अपना वीर्य मेरी तड़पती टाइट चुत में डाल दिया और मेरे बदन पर गिर गया।
हम दोनों सारी दुनिया भुला कर एक दूजे की बांहों में सिमटे पड़े रहे।
फिर थोड़ी देर बाद मैंने अपने सूखे कपड़े पहन लिए और किसी को शक ना हो इसलिए अपनी एक सहेली के घर चली गई।
अब जब भी मौका मिलता है, वो अपने कामुकता भरे प्यार की बारिश ऐसे ही मुझ पर बरसाता रहता है। आपकी राय मुझे मेल करें!
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