यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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सुबह नींद समय पर ही खुल गयी, पल्लवी नंगी ही उठी और बाथरूम के अन्दर घुस गयी और मैं पलंग पर लेटकर उसका इंतजार करता रहा।
पंद्रह मिनट के बाद वो फारिग हो कर आयी और मुझसे बोली- जाओ जल्दी से तुम भी फारिग हो लो, तुम्हारी झांट बना दूँ। तुम्हारा लंड जंगल के बीच अच्छा नहीं लगता।
मेरे मन में अंकुर फूटने लगे, मैं जल्दी गया और फारिग होकर पलंग पर आ कर लेट गया।
पल्लवी अभी भी नंगी थी और अपने बैग के ऊपर झुकी हुयी थी। उसके गोल-गोल कूल्हे और कूल्हे के नीचे जांघों के बीच छिपी हुयी बादामी रंग की चूत मुझे बड़ी आकर्षित कर रही थी। मैंने आव देखा न ताव, झट से उठा और उसको पीछे से जाकर पकड़ लिया।
उसने मुझे तुरन्त धक्का दिया और बोली- जाकर चुपचाप लेट जाओ, मैं कहीं भागी नहीं जा रही हूँ।
मैं फिर मन मसोस कर पलंग पर आकर लेट गया।
वो अपना किट लेकर आयी, मेरी गांड के नीचे एक अपने बैग से निकाली हुयी चादर बिछाई। कैंची से मेरे जंगल को जी भरकर कतरा। बीच-बीच में मेरे नाजुक जगह पर कैंची चुभ रही थी। थोड़ी ही देर में उसने मेरे झांटों से भरी हुयी जगह को एकदम से साफ कर दिया। उसके बाद वीट निकाली और अच्छे से एक-एक जगह उसने क्रीम लगा दी।
उसके बाद उसने अपना ब्रश निकाला, पेस्ट लगाया और मोबाईल में एक गाना लगाकर पीठ मेरी तरफ करके, नाचने की मुद्रा में आ गयी, कभी वो अपनी एक पंजे के इस्तेमाल उचकने के लिये करती तो कभी दूसरे पंजे का, इससे उसकी गांड ऊपर नीचे करती, फिर उसी मुद्रा में पीछे मेरी तरफ तेज चल कर आती और आगे की तरफ झुक जाती, इससे उसकी गांड मेरी तरफ उचक जाती, लेकिन जैसे ही मैं उसको टच करने जाता वो तेजी से आगे बढ़ जाती और फिर मेरी तरफ अपने चेहरे को करके पीठ के बल पीछे की तरफ झुकती, इसके उसकी बादामी चूत और खुलकर मुझे न्यौता देती।
इस तरह वो तब तक करती रही, जब तक गाना खत्म नहीं हो गया। उसके बाद वो ब्रश करके आयी और अपनी एक पैन्टी निकाली और मेरे लंड के आस पास की जगह को अच्छे से साफ करके झुकते हुए मेरे सुपारे को एक गहरा चुम्बन दिया।
मैंने झट से पल्लवी को पकड़ा और अपनी तरफ खींचकर उसके गुलाबी होंठों पर एक तगड़ा वाला चुम्बन रसीद कर दिया और फिर उसको अपने नीचे लेते हुए उसके होंठों को चूसने लगा और साथ ही साथ उसके कानों को, नाक को काटते हुए उसके दाने को बारी-बारी से मुंह में लेकर चूस रहा था।
उधर पल्लवी भी अपने नाखून को मेरी पीठ में गड़ा रही थी। इस तरह उसके पेट को चूमते हुए नीचे उसकी चूत की तरफ आ गया, इससे पहले मैं उसकी चूत को चूमता या चाटता उसने अपने दोनों हाथों से चूत को कस कर ढक लिया। मैं भी अब इस जिद में अड़ा था कि चूत को हल्का सा चाट कर रहूँगा। मैंने उसके दोनों हाथ को पकड़ कर अलग किया और चूत को चूमते हुए मुहाने की तरफ जाकर जीभ वहां पर लगा दी।
पल्लवी अपनी ताकत का भरपूर इस्तेमाल करके मेरे सिर को अपनी तरफ खींच रही थी, लेकिन मेरा अपना काम हो चुका था, उसका प्री-कम का स्वाद मेरे मुंह में आ चुका था। मैं एक बार फिर पल्लवी की तरफ गया और बोला- मैंने तुम्हें मेरे लंड को चूसने के लिये नहीं बोला लेकिन तुम्हारी चूत पर मेरा हक है, मुझे जो मजा चाहिये करने दो।
इससे पहले मेरी बात पूरी होती, इस बार उसने मुझे झटके से नीचे पटक दिया और मेरे ऊपर चढ़ गयी और मेरे निप्पल को अपने दांतों से काटने लगी. जिस तरह से मैंने पल्लवी के साथ किया, ठीक उसी तरह पल्लवी मेरे साथ कर रही थी। वो मजे से मेरे दानों काट रही थी और जीभ से खेल रही थी। मेरे निप्पल कड़े हो चले थे और तो और झुरझुरी तो ऐसी हो रही थी कि सुपारे में एक मीठा सा मादक अहसास हो रहा था।
मैं अपनी भावनाओं पर काबू रखना चाहता था लेकिन हो काबू हो नहीं पा रहा था, मैंने कस कर उसके चूचुक को दबाना शुरू कर दिया और निप्पल को जोर-जोर से मलने लगा. इसका असर यह हुआ कि वो मेरे निप्पल चूसना छोड़कर नीचे की तरफ सरकने लगी और नाभि के आस-पास के एरिया को गीला करते हुए नीचे की तरफ बढ़ चली. मुझे लगा कि वो मेरे लंड को अपने मुँह में लेगी, इस आनन्दमयी अहसास के साथ मैंने अपनी आँखें बन्द कर ली.
पल्लवी जांघ के आस-पास के एरिया को गीला करने लगी, मैं अभी भी उस आनन्द का लुत्फ़ इस बात का अहसास करके उठा रहा था कि अब मेरे लंड महाराज उसके मुंह के अन्दर जायेंगे.
लेकिन यह क्या … मुझे ऐसा क्यों लगने लगा कि मेरा लंड किसी गर्म परत से रगड़ता हुआ किसी कुंए रूपी खोल के अन्दर जा रहा है। मेरी आँखें खुल गयी और देखा पल्लवी ने मेरे पूरे लंड को अपनी चूत के अन्दर ले लिया और मुझसे चिपक कर रूक गयी।
दो मिनट तक वो ऐसे ही चिपकी रही। उसके बाद उसने अपनी कमर को हिलाना शुरू कर दिया। धीरे-धीरे वो अपनी स्पीड तेज करती जा रही थी, मैंने उसको पलटना चाहा तो उसने मुझे इशारे से मना कर दिया। यही कोई 3-4 मिनट वो मेरे ऊपर उछली कूदी होगी और फिर धराशायी हो गयी. इधर मुझे भी लगने लगा था कि मेरा माल निकलने वाला है, मैंने नीचे से धक्का मारना शुरू कर दिया और कुछ ही पल के बाद मेरा माल उसकी चूत के अन्दर एक पिचकारी की तरह छुटने लगा।
हम दोनों निढाल हो चुके थे। फिर हम दोनों एक-दूसरे से चिपक कर हाफ करवट में आ गये और पल्लवी ने अपनी एक टांग मेरे ऊपर रख दी, इससे उसका गीलापन मुझसे चिपकने लगा और खराब आदत के अनुसार पल्लवी के चूतड़ को सहलाते हुए उसकी गुदा के अन्दर उंगली करने लगा.
इस बार पल्लवी कुछ नहीं बोली।
थोड़ी देर बाद अलसाई सी पल्लवी उठी और बोली- मैं नहाने जा रही हूँ उसके बाद तुम नहा लेना.
इतना कहकर वो बाथरूम में घुस गयी और मैं उसकी इस ताजी याद को लेकर सपने में खो गया।
कुछ देर बाद पल्लवी आयी और मुझे झकझोरते हुए उठाने लगी। मैं उठ कर बैठ गया.
वो मुझसे बोली- जाओ नहा लो नहीं तो ऑफिस की देरी हो जायेगी।
मैंने बिस्तर छोड़ दिया।
इसी पल उसने मुझे एक पल के लिये और निहारा और बोली- देखा … तुम्हारे राजा को जंगल से निकाल कर बाहर लाई हूँ मैं, तुमने तो इतने खूबसूरत राजा को जंगल में छुपा कर रखा हुआ था। उसकी इस बात पर मुझे बड़ा प्यार आया, मैंने उसे अपने से चिपका लिया।
वो मुझसे अपने आप को छुड़ाते हुए बोली- जल्दी जाओ, नहीं तो देर हो जायेगी। तब तक मैं नाश्ते के लिये बोल देती हूँ।
मैं जल्दी से गया और नहा धोकर तैयार होकर आ गया। आज भी गुलाबी सूट के साथ वो बहुत खूबसूरत नजर आ रही थी। मैं अपने बैग से कपड़े निकालने जा ही रहा था तो वो बोली- बेड पर तुम्हारे कपड़े निकाल कर रख दिये हैं।
उसकी इस अदा से मुझे उस पर और प्यार आ रहा था।
उसके बाद हम दोनों ने नाश्ता किया और ऑफिस की तरफ निकल पड़े।
दोस्तो, मुझे लगा कि मेरी और पल्लवी की कहानी इसी तरह चलेगी, लेकिन ऊपर वाले को कुछ और मंजूर था।
खैर, मैं और पल्लवी ऑफिस पहुँच कर मीटिंग हॉल के अन्दर अपनी अपनी सीट पर बैठ गये। आज मेरी भी प्रेजेन्टेशन थी और मैं कुछ नर्वस भी था।
तभी एक पतली-दुबली लड़की मेरे सीट के बगल वाली सीट पर बैठते हुए मुझे हैलो कहा। वो जींस और टॉप में थी। टॉप इतना छोटा था कि उसकी नाभि पूरी नुमाया हो रही थी।
मेरे प्रेजेन्टेशन की बारी आयी, सभी ने मेरी बात का समर्थन किया सिवाय उस लड़की के … जिसका नाम मैं अभी तक नहीं जानता था।
इसी बीच लंच का टाईम हो गया, सभी लोग धीरे-धीरे हॉल से निकल गये। मुझे और उस लड़की को सर ने रोक लिया और प्रेजेन्टेशन को लेकर डिस्कशन होने लगी। सर के मुँह से ही सुना कि उस लड़की का नाम रीतिका था।
खैर काफी देर तक डिस्कशन होता रहा पर कोई निष्कर्ष नहीं निकला। अन्त में सर बोले कि कल इस डिस्क्शन पर एक बार फिर बात होगी और आप लोग अच्छे से प्रिपेयर होकर आना क्योंकि कल लास्ट डे है और मुझे रिजल्ट चाहिए। अभी तुम लोग जा सकते हो और कल तुम दोनों अपनी-अपनी बातें रखने के लिये तैयार रहना.
इतना कहकर सर बाहर चले गये.
तभी रीतिका ने मेरा हाथ पकड़ा और बोली- मुझे आपसे एक काम है, आप मेरे साथ आ रहे हैं।
तभी एक बार फिर हॉल में सभी लोग इकट्ठे होने लगे। तभी मीटिंग ओवर होने की तथा दूसरे दिन किस प्लान पर बात होनी है उसकी न्यूज आयी। सभी वापिस जाने लगे.
एक बार फिर रीतिका बोली- मुझे आपका 10 मिनट का समय चाहिये।
मैंने पल्लवी को होटल में जाने को बोला. पल्लवी ने हम दोनों के देखा और बिना कोई प्रश्न किये हुए चली गयी।
अब हम दोनों ही बचे थे, एक सोफे पर बैठते हुए रीतिका बोली- मिस्टर सक्सेना, मुझे आपसे यौन सुख चाहिए.
मैं सकपका गया कि एक अजनबी लड़की इतने खुले रूप में कैसे बोल सकती है। मेरे तो हाथ पैर फूल गये, यह क्या माजरा है, मैं उसकी तरफ प्रश्नसूचक दृष्टि से देखने लगा.
तो वो बोली- जो आप सुन रहे हैं, वो सही है. परसों पूरी रात आपकी वजह से मैं सो नहीं पायी और कल रात की … और आज सुबह की भी … आपकी और पल्लवी की चुदाई के बारे में सोच कर मैं परेशान रही और अपनी चूत के अन्दर उंगली डालकर काम चलाने में मजबूर हुई. इसलिये अब आप ही मुझे यौन सुख प्रदान करेंगे.
कहते हुए वो मेरे लंड को सहलाने लगी।
“लेकिन पल्लवी और मेरे बीच में ऐसा कुछ भी नहीं है।”
मेरे इतना बोलते ही उसने मेरे लंड को कस कर दबा दिया और बोली- मुझसे झूठ बोलने से कोई फायदा नहीं, तुम्हारे और पल्लवी का खेल मैंने बस में देखा है। बस मैंने शोर नहीं मचाया और इसी बात का मुझे ईनाम चाहिए। दूसरी बात तुम्हारे अगल-बगल के रूम में पल्लवी और मैं हूँ लेकिन पल्लवी तुम्हारे रूम में ही है।
फिर उसने अपना परिचय दिया कि वो बनारस से है और जिस बस में मैं और पल्लवी सफर कर रहे थे उसी बस मैं वो बनारस से आयी थी।
बात खत्म करते हुए उसने अपने हाथ को मेरे लंड से हटाया और अपनी जीभ लगाकर हथेली चाटने लगी।
मैंने झट से पल्लवी को फोन लगाया और बोला- मैं दो घंटे के बाद वापस आऊँगा, तुम तब तक आराम कर लो।
उसने ‘ठीक है’ कहा और फोन काट दिया।
कहानी जारी रहेगी.
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