यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
मैं सच बोल कर तुम्हें अपनी बांहों में रखना चाहता हूँ, बिस्तर में नहीं. बिस्तर पर तो बस हवश पूरी होती है … मगर बांहों में रखने से प्यार बढ़ता है.
हैलो फ्रेंड्स, मैं महेश आपको सेक्स कहानी के इस भाग में आगे का मजा देने फिर से आ गया हूँ.
अब तक आपने पढ़ा था कि चुदाई के बाद शायरा बाथरूम में चली गई थी. वो उधर से एक पीले सफ़ेद रंग का सलवार सूट को पहन कर बाहर आ गई थी.
अब आगे:
मैं- यहां पहले ही भूख से जान निकल रही है, ऊपर से क्या ये तुम कढ़ी चावल बन कर आ गई हो.
शायरा को ये समझ नहीं आया इसलिए वो फिर से शाक्ड होकर मेरी तरफ देखने लगी कि मैं ये क्या बोल रहा हूँ.
मैं- अरे मैं तुम्हारे इन कपड़ों की बात कर रहा हूँ. इस पीले सूट और सफेद सलवार में बिल्कुल कढ़ी चावल लग रही हो. जी तो कर रहा है तुम्हें अभी के अभी खा जाऊं.
मेरी ये बात सुनकर शायरा के चेहरे पर अब हल्की सी मुस्कान आ गयी.
मगर उसने अपना चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया.
वो धीरे धीरे अब कुछ नॉर्मल हो रही थी.
मैं- अब कर क्या रही हो, चलो खाना खाते हैं.
वो- पर मैंने खाना तो बनाया ही नहीं.
मैं- तो अभी बना लो, मुझे भी बहुत दिन हो गए तुम्हारे हाथों का टेस्टी टेस्टी खाना खाए.
अब मैं अपने बिल्कुल पुराने वाले मूड में आ गया था और पहले के जैसे खुलकर बात कर रहा था, जिससे शायरा अब फिर से मेरी तरफ देखे जा रही थी.
मैं- देखो क्या हाल बना रखा है तुमने अपना. मुझे पता है तुम ठीक से खाना नहीं खा रही, तभी तो ऐसी हालत हो गयी है. ये दिन में जो मकान मालकिन ने खाना दिया था … वो भी अभी तक ऐसे ही रखा हुआ है.
शायरा को नहीं पता था कि दोपहर में उसके दरवाजे के सामने खाने का डब्बा मैं रख कर गया था, इसलिए वो अब मेरे मुँह की तरफ देखने लगी.
वो- तुम्हें कैसे पता कि दिन में मकान मालकिन खाना दिया था … जो मैंने खाया नहीं?
मैं- आज दिन में तुम्हारे दरवाजे के पास ये खाने का डिब्बा मैं ही रख कर गया था जो वैसे का वैसे ही रखा हुआ है. तुमने इसे खोलकर भी नहीं देखा है.
वो- व्. व.वो ..
मैं- रहने दो, पता है तुम यही कहोगी कि भूख नहीं थी, पर अभी तुम खाना बना रही हो और फिर हम साथ में खाना खाएंगे … और इसके बारे में मुझे अब कुछ नहीं सुनना.
वो- अब इतनी रात में क्या बनाऊं?
मैं- कुछ भी बना लो, कहो तो चलो मैं भी कुछ हेल्प कर देता हूँ.
शायरा के साथ मैं भी अब किचन में आ गया. किचन में साग सब्जी तो कुछ था नहीं … और काफी देरी भी हो गई थी, इसलिए हमने दाल चावल ही बनाने का डिसाईड किया.
शायरा अब दाल चावल बनाने में लग गयी.
और मैं … मुझे और कुछ तो आता नहीं था … इसलिए दाल में तड़के के लिए मैं प्याज टमाटर काटने लगा.
प्याज काटने से मेरी आंखों में अब आंसू आ रहे थे इसलिए मेरी हालत खराब हो रही थी.
मैं- देखो अब तुम्हारी दोस्ती के चक्कर में क्या क्या करना पड़ रहा है, अगर प्रेमी होता … तो तुम्हें कहीं बाहर लेकर जाता और हम किसी अच्छे से होटल में कैण्डल लाईट डिनर कर रहे होते. पर दोस्त हूँ ना … और इस दोस्ती के चक्कर में अब प्याज काटनी पड़ रही है.
इस बार तो शायरा मेरी बात पर हंसे बिना नहीं रह सकी.
वो- तुम तो आज अपने घर जाने वाले थे ना?
शायरा अब बिल्कुल नॉर्मल लग रही थी.
मैं- हां जाने वाला तो था, पर तुम्हारी वजह से नहीं गया.
अब शायरा मेरी तरफ हैरानी से देखने लगी.
मैं- मैंने सोचा तो था कि तुमसे अब कभी नहीं मिलूंगा और चुपचाप घर चला जाऊंगा. मगर आज जब ये खाना देने आया और तुम्हारी हालत देखी, तो मेरी तुमसे दूर जाने की हिम्मत नहीं हुई.
वो- वो तो.
मैं- हां … हां … पता है मुझे, अब यही कहोगी ना कि तुम्हारी तबियत खराब है, पर मुझे पता है ये तबियत किस लिए खराब हुई है!
शायरा बस मुझे सुने जा रही थी.
मैं- अब तुम तो ये मानोगी नहीं कि तुम्हें भी मुझसे प्यार है … और न ही ये कि तुम खुद मुझसे बात करने वाली थी, तो मैंने ही सोचा कि चलो मैं ही तुमसे मिलकर बात कर लेता हूँ.
शायरा मेरी बात अब बड़े ही ध्यान से सुन रही थी इसलिए मैं बोले जा रहा था.
मैं- प्यार नहीं सही, पर कम से कम दोस्त बनकर तो तुम्हें कुछ खुशियां दे ही सकता हूँ. पर तुम तो बड़ी मतलबी निकलीं. मुझसे तो मेरे दिल का चैन ले लिया … पर अपने दिल में थोड़ी सी जगह देने में भी इतना सोच रही हो.
शायरा मेरी बात सुनकर फिर से शॉक्ड हो गयी थी.
उसका चेहरा अब देखने लायक था.
मैंने शायरा को अपनी बातों पर अब फिर से सोचने पर मज़बूर कर दिया था, जिससे वो फिर से कहीं खो सी गयी थी.
मैं- अब क्या सोच रही हो?
वो- तुम कितना प्यार करते हो मुझे?
मैं- अब ये तो नहीं जानता … पर मैं तुम्हें बस प्यार करता हूँ. ना मैं तुम्हारे लिए चाँद तारे तोड़ सकता हूँ और ना ही तुमसे शादी कर सकता हूँ. ना तुम्हारे लिए अपनों को छोड़ सकता हूँ, पर प्यार करता हूँ तुमसे. मैं तुम्हारे लिए जान भी नहीं दे सकता, क्योंकि मैं तुम्हारे साथ जीना चाहता. तुम्हारी रक्षा कर सकता हूँ, पर तुम्हें बदनाम नहीं होने दे सकता. बस इतना ही प्यार करता हूँ.
मेरे जवाब ऐसे थे कि शायरा हैंग सी हो गयी.
एक पढ़ी लिखी लड़की होने के बाद भी शायरा मेरे जवाब पर कोई रियेक्शन नहीं दे पा रही थी.
जब झूठ कहो तो लड़किया खुश होती हैं … और सच कहो तो सोचती रह जाती हैं. यही स्थिति शायरा की दिख रही थी.
मैं- अब क्या हुआ?
वो- तुम्हारे जवाब ऐसे अजीब क्यों होते हैं?
मैं- क्योंकि मैं झूठ नहीं बोलता, जो दिल में आता है, वो बोल देता हूँ.
वो- तो झूठ बोलना सीख लो ना!
मैं- सच कहूँ, अगर मैं झूठ बोला तो आज तुम मेरे बिस्तर पर होतीं न कि मैं तुम्हारे. बांहों की जगह मैंने सीधा सीधा ही बिस्तर कहा … जिससे शायरा को अब और एक झटका लगा.
मैं- तुम्हें मेरे बिस्तर पर लाना मेरे लिए कोई मुश्किल काम नहीं था. तुमने उस रात जब मुझसे पूछा था ना कि अगर तुम अपने पति से डायवोर्स ले लो, तो क्या मैं तुमसे शादी कर लूंगा. मुझे पता था कि उस दिन तुम ये दिल से पूछ रही थी. अगर मुझे झूठ ही बोलना होता तो मैं उस दिन ही बोल देता, पर मैं सच बोल कर तुम्हें अपनी बांहों में रखना चाहता हूँ, बिस्तर में नहीं.
वो- और दोनों में अन्तर क्या है?
मैं- अन्तर है, बहुत अन्तर है. बिस्तर पर तो बस हवश पूरी होती है … मगर बांहों में रखने से प्यार बढ़ता है. पर क्या करें … लोगों को सच से ज्यादा झूठ पसंद होता है … क्योंकि झूठ से उम्मीद जिंदा रहती है … और सच से सारी उम्मीद ख़त्म हो जाती है. सच से ख़ुशियां मिलती हैं, जो ज़िंदगी भर साथ रहती हैं … और झूठ से जो हंसी मिलती है … जो बस चार दिन की होती है.
वो- काश … काश मेरी शादी ना हुई होती.
मैं- काश की बातें मत करो. जो हुआ वो बदला नहीं जा सकता, पर जो नसीब से मिलता है, उससे इन्कार भी नहीं करना चाहिए. ज़िंदगी एक बार मिलती है, उसमें अपने सारे सपने, सारी ख़ुशियां पाने की कोशिश करते रहना चाहिए.
मुझे नहीं मालूम कि मरने के बाद स्वर्ग और नर्क है भी कि नहीं. मैं नहीं जानता कि फिर से जन्म होता है कि नहीं. मुझे नहीं पता कि पाप करने से अगले जनम में बुरा होता है, पर मैं बस इतना जानता हूँ कि एक ज़िंदगी है … इसको जी भरके जीना चाहिए. जो अच्छा लगे वो वो सब करो.
वो- एक ज़िंदगी है … तो इसका ये मतलब नहीं होता कि कुछ भी करो.
मैं- पर ज़िंदगी जब खुद कहे कि तुम्हें एक और चांस और दे रही हूँ ‘जी लो ..’ तो ज़्यादा सोचना नहीं चाहिए.
वो- मेरी ज़िंदगी में यही लिखा है.
मैं- ज़िंदगी हम खुद बनाते हैं.
वो- तुम दूसरों जैसे क्यों नहीं हो?
मैं- दूसरों के जैसा होता, तो मैं तुम्हें इतना प्यार नहीं करता. दूसरों के जैसे मेरे दिल में भी तुम्हारे लिए हवस होती प्यार की जगह … और दूसरों जैसा होता तो तुम भी तो मुझसे प्यार नहीं करती.
वो- पता नहीं क्या हो रहा है, तुम पास होते हो … तो लगता है तुम दूर रहो … और दूर रहते हो, तो लगता है पास रहो.
मैं- इसे ही तो प्यार कहते हैं.
वो- प्यार नहीं … ये कन्फ्यूजन है.
मैं- तो फिर इस कन्फ्यूजन से बाहर निकलो … और अपने दिल की सुनो.
वो- ये इतना आसान नहीं है.
मैं- आसान बनाना पड़ता है. अब मुझे ही देखो … मैंने तुम्हें प्रपोज़ किया और तुमने जब जवाब नहीं दिया, तो मैं तुम्हारा दोस्त बन गया और ये तुम पर छोड़ दिया कि मैं दोस्त हूँ या प्रेमी? अब ये डिसीजन तुम करो.
वो- मुझे टाइम चाहिए.
मैं- और एक बात…
वो- क्या?
मैं- दाल चावल पक गए होंगे … बहुत देर से कुकर में सीटियां आ रही हैं.
बातों बातों में शायरा भूल गयी थी कि उसने कुकर में पकने के लिए दाल चावल रखे हुए हैं … इसलिए मैंने उसे अब याद दिलाया.
वो- सॉरी … मेरा ध्यान नहीं रहा.
मैं- इसी लिए कहता हूँ कि फाइनल कर ही डालो मेरे बारे में!
वो- देखती हूँ..
मैं- ज़्यादा सोचो मत, तुम प्रेमी बनाओगी … तो भी मैं यही रहूँगा और दोस्त बनाओगी, तो भी मैं तुम्हारे साथ रहूंगा. दोस्त बनाओगी, तो भी तुम्हें हंसी दूँगा … और प्रेमी बनाओगी तो भी तुम्हें खुशियां दूँगा. बस दोनों में सिर्फ़ थोड़ा सा फर्क होगा.
वो- और वो क्या?
मैं- दोस्त दिन में हंसी देगा और प्रेमी दिन रात खुशी देगा.
वो- तुम मुझे बहुत कन्फ्यूज़ करते हो.
मैं- कन्फ्यूज़ तो तुम खुद हो.
वो- ठीक है, मुझे सोचने दो.
मैं- इतना भी मत सोचो … अब तो दाल भी बन गयी.
शायरा के साथ बातें ऐसी हो रही थीं, जैसे उसके हां ना पर मेरी ज़िंदगी टिकी हो.
मेरी बातों पर शायरा भी पूरा फोकस कर रही थी … पर वो कुछ फ़ैसला नहीं कर पा रही थी.
वो- मैंने कहा ना मुझे सोचने दो.
मैं- ठीक है तो सोचती रहो, पर मुझे भूख लगी है, खाना बन गया हो दो प्लेट में डाल दो. खाना खाकर मुझे अब सोना है.
वो- सॉरी … व्.व.वो …
मैं- अब बात मत करो और चुपचाप खाना डालो. रात के बारह बज रहे हैं. अब तुम्हारी हां के चक्कर में यहां किचन में ही खड़े खड़े सुबह हो जाएगी.
शायरा इसके आगे कुछ कहती कि तभी मैं बीच में ही बोल पड़ा, जिससे वो मेरी तरफ गुस्से से देखने लगी.
बड़ा अजीब था मैं शायरा के लिए लगा था. वो मेरी तरफ पीठ करके खड़ी हो गयी और चुपचाप खाना डालने लगी.
मैं- शायरा.
वो- तुमने बात करने से मना किया ना … तो अब क्या है डाल तो रही हूँ खाना.
मैं- नहीं … वो तुम्हारे पैरों पर कॉकरोच है.
वो- क्याआआ?
शायरा कॉकरोच के नाम से डर गयी, पर उसके उछलने से पहले मैंने कॉकरोच को पकड़ लिया और उसे शायरा को दिखाते हए बोला.
मैं- ये देखो.
वो- दूर करो इसे.
मैं- बहुत देर से घूम रहा था इधर उधर ये.
वो- तो दिखा क्या रहे हो … मारो इसे.
मैं- जाने दो बेचारे को, लगता है ये भी तुमसे प्यार करता है … इसलिए कब से तुम्हारे आगे पीछे घूम रहा है.
वो- तो पहले नहीं बता सकते थे.
मैं- सोच रहा था कि ये तुम्हारे कपड़ों में घुस जाएगा, तब बताऊँगा ताकि इसे तुम मुझे निकालने को कहो.
वो- अच्छा तो ये सोच रहे थे तुम!
मैं- अगर ये सोचता मोहतरमा … तो बताता नहीं.
वो- तो फिर क्यों बताया?
मैं- प्रेमी होता तो नहीं बताता, क्योंकि कॉकरोच की वजह से प्यार करने को मिलता … पर दोस्त हूँ ना, इसलिए बता दिया.
वो- प्लीज़ अब ये दोस्त और प्रेमी का टॉपिक फिर से शुरू मत करो … और जैसे दूसरे लड़के रहते हैं, वैसे रहो, दूसरे लड़के जैसे सोचते हैं, वैसा करो.
शायरा का इतना कहना हुआ कि मेरा उस कॉकरोच को शायरा के ऊपर फेंकना हुआ.
‘आआआ … मम्मीईईई ..’
कॉकरोच को फेंकते ही शायरा उछल कर अब मेरी बांहों में आ गयी.
वो- पागल हो क्या, ये क्या कर रहे हो?
मैं- तुमने ही तो कहा जैसे दूसरे लड़के रहते हैं … वो जो करते हैं … वैसे रहो.
वो- तो इसे मेरे ऊपर क्यों फेंका?
मैं- दूसरे लड़के भी यही करते हैं, तो मैंने भी यही किया कि तुम कोकरोच से डरो और मेरी बांहों में आ जाओ.
वो- तुम पागल हो पूरे!
मैं- हां वो तो हूँ पर तुम्हारे प्यार में.
वो- तुम ऐसे क्यों हो?
मैं- मैं बस ऐसा ही हूँ … पर जैसा भी हूँ, तुम्हारे लिए हूँ.
शायरा अब कुछ देर ही मुझसे चिपकी रही, फिर उस कॉकरोच के भागते ही वो भी मुझे छोड़कर अलग हो गयी.
वो- चलो अब खाना खा लो.
मैं- हां … हां … चलो बहुत भूख लगी है.
हम दोनों साथ में बैठकर खाना खाने लगे. मैं तो खाने पर अब ऐसे टूट पड़ा जैसे कि पता नहीं कब से खाना ना खाया हो, जिससे शायरा मेरी तरफ देखती रह गयी.
मैं- ऐसे क्या देख रही हो?
इस पर शायरा झेंप गयी- क्क..क.कुछ नहीं … इतनी भूख लगी है क्या?
मैं- हां … और फिर तुम्हारे हाथों में तो जादू है … बहुत दिन के बाद मिल रहा है ये टेस्टी वाला खाना … इसलिए कन्ट्रोल नहीं हो रहा.
वो- बस अब ये तारीफ फिर से शुरू मत करो … और चुपचाप खाना खाओ.
अब देखते ही देखते मैंने और शायरा ने सारा खाना खत्म कर दिया.
शायरा ने तो फिर भी कम ही खाया था मगर मैंने तो जी भर के खाया. सच में खाना बहुत स्वादिष्ट था … इसलिए खाना खाकर मैंने अब वापस जाते समय शायरा के हाथ पर किस कर दिया.
मैं- सच में तुम्हारे हाथों में जादू है. वैसे तो मैं किस तुम्हारे गाल पर करता, पर वो हक तो तुमने दिया नहीं, इसलिए हाथ पर ही किस कर दिया.
मेरी हर बात पर शायरा हैंग हो रही थी.
मैं तो उसके घर से आ गया मगर मेरे जाने के बाद भी शायरा सोचती रह गयी.
शायरा को मैंने पूरी तरह से कन्फ्यूज़ कर दिया था. वो डिसिजन नहीं ले पा रही थी कि उसे क्या करना है. मुझे दोस्त मान कर जीना है … या मेरे साथ प्रेमी बन कर जीना है.
वैसे शायरा को पटाने में मुझे इतना टाईम कभी नहीं लगता … पर मुझे उससे प्यार हो गया था. उसे बस चोदना ही होता … तो मैंने उसे कब का चोद दिया होता. पर मुझे उसके दिल में रहना था.
हमारे बीच की सारी दीवारें आज टूट भी गयी थीं. शायरा की जगह कोई और होती तो हां कर देती, लेकिन शायरा अलग थी. तभी तो मुझे उससे प्यार हो गया था और इसी प्यार ने मेरी सोच बदल दी थी.
आगे इस सेक्स कहानी में एक नया मोड़ आने की स्थिति है, वो क्या होगी … इसे मैं अगली बार लिखूंगा.
आप मुझे मेल करना न भूलें.
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कहानी जारी है.