यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
मेरी भाभी की कजिन बहन मेरे कॉलेज में टीचर है. मैं उनके साथ चुदाई कर चुका हूँ. मैं अब फिर उसकी चुदाई करना चाहता था. वो भी तैयार थी मगर …
हैलो फ्रेंड्स, मैं महेश आपको सेक्स कहानी में शायरा के साथ अपने प्रेम ग्रन्थ को लिख रहा था.
पिछले भागों में अब तक आपने जाना था कि शायरा के मन से मेरे लिए जो गलफहमी हो गई थी, वो खत्म हो चली थी और उसने मुझे नाश्ता करने के लिए अपने घर में बुला लिया था.
अब आगे:
शायरा के घर की बनावट भी बिल्कुल मकान मालकिन के जैसी ही थी … मगर उसने उसे बहुत अच्छे से सजा कर रखा हुआ था.
उसने जिस तरह से घर को सज़ा कर रखा था, उससे पता चल रहा था कि उसके पास पैसों की कोई कमी नहीं थी. उसके पास जरूरत का हर एक सामान था और वो भी मंहगा मंहगा वाला सामान था.
घर में उसके पति के साथ उसकी एक बड़ी सी फोटो थी जो कि सामने ही लगी हुई थी.
शायरा को देखकर तो लगता था कि उसका पति कोई बहुत ही सुन्दर और हैंडसम होगा, मगर उसका पति तो थोड़ा मोटा और सांवला था, जिसका पेट भी बाहर निकला हुआ था. दोनों की जोड़ी ऐसी थी जैसे हूर के संग लंगूर.
उसका पति तो ऐसा था ही, शायरा की शादीशुदा जिन्दगी भी इतनी खास नहीं थी … क्योंकि उसका पति रहता ही कितना था उसके साथ. बस दो साल में महीने दो महीने. तभी वो शायद इतनी तन्हा और अकेली सी रहती थी.
वो किसी से ज़्यादा घुलती मिलती नहीं थी … इसलिए ही शायद इतनी चिड़चिड़ी भी हो गयी थी.
मैं अभी उसके घर को ही देख ही रहा था कि तभी शायरा ने मुझे अपने घर को ऐसे घूरता हुआ देख लिया.
शायरा- क्या हुआ … क्या देख रहे हो?
मैं- क्क..कुछ नहीं, वो आपने घर को बहुत अच्छे से सजाया हुआ है.
वो- ये तो बस ऐसे ही, वैसे भी अकेले पड़े पड़े क्या करती हूँ, इसलिए ये ही करती रहती हूँ.
उसकी इस बात से उसका अकेलापन साफ झलक रहा था.
“तुम बैठो, मैं तुम्हारे लिए नाश्ता लेकर आती हूँ.” ये कहते हुए वो किचन में चली गयी और दो प्लेटों में हम दोनों के लिए नाश्ता ले आई.
शायरा के हाथों का नाश्ता भी उसकी तरह ही टेस्टी था. मेरे साथ साथ वो अपने लिए भी नाश्ता लेकर आई थी इसलिए हम दोनों साथ में बैठकर नाश्ता करने लगे.
मैं- आपके हाथों में तो जादू है, बहुत टेस्टी नाश्ता बनाती है आप.
मेरे मुँह से अपनी तरीफ़ सुनकर फिर से उसके चेहरे पर हल्की सी मुस्कान आ गयी- इतना भी कोई कुछ खास नहीं है … बस नॉर्मली आलू के परांठे ही तो बनाए हैं.
उसने हल्का सा हंसते हुए कहा.
मैं- पर … बहुत टेस्टी हैं, आज कहीं जाकर मुझे घर का खाना मिला है वरना रोज रोज होटल का खाना खाकर पेट खाली ही बना रहता था.
वो- इतना भी टेस्टी नहीं है … और वैसे भी यहां होटलों में खाना अच्छा ही मिलता है.
मैं- हां मिलता तो है … पर होटल के खाने में प्यार नहीं मिलता, जो आपके नाश्ते में मिला है. सच में आज तो मुझे मेरी भाभी की याद आ गयी. वो भी ऐसे ही टेस्टी खाना बनाती हैं.
मेरी बात से वो थोड़ा शर्मा गयी.
मैं- आपको पहली बार शर्माते हुए देख रहा हूँ … क्या बात है, मैंने कुछ ग़लत कहा क्या?
वो- नहीं नहीं, वो तो बस बहुत दिनों बाद किसी ने तारीफ की है जिससे मुझे ऐसा लगा.
मैं- आपकी तो हर एक अदा ही तारीफ करने का दिल करता रहता है, पर डर भी लगता है.
वो- मुझसे डर, मैंने क्या किया? अच्छा अच्छा … उस दिन के लिए? उसके लिए सॉरी.
उसने एक साथ सवाल पूछकर खुद ही जवाब भी दे दिया.
मैं- अच्छा मैं अब चलता हूँ … और इस स्वीट से नाश्ते के लिए शुक्रिया, आज तो लंच और डिनर करने का दिल नहीं करेगा.
वो- क्यों?
मैं- वो मैं आपके नाश्ते के टेस्ट को खराब नहीं करना चाहता.
ये कहकर मैं अब उसके घर से बाहर आ गया. मुझे तो अभी तक भी यकीन नहीं हो रहा था कि शायरा ने मुझसे बात की और अपने घर ले जाकर खुद अपने हाथों का बना नाश्ता करवाया.
वैसे तो मेरी और शायरा की बातचीत बस सामान्य ‘हाय हैलो ..’ वाली ही थी. मगर उससे बात करके मेरे दिल में फिर से वही सब विचार आने लगे थे, इसलिए मैंने शायरा की जितनी हो सके उतनी तारीफ की, पर उससे ज़्यादा खुला नहीं.
मैं उससे बस ‘आप आप’ कहके ही बात करता रहा ताकि उसे ऐसा ना लगे कि मैं उससे कुछ ज्यादा ही चिपक रहा हूँ.
शायरा ने भी मुझसे अच्छे से बात की थी. वो भी मुझसे इतना खुली तो नहीं मगर फिर भी हमारी पहली मुलाकात ठीक-ठाक ही रही.
मुझे उसके घर में एंट्री मिल गयी थी और मेरी उससे बातचीत भी होने लगी थी. मेरे लिए उससे आगे बात बढ़ाने के लिए फिलहाल इतना ही काफी था. वैसे भी पहली मुलाकात में तो इतना ही होता है.
अब आगे तो धीरे धीरे ही उससे नज़दीकियां बढ़ानी होंगी. उससे दो चार बार मिलना होगा, धीरे धीरे उससे खुलना होगा और इसके लिए बातों को सिलसिला मुझे ही चालू रखना होगा.
मैं यही सब सोचते हुए शायरा की शायराना बॉडी को याद करने लगा.
उसके तने हुए चूचे मुझे फिर से आंदोलित करने लगे थे.
खैर … शायरा तो शायद आज भी घर पर ही रहने वाली थी, मगर मैं कॉलेज आ गया. इसके बाद ऐसा कुछ हुआ कि अगले बीस पच्चीस दिनों तक शायरा से बातचीत करना तो दूर, उससे मिलना भी नसीब नहीं हुआ.
हुआ कुछ ऐसा कि इधर शायरा के साथ तो मेरी बातचीत शुरू हो गयी थी मगर उधर ममता जी के साथ अभी तक भी मेरा काम नहीं बन रहा था.
मेरे जो नए पाठक हैं, वो शायद ममता जी को नहीं जानते हैं. यहां मैं एक बार फिर से बता देना चाहता हूँ कि ममता मेरी भाभी की कजिन बहन हैं और मेरे उनके साथ पहले चुदाई के सम्बन्ध रह चुके हैं.
मेरे और ममता जी के सम्बन्धों के बारे में ज्यादा जानने के लिए आप मेरी एक पुरानी सेक्स कहानी पढ़ सकते हैं.
ममता जी पढ़ने लिखने में तो तेज थीं ही … इसलिए वो अब प्रोफेसर बन गयी थीं और मेरे ही कॉलेज में पढ़ाती थीं. मेरा इस कॉलेज में दाखिला भी उन्होंने ही करवाया था.
मगर मुझे यहां आए दो हफ्ते से ज्यादा हो गए थे, पर अभी तक भी ममता जी के साथ मेरा काम नहीं बन पा रहा था.
क्योंकि हमें मिलने के लिए कोई जगह ही नहीं मिल रही थी.
हालांकि इसके लिए ममता भी तैयार थी, पर दिक्कत ये थी कि मिलने के लिए किसी जगह का बन्दोबस्त ही नहीं हो पा रहा था.
हमारी मुलाकात बस कॉलेज में होती थी और कॉलेज में तो हम ऐसा कुछ कर नहीं सकते थे. उधर ममता जी के घर पर भी हम नहीं मिले सकते थे, क्योंकि वहां उनके सास ससुर रहते थे.
वैसे तो दिल्ली में इस तरह के होटल भी मिल जाते हैं … मगर इसके लिए ममता जी तैयार नहीं थीं. क्योंकि वहां पर मिलना खतरे से खाली नहीं था. इसलिए हमारे सम्बन्ध बस चूमाचाटी तक ही सीमित थे और वो भी कभी कभी.
मैं उस दिन कॉलेज आया … तो पता चला कि एक दो दिन में दस दिनों का एक हिस्टोरिकल टुअर जा रहा है.
इधर दिल्ली में तो मुझे और ममता जी को मिलने की कोई जगह नहीं मिल रही थी, इसलिए हमने इस टुअर पर ही जाकर चुदाई का प्लान बनाया.
मैंने टुअर में अपना नाम लिखवाकर फीस वैगरह जमा तो कर दी.
मगर जिस दिन हमें जाना था, उसी दिन पता चला कि ममता तो इस टुअर के साथ जा ही नहीं रही हैं. उनकी जगह कोई दूसरी प्रोफेसर इस टुअर के साथ जा रही हैं.
हालांकि ममता जी ने इस टुअर के साथ आने की काफी कोशिश भी की. मगर ममता जी हिन्दी की प्रोफेसर थीं, इसलिए उनकी जगह एक हिस्ट्री के प्रोफेसर को भेज दिया गया.
अब क्या किया जाए … इधर पैसे के साथ लौड़े भी लग गए थे.
ममता जी के बिना मैं भी इस टुअर पर जाना तो नहीं चाहता था मगर एक तो मैंने फीस जमा कर दी थी. ऊपर से इस टुअर से हमें परीक्षा में कुछ मार्क्स भी मिलने थे. इसलिए मजबूरन मुझे इस टुअर पर जाना पड़ा.
अब कॉलेज टुअर के साथ तो जो हुआ सो हुआ. टुअर से वापस आया तो पता चला कि शायरा भी घर पर नहीं है.
उसके पापा की अचानक तबियत खराब हो गयी थी. इसलिए मैं जिस दिन वापस आया, उसी दिन वो मुम्बई के लिए निकल गयी और करीब पन्द्रह दिन बाद वापस आई.
कुल मिलाकर मेरे बीस पच्चीस दिन खराब होने थे … वो हो गए.
शायरा के वापस दिल्ली आते ही मैंने अब फिर उससे दोस्ती बढ़ाने की सोची.
मेरे पास उसके पापा की तबीयत के बारे में पूछने का बहाना तो था ही, इसलिए उसी शाम मैं उसके घर उसके पापा का हालचाल पूछने पहुंच गया.
मगर हमारी ये मुलाकात भी इतनी खास नहीं रही. क्योंकि मैं जब शायरा से मिलने उसके घर गया, तो मकान मालकिन पहले ही उसके पास बैठी हुई थीं.
शायद मैं ही गलत समय उससे मिलने चला गया था … इसलिए ये मुलाकात भी कोई खास नहीं रही.
हमारे बीच बस अब दो चार बातें ही हुई थीं और वो भी उसके पापा के बारे में.
उसके बाद मैं वापस आ गया.
शायरा के साथ मेरी ये मुलाकात तो इतनी खास नहीं थी, मगर उसके घर जाने से मुझे ममता जी की चुदाई करने का मौका सूझ गया.
शायरा के घर मेरी शायरा से तो इतनी बात नहीं हुई … मगर वहीं मकान मालकिन से मुझे पता चला कि अगले दिन मकान मालिक और वो कहीं बाहर जा रहे हैं और वो अगले दिन ही वापस आएंगे.
मुझे पता था कि शायरा तो रोज सुबह बैंक चली जाती है. उसके पीछे मकान मालिक और उनकी पत्नी भी चले जाएंगे, तो कल घर पर कोई नहीं रहेगा.
ये बात मुझे पता चलते ही मैंने तुरन्त ममता को अपने कमरे पर ही बुलाने की योजना बना ली.
उस दिन मैं कॉलेज तो गया, मगर एक घंटे बाद ही ममता को साथ लेकर अपने कमरे पर आ गया.
ममता तो इसके लिए तैयार थी हीं … इसलिए उन्होंने भी मेरे साथ आने में कोई आपत्ति नहीं जताई.
ममता को लेकर मैं अपने कमरे पर तो आ गया … मगर उस दिन गर्मी इतनी ज्यादा थी कि कुछ करना तो दूर मेरे कमरे में तो बैठना भी मुश्किल हो गया.
क्योंकि एक तो गर्मी का मौसम था, ऊपर से मेरा कमरा भी सबसे ऊपर की मंजिल पर था और उसमें हवा के लिए बस एक पंखा ही था.
दिल्ली में जून जुलाई के महीने में कितनी गर्मी होती है, ये तो शायद आपको बताने की जरूर ही नहीं. उस दिन भी बहुत उमस भरी गर्मी थी, जिसमें कुछ करना तो दूर हमारे लिए वहां बैठना भी मुश्किल हो रहा था.
गर्मी बहुत थी … मगर हाथ आए इस मौके को मैं गंवाना भी नहीं चाहता था.
इसलिए मैं और ममता जी के साथ कुछ देर तो ऐसे ही बैठा रहे.
फिर पता नहीं कैसे मेरे दिमाग में आया कि शायरा तो इस समय बैंक में होगी … इसलिए क्यों ना उसके एसी वाले कमरे को ही इस्तेमाल कर लिया जाए.
मैंने एक दो बार उसे अपने घर की चाभी को रखते हुए देखा था इसलिए मुझे पता था कि शायरा अपने घर की चाभी कहां रखती है.
ये बात मेरे दिमाग में आते ही मैं तुरन्त ममता जी को लेकर नीचे शायरा के घर में उसके एसी वाले कमरे में आ गया.
ममता जी को लेकर मैं शायरा के घर आ तो गया … पर हाय रे मेरी फूटी किस्मत. पता नहीं कैसे और किस लिए … शायरा भी उसी समय घर पर आ गयी.
ममता जी का मुँह दूसरी तरफ था इसलिए उन्हें तो वो नजर नहीं आई मगर मेरा मुँह कमरे की जो अन्दर की खिड़की होती है, उसकी ओर था. इसलिए घर का दरवाजा खुलते ही मेरा ध्यान तुरन्त उस ओर चला गया.
शायरा को देखकर मैं तो जैसे अब शॉक्ड सा हो गया, क्योंकि मैंने तो कभी सपने में भी नहीं सोचा था वो इस समय भी घर आ सकती है.
मुझे अपनी किस्मत पर बड़ा ही पछतावा सा हो रहा था.
बड़ी मुश्किल से तो उसने मुझसे बात करना शुरू किया था … और अब ये हो गया.
अगर वो मुझे और ममता जी को इस हाल में और वो भी खुद उसके ही घर में देखेगी, तो क्या सोचेगी?
अब क्या करूं … और क्या ना करूं? ये सोच सोचकर ही मेरी तो हालत खराब हो गयी.
शायरा भी अपने घर का दरवाजा खुला पाकर हैरान थी, इसलिए वो किसी अनिष्ट की आशंका के चलते धीरे धीरे और इधर उधर ही देखते हुए आगे बढ़ रही थी.
कमरे की खिड़की पर काले रंग के शीशे लगे हुए थे, इसलिए बाहर से शायरा को तो हम नजर नहीं आ रहे थे … मगर अन्दर से वो मुझे साफ दिखाई दे रही थी.
वो तो शुक्र था कि एसी चलने के कारण मैंने कमरे का दरवाजा बन्द किया हुआ था … नहीं तो अभी तक वो कब का हमें देख चुकी होती. अब पकड़े जाना तो तय ही था मगर इससे भी ज्यादा परेशानी ये थी कि कहीं वो हमें चोर लुटेरा समझ कर शोर ना मचा दे. अगर ऐसा हुआ तो मेरी बदनामी तो होगी ही, साथ ही ममता जी भी बदनाम हो जाएगी.
पर कहते है ना की आवश्यकता अविष्कार की जननी होती है. वैसे ही ऐसी स्थिति में मेरा दिमाग भी कुछ ज्यादा ही काम करता है.
मैंने तुरन्त ही ममता जी को पकड़कर पहले तो उसके होंठों पर हल्का सा चूमा, फिर उनके एक होंठ को थोड़ा जोर से काट लिया.
‘आह्ह … आउच्च …. ओय्य् क्या है ये?’
ममता जी ने चीखते हुए कहा और दोनों हाथों से धकेलकर मुझे अपने से दूर कर दिया.
‘कुछ नहीं … बस प्यार कर रहा हूँ!’
मैंने भी थोड़ा जोर से उंची आवाज में कहा … ताकि शायरा मेरी आवाज पहचान ले और हमें चोर समझकर वो शोर ना मचाए.
और वैसा ही हुआ भी.
शायरा हमारी आवाज सुनकर तुरन्त ठिठक कर वहीं के वहीं नीचे बैठ गयी.
“ऐसे प्यार होता है क्या?” ममता जी ने मुझे डांटते हुए कहा.
“क्या करूं जान? बहुत दिनों का प्यासा हूँ ना … इसलिए सब्र ही नहीं हो रहा.”
मैंने फिर थोड़ा जोर से ऊँची आवाज में कहा.
शायरा ने पता नहीं मेरी आवाज पहचानी भी थी या नहीं, ये तो मुझे नहीं पता.
मगर उसने अब शोर नहीं मचाया और बैठे बैठे ही वो अब धीरे धीरे रसोई की तरफ बढ़ने लगी.
आगे क्या हुआ … वो मैं अपनी सेक्स कहानी के अगले भाग में लिखूंगा. आपके मेल का इन्तजार रहेगा.
कहानी जारी है.