यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
हॉट ऑफिस सेक्स स्टोरी में पढ़ें कि कैसे ऑफिशियल टूर पर मेरे साथ एक लड़की थी. इस समय वो मेरे रूम में थी. मैंने उसे कैसे नंगी करके उसकी चिकनी चूत को चोदा.
“ओहो … मैं आपके लिए मरी जा रही हूँ और आपको चाय की लगी है?”
“ओह … स..सॉरी …”मैंने फिर से उसे जोर बांहों में भींच लिया और एक चुम्बन उसके होंठों पर लेते हुए उसके होंठों को अपने मुंह में भर लिया।
नताशा तो गूं … गूं … करती ही रह गई।
“नताशा क … कपड़े निकाल दें क्या?”
“क्या यह भी मुझे ही बताना होगा?” उसने पहले तो तिरछी निगाहों से मेरी ओर देखा और बाद में मुस्कुराने लगी।
अब आगे की हॉट ऑफिस सेक्स स्टोरी:
और फिर मैंने जल्दी से अपनी शर्ट, पैंट और बनियान भी उतार फेंका। इस समय मेरा लंड तो बन्दूक की नली की तरह इतना तना हुआ कि लग रहा था जैसे चड्डी को फाड़कर ही बाहर आ जाएगा नताशा अपलक उसी की ओर देखे जा रही थी।
अपने कपड़े निकालने के बाद मैंने नताशा पहले तो उसके शूज निकाले और फिर उसके पांवों की कोमल एड़ियों पर अपनी अंगुलियाँ फिराने लगा और बाद में उन्हें चूम लिया। नताशा के पूरे बदन में एक सिहरन सी दौड़ गई और वह मुझे हैरानी भरी नज़रों से मुझे देखने लगी थी।
आपको भी एक बात बताना चाहूँगा जिन लड़कियों की एड़ियां जितनी पतली, चिकनी, मुलायम और गोरी होती हैं वो बहुत सेक्सी भी होती हैं। अब तो आप भी अंदाज़ा लगा सकते हैं उसकी बुर के होंठ भी कितने गुलाबी और सेक्सी होंगे।
अब मैंने उसकी पैंट को टखनों के ऊपर से पकड़ कर निकालने की कोशिश की तो नताशा ने मेरी सहूलियत के लिए अपनी पैंट की बेल्ट खोल दी. और फिर जिप खोलकर अपने नितम्ब ऊपर उठा दिए।
लगता है नताशा को तो मेरे से भी ज्यादा जल्दी थी। अब मैंने उसकी पैंट को खींच कर निकाल दिया।
हे भगवान! सुतवां टांगें, पतली पिंडलियाँ और घुटनों के ऊपर कोमल, मखमली, गुदाज़ जांघें देख कर तो मेरा दिल इतनी जोर से धड़कने लगा कि मुझे लगा यह कहीं धोखा ही ना दे दे।
काले रंग की नेट वाली पैंटी फंसी उसकी बुर का उभरा हुआ भाग देख कर तो मेरा लंड उसे सलामी ही देने लगा था। उसके पपोटों के बीच की दरार में पैंटी इस तरह फंसी थी कि दोनों पपोटे अलग अलग महसूस किए जा सकते थे।
उसकी गोल नाभि के नीचे उभरे हुए से पेडू पर एक छोटा सा जानलेवा काला तिल भी बना था। लगता है भगवान् ने इस मुजसम्मे को फुर्सत में तारशा है।
अब मैं उसके पास आकर बैठ गया और उसके टॉप को पकड़कर निकालने की कोशिश की तो नताशा बिना कोई ना नुकर के अपने हाथ ऊपर उठा दिए।
मैंने उसका टॉप निकाल दिया।
काले रंग की नेट वाली ब्रा में उसके उरोज भरे पूरे लग रहे थे जैसे दो अनार जबरन कस कर बंद दिए हों।
हे भगवान्! उसकी मक्खन जैसी चिकनी बगलों में तो एक भी बाल क्या रोयाँ तक नहीं था। मुझे लगता है उसने आज ही वैक्सिंग या हेयर रिमूवर क्रीम से बालों को साफ़ किया होगा। याल्ला … तब तो उसने अपनी मुनिया को भी इसी तरह चकाचक बनाया होगा।
अब मैंने उसकी जाँघों पर हाथ फिराना चालू किया तो नताशा ने एक लम्बी सी साँस ली। शायद वह अगले पलों के लिए अपने आप को संयत और तैयार कर रही थी।
पतली कमर में बंधी काले रंग की जालीदार (नेट वाली) पैंटी के बीच मोटे-मोटे पपोटों वाली बुर की खूबसूरती का अंदाज़ा आप बखूबी लगा सकते हैं।
मैंने झुककर उनपर एक चुम्बन ले लिया। नताशा की एक मीठी सीत्कार ही निकल गई। मेरा स्नायुतंत्र एक मदहोश कर देने वाली खुशबू से महक उठा। लगता है उसने कोई खुशबू वाली क्रीम लगाई होगी। अब मैंने उसके पेडू, पेट, गहरी नाभि पर भी चुम्बन लेने शुरू कर दिए। नताशा तो अभी से आह … ऊंह … करने लगी थी।
एक बात तो है शादीशुदा औरतों के साथ यह बहुत बड़ी सहूलियत होती है कि वे एकबार राजी हो जाएँ तो फिर ज्यादा ना नुकर या बवाल खड़ा नहीं करती और पूरे समर्पण के साथ प्रेम लीला को सम्पूर्ण करवाती हैं।
अब मैंने उसका सिर अपने हाथों में पकड़कर उसके गालों पर चुम्बन लेते हुए पहले तो उसकी ब्रा की डोरी खींच दी और उसके खूबसूरत परिंदों को आजाद कर दिया।
मोटे-मोटे कंधारी अनारों के मानिंद दो अमृत कलश हो जैसे। नताशा तो बस आँखें बंद किए अगले पलों का इंतज़ार सा करने लगी थी. तो अब उसकी पैंटी को उतारने में अब ज्यादा समय कहाँ लगने वाला था.
जैसे ही मैंने उसकी पैंटी की डोरी को खोलकर निकालने की कोशिश की उसने अपने नितम्ब उठा दिए. तो पैंटी को निकालने में ज़रा भी समय बर्बाद नहीं हुआ।
मैंने पैंटी को अपने हाथ में पकड़ कर पहले तो उसे गौर से देखा और फिर उसे सूंघने का उपक्रम करने लगा। मेरे नथुनों में जवान जिस्म की मदहोश कर देने वाली खुशबू समा गई। नताशा इन हरकतों को बड़े ध्यान से देख रही थी।
अब उसने मेरी चड्डी के ऊपर से ही मेरे लंड को पकड़कर दबाना शुरू कर दिया। मेरा लंड तो उसकी नाजुक अँगुलियों का स्पर्श पाते ही उछलने ही लगा था। नताशा ने मेरी चड्डी के इलास्टिक को पकड़ कर नीचे खींच दिया। अब तो मेरा लंड किसी स्प्रिंग की तरह उछलकर ऐसे लगने लगा जैसे कोई मोटा सा सांप अपना फन उठाकर फुफकारने लगता है।
मक्खन सी मुलायम चूत पर तो एक रोयाँ भी नहीं था। मेरा अंदाज़ा सही था लगता है उसने बगलों की तरह अपनी चूत के बाल भी वेक्सिंग या बालसफा क्रीम से साफ़ किए हैं। मोटे-मोटे गुलाबी पपोटों के बीच रस से लबालब भरा चीरा कम से कम 4-5 इंच का तो जरूर होगा। चीरे के ऊपर मोटा सा गुलाबी रंग का लहसुन (मदनमणि) के बीच पिरोई हुयी सोने की छोटी सी बाली (रिंग) … को देखकर तो बरबस मुंह से निकल उफ्फ्फ्फ़ … हाय मेरी नथनिया …
दोनों फांकों के बीच की पत्तियों (अंदरुनी होंठ- कलिकाएँ) का रंग कुछ सांवला सा लग रहा था। मुझे लगता है यह जरूर इनको अपने हाथों से मसलती होगी और अपनी अँगुलियों से अपनी काम वासना को शांत करती रही होगी तभी तो इनका रंग थोड़ा सांवला सा हो गया है।
साले उस लंगूर के में इतना दम कहाँ होगा जो इसकी चूत की गर्मी को ठंडा कर पाता। उसकी जगह कोई और प्रेम का पुजारी होता तो अब तक इसकी चूत का हुलिया ही बिगाड़ देता। मेरा मन तो एक बार उसकी चिकनी चूत को तसल्ली से चाटने और चूमने को करने लगा था।
“ओहो … अब क्या सोचने लगे?”
“बेबी वो …?”
“क्या हुआ?”
“वो … वो … मेरे पास कंडोम नहीं है.”
“ओह … गोली मारो कंडोम को …” कहते हुए नताशा ने मेरे हाथ को पकड़कर मुझे अपने ऊपर खींच सा लिया।
मैं धड़ाम से उसके ऊपर आ गिरा तो नताशा की मीठी किलकारी ही निकल गई। उसने मेरे होंठों को चूमना शुरू कर दिया। मैं तो अभी ठीक से उसकी चिकनी बुर को देख भी नहीं पाया था कि नताशा ने मेरा लंड अपने हाथों में पकड़ लिया और खींचकर अपनी बुर पर घिसने लगी। एक नर्म मुलायम और गुनगुना सा अहसास मुझे अपने सुपारे पर महसूस होने लगा।
अब देरी की गुन्जाइश बिल्कुल भी नहीं थी। उसकी चूत तो रस बहाकर जैसे दरिया ही बन चुकी थी. तो किसी तेल या क्रीम की जरूरत ही नहीं थी। अब कमान मैंने अपने हाथ में ली और अपने लंड को ठीक उसकी चूत के छेद पर लगा दिया।
मैं कुछ पलों के लिए रुका रहा। नताशा की साँसें बहुत तेज हो गई थी और दिल की धड़कन भी बहुत तेज हो चली थी। मैंने लंड को निशाने पर लगाए हुए एक जोर का धक्का लगाया तो मेरा आधा लंड उसकी पनियाई बुर में घुस गया।
और नताशा की घुटी-घुटी एक चींख पूरे कमरे में गूँज उठी- आआआईई ईईई ईईइ … आह … धीरे!
उसके चहरे पर थोड़ा दर्द साफ़ महसूस किया जा सकता था।
मैंने उसे अपनी बांहों में दबोच लिया और फिर से 3-4 धक्कों के साथ अपना खूंटा उसके गर्भाशय तक गाड़ दिया। इस प्रकार की हसीनाओं के साथ रहम की गुंजाइश बेमानी होती है।
जब मेरा लंड उसकी कसी हुई चूत में पूरी तरह अन्दर फिट हो गया तो मैंने उसके गालों और होंठों को चूमना शुरू कर दिया और फिर धक्के लगाने शुरू कर दिए। लंड तो किसी पिस्टन की तरह अन्दर बाहर होने लगा। मेरे ऐसा करने पर नताशा ने अपनी जांघें जितना हो सकता था खोल दी।
अब तो नताशा की मीठी सीत्कारें पूरे कमरे में गूंजने लगी- आह … मेरे प्रेम … मैं कितने दिनों से तुम्हारा प्रेम पाने के लिए तड़फ रही थी और तुम्हें मेरी कोई परवाह ही नहीं.
“मेरी जान चाहता तो मैं भी था. पर ऑफिस का मामला था. तो थोड़ा डर भी लगता था कि कहीं किसी को संदेह ना हो जाए।”
“तुम तो निरे फट्टू (डरपोक) हो.”
“कैसे?”
“आपने तो मुझे बताया ही नहीं कि आपकी वाइफ मुंबई गई है?”
“ओह … हाँ … पर?”
“मुझे घर बुला लेते तो यहाँ बंगलुरु आने का झंझट ही नहीं होता.” कहते हुए वह जोर-जोर से हंसने लगी।
“हाँ … पर चलो कोई बात नहीं बंगलुरु का यह कमरा और बेड भी हमारे प्रेम मिलन का गवाह बन ही जाएगा.” कहकर मैं भी हंसने लगा।
हम बातें भी करते जा रहे थे और मैं जोर-जोर से धक्के भी लगा रहा था। नताशा की चूत वैसे तो बहुत मुलायम सी थी पर कसी हुयी भी लग रही थी। मुझे लगता है इस बेचारी तो शादी के बाद भी सिर्फ मूतने का ही काम किया है।
“नताशा एक कॉम्प्लीमेंट दूं क्या?”
“श्योर?”
“यार तुम्हारी चूत तो वाकई बहुत ही खूबसूरत और कसी हुई है. ऐसा लगता है जैसे पहली बार किसी लंड के संपर्क में आई है.” कहते हुए मैंने उसके कानों की लटकन (लोब) को अपने मुंह में भर लिया।
“आह …” नताशा ने एक मीठी आह भरी और अपने नितम्ब उचकाने लगी।
“वो इंजिनियर साहब के क्या हाल हैं उनसे बात हुई या नहीं?”
“उस साले चूतिये से मैंने यहाँ आने के बाद बात ही नहीं की.”
“अरे क्यों?”
“ओह … प्रेम … उसका नाम लेकर अब मेरा मूड खराब मत करो … प्लीज …”
“ओके डिअर!”
मुझे लगता है उस लंगूर के साथ इसने कोई रूमानी(रोमांटिक)या यादगार पल मुश्किल से ही बिताये होंगे।
अब मैंने अपने धक्कों की गति और भी ज्याद बढ़ा दी। नताशा तो बस आँखें बंद किए मीठी आहें ही भरती जा रही थी। उसने अपने नितम्ब उचकाने शुरू कर दिए थे और मेरी पीठ और कमर पर भी हाथ फिराने शुरू कर दिए थे।
अचानक उसने अपने पैर थोड़े ऊपर उठा लिए। अब तो मेरा लंड सीधे उसके गर्भाशय से टकराने लगा था। नताशा ने अपने दोनों हाथ मेरी पीठ पर कस लिए और मुझे लगा उसकी चूत भी अब संकोचन करने लगी है। उसका शरीर कुछ अकड़ने सा लगा है तो मैंने दो-तीन धक्के और जोर से लगा दिए।
“आऐईई ईईई … आह … मेरे … प्रेम … आह्ह …” उसके साथ ही नताशा ने एक जोर की किलकारी सी मारी और उसके दोनों पैर नीचे आ गिरे। वह जोर-जोर से हांफने सी लगी थी। मुझे लगा उसका ओर्गास्म हो गया है।
मैं थोड़ी देर के लिए रुक गया और धक्के लगाने भी बंद कर दिए। ये पल किसी भी स्त्री के लिए बहुत ही संवेदनशील होते हैं। इन पलों में उसे अपने प्रेमी से यही उम्मीद रहती है कि वह उसे अपनी बांहों में भरे रखे और चूमता जाए। मैंने उसके माथे, होंठों, गालों, कान और गले को चूमना चालू रखा।
“नताशा तुम बहुत खूबसूरत हो मेरी जान …”
“आह … मेरे प्रेम … मैं कब की प्यासी थी तुम्हारे इस प्रेम की। मेरा तो रोम रोम तरंगित होता जा रहा है और पूरा शरीर ही स्पंदन सा करने लगा है।”
मुझे लगा उसका ओर्गास्म हो गया है। उसने लम्बी-लम्बी साँसें लेते हुए अपनी आँखें बंद कर ली थी। मैंने उसे चूमना-चाटना जारी रखा। मैं उसके ऊपर लेटा हुआ धक्के भी लगा रहा था। मुझे लगा उसे मेरे शरीर के पूरे भार से उसे परेशानी हो रही होगी तो मैंने अपनी कोहनियों को बेड पर रखते हुए अपनी छाती को थोड़ा ऊपर उठा लिया।
मेरे ऐसा करने पर नताशा ने अपनी आँखें खोल ली और मेरी आँखों में झांकने लगी जैसे पूछ रही हो रुक क्यों गए?
फिर वह मेरे सीने पर हाथ फिराने लगी और फिर पहले तो मेरे बूब्स की घुंडी को पकड़कर मसला और फिर उसे चूमने लगी।
ओह … मैं भी कितना गाउदी हूँ। मुझे अपनी गलती का अहसास हुआ। मैं तो जल्दबाजी में उसके उरोजों को मसलना और चूमना ही भूल गया था।
अब मैंने अपने एक हाथ से उसके एक उरोज को पकड़कर मसलना चालू कर दिया और दूसरे उरोज के कंगूरे को अपने मुंह में भर लिया और चूसने लगा।
नताशा की तो एक किलकारी ही कमरे में गूँज उठी।
अब मैंने बारी बारे दोनों गुदाज़ उरोजों को मसलना और चूसना चालू कर दिया।
नताशा तो फिर से आह … ऊंह करती हुई फिर से अपने नितम्ब हिलाने लगी थी- आह … प्रेम … तुम सच में कामदेव हो … आह … उईइइइइइ!
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हॉट ऑफिस सेक्स स्टोरी जारी रहेगी.