यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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मेरी पिछली सेक्स कहानी
विधवा सहेली की वासना की आग-1
को पढ़ने औऱ पसंद करने के लिए आपका बहुत बहुत धन्यवाद।
दोस्त, यह सेक्स कहानी मेरे एक पाठक ने मुझे भेजी थी। उनका नाम अनिल राठौड़ है और वो दिल्ली के निवासी हैं। पेशे से वो एक रिटायर्ड फौजी हैं और अब वो अपनी एक दुकान चलाते हैं।
वो कभी कभी मुझे मेल किया करते थे और हम दोनों के बीच कुछ बातें भी हुआ करती थी, बाद में हम दोनों व्हाटसअप में चैट करने लगे। और अब हम दोनों एक अच्छे दोस्त हैं।
उन्होंने अपनी सच्ची घटना के बारे में बताया और मैंने ही उन्हें कहानी लिखने के लिए कहा. जो आज आप लोगों के समक्ष पेश कर रही हूं।
उन्होंने मुझसे एक निवेदन भी किया है कि मैं अपनी सुहागरात की कहानी पोस्ट करूँ जो मैं जल्द ही लिखूंगी।
तो पढ़ते हैं उनकी कहानी।
दोस्तो, मेरा नाम अनिल है मेरी उम्र 47 वर्ष की है।
शरीर से हट्टा कट्टा हूँ क्योंकि मैं एक रिटायर्ड फौजी हूँ. शुरू से ही मेरा शरीर हृष्ट पुष्ट था. आज भी मैं रोजाना व्यायाम करके अपने शरीर की देखभाल करता हूं।
जब मैं 32 साल का था तभी मेरी पत्नी का एक बीमारी में देहांत हो गया। मेरा एक बेटा है जो अब 22 साल का है और गुजरात में जॉब करता है। दिल्ली में मेरी एक दुकान है.
मेरे घर पर मेरे अलावा और कोई नहीं रहता। मैं जिंदगी में काफी अकेला महसूस किया करता था. कई बार सोचा कि दूसरी शादी कर लूं पर अपने बेटे के भविष्य को देखते हुए वो इच्छा दब गई।
दोस्तो, जिस्म का सुख मुझे अपनी पत्नी से उतना नहीं मिल पाया उसके जाने के बाद अपने जिस्म को शान्त करने के लिए कभी कभी जी बी रोड जाया करता था।
बस मेरी जिंदगी ऐसी ही चल रही थी।
मगर मुझे क्या पता था कि मेरी जिंदगी में अभी बहुत कुछ होना बाकी था।
मैं अपनी कहानी का हर पहलू आपको बताऊँगा ताकि कहानी आपको अच्छे से समझ आये। हाँ, कहानी थोड़ी लंबी हो सकती है पर आपको अच्छी लगेगी।
जनवरी 2012 की बात है मैं अपने भाई के यहाँ शादी में गया हुआ था। वहाँ और भी काफी रिश्तेदार आये हुए थे, सबसे मिलना कभी कभी ही तो होता था.
ऐसे ही मेरे भाई के साले ने मुझसे दिल्ली में किसी किराये के मकान के बारे में जानकारी मांगी।
तो मैंने उनसे पूछा- किसके लिए चाहिए?
उन्होंने बताया- मेरी बेटी दिल्ली में नर्सिंग का कोर्स कर रही है मगर उसे होस्टल में रहने में काफी दिक्कत होती है।
मैंने पूछा- वो किस इलाके में रह रही है?
तो उन्होंने उसके बारे में बताया।
उनकी बेटी मेरे घर के पास ही रह रही थी।
इतने में ये बात मेरे भाई तक गई तो भाई में ही मुझसे कहा- अगर भईया आप तैयार हों तो क्यों न आप ही अपने यहाँ उसे रख लें। उसका कॉलेज भी वहाँ से पास है और आपका भी अकेलापन दूर रहेगा।
बात तो सही थी मैं भी तो अकेला ही रहता था तो मैंने इसमे कोई दिक्कत न दिखाते हुए हाँ कह दिया।
वहाँ से वापस आने के बाद कुछ दिनों के बाद वो बाप बेटी मेरे यहाँ आये। दोनों ही घर देख कर संतुष्ट थे।
फिर दो दिन बाद वो अपनी बेटी को मेरे यहाँ छोड़ गए।
उसका नाम रूपा था और वो 20 साल की थी। कुछ ही दिनों में हम दोनों काफी घुल मिल गए थे। अब मुझे भी कुछ घर के कामों से आज़ादी मिली क्योंकि खाना पीना वही बनाने लगी थी। वो किसी परिवार के सदस्य की तरह ही थी। काफी घुलमिल कर रहने वाली लड़की थी वो।
ऐसे ही 6 महीने बीत चुके थे हम दोनों सुबह घर से जाते और शाम को ही आते थे।
मेरे मन में भी कभी उसके लिए गलत नहीं आया था। मगर कहते हैं ना कि मर्द की कमजोरी एक औरत ही होती है।
उसके आ जाने से मेरा जी बी रोड जाना बंद हो गया था। और अगर मन करता भी था तो अपने हाथ से काम चला लेता था।
रूपा घर में बिलकुल स्वतंत्र रूप से रहती थी वो घर पर लोवर और टीशर्ट ज्यादा पहनती थी।
ऐसे ही एक दिन रूपा कॉलेज नहीं गई थी। मैं शाम को दुकान जल्दी बंद करके आ गया।
मैंने घर पहुँच कर घर की घंटी बजाई. उसने दरवाजा खोला, मैं उसे देखता ही रह गया।
उसने उस दिन गुलाबी रंग की एक साड़ी पहनी हुई थी।
उसे देखते ही मुझे मेरी बीवी की याद आ गई।
उस दिन पहली बार मैंने रूपा को काफी गौर से देखा।
अंदर जाकर मैं सोफे पर बैठ गया और उसे बोला- आज तो तुम बहुत सुंदर लग रही हो। तुम साड़ी ही पहना करो, अच्छी लगती हो।
इतने में वो हँसते हुए अंदर गई और मेरे लिए पानी लाई।
पानी पीने के बाद मैं वही सोफे पर बैठा हुआ था और रूपा अपने काम में लगी रही बार बार मेरे सामने से गुजर रही थी। मेरी नजर बार बार उसकी गोरी गोरी कमर पर पड़ रही थी।
मैं उसे उस दिन काफी गौर से देख रहा था। पहली बार उसके फिगर की तरफ मेरी नज़र गई थी। 34 28 36 का उसका फिगर कयामत था।
साड़ी से उभरी हुई उसकी गांड देख मेरा तो टाइट हो गया। किसी तरह मैं अपने आप पर काबू पाया।
हाथ मुँह धोने बाथरूम गया, दरवाजा बंद करके अपने आपको आईने में देख रहा था। तभी मेरी नजर वही रखी उसकी ब्रा और चड्डी पर गई। मैंने उसकी चड्डी को हाथ में लिया। चूत वाली जगह पर सफेद दाग पड़ा हुआ था इसका मतलब था कि रूपा की चूत से पानी निकला करता रहा होगा जिसका दाग उसकी चड्डी में था।
मैं उसकी चड्डी को सूंघने लगा हल्की हल्की नमकीन खुशबू आ रही थी।
मैंने चड्डी का नम्बर देखा वो 95 नम्बर की चड्डी थी। फिर ब्रा का नम्बर देखा वो 34 डी थी। मतलब उसके दूध काफी बड़े थे।
उस वक्त सच में मेरे अंदर रूपा के प्रति वासना जाग उठी थी। अब वो मेरे लिए मुझसे छोटी लड़की नहीं एक औरत थी जो मेरी प्यास बुझाने के काबिल थी।
मैं मुँह हाथ धोकर वापस कमरे में आया। बार बार रूपा पर ही मेरी नजर जा रही थी। साड़ी के बगल से उसके तने हुए ब्लाऊज तो कभी उसकी कमर, कभी उसकी मटकती हुई गांड।
फिर हम दोनों ने खाना खाया और अपने अपने कमरे में चले गए।
उस रात मैंने रूपा को ही याद करते हुए दो बार मुठ मारी। और बिस्तर पर लेटे लेटे उसी के बारे में सोचता रहा।
तभी मेरे मन में एक बात आई कि उसकी चड्डी में वो सफेद दाग क्यों आता होगा। ऐसा दाग तो जब चूत से पानी निकलता है तब होता है। तो क्या वो भी गर्म होती होगी?
अगर ऐसा है तो उसको भी जिस्म की प्यास लगती होगी। और ये भी हो सकता है कि उसे कोई चोदता भी हो।
अब मैंने ठान ली थी कि इसका पता तो लगाना चाहिए।
अगले दिन से ही मैंने उसपर नज़र रखना शुरू कर दिया।
कई दिनों तक उसके कॉलेज में उसके बारे में पता किया और पता ये चला कि उसका किसी के साथ कोई संबंध नहीं था।
अब घर पर तो वो मेरे सामने ऐसा कुछ नहीं करती थी. मगर रात में अकेली सोती थी तब वो क्या करती है इसका पता करना था। मगर उसके कमरे में देखने का ऐसा कोई जरिया नहीं था कि उसे देख पाऊँ रात में।
फिर एक दिन मैं दुकान नहीं गया और रूपा के कॉलेज जाने के बाद उसके कमरे में गया। उसके सभी सामान की अच्छे से तलाशी की और मुझे एक कामसूत्र की सेक्सी हिन्दी कहानियों की किताब मिली जिसे शायद वो पढ़ा करती होगी।
उसी वक़्त मैंने उसके खिड़की में एक छोटा सा छेद भी बना दिया जिससे कि रात में सोते वक्त वो आसानी से मुझे दिख जाए। उस छेद से मैं तो उसे आसानी से देख सकता था मगर वो मुझे नहीं।
अब मैंने उसके सभी सामान बिलकुल वैसे ही रख दिये जैसे वो थे।
रात में हम दोनों ने खाना खाया और अपने अपने कमरे में चले गए।
करीब 30 मिनट बाद मैं अपने कमरे से निकला और उसी छेद से अंदर देखने लगा।
उस वक्त वो उसी किताब को पढ़ रही थी जो मैंने देखी थी। उस वक़्त उसने लोवर टीशर्ट पहनी हुई थी। मैं आराम से उसकी हरकतों को देखता जा रहा था।
कुछ देर किताब पढ़ने के बाद वो अपने दूध को सहलाने लगी फिर कुछ देर बाद अपने लोवर को अपने घुटनों तक उतार दी।
उसकी गोरी गोरी जांघें देख मेरा तो तुरंत ही खड़ा हो गया।
अब वो एक हाथ से किताब पढ़ रही थी और दूसरा हाथ उसने अपनी चड्डी में डाल लिया।
कुछ देर वो ऐसा ही करती रही फिर बिस्तर के नीचे से एक प्लास्टिक की ट्यूब तरह का कुछ निकाली वो किसी पेन के जैसा लग रहा था अच्छे से देखने पर पता चला कि वो एक गोंद की बोतल थी प्लास्टिक की। जो बिलकुल किसी पेन जैसी थी।
उसने किताब को किनारे रखा और अपनी चड्ढी भी नीचे सरका दी और अपने पैरों को फैलाकर चूत में अंदर डालने लगी।
उसकी चूत बिलकुल चिकनी और गुलाबी रंग की थी।
वो जल्दी जल्दी उस प्लास्टिक को अंदर बाहर करने लगी और उस वक़्त काफ़ी मजा ले रही थी।
मेरा मन तो किया कि कमरे में घुस जाऊ और उसे चोद दूँ। मगर मैंने अपने आपको सम्हाला।
कुछ ही देर में वो शांत हो गई और लोवर पहन कर पलट कर सो गई।
मैं अपने कमरे में आया और उसकी इस हरकत को याद करते हुए मुठ मारी।
अब मुझे पता चल गया था कि उसकी चड्डी पर वो दाग कैसे लगते थे। अब मैंने पूरा मन बना लिया था कि किसी भी तरह से रूपा को चोदना है।
मगर इस काम में मैं जल्दबाजी नहीं करना चाहता था। इसके लिए रूपा को मनाना होगा। मगर कैसे करूँ मैं ये काम बस अब रोज यही सोचता रहता था।
दोस्तो, आगे मैंने रूपा को कैसे अपना बनाया ये आगे आने वाले भाग में आप पढ़ेंगे।
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