यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
शायरा ने भी अब मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया था, जिससे हम दोनों ही इस दुनिया को पीछे छोड़ कर अब अपनी एक नयी ही दुनिया में खो गए थे.
हैलो फ्रेंड्स, मैं महेश आपको शायरा की प्रेम और सेक्स कहानी में आपका स्वागत करता हूँ.
अब तक आपने पढ़ा था कि शायरा मुझसे रूठ गई थी और वो बीमारों जैसी दिखने लगी थी.
अब आगे:
मेरी और मकान मालकिन घर जाने वाली बात हुए वो चौथा दिन था.
उस दिन मुझे घर के लिए निकलना था, इसलिए मैं कॉलेज से जल्दी घर आ गया.
मैं ऊपर जा ही रहा था कि तभी मकान मालकिन बोल पड़ीं- ऊपर जा रहे हो तो जरा ये भी लेकर जाना.
मकान मालकिन ने एक खाने के डब्बे को मेरी तरफ बढ़ाते हुए कहा.
मैंने सोचा कि मैं आज घर जा रहा हूँ इसलिए मकान मालकिन ने मेरे लिए कुछ बनाकर दिया है इसलिए.
मैं- क्या कुछ स्पेशल है क्या?
वो- नहीं, वो शायरा की तबियत ठीक नहीं है ना … इसलिए उसके लिए कुछ खिचड़ी बनाई है.
मैं थोड़ा असहज सा हो गया.
क्योंकि ना तो शायरा मुझसे बात करती थी और ना ही मैं शायरा से बात करता था.
फिर मैं उसे ये खाने का डब्बा कैसे दूंगा?
मगर मैं मकान मालकिन को मना नहीं सकता था, इसलिए मैं वो डब्बा लेकर ऊपर आ गया.
वो खाने का डब्बा लेकर मैं ऊपर तो आ गया … मगर मैंने उसे सीधा शायरा को नहीं दिया बल्कि उसे शायरा के घर के दरवाजे के पास रख दिया और उसके घर के दरवाजे को एक बार जोर से खटखटाकर ऊपर भाग आया.
ऊपर से मैं अब काफी देर तक छुपकर देखता रहा कि शायरा उस डब्बे को कब लेने आई, मगर शायरा के घर का दरवाजा तो खुला ही नहीं.
हो सकता है शायद वो सो रही हो या फिर किसी और काम में व्यस्त हो. ये सोचकर कुछ देर बाद मैंने एक बार फिर से उसके घर के दरवाजे को खटखटाया मगर फिर भी शायरा के घर का दरवाजा नहीं खुला.
ऐसे ही एक बार, दो बार, तीन बार. मैंने तीन बार लगातार शायरा के दरवाजे को जोर जोर से पीटा, तब जाकर कहीं उसके घर का दरवाजा खुला और वो बाहर आई.
शायरा के बाहर आते ही मैं तो उसको ही देखता रह गया. क्योंकि ये क्या से क्या हालत हो गयी थी उसकी? जिस शायरा की तारीफ करते मैं कभी थकता नहीं था, वो अब किसी भिखारिन से भी बदतर लग रही थी.
उसके बाल ऐसे बिखरे हुए थे, जैसे सालों से कंघी ना की हो. साड़ी ज़बरदस्ती पहनी गयी हो, आंख के पास काले स्पॉट आ गए थे. चेहरे का तेज़ … तो जैसे गायब ही हो गया था. शायरा को कभी इस हालत में भी देखूंगा, मैंने तो सोचा भी नहीं था.
शायरा ने अब एक बार तो इधर उधर देखा … फिर चुपचाप वो खाने का डब्बा उठाकर अन्दर चली गयी.
शायद उसने सोचा कि मकान मालकिन उसे देने आई होंगी … मगर जब वो देर तक बाहर नहीं आई, तो वो यहां रखकर चली गयी.
शायरा के अन्दर जाने के बाद मैं भी अपने कमरे में आ गया. मगर उसकी इस हालत को देखने के बाद मुझे अब बेचैनी सी हो गयी थी और दिल में रह रहकर दर्द की एक सुनामी सी उठने लगी.
मुझे उस दिन अपने घर के लिए निकलना था, मगर शायरा की हालत देखने के बाद मुझे अब घर जाने की बजाए शायरा से मिलना ज्यादा जरूरी लग रहा था. क्योंकि उसकी इस हालत का जिम्मेदार मैं था.
पहले शायरा अकेली थी, पर जी रही थी. मेरे आने से उसको कुछ खुशियां मिली थीं, जीने की एक सुंदर वजह मिली थी, मगर वो सब कुछ शायद मैंने छीन लिया था. मैंने उसकी लाइफ को नर्क से भी खराब बना दिया था.
पहले वो अकेली ही थी … लेकिन अब वो अकेली होने के साथ कमजोर भी हो गयी थी. उसका हज़्बेंड तो उससे दूर था ही, मेरे रूप में उसे एक दोस्त मिला था, उसको भी मैंने जाने अनजाने में उससे छीन लिया था.
शायरा के चेहरे पर पहले झूठी हंसी तो होती ही थी … पर शायद मैंने वो भी छीन ली थी.
ऐसे में मैं शायद उसका गुनहगार बन गया था. उसकी हालत देखने के बाद मुझे खुद पर ही गुस्सा आ रहा था, क्योंकि उसकी इस हालत का जिम्मेदार मैं था.
शायरा मेरे साथ दोस्त की तरह रहना चाहती थी … मगर मैं ही उससे गलत उम्मीद लगाए बैठा था.
वो तो बस मुझसे दोस्ती रखना चाहती थी … मगर मैंने ही उस दिन अपनी लिमिट क्रॉस करके उसके विश्वास को तोड़ा था.
मुझे उस दिन अपने घर के लिए निकलना था और इसके लिए ही मैं कॉलेज से जल्दी आया था. मगर मुझे अब शायरा के बारे में सोचते सोचते ही दोपहर से शाम हो गयी.
वैसे अब एक बात तो तय थी और वो ये थी कि शायरा भी मुझसे प्यार करने लगी थी. पर ये बात शायद वो खुद जानती नहीं थी … इसलिए ही तो वो मुझसे अभी तक गुस्सा थी. आज उसकी देवदासी वाली हालत बता रही थी कि वो मुझसे कितना प्यार करने लगी थी.
मैंने अब सोच लिया कि शायरा मुझसे खुद बात करे या ना करे, मगर मैं उससे जाकर जरूर बात करूंगा. शायरा अगर मुझे अपना लवर बनाकर रखेगी तो उसका लवर … और अगर वो मेरे साथ दोस्त बनकर रहना चाहती है … तो उसका हमदर्द दोस्त ही बनकर रहूंगा. मगर शायरा का साथ कभी नहीं छोडूँगा.
शायरा के लिए मेरे दिल में जो दर्द उठ रहा था, वो अब बेचैनी सी बन गया था. शायरा के पास जाने के लिए मैं अब एक सेकेंड भी गंवाना नहीं चाहता था … इसलिए मैं तुरन्त ही नीचे शायरा के घर आ गया.
शायरा के घर का दरवाजा वैसे तो बन्द था … मगर अन्दर से कुंडी नहीं लगी थी इसलिए मैं सीधा अन्दर घुस गया. अन्दर सामने ही डायनिंग टेबल पर मैंने जो खाने का डब्बा दिया था, वो वैसे का वैसे रखा था. शायद शायरा ने उसे खोलकर भी नहीं देखा था.
शायरा बाहर नजर नहीं आ रही थी. वो शायद बेडरूम थी … इसलिए मैं अब उसके बेडरूम की तरफ आ गया.
बेडरूम का दरवाजा खुला था इसलिए बेडरूम की तरफ जाते ही शायरा मुझे सामने ही बेड पर बैठी नजर आई.
शायरा को देखते ही अब एक बार तो मेरा दिल किया कि अभी भाग कर उसको गले लगा लूं, पर मेरी नज़र उसके मायूस चेहरे की तरफ चली गयी.
वो दीवार की तरफ बिना पलकें झपकाये पता नहीं क्या देख रही थी या फिर पता नहीं कुछ सोच रही थी.
इस तरह शायरा को अकेला देख कर मुझे बड़ा दुख हुआ.
शायरा को तो पता ही नहीं था कि मैं अन्दर आ गया. शायद उसको होश ही नहीं था. वो तो जैसे शून्य में खोई हुई सी थी. अजीब अजीब ख्याल आ जाते हैं जब कोई अकेला होता है. शायरा की इस हालत का ज़िम्मेदार मैं था.
शायरा ने तो अकेले जीना सीख लिया था. पर मेरी वजह से वो जीना क्या ‘जीना क्या होता है.’ ये तक भूल गयी थी.
उसको ऐसे देख कर मेरी भी आंखों में आंसू आ गए, पर मुझे अब शायरा के आंसुओं को खुशियों में बदलना था.
मैं अब कभी शायरा को अकेला नहीं पड़ने दूँगा. मैं शायरा को प्यार करने की अब कभी भी ज़िद नहीं करूंगा.
अगर शायरा मुझे दोस्त बना कर ही रखना चाहती है, तो यही सही पर शायरा इस तरह उदास नहीं होने दूँगा.
मैं शायरा के बेडरूम में अन्दर चला गया, पर शायरा तो होश ही खोये बैठी थी, जिससे उसको पता भी नहीं चला कि मैं उसके पास आ गया हूँ. वो वैसे ही दीवार की तरफ देखती रही.
शायरा की तरफ से रेस्पॉन्स ना पा कर मैं उसके पास ही बेड पर बैठ गया और उसको शून्य की दुनिया से वापस लाने के लिए उसके हाथ को अपने हाथ में लेकर हल्के से चूम लिया.
मेरे चूमते ही शायरा ने अब एक बार तो मेरी तरफ देखा, फिर वो वापस दीवार की तरफ देखने लगी.
शायद वो सोच रही थी कि ये सब वो सपना देख रही है, जिससे उसकी आंखों में आंसू भी निकल आए.
शायरा की आंख से निकल रहा एक एक आंसू मेरे दिल को तेज़ाब की तरह जलाने लगा. शायरा का इस तरह रोना मुझे छलनी छलनी कर रहा था. इसलिए मैंने शायरा के हाथ को पकड़कर फिर से चूम लिया.
शायरा भी फिर से मेरी तरफ देखने लगी. उसकी आंखों से अब आंसू निकलना तो बंद हो गए, मगर वो अब भी हैरानी से मुझे घूर घूर कर देख रही थी. शायद उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि मैं सच में उसके पास आ गया हूँ. इसलिए उसके हाथ को मैं अब लगातार चूमता ही रहा.
मेरे ऐसे लगातार चूमने से शायरा भावुक हो गयी और मेरे गले लगकर फूट फूट कर रोने लगी.
शायरा मेरे गले लग कर खुद के दर्द को हल्का करना चाहती थी, इसलिए मैंने भी उसको सहारा दिया.
मेरी बांहों में आते ही शायरा को इतना सुकून मिला कि जैसे उसको मेरा ही इंतज़ार था.
शायद वो तो चाहती ही बस ये थी कि अगर मैं सच में उसका दोस्त हूँ या उसको प्यार करता हूँ, तो मैं खुद उसके पास आऊं.
शायरा शायद मेरी परीक्षा लेना चाहती थी और देखना चाहती थी कि मेरा प्यार कहीं वासना तो नहीं.
पर अब वो खुश थी कि मैं उसके पास हूँ इसलिए उसने मुझे और भी कस के गले लगा लिया.
शायरा का इस तरह से मेरे गले से लगना … काफी कुछ बयां कर रहा था.
वो तो मुझे छोड़ ही नहीं रही थी.
शायद शायरा को डर था कि ये सब सपना है और वो मुझसे अलग होगी, तो उसका ये सपना टूट जाएगा.
पर उस पगली को ये कौन समझाता कि ये सपना नहीं बल्कि हक़ीकत है.
शायरा की तरह मैं भी उसको खुद से दूर नहीं करना चाहता था. क्योंकि शायरा से दूर रह कर मैं भी तो ठीक से कहां जी नहीं पा रहा था.
इसलिए मैंने भी अब उसको कस कर अपनी बांहों में भींच लिया.
शायरा की धड़कनों से मेरी धड़कनें अब मिलने लगी थीं, जिससे हमारे दिल प्यार से भरने लगे.
शायरा के दिल को अब मैं पा रहा था … तो शायरा मेरे दिल को अपना बना रही थी.
हम दोनों के दिल एक हो रहे थे और शायरा के रेशमी बाल हम दोनों के मिलन को सब से छुपा रहे थे.
शायरा तो मुझसे चिपके चिपके अब दोनों हाथों से मेरी पीठ को भी सहलाने भी लगी थी और मेरे गालों को चूमते हुए अपने गीले शिकवे व शिकायतें सुनाने लगी कि मैं उससे दूर क्यों गया.
मैं भी शायरा की गर्दन को चूमते हुए उसकी सारी शिकायतों को अपने प्यार से ख़त्म करने लगा. जिससे शायरा मेरी बांहों में अब मचलने लगी मगर उसने खुद को मुझसे दूर नहीं किया.
हम दोनों ही प्यार की आग में जल रहे थे … इसलिए हम ऐसे ही प्यार करते गए और एक दूसरे को चूमते चूमते बिस्तर पर लेट गए.
शायरा तो बस मेरी गर्दन व सिर को ही चूम रही थी … मगर मैंने उसके चेहरे को भी किस करना शुरू कर दिया, जिससे उसकी पकड़ अब ढीली हो गयी और उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ कर लिया.
शायरा शायद शर्मा रही थी. क्योंकि मैंने शायरा के चेहरे को अपनी तरफ भी किया, तो उसने अपनी आंखें बंद कर लीं. मैं ये क्या कर रहा था … मुझे खुद समझ नहीं आ रहा था.
इसके बाद आगे क्या होगा और ये सब मैं शायरा को कैसे समझाऊंगा. उस समय तो ये सब चीजें मेरे दिमाग़ से परे थीं. शायरा भी होश में नहीं थी … या फिर वो यही चाहती थी कि हम होश में ना रहें.
अगर होश में आने के बाद उसको ये पसंद नहीं आया तो? तो वो अब बाद में देख लूंगा. अभी तो मैं शायरा को उसके हिस्से की खुशी देना चाहता था. किसी ने सच ही कहा है कि जब किसी को प्यार होता है, तो वो दिमाग़ से नहीं दिल से सोचता है. मेरा भी हाल कुछ ऐसा ही था.
मैंने शायरा के चेहरे को गौर से देखा, इस समय शायरा के चेहरे को पढ़ना मुश्किल था. उसके चेहरे पर खुशी, गम, दुख, प्यार, नफ़रत, ऐसा बहुत कुछ था. अगर उसकी आंखें खुली होतीं … तो मैं कुछ समझ भी पाता, पर शायरा ने अपनी आंखें बंद कर रखी थीं.
मैंने उसकी आंखों पर किस भी किया मगर शायरा ने अपनी आंखें नहीं खोलीं. मैंने उसके माथे पर, फिर उसके गालों पर भी किस किया. फिर भी उसने अपनी आंखें तो नहीं खोलीं, मगर जब मैं उसके चेहरे पर जगह जगह किस करने लगा, तो उसके होंठ कंपकंपाने से लगे.
पता नहीं ऐसे क्यों कांप रहे थे शायरा के होंठ … मेरे होंठों से मिलने के लिए या मेरे होंठ उसे ना छुए इसलिए?
ये तो मुझे नहीं पता था … मगर फिर भी मैं अब उसके होंठों की तरफ अपने होंठ ले जाने लगा.
शायरा के होंठों से रस टपक रहा था. उसने अपने होंठों को दातों में दबा कर रखा था. पर जैसे ही मेरे होंठ उसके होंठों के पास आए, उसके होंठों ने उसको धोखा दे दिया और उसके होंठ स्वतः ही मेरे होंठों से आ मिले.
मैंने भी अब अपने होंठों को शायरा के होंठों से जोड़ दिया. मगर मेरे होंठों के उसके होंठों से लगते ही शायरा ने अपनी आंखें एक बार खोल कर बंद की. ये इतना जल्दी हुआ कि मैं उसकी आंखों में देख नहीं पाया था.
खैर … शायरा के होंठों का स्पर्श इतना कोमल था कि मैं अब कुछ देर के लिए तो जैसे खुद को ही भूल गया कि मैं कहां हूँ … और क्या कर रहा हूँ. मैं बस उसके होंठों पर अपने होंठ रख कर बिना कुछ किए चार पांच मिनट तो वैसे ही उसके होंठों को ही महसूस करता रहा.
पर शायरा के होंठों की छुअन से प्यार के साथ साथ मेरी प्यास भी बढ़ रही थी. उसने अपने होंठों पर लिपस्टिक नहीं लगाई थी … फिर भी उसके होंठ गुलाब की तरह गुलाबी थे, जो कि मुझे प्यासा बना कर अपना गुलाबी रस पीने को कह रहे थे.
मैंने भी अब बिना कुछ सोचे समझे उसके नाज़ुक होंठों के रस पीना शुरू कर दिया.
जैसे ही मेरे होंठों ने शायरा के होंठों के रस को पीना शुरू किया, एक बार फिर से उसने अपनी बड़ी बड़ी आंखें खोलकर बन्द की, मगर फिर अगले ही पल उसने भी धीरे धीरे मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया.
शायरा के होंठों का रस इतना मीठा था कि उसके सामने पूरी दुनिया फीकी लग रही थी.
मेरे साथ साथ शायरा ने भी अब मेरे होंठों को चूसना शुरू कर दिया था, जिससे हम दोनों ही इस दुनिया को पीछे छोड़ कर अब अपनी एक नयी ही दुनिया में खो गए थे.
वैसे तो मैंने शायरा को उस रात भी किस किया था … पर उस रात किस करके जो फील हुआ था, उससे कहीं ज़्यादा स्वीट था ये किस. क्योंकि इस चुम्बन में उस रात के जैसी वासना नहीं थी … बस प्यार ही प्यार भरा था … जिससे शायरा मेरी हो रही थी.
इस किस से हमारे प्यार के मंदिर की पहली नींव रखी जा रही थी. ये किस हमारे एक होने का सबूत था क्योंकि इस किस से हम दोनों को प्यार मिल रहा था. शायरा के रस को पीकर मैं उसको अपना प्यार दे रहा था और मेरे होंठों को चूसकर शायरा मुझे अपना प्यार दे रही थी.
मैं शायरा के साथ चूमाचाटी में लगा था. क्या वो मेरे साथ सेक्स करना पसंद करेगी. ये सब मैं अगले भाग में विस्तार से लिखूंगा.
आपके मेल का आकांक्षी आपका महेश
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कहानी जारी है.