हाय, मेरा नाम प्रकाश है. यह कहानी मेरे और मेरी दीदी की चुदाई की कहानी है. मेरी उम्र 35 साल है और मेरी दीदी की 42 साल है.
ये उस रोज की बात है, जब मैं नागपुर में था, हमारी माँ का देहांत हुआ था. तब मेरी दीदी भी वहां आयी थी. दीदी का नाम प्रमिला है, वो अपनी सासू माँ के साथ आई थी. इससे पहले दीदी के पति का भी देहांत एक दुर्घटना में हो गया था. उसके बाद से दीदी अपनी 4 साल की छोटी सी बेटी और सासू माँ के साथ मुंबई रहती है. हमारे पिताजी पहले ही गुजर गए थे. माँ के चले जाने के बाद से अब मैं अकेला ही रह गया था.
माँ की सब विधि होने के बाद दीदी ने मुझसे कहा- देख प्रकाश, ये घर तो कहीं जाने वाला है नहीं, ये घर तो अपना ही है, तू यहां अकेला रह के क्या करेगा? हमारे पिताजी ने एक जगह मुंबई में भी बनायी है, तू वहीं हमारे साथ आ जा.
मैंने कहा- लेकिन?
दीदी ने मेरी बात काटते हुए कहा- लेकिन क्या … मैं तो सासू माँ के साथ रहूँगी, तू उस फ्लॅट पर रह जाना. तेरी लेकिन वेकिन कुछ नहीं, मैंने कह दिया बस तू हमारे साथ रहेगा.
उसकी सासू माँ ने भी कहा- हां, तेरी दीदी सही बोल रही है, तू हमारे साथ आ जा.
फायनली मैंने हां बोलते हुए कहा- ठीक है … तुम लोग जाओ, मैं पीछे से सामान आदि लेकर आता हूँ.
इसके बाद दीदी और उसकी सासू माँ चले गए. उनके बाद मैं भी उधर ही चला गया. दीदी ने मेरे लिए सब सैट कर के रखा था. मुझे भी जॉब मिल गया. दीदी अब अपने घर में सासू माँ के साथ और मैं उनके पास वाली दो गली छोड़ कर हमारे माँ बाप के लिए हुए घर में रहने लगा. मेरी पहली पगार मिली तो मैंने दीदी को मोबाईल भी गिफ्ट किया.
हम लोग ज्यादा बात नहीं करते थे, थोड़ा बहुत ही बात करते थे. वैसे भी मैं बहुत कम बातें करने वालों में से था. तब भी दीदी के घर के नजदीक होने से मेरा अब दीदी के घर आना जाना चलने लगा था. मेरी दीदी भी जॉब करती थी, उसका ऑफिस सुबह साढ़े दस बजे का था. वो पास में ही यानि दो स्टेशन छोड़ के ही उसका ऑफिस था, इसलिए वो सुबह मेरे लिए भी लंच बनाती थी. मैं उसके घर जाकर लंच का डब्बा लेता था और अपने ऑफिस चला जाता था.
मैंने दीदी को मोबाईल में सब सैट करके दिया था. मैं उसको व्हाट्सअप में गुडमॉर्निंग भी भेजता, वो भी रिप्लाय में गुडमॉर्निंग भेजती थी. कुछ जरूरत का काम हो, तो वो मैसेज भी करती थी.
कुछ दिन ऐसे ही निकल गए. मुझे सिगरेट पीने की थोड़ी आदत है, तो मैं घर के तीन चार गली के बाद एक चाय की दुकान है, वहां चाय और सिगरेट पीने हर शनिवार को सुबह जाता था.
एक दिन की बात है, मैं वहां चाय सिगरेट पी रहा था. मेरे बाजू में दो लोग खड़े थे. उसमें से एक ने अपने साथी को इशारा किया और कहा कि उधर देख क्या मस्त माल जा रहा है. इसको चोदने में बड़ा मजा आएगा.
उसका साथी भी बोला- हां यार, क्या मस्त उठी हुई गांड है, ये जिसकी भी बीवी होगी, उसका पति क्या लकी होगा.
मेरा ध्यान गया, तो मैंने देखा कि एक लाइट ब्लू कलर का पंजाबी ड्रेस पहनी हुई औरत जा रही थी, उसने डार्क ब्लू का दुप्पटा भी डाला हुआ था … जिसमें से उसके मम्मे के उभार काफी बड़े से दिख रहे थे. दुपट्टे के बाजू से उसके मम्मों की गोलाई ध्यान से देखी, तो उसके मम्मे खासे गोल दिख रहे थे. उसकी कमर थोड़ी बड़ी थी, लेकिन जब वो थोड़ी आगे को गयी, तो उसकी गांड तो फुल कयामत बरपा रही थी. उसकी गांड काफी बाहर को निकली हुई बहुत बड़ी एकदम गोलाई लिए हुए थी. जोकि उसके चलते वक्त बड़ी दिलकश तरीके से मटक रही थी.
उसके आगे जाते समय भी उन दोनों में से एक ने कहा- हाय … साली की क्या मस्त गांड है … देख ना क्या मस्त हिल रही है. इसको खुश रखना मुश्किल है.
दूसरे ने कहा- हां रे … इसको तो अपने को पूरा नशा करके स्टॅमिना बढ़ा कर ही चोदना होगा … साली को बहुत बड़ा वाला लंड लगेगा. देख ना वो रोड के उस पार है … कितनी दूर है, फिर भी इतनी मस्त दिख रही है, तो पास से क्या माल दिखती होगी रे … सच में यार ये तो कयामत है.
मैं भी उसे पीछे से ही देखता रहा. तभी वो औरत मुड़ गयी, मैंने थोड़ा पीछे देखा तो बस उसकी एक झलक दिखी और वो आगे निकल गयी.
उसकी एक झलक देख कर मेरे तो होश ही उड़ गए थे क्योंकि वो तो मेरी दीदी थी.
मैं डर के थोड़ा पीछे को हो गया ताकि उसे मैं दिखाई ना दे जाऊं.
हालांकि वो और दो बार पीछे मुड़ी और देखा अनदेखा सा करके आगे चली गयी. अब ये हमेशा का होने लगा. मैं नाके पे शनिवार रविवार जाता था, वो अपने घर की शॉपिंग के लिए आती थी. मैं उसे दूर से देखता था. वो भी सड़क पर बड़ी बिंदास चलती थी जैसे सड़कछाप मंजनुओं को चारा डाल रही हो.
शुरुआत में तो मुझे उसको इस तरह से देखना अटपटा सा लगा. लेकिन इसके बाद न जाने क्यों वो मेरे दिल में मेरी दीदी नहीं, एक मस्त औरत बन के आने लगी. वो रात रात भर मुझे दिखने लगी और मेरा मन अब उसे चोदने के लिए बेकरार होने लगा.
मैंने एक बात देखी कि वो घर पर तो साड़ी पहनती थी, तो उस वक्त वो एकदम नॉर्मल दिखती थी. लेकिन मुझे लगता ही नहीं था कि उसने साड़ी के अन्दर इतना खजाना छुपा कर रखा हुआ है.
एक दिन तो ऐसा हुआ कि मैं नाके पे सिगरेट चाय पी रहा था. दीदी सामने से जा रही थी. मैं हमेशा की तरह उसे देख कर अपना लंड सहला रहा था. लेकिन तभी मैंने देखा कि उसने तुरंत ही रोड क्रॉस किया और इसी कैंटीन की ओर आने लगी. उसको आते देख कर मेरी फट गयी, मैं तुरंत ही कैंटीन में अन्दर चला गया और उसे अन्दर से ही देखने लगा. मेरा पूरा ध्यान था कि उसकी नजर कैंटीन में अन्दर ना जाए. वो आगे आयी. उसने लाईट ग्रीन कलर का पंजाबी ड्रेस पहना था. उधर ही बाजू में एक सब्जी वाला था, उसने कुछ सब्जी ली. सब्जी लेते वक्त नीचे दीदी नीचे को झुकी. उसका काले कलर दुपट्टा थोड़ा खिसका.
‘ओओओओ … क्या मम्मे थे उसके …’
तभी उसने झट से अपना दुप्पटा सीधा किया और हल्का सा ऊपर कर लिया. उसकी गहरे गले की वजह से उसके मम्मों के पूरे दीदार होने लगे. साथ ही उसकी चुचियों के निप्पल का पॉईंट की भी एक झलक दिख गई. उसने कैंटीन की ओर एक नजर डाल कर देखा और मुझे अनदेखा करके आगे चली गयी.
ऐसा काफी दिन तक चलता रहा.
अब मैं उसे मोबाइल पर मैसेज करने लगा. नॉर्मली वो भी रिप्लाय देने लगी.
फिर एक दिन…
मैसेज में मैं- प्रमिला दीदी … मेरे घर में सीलिंग का कुछ प्रॉब्लम है.
प्रमिला दीदी- ठीक है, मैं देखती हूँ.
मैं- ठीक है.
कुछ देर बाद दीदी मेरे घर पर आई.
प्रमिला दीदी- चलो देखते हैं
वो मेरे रूम में आयी और उसने कहा- प्रकाश चलो तेरे रूम का थोड़ा रिनोवेशन करवा लेते हैं. ये काफी टाईम से बंद था न. जब तक ये ठीक होता है, तब तक तू हमारे साथ रह जा.
मैंने कहा- ओके दीदी ये ठीक रहेगा.
मैं उसके घर रहने लगा, लेकिन फिर भी शनिवार रविवार को नाके पे जल्दी जाता था … ताकि दीदी को देख सकूं. तब भी अब मुझे दीदी को चोदने की लालसा कुछ ज्यादा ही घेरने लगी थी.
एक दिन उसकी सासू माँ ने खाना खाते वक्त कहा- मैंने इससे बोला कि तू दूसरी शादी कर ले, कब तक अकेली रहेगी, लेकिन ये है कि मानती नहीं. इसकी बेटी भी छोटी है, तो अभी आसान भी है.
दीदी ने कहा- क्या माँ फिर से वही …
सासू माँ- ठीक है बाबा, मैं कुछ नहीं कह रही, जैसे तेरी मर्जी.
दीदी ने कहा- ठीक है … चलो अब खाना खाओ … कल ऑफिस जाना है.
वो सुबह मेरे लिए ब्रेकफास्ट और डब्बा भी बनाकर देती थी. उस वक्त वो साड़ी में ही होती थी और पूरी तरह से संभाल के अपने जिस्म को ढके रहती थी.
एक दिन शनिवार को मैंने उसे हमेशा की तरह नाके पे देखा. मैं वहीं था … मैंने सोचा कि कुछ मैसेज करूँ.
मैंने मोबाइल पर मैसेज भेजा- गुडमॉर्निंग दीदी.
उसका कुछ रिप्लाय नहीं आया. मैंने समझा कि इसका मोबाइल घर पर होगा.
तभी मेरे मोबाइल में मैसेज की घंटी बजी- गुडमॉर्निंग.
मैं- एक बात बोलूँ, आपको गुस्सा तो नहीं आएगा ना?
प्रमिला दीदी- हां रे बोल न?
मैं- क्या हम दोनों आज मूवी देखने जा सकते हैं?
प्रमिला दीदी- लेकिन आज …
मैं- क्यों क्या हुआ?
प्रमिला दीदी- सासू माँ को मालूम है आज मेरी छुट्टी है और … आज तो कामवाली भी नहीं है.
मैं- कुछ बहाना बनाओ ना.
प्रमिला दीदी- चल देखती हूँ.
मैं- व्हाट्सैप पे रहना.
प्रमिला दीदी- ओके.
मैं वहीं था, तभी फिर घंटी बजी.
मैसेज आया था. प्रमिला दीदी- कितने बजे का शो है?
मैं खुश हुआ. मैं- तीन बजे का देखते हैं … छह तक घर आ जाएंगे.
प्रमिला दीदी- कहां है?
मैं- दो स्टेशन छोड़ के.
प्रमिला दीदी- ठीक है … तू रूक जा जरा.
फिर थोड़ी देर के बाद घंटी बजी, मैसेज आया- सुन मैं क्या बोलती हूँ … आया आ जाएगी तो बेबी को संभाल लेगी. मैंने सासू माँ को बोला है कि ऑफिस से एक फाईल लानी है, तो मैं उधर जाके आऊंगी.
मैं- ठीक है.
प्रमिला दीदी- तू बोल ना, मैं भी एक पुराने फ्रेंड को मिलने जा रहा हूँ. फिर हम लोग बाहर से ऑटो पकड़ कर जायेंगे.
दीदी की इस तरह की बातें सुनकर मुझे कुछ ऐसा लगा कि इसकी बातों में भाई बहन वाली फीलिंग नहीं लग रही है. क्या इसका मन भी मेरे साथ कुछ अलग होने लगा है. फिर मैंने सर को झटका और बस फिल्म की बात को लेकर मूड बनाने लगा.
मैं- दीदी आप एक काम करो, आप आओ, मैं टिकट निकाल कर रखता हूँ.
प्रमिला दीदी- ठीक है.
मैं खुश था और मुझे जान बूझकर जल्दी जाना था ताकि मैं उसे दूर से निहार सकूं. मैं बहुत खुश था.
मैं टिकट लेकर दीदी के आने का इंतजार कर रहा था. इस वक्त मैंने सनग्लासेस पहने हुए थे. वो ऑटो से उतरी, रोड क्रॉस करके आ रही थी. उसने रेड कलर का पंजाबी ड्रेस और व्हाईट कलर का दुपट्टा डाला हुआ था. वो जैसे जैसे नजदीक आयी, उसका बदन और उभर के दिखने लगा … उसके मम्मे इस ड्रेस में एकदम तने हुए थे … और सब कुछ दिलकश दिख रहा था. इस बार तो मुझे दीदी की गांड भी देखने को मिली जब वो काउंटर पे जाके बर्गर लेके आयी.
हमने मूवी देखी, कुछ खाया और अलग अलग से निकले. हमने बाद में भी दो तीन बार मूवी देखी, लेकिन हफ्ते के बीच वाले दिन में, शनिवार को नहीं. लाईफ नॉर्मल था, सिवाए एक के बात के. मेरा हर शनिवार रविवार नाके पे जाना दीदी को दूर से देखना और उसका शॉपिंग के लिए जाना मुझे कुछ इशारा देने लगा था.
फिर एक दिन की बात है. जब मैं नाके पे था और मैंने दीदी को देखा. दीदी ने इस बार भी सब्जी वाले के पास आके सब्जी लेते वक्त अपनी चूचियों की झलक दिखाई. इस वक्त उसने लाईट पीले कलर का पंजाबी ड्रेस पहना था. इस बार उसने जब दुप्पटा ऊपर किया, तब उसकी चुचियों का पॉईंट ज्यादा ही दिख गया था … इस बार निप्पल उभर कर आ गए थे और कड़क से दिख रहे थे.
इस बार मैं उसकी चुचियों को देख कर कुछ ज्यादा ही पागल हो गया. मैंने सोचा अब तो कुछ करना ही होगा.
मैं वहीं था, वो चली गयी.
मैंने उधर ही बैठे उसको मैसेज किया- गुडमॉर्निंग दीदी.
कोई रिप्लाय नहीं आया, मुझे मालूम था कि वो घर जाके रिप्लाय करेगी.
कुछ देर बाद उसका जबाव आ गया- गुडमॉर्निंग कहां हो?
मैं- यहीं बाहर.
प्रमिला दीदी- नजदीक हो?
मैं- हां.
प्रमिला दीदी- तो जल्दी आ ना, नहा ले … जल्दी आ जा, फिर पानी जाने वाला है. मुझे भी बाहर जाना नहीं है, जाऊंगी तो सासू माँ गुस्सा होगी.
मैं- ओके अभी आता हूँ.
मैं उसके घर गया, उसने दरवाजा खोला और कहा- तू बाथरूम में जा … मैंने पानी गर्म किया है, वो लेके आती हूँ.
सासू माँ दूसरे रूम में थी.
मैं बाथरूम में गया. दीदी एक बड़े से तपेले से पानी ले आई.
दीदी ने कहा- वो बाल्टी देना.
उसने पानी बाल्टी में डाला, तो उस वक्त उसकी साड़ी का पल्लू थोड़ा खिसका और उसके मम्मे दिखाई दिए. उसके मम्मों को मैंने घूर कर देखा, तो वो भी शर्माई और साड़ी ठीक करके चली गयी.
कुछ दिन के बाद एक दिन शनिवार को सुबह मेरी कुछ आवाज के कारण नींद खुली. मैंने घड़ी की तरफ देखा, तो 7 बज कर 30 मिनट हुए थे. मैं बाहर गया. रूम में परदे लगे थे, तो थोड़ा अंधेरा था. मुझे याद आया कि आज शनिवार है. तो जल्दी से मैं अन्दर गया और देखा तो मुझे शॉक ही लगा.
किचन छोटा था. देखा तो दीदी किचन में सब्जियां काट रही थी. उसने ऊपर काले कलर का ब्लॉउज और नीचे साया बस पहना था.
इस वक्त उसके छोटे से ब्लाउज में से उसके बड़े बड़े मम्मे काफी बाहर को आए हुए थे. उसके टाईट पेटीकोट से भी उसके उभरे हुए चूतड़ साफ़ नुमायां हो रहे थे. दीदी की लाजवाब गांड बाहर को आयी हुई लग रही थी.
मैं उधर ही खड़ा होकर पीछे से दीदी को देखने में लगा था.
तभी प्रमिला दीदी ने कहा- अरे तू उठ गया?
मैंने कहा- हां दीदी.
प्रमिला दीदी ने कहा- चलो मैं तुम्हारे लिए चाय बनाती हूँ.
मैं उधर ही उसके पीछे था. आज उसके हावभाव ने मुझे पागल कर दिया था. मैं उसके पीछे एकदम करीब आ गया. फिर मैंने अपने दोनों हाथ पीछे से आगे को लिए और उसके मम्मों को छूना चालू कर दिया. मैंने पहले हल्के से कुछ ऐसे किये सामान लेने के बहाने से आगे किये थे, ताकि उसे गलत न लगे.
मेरी दीदी को चोद कर उसे बीवी बनाने की कहानी अभी बाकी है, जिसे मैं अगले भाग में लिखूंगा.
आप मुझे मेल कर सकते हैं.
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कहानी का अगला भाग: दीदी को बनाया बीवी-2