अधूरे सपनों की दास्तान-10

यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:

अधूरे सपनों की दास्तान-9

अधूरे सपनों की दास्तान-11

पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे सारी कहानी सुना चुकने के बाद रज़िया ने अपनी माँ से अपनी तुलना करते हुए अपनी बदनसीबी ज़ाहिर की थी कि उसे ज़मीर अंकल जैसी कोई सुविधा नहीं और मैंने सवाल पूछा था कि क्या मैं उसके “काश” का जवाब बन सकता था।
अब आगे पढ़िये-

वो काफी देर चुप रही थी और फिर आहिस्ता से बोली थी- कैसे? मतलब कैसे पॉसिबल है यह.. क्योंकि घर से निकलना मेरे लिये आसान नहीं और घर पे किसी के आने की कोई सम्भावना ही नहीं तो फिर?

“उसके साथ सवाल यह जुड़ा है कि आप किस हद तक जा सकती हैं इसके लिये।”

“मतलब?”

“मतलब यही कि क्या आप यह चाहती हैं कि खुदा आपका चाहा सुख खुद से आपकी झोली में डाल दे या फिर उसे हासिल करने के लिये आप खुद भी कोई मेहनत करने के लिये तैयार हैं या रिस्क उठाने के लिये तैयार हैं?”
“अपने आप से सुख मेरी झोली में आ जाये, इतनी अच्छी किस्मत होती तो छः साल से तड़प और तरस न रही होती। बहुत तवील अरसा है यह खुदा को अजमाने के लिये। अब तक भी यह सुख मुझे तब ही हासिल हुआ है जब मैंने खुद इसके लिये मेहनत की है।”
“मतलब मेहनत कर सकती हैं और रिस्क उठा सकती हैं।”
“एक हद तक।”

“फ़िक्र मत कीजिये.. सिर्फ उतना कहूँगा जितना कर पाना आपके लिये मुमकिन हो। पर एक बात और बताइये.. उस ब्लू फिल्म की लगभग सब चीज़ें आपने कर ली थीं, एक चीज़ को छोड़ कर.. लेकिन मेरे हिसाब से आपने एक चीज़ और नहीं की थी।”
“क्या?”
“दो मर्दों के साथ एक लड़की का सेक्स करना।”

“वह कभी पॉसिबल भी नहीं था क्योंकि जिन दो मर्दों ने मुझे छुआ वे कभी एक दूसरे के साथ नहीं हो सकते थे। उनका आपस में रिश्ता न होता या पहले से इस तरह की कंटीन्युटी होती तो बात अलग थी।”
“पर अगर मौका बनता तो क्या आप जातीं इसके लिये?”

इस सवाल पर वह कुछ देर के लिये चुप रह गयी.. शायद खुद को टटोल रही थी कि अगर कभी राशिद और समर एक साथ उसे आगे और पीछे से भोगते तो वह स्वीकार करती या नहीं?

“शायद चली जाती.. इस चीज़ में पहली बाधा एनल सेक्स था जो मैं पार कर ही चुकी थी और दूसरी बाधा दोनों से उस तरह का रिलेशन होना था जो कि आलरेडी था।”

“अब अगर मान लीजिये आपको इसके लिये जाना पड़े जहाँ एक हाफ अजनबी हो, यानि मैं और एक फुल अजनबी यानि मेरा कोई दोस्त.. तो जाने की रिस्क उठा पाएंगी। आपकी पहचान छुपी रहने की गारंटी मेरी और इस बात की भी कि यह चीज़ कभी भी आपके लिये भविष्य में परेशानी का सबब नहीं बनने वाली।”
“शायद नहीं।”

“जवाब देने में जल्दबाजी मत कीजिये। यह दोस्त वही है जिसका ज़िक्र आपने अन्तर्वासना पर निदा की अन्तर्वासना वाली कहानी में पढ़ा होगा.. नितिन। उसके शामिल होने पे आप सवाल उठा सकती हैं लेकिन एक मज़बूरी है। मेरे पास कोई सुरक्षित जगह नहीं.. होटल ले जाना आपको प्रफर करूँगा नहीं।
सिर्फ एक ही सुरक्षित जगह है.. नितिन का घर, वह अलीगंज में एक सरकारी क्वार्टर टाइप घर में रहता है एक लड़के के साथ, जो सरकारी नौकरी में है लेकिन वह आजकल किसी ट्रेनिंग पर बाहर गया है तो नितिन अकेला है।
वह इतना शरीफ तो है कि कभी इस तरह की बातों को न आगे बढ़ाता है और न ही उनका फायदा उठाने की कोशिश करता है लेकिन इतना भी शरीफ नहीं कि मैं उसके घर आपको ले जाकर वक़्त गुजारूं और वह चुप रह कर कहीं टहलने चला जाये।
अब वह हमारे साथ शामिल होगा तो नौबत वही आएगी जिसका कि मैंने ज़िक्र किया और आपको जिससे परहेज़ भी नहीं। समस्या बस अनजान लोगों की है लेकिन कभी-कभी अनजान लोग ही अपनी पहचान छुपाये रखने में आसानी बन जाते हैं।
सोचिये न आपको वह कभी जानने वाला और न ही कभी शायद कभी वैसे उससे आपकी मुलाकात हो पाये.. और आगे भी वो मेरे साथ या अकेले ही आपके काम आ सकता है, अगर आप चाहेंगी तो।
जल्दबाजी नहीं.. इत्मीनान से रात भर सोच लीजिये। बात नितिन की नहीं मेरी है.. अगर मुझ पर भरोसा करती हैं तो एक बार आजमा कर देख लीजिये।”

“मैं सोचूंगी।” इस बार उसने सकारात्मक सन्देश दिया।

“जी बिल्कुल… कल सुबह बता दीजियेगा.. कल छुट्टी है, वह कहीं निकल जाये, उससे पहले ही उसे बताना पड़ेगा।”
उसने फोन काट दिया।

बात अश्लील थी और किसी भी सभ्य महिला के लिये एकदम अस्वीकार्य थी लेकिन वह जिस हालत में थी और जिस तरह मर्द के संसर्ग को तरस रही थी, उसमे मुझे पूरा यकीन था कि देर सवेर वह मान जायेगी।

और मेरा यकीन गलत न साबित हुआ। सुबह ही उसने फोन करके पूछा कि उसे क्या करना होगा। मैंने कह दिया कि घर कह दो कि बच्चे के जन्म प्रमाणपत्र के साथ ही उसका आधार भी बनना ज़रूरी था और उसके लिये जा रही हो। एक मेरा दोस्त इस काम में जुड़ा है और मैं उससे टाइम ले लेता हूँ..

वैसा ही हुआ और एक घंटे बाद मैं उसे सिटी स्टेशन के पास से पिक कर रहा था। इस बीच मैंने आधार वाले दोस्त से बात कर ली थी और नितिन को भी राज़ी कर लिया था कि कुछ ज़रूरी सामान के साथ तैयार रहे।

हम यूनियन बैंक पहुंचे और वहां यूँ तो आधार बनवाने या संशोधन करवाने वालों की लम्बी लाइन थी लेकिन अपना कम एक घंटे में हो गया और वहां से निकल कर हम अलीगंज आ गये।

रज़िया का बच्चा भी उसी की तरह गोरा चिट्टा और खूबसूरत था, जिसके लिये हम उम्मीद कर रहे थे कि वह सो जायेगा और इसके लिये थोड़ा सा इंतजाम भी कर लिया था।

नितिन रज़िया को देख के वैसे ही खुश हो गया जैसे निदा को देख के हो गया था.. कमीने ने आभार में मुझे ही किस कर लिया कि मैं कैसा नेकदिल दोस्त था कि उसके सूखे सामान के लिये रसीली बारिश का इंतज़ाम कर देता था।

उस छोटे से घर में नीचे ऊपर दो कमरे थे और नीचे ही एक स्टोर जैसा कमरा भी था। नीचे कमरे में टीवी लगा हुआ था जिसपे कुछ प्रोग्राम देखते हम आपस में बतियाने लगे। बच्चा अपने खेलने में मस्त हो गया.. उसके खेलने के लिये भी नितिन को आसपड़ोस से कुछ खिलौने अरेंज करने पड़े थे।

आपस में बात करने से रज़िया नितिन से भी सहज हो गयी, जो थोड़ी देर पहले खिंची-खिंची दिखाई दे रही थी।

करीब साढ़े बारह बजे बच्चा कुछ खाने की जिद करने लगा तो नितिन ने उसके लिये मैगी बना दी और वह खुश हो गया। थोड़ी सी चालाकी उसने यह की थी कि मैगी में बेहद मामूली नींद की दवा मिक्स कर दी थी जिसे खाने के दस मिनट बाद बच्चा सो गया।

कमरे के दरवाज़े को बंद करके अब हमने बच्चे को वहीं पड़ी इकलौते बेड पर सुलाया और नितिन के कहने पर हम अन्दर वाले छोटे कमरे में आ गये जहाँ उसने तीन गद्दों को ज़मीन पर बिछा कर आधे से ज्यादा कवर कर लिया था।

“तो अब शुरू करें… हमारे पास कोई बहुत ज्यादा वक़्त नहीं।” मैंने रज़िया का हाथ थामते हुए कहा।

उसने मुंह से तो कुछ नहीं बोला लेकिन आँखों ही आँखों में मौन सहमति दी।

मैं समझ सकता था कि वह कोई कुंवारी लड़की नहीं थी और न ही इतनी शरीफ थी कि उसे उसके पति के सिवा किसी ने छुआ न हो.. भले कल उसने एकदम से इन्कार कर दिया हो लेकिन जब उसने मन से स्वीकार कर लिया होगा तब से एक-एक पल इस चीज़ का इंतज़ार कर रही होगी।

हम तीनों ही ज़मीन पर बिछे गद्दों पर पसर गये।
मैंने उसे आहिस्ता से अपनी तरफ खींच लिया और वह निराश्रित सी मेरी बाहों में आ गयी। एक नए स्पर्श से उभरी सिहरन मैं साफ़ महसूस कर सकता था।

नकाब तो उसने आते ही उतार दी थी लेकिन उसके पूरे शरीर को मूंदने वाले कपड़े क्या कम थे।

“हो सकता है कि आपको शर्म महसूस हो और बार-बार हिचकें झिझकें.. तो ऐसा कीजिये कि आँख पर रुमाल बाँध लीजिये। इससे आपको आसानी रहेगी।”

उसे मेरा आइडिया सही लगा और मैंने ही रुमाल उसकी आँखों पे बाँध दिया.. नितिन को मैंने इशारे में समझा दिया था कि वह अभी फिलहाल दूर रहे और पहल मुझे करने दे।

इसके बाद मैंने उसे बाहों में ले लिया और अपने होंठ उसके होंठों के इतने पास ले गया कि हम दोनों की गर्म-गर्म साँसें एक दूसरे के चेहरे से टकराने लगीं।

फिर मैंने अपने होंठ उसके होंठ पर टिका दिये। एक सर्द लहर सी उसके बदन से दौड़ कर मेरे शरीर में समां गयी। ऐसा नहीं था कि सबकुछ उसके लिये ही नया था, मेरे लिये भी वह एक नया जिस्म था, नया अनुभव था, नया रोमांच था।

मैंने धीरे-धीरे उसके उसके होंठ चूसने-चुभलाने शुरू किये।

पहले तो वह थोड़ी असहज रही और ऐसा भी महसूस हुआ जैसे वह शरीर से भले न लेकिन दिमाग से प्रतिरोध कर रही हो। दो लगभग अजनबी मर्दों के साथ एकदम बनी यह पोजीशन भला किसे सहज रहने देती। कहीं न कहीं उसके मन में यह विचार भी ज़रूर रहा होगा कि वह गलत कर रही है।
लेकिन ऐसे हर अहसास पर जिस्मानी भूख हावी पड़ जाती है।

उसके होंठ चूसते-चूसते मैंने एक हाथ से उसके बूब सहलाये.. नर्म गुदाज गोश्त के अवयव, लेकिन कपड़े के अहसास से दबे। उनका अहिस्ता-आहिस्ता मर्दन करते-करते मैं उसके होंठ चूसने में तब तक लगा रहा जब तक कि उसके मन से असहजता निकल न गयी।

फिर उसके व्यवहार में आक्रामकता महसूस करके मैंने नितिन को इशारा किया और वह भी रजिया के बदन से आ सटा।

तत्काल उसके शरीर में सिहरन दौड़ी और इस नए स्पर्श पर उसकी क्रिया थमी.. पर मैंने अपने हाथ और होंठ चलाने जारी रखे।

फिर पीछे से नितिन भी अपने दोनों हाथ चलाने लगा.. एक हाथ से उसने रज़िया के नितम्बों को सहलाना शुरू कर दिया था तो दूसरे हाथ को आगे लाकर मेरे साथ ही उसके दूध दबाने लगा।

रज़िया की आँखें मुझसे छिपी थीं लेकिन मैं उसके चेहरे से उसके दिमाग में चलती कशमकश पढ़ सकता था.. वह एडजस्ट करने की वैसी ही कोशिश कर रही थी जैसी कभी पहली बार में राशिद के साथ की थी।

करीब तीन या चार मिनट तक हम उसे यूँ रगड़ते रहे और वह असहज और निष्क्रिय रही.. यह एक घरेलू महिला की पहचान थी.. फिर वापस वह सक्रिय हुई और मेरे होंठ चुसकने लगी, जैसे खुद को हमारे हवाले छोड़ दिया हो।

जब नितिन के स्पर्श की बाधा पार कर ली तो मैंने अपने हाथों का दबाव डालते हुए उसे नितिन की तरफ कर दिया और नितिन ने दोनों हाथों से उसका चेहरा थामते हुए उसके होंठ चूसने शुरू कर दिये।

अब मैंने उसे पीठ की तरफ से सट के अपने उलटे हाथ को उसके कुरते की चाक से अंदर घुसाया और ऊपर लाकर उसकी कॉटन की ब्रा के ऊपर से ही उसके बाएं वक्ष को दबाने मसलने लगा और सीधे हाथ को उसकी सलवार और पैंटी के अन्दर घुसा दिया।

नीचे एकदम सफाचट पेडू था.. यानि वह तैयारी करके ही आई थी.. और थोड़ा नीचे ले जाकर उसकी गर्म भाप छोड़ती योनि पर फिराने लगा।

योनि पर स्पर्श पाते ही उसका जिस्म एकदम थरथरा गया और वह कुछ हद तक सिकुड़ गयी लेकिन अगले पल में एकदम आक्रामकता से नितिन के होंठ चूसने लगी जबकि अब तक निर्लिप्त सी थी।

मेरे लिये नीचे एक सुखद आश्चर्य था.. नीचे उसकी क्लाइटोरिस वाल काफी बाहर निकली हुई थीं.. एकदम अंग्रेजों की तरह। यह चीज़ तब ही हो सकती थी जब ताज़ी-ताज़ी जवान हुई लड़की के साथ ही मुखमैथुन होना शुरू हो जाये। अगर इसके बाद भी आरिफ ने उसकी हस्तमैथुन वाली बात पर यकीन कर लिया था तो बंदा चोदू होते हुए भी नादान ही था।

मैंने अब तक जितनी भी लड़कियां भोगी थीं, इतनी बड़ी क्लिट्स कभी किसी की नहीं पायीं थीं.. यह मेरी सबसे पसंदीदा चीज़ थी जो चाहने के बावजूद अब तक मुझे नहीं मिली थी।
मैं उन्हें देखने के लिये बेचैन हो उठा।

जबकि मेरे सहलाने, उसके भगान्कुर को रगड़ने और एक पोर तक एक उंगली अंदर धंसा देने की वजह से रज़िया एकदम गर्म हो उठी थी।

मैंने नितिन को उससे अलग होने का इशारा किया और नीचे से उठाते हुए उसके कुरते को उसके शरीर से बाहर निकाल दिया। नीचे सफ़ेद कॉटन की ब्रा थी लेकिन नितिन ने पीछे से हुक खोल दिये तो मैंने उसे भी निकाल फेंका।

एक नारी सुलभ प्रतिक्रिया के तहत उसने दोनों हाथों से एकदम अपने वक्ष छुपा लिये लेकिन मैंने उसके हाथ थामते हुए उन्हें हटा दिया। मैं उसके चेहरे को देख सकता था जो शर्म से लाल पड़ गया था।

उसके निप्पल गहरे भूरे रंग के थे और आसपास फैला उसी के रंग का एरोला पुराने एक रूपये के सिक्के से कुछ ज्यादा ही बड़ा था और वक्ष भी अड़तीस और चालीस के बीच के साइज़ के थे, जिन्हें देखते हम दोनों के होंठ सूख रहे थे।
मैं उसके साइड में इस तरह चिपक गया कि उसके होंठ चूस सकूँ और एक हाथ से उसके एक स्तन को इस तरह मसल सकूँ की निप्पल को भी भरपूर रगड़ मिले।
जबकि नितिन भी दूसरे साइड से उसी तरह चिपक गया और वह भी वही करने लगा।

जल्दी ही उसकी शर्म ख़त्म हो गयी और चेहरे से ही वासना बरसने लगीं और मुंह से ‘सी…-सी…’ उच्चारित होने लगी। नितिन ने मेरा इशारा समझते हुए अपने पीछे रखा शहद उठा लिया, जबकि मैंने पीठ पे हाथ लगा कर सहारा देते हुए उसे लिटा दिया।

उसने दोनों बूब्स पर शहद टपका दिया और उन्हें अच्छे से गीला कर दिया। रज़िया को एकदम से यह गीला अनुभव समझ में नहीं आया लेकिन शायद उसे मेरी निदा वाली कहानी का तजुर्बा याद आ गया तो उसके होंठों पर मुस्कराहट तैर गयी। हम यह सब निदा के साथ कर चुके थे।

फिर बड़े आराम से हम दोनों ने उसके एक-एक वक्ष पर कब्ज़ा कर लिया और शहद चाटने लगे। शहद क्या, हम तो उसके एरोला पर कुत्ते की तरह जीभ फेर रहे थे, उसके निप्पल को चूस रहे थे, कुचल रहे थे दांतों से हल्के-हल्के.. और चुभला रहे थे।

उसके चूचुक बच्चे को दूध पिलाये होने की वजह से आलरेडी काफी बाहर भी निकले हुए थे और मोटे भी थे जो हमारे होंठों की चुसाई पाकर और सख्त हो रहे थे।

पहले कुछ देर वो अपने दांतों से होंठ कुचलती बर्दाश्त करती रही, फिर बेताबी से हम दोनों के सरों पे हाथ फेरने लगी, उन्हें दबाने लगी, जैसे कह रही हो कि बस इसी तरह और चूसो.. और हम दोनों ही बच्चे बने उसके दूध पीते रहे।

शहद चट जाता तो हम और डाल लेते.. नितिन तो उसकी नाभि तक जाने लगा था।
थोड़ी देर में वह जब अच्छे से गरमा गयी तो उसने मेरे सर को नीचे की तरफ धक्का दिया, जिसका स्पष्ट मतलब था कि अब उसे नीचे का मज़ा चाहिये था।

मैं उसके ऊपर से उठ गया.. नितिन ने मुझे देखा लेकिन मैंने उसे उसी तरह लगे रहने का इशारा किया और खुद रज़िया की सलवार का जारबंद खोलने लगा। जारबंद खोल कर सलवार नीचे सरकानी चाही तो उसके चूतरों के नीचे दबे होने की वजह से न उतरी।

लेकिन इस अवरोध को उसने तत्काल समझा और अपने चूतड़ खुद से उठाते हुए सलवार को नीचे उतर जाने दिया जिसे उसके पायंचों से निकाल कर मैंने किनारे डाल दिया।

फिर उसकी पैंटी की इलास्टिक में उंगलियाँ फंसा कर उसे नीचे उतारता चला गया।

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