यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
रमा तेरी यह हालत मुझसे देखी नहीं जाती इसलिए सिर्फ तुझे बता रही हूँ आज तक ये बात मेरे सिवा किसी को नहीं पता…
बात तब की है जब मैं कुंवारी थी, हमारा गांव बेहद पिछड़ा हुआ है, बापू को शराब की लत थी, कोई काम नहीं करता था। माँ ही खेतीबाड़ी करती, घर संभालती पर जमीन कम होने के कारण माँ को गलत काम करना पड़ता। मुखिया के यहाँ जब भी कोई अफसर आता तो मुखिया माँ को बुला लेता… बदले में काफी पैसे मिलते, जिससे घर आराम से चल जाता ऊपर से कुछ बचत भी हो जाती।
एक दिन की बात है रात के 8 बजे थे, बापू अभी आये नहीं थे, मुखिया का एक नौकर आया, उसने माँ से कुछ बात की और चला गया।
माँ ने मुझे कहा- कोई बड़ा अफसर आया है हमारी ज़मीन की बात करने के लिए जो तुम्हारे चाचा ने हथिया ली है।
मैं तब कुछ भी नहीं जानती थी दुनियादारी के बारे में… मैं माँ की बातों में आ गई।
फिर माँ बोली- भोली, आज तू जाकर मेरे बिस्तर पर लेट जा ऊपर रजाई ओढ़ लेना क्योंकि अगर तेरे बापू को पता चल गया कि मैं घर से बाहर हूँ तो वो मार पिटाई करेंगे. मेरी अच्छी बेटी अपने परिवार के लिए इतना तो करेगी न!
पर मैं डर रही थी कि अगर बापू को पता चल गया तो मेरी खैर नहीं!
तो यही बात मैंने माँ को बताई!
पर माँ ने कहा- तेरे बापू तो दारू में टुन होकर आते हैं और आते ही सो जाते हैं, उन्हें नहीं पता चलेगा।
माँ ने मुझे मिन्नत करके मना लिया।
मैं चुपचाप माँ के बिस्तर पर जाके लेट गई और रजाई ओढ़ के चुपचाप लेट गई और दिया भी बुझा दिया, पूरे कमरे में बस अँधेरा ही अँधेरा था, कुछ नज़र नहीं आ रहा था।
कोई 1 घंटे बाद बापू गाना गाते हुए अंदर आये, डर के मारे मेरी तो घिग्गी बंध गई, दिल ज़ोरों से धड़कने लगा. बापू थे भी 6 फुट लम्बे चौड़े और पिटाई तो ऐसी करते थे कि रूह कांप जाए।
आते ही वो मेरे बिस्तर पर चढ़ गए और मेरी रजाई खींचते हुए बोले- रज्जो साली, तेरा पति बाहर है और तू सो गई?
मैंने दोनों हाथों से कस के रजाई को पकड़ रखा था पर बापू ने उसे ऐसे हटा लिया जैसे किसी 2 साल के बच्चे के हाथ से कोई खिलौना ले रहे हों.
डर के मारे मैं चुपचाप लेटी रही।
‘साली रांड, तेरा पति भूखा है और तू सो रही है?’ बापू ने शराब की गंध वाली गरम सांसें छोड़ते हुए कहा.
मैं कुछ न कह पाई न कह सकती थी।
‘साली नाटक करती है… बोल रोटी निकाल रही है या नहीं?’ बापू चीख रहे थे पर मैं सोने का नाटक करती रही।
मुझे क्या पता था कि क्या होने वाला है… बापू किसी भूखे शेर की तरह मुझ पर चढ़ गए और मेरे होंठ चूसने लगे, पहली बार किसी मर्द ने मेरे साथ ऐसा किया किया था, मुझे डर तो लग रहा था पर मजा भी आने लगा, मैं भी बापू का साथ देने लगी।
‘रज्जो, आज तेरे होंठ कितने नर्म लग रहे हैं, पहले तो ऐसे नहीं थे?’ बापू बुदबुदाये।
मैं फिर चुप रही, बोलती तो बापू को पता चल जाता.
मुझे लगा कि बापू चूमने के बाद मुझे छोड़ देंगे पर बापू तो नशे में धुत थे और इससे पहले मुझे कुछ पता चलता या मैं कुछ कर पाती उन्होंने मेरी कमीज़ को गले से पकड़ा और एक ही झटके में फाड़ दिया, ऊपर से उस दिन मैं अंदर कुछ पहन भी नहीं रखा था, मैं हाथों से अपनी छातियाँ ढक पाती उससे पहले ही बापू ने एक निप्पल को मुंह में ले लिया और चूसने लगे.
‘आह… उम्म्ह… अहह… हय… याह… आह…’ मैं सिसक पड़ी।
पर नशे में होने के बापू को कुछ पहचान नहीं पाई- साली रांड, तभी कहता हूँ कि चुदाई करवाया कर… अब इतने दिनों बाद होगा तो दर्द तो होगा ही… वैसे आज तो तेरे मोम्मे बड़े गोल-गोल और मज़ेदार लग रहे हैं.
बापू के मुँह से ऐसी बातें सुन मुझे अच्छा लगने लगा, ऊपर से वो मेरे मम्मों को चूस रहे थे, मसल रहे थे, उसके कारण एक अजीब सी मस्ती मुझ पर हावी हो रही थी. आज मुझे सहलियों की बात पर यकीन हो रहा था जो कहती थी कि चुदाई में जो मजा है, वो किसी और चीज़ में नहीं है।
बापू थोड़े से नीचे हुए और मेरी नाभि चाटने लगे, उनकी गर्म खुरदरी जीभ ने जैसे ही मेरी नाभि को छुआ, मेरा पूरा बदन बुरी तरह कांप उठा।
न जाने कितनी देर बापू मेरे बदन से खिलवाड़ करते रहे,
फिर अचानक वो उठे, कुछ देर उन्होंने कुछ नहीं किया, मुझे लगा कि जान बची… पर मेरा दिल तो चाह रहा था कि वो ऐसा और करें पर मैं कुछ बोल तो सकती नहीं थी।
और सही बात तो यह थी कि बापू सिर्फ अपने कपड़े खोलने के लिए उठे थे. यह बात मेरी सलवार पर हुए हमले से मैं जान गई और दूसरे ही पल मेरी सलवार और कच्छी मेरे बदन से अलग हो गई।
बापू ने अपना हथौड़े सा भारी लौड़ा मेरी कुंवारी चूत पर रख दिया, मुझे लगा ‘ये क्या… अब भी मैंने बापू को न रोका तो पाप होगा।’
अपनी सारी हिम्मत जोड़ के मैंने कहा- बापू, मैं भोली!
मुझे लगा था एक ज़ोरदार थप्पड़ मेरे मुँह पर पड़ेगा पर बापू ने जैसे कुछ सुना ही नहीं और लौड़े को चूत के मुँह पर सेट करते रहे और बोले- भोली हुन जान दे होली होली!
और एक ज़ोरदार हमला मेरी फूल सी चूत पर हुआ और उनके मूसल लंड का मोटा टोपा मेरी चूत में जाकर फंस गया।
मैं दर्द से बिलबिला उठी ‘आ..आ.. माँ मर गई…’
पर नशे में चूर बापू पर मेरी चीखों का कोई असर नहीं हुआ, उन्होंने एक और ज़ोर का धक्का दिया और मेरी चूत मूसल लंड से भर गई ‘आई… मर गई बापू मर जाऊँगी मैं… निकालो बाहर… बापू बापू…’
पर बापू ने बिना कुछ कहे ही एक और झटका दिया.
मैं तो जैसे दर्द से बेहोश सी हो गई कुछ देर के लिए मेरी आँखें घूम गईं ..बदन से सारी ताकत निकल गई निढाल हो चुकी थी मैं..
बापू ने मेरे दोनों मम्मों को ज़ोर से पकड़ लिया और लंड आगे पीछे करना शुरु किया, मुझे तो लग रहा था कि मेरी चूत भी जैसे आगे पीछे हो रही हो… बापू के धक्कों की रफ़्तार बढ़ती जा रही थी. मुझ में इतनी भी ताकत नहीं थी कि चीख सकूँ… बस आह… आह.. बापू नहीं… माँ बचा लो.. मैं बस ये कहती रही पर बापू धक्के पे धक्का मारे जा रहे थे और हर धक्के के साथ मेरी साँसें हलक में अटक जाती..
पुच पुच..फच फच की आवाज़ें पूरे कमरे में गूंज रही थी और बापू मुझे ऐसे चोद रहे थे जैसे किसी लाश को चोद रहे हों!
दर्द से मैं बेहाल थी पर मुझे अब मजा भी आने लगा था, पूरे बदन में गुदगुदी सी होने लगी थी जो हर झटके के साथ बढ़ती जा रही थी.
मैं ज्यादा देर न टिक सकी और झड़ गई… कुछ पलों के लिए लगा जैसे मैं स्वर्ग में हूँ पर जैसे ही चरम आनन्द ख़त्म हुआ, मुझे लगा कि मेरी बची खुची ताकत भी निकल गई है, मैं बेसुध हो गई।
जब होश आया तो 2-3 दीये जल रहे थे, बापू ज़मीन पर पालथी मार के बैठे हुए थे और खुद से बातें कर थे ‘हाय कितना बड़ा पापी हूँ मैं… अपनी ही बेटी के साथ यह कर दिया… भगवान मुझे कभी माफ़ नहीं करेगा!’ बापू खुद को कोस रहे थे.
उनकी हालत देख मेरा जी भर आया पर मुझे क्या पता था कि ये सब नाटक है… बापू तो दूसरे राउंड की तैयारी कर रहे थे।
मैंने बापू को बड़े प्यार से ऊपर से नीचे तक देखा उनका 8 इंच लंबा और 4इंच मोटा लौड़ा देख मेरी तो जान ही निकल गई। मैंने सोचा पक्का आज तो फट गई होगी मेरी।
किसी तरह ताकत बटोर के मैं उठी ताकि अपनी बुर का हाल देख सकूँ।
उठी तो क्या देखती हूँ, मेरी टाँगों के बीच वाली चादर पर खून ही खून था मेरी फूल सी चूत सूज के गोभी का फूल बन चुकी थी।
मैं रोने लगी.
तभी बापू की आवाज़ आई- साले हरामी, तेरी ही वजह से मेरी बेटी का ये हाल हुआ है, आज तुझे जड़ से ही काट दूँगा.
मैंने रोते रोते बापू की तरफ देखा, बापू के एक हाथ में चाकू और दूसरे में उन्होंने अपना मूसल लंड पकड़ा हुआ था और वो उसे काटने जा रहे थे.
‘ओह तो क्या अंकल ने अपना लौड़ा काट लिया?’ रमा जो अभी तक दम साधे सुन रही थी बोल पड़ी।
‘रमा, तू अभी तक नहीं समझी, बापू तो मछली को पकड़ने के लिए जाल बिछा रहे थे और उनका निशाना सही जगह लगा था।’
मैं घबरा गई ‘बापू इसमें इसका क्या कसूर है’ मैंने बापू से कहा यह सोचे बिना कि मैं जाल में फंसती जा रही हूँ.
बापू यही सुनना चाहते थे, उन्होंने नाटक और तेज़ कर दिया- सही कहती है बेटी, गलती तो मेरी है, मैं अपना गला काट के इस पाप से मुक्ति पा लूँगा, तू मुझे माफ़ कर दे!
बापू ने चाकू अपने गले पर रखते हुए कहा।
इस बात को सुन कर तो मेरे हाथ पांव फूल गए, कुछ समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ… दिमाग में बस एक ही बात आई कि सारा दोष मुझे अपने ऊपर लेना होगा.
‘बापू गलती मेरी है, मैं चाहती थी कि यह सब हो, इसीलिए जब माँ ने मुझे यहाँ सोने को कहा तो मैं मान गई.’
मैंने बापू से कहा।
‘नहीं तू झूठ बोल रही है, तू तो सारा वक़्त रोक रही थी पर देख मैंने क्या कर दिया, मुझे जीने का कोई हक़ नहीं है.’ बापू ने कहा.
‘बापू मैं सच में यही चाहती थी पर डर भी रही थी इसिलए मना करने का नाटक कर रही थी.’
‘फिर झूठ बोल रही है तू… तुझे ये भी पता नहीं होगा कि आज तेरे साथ क्या हो गया है.. बोल पता भी है तुझे? क्यों तू मुझे बचाना चाहती है?’
‘बापू मैं सच बोल रही हूँ, मैं भी चाहती थी कि तुम मेरी चुदाई करो!’ मैंने बापू को बचाने के लिए कहा।
मेरी यह बात सुन के वो बिस्तर पर आ गए- झूट मत बोल… तू तो फरिश्ता है और मैं दानव, तुझे तो यह भी पता नहीं होगा इसे क्या कहते हैं… इसको पहले काटूँगा, फिर अपना गला… बेटी मुझे मत रोक!
बापू ने अपने मूसल लंड को पकड़ के हिलाते हुए कहा।
‘बापू मैं कोई बच्ची नहीं हूँ इसे लौड़ा कहते हैं… मैं सिर्फ पहले ही चुदना नहीं चाहती थी, अब भी मेरा मन है कि तुम मुझे चोदो!’ मैंने भावनाओं में बहकर कह दिया, मुझे क्या पता था बापू भी यही चाहते हैं।
वो कुछ देर अपना सिर पकड़ ले बैठे रहे फिर उन्होंने एक ज़ोरदार थप्पड़ मेरे मुंह पर दे मारा. मैं बिस्तर पर ढेर हो गई- साली रांड, अपने बाप से चुदेगी… बाप को नरक में भेजेगी? अब देख मैं तेरा क्या हाल करता हूँ।’ बापू ने मेरी टांगों को पकड़ते हुए कहा.
‘बापू क्या कर रहे हो? होश में आओ!’ मैंने विनती की पर बापू पर भूत सवार हो चुका था।
बापू ने एक तकिया मेरे सिर के नीचे ठूँस दिया- साली बड़ा चुदने का शौक है न… अब अपनी आँखों से देख… कैसे चोदता हूँ तुझे!
बापू ने अपना लौड़ा मेरी चूत पर सेट कर दिया और रगड़ने लगे। बापू का गर्म लौड़ा मेरी चूत के दाने से रगड़ खाने लगा, कुछ पलों में मैं जल बिन मछली की तरह तड़पने लगी- बापू ..आह.. बापू …मत करो मैं…’
मैं बापू को रुकने के लिए कहना चाहती थी पर मेरा बदन अकड़ गया और मैं एक बार फिर झड़ गई।
‘साली रांड देख कितनी बड़ी चुदक्कड़ है तू… अपने बाप के सामने झड़ रही है, शर्म नहीं आती तुझे.. अब तुझे सबक सिखाना ही पड़ेगा!’
बापू ने मेरी एक टांग को पकड़ कर 90 डिग्री के कोण पर उठा लिया और अपने टोपे को चूत के होंठों पर रख एक ज़ोरदार धक्का दिया।
दर्द से मेरी तो जान ही निकल गई, मुझे लगा जैसे मेरी पूरी चूत लंड से भर गई हो,
पर देखती क्या हूँ कि अभी तो बस लंड का मुँह ही अंदर जा पाया है।
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मैंने उठने की कोशिश की पर बापू ने एक और झटका दिया इस बार तो लगा जैसे लोहे की सलाख मेरी चूत में घुस गई हो।
‘साले हरामी… अपनी ही बेटी की चूत फाड़ दी… निकाल बाहर…’ दर्द के कारण मैं सब भूल मान मर्यादा भूल गई थी।
‘साली अपने बाप को गाली निकालती है.. अभी तो तेरे साथ नर्मी बरत रहा था पर अब असली चुदाई होगी तेरी!’ बापू ने मेरे गले को दोनों हाथों से पकड़ लिया, अपने लौड़े को चूत से बाहर निकाला और अपनी पूरी ताकत से धक्का लगाया… और नामुमकिन काम को एक ही झटके में कर दिया.
दर्द से मेरा सारा बदन कांपने लगा, मैं अपनी नाभि के पास साफ़ एक उभार को देख सकती थी पर सिर्फ निढाल पड़े रहने के अलावा मेरे पास कोई चारा नहीं था। मैंने अपना सारा बदन ढीला छोड़ दिया.
उधर बापू दूसरे वार की तैयारी में था, उसने लंड को बाहर खींचा और फिर वैसा ही झटका दिया, उसका लंड मेरी कसी चूत के सारे विरोध को तोड़ता हुआ मेरी बच्चेदानी से जा टकराया।
दर्द के मारे मेरी आँखें ऊपर चढ़ गई, साँसें धौंकनी की तरह चलने लगी।
बापू कोई दुश्मन तो था, नहीं बाप था मेरा… मेरी ये हालत देख बापू का मन भी पसीज गया, बापू ने लंड को चूत में ही फंसा रहने दिया, मेरी गर्दन भी छोड़ दी, मुझ पर लेट गया और मेरे गालों को चूमते हुए बोला- भोली भोली… मेरी बच्ची बस हो गया मुश्किल काम!
‘बापू तूने तो जान ही निकाल दी मेरी.. अब तो छोड़ दे!’ मैंने जवाब दिया.
‘बेटी, जितना दर्द होना था, हो लिया, अब तो तेरी मजा लेने की बारी है!’ बापू ने मेरे होंठों को अपने होंठों से चूम लिया.
बापू के इस लाड़ दुलार से दर्द कुछ कम हुआ। मैं भी मजा लेना चाहती थी, आखिर इतनी पीड़ा जो सही थी मैंने… कुछ हक़ तो बनता था।
बापू ने धीरे-2 अपनी कमर हिलानी शुरू की, मजा आने लगा मुझे भी… दर्द भी कम हो गया।
बापू मेरे स्तनों को चूसते हुए हल्के हल्के धक्के मारते रहे, मेरा बदन फिर अकड़ने लगा था, पर इस बार मुझे बापू का लंड भी फूलता हुआ महसूस हुआ, बापू ने मुझे कस के बाँहों में भर लिया और धक्कों की रफ़्तार तेज़ कर दी.
इधर मैं भी बापू से लिपट गई, मेरा काम होने वाला था, बापू ने झटके और जानदार कर दिए।
और किस्मत का खेल देखो कि हम दोनों बिल्कुल एक साथ झड़ गए, मेरी चूत बापू के गर्म माल से भर गई।
हम इतने थक चुके थे कि उसी हालत में सो गए।
रात को माँ वापस आई और मुझे जगाया मेरी मालिश की, गर्म गर्म दूध पिलाया और फिर मुझे बताया कि ये सब उन दोनों की स्कीम थी। उन्हें पता चल गया था कि मेरा चक्कर एक शादीशुदा आदमी से चल रहा और अगर मैं ये सब उसके साथ करती तो सारे गांव को पता चल जाता और बदनामी होती.
फिर माँ ने कहा- जब भी तेरा ऐसा वैसा मन हो, तो बापू है न… तुझे कहीं बाहर जाने की ज़रुरत नहीं।
‘रमा… अब तू सोच कितनी लड़कियों की ज़िन्दगी खराब होती है। कुछ करें तो बदनामी… न करें तो मौत से भी बुरी ज़िंदगी! उससे तो अच्छा है माँ बाप ही कुछ करें… मजा भी पूरा और कोई बदनामी भी नहीं।’ तरन ने अपनी बात खत्म की।
तरन ने बेशक झूठ बोला था और यह बात रमा अच्छे से जानती थी क्योंकि तरन की माँ खुद रमा को बता चुकी थी कि उसका पति नपुंसक था और तरन एक बाबा का प्रसाद थी जैसे कि रमा के तीन बच्चे!
पर रमा ने तरन से कुछ नहीं कहा क्योंकि अब वो मन बना चुकी थी कि चाहे कुछ भी हो जाये, वो अपनी चूत की खाज राहुल के लंड से ही बुझायेगी।
बातें करते हुए 2 कब बज गए, दोनों को ही पता नहीं चला था।
रमा के तीनों बच्चे शोर मचाते हुए घर में घुसे।
‘ठीक है रमा, मैं चलती हूँ, पिंकी भी आती ही होगी.’
‘ठीक है दीदी, आज तुमने जो मेरे लिए किया है, उसे मैं कभी नहीं भूलूँगी.’ रमा ने भी नाटक करते हुए कहा।
कहानी जारी रहेगी.
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