यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
← चुदाई की मस्ती के लिए बस यात्रा-4
→ चुदाई की मस्ती के लिए बस यात्रा-6
अब मैं और रीतिका होटल के तरफ बढ़ चले, रीतिका के चेहरे पर जीत साफ झलक रही थी। मैं सबकी नजरों से बचता हुआ रीतिका के कमरे में पहुंचा, रीतिका कमरे को बन्द करते ही मुझसे लिपट गयी और मेरे होंठों को चूसने लगी. वो बहुत प्यासी जान पड़ रही थी, मेरे होंठों को काट रही थी।
मैंने अपने बायें हाथ से उसकी कमर को पकड़ा और मेरा दाहिना हाथ उसकी चूची और चूत दोनों को ही कपड़े के ऊपर से मसल रहा था। फिर वो मुझसे अलग हुयी और मेरा हाथ पकड़ कर बेड की तरफ बढ़ने लगी. उसकी इस समय आँखें लाल सुर्ख सी हो रही थी।
वो बेड पर बैठ गयी और मेरी पैन्ट और चड्डी को उतार दिया, साथ ही मैंने अपनी कमीज को भी अपने जिस्म से अलग कर दिया। मैं एकदम से उसके सामने नंगा था।
उसने अपनी दोनों हथेलियों के बीच मेरे लंड को पकड़ा और एक पप्पी ले ली। उसके बाद लंड के खोल को खोलकर मेरे लाल हो चुके सुपारे को अंगूठे से सहला रही थी, इस कारण हल्का-हल्का सा रेशा निकलने लगा था. रीतिका उस रेशे को अपने अंगूठे और उंगली के बीच उस तरह से मसल रही थी जैसे कि चाशनी बनाते समय चाशनी को उंगली के बीच लेकर देखा जाता है कि चाशनी अच्छे से पकी या नहीं … और फिर उंगली को खोल कर उसके तार को देखा जाता है, ठीक उसी तरह रीतिका भी कर रही थी।
दो-तीन बार उसने सुपारे में लगे हुए रेशे को लिया और अपने चटखारे ले-लेकर वो अपनी उंगली चाट रही थी।
वो यही नहीं रूकी, वो अपनी जीभ सीधे सुपारे की टिप पर चलाने लगी, उस मुख्य जगह पर मुझे कुछ मीठी-मीठी सी चुनचुनाहट सी हो रही थी, उसने उन सभी को लंड चटाई के मामले में पीछे छोड़ दिया जो लंड को मुंह में भर लेती लेकिन सुपारे पर जीभ ज्यादा नहीं चलाती थी, लेकिन रीतिका ने लंड को अपने मुंह में नहीं लिया, बस वो लगातार मेरे सुपारे को चाटे जा रही थी।
अगर थोड़ी देर वो इसी तरह से मेरे सुपारे पर जीभ चलाती रही तो निश्चित रूप से मेरा माल निकल जाता। लेकिन अचानक उसने मुझे घुमा दिया और मेरे एक-एक कूल्हे पर जोर की चपत लगायी और उसके बाद दोनों कूल्हे को जोर दांत से काट लिया।
मुझे इस समय सेक्स में वो मजा मिल रहा था जिसकी मुझे पल्लवी से चाहत थी। लेकिन मैं पल्लवी के यहां दोष नहीं दूंगा, क्योंकि उसकी सेक्स के समय अपनी समझ है और रीतिका की अपनी। लेकिन मुझे नहीं मालूम था कि रीतिका का जंगलीपना कहां पर खत्म होगा। इसी जंगलीपन को आगे बढ़ाते हुए रीतिका ने मेरे कूल्हे को कस कर पकड़ा और विपरीत दिशा में खींचने लगी। तभी मुझे मेरी गांड के छेद में कुछ गीला सा लगा, शायद उसने अपनी थूक से उस हिस्से को गीला कर दिया था,
अभी मैं इस अहसास से बाहर आ ही नहीं पाया था कि मेरी गांड में उसने जीभ चलानी शुरू कर दी। शायद उसकी जीभ गांड के अन्दर अच्छे से जा नहीं रही थी, तो उसने मेरी कमर पर अपनी हथेली से दबाव बनाया जिसका मतलब था कि मैं आगे की ओर कुत्ते की तरह झुकूँ और मैंने वही किया।
रीतिका अब मेरे उस छेद को गीला करने में लगी हुयी थी। एक चीज मैंने भी महसूस की कि एक मीठा सा दर्द का अहसास आपको बड़ा मजा देता है, जब कोई इस तरह से आपके साथ ओरल सेक्स करता हो, एक अलग सी चुभन का अहसास होता है और ऐसा लगता है कि आपका वो हिस्सा कचकचा कर काटा जाये।
करीब 3-4 मिनट तक वो ऐसे ही लगातार चाटती रही। जब मुझे बर्दाश्त नहीं हुआ तो मैं खड़ा हो गया। वो मेरे आगे की तरफ आयी और बोली- क्या हुआ? अपनी गांड चटवाने में मजा नहीं आ रहा है क्या?
मैंने कहा- नहीं, बहुत मजा आ रहा है।
“तब फिर?” वो बोली.
फिर खुद ही अपने सवाल का जवाब देती हुई बोली- इसका मतलब तुम शर्मा रहे हो?
मैंने कहा- नहीं, ऐसी कोई बात नहीं है।
उसने एक बार फिर मुझसे मेरे न शर्माने का कम्फर्म किया। उसके बाद उसने बारी-बारी से टॉप, ब्रा, जींस उतार दिया। अन्त में उसने अपनी पैन्टी उतारी और मुझे गीले हिस्से को दिखाते हुए बोली- ये तुम्हारी वजह से गीली हुई है!
कहकर उसने उस गीले हिस्से से ही अपनी चूत को अच्छे से साफ किया और मेरे तरफ अपने पैन्टी वाले हाथ को आगे बढ़ाते हुए बोली- लो, मेरे अन्दर से निकले हुए रस का मजा लो।
मैंने बिना किसी झिझक उससे पैन्टी ली और नाक के पास ले जाकर जोर से सांस अन्दर की तरफ खींचा ताकि उसके योनि रस की गंध का मजा ले लूं। एक ऐसी गंध उसमें से आ रही थी जिससे मैं मदहोश हुआ जा रहा था।
जब मैंने उसकी पैन्टी से आ रही गंध का भरपूर मजा ले लिया तब मैंने उसकी पैन्टी पर लगी हुयी मलाई चाटने लगा।
इस पर वो बोली- वाओ मेरे राजा, तुम तो एकदम मस्त हो!
इतना कहकर वो पंलग का टेक लेकर घोड़ी पोजिशन में आ गयी और अपने एक हाथ से अपने कूल्हे को मसलते हुए अपनी उंगली को गांड के अंदर डालते हुए बोली- जानू, अपनी इस जान पर रहम करो।
मैं उसकी बात को समझ गया और उसके हाथ को कूल्हे से हटा कर उसके दोनों छेदों को बारी-बारी गीला करने लगा। रीतिका के मुंह से आह ओह आउच जैसे शब्दो को सुनकर मेरा भी हौसला लगातार बढ़ता जा रहा था। मेरे थूक से उसकी चूत और गांड के छेद काफी गीले हो चुके थे, बस अब बारी थी लंड को उसके अन्दर डालने की और यही काम मैंने किया।
चूंकि उसकी चूत और गांड के छेद पहले से ही काफी खुले हुये थे इसलिये मुझे उन छेदों के अन्दर लंड डालने में कोई दिक्कत नहीं आयी। मैं अपनी ताकत के अनुसार उसके दोनों छेदों को मथ रहा था और रीतिका अपनी पूरी ताकत से चिल्ला कर माहौल को उन्माद युक्त बना रही थी।
फिर एक समय ऐसा आया कि उसके चूत के रस से मेरा लंड गीला होने लगा और साथ ही साथ मेरे लंड पर भी दबाव पड़ने लगा था। मैंने अपना लंड बाहर निकाला और रीतिका को अपनी तरफ किया, उसने तुरन्त ही अपने मुंह में मेरा लंड ले लिया, दो-चार धक्कों के बाद मेरा माल उसके मुंह के अन्दर था। उसने अच्छे से मेरे माल को गटका और लंड और उसके आस-पास की जगह को चाटकर अच्छे से साफ किया.
और फिर उसने मुझे पलंग पर पटक दिया और मेरे मुंह पर चढ़कर बैठ गयी और अपनी चूत को मेरे होंठों से रगड़ने लगी और जब तक मैंने उसकी क्रीम को चाटकर एकदम से साफ नहीं कर दिया तब तक वो हटी नहीं।
उसके हटने पर मैं उठा और पास पड़े हुए तौलिये से अपने शरीर को पौंछा और कपड़े पहन कर अपने कमरे में आकर तुरन्त नहाने के लिये बाथरूम में घुस गया क्योंकि मुझे पता था कि गलती से भी उस हालत में मैं पल्लवी के पास जाता तो वो उस गंध से पकड़ लेती.
वो मुझे अपना समझते हुए मेरे साथ मेरे रूम को शेयर कर रही थी, वो मेरी इस हरकत के बारे में जानकर दुखी होई, मैं उसे किसी अवस्था में दुखी नहीं देखना चाहता था।
पल्लवी भी मेरे पीछे-पीछे अन्दर आ गयी थी। यह तो अच्छा हुआ कि मैं शॉवर ले चुका था और साबुन लगाकर अपने जिस्म को रगड़ रहा था कि पल्लवी ने मुझे पीछे से दबोच लिया और मुझसे बोली- उसके साथ मजा आया?
पल्लवी की यह बात सुनकर अवाक रह गया।
मैं इससे पहले अपनी सफाई में कुछ कहता, वो खुद ही बोली- तुम्हारा लंड ही ऐसा है कि कोई भी ले ले तो दीवाना हो जाये।
“नहीं नहीं … ऐसी कोई बात नहीं, बस उसका कुछ काम था, उसे ही निपटा रहा था.”
“अच्छा बताओ कि क्या काम था?”
उसकी बात सुनकर मैं हड़बड़ा गया।
तभी फिर वो बोली- घबराओ नहीं, लेकिन मैं ऐसा कुछ भी नहीं करूँगी जो मुझे पसंद नहीं है।
मैंने उसके होंठ को चूमा और बोला- मैं तुमसे ऐसा कुछ कहूँगा नहीं जो तुम्हें पसंद नहीं है.
कहते हुए मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रखे और उसके रसीले होंठों का आनन्द लेने लगा।
मैं तो नंगा खड़ा था लेकिन पल्लवी के कपड़े भीग गये थे.
लेकिन मुझे पता नहीं था कि कुछ देर बाद एक नया आश्चर्य मेरा इंतजार कर रहा है।
जब पल्लवी के कपड़े बिल्कुल भीग गये तो वो मुझसे अलग हुयी और बोली- मैं कपड़े बदलने जा रही हूँ, तुमको जब मैं आवाज दूं, तब ही बाहर आना!
इतना कहते हुए उसने मुझे आंख मारी और बाहर चली गयी।
कोई पांच मिनट के बाद पल्लवी के कपड़े को थामे हुए एक हाथ अन्दर आया और बोली- शरद ये कपड़े अन्दर रख कर तुम बाहर आ जाओ।
जैसे ही मैं बाहर आया, मेरे मुँह से केवल ‘वाआ…आओ…’ ही निकला।
क्या लग रही थी वो स्कर्ट और शर्ट में … इतनी छोटी स्कर्ट पहने हुए थी कि मैं उसकी जांघों के बीच की ढकी हुयी चूत को साफ महसूस कर सकता था.
जलवा यहीं नहीं खत्म हुआ, नाभि के काफी ऊपर उसने कमीज के बटन को खोल कर गांठ बांध रखी थी और ऊपर के बटन को इस तरह से खोल रखा था कि दोनों चूचियों के बीच की घाटी दिखायी पड़ रही थी। साथ ही उसने अपने होंठों पर गहरी लाल रंग की लिपस्टिक लगा रखी थी और आंखों में काजल और बालों को अध खुला रख छोड़ा था।
मेरा लंड तो अपने आप ही टाईट हो चुका था।
पल्लवी इतने में ही नहीं रूकी, वह अपनी हथेलियों को अपनी जांघों पर रख कर झुक गयी, इससे उसकी चूची के दर्शन खुल कर हो रहे थे। उसने अन्दर ब्रा नहीं पहनी थी।
फिर उसी पोजिशन में पल्लवी घूमी।
ये क्या?
मुझे अपनी इस कातिल अदा से वो मार डालने का इरादा रखती थी। शोर्ट स्कर्ट से उसकी गांड दिख रही थी।
तभी वो बोली- मेरे चोदू राजा … मैं कैसी लग रही हूं?
मैं अपने खड़े लंड के साथ उसके और समीप गया और गांड में टच करते हुए कहा- जान मारू लग रही हो मेरी चुदक्कड़ रानी!
इतना कहते हुए मैंने अपने लंड को पल्लवी के चूत में घुसेड़ दिया।
धक्के लगाते हुए मैं सोच रहा था कि मेरे सामने दो लड़कियां और दोनों के अपने अलग तरीके, पर दोनों का अपना ही मजा।
“मेरी जान, मजा आ रहा है या नहीं?”
“बहुत मजा आ रहा है।” कहते हुए मैंने धक्के तेज कर दिये।
“हम्म … हुम्म … हम्म … हुम्म … और तेज से करो … आह ऐसे ही बहुत मजा आ रहा है।”
अब मेरा माल निकलने वाला था, मैं भी ‘आह हूँ …’ के साथ बोला- मेरा निकलने वाला है।
बस इतना सुनते ही पल्लवी झटके से मुझसे अलग हो गयी और बोली- अभी मत छोड़ना!
वो बड़ी तेजी से अपने सब कपड़े उतारने लगी और लगातार मुझे देख रही थी और मैं अपने लंड को सहलाते हुए खुश हो रहा था कि पल्लवी मेरे माल को कम से कम अपने जिस्म पर तो लेगी ही!
लेकिन यह क्या … उसने अपने दोनों हाथों में कमीज और स्कर्ट को लिया, मेरे लंड को पकड़ कर हिलाने लगी और मेरे गिरते हुए माल को अपने कपड़ों में समेटने लगी. अच्छी तरह से लंड को पौंछते हुए और फिर मुरझाये लंड को चूमते हुए बोली- शरद, यह आपकी निशानी मेरे इन कपड़ों में रहेगी और मुझे जब भी तुम्हारी याद आयेगी तो मैं इभेन पहन कर तुम्हें याद कर लूंगी।
मैंने बुरा सा मुंह बनाते हुए कहा- तुमने तो मेरी निशानी रख ली और मेरे लिये तुम्हारी निशानी?
इस पर बोली- अभी भी मेरी चूत से रस बह रहा है, तुम जितना सहेजना चाहो सहज सकते हो।
मैंने उसकी बात को रखते हुए अपनी एक चड्डी में उसके रस को ले लिया और उसकी चूत को चूमते हुए बोला- मुझे तुम्हारी चूत की खूब याद आयेगी।
इस चुदाई के बाद भूख लगने लगी थी इसलिये मैंने खाने का आर्डर दे दिया।
कहानी जारी रहेगी.
[email protected]
[email protected]