यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
नमस्ते साथियो, मैं महेश आपको शायरा के साथ अपनी प्रेम गाथा को इस सेक्स कहानी के माध्यम से सुना रहा था.
पिछले दो भागों में अब तक आपने जाना था कि मेरी रैंगिंग आदि के चलते मुझे आयशा के बारे में कुछ और जानकारी भी हो गई थी.
अब आगे:
मैं घर पहुंचा तो सीढ़ियों पर ही वो मुझे फिर से मिल गयी.
उसने कुछ कहा तो नहीं, मगर मुझे देखकर बुरा सा मुँह बना लिया.
वैसे उसकी भी गलती नहीं थी … उसकी जगह कोई और लड़की होती तो शायद वो भी ऐसा ही करती.
गलती ना तो उसकी थी … और ना ही मेरी थी.
बस हालात ही कुछ ऐसे बन गए थे कि मेरा जब भी उससे सामना हुआ, हर बार उसकी नजरों में मैं बुरा होता चला गया था.
इसलिए मैं भी अपनी गर्दन नीची करके चुपचाप अपने कमरे में आ गया.
अब मुझे यहां से दूसरी जगह कमरा देखने में ही अपनी भलाई लग रही थी.
क्योंकि शायद ये तो रोज का ही काम था. हम दोनों को एक ही घर में रहना था और मुझे उसके साथ ही कॉलेज भी जाना था.
अब कॉलेज तो मैं पैदल भी जा सकता था मगर घर … घर पर रहना मुझे सही नहीं लग रहा था क्योंकि मैं यहां रहा तो ये रोजाना मेरा कचरा तो करती ही रहेगी.
साथ ही यहां की बात मेरे घर भी पहुंच सकती थी.
वैसे इसके लिए मैंने अपनी भाभी को फोन करके बताया भी … मगर भैया के बिना वो भी कुछ नहीं कर सकती थीं.
इसलिए भाभी ने मुझे भैया के छुट्टी आने तक कुछ दिन वहीं रहने के लिए कहा.
मगर भैया की मर्जी के बिना मैं भी क्या कर सकता था … इसलिए मेरी यही दिनचर्या बन गयी.
सुबह जल्दी तैयार होकर मैं होटल से पहले तो नाश्ता करता, फिर कॉलेज चला जाता.
कॉलेज खत्म होते होते मुझे शाम हो जाती थी. इसलिए दोपहर का खाना मैं कैन्टीन से ही खा लेता … और घर आकर रात का खाना खाने कभी होटल चला जाता, तो कभी ऐसे ही सो जाता.
मगर हां … मैंने अब बस से कॉलेज जाना छोड़ दिया था.
क्योंकि बस से जाने में मुझे शर्म सी लगती थी. इसलिए मैं अब पैदल ही कॉलेज आना जाना करता था.
वैसे तो मैं घर से बाहर भी कम ही निकलता था, मगर फिर भी मैं यही प्रयास करता कि मेरा कभी शायरा से सामना ना हो.
ऐसे ही दो हफ्ते बीत गए.
तब तक मुझे शायरा के बारे में कॉलेज के कुछ लड़कों से व मकान मालकिन से सारी जानकारी मिल गयी.
शायरा मेरे कॉलेज के पास ही एक प्रा० लि० बैंक में काम करती थी. वो शादीशुदा थी मगर उसका पति मिडल ईस्ट में काम करता था, इसलिए वो उसके पास नहीं रहता था.
उसकी यहां बैंक में नौकरी लगे अभी एक डेढ़ साल ही हुआ था और तब से ही वो यहां इस घर में किराये पर रह रही थी.
वैसे ये नौकरी वो पैसे के लिए नहीं कर रही थी … बस टाइम पास के लिए करती थी. क्योंकि उसके पास पैसे की तो कमी थी नहीं.
उसका पति एक तेल कम्पनी में उंचे पद पर कार्यरत था. इसलिए उसके पास पैसे तो बहुत थे मगर उसका पति शायरा के पास रहता बहुत ही कम था.
शायरा के पति को साल में बस एक महीने ही छुट्टी मिलती थी. और तेल कम्पनी का अधिकांश काम भी फील्ड का ही होता है इसलिए वो शायरा को अपने साथ भी नहीं रख सकता था.
शायरा की शादी को तीन साल हो गए थे मगर अभी तक उसका पति उसके साथ मुश्किल से ही दो तीन महीने रहा होगा.
शायद इसलिए ही वो इतनी तन्हा सी और चिड़चिड़ी सी रहती थी.
घर में सारा दिन अकेले रहने से अच्छा उसने बैंक में ये नौकरी कर ली, जिससे उसका समय भी बीत जाता था और नौकरी भी हो जाती थी.
वैसे तो शायरा दिल्ली की ही रहने वाली थी मगर उसकी शादी जयपुर में हुई थी. उसके पति के घर में और कोई रहने वाला तो था नहीं, इसलिए नौकरी लगने के बाद से वो यहां आकर रहने लग गई.
शायरा जितनी सुन्दर थी … उतनी ही तीखी मिर्ची की तरह तेज और खुर्राट भी थी.
अभी तक वो मेरे कॉलेज के तीन चार लड़कों की पिटाई कर चुकी थी इसलिए सब उससे इतना डरते थे, मजाल है … जो कोई उसको कुछ फालतू बोल भी दे!
कॉलेज के एक लड़के ने तो बताया था कि एक बार उसने हमारे ही कॉलेज के एक प्रोफेसर को भी थप्पड़ लगा दिया था.
तभी से ही वो हमारे कॉलेज में इतनी फेमस हो गयी थी.
अब तो मेरी भी समझ में आ गया था कि कॉलेज में सब लड़के लड़कियां मेरे और शायरा के बारे में ही बातें क्यों करते हैं.
हालांकि मेरी कोई गलती नहीं थी मगर अभी हाल ही में शायरा ने मुझे भी थप्पड़ मारा था, इसलिए सबकी बातों का विषय मैं ही बना हुआ था.
खैर … इन सबके चलते अब ऐसे ही एक दिन जब मैं कॉलेज से घर आया, तो मकान मालकिन और शायरा बाहर बैठकर चाय पी रही थीं.
मैं तो इतना झेल चुका था कि उसके सामने भी नहीं जाना चाहता था.
मगर उस दिन मकान मालकिन ने मुझे रोक लिया और कहने लगीं- तुम्हारा किसी से झगड़ा हुआ है क्या?
मकान मालकिन ने मुझसे पूछा.
शायरा भी उसके पास ही बैठी हुई थी. अब ऐसे में मकान मालकिन के अचानक ये पूछने से मैं घबरा गया और मेरी नजरें तुरन्त शायरा पर चली गईं.
वो भी मेरी तरफ ही देख रही थी, इसलिए हमारी नजरें एक बार तो मिलीं मगर अगले ही पल उसने मुँह फेर लिया और दूसरी तरफ देखने लगी.
मैं सोचने लगा कि अब ये क्या हो गया है … कहीं शायरा ने मकान मालकिन को कुछ बता तो नहीं दिया.
‘नन्न..नहीं तो ..’ हकलाते हुए मैं अब बस इतना ही कह पाया.
तब तक मकान मालकिन उठकर अन्दर चली गईं और एक कप चाय ले आईं.
चाय का कप मुझे देकर मकान मालकिन फिर से शायरा की बगल में बैठ गईं और बात करना शुरू कर दी.
मकान मालकिन- तुम्हारे जाने के बाद आज एक औरत घर आई थी तुम्हारा ये पर्स देने … वो बता रही थी कि बस में तुम्हें किसी लड़की ने चांटा मारा था.
चाय के साथ साथ मकान मालकिन अन्दर से एक पर्स भी लेकर आई थीं उन्होंने वो मुझे दिखाते हुए कहा.
ये पर्स मेरा ही था. दरअसल उस दिन मैं गुस्से गुस्से में अपना पर्स बस में ही छोड़ आया था.
मगर मेरे पर्स में एक पर्ची थी, जिस पर मकान मालकिन का पता और उनके घर का फोन नम्बर लिखा हुआ था. इसलिए वो औरत मेरे पर्स को देने यहां तक पहुंच गयी थी. वो औरत भी शायद वही होगी, जो उस दिन बस में मेरी हिमायत कर रही थी.
खैर …
मकान मालकिन- तुम तो बहुत सीधे साधे हो, किसी से फालतू बात भी नहीं करते … फिर झगड़ा कैसे कर लिया?
मैं थोड़ा घबरा तो रहा था मगर मकान मालकिन के साथ साथ शायरा की भी गलतफहमी दूर करने का मुझे ये सही मौका लगा.
इसलिए मैंने बोलना उचित समझा- व्व..वो … उसको थोड़ी गलतफहमी हो गयी थी.
मकान मालकिन- वैसे वो औरत भी उस लड़की को ही भला बुरा कह रही थी. बता रही थी कि तुम्हारी कोई गलती नहीं थी.
मैं- हां … पर उसे लगा कि मैं उसे छेड़ रहा हूँ.
मकान मालकिन- क्यों … ऐसा क्या कर दिया था तुमने?
मैं- वो ना … उसकी साड़ी एक कील में फंस गई थी. उसकी साड़ी खराब ना हो जाए … इसलिए मैं उसे निकाल रहा था, तो उसने सोचा कि मैंने उसे छेड़ने के लिए उसकी साड़ी को खींचा है.
मैंने ये सारी बात एक ही सांस में कह दी.
मकान मालकिन- हां … वो औरत भी यही बता रही थी. पर ऐसी भी क्या लड़की हुई, जो पूछे बिना ही थप्पड़ मार दिया.
मैं अब फिर से शायरा की तरफ ही देखने लगा.
अभी तक वो भी मेरी तरफ ही देख रही थी मगर जैसे मैंने उसकी तरफ देखा, वो नीचे की तरफ देखने लगी.
शायद उसको भी अब ये अहसास हो ही गया था कि गलती उसी की थी.
मकान मालकिन- तो तुम इसलिए ही उदास उदास से रहते हो क्या? घर से बाहर भी नहीं निकलते … और किसी से बात भी नहीं करते!
मैं- नहीं तो … ऐसी कोई बात नहीं है, बस दिल नहीं लगता यहां … मैं पहली बार अपनी फैमिली से दूर आया हूँ ना इसलिए.
मकान मालकिन- तो क्या हुआ? अब पढ़ना है तो इतना तो करना ही पड़ेगा! और घरवालों की याद किसको नहीं आती.
मैं- हां वो तो है, पर मैं अपनी फैमिली को बहुत मिस करता हूँ.
मकान मालकिन- तो तुम बाहर घूमा-फिरा करो … किसी से बात करो … दोस्ती करो, तब तो दिल लगेगा. ऐसे अपने कमरे में ही बैठे रहोगे … तो कहां दिल लगेगा!
मैं- नहीं नहीं … दोस्ती और यहां? यहां तो बिल्कुल नहीं … यहां के लोगों से तो दूर रहना ही ठीक है. जब गलती के बिना ही मारते हैं … तो दोस्ती करने को कहूँगा, तो पता नहीं क्या करेंगे?
मैंने ये बात इस तरीके से और मायूस होकर कही कि मकान मालकिन के साथ साथ शायरा के चेहरे पर भी मुस्कान आ गयी.
मगर उसने उसे छुपा लिया और दूसरी तरफ देखने लगी.
मैं आज काफी खुश था और अपने आपको हल्का भी महसूस कर रहा था. क्योंकि मैंने शायरा की गलतफहमी दूर कर दी थी. कम से कम वो अब मुझे गलत तो नहीं समझेगी, इसलिए चाय पीने के बाद भी मैं मकान मालकिन के पास बैठकर बातें करता रहा.
मगर शायरा चाय पीते ही वहां से उठकर ऊपर अपने घर आ गयी.
पता नहीं क्या समझती थी वो अपने आपको … किसी से बात ही नहीं करना चाहती थी.
खैर … कुछ देर मकान मालकिन से बातें करने के बाद मैं भी अपना पर्स लेकर अपने कमरे में आ गया.
अगले सात आठ दिन भी मेरा वैसे ही रहे.
मगर एक रात करीब ग्यारह-साढ़े ग्यारह बजे होंगे, जब मकान मालकिन ने मुझे जगाकर बताया कि शायरा के पेट में दर्द हो रहा है. मैं उसके लिए किसी डॉक्टर से या मेडिकल स्टोर से कोई दवाई ला दूँ.
वैसे मुझे उस पर गुस्सा तो बहुत था … मगर इस तरह तकलीफ में कुछ कहना ठीक नहीं होता, इसलिए मैं चुपचाप दवाई लेने के लिए आ गया.
अब इतनी देर रात कहां कोई डॉक्टर मिलता है. मगर फिर भी दो चार जगह चक्कर लगाने पर मुझे एक मेडीकल स्टोर खुला मिल ही गया.
मुझे मेडीकल स्टोर तो मिल गया मगर मैंने जब उससे पेट दर्द की दवाई देने को कहा, तो उसने पूछ लिया कि पेट दर्द किसको है.
मैंने भी बता दिया कि एक महिला है बीस इक्कीस साल की.
उसने फिर से मुझसे पूछा- उसके पीरियड (महीने) चल रहे हैं क्या?
उसकी इस बात से मुझे भी झटका लगा क्योंकि ये तो मुझे पता ही नहीं था. किसी किसी औरत को महीना आने पर भी पेट दर्द होता है … और ये आम बात है. मेरी भाभी को भी ऐसा होता था इसलिए मैं काफी बार उन्हें दवा लाकर देता था.
मगर शायरा के बारे में तो मुझे कुछ मालूम ही नहीं था और मकान मालकिन ने भी मुझे कुछ स्पष्ट नहीं बताया था. बस इतना ही बताया था कि शायरा को पेट में दर्द हो रहा है.
वैसे मैं रात को जब खाना खाने जा रहा था … तो घर का जो कचरा इकट्ठा होता है, उसमें प्लास्टिक की एक थैली में इस्तेमाल किया हुआ स्नैटरी पैड देखा था, जिसको कि शायद कुते बिल्ली ने फाड़ दिया था.
मैं सब सोचने लगा कि उस घर में बस दो ही तो औरतें थीं. एक मकान मालकिन और दूसरी शायरा. अब मकान मालकिन की उम्र में तो महीना आने से रहा, बाकी रही शायरा? वो पैड जरूर शायद उसका ही इस्तेमाल किया हुआ हो सकता था.
मुझे पक्का तो यकीन नहीं था कि शायरा को पेट दर्द किस लिए हो रहा था, मगर फिर भी मैंने जो स्नैटरी पैड देखा था … उसी से अन्दाजा लगाकर शायरा के लिए वही दवा लेकर आ गया जो कि महीना आने पर मेरी भाभी के लिए लाता था.
मुझे उस दवा का नाम याद था इसलिए मेडीकल स्टोर वाले ने भी वो दवा देने में ज्यादा सवाल जवाब नहीं किए.
घर आकर मैंने वो दवाई सीधा शायरा को नहीं दी बल्कि मकान मालकिन को देना उचित समझा.
मकान मालकिन उस समय शायरा के घर पर ही थी. इसलिए मैंने मकान मालकिन को बाहर ही बुला लिया और उसे वो दवाई देकर चुपचाप अपने कमरे पर आकर सो गया.
अगले दिन शायरा ना तो बैंक गयी और ना ही अपने घर से बाहर निकली इसलिए मेरा उससे सामना नहीं हुआ.
मगर उसके अगले दिन जब मैं कॉलेज जाने लगा तो वो मुझे अपने घर के बाहर ही खड़ी मिल गयी.
उसने मुझे देखकर आज अपना मुँह नहीं बनाया बल्कि मेरी तरफ देखते हुए कहा- वो कल रात को लिए थैंक्स.
मैं- कोई बात नहीं.
शायरा- मैंने तुम्हारे साथ इतना बुरा व्यवहार किया, फिर भी तुम आधी रात को मेरे लिए दवाई चले लेने गए और उस दिन के लिए ‘आई एम रियली सॉरी!’
मैं- कोई नहीं, वो शायद गलती मेरी ही थी. मैं ही बार बार आपके पीछे आ रहा था … इसलिए आपने गलत समझ लिया.
वो- और वो किस लिए आ रहे थे?
मैं- वो … वो … तो मैं बस ये देख रहा था कि आपकी लम्बाई मुझसे ज्यादा तो नहीं है.
जैसे ही मैंने ये कहा, वो जोरों से खिलखिलाकर हंसने लगी.
मैं उसे आज पहली बार हंसते देख रहा था.
ऐसा लग रहा था जैसे कि फूल झड़ रहे हों.
हंसने पर उसके गुलाबी होंठों में से दिखाई देते सफेद दांत तो ऐसे लग रहे थे जैसे मोती ही चमक रहे थे.
वो- फिर … क्या हुआ … देख ली लम्बाई नापकर!
उसने अब हंसते हुए ही कहा.
मैं- हां … आप मुझसे लम्बी तो नहीं हो मगर मुझसे छोटी भी नहीं. हमारी लम्बाई समान ही है.
वो- बुद्धू … लड़की दूर से ही लम्बी दिखती है मगर इतनी भी लम्बी नहीं होती.
उसने ये भी हंसते हुए ही कहा.
मैं बस उसकी किलकारी को देखते हुए खुश हो रहा था.
वो- वैसे इतनी जल्दी तैयार होकर जा कहां रहे हो?
मैं- कॉलेज.
वो- इतनी जल्दी? अभी तो सात ही बजे हैं?
मैं- हां, वो होटल से नाश्ता भी करना है न!
वो- वैसे मैं भी नाश्ता करने जा रही थी, तुम चाहो तो तुम भी यहां नाश्ता कर सकते हो.
मैं- नहीं, आपने तो खुद के लिए बनाया होगा … और फिर मेरी वजह से आप क्यों तकलीफ़ …
शायरा मेरी बात को बीच में ही काटते हुए- इसमें तकलीफ की क्या बात है … जब दो परांठे बनाऊँगी, तो तुम्हारे लिए भी दो और सही. चलो आ जाओ.
उसने एक हाथ से दरवाजा खोलते हुए कहा.
कसम से कह रहा हूँ मुझे तो कोई उम्मीद भी नहीं थी कि इतना कुछ हो जाने के बाद शायरा मुझसे कभी बात भी करेगी.
मगर बात करना तो दूर … वो तो मुझे अपने घर बुलाकर अपने हाथों का बना नाश्ता भी करने को कह रही थी.
मैं भी चुपचाप उसके घर में आ गया.
दोस्तो, मेरी और शायरा की प्रेम कहानी को एक सेक्स कहानी के रूप में लिख कर मुझे बेहद रोमांच हो रहा है. आपके मेल से भी मुझे यही सब मालूम हो रहा है. आपको मेरी ये सेक्स कहानी कैसी लग रही है, आप मुझे मेल करना न भूलिए.
कहानी जारी है.