यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
→ चुदाई की मस्ती के लिए बस यात्रा-4
मैंने हिम्मत दिखाते हुए कहा- मैं तुमको नंगी देखना चाहता हूँ और इसलिये तुम अपने कपड़े मेरे सामने उतारकर फ्रेश होने जाओ।
तब पल्लवी एक बार फिर मुझसे बोली- अब मुझे जाने दो, मेरा प्रेशर बहुत बढ़ता जा रहा है।
मैं अलग हो गया.
तभी पल्लवी ने मुस्कुरा कर कहा- तुम्ही मेरी लैग्गिंग को उतार दो।
बस इतना उसका कहना था कि मैंने झट से उसकी कमर पर अपनी उंगली फंसायी और उसकी लैग्गिंग को उतार दिया।
उसकी चिकनी चूत मेरे सामने थी, वो पलटी और अपने कूल्हों को पेन्डुलम की भाँति हिलाते-डुलाते बाथरूम में घुस गयी। इधर मैं उसकी लैग्गिंग को लेकर सूंघने लगा।
कुछ देर बाद पल्लवी फ्रेश होकर बाथरूम से बाहर आ गयी और अपने बैग से कुछ सामान निकालने के लिये झुकी। उसने जानबूझकर अपनी गांड मेरी तरफ की ताकि मैं उसकी गुलाबी चूत की कली और गांड के छेद को ठीक से देख सकूँ।
उसने अपना ब्रश निकाला और मेरी तरफ देखते हुए बोली- जल्दी से तुम भी फ्रेश हो लो।
मैं वैसे भी बेशर्म इंसान, वहीं उसी के सामने अपने कपड़े उतारे, वो मुझे देखते हुए ब्रश करती रही।
मैं भी फ्रेश होकर बाहर आ गया। मुझे मेरा ब्रश पकड़ाते हुए वो एक बार फिर बाथरूम में घुस गयी, मैं उसके पीछे-पीछे बाथरूम के बाहर ही खड़ा होकर उसे तब तक देखता रहा जब तक कि वो नहाकर बाहर नहीं आ गयी। मैं भी उसके साथ नाहना चाहता था लेकिन उसने मना कर दिया, बोली- यह सब सेक्सी मूवी या सेक्स किताब में ही ठीक है। मैं नहा रही हूँ उसके बाद तुम नहा लेना।
उसके नहाने के बाद जब मैं भी नहाकर बाहर निकला तब तक वो बिल्कुल तैयार हो चुकी थी। पीले रंग के कुर्ते-पायजामे के साथ हल्के मेकअप में बहुत प्यारी लग रही थी। मेरी तरफ देखते हुए बोली- कितने गन्दे हो, कम से कम झांट बना कर रखा करो।
इससे पहले मैं कुछ कहता, दरवाजे पर बेल बजी।
पल्लवी ने मुझे जल्दी से कपड़े पहनने को कहा और बताया कि उसने ब्रेकफास्ट का ऑर्डर दे दिया है, शायद वेटर होगा। उसकी बात सुनते ही मैं जल्दी से कपड़े लेकर बाथरूम में घुस गया। मुझे दरवाजा खुलने और बन्द होने की आवाज आयी। मैंने झांककर देखा तो पल्लवी चाय वगैरह निकाल रही थी।
मैं चड्डी और बनियान में ही बाहर आ गया। मेरे दिमाग में एक प्रश्न था जो हर हालत में मैं पल्लवी से पूछना चाह रहा था। मैंने घड़ी की तरफ देखा जो अभी भी बता रही थी कि अभी कम से कम आधा घंटा है।
मैंने चाय की चुस्की लेते हुए पल्लवी से पूछ ही लिया- क्यों … रात को मजा आया था?
मेरे इस प्रश्न को सुनते ही वो शर्मा गयी और उसके गाल लाल-लाल हो गये।
मैंने पल्लवी की ठुड्डी को उठाया और उसकी आँखों में आँख डालकर बोला- सही बताना, तुमने जानबूझ कर बस वाला प्रोग्राम बनाया था?
जवाब न देकर उसने एक बार फिर से अपने सर को झुका लिया।
मैंने उसके हाथों को अपने हाथ में लेते हुए कहा- तुम्हारे लिये मेरा यह प्रश्न बेवकूफी वाला हो सकता है, लेकिन मुझे यह बताओ, कि मेरे अलावा ऑफिस में एक से एक स्मार्ट लोग है और लगभग तुम्हारी उम्र के हैं, मेरे में ऐसा क्या दिखा कि तुम मुझ पर मर मिटी?
मेरे इस प्रश्न के जवाब में पल्लवी बोली- यह बताओ ऑफिस के लिये कौन सी ड्रेस पहनूँ जिससे मैं सबसे ज्यादा सेक्सी दिखूँ।
“मुझे तो तुम इस ड्रेस में ही सबसे ज्यादा खूबसूरत नजर आ रही हो और ऑफिस के लिये तो यही अच्छा है।”
“बस ऐसी ही कुछ बातें हैं जो तुमको दूसरो से अलग करती हैं और इस वजह से जो हरकत मैंने की है, उसका कोई पछतावा नहीं है।
बात करते करते ऑफिस जाने का टाईम हो गया। पहले दिन मीटिंग काफी लम्बी चली और हम लोग प्रोड्क्ट को लेकर अपनी अपनी राय दे रहे थे। हलाँकि इस दरम्यान हम दोनों को काम की वजह से एक-दूसरे का हाल-चाल लेने की फुर्सत ही नहीं मिली।
रात करीब 10 बजे मीटिंग ओवर हुयी। खाना वगैरह ऑफिस से ही था और जिस होटल में हम ठहरे थे, वो भी ऑफिस के अरेंजमेन्ट में था, तो वाकिंग डिस्टेन्स में ही था। इसलिये हमने पैदल ही होटल जाने का फैसला लिया।
पल्लवी कुछ ज्यादा थकी हुयी थी, रास्ते में बोली- यार, पीठ बहुत दर्द कर रही है।
इसी तरह की बातें करते हुए होटल पहुंच गये।
कमरे में पहुंचते ही पल्लवी अपने पूरे कपड़े उतारते हुए बोली- मुझे रात में नंगी ही सोना पसंद है, तुम्हें कोई प्रॉबल्म तो नहीं है ना?
और बिना मेरी तरफ देखे बेड पर पेट के बल लेट गयी।
मैं जानता था कि जिस लड़की ने मेरा साथ पाने के लिये अपनी पूरी यात्रा मेरे साथ बस में की हो तो मैं नहीं चाहता था कि वो मेरे सामने शर्माने का ढोंग करे। इसलिये मैंने भी अपने पूरे कपड़े उतारे और पल्लवी के ऊपर लेट गया. थोड़ी देर तक तो वो मेरा भार बर्दाश्त करती रही, फिर मुझसे अलग होने के लिये बोली.
उसके बाद वो मुझसे चिपक गयी, उसके नंगे जिस्म की गर्मी का अहसास मुझे पागल बनाए जा रहा था। थकान इतनी थी कि पल्लवी की तरफ से कोई इशारा नहीं मिल रहा था और मुझे नींद नहीं आ रही थी। लंड महराज थे कि टाईट पर टाईट हुए जा रहे थे। थोड़ी ही देर बाद पल्लवी मुझसे एक बार फिर अलग होकर पेट के बल लेट गयी। मैं अपने लंड को मसल रहा था और सोती हुयी पल्लवी को देख रहा था।
मन माना नहीं तो मेरे हाथ उसकी पीठ को सहलाते हुए उसकी गांड पर पहुँच गये और उंगली उसकी दरार में छेद को ढूंढकर उसके अन्दर जाने के लिये बेताब हो रही थी। बामुश्किल अभी उंगली का कुछ सिरा ही अन्दर घुसा था कि आउच की आवाज के साथ वो उठी और मेरे तरफ देखते हुए बोली- क्या बात है नींद नहीं आ रही है?
“हाँ, नींद तो नहीं आ रही है। लंड को मनाने की कोशिश कर रहा हूँ लेकिन वो छेद के अन्दर जाना चाहता है।”
पता नहीं पल्लवी ने क्या सोचा, बोली- नींद तो आ रही है, लेकिन तुम्हारी बैचेनी का कारण भी मैं ही हूँ, इसलिये तुम अपनी बैचेनी दूर कर सकते हो, लेकिन सताना नहीं, केवल तुम्हारे लंड महराज को अन्दर जाने की इजाजत दे रही हूँ इसके अलावा कुछ भी नहीं करना।
मैंने भी ज्यादा देर करना मुनासिब नहीं समझा और जैसे ही पल्लवी ने अपनी टांगें फैलाई, मैंने तुरन्त ही लंड महराज को मुहाने के दरवाजे पर खड़ा कर दिया, दरवाजा खोलते हुए लंड महाराज अन्दर दाखिल हो गये, बाकी का काम मुझे मेरी कमर हिला कर करना था।
पल्लवी ने भी अपनी टांगें मेरी कमर पर फंसा दी। धक्कम-पेल का काम शुरू हो चुका था, चक्की चल रही थी, चूत को धोंकनी की तरह चोद रही थी। मैंने भी बांहों का घेरा बना कर पल्लवी को अपने सीने में दबोच लिया था। लंड और चूत का खेल एक-दूसरे को परास्त करने का चल रहा था। अन्त में हार लंड महराज की ही हुयी।
एक बार फिर मैंने पल्लवी को ‘अपना माल किधर निकालना है’ पूछा तो वो अन्दर ही छोड़ने को बोली।
मैंने हँसते हुए कहा- क्या बात है, कुंवारी माँ ही बनना चाहती हो?
वह बोली- चिन्ता मत करो, कुंवारी माँ नहीं बनूँगी।
बात करते करते मेरा माल उसकी चूत के अन्दर ही गिरने लगा और फिर पल्लवी के वीर्य को समाहित करते हुए उसकी चूत से बाहर बहने लगा और मेरा लंड भी ढीला होकर बाहर आ गया. मैं पल्लवी के ऊपर से उतरकर उसके बगल में आ गया।
“एक बार इस अमृत को पीकर देखो, अच्छा लगेगा।” मैंने पल्लवी को आग्रह किया.
पल्लवी ने सख्त विरोध करते हुए करवट बदल ली। मैं उसे मनाने के लिये उसकी पीठ से चिपक गया और उसके निप्पल को दबाने लगा। अब मैंने पल्लवी को गर्दन के नीचे से अपने हाथ डाले और उसकी मम्मे को सहलाते हुए निप्पल को मसल रहा था.
थोड़ी ही देर में पल्लवी मुझसे और चिपक गयी और मेरे लंड को अपनी मुट्ठी में लेकर दबाने लगी, साथ ही साथ अपने कूल्हे से रगड़ने लगी.
अब तक मेरा दूसरा हाथ उसकी चूत पर पहुँच चुका था और कभी उसकी फांकों के बीच घुस जाता तो कभी भगनासा तो कभी उसके अनार दाने को दबोच लेता। उसकी चूत का गीलापन मेरे हथेली में लग रहा था।
पल्लवी भी अब तक जोश में आ चुकी थी और मेरे सुपारे पर अपने नाखून से खरोचने के साथ ही साथ अपनी टांगें मेरे टांगों के ऊपर ला दी। इससे उसकी चूत खुलकर मेरे हथेली में थी, मैं जैसा चाह रहा था, वैसा ही कर रहा था।
काफी देर तक ऐसा ही चला।
एक बार पल्लवी ने फिर से करवट बदली और अब मेरे लंड को अपनी चूत पर रगड़ने लगी, इधर मैं उसके गांड सहलाते-सहलाते अपनी उंगली छेद के अन्दर घुसेड़ दी.
वो चिहुँक उठी और बोली- क्या यार, तुम बार-बार मेरी गांड के अन्दर उंगली कर रहे हो?
“क्या बताऊँ यार, तुम्हारी गांड मुझे इतनी प्यारी लग रही है कि इसमें उंगली की जगह लंड डालकर पड़ा रहूं।”
“नहीं, ऐसा सोचना भी नहीं।”
“सोचूँगा तो मैं जरूर … लेकिन तुम्हारी मर्जी के बिना इसमें नहीं डालूंगा।”
“गुड …” कहकर वो लंड को और तेज-तेज अपनी बुर से रगड़ रही थी, ऐसा लग रहा था कि वो उसी तरह लंड को अन्दर लेना चाह रही थी, लेकिन इस आसन में लंड का चूत के अन्दर जाना मुश्किल हो रहा था, इसलिये इस बार मैंने खुद ही पल्लवी के ऊपर चढ़ाई कर दी और लंड को उसकी चूत में डालकर बैठ गया.
अब तक मेरी हथेली जो उसके वीर्य से गीली हो चुकी थी उसके मम्मे पर बारी-बारी मसला और निप्पल को मुंह के अन्दर भर लिया। लेकिन साला यह लंड अन्दर जा कर थोड़ी देर शांत तो रह नहीं सकता, कुलबुलाने लगा, हार कर मुझे फिर धक्केबाजी करनी पड़ी।
इस बार धक्कमपेल करते हुए मैंने पल्लवी से पूछ ही लिया- अबकि मेरा माल अपनी चूत में ही लोगी या मुंह के अन्दर?
“मुझे पीना अच्छा नहीं लगता।”
“अब तुम नखरे चोद रही हो!” मैं धक्के रोकता हुआ बोल पड़ा- जो कहता हूँ, उसे तुम मना कर देती हो। गांड में लंड नहीं पेलना, लंड का माल नहीं पीना। यार चुदाई का मजा लेना हो तो खुलकर लो।
“मुझे उल्टी आती है। रवि ने भी मेरे साथ यही करने की कोशिश की, मैंने मना कर दिया तो उसने जबरदस्ती मेरे मुंह में अपना लंड ठूंस दिया और अपना वीर्य मेरे मुंह के अन्दर भर दिया। तीन दिन तक मैं परेशान रही हूँ और यही कारण है तुमसे पहले फिर मैंने किसी लड़के की तरफ देखा तक नहीं, लेकिन तुम मुझे कुछ अलग दिखे, इसलिये मैंने एक बार फिर अपने जिस्म को तुम्हारे लिये नंगा किया। इन दो बातों के अलावा तुम जैसे चाहो मैं वैसा ही करूँगी, अगर तुम मुझे पूरे दिन अपना बांहो में नंगी रखोगे तो भी मैं रह लूँगी लेकिन यह दो काम फिर करने के लिये मत कहना।”
उसकी बात सुनकर मैंने उसके गाल की पप्पी ली और चुदाई शुरू कर दी। थोड़ी ही देर के बाद लंड महराज ने अपना माल उसकी चूत के अन्दर छोड़ना शुरू कर दिया। उसके बाद फिर हम दोनों एक दूसरे से चिपक कर सो गये।
कहानी जारी रहेगी.
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