यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
हिंदी स्टोरी अन्तर्वास्सना में पढ़ें कि मुझे काम से बंगलूरू जाना पड़ा. वहां ऑफिस की एक लड़की पहले ही पहुँच चुकी थी. वो लड़की जब मुझसे मिलने मेरे कमरे में आयी तो …
सुहाना अपना प्रोजेक्ट कम्पलीट करवा कर अपने घर चली गई.
और मैं सोफे पर ही आराम से पसर गया।मेरा मन तो पीहू नामक उस फुलझड़ी का भी प्रोजेक्ट इसी प्रकार कम्पलीट करने का कर रहा था पर यह सब कहाँ संभव हो सकता था। हे लिंग देव मैंने जो चाहा और जो माँगा तुमने अपनी रहमत के सारे खजाने मेरी झोली में डाल दिए हैं।
अब आगे की हिंदी स्टोरी अन्तर्वास्सना:
अगले दिन नये बॉस ने ऑफिस ज्वाइन कर लिया और मेरे लिए 3 दिन बाद का बंगलुरु जाने का प्रोग्राम बना दिया। भरतपुर से सीधी फ्लाइट नहीं है इसलिए मैंने आगरा से बंगलुरु के लिए फ्लाइट की टिकट बुक करवा ली।
10 बजे की बंगलुरु के लिए फ्लाइट थी तो सुबह जल्दी आगरा के लिए निकलना होगा। नताशा तो पहले ही ट्रेन से बंगलुरु चली भी गई थी। मेरा मन तो नताशा के साथ ही जाने का कर रहा था पर वक़्त की नजाकत देखते हुए उसे पहले ही भेजना सही था।
सानिया का फोन आया था कि कल सुबह वह काम पर आ जायेगी। मेरा मन तो जाते-जाते बस एक-बार फिर से सानिया मिर्ज़ा को जी भर के चोद लेने को करने लगा था। पर सब कुछ अपने मन के मुताबिक़ कहाँ हो पाता है।
मैं सानिया का इंतज़ार कर रहा था और सोच रहा था आज एक बार से फिर से उन्ही पलों को दोहरा लिया जाए.
पर मैंने देखा उसके साथ गुलाबो भी आ धमकी है।
आप सोच सकते हैं मुझे मधुर और गुलाबो पर कितना गुस्सा आया होगा। साली यह किस्मत भी लौड़े लगाने से बाज नहीं आने वाली। अब मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। कल मधुर का भी फोन आया था तो मैंने उसे बंगलुरु जाने के प्रोग्राम के बारे में बता दिया था।
ओह … तो यह सब उस मधुर की बच्ची का कारनामा है लगता है उसी ने गुलाबो को मेरे बंगलुरु जाने वाली बात गुलाबो को बताई होगी. और रसोई में जो राशन आदि बचा है उसे भी ले जाए और कुछ पैसे भी ले जाए।
बेचारी सानिया तो उदास नज़रों से बस मेरी ओर ताकती ही रह गई थी।
काश! आज एक घंटा इस फुलझड़ी के साथ बिताने को मिल जाता तो 3-4 दिनों की कसर इसी एक घंटे में ही पूरी हो जाती।
सानिया सफाई में लग गई और गुलाबो रसोई में मेरे लिए नाश्ता चाय बनाने लगी।
मैंने तो मना भी किया पर वह मानी ही नहीं।
अनमना सा होकर मैं बेड रूम में आकर लेट गया। मैं सोच रहा था काश! एकबार बस 2 मिनट के ही सानिया कमरे में आ जाए। मैं एक बार उसे गले से लगाकर चूम लेना चाहता था।
इतने में सानिया हाथों में झाडू लिए सफाई के लिए आ गई और उसने दरवाजे का पल्ला थोड़ा भिड़ा दिया।
मैंने झट से उसे बांहों में भर लिया और चूमने लगा।
“सानू मेरी जान … इन 4 दिनों में मैंने तुम्हें बहुत याद किया.”
सानिया बेचारी क्या बोलती वह तो मेरे सीने से लगी बस रोने ही लगी थी।
“सर … मैं आपके बिना मल जाऊंगी … आप जल्दी आ जाओगे ना?”
“हाँ मेरी जान मैं भी अब तुमसे दूर नहीं रह सकता मैं जल्दी ही वापस आ जाउंगा।” कहते हुए मैंने उसके गालों पर लुढ़कते हुए आसुओं को चूम लिया। सानिया मेरे सीने से लगी रोती रही। मेरी बेबसी देखो मैं तो उसे ठीक से सांत्वना भी नहीं दे पाया।
साली समस्याएं पीछा ही नहीं छोड़ती। मुझे नहीं लगता मधुर का जल्दी आने का कोई प्रोग्राम है। 3-4 महीनों के लिए घर खाली छोड़ना भी मुश्किल काम होता है। यह तो अच्छा हुआ कि मेरे साथ ऑफिस में काम करने वाले गुलाटी का कोई जानकार हमारे मकान में रहने के लिए तैयार हो गया था तो दोनों कमरों में पड़ा सामान एक कमरे में शिफ्ट कर दिया। और फिर घर की एक चाबी गुलाटी को भिजवा दी।
गुलाबो रसोईघर में रखा बचाखुचा राशन और फ्रिज़ में रखी मिठाई, सब्जियां और आइसक्रीम आदि लेकर चली गई।
मैंने उसे मधुर के कहे अनुसार 4000 रुपए भी दे दिए।
सानिया ने जाते समय उदास आँखों से मुझे एक बार देखा। उसके हृदय की असीम पीड़ा मेरे अलावा कोई ओर कैसे जान सकता था।
एक मन तो कर रहा था कि मैं मुंबई होते हुए निकल जाऊं। पता नहीं आज क्यों बार-बार गौरी की याद आ रही थी। साली मधुर ने तो एक बार भी मुंबई होते हुए निकल जाने के लिए नहीं बोला था।
कोई बात नहीं मुंबई की बाद में सोचेंगे मैं जल्दी से जल्दी बंगलुरु पहुँचना चाहता था वहाँ वह पूरी बोतल का नशा पलक पांवड़े बिछाए हमारा इंतज़ार कर रही है।
उसका तो 2-3 बार फोन भी आ चुका है।
पहले बंगलुरु एयरपोर्ट और बाद में होटल पहुंचते-पहुंचते 4 बज गए थे। रॉयल ऑकिड होटल में एक डीलक्स रूम मैंने पहले ही बुक करवा लिया था। मैंने अपने पहुँचने की खबर नताशा को दे दी और उसे रूम नंबर भी बता दिया था। फिर मैं चाय का आर्डर देकर मैं फ्रेश होने के लिए बाथरूम में चला आया।
मैं अभी फ्रेश होकर रूम में आया ही था कि कॉल बेल बजी। मैं समझा वेटर चाय लेकर आया होगा। जैसे ही मैंने रूम का दरवाजा खोला तो सामने नताशा जलवा अफरोज थी।
नताशा ने अपने खुले बालों को एक चोटी की शक्ल में रबड़ बैंड से बाँधकर अपने उरोजों पर डाल रखा था। माथे पर छोटी सी बिंदी लगा रखी थी और और कानों के ऊपर सोने की छोटी छोटी डबल बालियाँ पहन रखी थी।
उसने स्पोर्ट्स शूज, सफ़ेद रंग की जीन पैंट और खुला टॉप पहन रखा था। इस कपड़ों में तो उसके नितम्ब इतने कसे हुए लग रहे थे जैसे अभी पैंट को फाड़कर बाहर आ जायेंगे। जीन पैंट के पीछे हिप्स के ऊपर एक तीर का निशान भी बना हुआ था।
वाह … क्या रबड़ बैंड की तरह टाईट गांड है। टॉप के अन्दर झांकते गोल उरोजों की घुन्डियाँ तो बहुत नुकीली सी लग रही थी। लगता था जैसे नीम की पकी हुयी निम्बोलियाँ हों।
उसने शायद काले रंग की ब्रा पहनी हुयी थी जिसकी पट्टियां साफ़ दिख रही थी।
हे भगवान् लगता है इसने पैंटी भी काले रंग की ही पहनी होगी। होंठों पर गुलाबी लिपस्टिक और लम्बी सुतवां बांहों के नीचे कलाइयों में एक एक चूड़ी … कजरारी नशीली आँखों के ऊपर पतली पतली पैनी कटार सी आई ब्रो (भोंहें) … कानों में छोटी-छोटी बालियाँ उफ्फ … शरीर से मदहोश कर देने वाली जवान जिस्म और परफ्यूम की मिलीजुली खुशबू …
मैं तो टकटकी लगाए बस उसे देखता ही रह गया। मुझे तो लगा उसके इस रूप की गर्मी से मैं तो पिंघल ही जाउंगा।
“गुड इवनिंग सर!” नताशा की मखमली आवाज सुनकर मैं चौंका।
“अरे … ओह … हाँ … नताशा … तुम? ओह … प्लीज आओ अन्दर आओ.”
नताशा ‘थैंक यू’ कहते हुए अन्दर आ गई।
मैंने कमरे की चिटकनी लगा दी। नताशा थोड़ा सा हट कर खड़ी हो गई।
“आओ नताशा … प्लीज बैठो!” मैंने सोफे की ओर इशारा करते हुए कहा.
तो नताशा सुस्त कदमों से चलते हुए सोफे पर बैठ गई और अपने हाथ में पकड़ा काले रंग का ऑफिस बैग टेबल पर रख दिया।
वह एक हाथ से अपने लम्बे बालों की चोटी को सहलाती हुयी पता नहीं क्या सोचे जा रही थी।
“आपने तो सुबह चलने से पहले मुझे फोन ही नहीं किया?”
“ओह.. हाँ … वो दरअसल फ्लाईट थोड़ा लेट थी.”
“आप मुझे पहले बता देते तो मैं एयरपोर्ट पर आपको लेने आ जाती.” उसने मेरी आँखों में झांकते हुए कहा।
हे भगवान्! उसकी नशीली आँखों में तो लाल डोरे से तैर रहे थे लगता था जैसे 2-3 रातों से नींद ही ना आई हो। सच कहूं तो इस समय मेरे कानों में भी सीटियाँ सी बजने लगी थी और मेरा तो दिमाग ही काम नहीं कर रहा था।
“ओह … थैंक यू … डिअर, मैंने सोचा तुम्हें परेशानी होगी.”
“आपने तो मुझे याद ही नहीं किया?” नताशा ने उलाहना सा दिया और अपने हाथों की अंगुलियाँ चटकाने सी लगी।
“ओह … हाँ … वो ऑफिस का चार्ज देने में ही सारा टाइम निकल गया। मधुर को भी फोन करने का समय नहीं मिला। अब यहाँ पहुँचते ही सबसे पहले तुम्हें ही फोन किया।”
“आपको मेरा यहाँ आना अच्छा नहीं लगा क्या?”
“अरे नहीं … तुम ऐसा क्यों सोच रही हो?”
“आपने तो बस थैंक यू बोलकर ही निपटा दिया … क्या आये हुए मेहमान का इतना नीरस (बिना मन के) स्वागत करते हैं?” कहते हुए नताशा सोफे से उठकर खड़ी हो गई।
“ओह आई एम् सॉरी … बट …”
मेरे तो कुछ समझ ही नहीं आ रहा था ऐसी परिस्थिति में क्या किया जाए। मुझे तो डर लगने लगा था कहीं वह रूठकर जाने वाली तो नहीं है।
अब मैं भी सोफे से उठकर खड़ा हो गया तो वह मेरे पास आ गई। उसकी साँसें बहुत तेज चल रही थी। आँखों में तो जैसे कोई सैलाब सा उमड़ आया लग रहा था।
और फिर इससे पहले कि मैं कुछ बोलता या करता नताशा ने मेरे गले में अपनी रेशमी बाहें डाल दी और अपना सिर मेरी छाती से लगा दिया।
“प … प्रेम …” उसके मुंह से कांपती सी आवाज निकली।
मेरे लिए यह सब अविश्वसनीय सा था। मुझे थोड़ा अंदाज़ा तो था पर इतनी जल्दी नताशा यह सब कर बैठेगी मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था।
और फिर मैंने भी उसे अपनी बांहों में भर लिया और फिर उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए। नताशा जोर-जोर से मेरे होंठ चूमने लगी।
“प्रेम तुम कितने निष्ठुर हो.”
“क … क्या मतलब?”
“मैं आपके आने की कितनी आतुरता से प्रतीक्षा कर रही थी और आपको तो मेरे से मिलने की कोई उत्सुकता ही नहीं लग रही है?”
“ओह … वो … सॉरी …” कहकर मैंने उसे एक बार फिर से जोर से अपनी बांहों में भींचा और उसके होंठों को चूम लिया।
मेरे हाथ उसकी पीठ से होते हुए नितम्बों की ओर बढ़ने ही वाले थे कि कॉल बेल बजी। नताशा छिटक कर मेरी बांहों से दूर हो गई और घबराकर मेरी ओर देखने लगी।
लग गए लौड़े!!
“ओह … शायद वेटर आया होगा मैंने चाय का आर्डर दिया था।”
नताशा सोफे पर बैठ गई और मैं दरवाजा खोलने चला आया। सामने चाय की ट्रे लिए वेटर खड़ा था। मैंने उसे अन्दर आकर चाय रखने का इशारा किया तो वह चाय का थर्मस और कप रखकर चला गया।
वेटर के जाने के बाद मैंने फिर से दरवाजे की चिटकनी बंद करके मैं जैसे ही मुड़ा तब तक नताशा मेरे पीछे आकर खड़ी हो गई थी।
मैं तो सोच रहा था नताशा चाय को कप में डाल रही होगी।
और इससे पहले कि मैं कुछ बोलता नताशा ने अपनी बांहों मेरी ओर फैला दी। मैंने एक बार कसकर फिर से उसे बांहों में भर लिया और उसके होंठों को चूमने लगा। नताशा ने अपनी बाहें मेरी गर्दन में दाल दी।
मैंने उसे अपनी गोद में उठा लिया और हम बेड पर आ गए। मैंने उसे बेड पर लेटाने की कोशिश की पर वह मेरे गले में अपनी बांहें डाले रही। मैंने थोड़ा सा उठने की कोशिश की तो नताशा ने मुझे अपनी ओर खींच लिया तो मेरा संतुलन बिगड़ सा गया और मैं उसके ऊपर आ गया।
नताशा मुझे पागलों की तरह चूमने लगी।
“प्रेम … तुमने तो मुझे पागल ही कर दिया है.” कहते हुए उसने मेरा सिर अपने हाथों में पकड़ लिया और जोर-जोर से चुम्बन लेने लगी।
अब मैंने भी अपने एक हाथ से उसके एक उरोज को पकड़कर मसलना शुरू कर दिया और अपना एक पैर उसकी जाँघों के बीच फंसा लिया। जीन पैंट में कसी रेशम सी मुलायम जांघों का अहसास पाते ही मेरा लंड तो कसमसाने लगा।
और फिर जैसे ही मैंने एक हाथ उसकी जांघों के संधिस्थल के पास फिराने की कोशिश की.
नताशा ने कहा- एक मिनट प्लीज!
“क.. क्या हुआ?”
“प्लीज ये लाईट बंद कर दो और परदे भी लगा दो पहले!”
“ओह … हाँ.”
मैंने उठकर पहले तो परदे खींच दिए और फिर लाईट भी बंद कर दी।
जैसे ही मैं बेड की ओर आया तो नताशा अपने बैग से कुछ निकालने की कोशिश करने लगी। उसने अपना मोबाइल निकालकर उसे स्विच ऑफ कर दिया।
मेरे साथ तो कई बार ऐसा होता ही आया है। ऐन मौके पर साला यह मोबाइल जरूर खड़कने लग जाता है। मैंने भी अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर दिया।
उसके बाद मैं इधर-उधर कमरे में नज़र दौड़ाई। मैं यह यकीनी बना लेना चाहता था कि कोई सी.सी. कैमरा तो नहीं लगा। हालांकि अच्छे होटलों में ऐसा साधारणतया होता तो नहीं है पर सावधानी में ही सुरक्षा होती है।
“ओहो … क्या सोचने लगे?”
मैं नताशा की आवाज सुनकर चौंका।
“ओह.. सॉरी नथिंग … वो मेरा मतलब था अगर चाय पीने की इच्छा हो तो?” कई बार तो साली यह जबान भी साथ नहीं देती।
“ओहो … मैं आपके लिए मरी जा रही हूँ और आपको चाय की लगी है?”
“ओह … स..सॉरी …”
साली इन हसीनाओं की यही अदाएं और नखरे तो आदमी को अफलातून बना देते हैं उनके सामने तो दिमाग जैसे काम करना ही बंद कर देता है।
अब मैंने फिर से उसे जोर बांहों में भींच लिया और एक चुम्बन उसके होंठों पर लेते हुए उसके होंठों को अपने मुंह में भर लिया।
नताशा तो गूं … गूं … करती ही रह गई।
“नताशा क … कपड़े निकाल दें क्या?”
“क्या यह भी मुझे ही बताना होगा?” उसने पहले तो तिरछी निगाहों से मेरी ओर देखा और बाद में मुस्कुराने लगी।
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हिंदी स्टोरी अन्तर्वास्सना जारी रहेगी.