यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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कामुकता भरी मेरी सेक्स स्टोरी में अभी तक आपने पढ़ा कि गुप्ताइन की बेटी डॉली कानपुर से लखनऊ एक पेपर देने गई थी. पेपर देने के बाद वहां होटल में चुदाई के खूब मजे लेने के बाद दूसरे दिन कानपुर वापस पहुंच गई थी.
अब आगे:
लखनऊ से वापस आये हुए एक हफ्ता बीत चुका था, डॉली दिखती तो रोज थी लेकिन मेल मुलाकात का कोई जरिया नहीं बन पा रहा था. इधर ऐसा लग रहा था कि दिन पर दिन गुप्ताइन गीली होती जा रही थी. मुझे ऐसा लगने लगा कि मैं नहीं अब वो मुझ पर लट्टू हुई जा रही थी.
खैर मेरा लक्ष्य तो डॉली थी. तड़प तड़प कर दस दिन गुजर गये, जब नहीं रहा गया तो एक दिन दोपहर को मैंने गुप्ताइन को फोन किया और पूछा- क्या डॉली घर पर है?
जबकि मुझे मालूम था कि वो घर पर है.
गुप्ताइन ने जवाब दिया- हां घर पर है.
मैंने कहा- मेरी एक मदद कर दीजिये, मैं एक प्रोजेक्ट बना रहा हूँ. अगर एक दो घंटे के लिए डॉली को भेज दीजिये तो मैं बोलता जाऊंगा वो लैपटॉप पर फीड करती जायेगी. मेरा भी काम हो जायेगा और उसकी भी प्रैक्टिस हो जायेगी.
गुप्ताइन ने कहा- मैं अभी भेजती हूं.
दस मिनट बाद डोरबेल बजी, मैं हाथ में चार कागज और पेन पकड़े पकड़े बाहर गया और देखा डॉली खड़ी है और गुप्ताइन अपने गेट पर.
मैंने गेट खोला, डॉली अन्दर आ गई. गुप्ताइन ने मुझे स्माइल दी और मैं भी मुस्कुरा दिया.
अन्दर आकर मैंने दरवाजा बंद किया, अपनी बांहें फैलाईं तो डॉली करीब आकर लिपट गई. हम दोनों एक दूसरे को बेतहाशा चूमने लगे. फ्लोरल स्कर्ट और रेड टॉप में डॉली कहर ढा रही थी.
वो बोली- कौन सा प्रोजेक्ट बना रहे हैं जिसके लिए मुझे बुलाया है?
मैंने कहा- मिशन लव.
और हम दोनों हंस दिये.
मैंने पूछा- क्या खाओगी?
तो बोली- कुछ नहीं.
बात करते करते हम दोनों बेडरूम में आ गये, एसी पहले से ही चल रहा था.
मैं बेड पर लेट गया, वो आई और मेरे ऊपर लेट गई. एक दूसरे को चूमते चाटते मैंने उसका टॉप उतार दिया और ब्रा भी. मैंने अपनी भी टीशर्ट उतार दी और उसकी चूचियों से खेलने लगा. मेरे लण्ड में हरकत होने लगी थी जिसे डॉली ने महसूस कर लिया था.
उसने अपनी स्कर्ट का हुक खोला और नीचे खिसका दी और अपनी चूत को मेरे लण्ड पर रगड़ने लगी. मैं उसकी चूचियों को चूसकर और मसलकर लाल कर रहा था और वो अपनी चूत से मेरा लण्ड रगड़ रही थी.
मैंने उसकी पैन्टी उतारी और देखा, चूत की सूजन खत्म हो गई थी.
तभी अचानक मेरे मन में कुछ आया और मैंने उसको गोद में उठा लिया और बाथरूम में ले गया. मैंने अपना रेजर उठाया और उसकी चूत शेव कर दी. पानी से धोई और बेडरूम में आ गये.
बेडरूम में लाकर उसे बेड पर लिटाया और उसकी चूत पर जीभ फेरने लगा. थोड़ी देर में वो उठी, मेरा लोअर उतार दिया और लण्ड मुंह में लेकर चूसने लगी. जैसे ही लण्ड मूसल की तरह टाइट हुआ, डॉली ने मुझे धक्का देकर लिटा दिया और उचक कर मेरे ऊपर चढ़ गई. अपनी चूत के लबों को खोलकर मेरा लण्ड रगड़ने लगी.
कुछ पल चूत लंड पर रगड़ने के बाद डॉली उठी, ड्रेसिंग टेबल पर रखी क्रीम की शीशी लाई और ढेर सी क्रीम मेरे लण्ड पर चुपड़ कर उस पर बैठ गई और पूरा लण्ड अपनी गुफा में ले गई और उचकने लगी.
जब वो उचकते उचकते थक गई तो बगल में लेट गई और हाथ से करतब दिखाने लगी. कभी लण्ड को मुठ्ठी में भरकर चलाती तो कभी दो उंगलियों में.
मैंने तकिये के नीचे रखा कॉण्डोम निकाला और डॉली के हाथ दिया तो बोली- मैं नहीं चढ़ा पाऊंगी.
मैंने कहा- खोलो तो सही.
उसने खोला और जैसे मैंने कहा वैसे मेरे लण्ड पर चढ़ा दिया.
उसकी टांगों के बीच आकर मैंने लण्ड का सुपारा डॉली की चूत के लबों पर रखकर धक्का लगाया और ट्रेन चला दी. अभी पैसेन्जर ट्रेन चल रही थी कि मेरे मोबाइल पर घंटी बजी, देखा तो गुप्ताइन का फोन था.
मैंने उठाया तो बोली- कितना टाइम लगेगा? इनके आने का टाइम हो रहा है.
मैंने कहा- बस एक पेज रह गया है.
फोन काटा मैंने और राजधानी एक्सप्रेस दौड़ा दी. डॉली भी चाहती थी कि जल्दी करो. कितनी भी तेज भाग रहा था, मंजिल करीब आती नहीं दिख रही थी.
मैंने कहा- घोड़ी बन जाओ जल्दी हो जायेगा.
वो उठी और तुरन्त घोड़ी बन गई. मैंने पीछे से आकर घोड़ी की सवारी की और फुल स्पीड पकड़ ली. मंजिल आ गई लण्ड से पिचकारी छूटी. डॉली ने जल्दी से कपड़े पहने और भाग गई.
शाम के सात बज रहे थे. मैं चाय की चुस्कियों के साथ टीवी पर क्रिकेट मैच देख रहा था, तभी डोरबेल बजी. मैंने बाहर जाकर देखा कि डॉली खड़ी है.
मैंने गेट खोला तो अन्दर आ गई. उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था. मेरे पैर छूते हुए बोली- मेरा रिजल्ट आ गया, मेरी 17वीं रैंक आई है, मुझे मनचाहा कॉलेज मिल जायेगा.
मैंने उसको अपने सीने से चिपकाते हुए कहा- इसी बात पर हो जाये राजा रानी का मिलन.
बोली- नहीं, अभी जाने दीजिये, मम्मी पापा और भाई कल दो दिन के लिए गोरखपुर जा रहे हैं. हमारे पास खूब समय रहेगा.
दूसरे दिन सुबह देखा कि गुप्ता गुप्ताइन जा रहे थे. मैंने डॉली को कॉल करके आने को कहा तो बोली- आज मैं नहीं आऊंगी, आप आयेंगे, वो भी अभी नहीं, रात को आठ बजे. मेरे हाथ का बना खाना खाइयेगा और उसके बाद मेरी तरफ से थैंक्स गिविंग पार्टी.
“जैसी आपकी इच्छा!” कहकर मैंने फोन काट दिया.
शाम को सात बजे मैं घर से निकला, कुछ सामान खरीदा और टहलते हुए वापस चल पड़ा.
आठ बजने वाले थे, मैंने फोन किया तो डॉली ने कहा- गेट खुला है, अन्दर चले आइये.
मैं घर के अन्दर पहुंचा तो डॉली ने बाहर आकर गेट बंद कर दिया.
उसने खाना बना रखा था, हमने खाना खाया. फिर वो बोली- आप थोड़ी देर टीवी देखिये, मुझे आधा घंटा समय दे दीजिये.
मैं टीवी देख रहा था कि उसने बेडरूम से आवाज लगाई- अन्दर आ जाइये.
मैं अन्दर पहुंचा तो दंग रह गया. लाल रंग की शिफान की साड़ी में कहर बरपा रही थी. मेरे कमरे में पहुंचते ही उसने म्यूजिक ऑन कर दिया.
काटे नहीं कटते ये दिन ये रात
कहनी थी तुमसे जो दिल की बात …
और थिरकने लगी.
गाना खत्म हुआ तो अगला गाना था:
हुस्न के लाखों रंग कौन सा रंग देखोगे,
आग है यह बदन कौन सा अंग देखोगे.
इस गाने पर नाचते नाचते डॉली ने साड़ी, पेटीकोट और ब्लाउज उतार दिया.
गाना समाप्त हुआ तो वो पलंग पर लेट गई. मैं उठा, अपनी टी शर्ट उतारी और उसके बगल में लेट गया.
डॉली बोली- आज आप कुछ नहीं करेंगे, जो करना है मैं करुंगी.
इतना कहकर उसने अपनी ब्रा खोल दी और अपनी चूचियां मेरी छाती पर रगड़ने लगी जिससे मैं उत्तेजित हो रहा था.
चूचियां रगड़ते रगड़ते उसने अपना हाथ मेरे लोअर में डाल दिया और मेरा लण्ड मसलने लगी. जब लण्ड टाइट हो गया तो उसने मेरा लोअर उतार दिया और लण्ड चूसने लगी. जैसे जैसे वो लंड चूसती जा रही थी, लण्ड और टन्नाता जा रहा था. मैं आराम से लेटा हुआ था, तभी अचानक वह उठी, अपनी पैन्टी उतारी और ताजा ताजा शेव की हुई चूत मेरे मुंह पर रख दी, उसकी चूत की मादक गंध मुझे मदहोश कर रही थी.
मैंने उसकी चूत पर जीभ फेरनी शुरू की. कुछ देर बाद उसने दिशा बदल ली और मेरा लण्ड मुंह में ले लिया, उसकी चूत पर मेरी जीभ और उंगलियां चल रही थीं. अब उसने मेरे लण्ड पर क्रीम लगाकर मसाज शुरू कर दी.
मुझसे अब रहा नहीं जा रहा था, उसका भी शायद यही हाल था. उसने अपनी चूत के लब खोले और उस पर लण्ड रगड़ने लगी. रगड़ते रगड़ते वो लण्ड पर बैठ गई और मेरा लण्ड डॉली की गीली संकरी गुफा में समा गया.
उसने मेरे ऊपर झुक कर होठों का रसपान शुरू कर दिया तो मैंने अपनी ट्रेन रवाना कर दी. आज होठों का रसपान करते करते उसने कई बार मेरे होठों को काटा, जब जब वो काटती, मैं ट्रेन की स्पीड बढ़ा देता.
कुछ देर बाद डॉली बोली- हमेशा आप मुझे घोड़ी बनाते हो, आज मैं आपको घोड़ा बनाऊंगी. इतना कहकर उसने मेरी दोनों बांहें कलाई के पास से पकड़ लीं और बोली- यह पकड़ ली लगाम और चल मेरे घोड़े टिक टिक टिक.
आनन्द अपने चरम पर था, घोड़ा कभी धीरे कभी सरपट दौड़ रहा था, जब मंजिल करीब आने को हुई तो लण्ड फूलकर और मोटा होने लगा. मैंने उसको रोका, लण्ड पर कॉण्डोम चढ़ाया और वह फिर से सवार हो गई. लगाम को मजबूती से पकड़े घोड़ा सरपट दौड़ा रही थी, तभी मैंने कहा- अब रुकना नहीं.’
और मैंने भी राजधानी एक्सप्रेस दौड़ा दी.
‘उम्म्ह… अहह… हय… याह… ऊई मां’ की गूंज से वातावरण जोशीला हो गया था. वो कहती आह तो मैं कहता, और तेज. लण्ड बिल्कुल फटने की कगार पर आ गया था. एक बम ब्लास्ट जैसा हुआ और लण्ड ने उसकी चूत में बम फोड़ दिया.
कुछ देर बाद हम लोग शांत हुए, पसीना पौंछा. वो दो गिलास दूध ले आई, हम लोगों ने पिया और कपड़े पहन लिये. टाइम देखा, रात का एक बज चुका था, वो बाहर जाकर गेट का ताला खोल आई और मैं अपने घर आकर सो गया.
कहानी अभी शेष है.
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