यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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अभी तक आपने पढ़ा कि लखनऊ के होटल के कमरे में पहली बार चुदने वाली डॉली उसके बाद मेरे घर पर और फिर अपने घर पर चुदाई का आनन्द ले चुकी थी.
अब आगे:
इतवार का दिन था, सुबह के समय मैं अपने पोर्टिको में बैठा अखबार पढ़ रहा था कि सामने से गुप्ता जी ने आवाज लगाई- सर गुड मार्निंग.
मैंने जवाब दिया- गुड मॉर्निंग सर, वेरी गुड मार्निंग.
गुप्ता जी बोले- इधर ही आ जाइये, चाय बन रही है.
मैंने अपना अखबार रखा और गुप्ता जी के पोर्टिको में पहुंच गया. डॉली मेरे लिए पानी लेकर आ गई और फिर गुप्ताइन चाय ले आई.
बातों बातों में पता चला कि डॉली का एडमिशन इलाहाबाद में हो गया है, अगले सोमवार को पहुंचना है इसलिये इतवार को रात की ट्रेन पकड़ेंगे. गुप्ता जी और डॉली जायेंगे.
मैंने कहा- मैं रेलवे स्टेशन तक ड्राप कर दूंगा.
इस बीच गुप्ताइन बोली- डॉली का तो अच्छा हो गया, गोलू की भी नौकरी लग जाती तो चिन्ता खत्म हो जाती.
मैंने कहा- उसका बायोडाटा दीजिये मैं कोशिश करता हूँ.
मैंने नोयडा में रह रहे अपने एक मित्र से बात की, संयोग से उसे भी एक फ्रेशर की जरूरत थी और इस तरह गोलू नोयडा चला गया. गुप्ताइन मेरी ओर आकर्षित भी थी और अहसान भी मानती थी. डॉली के जाने के बाद मुझे लगा कि गुप्ताइन को सेट करना पड़ेगा लेकिन कैसे? यही उधेड़बुन थी.
गोलू को गये हुए 18-20 दिन हुए थे, दिन के ग्यारह बजे थे और मैं ऑफिस जाने के मूड में नहीं था. तभी डोरबेल बजी, मैंने बाहर देखा गुप्ताइन खड़ी थी.
मैंने कहा- दरवाजा खुला है आ जाइये.
अन्दर आकर गुप्ताइन बोली- कल गोलू को पहली सैलरी मिल गई है, हम लोग सुबह मन्दिर गये थे, यह प्रसाद है.
इतना कहकर उसने प्रसाद मुझे दे दिया और बोली- आपका बहुत अहसान है, आपने अच्छे पड़ोसी होने का फर्ज निभाया है.
मैंने कहा- अच्छे तो आप लोग भी हैं.
गुप्ताइन बोली- हम लोग आपके किसी काम आ सकें तो बेझिझक बताइयेगा.
मैंने कहा- बेझिझक?
तो गुप्ताइन ने कहा- बिल्कुल बेझिझक.
अभी तक हम लोग खड़े खड़े बातें कर रहे थे. मैंने कहा- तो फिर इधर आइये!
और सोफे पर बैठने का इशारा किया, वो बैठ गई तो मैं भी उसके बगल में बैठ गया और बोला- आपने कह तो कह तो दिया कि बेझिझक कह दूं लेकिन मैं कह नहीं पाऊँगा, बाकी आप खुद समझदार हैं.
इतना कहते कहते मैंने उसका हाथ पकड़कर अपने लण्ड पर रख दिया.
गुप्ताइन ने शर्मा कर आँखें नीचे कर लीं लेकिन लण्ड पर से हाथ नहीं हटाया.
मैंने कहा- आपने जवाब नहीं दिया?
तो बोली- मैं क्या कहूँ?
मैंने कहा- शरमाइये नहीं. आपने गुप्ता जी का तो लिया है ना? यह भी उन्हीं का है यह समझ लीजिये, गुप्ता जी का अंग है इसीलिये इसको गुप्तांग कहते हैं.
इस बीच लण्ड टनटना चुका था. गुप्ताइन हाथ से टटोल कर साइज का अन्दाजा ले रही थी और मैंने उसकी चूची मसलना शुरू कर दिया.
कुछ पल के बाद बोली- अभी जाने दो मैं एक घंटे बाद आती हूँ.
अभी एक घंटा बीता भी नहीं था कि गुप्ताइन आ गई, अन्दर आते हुए उसने मेन गेट और ड्राइंग रूम का दरवाजा बंद कर दिया था. हम लोग बेडरूम में आ गये. वो नहाकर शिफान की लाल साड़ी पहनकर और मांग में लम्बा सा सिन्दूर भरकर दुल्हन की तरह सज संवर कर आई थी.
मैंने उसे अपनी बांहों में भरते हुए कहा- मैंने जब आपको पहली बार देखा था तभी दिल ने कहा था, मेड फॉर ईच अदर.
मुस्कुराते हुए बोली- मैंने भी जिस दिन आपको देखा था यही कहा था कि काश मेरा पति ऐसा होता. आज भी मैं नहाकर पूजा करते समय आपको पति मानकर आपके नाम का सिन्दूर लगाकर आई हूँ.
बातों के सिलसिले के साथ साथ एक दूसरे से लिपटकर एक दूसरे को सहलाने का क्रम जारी था.
मैंने गुप्ताइन की साड़ी और पेटीकोट एक साथ ऊपर उठा दिये और उसके चूतड़ों पर हाथ फेरने लगा. यह सब कुछ खड़े खड़े हो रहा था, अब मैंने उसको लिटा दिया और उसकी चूचियों पर हाथ फेरने लगा.
मैंने उसकी साड़ी खोलनी चाही तो उसने बड़ी अदा से मना कर दिया, बोली- पहली बार है, इतनी आसानी से नहीं करने दूंगी.
मैंने कहा- अगर ऐसी बात है तो यह लो.
और मैंने पेटीकोट में हाथ डालकर उसकी चूत अपनी मुठ्ठी में दबा ली और अपने होठों से उसके होंठ सिल दिये. चूत को मुठ्ठी में दबाना छोड़कर मैंने उसकी पैन्टी में हाथ डाल दिया. वो अभी अभी शेव करके आई थी.
अब मैंने अपनी टी शर्ट उतारी और उसके ना ना करते करते साड़ी, ब्लाउज, पेटीकोट और ब्रा सब उतार दिया, तमाम कोशिशों के बावजूद उसने पैन्टी नहीं उतारने दी. बड़े बड़े कबूतरों जैसे उसके स्तन देखकर मैं मदहोश हो गया और उन्हें चूमने, चाटने और चूसने लगा.
गुप्ताइन ने मेरी ओर करवट ली और अपना हाथ मेरे लोअर में डालकर लण्ड सहलाने लगी. हर गुजरते पल के साथ लण्ड टन्नाता जा रहा था. मैंने फिर पैन्टी उतारनी चाही तो हाथ पकड़ लिया तो मैंने कहा- न करने देना, दीदार तो करा दो.
वह कहने लगी- पहले अपना मुन्ना दिखाओ.
मैंने कहा- मेरा मुन्ना तुम्हारे हाथ में है, देख लो.
वो उठी और दिशा बदलकर 69 की पोजीशन में आ गई और मेरा लोअर नीचे खिसका दिया और लण्ड को चूमने लगी.
मैंने उसकी पैन्टी उतार दी और उसकी चूत पर उंगलियां चलाने लगा. उसने लण्ड को चूसना शुरू किया तो मैंने चूत में उंगली चलानी शुरू कर दी.
अब मेरे सब्र ने मेरा साथ छोड़ दिया, मैं उठा और उसकी टांगों के बीच आ गया, उसने अपने चूतड़ उठाये और गांड के नीचे दो तकिये रख दिये. उसकी चूत एकदम आसमान में टंग गई, अब तो मैं घुटनों पर खड़ा होकर चोद सकता था.
उसकी चूत के लबों को फैला कर मैंने वहां अपना लण्ड रगड़ना शुरू किया तो बोली- अब देर न करो, मुन्ने को मुन्नी के घर जाने दो.
मैंने लण्ड का सुपारा निशाने पर रखा और दबाने लगा. चूत काफी गीली हो चुकी थी इसलिये आसानी से चला गया.
लण्ड गुप्ताइन की चूत में डालकर मैं उसकी चूचियों से खेलने लगा तो गुप्ताइन चूत को अन्दर की तरफ सिकोड़ने लगी. मैंने ट्रेन रवाना कर दी और धीरे धीरे स्पीड बढ़ा दी.
जब लगा कि मंजिल ज्यादा दूर नहीं है तो मैंने गुप्ताइन से कहा- आपके सिर के पास एक पैकेट रखा है, पकड़ा दीजिये.
गुप्ताइन ने पैकेट उठाया और देखा कि कॉण्डोम है तो रख दिया और बोली- इसकी जरूरत नहीं है, मेरा ऑपरेशन हो चुका है.
यह सुनकर मैं निश्चिंत हो गया और फुल स्पीड से मंजिल की ओर चल पड़ा.
इसके कुछ दिन बाद गुप्ता जी का प्रमोशन हुआ और उनका ट्रांसफर मेरठ हो गया.
मेरे और गुप्ताइन के लिए अब खुला मैदान था, कहीं भी चौके छक्के मारो. स्थिति ऐसी हो गई कि एक दिन सुबह दूध लेने के लिए निकला तो गुप्ताइन अपनी किचन में खड़ी दिख गई.
उसने इशारे से पूछा- कहाँ?
तो मैं जवाब देने के बजाय उसके घर पहुंच गया.
वो किचन में खड़ी होकर आटा गूंध रही थी, बोली- सुबह सुबह कहां निकल पड़े?
मैंने कहा- तुम्हें चोदने.
और इतना कहते कहते उसका गाउन ऊपर उठाया, पैन्टी नीचे खिसकाई और पेल दिया.
गुप्ताइन अरे अरे करती रह गई और मैंने ट्रेन शुरू भी कर दी.
आटे से सने हाथ किचन टॉप पर रखकर वो झुक गई और चुदवा लिया.
कहानी अभी जारी है.
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