यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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अब तक की मेरी मां बेटा सेक्स स्टोरी हिंदी सौतेली माँ के जवान जिस्म की अन्तर्वासना-3 में आपने जाना कि मैं मां की चुदाई करके बाथरूम में मां के साथ नहाने लगा था. उधर मेरा लंड मां की चुत चोदने के लिए फिर से कड़क होने लगा था. जिस पर मां ने मुझे पिताजी के आने का समय कह कर रोक दिया था.
मैं मान गया था और बाथरूम से बाहर निकल कर कपड़े पहन कर सोफे पर बैठ कर टीवी देखने लगा था. तभी पिता जी भी आ गए थे. मां अपने कपड़े पहन कर हम दोनों के लिए चाय बनाने किचन में चली गई थीं.
अब आगे:
मैं मां की मटकती हुई गांड को देख कर धीमे से मुस्कुरा दिया.
तभी पिता जी के फोन पर किसी का कॉल आ गया और वे जल्दी में आवाज लगाते हुए चले गए- अदिति मैं जरूरी काम से जा रहा हूँ. बस अभी आ जाऊंगा.
मैंने पिताजी को रोकने की कोशिश की कि चाय पी कर चले जाना पिताजी.
मगर शायद कोई अर्जेंट कॉल था, इसलिए पिताजी रुके नहीं.
पिताजी के जाते ही मां आ गईं और पिताजी को न पाकर मुझसे पूछने लगीं- क्या हुआ? तेरे पिताजी किधर चले गए?
मैंने मां को आते देख आकर उठ कर दरवाजे की कुंडी लगा दी और सब बताते हुए उनको अपनी गोद में खींच लिया.
मां हंसते हुए मेरी गोद से उठीं और बोलीं- उधर चाय उफन रही होगी. मुझे जाने दे.
मां किचन में चली गईं और मैं अपने लंड के उफान को दबाने लगा.
एक मिनट बाद मां दो कप में चाय लेकर आ गईं और मेरे पास बैठकर चाय पीने लगीं.
हम एक दूसरे की देखकर हंसने लगे थे. मां के चेहरे पर आज बहुत खुशी दिख रही थी.
मैं बोला- अदिति … तुमने आज मुझे बहुत खुश कर दिया है. मैंने अब तक चार लड़कियों को चोदा है, मगर उन्हें चोदने में भी इतना मजा नहीं आया जितना तुम्हारी चुत चुदाई में मजा आया. वाकयी तुम बहुत सेक्सी हो … तुम्हारा बदन बहुत गठीला है.
इस पर मेरी सौतेली मां बोलीं- हर्षद, तुमने तो बरसों से प्यासी अपनी माँ की चुत की आग बुझा दी है. मैं तुम्हारी बहुत आभारी हूँ. पहले तो मैं बहुत डर रही थी कि तुमसे ये सब बातें कैसे कहूँ, लेकिन जब से मैंने तुम्हारा मोटा लंड देखा था, तभी से मेरा दिल तुमसे चुदवाने को मचल रहा था. आज वो सुनहरा दिन ही आ गया. मैं बहुत ही खुश हूँ हर्षद …
अदिति आगे बोली- आज से जब हम दोनों को मौका मिलेगा, हम ऐसे ही चुदाई करेंगे हर्षद. मगर ध्यान रखना कि ये बात सिर्फ हमारे बीच में ही रहना चाहिए.
इसी तरह से हम दोनों बातें करते हुए अपनी चाय खत्म करने लगे.
चाय के बाद मां कप लेकर किचन में चली गईं और कोई दस मिनट बाद वो अपना काम निपटा कर वापस आ गईं.
मैंने उनको देख कर अपना लंड सहलाया तो मां मेरी गोद में आकर बैठ गईं. मैंने भी उन्हें अपने दोनों हाथों से कसके जकड़ते हुए भींच लिया और उनके मम्मों को सहलाने लगा.
वो कामुक सिसकारियां लेने लगीं. नीचे से मेरा लंड खड़ा होकर मां की गांड की दरार में घुस गया था. लंड को महसूस करते ही मां ने अपनी गांड हिलाकर लंड को ठीक से अपनी गांड की दरार में सैट कर लिया. उन्हें भी खड़े लंड पर गांड घिसने में मजा आ रहा था.
मैंने अपने हाथ पेट के रास्ते उनकी साड़ी के अन्दर डालकर उनकी गर्म चुत पर रख दिए. फिर मां की चुत को सहलाते हुए मैं दूसरे हाथ से उनके मदमस्त मम्मों को दबाने लगा.
वो भी कामुक सिसकारियां भरने लगी थीं. मैं मां के गालों पर और उनके होंठों को अपने होंठों से चूम रहा था.
मां कुछ ही पलों में बहुत ज्यादा उत्तेजित और कामुक हो गयी थीं.
मैं बोला- अदिति अब क्या इरादा है … क्या तुम अभी मुझसे चुदवाना चाहती हो?
मां बोलीं- हां … लेकिन पूरी चुदाई अभी नहीं कर पाएंगे हर्षद … तेरे पिताजी कभी भी आ सकते हैं.
उनकी बात एकदम सही थी. इतने में डोर बेल बज गई. शायद पिताजी लौट आए थे.
मां उठ कर साड़ी ठीक करके गेट खोलने चली गईं. मैं भी कायदे से बैठ गया. मेरा लंड खड़ा होने के कारण लुंगी में तंबू बन गया था, तो मैंने लंड को नीचे दबाया और ऊपर अखबार लेकर पढ़ने का नाटक करने लगा.
पिताजी अन्दर आकर मेरे सामने बैठ गए.
मां भी गेट बंद करके आ गईं और पिताजी से बोलीं- आप फ्रेश होकर आइए. मैं आपके लिए चाय बनाती हूँ.
पिताजी भी मां की बात सुनकर सर हिलाते हुए बाथरूम में चले गए.
थोड़ी ही देर में पिताजी फ्रेश होकर कपड़े चेंज करके वापस आए और सोफे पर बैठ गए.
तभी मां चाय लेकर आ गईं और पिताजी को चाय देकर अन्दर जाने लगीं.
पिताजी बोले- अदिति जरा यहीं बैठो. मुझे तुम दोनों से कुछ बात करनी है.
मैं और मां ने एक दूसरे को आशंका से देखते हुए लगभग एक साथ ही पूछा- क्या बात है … बोलिए न!
तभी पिताजी बोले- अरे मेरे पास सतारा से लता का फोन आया था.
लता मेरी बड़ी बहन का नाम है. दो साल पहले उसकी शादी हुई थी.
पिताजी- आजकल लता की सास बीमार हैं. वे दो दिन हस्पताल में भर्ती थीं. आज ही उन्हें अस्पताल से छुट्टी मिली है. मैं सोच रहा हूँ कि तुम दोनों जाकर उससे मिल आओ. कल सुबह जाकर शाम को वापस आ जाना. फिर हर्षद को समय नहीं मिलेगा. एक बार उसने ऑफिस ज्वाइन किया तो उससे मिलना ही नहीं हो पाएगा.
पिताजी ने आगे कहा- बहुत दिन हो गए हैं … हम लता की ससुराल भी नहीं गए हैं. इसी बहाने लता और उसके बच्चे की भी कुशलक्षेम मालूम हो जाएगी. सही कहता हूँ ना अदिति, हर्षद?
तभी मां मेरी तरफ देखते हुए बोलीं- हां ठीक है … कल नौ बजे तक हम दोनों सतारा के लिए निकल चलेंगे … चलेगा ना!
पिताजी बोले- हां ठीक है. अभी जल्दी से खाना बना लो … मैं काफी थक गया हूँ. तब तक मैं कमरे में जाकर आराम कर लेता हूँ.
मां हां कहते हुए किचन में खाना बनाने चली गईं और मैं टीवी देख रहा था.
फिर घड़ी में नौ बज गए थे … खाना तैयार हो गया था.
मां ने कहा- हर्षद … अपने पिताजी को खाना खाने के लिए बुला लाओ, मैं तब तक खाना लगाती हूँ.
मैंने पिताजी को बुलाया, फिर हम तीनों इधर उधर की बातें करते हुए खाना खाने लगे. खाना के बाद मां सब बर्तन लेकर किचन में चली गईं.
फिर पिताजी बोले- बेटा हर्षद … अब तुम भी सो जाओ, सुबह तुम्हें जल्दी जाना है ना! मैं भी सोने को जाता हूँ … कल मुझे ऑफिस भी जाना है.
ये कहकर वो अपने बेडरूम में चले गए और मैं अपने रूम में आ गया. मैं बेड पर लेट गया. मैं आज बहुत खुश था कि कल मैं और मां दोनों एक साथ पहली बार कहीं सफर में जाने वाले थे … कितना मजा आएगा … जब सिर्फ हम दोनों ही साथ में होंगे.
ये सब सोचते सोचते कब नींद लग गई, मुझे पता ही नहीं चला.
सुबह मेरा माथा चूमकर मां ने मुझे जगाया, तो मैंने आंखें खोलकर देखा और कुनमुना कर बोला- सोने दो ना मां.
वो बोलीं- मां नहीं … सिर्फ अदिति कहो … पिताजी अभी अभी ऑफिस गए हैं. उठो जल्दी … हमें सतारा भी जाना है ना!
मैंने मां को खींच कर अपनी बांहों मे जकड़ लिया और उनके दोनों गालों को चूमा. आह मां के बदन से क्या मादक खुशबू आ रही थी … वो अभी अभी नहा कर आयी थीं और नाइटी में ही थीं.
मां हंसती हुई बोलीं- तुम बहुत बदमाश हो गए हो … जल्दी से उठो और तैयार हो जाओ.
ये कहते हुए मां ने उठकर मेरे ऊपर पड़ा कम्बल हटा दिया. कम्बल हटते ही उनकी नजर मेरे खड़े हुए लंड पर पड़ी, जो लुंगी के अन्दर तंबू बनाए हुए था.
मां मेरा खड़ा लंड देख कर हंसते हुए बोलीं- तेरा ये भी बड़ा बदमाश हो गया है. मुझे देखते ही खड़ा हो जाता है.
मां ने एक हाथ से ऐसे ही ऊपर से मेरे लंड को जोर से दबा दिया और बोलीं- जाओ जल्दी से नहाकर तैयार हो जाओ. मैं भी तब तक तैयार हो जाती हूँ. अभी सवा आठ बजे हैं … आधे घंटे में हमें निकलना है हर्षद.
मां ये कहते हुए चली गईं.
मैं भी उठकर बाथरूम में चला गया.
मैं नहा कर अपने रूम में जाकर कपड़े निकालने लगा. मैंने एक अच्छा सा फॉर्मल पैन्ट और शर्ट पहना और परफ्यूम का स्प्रे मारकर तैयार हो गया. मैंने ऊपर से जैकेट डाल ली.
उधर मां भी तैयार हो चुकी थीं. वो अपने रूम से बाहर आ गईं, तो मैं उन्हें देखते ही रह गया. मां ने पीले रंग की साड़ी पहनी थी और मैचिंग का ब्लाउज पहना हुआ था. साड़ी के ऊपर से ही उनके कसे हुए चूचे मस्त दिख रहे थे.
मां ने साड़ी को कसावट के साथ पहना हुआ था, इस वजह से पीछे से उनकी गांड बहुत सेक्सी दिख रही थी. मां के लंबे और काले बाल कमर के नीचे तक उनके मादक चूतड़ों तक लहरा रहे थे. मेरी सौतेली मां क्या गदर माल लग रही थीं.
मुझसे रहा नहीं गया. मैंने उनके करीब जाकर उनको अपनी बांहों में कस लिया और उनके होंठों पर अपने होंठ रखकर उन्हें चूम लिया. उन्हें भी मेरा यूं चूमना बहुत अच्छा लगा.
उन्होंने भी मेरे होंठों को चूमकर अपने से मुझे अलग करते हुए कहा- अभी बस करो हर्षद … हमें निकलना होगा. चलो जल्दी से निकलो … लो ये ताला ले लो, गेट को बंद करके लगा देना.
तभी मैं बोला- अदिति, अपना स्वेटर तो पहन लो … तुम्हें बाइक पर स्वारगेट तक जाना है, ठंड लगेगी.
वो हां में सर हिलाते हुए अन्दर कमरे में जाकर नीले रंग का एक फुल आस्तीन का स्वेटर पहन कर आ गईं. उनके पास एक शॉल भी थी.
तब तक मैंने बाइक बाहर निकाल ली थी.
अब करीब पौने नौ बज गए थे. हम दोनों अपनी मंजिल की तरफ निकल गए. बाइक पर जाते समय तेज ठंडी हवा लग रही थी. इस वजह से मां मुझसे पूरी तरह से चिपक कर बैठी थीं.
मैंने बोला- अदिति … अपने दोनों हाथ मेरी कमर को पकड़ कर कसके बैठो … नहीं तो गिर जाओगी … रास्ता खराब है.
तो मां ने भी एक हाथ से कमर को पकड़ लिया और दूसरा हाथ मेरी जांघ पर रख दिया.
मुझे भी अब मजा आने लगा था. मां के कड़क मम्मे मेरे पीठ पर दब गए थे. उसका अहसास मुझे हो रहा था. वो भी जानबूझ कर अपने चूचे मेरे पीठ पर रगड़ रही थीं. ऐसे ही मस्ती करते हुए हम थोड़ी देर में स्वारगेट पहुंच गए थे.
बाइक बाहर स्टैंड पर खड़ी करके हम एसटी स्टैंड में आ गए.
उधर पुणे से कोल्हापुर जाने वाली बस लगी थी. वो बस निकलने ही वाली थी. सतारा बीच में पड़ता है. हम दोनों बस में जाकर दो सीट वाली सीट पर बैठ गए. बस में ज्यादा भीड़ नहीं थी. कुछ ही देर में बस चल पड़ी थी. मैं और मां हंसी मजाक करते हुए एक दूसरे के जिस्म की गर्मी के मजे लेने लगे थे.
मां ने शॉल निकाल कर अपने पैरों पर डाल ली थी. मैंने उनकी तरफ देखा तो मां ने आंख दबा दी. मैं समझ गया और मैंने उसी शॉल के अन्दर अपने हाथ डाल दिए. मैं अब अपनी मां की चुत को सहलाने लगा था और वो भी आंख बंद कर मस्त हो रही थीं.
यूं ही मां की चुत में उंगली करते हुए और उनके मम्मों का मजा लेते हुए तीन घंटे का सफर कब खत्म हो गया, हमें पता ही नहीं चला.
बस सतारा बस स्टैंड पर आकर रुक गई थी. हम दोनों बस से निकल कर अपनी मंजिल के लिए चल दिए. एक ऑटो में बैठ कर मैंने ऑटो वाले को पता समझा दिया.
करीब पन्द्रह मिनट में ही हम लता दीदी के घर पहुंच गए. हमें देखते ही लता दीदी और जीजाजी और सभी खुश हो गए. मैंने दीदी को गले लगाया और उसका हालचाल पूछा, तो वो अपनी ससुराल में बहुत खुश थी.
फिर जीजाजी और उनकी मां पिताजी से भी मां ने हालचाल पूछा. मां ने भी दीदी को गले लगाया और सबसे बातें करने लगीं.
तभी दीदी बोलीं- हर्षद तुम और मां फ्रेश हो जाओ. हम सभी साथ में खाना खाएंगे.
अभी एक बज गया था. हमें भूख भी लगी थी. हम दोनों फ्रेश होने के लिए चले गए. तब तक दीदी और उनकी सास ने सभी को खाना लगा दिया था.
हम सभी ने एक साथ खाना खा लिया और हम सब हॉल में आराम से बैठकर बातें करने लगे.
मैं और मां सभी के साथ घुल-मिल गए थे. सभी के साथ हंसी मजाक हो रहा था.
लता दीदी के घर समय कैसे बीता, इसका पता ही नहीं चला.
अब दोपहर में साढ़े तीन बज गए थे.
तभी मां ने दीदी से कहा- लता अभी हमें निकलना पड़ेगा … नहीं तो घर पहुंचने में देर हो जाएगी. शाम के समय पुणे में ट्रैफिक बहुत ज्यादा रहता है ना!
दीदी बोली- ठीक है मां लेकिन मैं अभी चाय बनाती हूँ … आप पीकर जाना.
मां बोलीं- ठीक है.
थोड़ी ही देर में हम चाय पीकर सबकी इजाजत लेकर वापस निकल पड़े.
हम दोनों हाईवे पर आकर रुक गए. जहां पुणे जाने वाली सारी बसें रुकती थीं. उधर बस स्टॉप पर और दो तीन कपल्स और दो तीन बच्चे भी खड़े थे. इतने में बस आयी, लेकिन उसमें बहुत भीड़ थी … तो हमने वो बस छोड़ दी … और दूसरी बस का इन्तजार करने लगे.
उसके बाद दो बसें और आईं, लेकिन वो भी भरी हुई थीं. ऐसे ही एक घंटा हो गया था और अब पांच बज रहे थे.
इतने में एक बस आकर रुक गयी. उसमें दस बारह लोग खड़े थे. ज्यादा भीड़ नहीं थी.
मां बोलीं- चलो हर्षद … इसी में चलते हैं … आराम से खड़े तो रह सकते हैं.
हम दोनों बस में चढ़ गए और आगे जाकर खड़े हो गए. इतने में कंडक्टर आया, तो मैंने दो पुणे की टिकट ले लीं. मैं और मां बातें कर रहे थे. साथ में हमारे बीच हंसी मजाक भी चल रहा था.
उसी बीच मां के मोबाइल पर पिताजी का फोन आ गया और वे फोन सुनने लगीं.
पिताजी ने फोन पर मां से क्या कहा था और घर जाकर मेरी मां के साथ मेरी चुदाई का सिलसिला किस तरह से चला, ये सब मैं मेरी मां बेटा सेक्स स्टोरी हिंदी में लिखूंगा. आप मुझे मेल जरूर कीजिएगा. मुझे इन्तजार रहेगा.
बाय दोस्तो … फिर मिलेंगे.
[email protected]
मां बेटा सेक्स स्टोरी हिंदी जारी रहेगी.