यह कहानी एक सीरीज़ का हिस्सा है:
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दोस्तो, कहानी के दूसरे भाग में आपका स्वागत है।
अभी तक आपने मेरे और रूपा के बारे में जाना।
दोस्तो, अब मैं रोज उस छेद से रूपा को रात में देखा करता था और उसे अपना बनाने के लिए तरीके सोचा करता था।
मगर यह काम बहुत ही मुश्किल था। हम दोनों की उम्र में इतना बड़ा अंतर था कि वो शायद ही मेरी हो पाती। वो मेरे मन को भा गई थी किसी भी तरह मैं उसे पाना चाहता था। पर मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूँ।
उसे मेरे घर पर रहते हुए अब एक साल होने वाला था। मगर अब तक मैं बस रोज उसे उंगली करते ही देख सका था।
मगर एक दिन मेरी किश्मत ने पलटी खाई। मेरा एक दोस्त है वो मेरे साथ ही फौज में था और बहुत ही रंगीन मिजाज आदमी है। उसका नाम डेविड है और वो एक ईसाई धर्म से है।
25 दिसम्बर को उसने अपने घर पर एक पार्टी रखी हुई थी। उसके घर मैं और रूपा दोनों ही गए थे। पार्टी में ज्यादा लोग नहीं थे, बस कुछ ही लोग थे।
रात 12 बजे वहाँ पर सब ने केक काटा और एन्जॉय कर रहे थे। तभी सब लोग डांस करने लगे वो भी जोड़े में।
मुझे ये सब आता नहीं था तो मैं अलग ही बैठा हुआ सब को देख रहा था।
डेविड और रूपा काफी घुलमिल गए थे और जब जोड़े में डांस की बात आई तो डेविड रूपा का हाथ पकड़ कर उसके साथ डांस करने लगा।
वो था तो बहुत ही बदमाश किस्म का आदमी वो रूपा के साथ डांस करते हुए उसकी कमर में हाथ डाल कर उसे अपने से चिपका कर मजा ले रहा था।
मैं उन दोनों को बस देख ही रहा था।
डांस खत्म होने के बाद सभी लोग खाना खाने लगे मगर मैं और डेविड अलग कमरे में चले गए और वहाँ वाइन पीने लगे।
पीते पीते ही डेविड ने मुझसे रूपा के बारे में पूछा तो मैंने उसे बताया। मगर डेविड को मेरी आँखों में रूपा के प्रति अलग भावना नजर आई।
वो बार बार मुझसे पूछने लगा कि बता भाई कुछ चक्कर तो नहीं है।
और फिर उससे कसम लेते हुए कि ये बात किसी को भी नहीं बताएगा, उसको सभी बात सच सच बता दी।
तब उसने ही मुझे एक प्लान बताया- ऐसा कर … अगर बात बन गई तो अच्छा है।
उसका बताया प्लान अच्छा तो था मगर उसने एक शर्त रखी कि अगर तू सफल हो गया तो एक बार उसे भी रूपा के साथ कुछ करने का मौका दूँगा, अगर रूपा तैयार हुई तो।
अब घर आकर मैं अपने प्लान की तैयारी में लग गया।
कुछ ही दिन में नया साल आने वाला था और वो वही दिन था जब मुझे अपने प्लान को पूरा करना था।
उस दिन रूपा कॉलेज नहीं गई क्योंकि उसे शायद पार्टी में बाहर जाना था अपनी सहेलियों के साथ।
उस दिन मैं दुकान गया पर दुकान जल्दी बंद करके बाजार से एक केक, कुछ मिठाइयाँ और सजाने का सामान ले आया।
जब मैं घर आया तो रूपा उस वक्त नहा कर ही आई थी। उसने मेरे हाथों में इतना समान देखकर पूछने लगी- ये सब क्या ले आये आप?
मैंने कहा- ये सब आज शाम की पार्टी के लिए है।
तो वो पूछने लगी- कहाँ है पार्टी?
“यहीं हमारे घर पर तुम और मैं नया साल मनाएंगे।”
मगर उसने कहा- मैं तो बाहर जा रही हूँ अपनी सहेलियों के साथ।
मैं उदास होकर सोफे पर बैठ गया और बोला- कोई बात नहीं, तुम जाओ हम और कभी मना लेंगे।
मेरे उदास होने को देख वो भी कुछ गंभीर हो गई, बिना कुछ कहे वो अपने कमरे में चली गई।
मैं उठा और उसको आवाज दी- मैं दुकान जा रहा हूँ, कुछ देर बाद आता हूँ. जब तुम जाओ तो घर की चाबी बगल में दे देना।
और मैं दुकान पहुँच कर शाम 6 बजे तक दुकान में ही था।
करीब 7 बजे मैं घर वापस पहुँचा तो घर पर ताला नहीं लगा था इसका मतलब रूपा घर पर ही थी।
मैंने घंटी बजाई तो रूपा सामने थी वो उस वक्त लाल रंग के फ्रॉक में थी। शायद वो पार्टी में जाने के लिए तैयार हुई थी। वो उस वक्त बिल्कुल कातिल माल लग रही थी।
उससे मैंने पूछा- तुम गई नहीं अभी तक?
“मैं नहीं जा रही हूं घर में पार्टी जो है।”
मैंने पूछा- कहाँ है पार्टी?
तो उसने मेरी आँखें बंद की और अपने कमरे में ले गई और जब आँख खोली तो मैंने देखा कि उसने पूरा कमरा सजाया हुआ था और जो केक मैं लेकर आया था वो बीच में रखा हुआ था।
मेरी तो जैसे किस्मत बदल गई थी उस वक्त … मैं काफी खुश था उस वक्त।
उसने मुझे भी जल्दी से तैयार होने को कहा.
और मुझे तैयार होने तक में साढ़े आठ बज गए थे। मैं तैयार होकर रूपा के कमरे में गया और बोला- अभी तो समय नहीं हुआ है नए साल का … इतनी जल्दी पार्टी मना लोगी तुम?
उसने कहा- तो क्या करें … हम दोनों तो हैं बस!
तो मैंने कहा- चलो मेरे तरीके से आज तुम पार्टी मनाओ।
“कैसे?”
“हम दोनों पहले वाईन पियेंगे, फिर डांस करेंगे।”
“मगर आपके साथ मैं कैसे वाइन पी सकती हूं?”
“क्यों नहीं, तुम मुझे अपना दोस्त ही समझो और ये बात मैं अपने तक ही रखूंगा।”
मेरे बहुत मनाने पर वो राजी हो गई और मेरे प्लान का पहला हिस्सा सफल रहा।
मैं तुरंत अपने कमरे में गया और एक वाइन की बोतल लेकर आ गया।
रूपा को थोड़ी हिचकिचाहट हो रही थी इसलिए मैं जल्द से जल्द उसे वाइन पिलाना चाहता था ताकि वो सामान्य हो जाये।
मैंने उससे पूछा- क्या तुमने कभी वाइन पी हैं?
तो उसने बताया- हाँ, एक दो बार हॉस्टल में पी थी।
इसका मतलब था कि उसे कोई दिक्कत नहीं थीं वाइन पीने से।
मैंने फटाफट ग्लास में वाइन तैयार की और हम दोनों ने पहला ग्लास ख़त्म किया।
मैं तुरंत ही दूसरे कमरे में गया और वहाँ से म्यूजिक प्लेयर ले आया और उसमें रोमांटिक गाना लगा दिया।
उसके बाद हम दोनों ने दूसरा, फिर तीसरा ग्लास भी खत्म कर लिया।
अब रूपा की आँखें भारी हो गई थी कदम लड़खड़ा रहे थे। मैं समझ गया कि अब वाइन ने अपना असर दिखाना शुरू कर दिया है।
मैंने सभी सामान किनारे किया और रूपा का हाथ पकड़कर अपनी ओर खींच लिया और उसकी कमर को थामते हुए हल्के हल्के डांस करने लगा।
उसे अपनी बांहों में पा कर मेरा लंड तुरंत ही खड़ा हो गया था।
उसका चेहरा और गुलाबी होंठ बिल्कुल मेरे करीब थे. मेरा मन किया कि अभी उसे चूम लूं … मगर मैंने कुछ इन्तजार करना सही समझा। क्योंकि उसे मैं उसके हाँ बोलने पर ही कुछ करने वाला था।
कुछ देर हम दोनों ने बहुत ही रोमांटिक तरीक़े से डांस किया, उसके बाद हम दोनों वापस पलंग पर बैठ गए।
रूपा बिल्कुल नशे में आ चुकी थी पर मैंने एक ग्लास और पीने की सोची और चौथा ग्लास भी तैयार कर दिया इस बार मैंने अपने हाथों से रूपा को पूरा ग्लास पिलाया।
अब तो हम दोनों ही मस्त हो चुके थे।
इतने में मैंने अपना हाथ पास रखे तकिए के नीचे डाला क्योंकि मैं जानता था कि वो किताब तकिए के नीचे ही रखी हुई है।
अचानक से मैंने वो किताब बाहर निकाल ली.
उसे देख रूपा के होश उड़ गए। वो क़िताब पर झपटी मगर मैंने उसे वो किताब नहीं दी।
और किताब देखते हुए बोला- अरे वाह तो तुम ये शौक भी रखती हो?
इतना सुन कर रूपा होंठ मींजते हुए बोली- अरे नहीं अंकल, ये किताब मेरी सहेली की है।
“अरे तो क्या हुआ … तुम्हारे पास है मतलब तुम भी पढ़ती ही हो। इसमें इतना शर्माने की जरूरत नहीं है. होता है … इस उम्र में सब चलता है। तुम मुझे अपना दोस्त ही समझो, मैं किसी को कुछ बोलने वाला नहीं हूँ।”
“वैसे एक बात पूछूँ तुमसे?”
“क्या?”
“तुम्हारा कोई बॉयफ्रेंड भी होगा।”
“नहीं।”
“क्यों फिर ये सब पढ़ने के बाद तुम्हें किसी की जरूरत नहीं पड़ती?”
यह सुन कर वो चुप ही रही।
मैंने फिर से पूछा मगर इस बार बहुत प्यार से- बताओ न … इसको पढ़ने के बाद तुम्हें किसी की जरूरत नहीं होती?
उसने अपना सर नीचे करते हुए नहीं का जवाब दिया।
मैंने कहा- ऐसा हो ही नहीं सकता कि तुम्हारा मन नहीं करता होगा। तुम अब जवान हो गई हो।
फिर उसने डरते हुए कहा- नहीं अंकल, मुझे ये सब से डर लगता हैं घर में पता चला तो बहुत बुरा होगा.
“अगर तुमको बुरा न लगे तो तुमसे एक बात कहूँ?” मैं बहुत डरते डरते कहा.
“हाँ बोलिये न अंकल?”
“क्या मैं और तुम अपनी जरूरतों को पूरा कर सकते हैं?”
“क्या मतलब?”
मैंने उनका हाथ अपने हाथों में लिया और कहा- मैं तुम्हें पसंद करने लगा हूँ. अगर तुम्हें बुरा लगे तो नाराज मत होना बस मैं अपने दिल की बात कह रहा हूँ।
“नहीं नहीं अंकल. मैंने आपके बारे में ऐसा कभी नहीं सोचा. आप मुझसे बड़े हैं।”
“इसमें बड़े होने या छोटे होने का कोई मतलब नहीं। बस जब तक हम लोग साथ हैं, एक दूसरे की जरूरत पूरी करेंगे. और मैं वादा करता हूँ ये बात हम दोनों के बीच ही रहेगी।”
दोस्तो, अब मेरी किस्मत ने साथ दिया क्योंकि रूपा ने जो कहा उसकी उम्मीद कम ही थी।
उसने कहा- प्रोमिस न अंकल … किसी को पता नहीं चलेगा?
“नहीं, कभी भी नहीं! और अगर कभी भी तुम्हें ये रिश्ता पसंद न आए तो बोल देना मैं बुरा नहीं मानूंगा।”
रूपा के चेहरे पर हल्की मुस्कान आई और मेरे अंदर का सारा डर निकल गया। मैंने तुरंत उसे अपनी बांहों में भर लिया और उसने भी मुझे जोर से जकड़ लिया।
दोस्तो, अब कहानी के अगले और अंतिम भाग में आप पढ़िए कि रूपा की पहली चुदाई मैंने कैसे की, उसके बाद क्या क्या हुआ।
कहानी थोड़ी लंबी हो रही है. ये बात मैंने पहले ही बता दी थी कि कहानी के हर पहलू को आपके सामने लाऊँगा।