यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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भाई की चुदाई कहानी में पढ़ें कि कैसे पास में सो रही मौसेरी बहन के गर्म जिस्म को भाई की वासना ने जकड़ लिया. फिर बहन की रजामन्दी से भाई ने चोदा अपनी बहन को.
भाभी ने जोर से उबासी ली तो मैंने कहा- क्या बात है भाभी, नींद आ रही है तो सो जाओ?
भाभी बोली- चलो थोड़ी देर सो लेते हैं, लेकिन सोयेंगे आपस में चिपक कर.
मैंने भाभी को बांहों में लेकर लन्ड अंदर किये किये साइड में ले लिया और चादर ऊपर ले ली.अब भाभी भी सो गई.
पता नहीं लण्ड चूत में से कब निकला और हम कब अलग अलग होकर सीधे लेट कर सो गए.
सुबह जब आंख खुली तो 6.00 बज चुके थे और नेहा ड्राइंगरूम का दरवाजा खटखटा रही थी.
मैंने जल्दी से अपने दोनों कपड़े पहने, भाभी को चादर से ढका, उनका दरवाजा बंद किया और दीवान की चादर को बिखेर कर दरवाजा खोल दिया और दीवान पर लेट गया.
नेहा ने मुझसे गुड मॉर्निंग की और पूछा- चाय पिओगे न?
मैंने कहा- बना लो.
नेहा चाय बनाने किचन में चली गई.
मैं बाथरूम के बहाने भाभी के बेडरूम में गया और धीरे से भाभी को कहा- भाभी कपड़े पहन लो, नेहा किचन में है.
भाभी ने दरवाजे पर टंगा अपना बड़ा गाउन मांगा और उसे पहन कर दुबारा सो गई. मैं भी बाथरूम जा कर वापिस दीवान पर आ कर बैठ गया और नेहा के साथ चाय पीने लगा.
सुबह कुछ खास नहीं हुआ. केवल नेहा के साथ थोड़ी बहुत चूमा चाटी हुई और हम सब लोग अपने अपने काम पर चले गए.
मैं यूनिवर्सिटी से 3 बजे आया और आ कर सो गया. सांय को घर में कुछ टेंशन का माहौल था, कोई किसी से बात नहीं कर रहा था.
मैंने नेहा से पूछा तो वह बोली- कुछ नहीं … वैसे ही मम्मी का मूड खराब है.
रात को सभी ने चुपचाप खाना खाया और सोने चले गए. मैं भी दीवान पर लेट गया. मुझे आशंका थी कि कहीं मुझे लेकर तो कुछ गंभीर बात नहीं हुई है.
लगभग 10.00 बजे जब भाभी अपने कमरे में सोने गई तो मैंने ड्राइंगरूम की कुंडी लगाई और सरोज भाभी के रूम में गया और पूछा- भाभी, आज सभी क्यों चुप चुप हैं?
भाभी बोली- बैठो, बताती हूँ.
तब भाभी ने बताना शुरू किया- राज, मैं इन दोनों लड़कियों से तंग आ चुकी हूँ, पहले तो बड़ी वाली की बात सुनो. आज सुबह लगभग 11.00 बजे यह महारानी फोन पर रोहित से बात कर रही थी. रोहित इसे पटाने की कोशिश कर रहा था.
मैंने कहा- ये तो अच्छी बात है, यदि इनका समझौता हो जाता है तो क्या हर्ज है?
सरोज बोली- रोहित एक घटिया इंसान है, इसने उससे हमारी मर्जी के खिलाफ शादी की थी. वह कुछ कमाता नहीं है, इसे पीटता है और पैसों की डिमांड करता रहता है. मैं इसे अब उसके पास नहीं जाने दूंगी. उसने उस दिन तुम्हारे आने से पहले मुझे भी मारा था, और यह फिर उसके झांसे में आ रही है, उसका मकसद बंटी को इससे छीन कर हमें ब्लैक मेल करना है.
मैंने कहा- भाभी, यह जवान है, हो सकता है इसकी कुछ शारीरिक जरूरतें भी होंगी?
भाभी- असली बात तो यही है, इसकी फुद्दी में ही आग लगी हुई है, इसीलिए उससे आराम से बात कर रही थी. लेकिन उस हरामजादे ने मुझे भी मारा है, मैं इसे उसके पास बिल्कुल भी नहीं जाने दूंगी.
आगे भाभी बोली- अब बिन्दू की सुनो, उसकी फुद्दी में भी खारिश होने लगी है. कुछ दिन पहले रात 9.00 बजे के करीब मैं इसके कमरे में किसी काम से गई थी तो यह भी उंगली से अपनी चूत में उंगली डाले अंदर बाहर कर रही थी. मैंने इसे कई थप्पड़ मारे थे, और इसने सॉरी कहा था.
कुछ दिन पहले मेरी छोटी बहन गीतिका का फोन आया था. उसने मुझे बताया था कि बिन्दू किसी लड़के के साथ पार्क में बैठी थी. मैंने इसकी उस दिन फिर पिटाई की. उस दिन मेरी मम्मी भी मेरे घर आई हुई थी.
भाभी बताते बताते कुछ रुक गई.
मैंने भाभी से पूछा- फिर क्या हुआ?
भाभी ने कुछ मुस्करा कर अपनी आंखें बंद करके अपनी गर्दन घुमा ली और चुप हो गई.
मैंने भाभी से दुबारा पूछा तो बोली- कुछ नहीं, कोई पुरानी बात याद आ गई थी.
जब मैंने भाभी के हाथ को अपने हाथ में पकड़ कर पूछा तो बोली- राज, उस दिन जब मैं बिन्दू की पिटाई कर रही थी तो मेरी मम्मी भी थी.
मेरी मम्मी बाद में मुझसे बोली- सरोज, तू इस लड़की की पिटाई कर रही है, अपने दिन भूल गई? यह बात बता कर भाभी के चेहरे पर फिर मुस्कान फैल गई.
मैंने पूछा- क्या हुआ था?
(आगे की भाई की चुदाई कहानी भाभी के मुख से) भाभी बताने लगी- जब मैं बिन्दू की उम्र में थी तो मैं गजब की सुंदर थी. लड़के तो क्या बूढ़े भी मुझ पर मरते थे, जब मैं बाहर जाती थी तो लोग आहें भरते थे. मेरे शरीर में बदलाव आ रहे थे.
दरअसल मेरी चूत में हर समय कुलबुलाहट रहती थी, मेरी इच्छा होती थी कि कोई लड़का, आदमी या कोई भी मेरी चुचियों को दबाये और मेरी चूत की खारिश मिटा दे.
मैं पिशाब करते आदमी के लौड़े की झलक लेने के लिए बैचैन रहने लगी थी. मैं चाहती थी जैसे मर्जी, लड़का का हो या बड़े आदमी का हो, बस मुझे लण्ड मिल जाये.
तभी मैं एक लड़के से मिलने लगी, जिसका पता मम्मी पापा को लग गया. उस दिन मेरी मम्मी ने मेरी पिटाई की और कहा कि यदि उससे दुबारा मिली तो मेरी जान निकाल दूँगी. लेकिन मैं छुप छुप कर उससे मिलती रही.
हमारे घर मेरी मौसी का लड़का सौरभ रहता था. सौरभ मुझसे एक साल बड़ा. एक रात हमारे घर पर कोई फंक्शन था. घर में भीड़ थी, हम सब लोग इकट्ठे ड्राइंगरूम में जमीन पर बिस्तर लगा कर सो रहे थे. मेरी दाहिनी ओर सौरभ सोया था.
करीब आधी रात को मैंने महसूस किया कि मेरी छाती पर किसी का हाथ है. जब समझ आया तो पाया कि सौरभ मेरी तरफ करवट लेकर सो रहा था और उनसे अपना हाथ मेरी चुचियों के पास रखा था.
उस समय मेरी चुचियों का साइज 34 था और चुचियाँ ही मुझे ज्यादा परेशान करती थीं. मैं चाहती थी कि कोई मेरी चुचियों को जोर जोर से मसल दे.
मैंने समझा नींद में सौरभ का हाथ मेरे ऊपर आ गया होगा. मैंने हाथ को हटाया नहीं. हाथ थोड़ा नीचे पेट की ओर था. मैं चाह रही थी कि हाथ चुचियों के ऊपर होता तो अच्छा था.
थोड़ी देर में सौरभ ने हाथ को आधी चुचियों के नीचे की तरफ कर लिया. वह सोच रहा था कि मैं सो रही हूँ. मैं हिली नहीं. मैंने सोचा मेरे हिलते ही सौरभ अपना हाथ हटा लेगा. रिश्ते में तो सौरभ मेरा भाई लगता था लेकिन मैंने सोचा कौन सा सगा भाई है? देखा जाएगा.
सौरभ बहुत ही शर्मीला और दब्बू टाइप का लड़का था. उसकी हाइट मेरे जितनी ही थी लेकिन मेरा शरीर मेरी ऐज के हिसाब से अधिक भरा हुआ था जबकि सौरभ था तो मुझसे एक साल बड़ा लेकिन शरीर और बनावट में मुझसे पतला और हल्का था.
अचानक सौरभ ने अपना हाथ मेरी चुचियों पर रख दिया. मैं सिहर उठी.
सौरभ धीरे धीरे अपने हाथ की हरकत बढ़ाने लगा. उसने कुछ देर बाद अपना हाथ मेरे टॉप के अंदर से डाल कर मेरी एक चूची को धीरे से पकड़ लिया. सौरभ सोच रहा था मैं गहरी नींद में हूँ. मैंने भी कोई प्रतिक्रिया नहीं की और चुप चाप लेटी रही.
मेरा भाई मुझसे चिपका हुआ था और उसका लण्ड मेरे पेट पर चुभ रहा था. उसके लण्ड के ठीक नीचे मेरी हथेली थी.
धीरे धीरे सौरभ का हौसला बढ़ता गया और उसने अपना लण्ड मेरी हथेली पर रख दिया. मैंने लण्ड की सख्ती पहली बार महसूस की. उसने धीरे से अपना लोअर नीचे किया और लण्ड को मेरे हाथ में दुबारा रख दिया.
मुझसे सहन नहीं हो रहा था, मेरे शरीर में एक झुरझुरी सी हुई और मैंने धीरे से अपनी मुट्ठी बंद कर के लण्ड को पकड़ लिया. लण्ड सख्त तो था लेकिन पतला और लगभग 4 इंच का ही था, लेकिन मेरे लिए तो ये जीवन का पहला अनुभव था और मैंने सोचा लण्ड इतना ही होता होगा.
सौरभ ने अपना ऊपर का काम जारी रखा और उसका हाथ चुचियों से होता हुआ मेरे शरीर के दूसरे हिस्सों पर घूमने लगा, लेकिन बहुत ही धीरे धीरे.
मुझे सौरभ पर गुस्सा आ रहा था क्योंकि वह यह सब बड़े हल्के हाथ से धीरे धीरे कर रहा था जबकि मैं पूरी तरह से उत्तेजित हो चुकी थी और मैं चाहती थी कि वह मेरे शरीर के हिस्सों को जोर जोर से मसले, रगड़े.
जैसे ही सौरभ का हाथ मेरी जांघों से होता हुआ मेरी चूत पर पड़ा, मैंने सौरभ के लण्ड को भींच दिया.
सौरभ धीरे धीरे मेरी चूत पर पैंटी के ऊपर से हाथ चलाता रहा. और नीचे मेरे हाथ में लण्ड को आगे पीछे करते हुए उसने मेरे हाथ में ही वीर्य निकाल दिया.
और फिर वह उल्लू का पठ्ठा मुझे बीच में छोड़ कर एक साइड में हो कर सो गया.
वह सोच रहा था कि मैं सो रही थी.
मैंने सौरभ को एक लात मारी.
मेरी कामवासना पूरी तरह जाग चुकी थी और मैंने सोच लिया कि यह सारा दिन घर में रहता है तो इसी को पटा कर काम चलाया जा सकता है.
उस वक्त तो मैंने अपनी उंगली से अपनी चूत की आग शांत की और सो गई.
सुबह जब हम उठे तो सौरभ मुझसे आंख नहीं मिला रहा था.
शायद सौरभ को अनुमान हो गया था कि मैं जाग रही थी.
दोपहर बाद जब सब मेहमान चले गये तो मैं सौरभ के कमरे में गई और उसके पास बैठ गई.
वह डरा हुआ था.
मैंने सौरभ से कहा- सौरभ, मैं सोच नहीं सकती थी कि तुम इतनी गिरी हुई हरकत करोगे, रात को तुमने मेरे साथ ऐसा क्यों किया? मैं सब कुछ मेरी मम्मी को बताऊंगी.
सौरभ एकदम डर गया और लगभग रोने जैसा हो कर बोला- सॉरी, आगे से ऐसा नहीं करूंगा.
मैंने कहा- ये सब तुमने कहाँ से सीखा?
सौरभ- मेरे दोस्तों ने बताया था.
मैंने पूछा- क्या बताया था, यही कि अपनी बहन के साथ गलत काम करो?
सौरभ- सॉरी, आगे से नहीं करूंगा, आप मौसी जी को मत बताना.
मैंने समझा और ज्यादा कहना ठीक नहीं है, फिर मैंने पूछा- क्या ये सब करना तुम्हें अच्छा लगता है?
सौरभ कुछ नहीं बोला.
मैंने फिर पूछा- जो जो मैं पूछ रही हूँ उसका जवाब दो, नहीं तो अभी मम्मी को बताती हूँ.
सौरभ- हां, अच्छा लगता है.
मैंने सौरभ से कहा- ठीक है, तुम्हें अच्छा लगता है तो मैं मम्मी को कुछ नहीं कहती.
सौरभ मेरी ओर देखने लगा.
मैं मुस्करा दी.
सौरभ- तुम नाराज नहीं हो?
मैं- यदि तुम मेरा साथ दोगे तो मैं नाराज नहीं हूँगी.
सौरभ- कैसा साथ?
मैं- रात को जो किया था वह अब करो.
सौरभ मेरी बात सुनकर भौंचक्का रह गया- क्या करना है?
मैं- मेरे मम्मों को हाथ में पकड़ कर दबाओ.
सौरभ- पक्का, नाराज नहीं होगी न?
मैंने प्यार से उसको छू कर कहा- नहीं हूँगी, लेकिन ये बात तेरे और मेरे बीच रहनी चाहिए, यदि तुमने अपने किसी दोस्त या घर के किसी आदमी को बताई तो मैं बोल दूंगी कि तुमने मेरे साथ जबरदस्ती की है.
सौरभ- किसी को नहीं बताऊंगा.
सौरभ उठा और उसने मेरे मम्मों पर अपना एक हाथ रख दिया और चुपचाप खड़ा रहा.
मैंने कहा- अरे जैसे रात को हाथ फिरा रहा था वैसे फिरा, जोर जोर से दबा इन्हें.
अब सौरभ ने मेरे मम्मों को जोर से पकड़ा और दबाने लगा. उसका लण्ड भी उसके लोअर में खड़ा हो गया था.
मैंने उसे कहा- तुम मेरे पीछे आ जाओ और जफ्फी भर कर उठाओ.
सौरभ मेरे पीछे आ गया और उसने मुझे ऊपर उठा लिया. सौरभ शरीर में बेशक मुझसे हल्का लग रहा था लेकिन उसमें ताकत बहुत थी. अब वह शुरू हो गया था. उसने पीछे से मेरे दोनों मम्मों को पकड़ा और अपने लण्ड को मेरी गांड में चुभोने लगा.
मैंने अपना हाथ पीछे ले जाकर उसके लण्ड को पकड़ लिया.
मैं सीधी हो गई और उसे बांहों में भर कर चूमने लगी. सौरभ भी मुझे होठों पर चूमने लगा. मैंने सौरभ का लोअर नीचे किया और उसका खड़ा लण्ड बाहर निकाल लिया.
क्योंकि मैंने तो अभी तक बच्चों की लुल्लियां ही देखी थीं अतः उसका लण्ड बच्चों के लण्ड से बड़ा था जो मेरे लिए बहुत बड़ी चीज था. उसका लण्ड लगभग 4 इंच का थोड़ी मोटी भिंडी जैसा था जिसका आगे का टोपा लण्ड से थोड़ा मोटा था.
मैंने लण्ड को सहलाना शुरू किया. मैं उसे आगे पीछे करने लगी तो सौरभ की सांसें तेज होने लगी.
अब मैंने अपनी एक चूची को बाहर निकाल कर सौरभ के मुंह में दे दी और उससे कहा- इसको चूस.
सौरभ चूसने लगा.
मेरा कामवासना से बुरा हाल हो रहा था. दरअसल मेरे अंदर कामवासना बचपन से ही बहुत ज्यादा है.
मैंने सौरभ से कहा- जोर जोर से बारी बारी से चूसते रहो.
लगभग 10 मिनट दोनों मम्मों को उसने खूब पिया.
घर के सब लोग सो गए थे. मैंने सौरभ से पूछा- कभी देखी है?
सौरभ- क्या?
मैंने कहा- नीचे वाली, जिस पर रात को तू हाथ फिरा रहा था.
सौरभ ने न में गर्दन हिला दी.
मैंने पूछा- देखनी है?
सौरभ- दिखाओ.
मैंने अपनी स्कर्ट को ऊपर किया और पैंटी को नीचे कर दिया.
सौरभ आंखें फाड़ कर देखने लगा.
मैंने कहा- अब हाथ लगा न … रात को तो बड़ा मसल रहा था.
सौरभ ने एकदम मेरी चूत को अपनी मुट्ठी में भींच लिया और मेरी सीत्कार निकलने लगी.
उस वक्त मेरी चूत पर हल्के रोएं से थे. सौरभ मेरी चूत में उंगली करने लगा. मैं पूरी तरह से चुदास से भर चुकी थी.
मैंने सौरभ से पूछा- मारनी है?
सौरभ चुप रहा.
मैंने फिर कहा- चूत मारनी है क्या?
सौरभ ने केवल ‘हूँ’ कहा.
मैंने कमरा बंद किया और अपनी पैंटी निकाल कर बेड पर लेट गई और अपनी टांगों को चौड़ा करके सौरभ को कहा- ले कर ले.
सौरभ ने भी अपना लोअर निकाला और मेरी टांगों के बीच में अपने लण्ड को पकड़कर बैठ गया.
फिर सौरभ ने अपना लण्ड मेरी कोरी चूत में डालना शुरू किया, मुझे थोड़ा दर्द हुआ, किंतु मैंने सह लिया. सौरभ मेरे चेहरे की परेशानी देखकर हटने लगा.
मैंने उसे कहा- रुक मत, अंदर डाल!
और सौरभ ने जोर लगा कर अपने लन्ड को अंदर कर दिया. मुझे लगा जैसे किसी ने मेरी चूत को चीर दिया है. लेकिन सौरभ ने जो मेरी चूत फाड़ी वह लण्ड पतला होने के कारण ज्यादा नहीं फटी थी, लेकिन मेरी खारिश मिटाने के लिए काफी थी.
सौरभ मुझे चोदने लगा, लेकिन वह 5- 6 बार अंदर बाहर करके ही झड़ गया.
जब उसने अपना लण्ड निकाला तो उस पर मेरी चूत का खून लगा था. मुझे उस वक्त पता नहीं था कि पूरा मज़ा कितना होता है, परंतु मुझे बहुत मजा आया. वैसे राज, मुझे तुमसे मिलने के बाद ही पता चला है कि असली मज़ा क्या होता है.
मैं और सौरभ जब भी मौका मिलता, हम मजे लेने लगे.
तो कैसी लगी यह भाई की चुदाई कहानी? कमेंट्स करके बताएं.
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भाई की चुदाई कहानी जारी रहेगी.