आपने अब तक की कहानी
अपनी अन्तर्वासना के लिए बनी सेक्स डॉल-1
में पढ़ा कि मैं सुखबीर के साथ सम्भोग करने के सेक्सी डॉल बन चुकी थी.
अब आगे:
मैंने उसे बता दिया कि ध्यान से चारों और देखते हुए आना.
पांच मिनट में सुखबीर मेरे घर के भीतर आ गया. उसने दरवाजा बंद किया और सीधे भीतर चला आया. मैं वहीं बिस्तर के पास खड़ी थी. उसने जैसे ही मुझे देखा, एकाएक रुक गया. वो मुझे अचंभित नजरों से घूरने लगा. वो बुत की तरह खड़ा आंखें फाड़े मुझे देखता ही जा रहा था. उसके मुँह से कोई शब्द नहीं निकल रहा था.
कुछ देर उसे मैंने अपनी सुंदरता का रसपान लेने दिया और फिर कड़े शब्दों में कहा- देखते ही रहोगे या कुछ करोगे भी?
वो किसी दास की भाँति घबराते हुए बोला- सारिका जी, आप कमाल लग रही हो, मानो देसी गठरी में विदेशी सामान.
मैं उसकी बात सुन हंस पड़ी और भीतर ही भीतर अपनी प्रसंसा सुन खुश हो रही थी. मेरी हँसी सुन कर उसने तो जैसे मेरे लिए प्रशंसा के पुल बांधने शुरू कर दिए. धीरे धीरे वो मेरी तरफ बढ़ने लगा और बड़ी ही उत्सुकता से मुझे आगे से पीछे से घूर घूर निहारने लगा.
मैंने उससे कहा- क्या देख कर ही मन भर लेना है आज?
उसने उत्तर दिया- सारिका जी, आप इतनी सुंदर और कामुक लग रही हो कि देखते ही रहने का मन कर रहा. आपकी तरह तो प्रीति भी नहीं दिखती.
ये बात सुन मैंने उससे पूछा- क्या प्रीति भी ऐसे कपड़े पहनती है?
सुखबीर- हां, अभी हाल में उसने कुछ इसी तरह के नाइटी आदि खरीदी हैं, मगर वो आप जितनी कामुक नहीं लगती है.
मैं समझ गयी कि क्यों ऐसा हुआ क्योंकि मैंने ही प्रीति को कपड़े दिलाये थे और मेरी तरह के कपड़े यहाँ नहीं मिलते हैं.. नहीं तो प्रीति मुझसे भी अधिक कामुक लगने वाली महिला है. मेरी नाइटी मेरी बहुत छोटी थी, केवल मेरे चूतड़ों तक ही आ रही थी और पारदर्शी थी, इस वजह से मेरे अधिकांश भाग के साथ सधे हुए पैंटी ब्रा ही दिख रहे थे.
एक बज चुका था और मैं ज्यादा देर नहीं करना चाहती थी तो खुद ही आगे बढ़ गयी. मैंने उसे अपने पास खींचा और उसके गले में बांहें डाल उसकी आँखों में देखते हुए पूछा- ऐसा क्या है मुझमें, जो प्रीति में नहीं है?
सुखबीर ने उत्तर दिया- वो आपकी तरह खुले विचारों की नहीं है और न ही उसे कामक्रीड़ा का कोई अनुभव है.
मैं बस समझ गयी कि प्रीति और सुखबीर में किस बात की कमी थी.
मैंने उससे कहा- अगर मैं प्रीति को आपके लिए खोल दूँ तो?
उसने झट से उत्तर दिया- यदि ऐसा हुआ तो मैं आपका हमेशा आभारी रहूंगा, मुझे केवल संभोग नहीं … बल्कि उससे भी बढ़कर चाहिए.
मैंने उससे कहा- ठीक है, पर अभी तो जल्दी करो.
मैंने हल्के से हाथ उसके पैंट के ऊपर फेरा. उसका लिंग तो अभी से ही पैंट के भीकर तमतमा रहा था. उसने जरा भी समय गंवाए मुझे अपनी बांहों में एकदम से जकड़ लिया और होंठों से होंठ चिपका कर खड़े खड़े ही चुम्बन करना शुरू कर दिया.
इस बार उसके चुम्बन का स्वाद मुझे पहले से अलग और अधिक सौंधा लग रहा था. इस वजह से मेरी काम इच्छा तेजी से बढ़ने लगी. हम दोनों एक दूसरे के होंठों को चूसते हुए जुबान लड़ाने लगे. उसने मुझे जमीन से थोड़ा ऊपर उठाया और चूमते हुए बिस्तर पे लेजा कर लिटा दिया. वो मेरे ऊपर चढ़ गया. मैंने भी अपनी जाँघें फैला कर उसे अपने बीच में आने दिया. वो मुझे होंठों से लेकर गालों और गले में चूमते हुए मेरे दोनों मांसल स्तनों को मसलने लगा. मैं मादकता से सिसकारते हुए उसके कामुक स्पर्श का आनन्द लेने लगी. मेरी उत्तेजना और अधिक बढ़ने लगी और मैं पूरी तरह से उसका सहयोग देने लगी.
मेरी नाइटी में केवल एक जगह ही स्तन के पास हुक था, उसने उसे खोल दिया. उसने एक पल मेरे दोनों स्तनों की गोलाइयां देखीं, फिर मेरी ब्रा को दोनों तरफ से सरका कर स्तन बाहर कर दिए. उसकी आंखों में वासना की भूख साफ दिख रही थी. अगले ही पल उसने किसी भेड़िये की तरह लपक कर मेरे स्तनों को बारी बारी चूमना चाटना शुरू कर दिया. इससे मेरी योनि में भी गुदगुदी शुरू हो गयी. मैंने भी उसका साथ दिया और पूरी तसल्ली से उसे स्तनों के साथ खेलने दिया.
मैंने उससे कहा कि मेरी ब्रा उतार दे, पर उसने मुझसे विनती की कि मैं इसे उतारने की नहीं कहूँ, बल्कि इसी तरह इन कपड़ों में ही संभोग करने दूँ.
मैंने भी सोचा आज इसकी अपनी इच्छा पूरी कर लेने देती हूं. उसने अब मेरे एक चूचुक को मुँह में भर चूसना शुरू किया. कुछ पल चूसने के बाद वो अपना चेहरा उठा मुझे आश्चर्य से देखने लगा. मैं समझ गयी कि उसने मेरा दूध चख लिया.
मैंने पूछा- क्या हुआ?
उसने मुझसे पूछा- आपका दूध निकलता है?
मैंने उससे दोबारा सवाल किया- क्या आपको कोई परेशानी है?
उसने उत्तर दिया कि आज का दिन मेरी जिंदगी का सबसे बेहतरीन दिन होगा.
वो ख़ुशी से मेरे दोनों स्तनों को बारी बारी चूसते हुए दूध पीने लगा. उसका लिंग मेरी योनि के ऊपर था, जो मुझे पैंट के ऊपर से चुभने सा लगा था. उसने काफी देर तक मेरे स्तनों से दूध पिया और फिर धीरे धीरे मुझे पेट, नाभि से चूमता हुआ मेरी योनि तक पहुंच गया. उसने मेरी जांघों को पकड़ा और फिर एक उंगली से पैंटी एक तरफ खींच कर मेरी योनि को खोल दिया. इसके बाद उसने तुरंत मेरी योनि से अपने मुँह को चिपका लिया और जुबान को मेरी योनि की दरार में ऊपर नीचे कर चाटने लगा. मेरी तो कामुकता का अब कोई ठिकाना नहीं था. मैं उसकी पगड़ी को पकड़ कर खुद ही अपने चूतड़ उठा उठा अपनी योनि उसे चाटने को प्रेरित करने लगी.
मेरी योनि से पहले ही पानी रिस रहा था और सुखबीर के थूक से मिलकर योनि और भी चिपचिपी और लार युक्त हो गयी थी. मुझे अब लगने लगा कि वो जल्दी से संभोग की प्रक्रिया शुरू करे. सो मैंने उसे जोर देकर अपने ऊपर से उठाया और उसके कपड़े उतारने लगी.
जब तक मैं उसके कपड़े उतारती रही, तब तक वो मुझे जहां तहां चूमता रहा. वो आज पहले की अपेक्षा आज ज्यादा जोश में था. जैसे ही मैंने उसकी जांघियां खींच कर नीचे किया, उसका लिंग तनतनाता हुआ किसी पेड़ की डाल की भांति कड़क होकर ऊपर नीचे झूलने लगा.
मैंने झट से उसे पकड़ा और मुँह में भर अपने थूक से उसे गीला करने लगी. मैंने उसके लिंग को चूसते हुए एक हाथ से जोर जोर से उसे आगे पीछे करना शुरू कर दिया. सुखबीर तो जैसे पागल से हो गया, वो किसी औरत की भांति सिसकारियां लेने लगा.
मुझे उसके लिंग से मर्दानगी की महक आ रही थी, जो मुझे और अधिक कामुक कर रहा था.
उसने एकाएक मेरे चेहरे को पकड़ा और रोकते हुए कहा- सारिका जी बुरा न मानो तो एक बात कहूँ?
मैंने कहा- हां कहिए?
उसने अब अपने मन की बात कहनी शुरू कर दी- सारिका जी सेक्स तो सभी करते ही हैं पर कुछ अलग करने का मजा अलग ही है.
मैंने उससे कहा- अभी ज्यादा समय नहीं है, सुबह होने को है.
उसने तब कहा- पता नहीं कब दोबारा मौका मिले, कम से कम थोड़ा अलग करने दीजिए.
मैंने भी सोचा कि देखूँ आखिर सरदारजी के मन में क्या है.
उसने कहा- अगर बुरा न मानो तो जैसे थोड़ी देर पहले कुत्ते कुतिया ने किया था, क्या हम वैसा कर सकते हैं?
मैंने सोचा कि शायद सरदार उनके संभोग करने के जैसे आसन की बात कह रहा है.. तो मैंने तुरंत हां कह दी और उससे कहा- ठीक है आप आ जाओ.
मैं कुतिया की तरह आसन ले कर झुक गयी.
तब उसने कहा- ये नहीं सारिका जी.
मैंने पूछा- फिर क्या?
तब उसने बताया कि वो मुझे कुतिया की तरह पेशाब करते हुए देखना चाहता है और फिर उसे सूंघना चाहता है. उसने ये भी कहा कि यदि मुझे बुरा न लगे तो वो मेरी योनि के पास पेशाब करते हुए सूंघना चाहता है.
मैं बड़ा अचंभित हुई कि लोग इतने शौकीन भी होते हैं. सच में दुनिया जितनी हमें दिखती है, उससे भी अधिक रहस्यमयी है.
थोड़ा सोचा मैंने और फिर तय किया कि कर लेने देती हूं आज इसके मन की.
मैंने उससे कहा- अभी तो इस अवस्था में पेशाब करना बहुत कठिन है क्योंकि उत्तेजना में मांसपेशियां कड़क हो जाती हैं और पेशाब नहीं निकलती. दूसरा मुझे पेशाब लगी नहीं थी.
उसने मुझसे विनती करनी शुरू कर दी- यही तो मजा है सारिका जी, आप कोशिश कीजिये न. मैं दोबारा कभी आपको ऐसे नहीं कहूंगा. उससे बात करते करते मेरी उत्तेजना बहुत हद तक कम हो चुकी थी तो मैं तैयार हो गयी.
वो पूरा नंगा होकर मेरे पीछे पीछे स्नानागार तक गया. हमारा स्नानागार ज्यादा बड़ा नहीं था, इसलिए इस तरह से पेशाब करना संभव नहीं था कि वो मेरे पीछे कुत्ते की तरह झुक कर मेरी योनि चाट सके. पर ये तो उसकी जिज्ञाषा थी, इसलिए सब कुछ तैयार होने के बाद मौके को कैसे जाने देता. उसने अपनी तरकीब लगानी शुरू कर दी. उसने जगह न देख कर मुझसे कहा कि मैं दरवाजे से सिर से कमर तक बाहर रखूं और मेरे चूतड़ योनि का हिस्सा स्नानागार में उसे मेरी योनि के पास तक झुकने की जगह मिल सके.
एक और समस्या यह थी कि इस तरह हम औरतें पेशाब करती नहीं हैं, सो कुतिया की तरह झुक कर करना बहुत मुश्किल था. फिर भी मैंने प्रयास करना चाहा. उसने मेरी पैंटी निकाल दी और मुझे झुकने को कहा. मैं उसके कहने के मुताबिक कुतिया की भांति झुक गयी और मेरी कमर से नीचे का हिस्सा अन्दर स्नानागार में था और बाकी का बाहर.
सुखबीर ने भी आसन ग्रहण कर लिया था और मुझे पेशाब करने को कहा.
मैं कोशिश पूरी कर रही थी, पर हो नहीं रही था. वो मुझे लगातार प्रेरित कर रहा था, साथ ही मेरे चूतड़ों को चूम और सहला भी रहा था. साथ ही वो मेरे चूतड़ों और मक्खन सी चिकनी जांघों की तारीफ किये जा रहा था. उसे मेरे चूतड़ किसी बड़े गोलाकार घड़े से लग रहे थे, जिसके वजह से वो कामुकता भरे शब्दों से मेरी तारीफ़ किये जा रहा था.
काफी देर प्रयास करने के बाद थोड़ी सी हल्की धार निकली, जो मेरे मूत्रद्वार से होते हुई जांघों से बह गई.
उसे सूंघते हुए सुखबीर बहुत खुश हुआ और बोला- और सारिका जी कितनी मादक सुगंध है आपकी योनि से निकलती हर चीज़ की … और करिए न!
पर उस एक धार के बाद और नहीं निकल सकी. मुझे अजीब भी लगने लगा क्योंकि पेशाब मेरी दोनों जांघों से लग गई थी. मैंने उससे झल्लाकर कहा- मुझसे ऐसे नहीं होगा, करना है आगे … तो कुछ करो वरना जाओ.
यह बात सुन कर उसने फिर से विनती शुरू कर दी और कहा- ठीक है आप जैसे पेशाब करती हो करो, मैं बस देखूंगा.
मैं उठ कर बैठ गयी, तो उसने मुझे थोड़ा रुकने को कहा और भाग कर अपनी पैंट की जेब से अपना रूमाल निकाल लाया. उसने रूमाल वहीं नीचे रख दिया और कहा- अगर आप पेशाब करो तो मेरे रूमाल पर कर दो.
मैंने भी सोचा कि क्या पागल है ये. अब मेरी इच्छा भी खत्म होने लगी थी. तब भी मैं पेशाब करने की अवस्था में बैठ गयी और योनि को सुखबीर की तरफ ही किया ताकि उसे देख कर तसल्ली हो सके.
मैं इतनी देर से ठंड में नंगी थी, तो अब पेशाब आ ही गई थी. मैंने उसके रूमाल में पेशाब करना शुरू किया. मेरी योनि से पेशाब की धार देख कर वो बहुत खुश था. वो मेरे सामने बैठ कर करीब से देखने लगा. मैंने ज्यादा तो पेशाब नहीं की, पर उसका पूरा रूमाल गीला हो चुका था.
मैं पेशाब करके उठ गई और बिस्तर की तरफ भागी. मैंने ठंड लगने के कारण जल्दी से कंबल उठा कर ओढ़ लिया. पलट कर देखा, तो वो अपनी रूमाल को कुत्ते की तरह ही झुक कर नाक से टटोल टटोल कर सूंघ रहा था.
फिर वो मेरे पास आने लगा, तो मैंने उससे कहा- अब तुम मुझे होंठों पर नहीं चूमना.
वो मेरे पास आकर बोला- सारिका जी, अपनी चुत चाटने दीजिये मुझे.
मेरा कंबल हटा कर मुझे कुतिया की तरह झुका दिया, फिर पीछे से मेरी योनि चाटनी शुरू कर दी. उसके जुबान का स्पर्श पड़ते ही मेरी योनि की नशे कड़क होने लगीं और योनि की दीवारों से चिपचिपा पानी रिसना शुरू हो गया.
उसने मेरे दोनों चूतड़ों को मजबूती से पकड़ अपना पूरा मुँह मेरे चूतड़ों के बीच फंसा दिया और मेरी योनि में जुबान फिरा फिरा कर चाटनी शुरू कर दी.
बस 5 से 10 मिनट चाटने के बाद अब मैं इतनी अधिक उत्तेजित हो गयी थी कि खुद ही अपने चूतड़ उठा उठा कर उसे चाटने का अवसर देने लगी. मैं अब झड़ने से अधिक दूर नहीं लग रही थी, सो मैं जल्द से जल्द संभोग चाहती थी.
मैं बड़बड़ाने लगी- उम्म्ह… अहह… हय… याह… सुखबीर जी … बस भी करो अब आ जाओ, वरना मैं झड़ जाऊंगी.
मेरी ऐसी खुली बातें सुन कर सरदारजी और जोश में आ गए और उन्होंने अपनी एक बीच की उंगली मेरी योनि में घुसा दी. अंगूठे और दूसरी उंगली से योनि की पंखुड़ियों को फैला मेरी योनि खोल दी. इसके बाद सरदार जी मेरी योनि में अपनी जुबान घुसाने लगे.
अब तो मैं और कमजोर पड़ने लगी. अब मैं बोलने लगी- आह.. बस भी करिए सरदारजी.. वरना मैं शांत पड़ जाऊंगी.
उसने मेरी बात सुनते ही मुझे छोड़ दिया और मुझे बिस्तर के सिरहाने होकर कुतिया बन जाने को कहा. वो मेरे ऊपर चढ़ सा गया और मेरे चूतड़ों के ऊपर अपनी दोनों टांगें फैला कर झुक गया. मैंने भी अपना सिर नीचे बिस्तर पर टिका अपने चूतड़ और उठा कर आसान ग्रहण कर लिया. मैं उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगी कि कब वो मेरी योनि में लिंग प्रवेश कराएगा.
मेरी कहानी पर आपके मेल आंमत्रित हैं.
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कहानी का अगला भाग: अपनी अन्तर्वासना के लिए बनी सेक्स डॉल-3