नमस्कार मैं सारिका, आप सभी पाठकों का मेल मिले और मैं आप सबका हृदय से धन्यवाद करना चाहती हूँ कि आप सभी ने मेरी कहानी को बहुत सराहा. मैं आप सभी के प्यार की वजह से एक बार फिर एक चटपटी और कामुक कहानी लेकर आई हूं.
यह कहानी पिछले साल की क्रिसमस की रात की है. फिर ये करीब 15 दिन की कड़ी बन गयी. इस कहानी का अंत भी एक ऐसे रोचक तरीके से हुआ, जिसका मैंने खुद भी नहीं सोचा था.
यह बात 25 दिसंबर की रात की है. सुखबीर, मेरे पड़ोसी से सम्भोग का सुख पाने के बाद हम दोनों कभी दोबारा नहीं मिले और न उसने कभी जोर दिया. मैं भी उसे एक बार की घटना समझ भूल गयी थी. मगर 25 दिसंबर को कुछ ऐसा हुआ कि हम दोनों ही फिर से बेकाबू हो गए.
मेरी पहले से योजना थी कि एक जनवरी को अपने कुछ एडल्ट साइट के मित्रों के साथ समय बिताऊँ और इसके लिए हम सभी ने पूरी तैयारी भी कर ली थी. सभी 5 दंपत्ति, जो कि इसी साइट पे थे, सभी तैयार थे. वे लोग अच्छे खासे ऊंचे घराने के लोग थे और वे लोग सभी प्रकार के सुख सुविधा से परिपूर्ण लोग थे. उनके लिए कुछ अलग करना ही रोचक था, जो उन्हें संतुष्टि प्रदान करती थी. पर ये लोग समाज में अच्छे नाम होने की वजह से अपनी गोपनीयता छुपा के रखना चाहते थे. इसी वजह से इस साइट पे लोग काफी एक दूसरे के बारे में खोजबीन के बाद ही भरोसा करते हैं.
खैर ये लोग आपस में कई सालों से जुड़े थे और इनमें से दो जोड़े ऐसे थे, जिनका जिक्र मैंने पहले अपनी एक कहानी में किया है.
अब आगे बताती हूँ. उस दिन क्रिसमस थी और कुछ बच्चों और मुहल्ले के लड़कों ने क्रिसमस का आयोजन किया था. पति घर पर नहीं थे उस दिन और रात 9 बजे पड़ोस से दो औरतें, जिनके साथ मेरी मित्रता हो गयी थी, वो लोग आ गए और मुझे वहां चलने को कहा.
मैंने भी सोचा कि मन बहल जाएगा, इसलिए मैं भी चल पड़ी. आयोजन खेल के मैदान में किया गया था, जो करीब 2 किलोमीटर दूर थी. हम तीनों औरतें बातें करते हुए पैदल ही चल पड़े. उस रात ठंड काफी थी और इसी वजह से लड़कों ने आग जला रखी थी. वहां पहुंचने पर मेरे साथ जो औरतें थीं, उनके लड़कों ने हमें चाय नाश्ता दिया और बैठने को कुर्सी दी. थोड़ी देर में हमारे लिए केक भी आया और हम उसे खाते हुए महोत्सव का आनन्द लेने लगे. बच्चों के अलग नृत्य और गायन का आयोजन था.
इसी तरह समय बीतते हुए 11 बज गए. ठंड इतनी अधिक थी कि मुझसे रहा नहीं गया और मैंने अपनी दोनों सहेलियों को कहा कि मैं आग तापने जा रही हूँ.
उन्होंने मुझे जाने को कहा और मैं कतार से निकल कर जाने लगी.
तभी मैंने एक कुर्सी में सुखबीर को देखा. वह मुझे देख कर मुस्कुरा दिया, मैंने भी मुस्कुरा दिया और चल पड़ी.
आग के पास पहुंची तो मुझे बहुत राहत मिली और मैं वहीं से सारे कार्यक्रम देखने लगी. अब 12 बजने को थे और लोग धीरे धीरे जाने लगे. भीड़ अधिक थी इस वजह कौन जा रहा है, कौन आ रहा है, इस बात का पता ही नहीं चला.
मैंने सोचा कि मेरी सहेलियां जाएंगी, तो मुझे जरूर कहेंगी. इस वजह से मैं निश्चिन्त थी. समय 12 बजे से अधिक हो गया, तो मैं उन्हें ढूंढने चली गयी, पर वे दोनों वहां नहीं थीं. मैंने उनको फ़ोन किया, तो किसी ने फ़ोन नहीं उठाया. फिर किसी तरह एक ने फ़ोन उठाया, तो कहा कि उन्हें लगा मैं चली गयी, इसी वजह से दोनों अपने अपने पतियों के साथ घर लौट आईं.
मैं अब परेशान हो चली कि इतनी रात को अकेले वापस कैसे जाऊंगी. वहाँ बहुत कम लोग बचे थे और मैं किसी को नहीं जानती थी. मोहल्ले के लड़के बच्चे भी नहीं दिख रहे थे, मुझे लगता है जिनके घर पास में थे, वही वहां बच गए थे.
मैं हैरान परेशान इधर उधर कुछ लोगों से पूछती रही कि शायद कोई मेरे मोहल्ले के पास का हो, पर कोई नहीं था. मैं एक जगह खड़ी हो परेशान सोचने लगी और हिम्मत जुटाने लगी क्योंकि मुझे अकेले ही घर जाना था. ठंड की वजह से पूरी सड़क मोहल्ले सुनसान होते थे, सो बड़ी परेशानी में थी. तभी दूर एक दीवार के पास हल्की रोशनी में एक मर्द पेशाब करता हुआ दिखा. रोशनी बहुत कम थी, तो केवल अंदाज लग रहा था कि कोई है.
कुछ पलों में उसने अपनी पैंट की जिप बंद की और पलट कर मेरी तरफ बढ़ने लगा. जैसे ही वो अधिक रोशनी में आया, तो मैं उसे देख कर खुश हो गयी. कम रोशनी में उसकी पगड़ी नहीं दिख रही थी, इस वजह मैं पहचान नहीं पाई. जब सामने आया तो देखा ये सुखबीर ही था.
उसने आते ही मुझसे पूछा- अकेली यहाँ क्या कर रही हो?
मैंने उसे सारी कहानी बता दी, फिर उसने कहा- कोई बात नहीं, मैं घर छोड़ देता हूं.
उसने अपनी मोटर साईकल स्टार्ट की और मुझे बैठने को कहा. मैं तुरंत बैठ गयी और हम चल पड़े. रास्ते में हल्की फुल्की बातें भी हुईं हमारी और प्रीति के बारे में उसने बताया कि अभी एक हफ्ते के लिए वो आने वाली है.
वैसे हमारी वॉट्सएप्प पर रोज बातें होती थीं और हम खुल कर सम्भोग संबंधी बातें भी करते थे. इस वजह से मैंने उससे कह भी दिया कि अब आपको परेशानी नहीं होगी.
उसने भी कहा- हाँ बहुत राहत मिलेगी.
दस मिनट के भीतर हम मोहल्ले में घुस गए. पूरा मुहल्ला बहुत सुनसान था. उसने गाड़ी को अपने घर के दरवाजे के सामने रोका और मैं उतर कर अपने घर जाने लगी. मेरा घर दो बिल्डिंग छोड़ कर था. मैं जैसे जैसे आगे बढ़ रही थी, कुत्तों के गुर्राने और भौंकने की आवाजें आ रही थीं. मुझे डर तो लग रहा था, पर किसी तरह बढ़ती चली जा रही थी.
मैं बिल्डिंग के पास पहुंची, तो देखा 3 कुत्ते लड़ रहे थे. मैंने एक पत्थर लेकर उन्हें मार भगाने को फेंका, तो एक कुत्ता इतनी जोर से भौंका कि मैं उल्टे पांव भाग कर सुखबीर के घर के पास आ गई. सुखबीर अपनी गाड़ी खड़ी कर घर का दरवाजा बंद करने ही वाला था कि मुझे इस तरह परेशान देख तुरंत बाहर निकल आया, उसने बहुत व्यग्रता से मुझसे पूछा- क्या हुआ?
वो भी शायद मुझे इस अवस्था में देख कर डर गया था. मैंने उसे सब बताया और फिर उससे मुझे मेरे घर तक छोड़ने की विनती की. उसने अपने घर का दरवाजा बंद कर दिया और मेरे साथ आने लगा.
हम घर के पास पहुंचे और तब मैंने ध्यान दिया कि उन तीन कुत्तों में से एक कुतिया थी और दोनों कुत्ते आपस में सम्भोग के लिए लड़ रहे थे. ठंड का मौसम कुत्तों के मिलन का होता है, इस वजह से जहां तहां कुत्ते कुतियों के पीछे से चिपके हुए मिलते हैं.
दो कुत्ते थे मगर कुतिया तो किसी एक को ही सम्भोग करने देगी और शायद इसी वजह से लड़ाई हो रही थी कि कुतिया किसका चुनाव करती है.
ये दृश्य ऐसा था कि कुतिया एक से सम्भोग को तैयार थी, मगर दूसरा जबरदस्ती पर लगा था. दोनों लड़ते हुए कुतिया के ऊपर चढ़ कर उसकी सवारी करना चाह रहे थे, पर कुतिया एक से ही चाहती थी. इस वजह से कभी वो उसकी पसंद के कुत्ते के आगे झुक जाती और जैसे ही उसकी पसंद का कुत्ता उस पर चढ़ने जाता, तो दूसरा भी चढ़ने को जाता और दोनों में लड़ाई होती. फिर किसी तरह जब कुतिया के पसंद के कुत्ते को दूसरा कुत्ता धकेल अलग करता, तो कुतिया अपनी पूंछ से अपनी योनि को ढंक लेती और उसे काटने को दौड़ती.
ये सब देखते हुए मैंने सुखबीर को उन्हें भगाने को कहा, तो उसने एक पत्थर मारा.. पर कोई फर्क नहीं पड़ा.
उसने तब मजाक करते हुए कहा- कर लेने दीजिये सारिका जी, इनको भी हक़ है.
मैंने भी उससे मजाक में कहा- लगता है आजकल शायद देख कर ही संतुष्टि कर रहे हो.
ये कह कर हम दोनों हंसने लगे और तभी कुतिया ने दूसरे कुत्ते को जोर से काटना चाहा, तो वो भाग गया. अब दोनों के बीच कोई नहीं था. कुतिया ने तुरंत वहीं झुक कर पेशाब की पिचकारी मार अपनी गंध छोड़ कर अपनी पसंद के कुत्ते को संदेश दे दिया. कुत्ता भी उसके पेशाब को सूंघते हुए उसके पास आ पहुंचा और उसके चूतड़ों को सूंघते हुए कुतिया की योनि चाटने लगा. कुतिया ने भी शायद कुत्ते की रजामंदी भांपनी चाही और पलट कर कुत्ते के लिंग को जुबान से चाटा. अभी तक कुत्ते का लिंग थोड़ा बाहर था, पर अब उसका लिंग पूरी तरह बाहर आकर लाल दिख रहा था. मुझे पता नहीं क्यों अजीब सा लगा और मैंने सुखबीर से फिर से उन्हें भगाने को कहा.
पर उसने कहा- थोड़ी देर में ये कर के खुद ही भाग जाएंगे.
अच्छी बात ये थी कि आधी रात का समय था, कोई हमें इस तरह देखने वाला नहीं था.
कुतिया ने अपनी पूंछ उठा दी और कुत्ते के आगे खड़ी हो गयी. कुत्ता भी उस पर चढ़ गया और अपनी कमर हिला हिला लिंग को उसकी योनि में प्रवेश कराने का प्रयास करने लगा. इधर सरदारजी जोश में नटखटी होने लगे, उनके मुँह से कमेन्ट्री शुरू हो गई- नहीं जा रहा सही जगह, इधर उधर मार रहा है.
मेरे मुँह से हँसी निकलने लगी.
कुत्ता प्रयास तो कर रहा था, मगर उसका लिंग योनि के दाएं बांए टकरा रहा था. कुछ ही पलों में अचानक उसका लिंग सट्ट से योनि में घुस गया.
लिंग के घुसते ही सरदार जी बोल पड़े- अब सही लगा है, ज्यादा देर नहीं सारिका जी, थोड़ी देर में ही फंस जाएंगे ये दोनों.
मैं केवल हंसती ही रही और कुछ नहीं बोली.
कुत्ते ने सम्भोग की गति बढ़ा दी और तेज़ी से धक्के मारने लगा. पता नहीं मुझे उन्हें देख क्या हुआ कि मेरे अन्दर भी हल्का हल्का कुछ शुरू हो गया.
पांच मिनट के सम्भोग के बाद अचानक कुत्ता पलट गया और दोनों पीछे से चिपक गए. दोनों अपनी अपनी जीभ लटका दी और हाँफने लगे. कुत्ते का लिंग, कुतिया की योनि में फंस गया था और जब तक वीर्यपात नहीं होता, वो बाहर नहीं निकल सकता था.
मैंने सुखबीर से कहा- बहुत देर हो गयी है.. कृपया अब इनको भगा दीजिये.
उसने तब एक पत्थर मारा, तो दोनों एक दूसरे को खींचते हुए बिल्डिंग के दरवाजों के पास से थोड़ा दूर हुए.
मैं फौरन दौड़ती हुई भीतर भाग चली, मैंने सुखबीर को पलट कर भी नहीं देखा और सीधा अपने घर में घुस गई. मैंने दरवाजा बंद किया और जल्दी से कपड़े बदल कंबल के भीतर घुस गई.
दस मिनट बाद मेरा फ़ोन बजा, तो देखा सुखबीर था. पहले सोचा कि फ़ोन न उठाऊं, फिर उठा ही लिया. उसने मुझसे पूछा- घर में पहुंच गयी?
मैंने उत्तर दिया- हाँ.
फिर हल्की फुल्की बात हुई और फिर बात कुत्ते कुतिया के सम्भोग के बारे में शुरू हो गयी. थोड़ी देर तो हम दोनों मजाक करते रहे, पर कुछ ही पलों में अपनी अपनी कामुकता सामने आ गयी. मैं भी उनको देख सम्भोग के भाव से भर गई थी. वो तो मर्द है, उसे अपनी इच्छा व्यक्त करने में ज्यादा देर नहीं लगी और लगाता भी क्यों.. हमने पहले भी सम्भोग किया था.
उसने बातों बातों में कई बार बताया था कि उसे किस प्रकार का सम्भोग करने पसंद हैं और किस तरह से औरतें उसे रोमांचित करती हैं. सो उसने जब मुझसे सम्भोग की अभिलाषा व्यक्त की, तो थोड़ा सोच कर मैंने भी हाँ कर दी और उसे अपने घर में चुपके से आने को कहा. साथ ही उसे बता दिया कि सम्भोग के बाद जल्दी से चला भी जाना.
उसे और क्या चाहिए था. मेरा हाँ कहना मतलब सम्भोग के लिए मेरी स्वीकृति मिलना था. मैंने भी सोचा कि जब संतुष्टि करनी ही है, तो क्यों न अच्छे से किया जाए इसलिए उसे 20 मिनट देर से आने को कहा.
बात खत्म करने के पश्चात मैं बिस्तर से उठी और अपनी छुपाई हुई संदूकची बाहर निकाली. मैं आपको बता दूँ कि मेरे पास ये संदूकची है, जिसमें मैं अपनी सारी कीमती चीजें रखती हूं, जिसका पता मेरे पति को भी नहीं है.
इस संदूकची में मेरे मित्रों द्वारा दिये गए उपहार और कुछ नए जमाने के कपड़े, जो उपहार में मिले थे, वो हैं. मुझे मेरे देहरादून वाले मित्र ने बहुत ही कामुक और मॉडर्न तरह की नाइटी और पैंटी ब्रा के सैट दिए थे, जो मैचिंग के थे.
मैंने सोचा कि आज सरदार जी की इच्छा पूरी कर देती हूं. ये नाइटी बहुत छोटी और जालीदार थी, इसकी मैचिंग की ब्रा भी जालीदार थी. केवल चुचकों की जगह थोड़ा गहरा कपड़ा लगा था, जिसकी वजह से चूचुक छिप पाते थे. पैंटी पतली डोरी वाली थी, जिससे केवल योनि की दरार ही छिपती थी, मगर योनि के उभार उस पर छप जाती थी. मैंने उसे जल्दी से पहन लिया और खुद को आईने में देखा तो मैं खुद ही दंग रह गयी.
इस परिधान को मैंने केवल एक बार पहन कर देखा था, पर खुद अपने आप को नहीं देखा था क्योंकि उस समय मैं ज्यादा शर्मीली थी और अनुभव भी कम था.
उस परिधान में खुद को देख मैं भीतर ही भीतर फूली नहीं समा रही थी. अब जाकर मुझे मालूम हुआ कि आखिर अच्छे खासे मर्द क्यों मुझ पर मोहित होते है. क्यों ज्यादातर मर्द मुझे इस तरह के कपड़े उपहार में देते हैं और क्यों इन परिधानों में मुझे देखना चाहते हैं.
मुझे कुछ पल के लिए ऐसा लगा कि मैं दोबारा जवान हो रही हूँ. खुद को निहारते हुए मैं सोचने लगी कि कहीं आज रात में सरदारजी पागल न हो जाएं. वो कपड़े मुझ पर एकदम सही बैठ रहे थे, शायद इसी वजह से मैं ज्यादा कामुक दिख रही थी. और शायद मेरा बदन थोड़ा गठीला है, इस वजह से भी कपड़ों और मेरे बदन की अच्छी जुगलबंदी हो रही थी. इन परिधानों में सच में मेरा सुडौल कटाव, गोल गहराईयां, तने हुए उभार निखर कर दिख रहे थे. तभी जितने भी मर्दों ने अब तक मेरे साथ सम्भोग का मजा लिया, उनमें से अधिकांश मेरे ऐसे ही रूप के दीवाने थे.
मैंने दरवाजे की कुंडी को खोल दिया और सुखबीर को फ़ोन करके आने को कहा.
आपके मेल आंमत्रित हैं.
[email protected]
कहानी जारी है.
कहानी का अगला भाग: अपनी अन्तर्वासना के लिए बनी सेक्स डॉल-2