यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
पिछले भाग में आपने पढ़ा कि कैसे रज़िया मेरे और नितिन के साथ मज़े लेने के लिये तैयार हो गयी थी और मैं उसे नितिन के कमरे में ले आया था और हमने मज़े शुरू कर दिए थे.. अब आगे पढ़ें-
अब वह मेरे सामने मादरजात नंगी थी.. उसका पूरा झक सफ़ेद बदन आवरण रहित मेरे सामने था। मुझे लगा था कि योनि के आसपास का हिस्सा तो ज़रूर काला होगा लेकिन वो भी काला होने के बजाय हल्का हरापन लिये था।
मैंने उसके घुटने मोड़ते हुए उसकी टांगें उठायीं और फैला दीं। अब उसकी योनि अपने सम्पूर्ण रूप में मेरे सामने थी।
साइज़ तो वही जाना पहचाना था लेकिन सबसे बड़ा फर्क वही था कि उसकी कलिकाएँ आजतक देखीं सबसे बड़ी थीं जो इस बात की स्पष्ट द्योतक थीं कि बहुत शुरूआती स्टेज से ही उनकी ज़बरदस्त चुसाई हुई थी।
उसका भगान्कुर भी थोड़ा मोटा ही था जो इस बात का संकेत था कि वह जल्दी ही गर्म हो जाती होगी।
“कभी आरिफ ने यह नहीं पूछा कि यह क्लिटोरिस इतनी बड़ी क्यों हैं?” मैंने तर्जनी उंगली से उसकी कलिकाएँ छूते हुए कहा।
“पूछा… मैंने कहा बचपन से ही बड़ी हैं। उसे शक हुआ लेकिन कभी समझ नहीं पाया।”
“जबकि ये अर्ली स्टेज पर चुसाई से इस हद तक बढ़ जाती हैं.. मतलब इतना बड़ा चोदु है लेकिन इस मामले में अनाड़ी निकला.. खैर, मुझे यह बेहद पसंद हैं और यह मेरी पसंद के मुताबिक हैं।”
“मुझे भी देखने दे.. किस चोदू को यह न पसंद होंगी।” नितिन ने उसके दूध से मुंह हटाते हुए कहा और उठ कर उसकी योनि देखने लगा।
मैंने उंगली और अंगूठे के दबाव से उसकी योनि फैला कर अन्दर देखा.. छेद खुला हुआ था और लगता था कि वह कोई भी साइज़ आराम से ले सकने में सक्षम थी। मैंने उसके दोनों पैरों को इस तरह उसके पेट से सटा दिया कि उसकी गुदा का छेद सामने आ गया।
देख कर ही वह किसी कदर खुला हुआ लग रहा था.. कहने को तो सारी चुन्नटें मिली हुई थीं लेकिन उनमें सख्ती नहीं लग रही थी। मैंने थूक से गीली करके एक उंगली छेद पर सटा कर अन्दर दबाई.. बहुत मामूली अवरोध के साथ वह अंदर उतर गयी।
फिर मेरे साथ ही एक उंगली नितिन ने भी थूक से गीली करके अन्दर धंसाई.. वह भी आराम से अंदर चली गयी।
“आराम से जाएगा।” उसने संतुष्टि से सर हिलाते हुए कहा।
बहरहाल, अब हमारे शरीरों पर कपड़े बोझ हो रहे थे। हमने उतारने में देर नहीं लगायी और पूरी तरह नग्न हो कर रज़िया से सट गये।
तीन नंगे बदन एक दूसरे से सटे, एक दूसरे को रगड़ते चिंगारियां छोड़ने लगे।
मैं उसके सरहाने आ गया और मैंने अपना लिंग उसके होंठों से सटा दिया। मुझे लगा था कि वह थोड़े नखरे दिखाएगी लेकिन यह देख कर मुझे सुखद आश्चर्य हुआ कि उसने सहजता से होंठ खोले और उसे अन्दर ले लिया।
वह एकदम सधे हुए अंदाज़ में लिंग पे कभी जीभ रोल करती, कभी उसे तालू और जीभ के बीच दबा कर अंदर सरकाती। एकदम परफेक्ट। मैं उसके दूध दबाने लगा और मुझे चुसाते देख नितिन भी ऊपर सरहाने आ बैठा और जबरन अपना लिंग उसके मुंह में घुसाने लगा।
उसकी बेताबी देख मैंने अपना लिंग निकाल लिया और रज़िया ने उसका लिंग मुंह में लेकर चूसना शुरू का दिया। वह देख भले न सकती हो लेकिन अब मुंह में ले लिया था तो साफ़ महसूस कर सकती थी कि उसके और मेरे लिंग में वही फर्क था जो समर और राशिद के लिंग में था।
और खुद मुझे बता चुकी थी कि उसे समर के मुकाबले राशिद का लिंग ज्यादा पसंद था, क्योंकि वह ज्यादा लम्बा और मोटा था। हाँ यह फर्क था हम दोनों के लिंग में और मैंने निदा की अन्तर्वासना में इसे स्पष्ट भी किया था।
अब शायद गर्माहट पर्याप्त हो चुकी थी और उसके चेहरे पर छाई शर्म की लाली बिल्कुल लुप्त हो चुकी थी। उसे खुद से अब उस पट्टी की ज़रुरत नहीं महसूस हो रह थी जो कि उसकी आँखों पर बंधी हुई थी।
उसने पट्टी हटा दी और उठ बैठी.. एकदम भूखी बिल्ली की तरह वासनायुक्त निगाहों से हम दोनों को देखा.. कहीं कोई शर्म नहीं। वह कोई नयी उम्र की लड़की नहीं थी, बल्कि खूब खेली खायी एक औरत थी और अपनी ज़रुरत को लेकर एकदम मुखर और स्पष्ट थी।
अब तक वह जैसे भोग्या वाले रोल में थी और हम दोनों जैसे उसे भोग रहे थे लेकिन अब उसे यह मंज़ूर नहीं था। उसने खुद से आगे बढ़ कर मुझे चिपका लिया और मुझे रगड़ने लगी।
होंठों से जैसे मेरे होंठ चूसे डाल रही थी, अपनी जीभ मेरे मुंह में घुसा दे रही थी और मेरी जीभ खींच-खींच कर चूस रही थी.. अपने दूध बुरी तरह मेरे सीने से ऐसे रगड़ रही थी कि उसके निप्पल को बाकायदा मसलाहट मिलती रहे, साथ ही मेरी जांघ पर इस तरह अपनी योनि टिका कर पैर इधर-उधर करके बैठी थी कि आगे-पीछे हो कर उसे भी रगड़ देती रहे।
मैंने भी उसे रगड़ने में भरपूर सहयोग दिया।
नज़ारा काफी कामोत्तेजक था जो नितिन के लिये हाहाकारी था.. वह भी उसकी पीठ की तरफ से आ कर सटा तो रज़िया ने मुझे छोड़ दिया और उसी अंदाज़ में नितिन से चिपक कर उसे रगड़ने लगी।
कुछ देर बाद हाँफते हुए रुक कर मुझे देखने लगी- उस दिन की तरह कुछ मलाई वगैरह भी रखे हो क्या?
“हाँ-हाँ!” जवाब मेरी जगह नितिन ने दिया. वह भी समझ चुका था कि उसे निदा के साथ गुज़रे पलों के बारे में सब पता था, हालाँकि खुद नितिन को यह नहीं पता था कि मैं अन्तर्वासना पे कहानी ही लिख रखी थी। उसे लगा था कि मैंने उसे सेक्स चैट के दौरान बताया होगा।
फिर उसने जो मलाई रखी थी वह रज़िया को दे दी और रज़िया ने ही न सिर्फ अपने पूरे जिस्म पर वो मलाई मली और हम दोनों के जिस्मों पर भी उसी ने मल दी.. खासकर अपनी योनि और हम दोनों के लिंगों पर।
तत्पश्चात हम फिर एक दूसरे को रगड़ने लगे.. कहीं हम उसे किस करने लगते, कहीं वो मेरे होंठ चूसने लगती, कहीं नितिन के.. कभी वो हमारे सीने पे चढ़ के चूसने चाटने लगती, कहीं हम उसके दूध पीने चाटने लगते।
कहीं वह नीचे जाकर आर हमारे लिंग चाटने लगती तो कहीं मैं उसकी योनि में मुंह डाल कर उसकी कलिकायें खींचता तो कहीं उसके भगान्कुर को तो कभी नितिन उसकी योनि में मुंह डाल देता।
और यूँ ही हम तीनों आग हो कर सुलगने लगे।
“अब डालो.. मैं और नहीं बर्दाश्त कर सकती.. आह!” वो अंततः सिसकारते हुए बोली।
फ़ौरन उसकी मंशा के अनुरूप मैं उसकी टांगों के बीच आ गया। नितिन समझता था कि मेरा नंबर पहले क्यों था और वह अपना लिंग उसके मुंह में डाल कर चलाने लगा और मैंने थूक से गीला करके अपने लिंग को तीन-चार बार उसकी गीली, बह रही योनि पर रगड़ कर अन्दर उतार दिया।
ज़ाहिर है कि एक बच्चे को पैदा कर चुकी खेली खायी योनि थी तो कोई भी दिक्कत नहीं थी और बड़े आराम से अन्दर उतर गया लेकिन रज़िया के लिये उसे एक मुद्दत बाद नसीब हुआ लिंग था और वह ‘अश्श’ करके करह उठी।
फिर थोड़ी तन कर नितिन के लिंग तो और आक्रामक अंदाज़ में चूसने लगी, जबकि मुझे अहसास हुआ था कि उसकी योनि काफी गहरी थी और काफी मजेदार थी।
मैं धीरे-धीरे धक्के लगाने लगा.. पैर उसने मोड़ कर हवा में उठा लिये थे और उस पोजीशन में जितनी भी अपनी योनि बाहर उभार सकती थी, उसने उभार दी थी और अब मैं “गचाक-गचाक” पेल रहा था.. स्पीड धीरे-धीरे बढ़ने लगी।
लेकिन थोड़ी देर में ही नितिन आ धमका और मुझे अपना लिंग निकालना पड़ा।
अब मैं किसी अंग्रेज़ की तरह वापस उसे नहीं चुसा सकता था, पता चलता कि वक़्त से पहले ही खलास हो जाता.. लेकिन उसके दूध ज़रूर पीने शुरू कर दिये और हाथ से भी उसकी भगनासा को सहलाने लगा जबकि नितिन ने अपना समूचा लिंग उसकी योनि की गहराई में उतार दिया था और वह एक आनंददायक ‘आह’ करके रह गयी थी।
वह मेरे मुकाबले में कम उम्र था, ज्यादा जोशीला था और उसमे आक्रामकता भी बहुत थी। वह तेज़-तेज़ ऐसे धक्के लगाने लगा जैसे रज़िया की योनि फाड़ के रख देगा और रज़िया भी हर धक्के पर जोर से सिसकारने लगी जो यह बताता था कि उसे इसमें भी काफी मज़ा आ रहा था।
“हटो!” अचानक उसने कहा।
नितिन ने लिंग निकाल लिया और मैं भी उससे अलग हट गया।
उसने टाइम वेस्ट नहीं किया और फ़ौरन चौपाये की पोजीशन में ऐसे आ गयी कि उसका चेहरा उसके दूध समेत गद्दे से रगड़ने लगा और उसके नितम्ब एकदम हवा में उठ गये।
यहाँ उसने पहल के लिये मुझे थपथाया और मैं उठ कर उसके पीछे आ गया। मैंने उसके नितम्ब अपने हिसाब से एडजस्ट किये और सामने से खुली उसकी योनि में अपना लिंग उतार दिया।
अब न सिर्फ मैं धक्के लगा रहा था बल्कि वो खुद भी अपने चूतड़ आगे पीछे कर के लिंग को ग्रहण कर रही थी और बाहर फेंक रही थी और साथ ही जोर-जोर से सिसकार भी रही थी। नितिन प्रशंसात्मक निगाहों से उसे बैठा देख रहा था।
जब मैं अच्छे से ले चुका और मेरा पारा काफी चढ़ गया तो उसने नितिन को आने का इशारा किया और मैं उससे अलग हो कर हाँफते हुए खुद को संभालने लगा।
सहवास के पलों में सकुचाई शरमाई घरेलू महिला को उसने कहीं पीछे छोड़ दिया था और एकदम चुदक्कड़ औरत की तरह वह खुल कर पेश आ रही थी और अपने हिस्से का मज़ा ले रही थी.. इससे मैं समझ सकता था कि उसके दिमाग में यही था कि अभी जो जन्नत उपलब्ध है, खुल के जी लो.. क्या पता फिर मिले न मिले।
और नितिन तो नितिन था.. इतने जोर से धक्के लगा रहा था कि पूरा कमरा ‘भच-भच’ की आवाजों से गूंजने लगा था और वह अपनी चीखें दबाती कराह रही थी उम्म्ह… अहह… हय… याह… लेकिन लग नहीं रहा था कि उसे कोई तकलीफ हो रही थी।
“बस.. बस.. अब तुम आओ इमरान.. पीछे डालो।” थोड़ी देर की कसरत के बाद उसने कहा।
नितिन हट गया.. मैं उसकी जगह आ गया। एक बार उसकी भचभचायी योनि में लिंग घुसा कर गीला किया और फिर सुपारे की नोक उसके चुन्नटों भरे छेद भर टिका अन्दर दबाया। चुन्नटें तत्काल फैलीं और लिंग अंदर धंसता चला गया, योनि की तरह गर्म-गर्म अनुभव हुआ।
फिर कुछ सुस्त धक्कों के बाद मैं तेज़ी से चलने लगा। वो फिर अपने चूतड़ों को आगे पीछे करके समागम में भरपूर सहयोग कर रही थी। मेरी जांघें उसके चूतड़ों से लड़ कर ‘थप-थप’ की धवनि पैदा कर रही थीं।
लेकिन मेरा बहुत देर चलना दुरूह हो गया और मैं रोकने की लाख कोशिश करते हुए भी झड़ गया। अंतिम पलों में मैंने उसके चूतड़ों को कस कर भींच लिया था।
लगा नहीं कि नितिन को इस बात से कुछ ऐतराज़ हुआ था क्योंकि उसे तो एक्स्ट्रा चिकनाई मिल गयी थी और मैंने जैसे ही अपना लिंग निकाला उसने अपना ठूंस दिया और थोड़ी सुस्ती के बाद दौड़ने लगा।
मेरे मुकाबले उसके धक्के तूफानी थे और दबे-दबे अंदाज़ में रज़िया को चीखने पर मजबूर कर रहे थे और उसकी जांघों से रज़िया के चूतड़ों के टकराने का शोर और ज्यादा तेज़ था। इस आक्रामकता ने रज़िया को भी ओर्गेज़म तक पहुँचने का मार्ग सुलभ कर दिया और वह एक हाथ नीचे ले जा कर अपने भगान्कुर को तेज़ी से रगड़ने लगी थी।
फिर वह एकदम जोर से सिसकारते हुए ऐंठ गयी।
नितिन ने भी उसकी अवस्था समझ ली थी और उसने भी दो चार धक्कों में ही अपना माल भी उसके छेद के अंदर ही छोड़ दिया।
फिर हम तीनों ही अलग-अलग पड़ कर हांफते हुए अपनी हालत दुरुस्त करने लगे।
“मार्वलस!” मेरे मुंह से निकला और वह मुस्करा कर रह गयी।
अगले दस मिनट तक हम उसी अवस्था में पड़े रहे और फिर एक-एक उठ कर बाहर वाले कमरे से अटैच बाथरूम में खुद को अच्छे से साफ़ कर आये और अगले चरण के लिये तैयार हो गये।
“इस बार डबल अटैक रहेगा।” मैंने आँख दबाते हुए कहा और नितिन से सहमति में सर हिलाया, जबकि रज़िया होंठ दबा कर मुस्करा कर रह गयी।
हम एक दूसरे से फिर सट कर चूमने, चूसने, सहलाने, रगड़ने लगे और जिस्मों में हल्की हरारत आने के पश्चात् नितिन ने हमारा तीसरा आइटम लिक्विड चाकलेट निकाला और हमने उसने शरीर पर मल दिया और अपने लिंगों पर मल दिया।
अब इस पोजीशन में आ गये कि एक उसे जहाँ लिंग चुसा कर चाकलेट खिलाये तो दूसरा उसके बदन को कुत्ते की तरह चाटते उसके जिस्म से चाकलेट साफ़ करे। मैंने साफ़ कर दी तो नितिन ने फिर से लगायी, उसने साफ़ कर दी तो मैंने फिर लगायी। इसी तरह अपने लिंगों पर भी हमने कई बार चाकलेट मली।
उसकी योनि की भी गहरे तक चटाई हुई और उसके पीछे के छेद की भी और दोनों ही छेद एकदम गीले होकर जैसे अपना खिलौना मांगने लगे।
“अब डालो.. बहुत देर फोरप्ले नहीं बर्दाश्त होता मुझसे।” रज़िया ने मचलते हुए कहा।
नितिन चित लेट गया अपना लिंग सीधा छत की ओर खड़ा करके और वह उस पर अपनी योनि टिकाते अपने घुटनों पर जोर देती इस तरह बैठी कि नितिन का लिंग तो उसकी योनि में समता चला गया लेकिन उसका वज़न नितिन पर न आया। उसका मुंह नितिन की ओर ही था और वो झुकती हुई उसके चेहरे तक पहुँच गयी और उसके होंठ चुभलाने लगी।
नीचे ने नितिन ने अपने चूतड़ उठा-उठा कर धक्के लगाने शुरू किये और थोड़े ही धक्कों के बाद उसने मेरी ओर देखा, जिसका साफ़ मतलब था कि अब मेरा काम था।
जिस पोजीशन में वो थी, उसका पीछे का छेद खुल गया था और मैंने अपनी लार से गीला करके अपना लिंग उसके गुदा के छेद में उतार दिया। आगे नितिन का मोटा लिंग होने की वजह से पीछे का रास्ता खुद से ही संकुचित हो गया था और मुझे एकदम टाईट मज़ा दे रहा था।
इससे पहले हमने यह पोजीशन निदा के साथ अपनाई थी लेकिन वह नयी और अनाड़ी लड़की थी तो सीधे हमारे पेट पे बैठ ही जाती थी, जिससे नीचे वाला बंदा धक्के नहीं लगा पाता था जबकि रज़िया उसके मुकाबले अनुभवी और खेली खायी औरत थी, उसने इतना गैप बना रखा था कि नीचे से नितिन भी धक्के लगा सके।
हम दोनों की रेल चल पड़ी और भकाभक धक्के लगने के मधुर और कर्णप्रिय शोर से कमरा गूंजने लगा और साथ ही रज़िया की भिंची-भिंची सिसकारियों से कमरे का वातावरण और भी मादक हो रहा था।
काफी देर हम इसी तरह धक्के लागाते रहे.. चूँकि अभी एक बार झड़ के हटे थे तो जल्दी जल्दी झड़ने की सम्भावना भी नहीं थी.. लेकिन बहरहाल जब एक पोज़ीशन में देर हो गयी तो मैं नीचे हो गया तो नितिन ऊपर से उसकी गांड मारने लगा।
लेकिन एक पोजीशन तो रज़िया की भी थी और वह भी थकनी ही थी.. और वह थकी थी तो नितिन को फिर नीचे ही आना पड़ा, लेकिन उसका पीछे का छेद फिर भी बरक़रार रहा क्योंकि अब रज़िया ने मेरी तरफ मुंह कर लिया था और लेटे हुए नितिन की तरफ उसकी पीठ थी।
सामने से मैंने उसकी योनि में लिंग ठूंस दिया और थोड़ा उसकी तरफ झुकते हुए अपना वज़न एक हाथ पर रखते हुए दुसरे हाथ से उसके एक दूध दबाते हुए धक्के लगाने लगा।
जबकि अपने सीने से लगभग सटी हुई रज़िया के दोनों ही दूध नितिन नीचे से मसल रहा था.. और मुझे उसी में साझेदारी करनी पड़ रही थी। यहाँ एक बात यह गौरतलब थी कि कोई अपना वज़न किसी के ऊपर नहीं डाल रहा था। न मैं रज़िया पर और न ही रज़िया नितिन पर और इसीलिये धक्के लगाने की जबर सुविधा हासिल थी।
अंधाधुंध धक्के लगने लगे।
धक्के लगाते-लगाते हम तीनों का ही पारा चढ़ने लगा।
फिर जब तीनों ही इस पोजीशन में थक गये तो हम अलग हो गये। दो-तीन मिनट सुस्ताये वहीं पड़ कर और फिर रज़िया के संकेत पर यूँ घुटनों के बल खड़े हो गये कि हम दोनों के सीने और चेहरे एक दूसरे के सामने थे और हमारे लिंग एक दूसरे से टकरा रहे थे।
फिर वो हमारे बीच इस तरह फिट हो गयी कि उसकी योनि में नितिन का लिंग घुस गया और गुदा में मेरा और यूँ हमारे बीच वह सैंडविच बन गयी।
फिर हम तो हल्के-हल्के ही हिले लेकिन वह ऊपर-नीचे होती खुद से धक्के लेने लगी।
नितिन थोड़ी पीठ मोड़ कर अपने मुंह उसके दूध पीने लगा था और मैं भी हाथ आगे ले जा कर उसके पेट और वक्ष के निचले हिस्से को सहलाने लगा था।
पहले उसने धीरे-धीरे धक्के लगाये, फिर तेज़ होती गयी और एक लम्हा ऐसा आया जब वो जैसे पागल हो गयी। बुरी तरह सिसकारते हुए वो आंधी तूफ़ान की तरह ऊपर नीचे होने लगी।
वह चरम पर पहुँच रही थी।
और यह महसूस करके हम भी पूरा सहयोग देते मंजिल की ओर बढ़ चले और एक पॉइंट ऐसा आया कि हम तीनों ही चरम तक पहुँच कर एक दूसरे से ऐसे चिपक गये जैसे एक दूसरे में ही समां जायेंगे।
सबकी हड्डियाँ तक कड़क गयीं।
और फिर खुले तो अलग-अलग गिर कर गद्दे पर फैल गये और भैसों की तरह हांफने लगे।
इसके बाद उसके बच्चे के सोने तक एक राउंड और चल पाया और उसमे भी हमने उसके दोनों ही छेद पीटे। इस बार एकसाथ न पीट के अलग-अलग पीटे और बहरहाल तीनों ही ने चरम सुख प्राप्त किया।
और अंततः खेल ख़त्म हुआ।
फिर बच्चा उठ गया और हमने खुद को साफ़ करके कपड़े पहने और तत्पश्चात मैं उसे वापस सिटी स्टेशन तक छोड़ आया, जहाँ से वह अपने घर निकल गयी। रात को उसने बताया ज़रूर कि यह उसकी जिंदगी का अब तक का सबसे बेहतरीन तजुर्बा था और इसके लिये उसने मेरा शुक्रिया अदा किया।
मेरी यह कहानी यहीं पर समाप्त होती है.
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