हाई फ्रेंड्स, मैं अन्तर्वासना का लम्बे टाइम से पाठक रहा हूँ. इधर की काफ़ी सेक्स कहानियां पढ़ पढ़ कर मुठ मारने की तो अब आदत सी हो चुकी है. मेरे लिए कोई भी दिन बिना सेक्स कहानी के काटना मुश्किल होता है. रचनाकार के तौर पर यह मेरी पहली कहानी है. यह कहानी बिल्कुल वास्तविक है. इस घटना ने मुझे और मेरे लंड को हिलाके रख दिया था.
मैं आपको अपने बारे मैं थोड़ा परिचय दे देता हूँ. मेरा नाम रॉकी है और मैं गुजरात के राजकोट से हूँ. मेरी उम्र इक्कीस साल है, रंग गोरा है और ऊंचाई साढ़े पांच फुट है. और हां, मेरे हथियार (लंड) का साइज़ सात इंच है. मेरे लंड की मोटाई किसी भी औरत की चीखें निकलवा दे उतनी है.
बात ज़्यादा पुरानी नहीं है, कोई दो महीने पहले की है. सरकारी बैंक के क्लर्क के पद पर नौकरी लगने के बाद मुझे पास ही के शहर जूनागढ़ में जाना हुआ. मैं वहां किराए के मकान में रहने लगा. मेरी माँ भी मेरे साथ रहने को आ गई थीं ताकि मुझे खाना आदि की दिक्कत न हो.
मैं जहां रहता था, वो विस्तार एकदम साफ सुथरा एवं अच्छे लोगों वाला था. मेरे बिल्कुल सामने वाले मकान में एक बड़ा सा परिवार रहता था, जिसमें अंकल आंटी अपने दोनों बेटे एवं एक बेटी के साथ रहते थे. अंकल के दोनों बेटों की शादी हो चुकी थी लेकिन उनकी बेटी अभी कुंवारी थी. उसका नाम धारा था. जब वहां पहली बार रहने आया था, तब उसको देखकर मुझे वो अपनी हम उम्र ही लगी.
मैं आप लोगों को उसके बारे में थोड़ा परिचय दे देता हूँ. धारा पांच फुट दो इंच की कमसिन हसीना है, उसका रंग एकदम गोरा है. वो इतनी अधिक मखमली माल है … अगर उसके गाल को चूम लिया जाए तो निशान रह जाए. वो सुडौल थी, ज़्यादा पतली भी नहीं और ना ही ज़्यादा मोटी. वो अक्सर बिना चुन्नी के डीप कट वाले सलवार कमीज़ पहनती थी. उसके कबूतर (बूब्स) बत्तीस इंच के रहे होंगे जो उसकी सुंदरता में चार चाँद लगाते थे. कुल मिला के उसका मारू फिगर 32-28-34 का किसी को मदमस्त कर देने व़ाला था.
थोड़े दिनों के बाद हमारे और अंकल के परिवार की अच्छी बनने लगी और वो हर रोज़ हमारे घर पे दोपहर को रसोई बनाने के लिए मीठी नीम के पत्ते लेने आने लगी.
एक बार को मैंने उसको मेरी मम्मी के साथ बात करते सुन लिया कि उसकी उम्र इकत्तीस साल है और वो कुंवारी है और अभी तक उसकी शादी नहीं हुई है.
आगे की बातों से जानकारी मिली कि जब वो बाइस साल की थी, तब उसकी सगाई एक अच्छे खानदान में हुई थी, लेकिन एक महीने बाद ही लड़के ने उसको सामने से बता दिया कि वो नामर्द है और वो परिवार वालों के दबाव में आकर सगाई कर रहा है.
फिर धारा ने वो बात अपनी मम्मी से की और उसकी सगाई तोड़ दी गई. उसको इस बात का काफ़ी सदमा लगा और उसने नक्की किया कि वो जिंदगी भर कुंवारी रहेगी.
अब मैं ठहरा अन्तर्वासना पढ़ने वाला और मेरे दिमाग़ मैं एक ही बात घूम रही थी कि इतने सालों से वो अपनी चुदाई की आग को कैसे शांत करती होगी. अब मेरा उसके प्रति देखने का नज़रिया बदल गया और मैं उसको ठरकी वासनात्मक निगाहों से देखने लगा. हमारी जब मुलाकात होती थी, तब वो मुझे देख के हल्का सा मुस्करा देती थी.
एक दिन की बात है, जब मेरी मम्मी को कमर की तकलीफ़ हो गई थी, तब वो मेरे घर मेरी मम्मी की खैर खबर पूछने आई थी. उस टाइम डॉक्टर का अड्रेस लेने के बहाने उसका व्हाटसैप नंबर मुझसे शेयर हो गया.
फिर कुछ दिनों बाद सामने से उसका शुभ प्रभात का मैसेज आया. उससे बात का सिलसिला धीरे धीरे आगे बढ़ने लगा. मेरा उससे दस साल की उम्र का फासला होने के बाद भी वो मेरी अच्छी दोस्त सी बन गयी थी.
एक दिन उसने मुझसे पूछा- तुम्हारी कोई गर्ल फ़्रेंड नहीं है क्या?
तो मैंने भी बोल दिया कि आज तक मुझे पसंद आ जाए, वैसी कोई मिली नहीं है. जानबूझकर मैंने वो तीर मारा था.
इस वजह से उसने पूछा- अच्छा तो मुझे भी बताओ कि तुमको कैसी लड़की पसंद है?
मैंने फट से बोल दिया कि बिल्कुल तुम्हारे जैसी.
उससे आगे की बात कुछ इस तरह हुई.
धारा- धत … मेरे जैसी पसंद कैसे हो सकती है तुम्हारी?
मैं- क्यों नहीं हो सकती भला, क्या कमी है तुम में? किसी अप्सरा से कम थोड़ी ना दिखती हो.
धारा- बस करो अब तुम कुछ ज़्यादा ही तारीफ कर रहे हो!
मैं- जो सच है, मैं वो बता रहा हूँ … अच्छा एक बात बताओ, तुमने फिर शादी क्यों नहीं की … मेरा मतलब है कि तुम्हारी तो सिर्फ़ सगाई ही टूटी थी ना!
धारा- मैं तुमसे इस बारे में कोई बात नहीं करना चाहती.
मैं- देखो अगर तुम मुझे अपना दोस्त समझती हो, तो बता सकती हो वरना … मैं समझूंगा कि तुम मुझे अपना दोस्त नहीं समझती हो.
धारा- अरे यार, ऐसा मत करो. मेरे ना बताने का वो मतलब नहीं है. दरअसल जब वो लड़के ने मुझे बताया कि वो नामर्द है, तब मुझे लगा कि मेरी क़िस्मत में ही ऐसा होना था, मैंने किसी का क्या बिगाड़ा था, जो भगवान ने मेरे साथ ऐसा किया.
ऐसा कहते कहते उसकी आंखें भर आईं.
तभी मैंने मौके का फ़ायदा उठाते हुए पूछा कि फिर उसके बाद कभी तुम्हें ऐसी कोई ज़रूरत महसूस नहीं हुई?
धारा- ज़रूरत तो होती है लेकिन दुबारा ऐसा कुछ हो जाए, उसके डर से शादी करने से डरती हूँ और मेरी इसी ज़िंदगी को अपना भाग्य मान के ज़ीने का फ़ैसला कर लिया है. जब भी कभी मैं मेरे भाई-भाभी को साथ में हंसते हुए देखती हूँ … तो मुझे भी किसी की ज़रूरत महसूस होती है.
इतना कहते कहते वो रोने लगी. फिर मैंने उसे शांत करते हुए उसके आंसू पौंछे और उसको गले से लगा लिया. मैंने उसको एक लंबा सा हग दिया, हग देने के बहाने मैं उसकी नर्म नर्म मांसल पीठ को सहला रहा था. उसका उसने कोई विरोध नहीं किया.
थोड़ी देर बाद वो जब सामान्य हुई, तो वो झट से मुझसे अलग हो गई. अब वो शर्म के मारे मुझसे नज़र नहीं मिला पा रही थी.
फिर मैंने उसको प्यार से समझाया कि देखो जो तुम्हारे साथ में हुआ, उसमें तुम्हारी कोई गलती नहीं है. किसी और के नामर्द होने की सज़ा तुम अपने आपको क्यों दे रही हो, तुम्हें भी तो बाकी लड़कियों की तरह जिंदगी के मज़े लेने का और अपनी शारीरिक ज़रूरतें पूरा करने का हक है.
मेरी ये बातें वो ध्यान से सुन रही थी और शायद उसको सभी बातें सीधी दिल में उतर गई थीं.
मैंने सोचा कि इतनी हिम्मत की है, तो थोड़ी और सही. बस मैंने उसको बोल दिया कि देखो धारा मैंने जब से तुमको पहली बार देखा था … तब से तुम मुझे पसंद आ गई हो और तुमसे शादी करना चाहता था, लेकिन जब मुझको पता चला कि हमारे बीच में दस साल का फासला है … तब मुझे बहुत ज़्यादा दुख हुआ और इसी वजह से मैं तुमसे शादी तो नहीं कर सकता, लेकिन एक बात का पक्का यकीन दिला सकता हूँ कि मैं तुम्हें इतना प्यार करूँगा कि तुम अपने पिछले सारे सभी दुख भूल जाओगी.
ये सब बोलते बोलते मेरी गांड तो फट रही थी, लेकिन मैंने सोचा कि अगर ये मौका मेरे हाथ से चला जाएगा तो फिर कभी मुझे उसकी चूत के दर्शन नहीं होंगे.
मेरा उतना बोलने के बाद थोड़ी देर वो चुप रही, शायद वो अपने दिल से ज्यादा अपनी चूत की आवाज़ को सुन रही थी. थोड़ी देर बाद वो बोली- लेकिन अगर किसी को कुछ पता चल गया, तो हम दोनों का क्या होगा?
मैंने कहा- किसी को कुछ पता नहीं चलेगा और हम दोनों बिना शादी किए काफ़ी खुश रहेंगे.
फिर थोड़ा सोचकर वो हल्का सा मुस्कुरा दी.
उस वक़्त हम छत पर थे. इधर कुछ नहीं हो सकता था लेकिन मैं मन ही मन बहुत खुश था. तब भी मैंने उसका हाथ अपने हाथ में लेकर ज़ोर से दबा दिया. इस बात का पहला अहसास शब्दों में बयान करना थोड़ा मुश्किल है दोस्तो.
फिर वो तनिक हंस कर चली गई.
बाद में रात को जब मैंने उसको मैसेज किया कि कहीं मिलने का प्लान बनाते हैं. तो उसने हां कर दी और कहा कि वो घर से एक दो घंटे से ज़्यादा देर तक बाहर रहेगी, तो घर वालों को शक हो जाएगा.
मैंने बोला- तुम्हारी कोई फ़्रेंड सहेली के घर मिल सकते हैं?
उसने बताया- मेरी दो फ्रेंड हैं, जिसमें एक की टीचर की जॉब इसी शहर में होने की वजह से वो पास वाली बिल्डिंग में एक फ्लैट में किराए पर रहती है. मैं उससे बात करती हूँ.
अगले रविवार को कुछ करने की सोच बनी. उस दिन मुझे भी बैंक से छुट्टी थी. शनिवार रात को उसका फ़ोन आया कि मिलने का इंतज़ाम हो गया हैं.
अगले दिन वो सुबह ग्यारह बजे अपने घर से निकली. थोड़ी देर बाद मैं भी उसके दिए गए पते पर जा पहुँचा.
ये एक दो बीएचके का फ्लैट था और उसकी दोनों फ्रेंड्स ने मेरे साथ अपना परिचय किया. उनमें से एक का नाम था श्वेता था वो उनतीस साल की गदराई हुई मदमस्त जवानी थी. उसके सीने के उभार अच्छे ख़ासे बड़े थे. श्वेता का रंग गोरा था और उसका फिगर लगभग 36-30-36 का होगा. दूसरी वाली का नाम मोहिनी था. उसकी उम्र अट्ठाइस साल की थी. उसका रंग थोड़ा सांवला सा था, लेकिन शक्ल सूरत से बड़ी अच्छी थी. उसका फिगर क़रीबन 34-30-34 का रहा होगा. उन दोनों को सरसरी निगाहों से चोदने के बाद मैं धारा को लेकर दूसरे कमरे में चला गया. वो कमरा काफ़ी महक रहा था. लगता था उन दोनों ने पहले से ही हमारी सुहागदिन का इंतज़ाम कर रखा था.
धारा के अन्दर आते ही मैं उसे बेतहाशा चूमने लगा, उसके होंठ एकदम नर्म गुलाब की पंखुड़ियों के माफिक थे.
शुरू शुरू मैं उसने थोड़ा विरोध किया, लेकिन बाद में वो मेरा साथ देने लगी. उसको चूमते वक़्त पता चल गया कि वो नौसीखिया है. मैंने अपने दोनों होंठ से उसके निचले वाले होंठ को गिरफ़्त में ले लिया और अपनी जीभ से उसकी जीभ के साथ खेलने लगा. साथ मैं उसकी पीठ को भी सहला रहा था. उसने सलवार कमीज़ पहन रखा था. मैंने उसको बेड पे लेटा दिया और उसके कुर्ते की बटन खोल दिए और उतारने लगा. वो नारी सुलभ तरीके से शरमाने लगी और मुझसे बचने की नाकाम कोशिश करने लगी.
उसका कुर्ता उतरने के बाद का नज़ारा देखकर मैं मानो कहीं खो सा गया.
पिंक कलर की ब्रा में क़ैद उसके सफेद रूई के दोनों गोले इतने कसे दिख रहे थे, जैसे ब्रा को तोड़कर बाहर आने को तड़प रहे हों. मैंने देर ना करते हुए झट से उसकी ब्रा को उससे अलग किया. उसके दोनों मम्मे हवा में फुदकने लगे.
मैं उसकी एक अनछुई चुचि को हाथ में लेकर दबाने लगा और दूसरी चुचि को होंठों से दबा कर पीने लगा. उसके भूरे निप्पल दोनों चुचियों की सुंदरता बढ़ा रहे थे. मैं उसके मम्मे ज़ोर ज़ोर से दबाए जा रहा था और छोटे बच्चे की तरह चूस रहा था. वो मेरे कामुकता के लबरेज अहसास में खो सी गई थी … और मादक सिसकारियां ले रही थी.
“आह … स्स.स.स्स … और ज़ोर से … चूसो … रॉकी मसल डालो मेरे दोनों चुचे … आह … कितने सालों से ब्रा मैं क़ैद थे …”
मैंने जल्दी से अपने आपको नंगा किया और मेरा सात इंच का मोटा विकराल लंड उसके हाथों में थमा दिया. मेरा लंड देखकर उसे झटका सा लगा … उसकी आंखें फटी की फटी रह गईं. उसने पहली बार जिंदगी में किसी मर्द का लंड देखा था तो आश्चर्य होना लाज़मी था. मैंने उसको मेरा लंड हाथ में देकर दो तीन बार मुठियाना सिखाया.
उसने मेरे लंड को सहलाया. अब मैंने उसको बोला- चूसो इसको!
उसे लंड मुँह में लेना कुछ अज़ीब सा लगा और वो मना करने लगी, लेकिन मैंने मेरी कसम देकर उसको मुँह में दे दिया. मेरा आधा लंड उसके गले तक पहुँच गया … और फिर वो छोटा बच्चा जैसे लॉलीपॉप चूसता है, वैसे लंड चूसने लगी.
लंड चुसाई से मैं मानो स्वर्ग में गोते लगा रहा था. उसका लंड चूसना अपने आपमें ही कामसूत्र की अनुभूति थी.
मैं ज़्यादा देर तक वो अनुभूति बर्दाश्त नहीं कर सका और उसके सिर को पकड़ पकड़ कर ज़ोर से मुँह चोदने लगा और उसके मुँह में ही झड़ गया. मेरे वीर्य की गरम पिचकारी उसके गले से सीधे उसके शरीर में अन्दर तक चली गई.
उसको लंड चूसना काफ़ी अच्छा लगा. फिर मैंने उसके उसका पायज़ामा का नाड़ा ढीला करके उसको उतार फेंका. उसकी गुलाबी कलर की पेंटी को एक पल देखा और फिर अलग कर दिया.
दोस्तो, किसी नवयौवना का चेहरा जैसे शर्म से गुलाबी होता है, ऐसी गुलाबी उसकी चूत थी. उस पर हल्के हल्के बाल थे, जो उसने सुबह सैट किए थे. फूली हुई डबल रोटी जैसी उसकी चूत थी. जो मेरी कामक्रीड़ा के बाद पूरी गीली होके चमक रही थी.
मैंने उसके दोनों पैर उठा दिए. अपना मुँह उसकी चूत पे लगा दिया और उसकी गुलाबी चूत को चाटना शुरू किया.
उसके जवान होने के इतने सालों में पहली बार कोई लड़के का मुँह उसकी चूत पर लगा था. वो पूरी तरह से अपना होश खो रही थी. इस समय वो एकदम काम की देवी लग रही थी, जो बस चुदने को बेकरार हो रही थी.
मैं अपनी जीभ के अगले हिस्से से उसके भग शिशनिका (क्लाइटोरिस) को मुँह में ले कर चूस रहा था और मेरे दोनों हाथ उसके कबूतरों को मसल रहे थे. मेरा ये दोहरा हमला वो झेल नहीं पाई और मेरे मुँह पे ही उसने अपना पानी छोड़ दिया.
झड़ने के बाद उसने मुझसे कहा- आज़ तुमने मुझे बहुत मज़ा दिया.
मैंने कहा- मेरी रानी अभी तो असली मज़ा बाकी है … तुझे आज अपने लंड की ऐसी सैर करवाता हूँ कि बस बार बार लंड लंड करोगी.
वो मेरी इस बात से शर्मा गई.
उसकी चूत को चूसने के दौरान ही मेरा खड़ा लंड फिर से सलामी दे रहा था. मैंने अपने खड़े लंड पर कंडोम चढ़ा लिया. फिर उसकी चूत पर थोड़ा सा क्रीम लगा कर उंगली से चूत को चिकना कर दिया. फिर मैंने अपने लंड को उसकी चुत के द्वार पर सैट करके हल्का सा धक्का लगा दिया. उसकी चूत काफ़ी काफ़ी टाइट थी.
मेरे पूछने पर पता चला कि उसकी तरह उसकी चूत भी अभी तक कुंवारी थी … जिसका उद्घाटन करने का सौभाग्य मुझे मिल रहा था. ये जान कर मैं मेरी किस्मत को शाबाशी देने लगा. उसने बताया कि वो अपनी कामेच्छा को अपनी उंगली से शांत कर लेती थी और कभी कभी मूलीमैथुन से भी खुद को शांत किया था. एक बार मूली से करते हुए उसकी झिल्ली फट गई थी. उस हिसाब से उसकी सील टूट चुकी थी.
मैंने उसकी बातों को अनसुना करते हुए धक्का लगाया और लंड का सुपारा ही गया था, तभी वो कसमसाने लगी- प्लीज़ रहने दो … तुम्हारा बहुत बड़ा है … मेरी चूत को लंड की आदत नहीं है … इसका कचूमर निकल जाएगा.
“मेरी जान, थोड़ा दर्द सह लो … फिर तो तुम्हारे मज़े ही मज़े होने हैं.”
यह बोलते हुए मैंने आधा लंड घुसा दिया. मेरे अचानक झटके से वो ज़ोर से चिल्ला पड़ी और उसकी आंखों से आंसू निकल आए- उम्म्ह… अहह… हय… याह… माँ … मर गाइई … नि …का …लो इसे … सांड का लंड है … मैं मर जाऊंऊगी … रहम कर चूतिए … निकाल साले!
उसकी हालत देख मैं थोड़ी देर रुक गया और उसका ध्यान उसे चूम के … उसके कबूतरों के साथ खेल कर थोड़ा हटाया. जब वो कुछ सामान्य हुई, तो मैंने एक ही झटके में अपना पूरा लंड उसके चूत के सागर में डाल दिया.
उसको दर्द तो हुआ पर कुछ देर के बाद वो सहज होकर अपनी गांड उठा उठा कर धक्के दे रही थी- चोद डाल अपनी इस रानी की मुनिया को … आह … मेरी चूत का भोसड़ा बना दो मेरे राजा … मुझे औरत बना दे. और ज़ोर ज़ोर से पेल मेरे हीरो रॉकी!
उसकी ये बातें उसकी इतने सालों से दबी कामुकता को बयान कर रही थीं. उसकी बातें मेरा और मेरे लंड का जोश बढ़ा रही थीं. मैं पूरी स्पीड में धक्के दिए जा रहा था.
‘फाच्च … धाक्क … फाच्ष …’ की आवाज के साथ दे दनादन धक्के लग रहे थे.
थोड़ी देर बाद उसकी चूत ने हार मान ली और सीटी की आवाज़ से पानी छोड़ दिया. लेकिन मेरा अभी बाकी था … मैं चुदाई में लगा रहा और करीब दस मिनट के बाद मैंने लंड बाहर निकाला और कंडोम हटा कर लंड का माल उसके मम्मों पर मेरा माल गिरा दिया.
मैं थोड़ी देर उसे लिपटा रहा और चूमता रहा. उसका चेहरा देख कर उसकी तृप्ति के भाव साफ़ दिख रहे थे. वो बोली- तुमने मुझे आज एक औरत होने का सुख दिया है. मैं तुम्हारा एहसान कैसे चुकाऊं?
“अरे पगली, उसमें एहसान क्या … बस इसी तरह से चुदवाते रहना … हिसाब बराबर …”
हम दोनों हंसने लगे.
चुदाई के इस दौर में काफ़ी वक़्त निकल गया था. फिर जल्दी से हम दोनों कपड़े पहने और अपने घर को निकल गए.
दोस्तो, कैसी लगी आप लोगों को मेरी हिन्दी सेक्स कहानी. अगर आपको पसंद आयी हो तो मुझे ईमेल करें और रेटिंग दें. अगर आप लोगों को पसंद आती है … तो ही मैं दूसरा पार्ट लिखूंगा, जिसमें धारा की गांड चुदाई हुई और कैसे मैंने श्वेता को अपने लंड के ज़ाल में फंसाया. वो सब पूरे तफसील से बताऊंगा. लेकिन ये सब मैं आपके कमेंट्स के बाद ही लिखूंगा. मेरी पहली सेक्स कहानी में कोई गलती हो गई हो, तो माफी चाहता हूँ.
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