यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
नमस्कार दोस्तों! कोमल के लिए तो चारू का लंड जाना पहचाना था लेकिन मेरे लिए नया था और बेहद उत्तेजक था, मैं उसे देख देख कर ही मदहोश हुए जा रही थी।
तभी चारू ने मुझे 69 की पोजीशन में लेकर मेरी चूत चाटनी शुरू कर दी। वो मेरी चूत की तारीफ में पता नहीं क्या क्या बोले जा रहे थे, पर हम लोग उनके लिंग का आनन्द उठाने में लगी थी। चारू वाकई में बहुत अच्छा चूत चाट रहे थे, उन्होंने चूत को पानी छोड़ने पर मजबूर कर दिया, पर ये मेरा स्खलन नहीं था, इसलिए मुझमें अब भी जान बाकी थी।
सबसे पहले कोमल ने चारू को चित लिटा दिया और चारू के दुबारा खड़े हुए विशाल लिंग को अपनी चूत में सेट करके बैठती चली गई। उसी समय मैंने अपनी दोनों टाँगें चारू के दोनों ओर रख कर अपनी चूत को चारू के मुंह में टिका दिया, अब मैं और कोमल एक दूसरे के मुंह में मुंह डालकर जीभ चूसने और चाटने लगी। हमारी आँखें बंद थी, और हम उरोजों को मसलते हुए अपनी उत्तेजना को बढ़ा और शांत कर रही थी।
चारू बहुत अच्छे से मेरा चूत चाट रहे थे, साथ ही उन्होंने अपनी दो उंगली भी चूत में डाल दी, उधर कोमल लिंग को पूरा गटक कर उपर से नीचे कूदने लगी, सभी के मुंह से कामुक ध्वनियां निकलने लगी, पर तेज आवाज नहीं कर सकते थे इसलिए लगभग सभी बड़बड़ाने जैसी हालत में मजे लेते रहे।
कुछ देर बाद ही कोमल अकड़ने लगी, उसका शरीर कंपकपाने लगा, उसके रोंये खड़े हो गये थे। तन से वाष्प निकल रहा था। वो हमें खरोचने लगी, दांत पीसने लगी, आँखें वासना से लाल तो थी ही, अब उनमें से आंसू बह निकले, उहह इहह उम्म्ह… अहह… हय… याह… आआहह ओहह करते हुए वो झड़ने लगी, उसकी चूत का रस उसकी जाँघों पर बह गया और वो एक ओर ढुलक गई।
अब बारी मेरी थी, चारू ने बिस्तर से उतर कर मुझे बिस्तर के कोने तक खींचा और मेरे दोनों पैर अपने कंधों पर रखते हुए उसने मेरी चूत पर अपना लंड टिकाया, मैं चुदाई के नशे में इतनी मदहोश थी कि मुझे याद भी नहीं रहा कि चारू का लंड रोहन के लंड से लगभग दुगुना है।
मैं पैर फैलाये चारू के हमले का इंतजार करने लगी, चारू ने अपना लंड मेरी चूत के ऊपर तीन चार बार और रगड़ा, उसकी इस हरकत ने मेरे शरीर में और भी ज्यादा आग लगा दी, मैंने थरथराते सूखे होंठो को जीभ फिरा के गीला किया, और कहा- अब डाल भी दो!
मेरा इतना बोलना था कि चारू ने मानो बदला लेने की मंशा से पूरा लंड एक बार में ही जड़ तक उतार दिया।
दर्द के मारे मेरी आँखें बाहर आ गई, ऐसा लगा किसी ने चाकू से मेरी चूत को चीर दिया हो। मैं ज्यादा जोर से चिल्लाती, इससे पहले ही चारू ने मेरे मुंह पर हाथ रख दिया था।
अब मैं बेहोश जैसी स्थिति में पड़ी रही। चारू का लंड भी भयानक था और चारू भी बेरहम… और बेरहम हो भी क्यों ना उसे तो केवल चूत का मजा लेना था, ये मेरा रोहन थोड़े ना था जो मेरे दर्द का ख्याल रखता।
मैंने रोहन को दिल से याद किया और अपनी बेवफाई के लिए मन ही मन माफी मांगी।
लेकिन चूत इंसान नहीं पहचानती बस अपना मजा देखती है। मेरी चूत को भी तीखा दर्द कुछ देर बाद मीठा लगने लगा। चारू ने मुझे सामान्य होते देख कर लयबद्ध तरीके से चुदाई शुरू कर दी। मेरे शरीर का रोम रोम दर्द और कामुकता की लहर का आनन्द ले रहा था।
अब चारू की गति बढ़ने लगी, और मैं भी उसका पूरा सहयोग करने लगी। अब मैं सब कुछ भूल कर चुदाई का आनन्द लेती रही और सोचने लगी कि यह चुदाई कभी खत्म ना हो। पर आपके सोचने से ही सब कुछ नहीं होता।
चारू के पैरों में कंपकंपाहट आने लगी, उन्होंने मेरे उरोजों को उखाड़ डालने जैसा खींचा और पूरी ताकत के साथ अपना पूरा लंड मेरी चूत की जड़ तक बिठा कर झड़ने लगे, उनकी पिचकारी मेरे चूत की दीवारों को भिगोने लगी, यह आनन्द भी मेरे लिए अनोखा था, लेकिन मैंने डर के कहा- यह आपने क्या किया? अंदर क्यों गिरा दिया!
तो चारू ने कहा- तुम फिक्र मत करो, कल आई पिल खा लेना, फिर कुछ नहीं होगा।
उसके बारे में थोड़ा बहुत मैं भी जानती थी। तो मैंने हाँ में सर हिलाया और उस पल का आनन्द लेने लगी।
चारू ने मेरे गालों पर बहते आंसू पोंछे और मेरे माथे को चूम कर उठ गये। हम तीनों ने खुद को साफ किया, लेकिन खून से सने होने के कारण मुझे बाथरूम जाना पड़ा.
फिर चारू अपने कमरे में चले गये, कोमल और मैं लिपट कर सो गये।
दूसरे दिन मेरा सिम चालू हो गया, तो मैंने पहले अपने घर में बात की फिर मैंने रोहन को फोन लगाया। रोहन ने पहले मुझे कांटेक्ट नम्बर दिया था, और उस दिन उसने भी मुझे अपना पर्सनल नम्बर दिया।
मैंने रोहन को दस दिन सर के यहाँ रहने की बात बताई, तो हमने दस दिन बाद मिलन का प्लान बनाया।
अब मैं चारू और कोमल से खुल चुकी थी तो हमने बाकी के दिनों में लगभग पांच छ: बार और खुलकर चुदाई की। चारू के मोटे लंड से चुदाई के बाद मेरी चूत भी खुल गई थी। मुझे अब उसका लंड भाने लगा था।
पर वो मेरा नहीं था, मुझे दस दिनों बाद अपने हॉस्टल शिफ्ट होना था, वैसे चारू ने कहा रुकने के लिए पर पापा ने मना किया था और मैं खुद भी नहीं चाहती थी क्योंकि मुझे पढ़ाई भी करनी थी और हॉस्टल के मजे भी लूटने थे।
हॉस्टल के कुछ खास मजे तो मैं नहीं लूट पाई क्योंकि मैं कस्बे से आई थी, बहुत सारा समय रैगिंग, पढ़ाई और खाने-पीने में निकल जाता था। छुट्टियों में कोमल और चारू के साथ भी मजे लूट लेती थी।
इस बीच मेरा रोहन से समय निकाल कर मिलना और चुदाई करना जारी रहा, लेकिन अब मैं जब भी रोहन से चुदती तो मुझे थोड़ी कमी महसूस होने लगी थी। फिर भी मैं उससे प्यार करती थी, इसलिए मैंने कहीं और मुंह नहीं मारा।
मैंने पहले ही बताया है कि रोहन अपने स्कूल के सीनियर गौरव के साथ रहता है। जहाँ उसके दो और दोस्त अमित और विकास भी रहते थे। मेरा आना-जाना उनकी मौजूदगी में था और गैर मौजूदगी में भी।
जब वो नहीं होते थे तब मैं और रोहन उस रूम में चुदाई करते थे, और जब वो होते तब हम सामान्य मुलाकात करते थे। यह बात और है कि वो सब, हमारी सारी बातों को जानते थे पर उन्होंने मुझसे कभी गलत बर्ताव नहीं किया।
उनका एक ही बड़ा सा रूम था जहाँ वो लोग खाना-पीना, पढ़ाई, सोना ये सब करते थे, इसके अलावा एक लेटबाथ और सामने की थोड़ी सी खाली जगह में सायकल या गाड़ी रखते थे।
मैं गर्ल्स हॉस्टल में थी तो मुझे रात को निकलते नहीं बनता था, इसीलिए मैं रोहन से हमेशा दिन में ही मिलने जाती थी। मैं उनके रूम पार्टनरों से भी घुलमिल गई थी। वो हैंडसम से जवान लड़के अपने ही तरीके से रहते थे, तो कभी कभी मुझसे दोअर्थी बातें या मजाक भी कर लिया करते थे। मैं उनकी बातों को हंस के टाल दिया करती थी। और कभी कभी उनको कपड़ा बदलते देख कर या, बनियान में उनकी बॉडी देख कर चूत में पानी भी आ जाता था।
खैर अब ऐसे ही मुलाकातों के बीच दो साल निकल गये, अब तक मेरा यौवन और पूरे शवाब पर था, मम्में 32 के ही थे, कूल्हे 32 से थोड़े बढ़ गये थे, कमर वैसी की वैसी 28 की थी, पर हर अंग में कसावट के साथ साथ कटाव भी आ गया था, और दो साल में शहर का रंग भी चढ़ चुका था तो अदा भी कातिलाना हो गई थी।
आँखों में काजल और मेरे चलने का तरीका हर इंसान को दीवाना बना रहा था, अब मैं लोगों की नजरों को पढ़ने में भी महारथी हो गई थी।
अब हमारा द्वितीय साल का पेपर खत्म हो गया था, सिर्फ प्रेक्टिकल का पेपर देकर घर जाना था, घर पे छोटी ने भी बारहवीं के पेपर अच्छे से दे लिये थे, अब वो भी जवानी की दहलीज पर थी। और आगे चलकर मेरी अच्छी सहेली बनने वाली थी।
रोहन और मैंने घर जाने से पहले एक दिन कस के चुदाई करने का मन बनाया, और उसके लिए हमने बुधवार का दिन चयन कर लिया। हमने तय किया कि सबके कॉलेज जाने के बाद हम उसके रूम में लगभग ग्यारह बजे से चार बजे तक रहेंगे और भरपूर चुदाई का मजा लेंगे।
मुझे पता था कि छुट्टियों में शायद ही चुदने को मिले इसलिये मैं अपनी इस मुलाकात को यादगार बनाने की सोचने लगी। मैं अपनी पहली मुलाकात से भी ज्यादा तैयारियां इस मुलाकात के लिए कर रही थी, वैसे मैं हर बार छुट्टियों के पहले वाली चुदाई के लिए विशेष तैयारियां करती थी, पर इस बार मुझे रोहन से मिले एक महीना से ज्यादा हो गया था इसलिए तन में कुछ ज्यादा ही आग लगी थी। और ऐसे भी पहले मेरे अंदर सेक्स को लेकर ऐसी भूख नहीं थी, पर अब है, क्योंकि अब मैं इस खेल की अनुभवी खिलाड़ी हो गई हूं। और ये एक ऐसी भूख है जो आपसे हर ऐसा काम करा सकती है, जो आपने पहले कभी ना किया हो।
मैं अपनी चूत और बगल के बाल पंद्रह दिनों के अंतराल में साफ कर ही लेती थी, उस हिसाब से अभी मुझे सफाई किये हुए तीन दिन ही हुए थे, फिर भी मैंने बुधवार की सुबह अपनी चूत और बगल के बाल अच्छी तरह साफ किये, मैंने अपने हाथ-पैरों के बाल भी अच्छे से साफ कर दिये, मतलब वैक्स कर लिये, वैसे मेरे शरीर में बाल कम ही हैं पर मैं और ज्यादा चिकनी और अप्सरा लगना चाहती थी।
उसके बाद मैंने शरीर पर एलोवेरा का लेप लगाया, और चेहरे पर हल्दी आटे और बेसन का गुलाब जल मिला हुआ लेप लगाया, इससे पहले मैंने बालों में मेंहदी लगा ली थी। और कुछ देर सुखाने के लिए बैठी रही, अभी मेरे पास नहाने के पहले तक खाली समय था, तो मैंने अपनी अश्लील पुस्तक निकाली और उसके सेक्स आसनों को देख कर अपनी चुदाई की कल्पना करने लगी।
मैंने बहुत पहले ही चुदाई की बहुत सी जानकरियां और सेक्स आसनों को जान और आजमा लिया था, इसलिए मेरी नजर अब बार-बार थ्री सम और ग्रुप सेक्स वाली तस्वीरों पर ही जाकर अटकती थीं क्योंकि सेक्स के ऐसे अनुभवों से मैं अभी तक अछूती रही।
तस्वीरों को देखकर बदन जलने लगा, चूत कुलबुलाने लगी, मैं अपनी गुदा द्वार में भी हलचल महसूस की, वैसे मैने गुदा सेक्स सिर्फ रोहन से ही किया था, और बहुत कम किया था, फिर भी अगर एक बार आपको किसी छेद में डलवाने की आदत हो गई, तो बस हो गई।
अब मैंने जल्दी से पुस्तक बंद करके रख दी क्योंकि मैं चाहती थी कि मैं अपनी सारी उर्जा चुदाई के लिए बचा के रखूं।
अब तक हॉस्टल में मेरी कुछ सहेलियां बन गई थी तो उन्हें पता था कि आज मैं कहाँ जाने वाली हूं और उनके साथ ही बाकि लड़कियों ने भी मुझे बहुत छेड़ा, कोई कहती कि हमें भी ले चल, अकेले कितना ऐश करेगी..! तो कोई कहती ‘वीडियो बना के ले आना..!’ तो कोई कहती.. ‘तू इतनी अच्छी है, तुझे कहीं और जाने की क्या जरूरत, आ जा, यहीं ऐश करते हैं।’
कुछ नई लड़कियां भी थी जो कुछ नहीं कह पाती थी, बस देखती थी और मुस्कुराती थी।
और उन सबकी बातें मेरे मन को गुदगुदा जाती थी पर मैंने सबको दिखावे के लिए डांटा और बाथरूम में जाकर दरवाजा बंद कर लिया।
बाथरूम के अंदर मैंने अपने शरीर के बचे हुए छोटे-मोटे कपड़े पूरे उतार दिये। और सबसे पहले अपने पूरे शरीर पर एक बार पानी डाला, उसके बाद बालों में पहले शैंपू फिर कंडिशनर लगाकर उसे चमकीला रेशमी और मुलायम बनाया, और अपने अंगों को अच्छी तरह धोकर रगड़ कर मखमली बनाने लगी, रगड़ खाकर मेरे बड़े सुडौल उरोजों में जान आ गई थी, निप्पल तन गये थे।
ये बातें मैं विस्तार से इसलिए बता रही हूं क्योंकि इसी बीच मैंने चूत को बहुत अच्छे से धोया और अपने भरे हुए सुंदर कूल्हों के छेद को भी, चूमने चाटने के लायक साफ कर लिया था।
मैंने करीब आधे घंटे में अपना स्नान खत्म किया, और जब मैं पेंटी पहनने ही वाली थी तभी याद आया कि मैंने तो किसी अच्छे मौके पर पहनने के लिए रेशमी कपड़ों वाली गुलाबी कलर की सेट वाली ब्रा पेंटी ले रखी रखी है। अब मैंने वही पहनना तय किया और टावेल लपेट कर ही अपने रूम में आ गई, वैसे मैं ऐसा रोज नहीं करती थी, पर अब मैं सीनियर थी तो थोड़ा बहुत एडवांस करना कोई बड़ी बात नहीं थी।
उस वक्त मेरे रूम में मेरे रूम मेट के अलावा दो और लड़कियां थी। मेरे रूम में पहुंचते ही एक लड़की ने कहा- आय हाय… क्या खूशबू है यार… जरा छू कर भी देखने दे!
कहते हुए मेरा टावेल खींचने की कोशिश करने लगी पर मैं उससे बच निकली.
तभी दूसरी लड़की ने कहा- अगर छूने देगी तभी तो हम बता पायेंगी कि तुझे छूने वाले उस शहजादे को कैसा फील होगा।
और ऐसा कहते हुए उसने फिर टावेल खींचने के लिए अपना हाथ बढ़ाया, इस बार मैंने भी ज्यादा विरोध नहीं किया, अब मैं पूरी नंगी उनके सामने खड़ी थी, मैं शर्माने के बजाय उनको मॉडल जैसा पोज देने लगी, वो हंसने लगी और एक लड़की ने मेरे स्तन को छूते सहलाते हुए अपनी आँखें बंद कर ली और कहा- कसम से यार.. इतने मुलायम इतने मखमली.. जो भी छुयेगा, उसका तो छूते ही वीर्य निकल जायेगा।
दूसरी लड़की ने कहा- क्यूं री! तेरा निकल गया क्या?
मुझे छू रही लड़की ने कहा- हाँ यार, मेरी पेंटी तो गीली हो चुकी है, और देख इसकी बुर भी पनिया गई है।
कहते हुए उसने मेरी चूत में हाथ फेरा, अब मैं एकदम से शरमा गई और जल्दी से अपने कपड़े पहनने लगी।
मैंने अपनी नई गुलाबी ब्रा और पेंटी पहनी, इन रेशमी चमकते कपड़ों और खुले बालों में देख कर वो लड़कियाँ लड़की होकर भी आहें भर रही थी। ये नये कपड़े बहुत कसे हुए थे इसलिए मुझे थोड़े चुभ रहे थे, लेकिन मुझे भी कौन सा इन्हें दिन भर पहनना था, थोड़ी देर की नुमाईश के बाद इन्हें तो निकल के एक कोने में पड़ा रहना था।
अब मैंने हल्क़े गुलाबी रंग की कुरती और उसी रंग का ढीला पटियाला पजामा और गुलाबी रंग का ही काटन दुपट्टा गले में डाल लिया, कुल मिलाकर मैं कविता से गुलाबो बन गई थी या पिंकी भी कह सकते हैं, क्योंकि मेरे गाल भी गुलाबी और होंठ भी गुलाबी ही लग रहे थे!
इस वक्त चूत तो ढकी थी पर वो भी गुलाबी ही थी।
मैंने इत्र छिड़का, अच्छा पाऊडर लगाया, कानों में टॉप्स पहन कर तैयार हो गई। हॉस्टल में रहने का ये फायदा भी है कि जो चीज आपके पास नहीं है, आप मांग कर पहन लो।
मैंने एक लड़की से मांग कर हिल वाली पिंक कलर की सैंडल पहनी और रोहन के रूम में पहुँच गई।
मैं तय समय से आधे घंटे लेट हो गई थी। मेरे बाल उड़ रहे थे, चेहरा दमक रहा था, बदन में अंदर से कुलबुलाहट ऊपर से कसावट थी। रास्ते भर जिस किसी ने भी देखा वो तो बस देखता ही रह गया।
इस कहानी का पूरा निचोड़ आपको 25वें और 26 वें भाग में मिलेगा, उसके बाद मैं कुछ दिनों का विराम लूंगा, इस विराम को आप इंटरवेल समझ सकते हैं। इंटरवेल के बाद कहानी नये रूप, नये अंदाज में नये नाम से आयेगी। उम्मीद है आप सबका सहयोग मिलता रहेगा।
आप अपनी राय इस पते पर दीजिये!
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