यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
दिखा दी ना अपनी औकात … आज साबित कर ही दिया कि सब मर्द एक जैसे होते हैं. उनको बस एक ही काम से मतलब होता है. सबके सब बस फायदा उठाने की सोचते हो.
प्रिय साथियो … मैं महेश आपको अपनी शायरा की सेक्स कहानी में बता रहा था कि हम दोनों मर्डर फिल्म देखते हुए एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे थे.
अब आगे:
शायरा का साथ मिलते ही मेरे हाथ तो जैसे एक जगह ठहर ही नहीं रहे थे. जिससे पता ही नहीं चला कि कब मेरा एक हाथ उसकी पीठ पर से रेंगते हुए उसके सीने पर आ गया और उसके एक उभार को अपनी गिरफ्त में भर लिया.
मगर अब जैसे ही मैंने उसकी चूची को पकड़ा, वो छुईमुई की तरह सिकुड़ सी गयी.
उसने अपनी आंखें खोलकर एक बार तो मेरी तरफ देखा, फिर अगले ही पल अचानक उसने दोनों हाथों से धकेल कर मुझे अपने से अलग कर दिया.
अब मैं कुछ कहता या करता कि तभी एक झन्नाटेदार थप्पड़ मेरे गाल पर पड़ा और सीन बदल गया.
“दिखा दी ना अपनी औकात … आज साबित कर ही दिया कि सब मर्द एक जैसे ही होते हैं. उनको बस एक ही काम से मतलब होता है. सबके सब बस फायदा उठाने की सोचते हो.”
शायरा अब पता नहीं क्या क्या बड़बड़ाती रही … मगर मैं चुपचाप उसके घर से निकलकर ऊपर अपने कमरे में आ गया.
मैं शायरा के साथ इतने दिनों से रह रहा था और पता नहीं उसके साथ कैसे कैसे हंसी मजाक भी कर लेता था. मगर मैंने कभी अपनी लिमिट पार नहीं की थी.
पता नहीं आज ये कैसे हो गया?
मैं उसे पाना तो चाहता था मगर उसे खोना नहीं चाहता था … क्योंकि शायरा थी ही कुछ ऐसी.
वो बाकी सब लड़कियों की तरह नहीं थी, वो सबसे अलग और सबसे जुदा थी.
उसके साथ बिताये कुछ दिनों में मेरा उसके साथ इतना गहरा लगाव हो गया था कि मैं उसे खोना नहीं चाहता था.
वैसे भी उसके साथ रहते हुए मेरे दिल में सेक्स करने का कभी ख्याल आता ही नहीं था … मगर पता नहीं आज ये सब कैसे हो गया.
वैसे मैंने तो जो किया सो किया, शायरा ने भी तो इसमें मेरा साथ दिया था … तभी तो मेरी इतनी हिम्मत हुई.
अगर वो मुझे पहले ही रोक देती, तो मैं आगे बढ़ता ही नहीं.
चाहे जो कुछ भी मगर आज ये तो पता चल ही गया था कि शायरा भी प्यासी थी.
वो जितनी अकेली थी … उससे भी कहीं ज्यादा प्यासी थी.
जिस तरह मदहोश सी होकर वो बेस्ब्रों की तरह मेरे होंठों को चूस रही थी. उसे देखकर तो यही लग रहा था कि वो पता नहीं इस प्यार के लिए कब से तड़प रही थी.
शायरा प्यासी तो थी, मगर ये सब करना भी नहीं चाहती थी.
शायद वो शादीशुदा थी … इसलिए अपनी मर्यादा को तोड़ना नहीं चाहती थी … या फिर ये सब करने से डरती थी.
जो भी हो, पर उसे एक साथी की जरूरत थी, जो मुझसे मिलकर पूरी हो गयी थी. मगर पता नहीं, वो अब मुझसे दोस्ती रखेगी भी या नहीं.
ये सब सोचते सोचते मैं काफी देर तक जागता रहा … और फिर पता नहीं कब मुझे नींद आ गयी. मैं देर से सोया था, इसलिए अगले दिन सुबह भी मेरी देरी से आंख खुली.
बाकी दिनों तो शायरा जब सुबह सीढ़ियों पर झाड़ू लगाने आती थी … तो मुझे जगा देती थी मगर आज सुबह वो मुझे जगाने नहीं आई.
मैं उठा … उस समय सुबह के नौ बज रहे थे. इतवार का दिन था, इसलिए मुझे आज कॉलेज तो जाना नहीं था मगर फिर भी मैं जल्दी से नहा धोकर तैयार हो गया और नीचे आ गया.
शायरा ने आज सीढ़ियों पर झाड़ू नहीं लगाई थी. उसके घर का दरवाजा भी बन्द था. पता नहीं वो अन्दर से बन्द था या बाहर से लॉक किया हुआ था मगर उसे देखने की मेरी हिम्मत नहीं हुई, इसलिए मैं सीधा ही नीचे आ गया.
नीचे आकर मैंने देखा कि घर के मेनगेट पर अन्दर की तरफ से ताला लगा हुआ था. इसका मतलब था कि घर में ना तो कोई उठा था … और ना ही कोई घर से बाहर गया था.
घर के मेनगेट को खोलकर मैं अब कुछ देर ऐसे ही नीचे घूमता रहा, फिर वापस ऊपर आ गया.
इस बार शायरा के घर का दरवाजा खुला था और वो अन्दर बैठी हुई साफ नजर आ रही थी.
शायरा को देखकर मैंने जानबूझकर एक दो बार सीढ़ियों से ऊपर नीचे आना जाना शुरू किया ताकि मुझे देखकर वो बोल ही ले.
मगर उसने वैसा नहीं किया.
शायरा के इस तरह मुझसे बात ना करने से मुझे उस पर गुस्सा भी आया और पता नहीं क्यों, दिल के कहीं किसी कोने में एक दर्द सा भी हुआ.
मेरा दिल तो कह रहा था कि मैं अभी जाकर उससे मिल लूं और उससे बात करूं. मगर उस पर गुस्सा भी आ रहा था कि जब वो ही मुझसे बात नहीं कर रही तो मैं क्यों करूं?
आखिर मुझे थप्पड़ भी तो उसने ही मारा था.
मैं खुद तो जाकर शायरा से बात नहीं करना चाहता था मगर उससे बात किए बिना मुझे चैन भी नहीं आ रहा था.
पता नहीं शायरा ने ऐसा क्या जादू सा कर दिया था कि मैं उसे दिमाग से निकाल ही नहीं पा रहा था.
अजीब ही ही असमंजस की सी स्थिति थी मेरी.
मगर जैसे जैसे समय बीत रहा था … वैसे वैसे मेरे दिल में जो दर्द सा था, वो भी बढ़ता जा रहा था.
पता नहीं दिल के कोने में कहीं कुछ टूट सा रहा था और शायरा के प्रति मेरा गुस्सा भी बढ़ता जा रहा था.
अब इसी तरह सुबह से दोपहर हो गयी और फिर दोपहर से शाम.
फिर देखते ही देखते रात से सुबह भी हो गयी, मगर ना तो शायरा ने मुझसे ऊपर आकर बात की और ना ही मैंने खुद जाकर उससे बात की.
शायरा शायद मुझसे बात नहीं करना चाहती थी इसलिए मुझे भी अब उसे दिलो दिमाग से निकालकर उससे दोस्ती खत्म करने में ही अपनी भलाई लग रही थी.
यही सोचकर मैं तैयार हो गया और कॉलेज जाने के लिए नीचे आ गया.
शायरा के घर का दरवाजा अब भी बन्द था.
आज तो चाय नाश्ता भी नहीं मिला.
रोज शायरा के हाथों का खाना खाने की आदत पड़ गयी थी इसलिए उसके घर के पास आकर अब उसकी याद तो आई, मगर आज से वो टेस्टी नाश्ता बंद, बंद मतलब बंद और मैं चुपचाप सीधा नीचे आ गया.
अब नीचे आया तो शायरा मुझे मकान मालकिन के पास नीचे ही खड़ी मिली.
शायरा भी बैंक जा रही थी इसलिए वो तैयार होकर खड़ी थी. बाकी दिनों तो हम साथ में ही जाते थे मगर शायरा आज पहले ही नीचे आ गयी थी.
शायरा का मुँह दूसरी तरफ था मगर फिर भी अब जैसे ही मैं नीचे आया, उसने पलटकर तुरन्त मुझे देखा.
वो स्कूटी की चाबी लिए खड़ी थी, जो कि मुझे देखते एक बार तो मुझे देने को हुई … मगर फिर उसने अपना हाथ वापस खींच लिया और मकान मालकिन से बातें करने लगी.
शायरा के साथ स्कूटी से कॉलेज चला जाता था मगर आज तो शायद पहले की तरह ही पैदल जाना था इसलिए मैंने बस मकान मालकिन से नमस्ते किया और अपने कदम सीधा बाहर की तरफ बढ़ा दिए.
शायरा अब भी वहीं खड़ी रही और चुपके चुपके मुझे देखती रही … पर मैंने उस पर ध्यान नहीं दिया और चुपचाप घर से बाहर आ गया.
शायरा को कैसा लगा और कैसा नहीं, ये तो मुझे नहीं पता मगर उसको देखकर लग रहा था कि शायद वो भी यही चाहती थी कि मैं खुद आगे से उससे बात करूं.
उससे माफी मांगू.
पर बहुत हो गयी अब दोस्ती, अब तो बस चुदाई होगी, चुदाई. इस दोस्ती के चक्कर ने पिछले दो दिनों से जीना हराम सा कर दिया था. ना रात को सो पा रहा था और ना ही दिन में चैन मिल रहा था.
और मैं माफी मांगू भी तो क्यों मांगू? मैंने आखिर किया ही क्या था, जो माफी मांगू? मैंने तो बस वही किया था, जो कि इस तरह की दोस्ती में होता है.
शायरा को भी पता था कि अब दोस्ती के लिए कोई जगह नहीं है.
वो शादीशुदा थी और किसी की अमानत थी. वो अपने पति को धोखा नहीं देना चाहती थी मगर उसका अकेलापन उसको धोखा देने को कह रहा था.
उसको भी पता था कि इस तरह की दोस्ती का बस एक ही मतलब होता है और वो है चुदाई. मगर फिर भी वो मानने को तैयार नहीं थी.
ये सब सोचते सोचते मैं धीरे धीरे आगे बढ़ ही रहा था कि तभी पीछे से मुझे शायरा भी आती हुई दिखाई दी. उसको आता देख, मैं अब गुस्से में तेजी से चलने लगा और बस स्टाप पर आ गया. बस स्टाप आने पर शायरा तो वहीं रुक गयी मगर मैं पैदल ही आगे बढ़ गया और कॉलेज आ गया.
कॉलेज आकर मैंने अपना ध्यान पढ़ाई करने में लगाया मगर आज कहीं भी मेरा दिल नहीं लग रहा था. पता नहीं क्यों किताबों में भी मुझे बस शायरा ही शायरा नजर आ रही थी … और रह रह कर बस उसके ही ख्याल दिल में आ रहे थे.
शायरा क्या कर रही होगी? वो मेरे बारे में क्या सोच रही होगी? कहीं मैंने उसको इग्नोर करके कुछ गलत तो नहीं किया?
पर उसने भी तो मुझसे बात करने की कोशिश नहीं की. नहीं तो वो मुझसे बोलकर भी तो स्कूटी की चाबी दे सकती थी. और ना ही कल दिन में उसने मुझसे बात की. जब वो खुद ही बात नहीं कर रही, तो फिर मैं आगे से क्यों बात करूं?
मगर तभी ख्याल आया कि क्या इस तरह मैं शायरा को भूल पाऊंगा … और इसका जवाब था शायद ‘नहीं..’
शायद रात गयी बात गयी इस रूल के हिसाब से चलना चाहिए और मुझे ही उसने आगे आकर बात करके एक नयी शुरूआत करनी चाहिये.
पर अब पहले के जैसी दोस्ती भी तो नहीं हो सकती और ये बात शायरा को भी समझनी चाहिए.
रह रह कर मेरे दिमाग में बस यही सब घूम रहा था.
शायरा ने पता नहीं क्या कर दिया था कि वो मेरे दिमाग से निकल ही नहीं रही थी. ऐसा लग रहा था कि उससे दोस्ती करके मैंने खुद अपने पैरों पर कुल्हाड़ी मार ली थी.
एक दो क्लास में रहने के बाद मैं ममता जी के पास चला गया. मैंने सोचा कि उनसे बात करके दिल हल्का हो जाएगा मगर ममता जी से बात करते समय भी मेरे जहन में बस शायरा ही शायरा घूम रही थी.
शायरा एक पहेली सी बन गयी थी जो कि जितना हल करने का सोच रहा था … वो उतना उलझ रही थी.
जैसे तैसे मैंने कॉलेज में समय बिताया और कॉलेज खत्म होने के बाद कॉलेज से बाहर आ गया.
अब कॉलेज वापस घर जाने लगा, तो शायरा पहले की तरह ही आज भी मुझे बस स्टॉप पर खड़ी मिली … मगर मैं अब भी पैदल चलकर ही घर आ गया.
शायरा बस से आई थी इसलिए वो मुझसे पहले घर पहुंच गयी थी … मगर शायद मकान मालकिन से बात करने के लिए वो नीचे खड़ी हो गयी थी. इसलिए जब मैं घर पहुंचा तो वो मुझे उसके घर के सामने सीढ़ियों पर फिर से मिल गयी.
हमारी नज़र आपस में टकराईं, जिससे हम दोनों के चेहरे पर एक चमक सी आ गयी.
अब नज़रों के मिलते ही अपने आप एक दूसरे का नाम ज़ुबान पर आने को हो गया … मगर फिर अगले ही पल हमारे पैर एक दूसरे से दूर ले जाने लगे.
शायरा अब चुपचाप अपने घर का दरवाजा खोलकर अन्दर घुस गयी और मैं सीढ़ियां चढ़कर ऊपर अपने कमरे में आ गया.
शायद शायरा से बात ना करके जैसा हाल मेरा था, वैसा ही हाल उसका भी हो रहा था.
शायरा का अकेलापन अब उसको फिर से खाने लगा.
उसकी हंसी तो अब गायब सी ही हो गयी थी और चेहरा तो जैसे बुझ ही गया था. उसके चेहरे पर हंसी दिखाई भी देती, तो बस एक झूठी मुस्कान होती थी … पर एक दो दिन बाद तो वो भी गायब हो गयी.
मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था. ना खाना अच्छा लगता था और ना ही सोना. शायरा से मैं जितना दूर होना चाहता था, उसके उतने ही पास आ रहा था. पता नहीं शायरा ने क्या जादू कर डाला था मुझ पर.
हम दोनों के अब ऐसे ही दिन बीतने लगे. शायरा तो अपना दर्द हल्का करने के लिए मकान मालकिन के पास चली जाती थी … मगर मैं सारा दिन अपने कमरे में ही पड़ा रहता था.
इसी बीच मेरे भैया भी छुट्टी आ गए.
मैंने उस समय घर पर कमरा बदलने की बात कही थी जो भैया को पता चल गई थी.
उन्होंने शायद मकान मालकिन को फोन करके इसके बारे में पूछा होगा.
इसलिए एक दिन जब मैं कॉलेज से घर आया … तो मकान मालकिन ने मुझे रोक लिया और बताया कि तुम्हारे घर से फोन आया था.
क्या हुआ … तुमने घर पर कमरा बदलने के लिए कहा है क्या?
मैं- हां … न्.न.नहीं … वो..वो थोड़ा खाना पीना एडजस्ट नहीं हो पा रहा, इसलिए कुछ दिन के लिए घर जा रहा हूँ.
दरअसल उसी समय मेरे कॉलेज की भी हफ्ते भर के लिए छुट्टियां होने वाली थीं, इसलिए मैंने बहाना बना दिया.
मकान मालकिन- क्यों क्या हुआ? घर क्यों जा रहे हो?
मैं- वो कुछ दिन कॉलेज की छुट्टियां हैं और काफी दिन हो गए घर वालों से मिले … इसलिए यहां दिल नहीं लग रहा.
मकान मालकिन- फिर किसी से झगड़ा हुआ है क्या?
मैं- नहीं, ऐसी तो कोई बात नहीं है.
जब मैं मकान मालकिन से बात कर रहा था … उस समय शायरा भी वहीं पर थी और उसने भी हमारी बातें सुन ली थीं.
इसलिए उसकी आंखें अब थोड़ी गीली हो गईं.
मकान मालकिन से बात करके जब मैं वापस जाने लगा, तो एक नजर मैंने शायरा की तरफ भी देखा … मगर मेरे देखते ही उसने अपना चेहरा छुपा लिया.
शायरा को मेरा दूर जाना शायद अच्छा नहीं लग रहा था. और अच्छा लगता भी तो कैसे उसका दोस्त, उसका हमदर्द साथी, जो उससे दूर जा रहा था.
शायरा के लिए ये एक बड़ा झटका था, इसलिए उसकी आंखों में आंसू भर आए थे.
मगर जैसे ही मैंने उसकी ओर देखा, उसने अपना सिर नीचे कर लिया ताकि मैं उसके आंसू देख ना पाऊं.
शायद वो भी मुझे प्यार करने लगी थी, लेकिन ये सारे रास्ते ख़त्म भी तो उसने ही किए थे.
अब तो शायरा बस अपने घर में ही अकेली पूरा दिन बिताने लगी.
उसने नीचे मकान मालकिन के पास भी आना बन्द कर दिया, जिससे मकान मालकिन को तो शक भी हो गया कि वो ऐसी क्यों हो गयी है.
मगर शायरा ने बीमारी का बहाना बना दिया, पर मैं जानता था कि शायरा को कौन सी बीमारी हुई है.
साथियो प्रेम के साथ सेक्स कहानी में अब वियोग के पल आ गए थे. मगर आगे इस प्रेम में सेक्स कहानी का मजा भी मिलेगा. आप बस मुझे मेल करना न भूलें.
आपका महेश
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कहानी जारी है.