टाइट चूत चुदाई की कहानी में पढ़ें कि मेरी चूत के अंदर जबरदस्त आग लगी हुई थी और वह कब से पानी छोड़ रही थी. पानी से मेरी पैंटी भी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी.
इस कहानी के पिछले भाग
में आपने पढ़ा कि मैं अपनी भाभी के भी के घर में उसके साथ वासना भरा खेल खेल रही थी.
अब आगे की मेरी चूत चुदाई की कहानी:
मैं रसोई बंद करके रूम में आई.
तब तक विजय कपड़े बदल चुका था और उसने शॉर्ट निकर और बनियान पहन ली थी.
रात के 9:00 बज रहे थे. मेरा भी गर्मी से हाल बेहाल था. मैंने अपने बैग में से अपना तौलिया निकाला और नहाने के लिए बाथरूम जाने लगी.
विजय बोल उठा- शालू, नहाने जा रही हो! पहले जब में नहाया तब नहा लेती तो साथ में नहा लेते!
मैं विजय के पास गई अपने दोनों हाथ उसके गले में डाल कर ऐसे खड़ी हो गई जैसे मैं उसकी प्रेमिका हूँ.
उसके कान में मैं धीरे से बोली- विजय जी, पराई औरतों को ऐसे गंदी बातें नहीं बोलनी चाहिए. पाप लगता है.
और उसके गाल पर किस कर के अचानक से बाथरूम में भाग गई.
मेरी इस हरकत से वह बहुत बहुत तड़प उठा और शायद अब उसे भी पता चल गया कि मैं उसका लण्ड लेने के लिए काफी हद तक मान गई हूं.
अब मेरा मन कर रहा था कि आज पूरी रात विजय को इसी तरह अलग अलग हरकतों से तड़पाया जाए और उसकी परीक्षा ली जाए.
लेकिन मेरी चूत मेरा साथ नहीं दे रही थी; उसके अंदर जबरदस्त आग लगी हुई थी और वह कब से पानी छोड़ रही थी. लगातार पानी छोड़ने से मेरी पैंटी भी पूरी तरह से गीली हो चुकी थी.
मेरा साथ अब मेरी चूत नहीं दे रही थी. उसे केवल और केवल विजय का लंबा और मोटा लण्ड चाहिए था.
जैसे ही में नहाई तो मुझे याद आया कि में बैग में से ब्रा और पैंटी तो लाना भूल ही गई, और तौलिया भी इतना छोटा था कि इससे या तो बूब्स ढक सकते हैं या मेरी चूत!
घर पर तो पति के सामने इसी तौलिये में बाथरूम से नहा कर बाहर निकलती थी और कभी-कभी तो नंगी ही बाहर निकल जाती थी.
लेकिन विजय के सामने इस तरह जाने में मुझे शर्म आ रही थी.
फिर मैंने सोच लिया कि अब जब विजय से चुदना ही है तो फिर शर्म करने से क्या फायदा?
मैंने अपनी चूत को आधा ढका और आधे से कम बूब्स को तौलिये से ढक कर तौलिया बांध लिया.
मेरे बड़े बड़े बूब्स तौलिये में आधे से भी कम ढके हुए थे और लगभग पूरे बाहर बिना ब्रा के नंगे नजर आ रहे थे.
मैंने बाथरूम का दरवाजा खोला और मुँह बाहर निकाल कर विजय को बोली- विजय, तुम रूम से बाहर जाओ. मुझे तैयार होना है.
लेकिन विजय तो शायद मेरे बाहर निकलने का ही इंतजार कर रहा था.
वो तुरंत बोला- शालू, मैं लैपटॉप पर थोड़ा काम करना चाहता हूँ. मुझसे कैसी शर्म? तुम बाहर आकर तैयार हो जाओ. यहां कोई देखने वाला नहीं है मेरे अलावा!
मैंने भी शर्म छोड़ी और बाथरूम से बाहर निकल कर आ गई.
और जैसे ही विजय ने मुझे इस रूप में देखा और मेरे अधनंगे बूब्स को देखा उसका मुंह खुला का खुला रह गया, उसके मुंह से केवल “ओह्ह शालू …!”
इतना ही निकल पाया.
मैंने देखा कि उसका लौड़ा निक्कर में ही अपने पूरे विकराल रूप को धारण कर रहा था … अब मैं खड़ी खड़ी उसके लौड़े को निहार रही थी.
और वह मेरे बदन को और मेरे अधनंगे बूब्स को निहार रहा था.
मैं विजय को और तड़पाना चाह रही थी इसलिए मैं बैग की तरफ गई और जानबूझ झुककर बैग में से अपनी ब्रा पेंटी निकालने लगी.
इस दौरान मेरा शार्ट तौलिया पीछे से पूरा ऊपर हो गया. अब विजय को मेरी पूरी की पूरी नंगी गांड और मेरे गांड का छेद और मेरी चूत दिखाई दे रही थी.
विजय जोर से बोल उठा- ओह्ह भगवान … क्या नजारा है।
मुझे पता चल रहा था कि विजय मेरी गांड को देखकर यह सब कुछ बोल रहा है.
मैं तुरंत ब्रा पेंटी हाथ में लेकर सीधी हो गई और विजय के पास जाकर दुबारा से विजय की गले में अपने दोनों हाथ डाल कर खड़ी हो गई.
मेरे नंगे बूब्स विजय के सीने में गड़ गए.
मैं विजय को धीरे से बोली- विजय जी, दूसरों की बीवी के शरीर को इस तरह ताड़ना भी पाप है.
और एक बार फिर उसके गाल पर चुम्बन कर दिया.
विजय के सब्र का बांध अब टूट चुका था, उसने तुरंत मेरे नंगे बूब्स को अपने हाथों से पकड़ लिए और जोर से मसल दिए.
मैं जोर से चिल्ला उठी- आहह … विजय! क्या कर रहे हो? पागल मत बनो छोड़ो मुझे!
और मैं विजय से दूर हट कर शीशे के सामने चली गई … और बिना शर्म के ही विजय के सामने ही अपनी पेंटी पहन ली और ब्रा को अपने बूब्स पर डालकर पीछे से हुक लगाने लगी.
मैंने विजय को बोला- विजय तुम मेरी ब्रा का हुक लगा दोगे?
विजय तो जैसे तैयार ही बैठा था तुरंत दौड़कर मेरे पास चला आया.
मेरी ब्रा का हुक लगाने की बजाय उसने मेरी ब्रा को अपने हाथ में ले लिया और बोला- मैंने अपने पत्नी के ब्रा का कई बार हुक लगाया है. आज तुम्हारी ब्रा का भी लगा देता हूं.
उसने मेरे शॉर्ट तौलिये को मेरी गांड के ऊपर कर दिया जिससे मेरी गांड पूरी तरह नंगी हो गई और मुझसे चिपक कर निकर के ऊपर से अपना लण्ड मेरी गांड में दबा दिया.
उसका लण्ड मेरी नंगी गांड में दबते ही मेरे मुंह से जोर से ‘आहहह विजय!’ निकल गया.
विजय ने तुरंत मेरी गर्दन पर किस कर दिया और मुझसे बोला- प्लीज़ शालू … क्यों तड़पा रही हो, मेरी जान निकल जाएगी. क्या चाहती हो? प्लीज बता दो. मैं तुम्हारे लिए वह सब करने के लिए तैयार हूं.
विजय ने अपने दोनों हाथों से मेरे नंगे बूब्स को थाम लिया और जोर जोर से मसलने लग गया.
मेरी जुबान लड़खड़ाने लग गई और मेरे मुंह से निकला ‘आहहह विजय! ओह्ह विजय … ! प्लीज ऐसा मत करो … आहह विजय … क्या ये सब सही है? मैं तुम्हें इस बारे में सोच कर सुबह जवाब दूंगी प्लीज मुझे छोड़ दो!’
विजय तो जैसे वहशी दरिंदा बन गया था. वह मेरे बूब्स को जोर-जोर मसलने लग गया और मेरी गर्दन पर किस करने लगा.
अब मुझे भी मज़ा आने लग गया था और मेरा शरीर भी ढीला पड़ चुका था. अब मैं भी उसके लण्ड को खोजने लग गई और नेकर के ऊपर से उसके तने हुए लण्ड को पकड़ना चाह रही थी.
मेरा मन अब भी विजय की परीक्षा लेना चाह रहा था कि वह सच में मुझसे प्यार करता है या केवल मेरे साथ चुदाई करने के लिए प्यार का नाटक कर रहा है.
लेकिन मेरा शरीर और मेरी चूत मेरे मन के बिल्कुल बस में नहीं थे अब!
मैंने विजय की मजबूत पकड़ से खुद को छुड़ाया और अपने खुले हुए तौलिये को दोनों हाथों से संभाल कर अपने आधे बूब्स को ढक लिया और तौलिया दोबारा बांध लिया.
फिर मैं विजय से तुरंत बोली- विजय. मैंने तुम्हें पहले ही कहा था कि मैं तुम्हारी दोस्ती के प्रस्ताव पर सोच कर जवाब दूंगी. लेकिन तुम बड़े उतावले हुए जा रहे हो … तुम मुझसे प्यार करते हो या मेरे साथ यह सब कुछ करना चाहते हो?
विजय बोला- नहीं शालू, ऐसी बात नहीं है … मैं तुमसे बहुत प्यार करता हूं, और दिल से तुम्हारी बहुत इज्जत करता हूं. पर तुम्हें इस रूप में देख कर मैं अपने आप पर काबू नहीं रख पाया और यह सब कुछ कर बैठा … अगर तुम्हें बुरा लगा हो तो उसके लिए सॉरी! जब तक तुम मेरे दोस्ती के प्रस्ताव पर हां नहीं बोलोगी मैं वादा करता हूं कि मैं तुम्हें टच भी नहीं करूंगा।
मुझे पता था कि विजय पर अब सेक्स का भूत सर चढ़कर बोल रहा है और करीब-करीब वही हालत मेरी थी.
अगर विजय चाहता तो मुझे दोबारा दबोच लेता और पलंग पर पटक कर उसी वक्त मेरी चुदाई कर सकता था. मैं भी खुशी खुशी उसके साथ चुदाई कर लेती क्योंकि अब मुझे भी उसका लौड़ा खाने की बहुत जल्दी थी.
लेकिन विजय के मुंह से यह सब प्यार भरे शब्द सुनने के बाद उसका सॉरी बोलना और दुबारा मेरे साथ जबरदस्ती नहीं करने से मुझे पक्का यकीन हो गया कि विजय मुझसे दिल से प्यार करता है.
मेरे मन में भी विजय के लिए अब इज्जत बढ़ गई थी और प्यार उमड़ने लग गया.
अब मैंने विजय को ज्यादा तड़पाना उचित नहीं समझा और उसके पास जाकर उसको कहा- सच बताऊं विजय … तो मैं भी तुम्हें बहुत पसंद करती हूं. भैया की शादी में जब तुम्हें देखा, तब से ही मैं अपना दिल तुम्हें दे बैठी थी. लेकिन तुमने भी कभी इस बारे में मुझसे खुलकर बात नहीं की. और मैं भी डरती थी कि परिवार में यह सब करूंगी तो बदनामी होगी. इसलिए मैं भी तुम्हें कभी कह नहीं पाई.
और सुमन भाभी अगर मेरी शादी से पहले मुझे यह प्रस्ताव रखती तो आज शायद हम पति-पत्नी होते. लेकिन शादी के बाद उन्होंने मुझे इस बारे में पूछा तो मैं भी हां बोलने में डर रही थी कि कहीं परिवार में बदनामी ना हो जाए।
मैंने ये सब कह कर विजय के होंठों पर किस कर दिया, विजय का चेहरा खिल उठा.
मैं बोली- विजय, तुम्हारी दोस्ती के प्रस्ताव पर शालू कैसे मना कर सकती है. शालू तो तुम्हें दिलो जान से चाहती है. मेरी तरफ से तो हमारी शादी से पहले भी हाँ थी और आज भी मेरी तरफ से हां ही है. लेकिन एक वादा करो मुझसे कि अपनी दोस्ती को पूरी जिंदगी निभाओगे. मैं तुम्हारा साथ पूरी जिंदगी के लिए चाहती हूं मैं तुमसे सच्चा प्यार करती हूं. आई लव यू जान!
मुझे विजय ने अपनी बांहों में कस कर पकड़ लिया और बोला- आई लव यू टू मेरी रानी! मैं भी तुमसे बहुत ज्यादा प्यार करता हूं और वादा करता हूं कि हमारा यह रिश्ता पूरी जिंदगी रहेगा।
विजय और मेरे होंठ आपस में मिल चुके थे और हम दोनों एक दूसरे के होंठों का रसपान करने लग गए. हमने जम कर एक दूसरे के होंठो को चूसा जैसे हम जन्मों जन्म से प्यासे हों.
अपने हाथों से विजय ने मेरे तौलिया खोल दिया और उसे दूर फेंक दिया.
अब मैं विजय के सामने केवल पेंटी में खड़ी थी.
विजय ने अपने दोनों हाथों से मेरे दोनों बड़े बड़े बूब्स को पकड़ लिया और उन्हें जोर जोर से मसलने लग गया.
हम अभी एक दूसरे के होंठों का रसपान करने में लगे हुए थे. अब मैं भी शर्म छोड़कर खुलकर चुदाई का मज़ा लेना चाह रही थी.
मैंने एक हाथ से विजय के लंड को निक्कर के ऊपर से पकड़ लिया और उसको मसलने लग गई. दूसरे हाथ से विजय की बनियान उतारने की कोशिश करने लगी.
विजय ने तुरंत अपनी बनियान उतार फेंकी.
उसका एक हाथ मेरी छाती पर था और दूसरा हाथ पीछे मेरी नंगी गांड को दबाने में लग गया.
फिर कुछ देर बाद मेरी पैंटी के ऊपर से उसने मेरी चूत को अपने हाथ में भर लिया और जोरदार से मसल दिया.
मेरी आंखें बंद हो गई मैं जोर से चिल्ला उठी- उफ़्फ़ विजय … मर जाऊंगी मैं!
मैं जल्द से जल्द बजे का मोटा लंड देखना चाह रही थी.
मैंने तुरंत विजय के निक्कर को अपने हाथ से नीचे किया और उसने भी अपने पैरों में से उसे निकल जाने दिया.
उसके लंड को मैंने अंडरवियर के ऊपर से ही दोबारा से अपने हाथों में थाम लिया और जोर से दबाने लग गई.
विजय ने मेरी पैंटी में हाथ डाल दिया और मेरी चूत को अपने हाथों में भर लिया. फिर मेरी चूत की फांकों को अपनी चारों उंगलियों से मसलने लग गया.
उसका हाथ मेरी चूत के पानी से पूरा भीग चुका था और उसने अपनी एक उंगली मेरी चूत में उतार दी.
विजय की उंगली मेरी चूत में जाते ही मेरे मुंह से जोर से आहह हहह … निकल गई और मेरे बूब्स जोर-जोर से ऊपर नीचे होने लग गए.
उसका एक हाथ मेरी चूत पर था, दूसरा हाथ मेरे बूब्स को जोर जोर से मसलने में लगा हुआ था. उसके होंठ मेरे होंठों का रसपान करने में लगे थे.
वह मेरे हर अंग का रस पी जाना चाहता था.
उसने मेरी चूत से उंगली निकाल कर सीधा उसको अपने मुंह में डाल दिया और उंगली पर लगे हुए मेरे चूत के रस को पूरा चाट लिया।
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मेरी चूत चुदाई की कहानी जारी रहेगी. चूत की प्यास का इंतजाम-4